#coronavirus: लौकडाउन के बीच…

लॉकडाउन‌‌ की खामोशी के लम्हों में नेचर की गुनगुनाहट को ध्यान से सुनो… फिर फील करो कि — लौकडाउन मुसीबत है या सेहत के लिए तोहफा.

घर में लोग परिवार के साथ समय बिता रहे हैं. हां,  कुछ लोग जरूर घर परिवार से दूर हैं. ऐसा भी लॉकडाउन की वजह से ही है. जो जहां था उसे वही ठहरना पड़ा .

भारत, इंडिया, हिंदुस्तान नाम से मशहूर हमारे देश के प्रधानमंत्री की 21 दिनों की लॉकडाउन कॉल पर देशवासी सरकार के साथ हैं. राज्य सरकार या स्थानीय प्रशासन ने कुछ शहरों में कर्फ्यू भी लगा दिया है.

लॉकडाउन के दौरान जिंदगी का एक हफ्ते का समय गुजर गया. चेहरों पर चिंताएं हैं . देश की सड़कों पर जिंदगी बसर करने वाला कहां जाए, रैनबसेरा हर शहर में नहीं. रेहड़ी पटरी वाले 21 दिनों तक कैसे गुजर करें, हर गरीब तक मदद नहीं पहुंच रही. जरूरी चीजों के अलावा दूसरे सामानों के छोटे दुकानदारों की स्थिति भी रोज कुआं खोदने जैसी है. निचले स्तर के कर्मचारी के पास पैसा नहीं, घर में राशन नहीं. मध्यवर्ग की आय के स्रोत बंद है. वेतनभोगी वेतन पर निर्भर हैं.

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दिल्ली में मेरे निवास के करीबी इलाकों कृष्णानगर, चंद्रनगर, खुरेजी, जगतपुरी में हर कैटेगरी के लोग रहते हैं. लोग व्यक्तिगत तौर पर तो कुछ कमेटियां और क्षेत्र के विधायक जरूरतमंदों को खाना राशन, दाल, सब्जी मुहैया कराने के साथ नकद रुपए भी दे रहे हैं. ऐसा इन इलाकों में ही नहीं, बल्कि पूरी दिल्ली में और देश की हर बस्ती के सभी इलाकों में हो रहा होगा.

कृष्णानगर विधानसभा क्षेत्र की एक सड़क के किनारे झुग्गियों में रहने वाले महिपाल, चांदनी, रफीकन, कुणाल, फहीम, फरजाना वगैरह लौकडाउन पर कुछ नहीं कहते. हालांकि, अपनी जिंदगी के बारे में वे सबकुछ सुनने व सुनाने को तैयार हैं.

झुग्गियों में रहने वाले ये सभी कोशिश करते हैं कि एक मीटर की दूरी बनाए रखें ताकि वे सेफ रह सकें. वे अपनी बेचारगी पर कहते हैं कि उन्हें तो सालभर मदद की जरूरत रहती है. उन परिवारों के पुरुष वह महिलाएं जो भी काम करते हैं उस से जीविका चलाना ही मुश्किल है. और, अब तो लॉकडाउन ने कमर तोड़ दी है. मौजूदा मदद के बारे में उन का कहना है कि विधायक जी द्वारा सूचित किए गए स्थलों में से एक स्थल पर जा कर वे दोपहर व शाम का खाना ले आते हैं.

लॉकडाउन की जिंदगी का दूसरा रूप यह है कि साधन संपन्न लोग घरों में परिवार सहित तरह-तरह के पकवान के चटखारे ले रहे हैं. साथ ही, वे दूसरों को ये पकवान खिला भी रहे हैं सोशल मीडिया पर ही सही. ऐसा व्हाट्सएप ग्रुप में देखा जा रहा है. व्हाट्सएप पर सुबह फ्रेंच फ्राइज तो दोपहर छोले भटूरे और शाम पूरी हलवा के साथ हो रही है.

लॉकडाउन की जिंदगी का एक रुख और. लोगों को कहीं जाना नहीं है, इसलिए वे खानापीना बहुत ही संतुलित ले रहे हैं. पौष्टिक तत्वों पर वे बहुत ध्यान दे रहे हैं. साथ ही, समय-समय पर नाश्ता, लंच व डिनर कर रहे हैं.

कुल मिलाकर लॉकडाउन के दौर में जिंदगी मुसीबतभरी तो है, लेकिन किसी के लिए स्वादभरी भी है, वहीं, कुछ के लिए सेहतभरी भी.

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