#coronavirus: अनलॉक के दौरान क्या करें या न करें

अब जब सब तरफ लाकडाउन बंदिशें खत्म हो चुकी हैं. तो  ऐसे में ज़रूरी है कि बीमारी के फैलने की संभावना को कम करने के लिए हम सब पूरी सावधानी बरतें. हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि जानलेवा कोरोनावायरस अभी देश से गया नहीं है और वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया जारी है. भारत में अब तक 3.50 लाख कोरोना पाज़िटिव और 10 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी है.  हम जानते हैं कि अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के प्रयास में शहर और राज्य खोले जा चुके हैं.ऐसे में कोरोनावायरस इन्फेक्शन फैलने का खतरा भी बढ़ गया है.

डॉक्टर का कहना है कि हमें अपने दोस्त को गले लगाए, पार्टी किए, स्टेडियम गए और हवाई यात्रा किए भले ही कई दिन बीत गए हों, लेकिन हमें याद रखना है कि कई तरह के प्रतिबंध हटाए जाने के बाद, आज भी हम कोरोनावायरस के बारे में बहुत कुछ नहीं जानते हैं.

इस अनलॉक के समय हमें कुछ बातों का खास ध्यान रखना चाहिए जो कि इस प्रकार है

1. फेस मास्क पहनना न भूलें

शॉपिंग मॉल और गैर-ज़रूरी सामान की दुकानें खुलने लगी हैं, ऐसे में ज़्यादा सावधानी बरतने की ज़रूरत है. उपभोक्ताओं और कर्मचारियों दोनों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन जारी रखना चाहिए और अनिवार्य रूप से फेस मास्क का उपयोग करना चाहिए. आप कहां रहते हैं, क्या कर रहे हैं, इसके आधार पर कई और नियम भी हो सकते हैं. साथ ही आपको हैण्ड सैनिटाइज़र और दस्तानों का उपयोग भी करना चाहिए. याद रखें कि शॉपिंग और सामाजिक जीवन का अनुभव अभी कुछ समय के लिए पहले की तरह नहीं होने वाला है.

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2. पार्टी करने से बचें और बार में न जाएं

कोरोनावायरस के इन्फेक्शन से बचने के लिए ज़रूरी है कि आप बेवजह लोगों के संपर्क में न आएं. घर पर पार्टी करने या बार में जाने से आप ज़्यादा भीड़ के संपर्क में आते हैं, इससे इन्फेक्शन फैलने का खतरा बढ़ सकता है. हो सकता है कि पार्टी में ऐसे लोग हों जिनमें इन्फेक्शन के लक्षण न हों, जो आपको इन्फेक्शन दे सकते हैं. इसलिए यह पूरी तरह आप पर निर्भर करता है कि आप कितनी सूझ बूझ से अपने स्वास्थ्य की देखभाल करते हैं.

3. बार-बार हाथ धोएं        

हाइजीन को बिल्कुल न भूलें, याद रखें कि लॉकडाउन में छूट का यह मतलब बिल्कुल नहीं कि कोरोनावायरस फैलना रूक गया है. स्कूल और बिज़नेस को खोलने के आर्थिक कारण हो सकते हैं, लेकिन वायरस फैलता रहेगा. हालांकि हो सकता है कि इसके फैलने की दर कम हो जाए. बार-बार अच्छी तरह हाथ धोने से आप इस इन्फेक्शन से बच सकते हैं. जब भी आप किसी के संपर्क में आएं या किसी सतह को छूएं तो इसक बाद अपने हाथों को साबुन और पानी से अच्छी तरह धो लें.

4. छुट्टी की योजना न बनाएं

हममें से ज़्यादातर लोग तीन-चार महीने से घर में रहने के बाद छुट्टी पर जाना चाहते हैं. हो सकता है कि होटल और हवाई यात्रा का किराया बहुत कम हो जाए. लेकिन इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं कि आप यह सोचकर छुट्टी पर जाने की योजना बना लें कि आपकी इम्युनिटी मजबूत है और आपको कुछ नहीं होगा. हो सकता है कि हवाई यात्रा अब पहले की तरह रोचक न हो. आपको उड़ान के दौरान मास्क पहनना होगा, आप सीमित मात्रा में खाने-पीने का आनंद ले कसेंगे, एयरपोर्ट टर्मिनल्स पर ज़्यादातर बिज़नेस बंद रहेंगे.

5. कोई भी फैसला सोच-समझ कर लें

भविष्य में क्या होने वाला है, हम इसके बारे में कुछ नहीं कह सकते. हो सकता है कि कोरोनावायरस के मामले अचानक बढ़ जाएं जैसा सिंगापुर और होंग-कोंग में हुआ, वायरस के ज़्यादा खतरनाक स्ट्रेन भी आ सकते हैं. इसलिए कोई भी फैसला सोच-समझ कर लें, लेकिन निराश न हों.

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6. स्ट्रीट फूड खाने से पहले सावधानी बरतें, हाइजीन पर खास ध्यान दें

जैसे ही आप घर से बाहर जाते हैं, गोलगप्पे, मोमो, टिक्की, राम लड्डू और चाट आपको लुभाने लगते हैं लेकिन स्ट्रीट फूड की किसी भी स्टॉल पर जाने से पहले सुनिश्चित कर लें कि वहां हाइजीन का पूरा ध्यान रखा जा रहा है. चाट परोसने वाले व्यक्ति ने दस्ताने पहनें हैं और वह नियमित रूप से अपने हाथों को सैनिटाइज़ कर रहा है. पेपर प्लेट और कटलरी साफ है, इन पर धूल-मिट्टी नहीं है.

डॉ. पी वेंकटा कृष्णन, इंटरनल मेडिसिन, पारस हॉस्पिटल

#lockdown: तीर्थ यात्रियों की वापसी, फिर छात्रों और मजदूरों के साथ भेदभाव क्यों?

गरीब मजदूर और छात्र अपने-अपने घर जाने के लिए तड़प रहे हैं. क्योंकि उनके जाने के लिए कोई वाहन व्यवस्था नहीं है. लेकिन वहीं सारे नियम और कानून को ताख पर रखकर तीर्थ यात्रियों को यात्राएं कराई जा रही है. जबकि गरीब मजदूरों और छात्रों के घर जाने पर राजनीति हो रही है.

लॉकडाउन में जहां घर के ज़रूरियात सामान लाने पर पुलिस लोगों पर बेतहासा डंडे बरसा कर उसका पिछवाड़ा लाल कर दे रही है. वहीं आंध्र प्रदेश के राज्य सभा सांसद जी बीएल नरसिम्हाराव की पहल पर केंद्र सरकार के आदेश पर धार्मिक नगरी काशी से सोमवार को नौ सौ भारतीय तीर्थ यात्रियों को उनके गंतव्य पर भेजा गया.

लेकिन न तो इन तीर्थ यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग की गई और न ही सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन किया गया. हालात ऐसे थे कि एक बस में 45 सीटों पर 45 यात्री थे. 12 बसें भोर में चार बजे रवाना की गई जबकि आठ बसें देर शाम को. इसके अलावा दो क्रूजर से 12 की संख्या में तीर्थ यात्री रवाना किए गए.

तीर्थ यात्रियों की रवानगी जिलाधिकारी के देख-रेख में की गई. बसें उन्हें आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू, कर्नाटक और केरल ले कर गई. रास्ते में कुछ और यात्रियों को भरा गया. ये सभी दक्षिण भारतीय यात्री सोनापुरा और आसपास के क्षेत्रों में स्थित मठों और गेस्ट हाउस मे ठहरे हुए थे.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने राष्ट्र को अपने चारों संबोधन में ज़ोर देते रहे हैं कि सोशल डिस्टेन्सिंग ही कोरोना महामारी से बचाव का एकमात्र विकल्प है. लॉक डाउन का मकसद लोगों को भीड़ से बचाना है, क्योंकि एक जगह कई लोगों के जमा होने से कोरोना फैलने की आशंका बढ़ जाती है. लेकिन इसके बावजूद शुक्रवार को लॉकडाउन और सोशल डिस्टेन्सिंग के नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी के बेटे निखिल गौड़ा की बड़ी धूमधाम से और भव्य तरीके से शादी हुई. इस वीआईपी शादी में मेहमानों की भीड़ ने न तो सोशल डिस्टेन्सिंग पर ध्यान दिया और न ही मास्क पहनना जरूरी समझा. इस शादी समारोह के आयोजन में जिस तरह से कोरोना वायरस से बचाव के लिए लागू लॉकडाउन का उल्लंघन हुआ उससे राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन पर कई सवाल खड़े हो गए हैं. क्योंकि इस विवाह समारोह की बाजाप्ता अनुमति ली गई थी और विवाह स्थल तक मेहमानों को लाने-ले जाने के लिए प्रशासन की ओर से पास भी निर्गत किया गया था.

वैसे, कुमार स्वामी सफाई दे रहे हैं कि शादी समोरोह बड़े ही सादगी से किया गया और इसमें चुने हुए मेहमान ही बुलाये गए, लेकिन शादी समारोह की जो फोटो सामने आई है, उनमें दूल्हा-दुलहन के इर्द-गिर्द काफी भीड़ साफ नजर आ रही है. लॉकडाउन के दौरान देशभर में इस प्रकर के समारोह करना तो दूर, लोगों को समूह में सड़कों पर आने की भी इजाजत नहीं है. इसके बावजूद कुमारस्वामी जैसे नेता शुभ मुहूर्त के फेर में शादी टालने की बजाय भीड़ वाला आयोजन करने से नहीं चुके.

हाल ही में टुमकुर जिले के तुरुवेकेर से बीजीपी विधायक एम जयराम ने भी इसी तरह लॉकडाउन के नियमों की धज्जियां उड़ाई थीं. उन्होंने सार्वजनिक तौर पर ग्रामीणों के साथ अपना जन्मदिन मनाया था. इस मौके पर केक और बिरियानी लोगों के बीच बँटवाई गई थी. यहाँ भी अधिकतर लोग बिना मास्क के थे.

गोरखपुर में एक व्यापारी के बेटे के जन्मदिन की पार्टी में करीब 60 लोगों के जुटने पर अगर पुलिस लॉकडाउन के उलंघन का मामला दर्ज कर सकती है, तो इन लोगों के आयोजनों को लेकर इसी तरह की कार्यवाई से परहेज क्यों ? क्या लॉकडाउन के नियम क्या सिर्फ आम इन्सानों और गरीब मजदूरों के लिए है ? नेताओं के लिए नहीं ? क्या नेता होने का मतलब यह है कि वे नियमों के बंधन से मुक्त हैं ?  

दरअसल, देश में जिस तरह कोरोना के लिए माहौल बनाया गया, मानो मात्र किसी जाति वर्ग विशेष को ही हाशिये पर रखा गया हो. आए दिन अमीर लोग अपने परिवार और पहचान वालों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जा-आ रहे हैं. लेकिन गरीब मजदूर कहीं पुलिस से पीट रही है, तो कहीं भूखे पेट पैदल ही चलने को मजबूर हैं.

अब जब दो हफ्तों के लिए लॉकडाउन और बढ़ा दी गई है तो ऐसे में मजदूरों की बेचैनी और बढ़ गई है. क्योंकि न तो उनके पास रोजगार है न खाने के लिए पैसे, तो जाएँ तो जाएँ कहाँ ?

गैरकृषि महीनों में शहरों में कमाई करने जाने वाले प्रवासी मजदूरों की चिंता यह भी है कि फसलों की कटाई का समय है, ऐसे में घर नहीं पहुंचे तो तैयार फसल बर्बाद हो जाएगी और वह कर्ज में डूब जाएंगे. लेकिन इनके पास लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार करने के अलावा और कोई विकल्प भी नहीं है.

चार बच्चों की माँ 36 वर्षीय आशा देवी बात करते हुए रो पड़ी. उसने बताया कि उसके दो बच्चे वहाँ यूपी में अकेले रहते हैं.

बड़ा 14 साल का बेटा मजदूरी करता है और अपने छोटे भाई का ध्यान भी रखता है. पिछले महीने वह गाजियाबाद के ईंट-भट्टे पर काम करने के लिए अपने पति और 13 अन्य लोगों के साथ पहुंची थी. ठेकेदार ने उन्हें राशन देने का वादा किया था, लेकिन अचानक भाग गया. अब उनके पास खाने को कुछ नहीं है. मजबूरन पैदल ही सब अपने गाँव लौटने को निकल पड़े. लेकिन पुलिस ने उन्हें जाने नहीं दिया.

34 वर्षीय मोनु वेटर का काम करता है. उसकी पत्नी, माँ और दो छोटे बच्चे गाँव में रहते हैं, उसने बताया कि होली के दौरान उसने परिवार को कुछ पैसे भेजे थे, जो अब पूरी तरह से खत्म हो चुके हैं. लॉकडाउन के कारण काम छिन गया तो कमाई भी बंद हो गई. अब न अपने घर जा सकते हैं और न यहाँ रह सकते हैं. क्या करे समझ नहीं आता.

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करीब तीन दर्जन मजदूर तो जम्मू में फंसे हुए हैं. मजदूरों तक किसी तरह की मदद नहीं पहुँचने पर वे इतने विचलित हैं कि अपने छोटे-छोटे बच्चे के साथ आत्महत्या करने पर मजबूर हो गए थे.

यह दो-चार नहीं, अनगिनत मजदूरों की अंतहीन दास्तान है, जो काम-धंधे की तलाश में हरियाणा, राजस्थान, बिहार, बंगाल आदि राज्यों से देश के अन्य शहरों में पहुंचे थे, लेकिन लॉकडाउन में फंसे हुए हैं. कोई जरिया नहीं है जिससे वह अपने घर जा सकें.

कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमन को देखते हुए सरकार ने लॉकडाउन को 14 अप्रेल से बढ़ाकर 3 मई तक कर दिया. लेकिन क्या लॉकडाउन ही किया जाना एक मात्र विकल्प था ? वह भी अचानक से ? क्या पूर्ण लॉकडाउन का एलान करने से पहले सरकार ने उन छात्रों के बारे में भी नहीं सोचा जो अपने परिवार से दूर बाहर रह कर पढ़ाई कर रहे हैं ? की वह अपने घर कैसे जाएंगे ? 

राजस्थान के कोटा में कई छात्र हैं, जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, और वहाँ फंस चुके हैं.  इन छात्रों का कहना है कि इनके पास खाने की भी ठीक से सुविधा नहीं है. कहते हैं, ‘हम पूरी तरह से फंस चुके हैं कोटा में. सोचा था निकलने का कोई जरिया मिलेगा. लेकिन सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिला. एक छात्र का कहना है कि वह झारखंड से कोटा नीट की तैयारी करने आया था. एक महीने पहले ही हमारी टेस्ट सीरीज बंद हुई थी. उसके बाद लॉकडाउन लगने से हम घर नहीं जा पाए. इंतजार था कि जैसे ही लॉकडाउन खत्म होगा अपने घर चले जाएंगे. लेकिन दोबारा से लॉकडाउन लग गया तो अब क्या करे.

उत्तर प्रदेश के कानपुर से कोटा पढ़ने आई तान्या बताती है कि ‘लॉकडाउन बढ़ चुका है और हमारे घरवाले हमारी चिंता में बहुत परेशान हैं. अब हम लोग भी घर जाना चाहते हैं. यहाँ खाना भी बाहर से आता है, तो रिस्क बढ़ गया है. हम सब घर जान चाहते है , लेकिन यहाँ कोई व्यवस्था नहीं है. कहती हैं पढ़ाई में भी अब मन नहीं लग रहा है, हम एकदम डिप्रेशन में हैं.‘

हैदराबाद विश्वविधालय की प्रियंका की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है. वह अकेलापन मसहूस करने लगी है. कहती है, ‘ज़िंदगी बस हॉस्टल के रूम से लेकर मैस की बेंच तक सिमट कर रह गई है. मैं अपने फ्लोर पर अकेली स्टूडेंट हूँ. आसपास कोई एक शब्द बात करने वाला नहीं है. इस समय मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती मानसिक स्वास्थय को बरकरार रखने की है. कभी-कभी मन में डर भी लगता है कि अपने घर-परिवार से दूर अगर कुछ हो गया तो कौन संभालेगा. हालांकि, मैस कर्मचारी और सुरक्षा गार्ड भी हमारे लिए ड्यूटी निभा रहे हैं तो उनसे साहस मिलता है.

मनोचिकित्सक डॉ. सुमित गुप्ता कहते हैं कि कोई भी यदि इस तरह के सिचुएशन में फंस जाएगा तो वह तनाव में रहेगा. स्ट्रेस में रहने से इंसान के भूख और नींद में बदलाव आ जाते हैं. उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाति है जिससे संक्रमित होने का खतरा बढ़ जाता है. कोटा में फंसे अधिकतर छात्र बिहार और यूपी के हैं. और बताते हैं कि कई छात्र दिवाली के बाद अपने घर नहीं गए. पिछले महीने ही उनके कोर्स कंप्लीट हुए और घर जाने का मन बना ही रहे थे कि लॉकडाउन हो गया और वे जा नहीं पाए, लेकिन दोबारा लॉकडाउन से वह डिप्रेशन में आ गए हैं.

कोटा में फंसे छात्र अपनी बात सरकार तक पहुँचाने के लिए सोशल मीडिया का भी सहारा ले रहे हैं. हैशटैग से करीब 70 हजार ट्वीट किए गए. छात्रों ने पीएमओ, प्रधानमंत्री, राजस्थान के मुख्यमंत्री समेत अन्य राज्यों के भी कई नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों को ट्वीट किए. लेकिन अभी तक इनकी सहायता के लिए कोई आगे नहीं आया.

फेसबुक पर भी वे अपने समस्याओं के समाधान के लिए पोस्ट करे रहे हैं, लेकिन यहाँ से भी कोई समाधान अभी तक नहीं मिला है. स्टूडेंट्स का आरोप है कि इनके चलाए हैशटैग ‘सेंडअस बैकहोम’ को अब नेता अन्य राज्यों की घटनाओं के लिए उपयोग कर रहे हैं.

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सोशल मीडिया पर छात्रों की मदद के लिए हैशटैग चलाने वाले आशीष रंजन एक ट्विटर हैंडल के लिए काम करते हैं, बताते हैं कि छात्र बेहद परेशान हैं और हमारे पास हजारों की संख्या में रोज छात्र मैसेज कर रहे हैं. रंजन कहते हैं कि छात्र अपनी परेशानी बताते हुए रोने लगते हैं, वे इस कदर परेशान हो चुके हैं और शासन प्रशासन की ओर से पास रद्द किए जाने के बाद वह घर जाने को लेकर चिंचित हैं.

छात्र अपनी समस्या जब कोचिंग संस्थाओं से बताते हैं तो वे भी सरकारी नियमों का हवाला देते हुए मदद करने से खुद को असमर्थ बताते हैं.

छात्र वीडियो के माध्यम से अपना दर्द परिवार तक पहुंचा पा रहे हैं. कहते हैं बातों से ज्यादा हमारे आँसू बहते हैं.

लेकिन क्या लॉकडाउन किया जाना ही एक मात्र विकल्प था ? और अगर लॉकडाउन किया ही जाना था तो उसके पहले लोगों को जानकारी नहीं दी जानी चाहिए थी? पूर्ण लॉकडाउन की घोषण से पहले लोगों को वक़्त न देकर प्रधानमंत्री जी ने सिर्फ अपनी मर्ज़ी चलाई, जिसका खमजाया भुगतना पड़ है देश की जनता को. 

यदि मोदी जी 24 मार्च को सम्पूर्ण लॉकडाउन करने के लिए चार घंटों के बजाय 20 मार्च के देश को दिये गए संदेश में बता देते जैसे और देशों में हुआ तो यह समस्या खड़ी ही नहीं होती. लेकिन उन्होंने यह सोचा ही नहीं और अचानक से लॉकडाउन की घोषण कर दी. कम से कम लॉकडाउन के पहले लोगों को संभलने का वक़्त दिया होता तो वे अपनी जरूरतों के हिसाब से अपनी व्यवस्था कर लेते. जिसे जहां जाना होता चले जाते. लेकिन मोदी जी ने ऐसा कुछ सोचा ही नहीं और अपनी घोषण सुना दी, जो जहां हैं वहीं रहें. ‘सरकार फंसे तीर्थ यात्रियों को लाने की व्यवस्था कर सकते थे, तो फिर लॉकडाउन में फंसे छात्र और गरीब मजदूरों का क्या कसूर था ? विदेशों में फंसे भारतियों को स्पेशल विमान से यहाँ बुलाया जा सकता था, तो फिर छात्र और मजदूरों को क्यों नहीं ? क्या ये देश के नागरिक नहीं है ? 

लाखों गरीब मजदूर अपने गाँव तक जाने वाले वाहन की उम्मीद में पैदल ही चलते जा रहे हैं. भूख-प्यास से ब्याकुल ये मजदूर किसी तरह बस अपने गाँव पहुंचाना चाहते हैं. क्योंकि अब उनके लिए शहरों में कुछ बचा नहीं. लेकिन अगर सरकार इन प्रवासी मजदूरों के लिए शहर में ही खाने और रहने की व्यवस्था कर देती, तो ये उम्मीद होती कि कई मजदूर घर जाने के लिए इतने परेशान न होते और न ही स्थिति इतनी खराब होती.

कोटा में पढ़ने वाले छात्र लाखों रुपये फीस देकर कोचिंग करते हैं. कई हजार रुपये किराए के रूप में अपने हॉस्टल और पीजी को देते हैं. अधिकतर कोचिंग करने वाले छात्र सशक्त्त मध्यमवर्ग या उच्च्वर्गीय परिवारों से होते हैं. ये सब छात्र 18 से कम उम्र के के हैं जो कोचिंग के लिए अपने घर और परिवार से दूर रहते हैं. इनकी अपनी समस्याएँ हैं, डर है, कोरोना के संक्रमन का खतरा है. मानसिक तनाव होने की शंका है. इसलिए सरकार ने कुछ छात्रों की आवाज सुन ली और उन्हें उनके घर भेज दिया गया. लेकिन अभी भी कुछ छात्र हैं जो लॉकडाउन में फंसे हैं और घर नहीं जा पा रहे हैं.

लेकिन वो गरीब जो रो रहे हैं, पैदल ही अपनी पत्नी, छोटे-छोटे बच्चों और बुजुर्ग परिवार वालों के साथ हजारों किलोमीटर पैदल चलकर घर पहुंचना चाहते हैं, उनके साथ यह अन्याय क्यों ? उन सबों को भी बसों की व्यवस्था कर उनके घर क्यों नहीं पहुंचवाया जा सकता है ? इन गरीबों के ऊपर डांडा चलाकर, मुर्गा बनाकर उन्हें कहीं भी परेशान होने छोड़ दिया जाना केंद्र और अन्य राज्य सरकारों के ऊपर बड़े सवाल खड़े करता है.

#lockdown: होम बायर्स को मिला मौका

भारतीय समाज में मौजूदा समय को कलियुग या यों समझें नकारात्मकता का दौर कहा जाता है. इस बीच, कोरोना के कोहराम ने और भी तबाही मचा दी. दुनियाभर में चिंता व अफरातफरी का माहौल है. सभी को नुक्सान उठाना पड़ रहा है.

भारत में पहले से ही आर्थिक मंदी की मार झेल रहे रियल एस्टेट सेक्टर की तो अब मानो कमर ही टूट गई है. सरकार ने, हालांकि, अफोर्डेबल हाउसिंग के लिए महीनों पहले कुछ इंसेंटिव का एलान किया था लेकिन अब दुनियाभर में उभरे नोवल कोरोनावायरस के संकट से रियल एस्टेट सेक्टर की हालत और भी खराब हो गई है.

रियल एस्टेट सेक्टर को हमेशा से बेहतरीन कमाई का व्यवसाय माना जाता है. सच भी है. लेकिन, ताजा संकट के चलते इस सेक्टर में अब फिलहाल बेहतरीन कमाई नहीं होगी.

देश की जीडीपी गिरती जा रही हो, देशवासियों के पास पैसे न हों, तो वे घर या फ्लैट या जमीन कैसे खरीदेंगे. और जब डिमांड कम होगी तो डेवलपर्स, बिल्डर्स को कीमतें कम करनी पड़ेंगी ही.

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देश की बड़ी मोर्गेज कंपनी हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन या एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख ने कहा है कि कोरोना वायरस नाम की महामारी और इसकी वजह से देशभर में किए गए लॉकडाउन की वजह से रियल एस्टेट की कीमतें 20 फीसद तक गिर सकती हैं.

नेशनल रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल (नारेडको)  के एक वेबिनार में पारेख ने रियल एस्टेट डेवलपर्स को संबोधित करते हुए कहा, “रियल स्टेट की कीमतें गिरेंगी और आगे इसमें और कमी आ सकती है.”

उन्होंने कहा कि जिन लोगों के जॉब सुरक्षित हैं या जिनके पास नकदी की आवक ठीक-ठाक है, उनके लिए आने वाला समय घर खरीदने के लिए बेहतरीन समय हो सकता है.

देश में रियल स्टेट मार्केट पहले ही कई वजहों से दबाव से गुजर रहा है, इसकी वजह बहुत सारी हैं.  इनमें नकदी की उपलब्धता नहीं होना, एनपीए का बढ़ना और कुछ सगमेंट में वित्तीय दबाव का बढ़ना जैसे मामले शामिल हैं.

एचडीएफसी का कहना है,  “हाल में ही सरकार ने सस्ते घरों को बढ़ावा देने के लिए बहुत से प्रावधान किए हैं, लेकिन उसके बाद भी रियल एस्टेट सेक्टर लगातार मुसीबतों के दौर में फंसता जा रहा है.”

रियल एस्‍टेट कंसल्‍टेंसी फर्म लायसेस फोरास के सीईओ पंकज कपूर कहते हैं, ”देशभर में प्रॉपटी की कीमतें 10-20 फीसदी तक घट सकती हैं. वहीं, जमीन के दाम 30 फीसदी तक नीचे आ सकते हैं.” उन्‍होंने कहा कि प्रॉपर्टी में इस तरह की कमी वैश्विक आर्थिक संकट के समय भी नहीं देखने को मिली थी.

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रहेजा रियलिटी कंपनी के राम रहेजा कहते हैं, ”बाजार अब पूरी तरह से खरीदने वालों के लिए बन गया है. अगर किसी को वाकई प्रॉपटी या जमीन की बिक्री करनी है तो उसे कीमतों को घटाना होगा.”

स्थिति इस कदर खराब हो गई है कि देशभर में चार से पांच साल की इंवेंट्री बन गई हैं. यह ऑल टाइम हाई है. देश के नौ प्रमुख शहरों में 6 लाख करोड़ रुपए से ज्‍यादा मूल्‍य के मकान अब तक नहीं बिके हैं. ऑनलाइन रियल एस्‍टेट पोर्टल प्रॉपटाइगर की जनवरी की रिपोर्ट से इस का पता चलता है.

ऐसे में यह साफ है कि  कोरोनावायरस  के कहर के चलते जमीन-फ्लैट-मकान के भावी खरीदारों को मौका मिला है कि वे लौकडाउन खत्म होने के बाद घटती कीमतों का फायदा उठाएं. प्रौपर्टी एक्सपर्ट्स का मानना है कि प्रौपर्टी की कीमतें कई महीनों तक बढ़ेंगी नहीं.

#coronavirus: इस Lockdown में नए अंदाज में जियें जिंदगी

लॉक डाउन का एक बार फिर से बढ़ जाने से वर्क फ्रॉम होम करने वाले लोग, बच्चे, यूथ और बुजुर्गों के लिए घर पर रहने की परेशानी एक बार फिर बढ़ गयी है. महीनो घर पर रहने के बाद उनकी आदतों में बदलाव न आ जाय, इसे देखने की जरुरत है. नियमित दिनचर्या, सही खान-पान और व्यायाम ही उन्हें अच्छा महसूस करवा सकती है. खासकर मुंबई जैसे शहर में जहाँ लोग दिनभर काम में व्यस्त रहते है. आज कोविड- 19 ने उसकी रफ़्तार को रोक दिया है, लगातार लॉक डाउन ने मुंबई की सूरत को बदल कर रख दिया. आज सड़के और गलियां सब सुनसान पड़ी है, केवल आवश्यक सेवा में लगे लोग और पुलिस ही दिखाई पड़ती है, ऐसे में खुद को और परिवार वालों को स्वस्थ रखना एक चुनौती सबके लिए है. इस बारें में सोच फ़ूड एल एल पी की फाउंडर पूर्वी पुगालिया कहती है कि घर पर रहकर ऑफिस का काम करना और अपनी प्रोडक्टिविटी को बनाये रखना आसान नहीं. इसके साथ पूरे परिवार को भी किसी न किसी रूप में एक्टिव रखना एक चुनौती है.  कुछ सुझाव निम्न है,

  • जब आप वर्क फ्रॉम होम करते है, तो आपके रूटीन को बनाये रखना जरुरी होता है, समय से सोना और जागना पड़ता है. दिनचर्या को पहले की तरह ही बनाये रखना पड़ता है. इसके लिए काम की साप्ताहिक सूची पहले से बनाकर रखना जरुरी है, इसमें लर्निंग, क्रिएटिव प्ले, रिलैक्स करने का समय, फिटनेस, एक्टिविटी आदि को शामिल करना आवश्यक है, अभी घरेलू हेल्प नहीं है, ऐसे में उसे भी कब कैसे करना हे, अपनी सूची में शामिल करें.

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बच्चे अभी स्कूल और कॉलेज नहीं जा रहे है, ऐसे में उनकी पढाई को उस लेवल तक करवाते रहना जरुरी है, पर इसके साथ-साथ उनकी फिटनेस और क्रिएटिविटी को भी बनाये रखना है, ताकि वे बोरियत या अकेलेपन का शिकार न बने, कुछ ऑनलाइन कोर्सेज बच्चों के लिए शुरू करवा दें, जिसे वे उसे एन्जॉय कर सके, टीवी का समय निर्धारण पहले जैसे ही करें, इंडोर गेम को अधिक से अधिक करने के लिए प्रेरित करें, यूथ लड़के और लड़कियां इस दौरान खाना पकाने की विधि, रूम डेकोरेशन, पेंटिंग आदि को सीख सकते है, जो बाद में उन्हें काम आ सकता है.

इस लॉक डाउन में परिवार में हैप्पी मोमेंट्स को क्रिएट करें, जिसमें साथ मिलकर भोजन करना, फिल्में देखना, पुरानी बातों को याद करना, आदि हो, क्योंकि व्यस्त दिनचर्या में परिवार के मूल्य, रिश्तों की अहमियत, धीरे-धीरे ख़त्म होते जा रहे थे, ऐसे में ये समय उसे फिर से तरोताजा बनाने का है.

  • व्यस्त समय जब आप भूखे रहते है, ऐसे में जो भी सामने मिलता है, उसे खा लेते है, अब आपके पास समय है और आप एक हेल्दी और बैलेंस्ड फ़ूड परिवार के लिए बना सकते है, जो आपके मेंटल और इमोशनल हेल्थ के बैलेंस को बनाये रखती है, इसमें फल, दही, मिल्क, नट्स आदि से कई प्रकार के स्मूदी, सलाद और फ्रूट डेजर्ट बनाया जा सकता है, इस तरीके के व्यंजन डाइजेस्ट करने में भी आसान होता है, ये सब काम परिवार के लोग साथ मिलकर करे,ताकि इसका जायका और भी बढ़ जाय.

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  • अगर सीनियर सिटिजन घर में है और वे इस तालाबंदी की वजह से घर से निकलकर वाक् नहीं कर पा रहे है, उनकी फिजिकल एक्टिविटी में कमी आई है, तो उन्हें योगा, प्राणायाम और हल्की फुल्की व्यायाम और घर पर थोडा टहलने की जरुरत है,इससे उनकी इम्म्युनिटी बढेगी और उनकी लंग कैपासिटी भी अच्छी रहेगी, ऑक्सीजन का संचार सही ढंग से होगा और उनकी मूड स्विंग कम होगी.

#lockdown: कोरोनावायरस ले डूबा है बौलीवुड का बिजनेस, भविष्य और स्टाइल

कोरोना वायरस का संक्रमण एक ऐसी त्रासदी है, जैसी आक्रामक त्रासदी दुनिया ने पिछले पांच सौ सालों में पहले कभी नहीं देखी. ऐसा नहीं है कि कोरोना वायरस के संक्रमण के पहले दुनिया में महामारियां नहीं आयीं, लेकिन अब के पहले दुनिया में जितनी भी महामारियां आयी हैं, उनका कुछ निश्चित क्षेत्रों में ही असर हुआ है. मसलन ज्यादातर महामारियां बड़े पैमाने पर आम लोगों की जानभर लेती रहती हैं. लेकिन कोरोना महामारी ऐसी है जो न सिर्फ बड़े पैमाने पर लोगों को मार रही है बल्कि अब तक के तमाज जीवन जीने के ढंग पर सवालिया निशान लगा रही है और हमारी तमाम उपलब्धियों को अर्थहीन कर रही है या फिर उन्हें पूरी तरह से बदलने के लिए इशारा कर रही है. कहने का मतलब यह कि जब कोरोना महामारी दुनिया से जायेगी, तब तक दुनिया पूरी तरह से बदल चुकी होगी और फिर लौटकर वैसी नहीं होगी, जैसी कोरोना संक्रमण के पहले थी.

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक कोरोना के संक्रमण से पूरी दुनिया में 1 लाख 5 हजार लोगों की मौत हो चुकी थी साथ ही करीब 16 लाख 50 हजार लोग पीड़ित थे, जिसका मतलब है कि अगर आज की तारीख में भी यह त्रासदी कहीं ठहर जाये तो भी इसके जाने के बाद इससे मरने वालों की गिनती 2 लाख के ऊपर पहुंचेगी. बहरहाल जहां तक महामारियों में लोगों के मरने की संख्या का सवाल है तो निश्चित रूप से पहले इससे भी कहीं ज्यादा लोग मरते रहे हैं, लेकिन जहां तक विभिन्न क्षेत्रों में इसके भयानक असर का सवाल है तो अब के पहले किसी भी महामारी का ऐसा असर किसी क्षेत्र में नहीं हुआ, जैसा असर फिलहाल कोरोना का दिख रहा है.

 

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बाॅलीवुड के फिल्मोद्योग को ही लें, अब के पहले की तमाम त्रासदियों ने कभी बाॅलीवुड को इस कदर नहीं झकझोरा जैसा कोरोना ने झकझोर दिया है. कोरोना के कहर ने बाॅलीवुड को पांच तरीके से झकझोरा है. सबसे पहले तो इसने उन बहुप्रतीक्षित फिल्मों का दिल तोड़ा है, जिन्होंने साल 2020 की पहली तिमाही में कमायी का इतिहास रचने का मंसूबा बना रखा था. जनवरी 2020 से मार्च 2020 के दूसरे सप्ताह तक जो बहुप्रतीक्षित फिल्में रिलीज हुई, उनमें एक बागी-3 को छोड़ दें, जिसने 109 करोड़ रुपये का बिजनेस किया तो तमाम दूसरी फिल्मों को अपनी लागत निकालना भी संभव नहीं हुआ. ‘लव आजकल’ जैसी फिल्म जिसके बारे में कहा जा रहा था कि 500 करोड़ रुपये का बिजनेस करेगी, वह 50 करोड़ रुपये का भी नहीं कर पायी. इरफान खान की बीमारी से लौटने के बाद उनके प्रशंसकों द्वारा बेसब्री से इंतजार की जा रही फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ भी अपनी लागत नहीं निकाल पायी, जबकि इसे भी 200 करोड़ रुपये तक बिजनेस करने वाली फिल्म माना जा रहा था.

एक आयुष्मान खुराना की ‘शुभमंगल ज्यादा सावधान’ ही ऐसी फिल्म रही जिसने इस तिमाही में अपनी 40 करोड़ रुपये की लागत के मुकाबले 62 करोड़ रुपये का बिजनेस करके 22 करोड़ रुपये का लाभ कमाया वरना कामयाब जैसी फिल्म तो तमाम प्रचार, प्रसार के बावजूद 2 करोड़ रुपये का बिजनेस भी बहुत मुश्किल से कर पायी, जबकि इस फिल्म को मीडिया में 5 में से 4.5 स्टार की रेटिंग मिली हुई थी. फिल्म में संजय मिश्रा, दीपक डोबरियाल तथा ईशा तलवार जैसे चेहरे थे, जिसका मतलब था कि फिल्म भरपूर मनोरंजन करने वाली होगी. ‘थप्पड़’ के आने के पहले भी उसकी खूब हवा बांधी गई थी, लेकिन फिल्म 30 करोड़ रुपये का बिजनेस भी नहीं कर पायी जबकि माना जा रहा है इसे बनाने में 75 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं.

 

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लेकिन यह कोई अकेला क्षेत्र नहीं है जिसे कोरोना संकट ने बहुत ज्यादा प्रभावित किया है. कोरोना के कहर के चलते न सिर्फ फिल्मों की बड़े पैमाने पर शूटिंग कैंसिल हुई बल्कि हर साल गर्मियों में होने वाले फिल्म सितारों के विदेशी टूर भी करीब करीब सब कैंसिल हो गये हैं. हर साल गर्मियों में बाॅलीवुड के चर्चित सितारे यूरोप और अमरीका के टूर पर जाते हैं. जहां वे खुद तो करोड़ों रुपये कमाते ही हैं, उनके बदौलत इंडस्ट्री के सैकड़ों लोगों को अच्छाखासा रोजगार मिलता है और कमायी होती है. एक अनुमान के मुताबिक हर साल बाॅलीवुड के सितारे गर्मियों के इस विदेशी टूर से 300 से 400 करोड़ रुपये की कमायी करते है, जो इस साल घटकर शून्य हो गई है. कमायी तो हुई ही नहीं साथ ही जो इन टूर के चलते बड़ी संख्या में लोगों को हिंदुस्तान की लू के थपेड़ों से राहत मिल जाती थी, वह भी इस साल नहीं होने वाला. क्योंकि इन पंक्तियों के लिखे जाने तक एक भी टूर शिड्यूल नहीं था और न ही इसकी कोई उम्मीद है.

 

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Here’s another fun banter of Karan Johar with his kids. #lockdownwiththejohars

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कोरोना वायरस का एक और बड़ा असर तमाम आने वाली फिल्मों की रिलीज पर पड़ा है. जो फिल्में आमतौर पर फरवरी के अंत या मार्च के दूसरे तीसरे सप्ताह में रिलीज होनी थी, उन सबकी रिलीज डेट अनिश्चितकाल के लिए बढ़ गई है. ‘लालसिंह चड्ढा’, ‘बह्मास्त्र’, ‘1983’, ‘जर्सी’, ‘राधे’ और ‘तख्त’ जैसी फिल्में कब रिलीज होंगी, फिलहाल इसका ठोस अनुमान किसी के पास नहीं है और जब रिलीज भी होगी तो क्या दर्शक उन्हें देखने आयेंगे, यह भी तय नहीं है. हां, इस त्रासदी ने फिल्मी सितारों को एक मायने में राहत दी है कि उनकी छोटी से छोटी गतिविधियों पर बाज की तरह आंख रखने वाले पपराजियों का इन दिनों कहीं दूर दूर तक अता पता नहीं चलता यानी ऐसे स्वतंत्र फोटोग्राफर जो हमेशा फिल्मी सितारों की एक्सक्लूसिव तस्वीरेें उतारने के फेर में सितारों के आगे पीछे मंडराया करते थे, अब वे पता नहीं कहां छिप गये हैं. कुल मिलाकर देखा जाए तो बाॅलीवुड की कोरोना संक्रमण ने कमर तोड़ दी है. अव्वल तो बहुत मुश्किल है कि अगले कुछ सालों तक फिल्म इंडस्ट्री फिर से पुराने ढर्रे पर लौट पाये, लेकिन जब लौटेगी तो भी वह पुरानी जैसी तो कतई नहीं होगी. कोरोना ने एक ऐसे उद्योग का समूचा रूप रंग बदलने के संकेत दे दिये हैं, जिस उद्योग पर कभी किसी का बस नहीं चलता था.

#coronavirus: लॉकडाउन से कैसे कोरोना को भगा सकते है ! 

वैश्विक महामारी के इस दौर में पुरे विश्व में लॉक डाउन लगा हुआ है , दुनिया का 90 प्रतिशत भाग आंशिक या पूर्ण लॉक डाउन लगा हुआ है, वह10 प्रतिशत भाग कोरोना से कोरोना से अपने अपने तरीके से कोरोना से लड़ाई लड़ रहे है. तो आइये जानते है लॉक डाउन से कैसे विश्व से महामारी को भगाया जा सकता है .

1. दूसरे देशों से तेजी से लॉकडाउन लागू हुआ

जिन देश ने लॉक डाउन समय रहते नहीं किया उनका हालत आप देख सकते है. भारत ने दूसरे देशों से लॉकडाउन को लागू करने पर तेजी से काम किया.इसलिए अभी भी हालत बतर नहीं है . देश में समय से लॉकडाउन हुआ है तो उसका नतीजा भी सामने आएगा. कोरोना का सामुदायिक प्रसार पर रोक लगाना संभव हुआ है. अचानक लॉक डाउन होने से समाज के हर वर्ग के सामने  कुछ परेशानियां जरूर आई है , लेकिन आप स्वास्थ्य रहेंगे  तो वह परेशानियां भी दूर हो जाएगी. जीवन अनमोल है.इसे बचाना जरुरी है.

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2. समय पर लॉक डाउन नहीं तो स्थिति बना गंभीर

अमेरिका, इटली , स्पेन ,फ़्रांस और विट्रेन की स्वास्थ्य सुविधाएं हमारे देश से बहुत ही बेहतर है , लेकिन इन देशों ने समय रहते लॉक डाउन का फैसला नहीं किया , जिसका परिणाम आज यहाँ कोरोना समुदाय स्तर पर पहुंच गया है . जिससे कोरोना मरीजों की संख्यों निरंतर बढ़ रही है. अगर अपना देश समय पर लॉक डाउन नहीं करता और जो स्थिति अमेरिका में है वह स्थिति भारत में बनती, तो क्या होता आप सोच सकते है, यहां तबाही आ सकती थी.

3. समुदाय स्तर पर वायरस को फैलने से रोकना है

लॉक डाउन को इस लिए ही लागू किया गया कि सामाजिक दुरी का पूरा ख्याल रखते हुए बीमारी को फ़ैलाने से रोका जा सके और संक्रमित लोगो को अलग आइसोलेट किया जा सके. कोरोना का वायरस लोगो से लोगो में ना फैले और  समुदाय में वायरस न फ़ैल सके . जिस देश में समुदाय में वायरस घूमता रहा वहां कोरोना का संक्रमण तेजी से फैला है और रोगियों का हालत बहुत बुरा हो चूका है .

4. सबका मदद करना है और कोरोना को हराना है

लॉकडाउन एक मुश्किल समय होता है. लोगों को परेशानी झेलनी पड़ती है. लेकिन बीमारी से मुकाबला करने के लिए यह जरूरी है. हम बात को समझ कर हम खुद को अपने समुदाय को बीमारी से बचा सकते हैं.  भारत की आबादी बहुत ज्यादा है. घनी आबादी की वजह से कई लोग लॉकडाउन में जहाँ -तहा फंस गए है , आये दिनों इन्हे विभिन्न रूप में देख भी गया. सरकार और सामजिक संस्थान अपने अपने स्तर पर इन लोगो का मदद कर रहे है.  नियम अनुसार लॉकडाउन को बनाये हुए है. क्यों कि कोरोना को हराना है और  हर किसी को सुरक्षित रहना है.

5. WHO ने देश में जारी लॉकडाउन का समर्थन किया

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोरोनावायरस से मुकाबले के लिए भारत की कोशिशों की तारीफ की है। डब्ल्यूएचओ के विशेष प्रतिनिधि डॉ. डेविड नवारो ने एक इंटरव्यू में कहा कि यूरोप और अमेरिका जैसे विकसित देशों ने जहां कोरोना को गंभीरता से नहीं लिया, वहीं भारत में इस पर तेजी से काम हुआ। कोरोना से मुकाबले के लिए मोदी सरकार की तरफ से उठाए गए सख्त कदमों की सराहना की। लॉकडाउन को लेकर लोगों को होने वाली परेशानियों पर उन्होंने कहा कि तकलीफ जितनी ज्यादा होगी, उससे उतनी ही जल्दी निजात मिलेगी.

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6. 59 हजार लोगो का जान बचा

‘इम्पिरियल कॉलेज लंदन’ ने अपने इसी सोमवार को एक अध्ययन में यह माना है कि  लॉक डाउन के कारण  59 हजार लोगो का जान अब तक बचाया सका है. अध्ययन में यह कहा गया है कि‘‘कम से कम मार्च के अंत तक लागू बंद के मद्देनजर हमें अनुमान है कि इससे सभी 11 देशों में 31 मार्च तक 59,000 लोगों की मौत टाली जा सकी.  अध्ययन में कहा गया है कि इटली में 38,000 लोगों , स्पेन में करीब 16,000, फ्रांस में 2,500, बेल्जियम में 560, जर्मनी में 550, ब्रिटेन में 370, स्विट्जरलैंड में 340, आस्ट्रिया में 140, स्वीडन में 82, डेनमार्क में 69 और नॉर्वे में 10 लोगों का जीवन बचाए जाने का अनुमान लगाया है.

#lockdown: ऐसा देश जिसे कोरोनावायरस की चिंता नहीं

यूरोप आजकल कोरोनावायरस के फैलाव का केन्द्र बना हुआ है. लेकिन इसी यूरोप में एक ऐसा देश भी है जिसे कोरोना के फैलाव की चिंता बिल्कुल नहीं है, लेकिन इसकी वजह  लापरवाही बिल्कुल नहीं है.

बेलारूस, यूरोप का वह एकमात्र देश है जहां के अधिकारी अपने देश की जनता को कोरोना की वजह से असामान्य स्थिति में डालने के इच्छुक नहीं हैं.

बेलारूस कई पहलुओं से एक असाधारण देश है, शायद यही वजह है कि उसने कोरोना से मुक़ाबले के लिए भी अपने बेहद निकटवर्ती पड़ोसियों, रूस और यूक्रेन से भी हट कर नया रास्ता अपनाया है.

यूक्रेन में किसी भी समय अपातकाल की घोषणा की जा सकती है जबकि रूस ने‌ स्कूल बंद किए, सार्वाजनिक  कार्यक्रम रद्द किए और सभी  उड़ानें रोक कर कोरोना वायरस से मुक़ाबले की तैयारी कर ली है. लेकिन बेलारूस में कई पहलुओं से जन जीवन सामान्य है, सीमाएं खुली हुई हैं, लोग काम पर जा रहे हैं और कोई भी डर की वजह से टॉयलेट पेपर का भंडारण नहीं कर रहा.

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बेलारूस के राष्ट्रपति एलेक्ज़ेंडर लोकान्शो का कहना है कि उनके देश को कोरोना वायरस से नहीं डरना चाहिए और न ही उनके देश को कोरोना से बचाव के लिए इतनी अधिक सतर्कता की ज़रूे चीनी राजदूत के साथ एक बैठक में कहा कि ” यह सब होता रहता है , महत्वपूर्ण बात यह है कि हम डरें न.”

बेलारूस की सरकार ने सेनेमा हॉल बंद नहीं किये, थियेटर भी खुले हैं और सार्वाजिनक कार्यक्रमों पर भी कोई प्रतिबंध नहीं है. बेलारूस दुनिया के उन गिनेचुने देशों में है जहां आज भी फुटबाल मैच हो रहे हैं. बेलारूस की फुटबॉल लीग यथावत चल रही है और पड़ोस में रूस के फुटबालप्रेमी भी  उसके मैचों से आनंद उठा रहे हैं.

राष्टृपति ने कहा कि ” ट्रेक्टर कोरोना की समस्या को खत्म करेगा”. उनके इस बयान में बाद सोशल मीडिया पर उनका काफी मज़ाक़ भी उड़ाया गया. उनका आशय यह था कि खेतों में कड़ी मेहनत करने से कोरोना वायरस से बचा जा सकता है. उन्होंने यह  भी सलाह दी कि वोदका शराब की कुछ घूंट भी कोरोना से बचा सकती है हालांकि उन्होंने कहा कि वे शराब नहीं पीते.

बेलारूस से बाहर कोरोना के फैलाव और उसके बाद विभिन्न देशों की हालत देख कर हालांकि इस देश में भी कुछ लोग चिंतित हैं और उन्होंने सरकार से मांग की है कि वह बचाव का उपाय करे लेकिन बेलारूस के राष्ट्रपति का कहना है कि चिंता की ज़रूरत नहीं क्योंकि बेलारूस में घुसने वाले हर यात्री का पहले कोरोना का टेस्ट लिया जाता है.

उन्होंने बताया कि पूरे दिन के टेस्ट में दो या तीन लोग पौजिटिव पाए जाते हैं जिन्हें आइसोलेट किया जाता है और फिर एकदो हफ्ते में हम उन्हें छोड़ देते हैं.

बेलारूस के राष्ट्रपति ने बौखलाहट और चिंता को कोरोना वायरस से अधिक खतरनाक बताया है. उन्होंने खुफिया एजेन्सी को आदेश दिया है कि वह देशवासियों को डराने वालों को पकड़े और सख्त सज़ा दे.

बेलारूस कई पहलुओं से यूरोप का अनोखा देश है. मिसाल के तौर पर बेलारूस युरोप का एकमात्र देश है जहां अब भी मृत्युदंड दिया जाता है. इसी तरह यह यूरोप का एकमात्र देश है जहां के अधिकारियों पर कोरोना वायरस की वजह से बौखलाहट नहीं छायी है.

रोचक बात तो यह है कि हर बात में सरकार और राष्ट्रपति का विरोध करने वाले कड़े सरकारविरोधी आंद्रे कीम ने भी बेलारूस के राष्ट्रपति के इन विचारों का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि देश में लॉकडाउन, बेलारूस की आर्थिक मौत लिख देगा. बेलारूस वह एकमात्र देश है जहां के अधिकारी जनवाद से प्रभावित नहीं हैं और अपने देश की जनता के लिए सब से अच्छा रास्ता चुनते हैं. वे आगे कहते हैं, “ मुझे पता है कि जो मैं कह रहा हूं वह सुन कर कुछ लोग मुझे ज़िंदा ही निगल जाना चाहेंगे लेकिन मैं सार्वाजनिक पागलपन के प्रति चुप नहीं रह सकता.“

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सार्वाजनिक पागलपन से उनका आशय कोरोना से बचने के लिए पूरी दुनिया में उठाए जाने वाले कद़म थे.

#lockdown: आग से निकले कढ़ाई में गिरे, गांव पहुंचे लोग हो रहे भेदभाव का शिकार

बड़े शहरों से लौट कर अपने गांव घर पहुचने वॉले लोगो के सामने आग से निकले कढ़ाई में गिरे वॉले हालत बन गए है. गांव तक पहुचने के लिए सैकड़ो किलोमीटर पैदल चलना पड़ा, ट्रक, बस या दूसरी सवारी गाड़ियों  में जानवरों की तरह ठूंस ठूंस कर सफर करना पड़ा. भूखे प्यासे रह कर जब यह लोग गांव पहुचे तक इनके और परिवार के लोगो के बीच प्रशासन और गांव के दूसरे जागरूक लोग खड़े हो गए. कुछ लोग इनकी करोना वायरस से जांच की मांग करने लगे तो कुछ लोग इनको अस्पताल में रखने की मांग कर रहे थे . वंही कुछ लोग चाहते थे कि यह 14 दिन अपने घर मे ही अलग थलग रहे. शहरों को छोड़ अपने गांव पहुचे इन लोगो को लग रहा था कि यह अछूत जैसे हो गए है. करोना वायरस के खिलाफ जागरूकता अभियान एक डर की तरह पूरे समाज के दिलो में बैठ गया है. उसे बाहर से आने वाला हर कोई करोना का मरीज लगता है और उससे वो जान का खतरा महसूस करता है.

अजनबियों सा व्यवहार

मोहनलालगंज के टिकरा गांव में रहने वाला आलोक रावत उत्तराखंड नोकरी करने गया था. लॉक डाउन होने के बाद वो किसी तरह तमाम मुश्किलों का सामना करता 30 मार्च को अपने गांव पहुचा. गांव में घुसने के पहले ही गांव के कुछ जागरूक लोगो ने उसको रोक लिया. इसके बाद पुलिस और डायल 112 पर फोन करके पुलिस को खबर कर दी कि एक आदमी बाहर से आया है. अब आलोक को घर जाने की जगह गांव के बाहर स्कूल में ही रहना पड़ा. बाद में पुलिस डॉक्टर  आये तो लगा कि उसको कोई दिक्क्क्त नही है. इसके बाद भी आलोक को हिदायत दी गई कि 14 दिन वो अपने घर के अलग कमरे में रहे किसी से ना मिले ना जुले.

मोहनलालगंज तहसील के गनियार गांव का शुभम उड़ीसा में रहता था. वो 29 मार्च को अपने गांव आया तो गांव वालों ने इसकी सूचना पुलिस को दे दी. पुलिस समय पर नही पहुची तो पूरा दिन और एक रात शुभम को अपने गांव आने के बाद भी अपने घर जाने की जगह पर गांव के बाहर स्कूल में किसी अछूत की तरह रहना पड़ा. उसके घर के लोग चाहते थे कि वो वँहा ना रहे पर पुलिस के डर से वो लोग भी कुछ नही कर सके.

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सुल्तानपुर जिले के भवानीपुर में रहने वाला दीपक पंजाब में मजदूरी करता था. दिल्ली के रास्ते किसी तरह 3 दिन में अपने गांव पहुच गया. रात में उसे किसी ने देखा नहीं. सुबह वो अपने खेत पर काम करने गया. इसी समय गांव वालों ने उसको देख लिए और इसकी सूचना पुलिस को दे दी. पुलिस उसको पहले थाने ले गई. उसके घर वालो को बुरा भला भी बोला. 3 घण्टे थाने में बैठने के बाद डाक्टर आये तो उसको ठीक पाया गया. इसके बाद भी उसको 14 दिन घर से बाहर नहीं निकलने को कहा गया.

पुलिस का डर

असल मे कोविड 19 से बचाव के लिए प्रशासन के स्तर पर हर गांव वालों को कहा गया है कि कोई भी जब बाहर से आये तो उसकी सघन तलाशी ली जाए. उसका स्वाथ्य परीक्षण किया जाए. अगर उसको कोई सर्दी जुखाम बुखार की परेशानी नही है तो उसको 14 दिन के लिए अलग रहने को कहा जाए. अगर कोई इस बात को नही मानता है तो उसके खिलाफ संक्रमण अधिनियम का उलंघन करने के लिए मुकदमा लिखा जाए. पुलिस इसमे उन लोगो को भी जिम्मेदार मॉन रही है जो बाहर से आने वाले कि सूचना पुलिस को नही देते है.

जेल के कैदियों सी मुहर

कई जगहों पर बाहर से आने वाले लोगो के हाथ पर एक मुहर लगा दी जाती है जिसको देंखने के बाद पता चलता है कि यह आदमी किस दिन बाहर से अपने गांव आया है.

झारखंड और दूसरे प्रदेशों में यह हालत सबसे अधिक है. जिन लोगो के हाथ मे यह मुहर लगी होती है उनको किसी से मिलना जुलना नही होता और उनको अपने घर मे भी कैदियों की तरह अलग रहना पड़ता है.

पत्नी बच्चे तक दूर रहते है

प्रतापगढ़ के रहने वाले रमेश कुमार अपने घर वापस आये तो उनको उनकी पत्नी और बच्चो से दूर कर दिया गया. रमेश की पत्नी को कुछ दिन पहले ही बेटा हुआ था. बेटा होने की खुशी में वो अपने घर आया तो वँहा उस पर यह प्रतिबंध लगा दिया गया कि वो 14 दिन सबसे दूर रहेगा. रमेश  को घर के बाहर उस कमरे में रहना पड़ा जंहा जानवरो के लिए चारा रखा जाता था.

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करोना वायरस से अधिक डर पुलिस और प्रशासन का लोगो को है. वो मुकदमा कायम करने की धमकी दे कर डराते है. इसके अलावा गांव के लोग जागरूकता की आड़ में लोगो की सूचना पुलिस को देकर अपनी दुश्मनी भी निकाल रहे है.

#lockdown: कोरोना वायरस लगा रहा बैंक अकाउंट में सेंध

पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव के रहने वाले मदीन की आंखों से बारबार आंसू छलक पङता है. मेहनतमजदूरी से जमा किए उस के 33 हजार रूपए  धोखे से किसी ने उस के अकाउंट से निकाल लिए. कुछ ही महीनों पहले वह महाराष्ट्र से अपने गांव आया था और सोचा था कि इन रुपयों से वह एक भैंस खरीदेगा. थोङेथोङे कर के उस ने पैसे बचाए थे.

बिहारबंगाल बौर्डर पर बसे एक गांव की निशा देवी उस दिन को याद कर फफक पङती है जब किसी ने उसे फोन कर खुद को अधिकारी बताया और कहा,”हैलो, मैं स्वास्थ्य विभाग से बोल रहा हूं. कोरोना महामारी के बीच सरकार की ओर से दी जाने वाली सहायता राशि आप के खाते में भेजनी है. कृपया अपने बैंक खाते का विवरण व एटीएम का पिन नंबर जल्द बताइए.”

निशा से पूरी जानकारी लेते ही फोन डिस्कनैक्ट हो गया और और कुछ ही देर बात उस के मोबाइल पर एक मैसेज आया तो वह बदहवास सी अपने पति को जानकारी देने लगी. उस के अकाउंट से 7,850 रूपए किसी ने निकाल लिए थे जबकि एटीएम कार्ड उसी के पास था. दरअसल, ये दोनों ही साइबर ठगी के शिकार हो गए.

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सोशल मीडिया के जरीए बना रहे शिकार

कोरोना वायरस को महामारी बता कर साइबर अपराधियों ने भोलेभाले लोगों को अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया है. फर्जी वेब पेज, फर्जी ईमेल, फर्जी सोशल मीडिया और फोन के जरीए साइबर ठग लोगों के अकाउंट को बङी शातिराना अंदाज में साफ कर रहे हैं. पुलिस को ऐसे कई मामले मिले हैं जिस में आरोपी खुद को स्वास्थ्य विभाग का अधिकारी बता कर, तो कभी बैंककर्मी बता कर लोगों से ठगी कर रहे हैं. कुछ मामलों में तो ये इलाज के नाम पर चंदा मांग कर भी लोगों को चूना लगा रहे हैं.

सावधान रहें

पिछले दिनों बिहार की राजधानी पटना के साइबर सेल को साइबर क्राइम की कई शिकायतें मिलीं, जिन की जांच करने पर पता चला कि काल करने वाले अधिकतर नंबर विदेशी हैं.

साइबर सेल ने लोगों को ऐसे काल्स से सावधान रहने को कहा है और आगाह किया है किसी भी हालत में किसी अनजान फोन आने पर उसे अपने बैंक खातों, पिन नंबर, आधार कार्ड नंबर अथवा ओटीपी आदि शेयर न करें.

देश के तमाम बैंक भी लगातार अपने ग्राहकों को बैंक खाते से जुङी कोई भी जानकारी साझा करने से मना करते रहे हैं.

ऐसे बचें साइबर अपराध से

साइबर सेल के एक्सपर्ट्स का मानना है कि ऐसा कोई भी ईमेल, लिंक व वैब पेज को किसी भी हालत में न ओपन करें न ही उत्तर दें. औनलाइन लेनदेन करते वक्त सावधानी बरतें और मुश्किल पासवर्ड लगाएं. इस से फर्जीवाङा करने वालों को आप के खाते तक पहुंचना आसान नहीं होगा. साथ ही ऐंटी वायरस ऐप से मोबाइल को अपडेट करते रहें.

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एक्सपर्ट्स का मानना है कि फर्जीवाङा से बचने के लिए जागरूक रहना भी बेहद जरूरी है और इस के लिए जरूरी है शुरूआत से ही बच्चों को साइबर अपराध से बचने के बारे में बताते रहें.

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लॉकडाउन है हम सभी को अपने घर में रहना चाहिए, हमारी सुरक्षा के लिए यह एक जरूरी कदम है, इस बात से हम सहमत भी है. पुलिस और डॉक्टर दिन रात हमारे लिए काम कर रहे हैं और यह गर्व की बात है.

सब ठीक है और हमें यकीन है कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा. कुछ लोग कुंकिंग कर रहे हैं तो कुछ पक्ष-विपक्ष की बातें कर रह हैं. कुछ लोग महाभारत-रामायण देख रहे हैं तो कुछ वेब सीरीज. कुल मिलाकर जिंदगी चल रही है…

रोज नई-नई बातें सामने आ रही हैं, कहीं वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ रही हैं वहीं कुछ लोग ठीक होकर अपने घर भी आ रहे हैं. मजदूरों की परेशानी सामने आई जिनमें कुछ जैसे-तैसे अपने घर पहुंचे हैं तो कुछ के लिए रहने खाने की व्यवस्था की जा रही है. बहुत सारे सामाजिक संस्थान, नेता, अभिनेता और आम लोग भी मदद के लिए आगे आगे रहे हैं.

घरों से पुराने कैरम और लूडो निकल गए हैं. भाभी रोज नए-नए पकवान बनाकर खिला रही हैं तो पतिदेव भी बरतन साफ करने लगे हैं. कहीं नए रिश्तों में प्यार पनप रहा है तो कहीं फेसबुक पर लाइव गिटार बजाया जा रहा है. नॉनवेज के स्वाद में वेज सब्जियां बनाई जा रही हैं तो कहीं लता जी के गानों की मधुर संगीत सुनाई दे रही है. पड़ोसियों के चेहरे दिखने लगे हैं, रिश्तेदारों को फोन मिलाए जा रहे हैं. माने, यकीन पर दुनिया टिकी है.

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इन सब के बीच सोनम, यही नाम है इस हिम्मत वाली लड़की का. यह वह सोनम नहीं है जिसका नाम वायरल नोट पर लिखा था कि, सोनम गुप्ता बेवफा है. यह तो हमेशा दूसरों का साथ देने वाली 29-30 साल की सेल्फ डिपेंड लड़की है. जिसने अपने दम पर अपनी पहचान बनाई. वैसे तो सोनम के हिम्मत की कई कहानियां है. फिलहाल मैं इस कहानी के बारे में बता रही हूं.

सोनम जौनपुर की रहने वाली है और लखनऊ के एक बैंक में अच्छी पोजिशन पर है. सोनम के माता-पिता और भाई जौनपुर में ही रहते हैं जबकि ये अकेले लखनऊ में रहती हैं. मजदूरों की परेशानी सामने आई कुछ जैसे-तैसे अपने घर पहुंचे हैं तो कुछ के लिए रहने खाने की व्यवस्था की जा रही है. बहुत सारे सामाजिक संस्थान, नेता, अभिनेता और आम लोग भी मदद के लिए आगे आगे रहे हैं.

हमसब की तरह सोनम ने भी लॉकडाउन की खबर सुनी, फिर ऑफिस से मेल भी आ गया कि 21 दिनों के लिए काम पर नहीं आना है. अब अकेली सोनम को कुछ समझ नहीं आया कि वो करे तो क्या करे. कुछ दिन सोशल मीडिया पर समय व्यतीत किया, एक-दो दिन पकवान भी बना लिए. वॉट्सऐप पर स्टेटस भी लगा लिए, लोगों को वीडियो कॉल भी कर लिया. धीरे-धीरे अकेलापन डिप्रेशन में बदलने लगा.

अब सोनम को घर की याद आने लगी, उपर से उसे अपनी मां की फिक्र थी जिनकी तबियत भी ठीक नहीं थी. सोनम ने अपने फेसबुक पर ये भी लिखा था कि कोई जौनपुर जाने वाला हो तो बताए. तीन-चार के कई प्रयास किए कि वह घर पहुंच जाए लेकिन सब फेल हो गया. अब सोनम अकेले पैदल तो जा नहीं सकती थी तो एक दिन सुबह पांच बजे अपनी स्कूटी निकाली और निकल पड़ी लखनऊ से जौनपुर की तरफ. रास्ते में पुलिस वालों ने रोका, कई जगह स्क्रीनिंग भी हुई लेकिन सौनम ने हार नहीं मानी और 5-6 घंटे स्कूटी चलाने के बाद दोपहर तक अपने घर पहुंच गई. इस दौरान उसे हल्की चोट भी लगी लेकिन घर जाने के अलावा उसे कुछ दिख ही नहीं रहा था.

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अगले दिन जब मैनें उसे वीडियो कॉल किया तो अपने घर पर थी और मुस्कुरा रही थी, मैंने पूछा क्या हाल, उसने बस इतना जबाव दिया घर पर हूं. मैंने पूछा कैसे, उसने बोला स्कूटी चलाकर. सच मैं उस वक्त हैरान रह गई थी, लेकिन उसके चेहरे की वो खुशी मैंने अपने दिल के कैमरे में कैद कर ली. सोनम की दाद इसलिए भी देनी चाहिए क्योंकि जब ससुराल वालों ने और दहेज की मांग की और घरवालों को परेशान किया तो उसने अपनी सगाई खुद तोड़ दी लेकिन अपने माता-पिता का सिर नहीं झुकने दिया.

गजब! सोनम वाकई तुम कुछ भी कर सकती हो…

नोट: आप इस सोनम की बातों में न आएं और ऐसा करने की सोचें भी नहीं. ऐसा करने के पीछे सोनम की अपनी कुछ जरूरी वजह थी. यह जोखिन भरा हो सकता है और बिना कर्फ्यू पास के आप कहीं आ-जा नहीं सकते, इसलिए घर में रहें इसी में आपकी भलाई है.

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