#lockdown: घरेलू हिंसा की बढ़ती समस्या

लॉकडाउन के दौरान देश भर में घरेलू हिंसा के मामले 95 फीसदी तक बढ़ गए हैं यानी लगभग दोगुने हो गए हैं. राष्ट्रीय महिला आयोग ने लॉकडाउन से पहले और बाद के 25 दिनों में विभिन्न शहरों से मिली शिकायतों के आधार पर यह बात कही है. आयोग ने इस साल 27 फरवरी से 22 मार्च के बीच और लॉकडाउन के दौरान 23 मार्च से 16 अप्रैल के बीच मिली शिकायतों की तुलना के बाद आंकड़े जारी किए हैं.

इसके मुताबिक लॉकडाउन से पहले आयोग को घरेलू हिंसा की 123 शिकायतें मिली थीं जबकि लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन व अन्य माध्यम से घरेलू हिंसा के 239 मामले दर्ज कराए गए.

अप्रैल के महीने में महिला आयोग को महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा की कुल 315 शिकायतें मिली हैं. यह सारी शिकायतें ऑनलाइन और वाट्सऐप से मिली हैं. पिछले साल अगस्त से ले कर अब तक यह घरेलू हिंसा की शिकायतों में यह सब से अधिक इजाफा है.

यही वजह है कि राष्ट्रीय महिला आयोग ने वाट्सऐप पर एक हेल्पलाइन नंबर (7217735372) जारी किया है. लॉकडाउन के दौरान महिलाएं इस नंबर पर शिकायत कर सकती हैं.

लौकडाउन बना जी का जंजाल

ज्यादातर पुरुष आजकल घर में हैं. बच्चों के भी स्कूलकॉलेज बंद हैं. बाईयों को बुलाना भी अभी खतरे से खाली नहीं. पहले जहां पति और बच्चों के ऑफिस और स्कूल जाने के बाद औरतों को थोड़ी आजादी महसूस होती थी. पूरा दिन वे अपने हिसाब से बिता पाती थीं. घर का काम निपटा कर कभी शॉपिंग के लिए तो कभी किसी सहेली के यहां भी निकल सकती थीं. बहुत सी सोसाइटीज में किटी पार्टीज का भी आयोजन होता रहता था. एकदूसरे से दिल का हाल सुनाना, एकदूसरे की शिकायतें करना और मिलबैठ कर गॉसिप करना उन के जीवन का हिस्सा था. इस बहाने उन्हें भी जीवन में थोड़ा सुकून मिल जाता था.

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यही नहीं ऑफिस जाने वाली महिलाओं को भी पूरा दिन घर से अलग एक खुला माहौल मिलता था. वे 10 औरतों से मिलती थीं. सुखदुख शेयर करती थीं. नई बातें सीखती थीं.

पुरुष भी पहले ऑफिस जा कर अपने यारदोस्तों के बीच बैठ कर हंसीठटठे करते. उन्हें ऑफिस की दूसरी महिला कुलीग के साथ बातें करने का मौका मिलता था. घरपरिवार के तनावों से दूर बाहरी दुनिया में खुल कर सांस लेने का मौका मिलता था.

मगर अभी यह सब बंद है. फिलहाल थोड़ेबहुत ऑफिस खुलने शुरू हुए हैं मगर ज्यादातर अभी भी बंद हैं.

ऐसे में पति हो या पत्नी पूरे दिन घर में रह कर चिड़चिड़े हो जाते हैं. पुरुषों को जहां महिलाओं की छोटीछोटी बातें चुभने लगी हैं वहीं महिलाएं भी सास, ननद या पति के प्रति अपना भड़ास निकालने से नहीं चूकतीं. छोटीछोटी बातों पर बड़ेबड़े झगड़े होने लगे हैं.

इस दौरान औरतों को बाई की तरह सुबह से शाम तक काम करना पड़ रहा है. पुरुषवादी मानसिकता वाले पति हर काम के लिए पत्नी को पुकारने से बाज नहीं आते. उन की देखादेखी बच्चे और सास भी पूरे दिन यही राग अलापते हैं. अपनीअपनी फरमाइशों की लिस्ट बनाते रहते हैं.

औरत बेचारी पूरे दिन किचन में कैद रह जाती हैं. बाकी समय बर्तन, झाड़ूपोंछा और कपड़े धोने में लग जाता है. कब सुबह हुई और कब शाम पता ही नहीं चलता.

नतीजा यह होता है कि उन्हें भी गुस्सा आने लगता है. वे कुछ बोलती हैं तो पति चिल्लाने लगते हैं. दोनों में बहस बढ़ती जाती है. घर में यदि सास, ससुर, ननद जेठ आदि हैं तो वे पुरुष का ही पक्ष लेते हैं और औरतें हिंसा की शिकार बनती हैं.

जब घर में केवल पतिपत्नी हैं तो भी पति पत्नी पर हावी हो जाता है. वह बलशाली भी होता है और पत्नी को आसानी से काबू कर लेता है.

कैसे बचें इस परिस्थिति से

छोटीछोटी बातों को तूल न दें

महिलाओं को इस बात का ख्याल रखना होगा कि उन के पति भी अपनी नौकरी और कमाई को ले कर तनाव में हैं. उन्हें कभी भी घर में रहने की आदत नहीं रही है. ऐसे में घर में कैद रहना एक तरह से उन के लिए पिंजड़े में बंद होने जैसा है. इस समय बातों को तूल देने के बजाय एकदूसरे को समझने का प्रयास करना चाहिए.

फन टाइम भी जरूरी

गृहस्थी में तनाव और जिम्मेदारियां जरूर होती हैं. मगर कभीकभी मस्तीमजाक और फन भी जरूरी है. पतिपत्नी अकेले या परिवार के साथ बैठ कर इस तरह का माहौल बनाएं ताकि घर में रह कर भी आप का मन लगे.

सहयोग दें

पुरुषों को चाहिए कि खुद को नवाब मान कर पत्नियों को दासी न बनाएं बल्कि मिलजुल कर काम करें. कम से कम उतना काम जरूर करें जो आप कर सकते हैं जैसे, सब्जियां काटना, खाना परोसना, कपड़े तह कर के लगाना, सफाई और बच्चों को पढ़ाना आदि.

मधुरता

परिवार के अन्य सदस्य जैसे सासससुर, देवर, ननद आदि को समझना होगा कि रिश्तों में मधुरता रख कर ही इस कठिन समय को आसानी से काटा जा सकता है. इसलिए पतिपत्नी के बीच आग लगाने के बजाय रिश्तों को प्यार से संवारें और ऐसा ही करना सिखाएं. घर की बहू की छोटीमोटी भूलों को नजरअंदाज करते हुए स्वस्थ माहौल बना कर रखें वरना रिश्तों में कड़वाहट फैलती है और पूरे परिवार का जीना दूभर हो जाता है.

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सोच बदलें

एक सरकारी अध्ययन के मुताबिक 51% पुरुष और 54% महिलाओं ने पतियों द्वारा पत्नियों की पिटाई को सही ठहराया. ऐसी मानसिकता उचित नहीं. पतिपत्नी गृहस्थी रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं. दोनों में से कोई भी कम महत्वपूर्ण नहीं. सोच बदलेंगे तभी महिलाओं के प्रति रवैया बदलेगा. तभी घरेलू हिंसाओं और प्रताड़नाओं से महिलाओं को मुक्ति मिल सकेगी और परिवार खुशहाल रह सकेगा.

Lockdown 2.0: लॉकडाउन के साइड इफैक्ट्स, चौपट अर्थव्यवस्था

मोदी सरकार के रुख की वजह से आम बीमारियों से मरने वाले लोगों की भले ही संख्या कहीं अधिक हो चाहे आदमी कोरोनावायरस से ना आम बीमारियों से जरूर मर जाएगा.

असल में पूरी मेडिकल व्यवस्था पूरे देश में ठप कर दी गई है. सबसे बड़ी समस्या है कि अस्पतालों तक पहुंचने के लिए आम जनता के पास कोई साधन नहीं है.

एक साधारण आदमी इन जानलेवा बीमारियों से बचने के लिए जब तक अस्पताल पहुंच पाएगा .तब तक भयावह स्थिति में पहुंच चुका होगा.

एक बार की तरह मोदी सरकार के द्वारा हड़बड़ी में लिया फैसला लोगों की मुसीबत का कारण बन चुका है.

पहले जनता कर्फ्यू ,उसके बाद 21 दिन का लॉक बंदी और अब 3 मई तक का टोटल बंद.एक ऐसा मुद्दा है जिस पर खुलकर कोई बात नहीं करना चाहता. कभी-कभी तो ऐसा मालूम होता है कि और सब बीमारियां भी हमारी सरकार के जैसे इस नोबल वायरस से डर गयीं हों.

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सबसे ज्यादा प्रभावित कौन

इस लॉक बंदी के चक्कर में सबसे ज्यादा प्रभावित गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यापन करने वाला तबका है. जो रोज कमाता था और रोज खाता था .आज उसके भूखे मरने की नौबत आ चुकी है. भले ही बहुत सी राज्य सरकारें अपने राज्यों की आबादी के लिए मुफ्त राशन व्यवस्था कर रही हो ,या उन्हें कुछ नकद राशि मुहैया करा रही हो,जैसा कि केंद्र सरकार ने घोषणा भी की थी .लेकिन क्या वाकई जरूरतमंदों को राहत पहुंच पा रही है? कहीं यह महज घोषणा ही तो नहीं? भले ही मनरेगा योजना हो या प्रधानमंत्री किसान योजना ;हम सब जानते हैं इन योजनाओं की हकीकत! ना तो जरूरतमंद को पैसा ही पहुंच पाता है और ना ही राशन. बिल्कुल कोढ़ में खाज जैसी स्थिति है कि सभी वर्ग के ,आधार से अकाउंट लिंक होने की वजह से अधिकांश लोगों को तो इन योजनाओं का लाभ ही नहीं मिल पाता.

चौपट अर्थव्यवस्था

गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोग तो भुख मरी की ओर धकेल दिए जा चुके हैं.जो लोग सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल चलकर अपने गावों की ओर आए हैं, वहां उनके ठहरने की व्यवस्था नहीं है. खाने के साधन नहीं है.

लगभग 45 दिन से पूरे देश में कारोबार बंद होने से अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई है. या कहे कि पूरी अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है और इसका सबसे ज्यादा असर इस गरीब वर्ग पर है.

पहले ही देश आर्थिक संकट से गुजर रहा था अब भयानक दौर है उससे भी ज्यादा बुरा हाल किसानों का है जिनकी रबी की फसल खेतों में तैयार खड़ी है. उन विचारों की स्थिति बड़ी विकट हो चुकी है. नाही फसल ऐसे में कट सकती है और ना ही उसका पूरा मूल मिल पाएगा पूरे देश में यातायात संकट के साथ-साथ अब तो खाद्य संकट भी पैदा हो चुका है.यदि फसलें नष्ट हो जाती हैं तो ऐसी स्थिति की गंभीरता को आप सब अच्छी तरह से समझ सकते हैं.पहले आर्थिक संकट के कुछ और कारण थे लेकिन इस तरह से पांच से छह हफ्तों के लिए पूरे देश का बंद पहली बार हुआ है.

मानसिक स्थिति पर असर

इस लॉक बंदी का हमारे समाज के ताने बाने और सभी लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ा है .जिसके गंभीर परिणाम सामने आने लगे हैं. दरअसल इसकी एक वजह संघवाद और उपभोक्तावाद द्वारा पैदा किया गया माहौल है. लोग इस कोविड-19 वायरस से लड़ने के लिए मोर्चे पर लोगों को दुत्कार रहे हैं यह शायद उसी संघवाद महौल का परिणाम है.संघी फासीवाद और पूंजीपतियों को हो सकता है, इस लॉक डाउन से कुछ ना बिगड़े. लेकिन इसकी भारी कीमत कृषक वर्ग ,मजदूर वर्ग और मध्यम वर्ग को चुकानी पड़ेगी.

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#coronavirus: क्या 15 अप्रैल से खुलेगा Lockdown?

अब जबकि 21 दिनों का Lockdown डाउन अपने आखिरी सप्ताह में है, तो हर हिंदुस्तानी एक दूसरे से यही सवाल पूछ रहा है. जो यह सवाल किसी और से नहीं पूछता उसके भी जहन में इस समय यही सवाल घूम रहा है, क्या 21 दिनों के बाद 15 अप्रैल से Lockdown डाउन खुल जायेगा? सच बात तो यह है कि इस सवाल का अंतिम जवाब 15 अप्रैल को ही मिलेगा. उसकी वजह यह है कि पिछले 15 दिनों में इस सवाल का जवाब हर दिन ‘हां’ और ‘न’ के दायरे में झूलता रहा है. हालांकि पीएमओ ने पिछले हफ्ते पूरी दृढ़ता से इस बात से इंकार कर दिया था कि Lockdown डाउन 21 दिन के बाद भी जायेगा. पीएमओ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मीडिया से आकर कहा था कि सरकार का फिलहाल Lockdown डाउन आगे बढ़ाने का इरादा नहीं है. लेकिन पिछले तीन दिनों से जिस तरह से हर गुजरते दिन के साथ कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है, उससे लगातार यह आशंका मजबूत हो रही है कि अव्वल तो 14 अप्रैल के बाद शायद ही Lockdown डाउन खत्म हो, अगर होगा भी तो बहुत कम दिनों के लिए, बहुत सारी शर्तों के साथ.

निश्चित रूप से इसकी वजह यही है कि Lockdown डाउन जिस मकसद से किया गया था, वह मकसद अभी पूरी तरह से हासिल नहीं हुआ है. हालांकि यह भी अंदरखाने से खबरें आ रही हैं कि Lockdown डाउन खत्म करने के तमाम उपाय किये जा रहे हैं. इसकी तमाम संभावनाओं पर काम हो रहा है. लेकिन अगर संक्रमित लोगों की संख्या में स्थिरता या पिछले संक्रमित लोगों के मुकाबले, नये लोगों की संख्या में कुछ कमी नहीं आती तो शायद ही Lockdown डाउन खत्म किया जा सके. वैसे भी Lockdown डाउन तो आगे बढ़ना ही है, अब सवाल यह है कि सूत्रों के जरिये जो बातें बाहर आ रही हैं, उनमें कई फार्मूले हैं. एक तो यह कि 15 अप्रैल से 5 दिनों के लिए हिदायतों के साथ Lockdown डाउन खोल दिया जाए और 5 दिनों के बाद इसे फिर 28 दिन के लिए लगा दिया जाए.

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कुल मिलाकर जो तमाम किंतु परंतु सामने हैं, उनसे मिलकर जो एक समीकरण बन रहा है, उससे तो यही लग रहा है कि Lockdown डाउन में थोड़ी बहुत ढील या कुछ दिनों की ढील जरूर मिले लेकिन

Lockdown डाउन फिलहाल अगले 2 महीने तक आंख-मिचैली करता रहेगा. इसकी भनक सरकार के विभिन्न कार्यक्रमों में लिये गये समयावधि से भी मिलती है. मसलन- रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया ने बैंकों से ईएमआई पर जो छूट देने के लिए कही थी, वे छूटें 31 मई तक हैं. सरकार के अगर एफसीआई द्वारा खाद्यान्न वितरण योजना पर ध्यान दें तो वहां पर भी 2 महीने का खाद्यान्न वितरण की बात हो रही है. कुछ जानकार कह रहे हैं Lockdown डाउन तीन किस्तों का होगा. पहली किस्त पूरी होने के बाद पांच दिन की मोहलत मिलेगी. फिर 28 दिन का Lockdown डाउन होगा, 28 दिन खत्म होने के बाद फिर पांच की मोहलत मिलेगी. फिर उसके बाद 18 दिनों का Lockdown डाउन होगा.

जब 21 दिनों का Lockdown डाउन शुरु हुआ था तो कम से कम मेडिकल एक्सपर्ट को लग रहा था कि इससे कोरोना के संक्रमण में काफी कमी आयेगी. संक्रमण की चेन टूट जायेगी. लेकिन दुर्भाग्य से जिस तरह से मरकज फैक्टर इस योजना के आडे़ आ गया, उसके चलते लग रहा है कि पुरानी सारी सोच बदल चुकी है. लेकिन इसका एक दूसरा और कहना चाहिए भयावह पहलू यह भी है कि हर गुजरते दिन के साथ देश की बहुत बड़ी जनसंख्या का आर्थिक जीवन बहुत दूभर हो जायेगा. लगातार लोगों की आर्थिक परेशानियां बढ़  रही हैं. सरकार ने जितनी घोषणाएं की हैं, वे आमतौर पर या तो महज भोजन तक सीमित हैं या महज तात्कालिक कर्ज देनदारियों तक. देश की 92 फीसदी वर्कफोर्स अनआर्गेनाइज्ड क्षेत्र से रोजगार पाती है और Lockdown डाउन के चलते हर दिन यह असंगठित क्षेत्र भयानक रूप से चिंताग्रस्त होता जा रहा है.

अगर अर्थशास्त्रियों के अलग अलग अनुमानों को आपस में जोड़कर एक औसत निष्कर्ष निकालें तो अब तक के Lockdown डाउन से यानी 5 अप्रैल 2020 तक Lockdown डाउन से ढाई करोड़ नौकरियां खत्म हो गई हैं. ऐसा नहीं है कि ये ढाई करोड़ लोग इस Lockdown डाउन की अवधि में काम कर रहे थे और अब इन्हें नौकरी से निकाल दिया गया है. नहीं, यह आंकलन 14 अप्रैल के बाद नौकरी न पाने वाले आशंकित कामगारों का है. भले कहा जा रहा हो कि हर ठीक ठाक आर्थिक स्थिति वाला व्यक्ति 40 लोगों की जिम्मेदारी ले, लेकिन यह न तो व्यवहारिक रूप से संभव है और न ही सैद्धांतिक रूप से भी. आखिरकार देश दान या खैरात से स्थायी व्यवस्थाओं की कल्पना नहीं कर सकते.

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दरअसल अब तक के लौक डाउन के चलते ही करीब 10 लाख करोड़ रुपये की मैन्यूफैक्चरिंग और दूसरे आर्थिक क्षेत्र ध्वस्त हो चुके हैं. जब एक दिन की तालाबंदी होती है तभी औसतन एक लाख काम के घंटों का नुकसान होता है और अब तो पूरी तरह से Lockdown डाउन है. इसलिए हर दिन 3 करोड़ 20 लाख काम के घंटे बर्बाद हो रहे हैं. हर दिन करीब 60 हजार करोड़ रुपये की बनने वाली संपत्ति इस समय शून्य पर नहीं बल्कि नकारात्मक दिशा में है. इस सबके चलते इस बात पर भी सबकी नजर है कि क्या भारत की अर्थव्यवस्था इतना भयानक आर्थिक नुकसान झेलने की स्थिति में है? सच बात तो यही है कि Lockdown डाउन के बारे में सोचते समय हमारी स्थिति, आगे कुआं और पीछे खाईं वाली है. इसलिए 14 अप्रैल की रात या 15 अप्रैल की सुबह ही पता चलेगा कि Lockdown डाउन खुलेगा या नहीं खुलेगा? तब तक हम सब आपस में ही इस यक्ष प्रश्न को एक दूसरे से पूछेंगे और अपने-अपने मन के हिसाब से इसका जवाब देंगे.

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