#lockdown: तीर्थ यात्रियों की वापसी, फिर छात्रों और मजदूरों के साथ भेदभाव क्यों?

गरीब मजदूर और छात्र अपने-अपने घर जाने के लिए तड़प रहे हैं. क्योंकि उनके जाने के लिए कोई वाहन व्यवस्था नहीं है. लेकिन वहीं सारे नियम और कानून को ताख पर रखकर तीर्थ यात्रियों को यात्राएं कराई जा रही है. जबकि गरीब मजदूरों और छात्रों के घर जाने पर राजनीति हो रही है.

लॉकडाउन में जहां घर के ज़रूरियात सामान लाने पर पुलिस लोगों पर बेतहासा डंडे बरसा कर उसका पिछवाड़ा लाल कर दे रही है. वहीं आंध्र प्रदेश के राज्य सभा सांसद जी बीएल नरसिम्हाराव की पहल पर केंद्र सरकार के आदेश पर धार्मिक नगरी काशी से सोमवार को नौ सौ भारतीय तीर्थ यात्रियों को उनके गंतव्य पर भेजा गया.

लेकिन न तो इन तीर्थ यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग की गई और न ही सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन किया गया. हालात ऐसे थे कि एक बस में 45 सीटों पर 45 यात्री थे. 12 बसें भोर में चार बजे रवाना की गई जबकि आठ बसें देर शाम को. इसके अलावा दो क्रूजर से 12 की संख्या में तीर्थ यात्री रवाना किए गए.

तीर्थ यात्रियों की रवानगी जिलाधिकारी के देख-रेख में की गई. बसें उन्हें आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू, कर्नाटक और केरल ले कर गई. रास्ते में कुछ और यात्रियों को भरा गया. ये सभी दक्षिण भारतीय यात्री सोनापुरा और आसपास के क्षेत्रों में स्थित मठों और गेस्ट हाउस मे ठहरे हुए थे.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने राष्ट्र को अपने चारों संबोधन में ज़ोर देते रहे हैं कि सोशल डिस्टेन्सिंग ही कोरोना महामारी से बचाव का एकमात्र विकल्प है. लॉक डाउन का मकसद लोगों को भीड़ से बचाना है, क्योंकि एक जगह कई लोगों के जमा होने से कोरोना फैलने की आशंका बढ़ जाती है. लेकिन इसके बावजूद शुक्रवार को लॉकडाउन और सोशल डिस्टेन्सिंग के नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी के बेटे निखिल गौड़ा की बड़ी धूमधाम से और भव्य तरीके से शादी हुई. इस वीआईपी शादी में मेहमानों की भीड़ ने न तो सोशल डिस्टेन्सिंग पर ध्यान दिया और न ही मास्क पहनना जरूरी समझा. इस शादी समारोह के आयोजन में जिस तरह से कोरोना वायरस से बचाव के लिए लागू लॉकडाउन का उल्लंघन हुआ उससे राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन पर कई सवाल खड़े हो गए हैं. क्योंकि इस विवाह समारोह की बाजाप्ता अनुमति ली गई थी और विवाह स्थल तक मेहमानों को लाने-ले जाने के लिए प्रशासन की ओर से पास भी निर्गत किया गया था.

वैसे, कुमार स्वामी सफाई दे रहे हैं कि शादी समोरोह बड़े ही सादगी से किया गया और इसमें चुने हुए मेहमान ही बुलाये गए, लेकिन शादी समारोह की जो फोटो सामने आई है, उनमें दूल्हा-दुलहन के इर्द-गिर्द काफी भीड़ साफ नजर आ रही है. लॉकडाउन के दौरान देशभर में इस प्रकर के समारोह करना तो दूर, लोगों को समूह में सड़कों पर आने की भी इजाजत नहीं है. इसके बावजूद कुमारस्वामी जैसे नेता शुभ मुहूर्त के फेर में शादी टालने की बजाय भीड़ वाला आयोजन करने से नहीं चुके.

हाल ही में टुमकुर जिले के तुरुवेकेर से बीजीपी विधायक एम जयराम ने भी इसी तरह लॉकडाउन के नियमों की धज्जियां उड़ाई थीं. उन्होंने सार्वजनिक तौर पर ग्रामीणों के साथ अपना जन्मदिन मनाया था. इस मौके पर केक और बिरियानी लोगों के बीच बँटवाई गई थी. यहाँ भी अधिकतर लोग बिना मास्क के थे.

गोरखपुर में एक व्यापारी के बेटे के जन्मदिन की पार्टी में करीब 60 लोगों के जुटने पर अगर पुलिस लॉकडाउन के उलंघन का मामला दर्ज कर सकती है, तो इन लोगों के आयोजनों को लेकर इसी तरह की कार्यवाई से परहेज क्यों ? क्या लॉकडाउन के नियम क्या सिर्फ आम इन्सानों और गरीब मजदूरों के लिए है ? नेताओं के लिए नहीं ? क्या नेता होने का मतलब यह है कि वे नियमों के बंधन से मुक्त हैं ?  

दरअसल, देश में जिस तरह कोरोना के लिए माहौल बनाया गया, मानो मात्र किसी जाति वर्ग विशेष को ही हाशिये पर रखा गया हो. आए दिन अमीर लोग अपने परिवार और पहचान वालों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जा-आ रहे हैं. लेकिन गरीब मजदूर कहीं पुलिस से पीट रही है, तो कहीं भूखे पेट पैदल ही चलने को मजबूर हैं.

अब जब दो हफ्तों के लिए लॉकडाउन और बढ़ा दी गई है तो ऐसे में मजदूरों की बेचैनी और बढ़ गई है. क्योंकि न तो उनके पास रोजगार है न खाने के लिए पैसे, तो जाएँ तो जाएँ कहाँ ?

गैरकृषि महीनों में शहरों में कमाई करने जाने वाले प्रवासी मजदूरों की चिंता यह भी है कि फसलों की कटाई का समय है, ऐसे में घर नहीं पहुंचे तो तैयार फसल बर्बाद हो जाएगी और वह कर्ज में डूब जाएंगे. लेकिन इनके पास लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार करने के अलावा और कोई विकल्प भी नहीं है.

चार बच्चों की माँ 36 वर्षीय आशा देवी बात करते हुए रो पड़ी. उसने बताया कि उसके दो बच्चे वहाँ यूपी में अकेले रहते हैं.

बड़ा 14 साल का बेटा मजदूरी करता है और अपने छोटे भाई का ध्यान भी रखता है. पिछले महीने वह गाजियाबाद के ईंट-भट्टे पर काम करने के लिए अपने पति और 13 अन्य लोगों के साथ पहुंची थी. ठेकेदार ने उन्हें राशन देने का वादा किया था, लेकिन अचानक भाग गया. अब उनके पास खाने को कुछ नहीं है. मजबूरन पैदल ही सब अपने गाँव लौटने को निकल पड़े. लेकिन पुलिस ने उन्हें जाने नहीं दिया.

34 वर्षीय मोनु वेटर का काम करता है. उसकी पत्नी, माँ और दो छोटे बच्चे गाँव में रहते हैं, उसने बताया कि होली के दौरान उसने परिवार को कुछ पैसे भेजे थे, जो अब पूरी तरह से खत्म हो चुके हैं. लॉकडाउन के कारण काम छिन गया तो कमाई भी बंद हो गई. अब न अपने घर जा सकते हैं और न यहाँ रह सकते हैं. क्या करे समझ नहीं आता.

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करीब तीन दर्जन मजदूर तो जम्मू में फंसे हुए हैं. मजदूरों तक किसी तरह की मदद नहीं पहुँचने पर वे इतने विचलित हैं कि अपने छोटे-छोटे बच्चे के साथ आत्महत्या करने पर मजबूर हो गए थे.

यह दो-चार नहीं, अनगिनत मजदूरों की अंतहीन दास्तान है, जो काम-धंधे की तलाश में हरियाणा, राजस्थान, बिहार, बंगाल आदि राज्यों से देश के अन्य शहरों में पहुंचे थे, लेकिन लॉकडाउन में फंसे हुए हैं. कोई जरिया नहीं है जिससे वह अपने घर जा सकें.

कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमन को देखते हुए सरकार ने लॉकडाउन को 14 अप्रेल से बढ़ाकर 3 मई तक कर दिया. लेकिन क्या लॉकडाउन ही किया जाना एक मात्र विकल्प था ? वह भी अचानक से ? क्या पूर्ण लॉकडाउन का एलान करने से पहले सरकार ने उन छात्रों के बारे में भी नहीं सोचा जो अपने परिवार से दूर बाहर रह कर पढ़ाई कर रहे हैं ? की वह अपने घर कैसे जाएंगे ? 

राजस्थान के कोटा में कई छात्र हैं, जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, और वहाँ फंस चुके हैं.  इन छात्रों का कहना है कि इनके पास खाने की भी ठीक से सुविधा नहीं है. कहते हैं, ‘हम पूरी तरह से फंस चुके हैं कोटा में. सोचा था निकलने का कोई जरिया मिलेगा. लेकिन सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिला. एक छात्र का कहना है कि वह झारखंड से कोटा नीट की तैयारी करने आया था. एक महीने पहले ही हमारी टेस्ट सीरीज बंद हुई थी. उसके बाद लॉकडाउन लगने से हम घर नहीं जा पाए. इंतजार था कि जैसे ही लॉकडाउन खत्म होगा अपने घर चले जाएंगे. लेकिन दोबारा से लॉकडाउन लग गया तो अब क्या करे.

उत्तर प्रदेश के कानपुर से कोटा पढ़ने आई तान्या बताती है कि ‘लॉकडाउन बढ़ चुका है और हमारे घरवाले हमारी चिंता में बहुत परेशान हैं. अब हम लोग भी घर जाना चाहते हैं. यहाँ खाना भी बाहर से आता है, तो रिस्क बढ़ गया है. हम सब घर जान चाहते है , लेकिन यहाँ कोई व्यवस्था नहीं है. कहती हैं पढ़ाई में भी अब मन नहीं लग रहा है, हम एकदम डिप्रेशन में हैं.‘

हैदराबाद विश्वविधालय की प्रियंका की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है. वह अकेलापन मसहूस करने लगी है. कहती है, ‘ज़िंदगी बस हॉस्टल के रूम से लेकर मैस की बेंच तक सिमट कर रह गई है. मैं अपने फ्लोर पर अकेली स्टूडेंट हूँ. आसपास कोई एक शब्द बात करने वाला नहीं है. इस समय मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती मानसिक स्वास्थय को बरकरार रखने की है. कभी-कभी मन में डर भी लगता है कि अपने घर-परिवार से दूर अगर कुछ हो गया तो कौन संभालेगा. हालांकि, मैस कर्मचारी और सुरक्षा गार्ड भी हमारे लिए ड्यूटी निभा रहे हैं तो उनसे साहस मिलता है.

मनोचिकित्सक डॉ. सुमित गुप्ता कहते हैं कि कोई भी यदि इस तरह के सिचुएशन में फंस जाएगा तो वह तनाव में रहेगा. स्ट्रेस में रहने से इंसान के भूख और नींद में बदलाव आ जाते हैं. उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाति है जिससे संक्रमित होने का खतरा बढ़ जाता है. कोटा में फंसे अधिकतर छात्र बिहार और यूपी के हैं. और बताते हैं कि कई छात्र दिवाली के बाद अपने घर नहीं गए. पिछले महीने ही उनके कोर्स कंप्लीट हुए और घर जाने का मन बना ही रहे थे कि लॉकडाउन हो गया और वे जा नहीं पाए, लेकिन दोबारा लॉकडाउन से वह डिप्रेशन में आ गए हैं.

कोटा में फंसे छात्र अपनी बात सरकार तक पहुँचाने के लिए सोशल मीडिया का भी सहारा ले रहे हैं. हैशटैग से करीब 70 हजार ट्वीट किए गए. छात्रों ने पीएमओ, प्रधानमंत्री, राजस्थान के मुख्यमंत्री समेत अन्य राज्यों के भी कई नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों को ट्वीट किए. लेकिन अभी तक इनकी सहायता के लिए कोई आगे नहीं आया.

फेसबुक पर भी वे अपने समस्याओं के समाधान के लिए पोस्ट करे रहे हैं, लेकिन यहाँ से भी कोई समाधान अभी तक नहीं मिला है. स्टूडेंट्स का आरोप है कि इनके चलाए हैशटैग ‘सेंडअस बैकहोम’ को अब नेता अन्य राज्यों की घटनाओं के लिए उपयोग कर रहे हैं.

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सोशल मीडिया पर छात्रों की मदद के लिए हैशटैग चलाने वाले आशीष रंजन एक ट्विटर हैंडल के लिए काम करते हैं, बताते हैं कि छात्र बेहद परेशान हैं और हमारे पास हजारों की संख्या में रोज छात्र मैसेज कर रहे हैं. रंजन कहते हैं कि छात्र अपनी परेशानी बताते हुए रोने लगते हैं, वे इस कदर परेशान हो चुके हैं और शासन प्रशासन की ओर से पास रद्द किए जाने के बाद वह घर जाने को लेकर चिंचित हैं.

छात्र अपनी समस्या जब कोचिंग संस्थाओं से बताते हैं तो वे भी सरकारी नियमों का हवाला देते हुए मदद करने से खुद को असमर्थ बताते हैं.

छात्र वीडियो के माध्यम से अपना दर्द परिवार तक पहुंचा पा रहे हैं. कहते हैं बातों से ज्यादा हमारे आँसू बहते हैं.

लेकिन क्या लॉकडाउन किया जाना ही एक मात्र विकल्प था ? और अगर लॉकडाउन किया ही जाना था तो उसके पहले लोगों को जानकारी नहीं दी जानी चाहिए थी? पूर्ण लॉकडाउन की घोषण से पहले लोगों को वक़्त न देकर प्रधानमंत्री जी ने सिर्फ अपनी मर्ज़ी चलाई, जिसका खमजाया भुगतना पड़ है देश की जनता को. 

यदि मोदी जी 24 मार्च को सम्पूर्ण लॉकडाउन करने के लिए चार घंटों के बजाय 20 मार्च के देश को दिये गए संदेश में बता देते जैसे और देशों में हुआ तो यह समस्या खड़ी ही नहीं होती. लेकिन उन्होंने यह सोचा ही नहीं और अचानक से लॉकडाउन की घोषण कर दी. कम से कम लॉकडाउन के पहले लोगों को संभलने का वक़्त दिया होता तो वे अपनी जरूरतों के हिसाब से अपनी व्यवस्था कर लेते. जिसे जहां जाना होता चले जाते. लेकिन मोदी जी ने ऐसा कुछ सोचा ही नहीं और अपनी घोषण सुना दी, जो जहां हैं वहीं रहें. ‘सरकार फंसे तीर्थ यात्रियों को लाने की व्यवस्था कर सकते थे, तो फिर लॉकडाउन में फंसे छात्र और गरीब मजदूरों का क्या कसूर था ? विदेशों में फंसे भारतियों को स्पेशल विमान से यहाँ बुलाया जा सकता था, तो फिर छात्र और मजदूरों को क्यों नहीं ? क्या ये देश के नागरिक नहीं है ? 

लाखों गरीब मजदूर अपने गाँव तक जाने वाले वाहन की उम्मीद में पैदल ही चलते जा रहे हैं. भूख-प्यास से ब्याकुल ये मजदूर किसी तरह बस अपने गाँव पहुंचाना चाहते हैं. क्योंकि अब उनके लिए शहरों में कुछ बचा नहीं. लेकिन अगर सरकार इन प्रवासी मजदूरों के लिए शहर में ही खाने और रहने की व्यवस्था कर देती, तो ये उम्मीद होती कि कई मजदूर घर जाने के लिए इतने परेशान न होते और न ही स्थिति इतनी खराब होती.

कोटा में पढ़ने वाले छात्र लाखों रुपये फीस देकर कोचिंग करते हैं. कई हजार रुपये किराए के रूप में अपने हॉस्टल और पीजी को देते हैं. अधिकतर कोचिंग करने वाले छात्र सशक्त्त मध्यमवर्ग या उच्च्वर्गीय परिवारों से होते हैं. ये सब छात्र 18 से कम उम्र के के हैं जो कोचिंग के लिए अपने घर और परिवार से दूर रहते हैं. इनकी अपनी समस्याएँ हैं, डर है, कोरोना के संक्रमन का खतरा है. मानसिक तनाव होने की शंका है. इसलिए सरकार ने कुछ छात्रों की आवाज सुन ली और उन्हें उनके घर भेज दिया गया. लेकिन अभी भी कुछ छात्र हैं जो लॉकडाउन में फंसे हैं और घर नहीं जा पा रहे हैं.

लेकिन वो गरीब जो रो रहे हैं, पैदल ही अपनी पत्नी, छोटे-छोटे बच्चों और बुजुर्ग परिवार वालों के साथ हजारों किलोमीटर पैदल चलकर घर पहुंचना चाहते हैं, उनके साथ यह अन्याय क्यों ? उन सबों को भी बसों की व्यवस्था कर उनके घर क्यों नहीं पहुंचवाया जा सकता है ? इन गरीबों के ऊपर डांडा चलाकर, मुर्गा बनाकर उन्हें कहीं भी परेशान होने छोड़ दिया जाना केंद्र और अन्य राज्य सरकारों के ऊपर बड़े सवाल खड़े करता है.

#lockdown: कोरोनावायरस के खिलाफ जंग में पुलिस की आंख और दाहिनी बांह बने ड्रोन

उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिला स्थित धामपुर तहसील के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों द्वारा लॉकडाउन का लगातार किया जा रहा उल्लंघन तथा बार बार समझाने के बाद भी ग्रामीणों द्वारा मास्क न पहने जाने के कारण पुलिस एंव प्रशासन ने जैतरा और उसके आसपास के गाँवों के ऊपर आसमान में कैमरायुक्त ड्रोन तैनात किये ताकि ग्रामीणों पर हर समय नजर रखी जा सके. इसका असर तुरंत प्रभाव से देखने को मिला. तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की तरह रांची नगर निगम ने भी शहर के हिंदपीढी इलाके को ड्रोन द्वारा सेनिटाइज करने की योजना बनाई. गौरतलब है कि झारखंड की राजधानी रांची में हिंदपीढी इलाका कोरोना हॉटस्पॉट बनकर उभरा है.

ये तमाम तथ्य यह बताने के लिए काफी हैं कि मौजूदा विश्वव्यापी कोरोना संकट में ‘ड्रोन’ किस कदर इंसान के नजदीकी सहायक बनकर उभरे हैं.किसी जगह जल्द से जल्द दवा पहुंचाना हो,हर समय लोगों पर नजर रखनी हो या पूरे इलाके में दवाओं से फौवारा करना हो यानी सैनिटाईज करना हो अथवा ड्यूटी में तैनात पुलिसवालों से लेकर मेडिकल स्टाफ आदि तक खाना पहुंचाना हो,इन दिनों ड्रोन ऐसी हर समस्या का हल बन गए हैं.शायद ही 2-3 साल पहले कभी ड्रोन के इस तरह उपयोगी बनकर सामने आने की कल्पना की गयी हो.एक जमाने में जहां ड्रोन कई तरह की खुराफातों और बाद में आतंकियों के खतरनाक हथियार बनकर उभरने के लिए चर्चा में रहते थे,वहीं आज की तारीख में ड्रोन सब पर नजर रखने वाली आंख,मदद करने वाली मजबूत बांह और वफादार सेवक के रूप में सामने आये हैं.

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इन दिनों जबकि दुनिया कोरोना के कहर से कराह रही है,तब डॉक्टरों,नर्सों,और आपातकालिक वालंटियरों के साथ ड्रोन ही वह डिवाइस है,जो कोरोना के विरुद्ध जंग के अग्रिम मोर्चे में तैनात है.पूरी दुनिया में इन दिनों कोई 10,000,00 ड्रोन तमाम तरह के कामों में लगे हैं.यह करीब करीब उतनी ही बड़ी संख्या है,जितनी संख्या में आर्मी के जवान दुनिया के अलग अलग हिस्सों में कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अपना योगदान दे रहे हैं. हिन्दुस्तान में तो इस कोरोना काल में ही ड्रोन की जबर्दस्त उपयोगिता उभरकर सामने आयी है.यही कारण है कि ड्रोन में तमाम तकनीकी सुधार भी इन्हीं दिनों में हो रहे हैं.गुजरात टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी [जीटीयू] के स्टार्टअप ‘ड्रोन लेब’ ने हाल ही में देशभर में ड्रोन स्क्वाड बनाकर टेक्नालॉजी के माध्यम से कोरोना के खिलाफ जंग शुरू की है.इसके तहत अब तक 12 राज्यों में 302 ड्रोन भेजे जा चुके हैं.मई के अंत तक भारत में कोई 5000 ड्रोन कोरोना के विरुद्ध जंग में इंसान के साथ कंधे से कंधा मिलाकर डटे होंगे.

जीटीयू स्टार्टअप इनोवेशन काउंसिल के रिसर्च और ड्रोन लेब के फाउंडर निखिल मेठिया तथा केवल केलावाला ने इंडियन ड्रोन एसोसिएशन के सहयोग से मध्यप्रदेश, राजस्थान समेत देश के 12 राज्यों में 302 ड्रोन भेजे हैं.गुजरात में अहमदाबाद समेत राज्य के 15 जिलों-तहसीलों में पुलिस विभाग को 32 ड्रोन की सप्लाई पहले चरण में की गयी थी,पुलिस को उनसे अपने कामकाज में इतनी मदद मिली,जितनी मदद 500 से 1000 इंसानी बल कर पाते.इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुलिस को अगर ड्रोन का स्मार्ट इस्तेमाल आ जाए तो ये उसके कितने काम के हैं.

देश के हर हिस्से में इन दिनों ड्रोन की मदद से पुलिस लॉकडाउन तोड़ने वालों की निगरानी करती है.मध्यप्रदेश-राजस्थान,यूपी,दिल्ली,जम्मू-कश्मीर सहित देश के हर हिस्से में ड्रोन ने खुद को सौंपे गए हर टार्गेट को सफलतापूर्वक अंजाम तक पंहुचाया है. नोयडा के 5,दिल्ली के 8 इंदौर के 2, जबलपुर के 3, भोपाल-2 इलाकों में जब स्थानीय प्रशासन ने ड्रोन को मानिटरिंग और दवाओं के छिड़काव में लगाया तब उसे तेजी से कामयाबी मिली.इसके बाद ही पूरे देश के लिए बहुत तेजी से बहुत ज्यादा ड्रोन की आवश्यकता महसूस हुई. ड्रोन स्क्वाड के फाउंडर निखिल मेठिया तो यहां तक कहते हैं कि कोरोना के खिलाफ सही मायनों में ड्रोन से ही जंग लड़ी जा रही है.उनके मुताबिक अगर ड्रोन न होते तो लॉकडाउन का सख्ती से अमल सुनिश्चित किया जाना संभव नहीं था.

शायद यही वजह है कि उनके स्टार्टअप के लिए 10 लाख रुपए की ग्रांट गुजरात सरकार द्वारा स्वीकृत की गई है.कोरोना के साथ हो रही जंग में अप्रैल के पहले हफ्ते में विभिन्न राज्यों में तैनात ड्रोन स्क्वाड में ड्रोनों की संख्या कुछ इस प्रकार थी- गुजरात   32,मध्यप्रदेश 10,राजस्थान 22, महाराष्ट्र 29,हरियाणा 8,कर्नाटक 68,ओड़िशा 13, केरल 9,तमिलनाडु 37, मणिपुर-असम 2 तथा तेलंगाना में 7 ड्रोन तैनात थे.ड्रोन हासिल करने बाद ही ज्यादातर राज्यों की पुलिस ने कहना शुरू किया है कि लॉकडाउन तोड़ने वालों की अब खैर नहीं होगी. क्योंकि अब वे आसमान से ऐसे लापरवाहों पर नजर रख रही हैं.

लॉकडाउन की निगरानी के लिए दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके में जब पुलिस ने पहली बार ड्रोन उड़ाया तो जो तस्वीर आसमान से सामने आई उसे देखकर पुलिस के आला अफसर हैरान रह गए.पता चला जामा मस्जिद के पास बच्चे क्रिकेट खेल रहे हैं. लॉकडाउन का इस तरह से सरासर उल्लंघन हो रहा होगा इसकी कल्पना तक नहीं की गयी थी. यह देखने और समझने के बाद ही जामा मस्जिद इलाके में शब-ए-बारात के दौरान ड्रोन से की जा रही निगरानी को और मजबूत तथा सख्त बनाया गया. पूरी रात पुलिस ने ड्रोन से नजर रखा. यूपी और पंजाब में ड्रोन से निगरानी के बाद पहले कुछ दिनों में ही 15  एफआईआर दर्ज हुईं तथा 25 से ज्यादा वाहन जब्त हुए.सचमुच ड्रोन से निगरानी कर्फ्यू को प्रभावी तरीके से लागू करने में काफी असरदार पाया गया है.

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यूपी पुलिस को गाजियाबाद की तंग गलियों में लॉकडाउन को लागू करवा पाना कभी संभव नहीं होता अगर ड्रोन न होते. कैमरेयुक्त ड्रोन की तैनाती के बाद ही लोगों में डर पैदा हुआ है और वे अपने घरों में घुसे वर्ना तो पुलिस कहती रहती थी,लोग एक कान से सुनते थे,दूसरे से निकाल देते थे.गाजियाबाद के एसएसपी कलानिधि नैथानी की ड्रोन के इस्तेमाल की मजबूत शुरुआत तथा लॉकडाउन तोड़ने वालों के प्रति सख्ती से ही मुकदमा दर्ज कराने के आदेश के बाद ही लोगों में इसके प्रति थोड़ा डर पैदा हुआ,नहीं तो लोगों को कोई फर्क ही नहीं पड़ता था.इस तरह देखें तो कोरोना के खिलाफ जंग में ड्रोन पुलिस के लिए कहीं उसकी आंख तो कहीं मददकारी बांह बन गए हैं.

#lockdown: होम बायर्स को मिला मौका

भारतीय समाज में मौजूदा समय को कलियुग या यों समझें नकारात्मकता का दौर कहा जाता है. इस बीच, कोरोना के कोहराम ने और भी तबाही मचा दी. दुनियाभर में चिंता व अफरातफरी का माहौल है. सभी को नुक्सान उठाना पड़ रहा है.

भारत में पहले से ही आर्थिक मंदी की मार झेल रहे रियल एस्टेट सेक्टर की तो अब मानो कमर ही टूट गई है. सरकार ने, हालांकि, अफोर्डेबल हाउसिंग के लिए महीनों पहले कुछ इंसेंटिव का एलान किया था लेकिन अब दुनियाभर में उभरे नोवल कोरोनावायरस के संकट से रियल एस्टेट सेक्टर की हालत और भी खराब हो गई है.

रियल एस्टेट सेक्टर को हमेशा से बेहतरीन कमाई का व्यवसाय माना जाता है. सच भी है. लेकिन, ताजा संकट के चलते इस सेक्टर में अब फिलहाल बेहतरीन कमाई नहीं होगी.

देश की जीडीपी गिरती जा रही हो, देशवासियों के पास पैसे न हों, तो वे घर या फ्लैट या जमीन कैसे खरीदेंगे. और जब डिमांड कम होगी तो डेवलपर्स, बिल्डर्स को कीमतें कम करनी पड़ेंगी ही.

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देश की बड़ी मोर्गेज कंपनी हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन या एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख ने कहा है कि कोरोना वायरस नाम की महामारी और इसकी वजह से देशभर में किए गए लॉकडाउन की वजह से रियल एस्टेट की कीमतें 20 फीसद तक गिर सकती हैं.

नेशनल रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल (नारेडको)  के एक वेबिनार में पारेख ने रियल एस्टेट डेवलपर्स को संबोधित करते हुए कहा, “रियल स्टेट की कीमतें गिरेंगी और आगे इसमें और कमी आ सकती है.”

उन्होंने कहा कि जिन लोगों के जॉब सुरक्षित हैं या जिनके पास नकदी की आवक ठीक-ठाक है, उनके लिए आने वाला समय घर खरीदने के लिए बेहतरीन समय हो सकता है.

देश में रियल स्टेट मार्केट पहले ही कई वजहों से दबाव से गुजर रहा है, इसकी वजह बहुत सारी हैं.  इनमें नकदी की उपलब्धता नहीं होना, एनपीए का बढ़ना और कुछ सगमेंट में वित्तीय दबाव का बढ़ना जैसे मामले शामिल हैं.

एचडीएफसी का कहना है,  “हाल में ही सरकार ने सस्ते घरों को बढ़ावा देने के लिए बहुत से प्रावधान किए हैं, लेकिन उसके बाद भी रियल एस्टेट सेक्टर लगातार मुसीबतों के दौर में फंसता जा रहा है.”

रियल एस्‍टेट कंसल्‍टेंसी फर्म लायसेस फोरास के सीईओ पंकज कपूर कहते हैं, ”देशभर में प्रॉपटी की कीमतें 10-20 फीसदी तक घट सकती हैं. वहीं, जमीन के दाम 30 फीसदी तक नीचे आ सकते हैं.” उन्‍होंने कहा कि प्रॉपर्टी में इस तरह की कमी वैश्विक आर्थिक संकट के समय भी नहीं देखने को मिली थी.

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रहेजा रियलिटी कंपनी के राम रहेजा कहते हैं, ”बाजार अब पूरी तरह से खरीदने वालों के लिए बन गया है. अगर किसी को वाकई प्रॉपटी या जमीन की बिक्री करनी है तो उसे कीमतों को घटाना होगा.”

स्थिति इस कदर खराब हो गई है कि देशभर में चार से पांच साल की इंवेंट्री बन गई हैं. यह ऑल टाइम हाई है. देश के नौ प्रमुख शहरों में 6 लाख करोड़ रुपए से ज्‍यादा मूल्‍य के मकान अब तक नहीं बिके हैं. ऑनलाइन रियल एस्‍टेट पोर्टल प्रॉपटाइगर की जनवरी की रिपोर्ट से इस का पता चलता है.

ऐसे में यह साफ है कि  कोरोनावायरस  के कहर के चलते जमीन-फ्लैट-मकान के भावी खरीदारों को मौका मिला है कि वे लौकडाउन खत्म होने के बाद घटती कीमतों का फायदा उठाएं. प्रौपर्टी एक्सपर्ट्स का मानना है कि प्रौपर्टी की कीमतें कई महीनों तक बढ़ेंगी नहीं.

#coronavirus: लॉकडाउन से कैसे कोरोना को भगा सकते है ! 

वैश्विक महामारी के इस दौर में पुरे विश्व में लॉक डाउन लगा हुआ है , दुनिया का 90 प्रतिशत भाग आंशिक या पूर्ण लॉक डाउन लगा हुआ है, वह10 प्रतिशत भाग कोरोना से कोरोना से अपने अपने तरीके से कोरोना से लड़ाई लड़ रहे है. तो आइये जानते है लॉक डाउन से कैसे विश्व से महामारी को भगाया जा सकता है .

1. दूसरे देशों से तेजी से लॉकडाउन लागू हुआ

जिन देश ने लॉक डाउन समय रहते नहीं किया उनका हालत आप देख सकते है. भारत ने दूसरे देशों से लॉकडाउन को लागू करने पर तेजी से काम किया.इसलिए अभी भी हालत बतर नहीं है . देश में समय से लॉकडाउन हुआ है तो उसका नतीजा भी सामने आएगा. कोरोना का सामुदायिक प्रसार पर रोक लगाना संभव हुआ है. अचानक लॉक डाउन होने से समाज के हर वर्ग के सामने  कुछ परेशानियां जरूर आई है , लेकिन आप स्वास्थ्य रहेंगे  तो वह परेशानियां भी दूर हो जाएगी. जीवन अनमोल है.इसे बचाना जरुरी है.

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2. समय पर लॉक डाउन नहीं तो स्थिति बना गंभीर

अमेरिका, इटली , स्पेन ,फ़्रांस और विट्रेन की स्वास्थ्य सुविधाएं हमारे देश से बहुत ही बेहतर है , लेकिन इन देशों ने समय रहते लॉक डाउन का फैसला नहीं किया , जिसका परिणाम आज यहाँ कोरोना समुदाय स्तर पर पहुंच गया है . जिससे कोरोना मरीजों की संख्यों निरंतर बढ़ रही है. अगर अपना देश समय पर लॉक डाउन नहीं करता और जो स्थिति अमेरिका में है वह स्थिति भारत में बनती, तो क्या होता आप सोच सकते है, यहां तबाही आ सकती थी.

3. समुदाय स्तर पर वायरस को फैलने से रोकना है

लॉक डाउन को इस लिए ही लागू किया गया कि सामाजिक दुरी का पूरा ख्याल रखते हुए बीमारी को फ़ैलाने से रोका जा सके और संक्रमित लोगो को अलग आइसोलेट किया जा सके. कोरोना का वायरस लोगो से लोगो में ना फैले और  समुदाय में वायरस न फ़ैल सके . जिस देश में समुदाय में वायरस घूमता रहा वहां कोरोना का संक्रमण तेजी से फैला है और रोगियों का हालत बहुत बुरा हो चूका है .

4. सबका मदद करना है और कोरोना को हराना है

लॉकडाउन एक मुश्किल समय होता है. लोगों को परेशानी झेलनी पड़ती है. लेकिन बीमारी से मुकाबला करने के लिए यह जरूरी है. हम बात को समझ कर हम खुद को अपने समुदाय को बीमारी से बचा सकते हैं.  भारत की आबादी बहुत ज्यादा है. घनी आबादी की वजह से कई लोग लॉकडाउन में जहाँ -तहा फंस गए है , आये दिनों इन्हे विभिन्न रूप में देख भी गया. सरकार और सामजिक संस्थान अपने अपने स्तर पर इन लोगो का मदद कर रहे है.  नियम अनुसार लॉकडाउन को बनाये हुए है. क्यों कि कोरोना को हराना है और  हर किसी को सुरक्षित रहना है.

5. WHO ने देश में जारी लॉकडाउन का समर्थन किया

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोरोनावायरस से मुकाबले के लिए भारत की कोशिशों की तारीफ की है। डब्ल्यूएचओ के विशेष प्रतिनिधि डॉ. डेविड नवारो ने एक इंटरव्यू में कहा कि यूरोप और अमेरिका जैसे विकसित देशों ने जहां कोरोना को गंभीरता से नहीं लिया, वहीं भारत में इस पर तेजी से काम हुआ। कोरोना से मुकाबले के लिए मोदी सरकार की तरफ से उठाए गए सख्त कदमों की सराहना की। लॉकडाउन को लेकर लोगों को होने वाली परेशानियों पर उन्होंने कहा कि तकलीफ जितनी ज्यादा होगी, उससे उतनी ही जल्दी निजात मिलेगी.

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6. 59 हजार लोगो का जान बचा

‘इम्पिरियल कॉलेज लंदन’ ने अपने इसी सोमवार को एक अध्ययन में यह माना है कि  लॉक डाउन के कारण  59 हजार लोगो का जान अब तक बचाया सका है. अध्ययन में यह कहा गया है कि‘‘कम से कम मार्च के अंत तक लागू बंद के मद्देनजर हमें अनुमान है कि इससे सभी 11 देशों में 31 मार्च तक 59,000 लोगों की मौत टाली जा सकी.  अध्ययन में कहा गया है कि इटली में 38,000 लोगों , स्पेन में करीब 16,000, फ्रांस में 2,500, बेल्जियम में 560, जर्मनी में 550, ब्रिटेन में 370, स्विट्जरलैंड में 340, आस्ट्रिया में 140, स्वीडन में 82, डेनमार्क में 69 और नॉर्वे में 10 लोगों का जीवन बचाए जाने का अनुमान लगाया है.

#lockdown: quarantine में सीखें ये 7 Skills

कोरोना वायरस के चलते हम सभी को क्वरंटीन में रहना पड़ रहा है और इस से हमें कई तरह की परेशानियां भी हो रहीं हैं लेकिन, इस क्वरंटीन ने हमें अत्यधिक खाली समय भी दिया है जो हमें अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी में नहीं मिल रहा है. घर तो हम सभी को कुछ दिन बैठना ही है लेकिन यह हमारे ऊपर है कि हम इस मौके का फायदा उठा पाते हैं या नहीं. दिनभर बोरे होने से बेहतर है हम कोई नई स्किल सीखें और उस में पारंगत हों जिस से हमें आने वाले समय में फायदा भी मिले और साथ ही हम क्वरंटीन में रहते हुए कुछ प्रौडक्टिव भी कर सकें. निम्नलिखित ऐसी 7 स्किल्स हैं जिन्हें आप क्वरंटीन में रहते हुए सीख सकते हैं:

1. ओरिगामी

कागज से अलगअलग चीजें बनाना, सुंदर आकृतियों के छोटेछोटे नमूने बनाना सचमुच मजेदार है. यूट्यूब से आसानी से आप पेपर ओरिगामी सीख सकते हैं.

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2. विदेशी भाषा

डूओलिंगों या इस जैसी किसी और ऐप को डाउनलोड कर आप विदेशी भाषा सीखने की कोशिश कर सकते हैं. हालांकि, किसी भाषा को सीखने एकदम आसान नहीं है लेकिन आप काफी कुछ तो सीख ही जाएंगे.

3. Instrument बजाना

इस से बेहतर समय क्या होगा किसी Instrument को सीखने का. अपने पुराने पड़े गिटार या कीबोर्ड से धूल साफ कीजिए और यूट्यूब की मदद से लग जाइए सीखने में.

4. कैलिग्राफी

पेपर पर सुंदर शब्द उकेरना कौन नहीं चाहता. कैलिग्राफी सीख आप बेसिक चीजों को भी एक्सट्रा दिखा सकते हैं, अपने दोस्तों को सुंदर कार्ड्स बना कर दे सकते हैं व अपने कमरे के लिए पोस्टर्स बना सकते हैं.

5. सिलाई, कढ़ाई, बुनाई

ये काम सुनने में बेहद सादे लगते हैं लेकिन हैं नहीं. आप अगर इन में स्किल्ड होंगे तो न केवल आप अपने वौर्डरोब को बेहतर कर सकते हैं बल्कि यह आप के स्टाइल और अपीरिएंस को निखारने में भी मदद करेगा.

6. डांस स्टाइल

आप डांस के शौकीन है तो किसी डांस फोर्म को सीखने की कोशिश कर सकते हैं. आप के हेक्टिक रूटीन के कारण आप को समय नहीं मिलता होगा पर अब आप के पास पूरा समय है अपने शौक पूरे करने का.

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7. पेंटिंग

पेंटिंग आप हौबी के तौर पर भी कर सकते हैं और सीखने के मकसद से भी. आर्ट की कै विधाएं जिन में से एक में भी पारंगत होना आसान काम नहीं है पर आप कोशिश तो कर ही सकते हैं. वौटर कलर, ओयल, पेंसिल, स्केटचिंग आदि में से अपनी पसंद की आर्ट आप सीख सकते हैं.

Lockdown सिचुएशन और अकेली लड़की, लखनऊ से 260 Km स्कूटी चलाकर पहुंची घर

लॉकडाउन है हम सभी को अपने घर में रहना चाहिए, हमारी सुरक्षा के लिए यह एक जरूरी कदम है, इस बात से हम सहमत भी है. पुलिस और डॉक्टर दिन रात हमारे लिए काम कर रहे हैं और यह गर्व की बात है.

सब ठीक है और हमें यकीन है कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा. कुछ लोग कुंकिंग कर रहे हैं तो कुछ पक्ष-विपक्ष की बातें कर रह हैं. कुछ लोग महाभारत-रामायण देख रहे हैं तो कुछ वेब सीरीज. कुल मिलाकर जिंदगी चल रही है…

रोज नई-नई बातें सामने आ रही हैं, कहीं वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ रही हैं वहीं कुछ लोग ठीक होकर अपने घर भी आ रहे हैं. मजदूरों की परेशानी सामने आई जिनमें कुछ जैसे-तैसे अपने घर पहुंचे हैं तो कुछ के लिए रहने खाने की व्यवस्था की जा रही है. बहुत सारे सामाजिक संस्थान, नेता, अभिनेता और आम लोग भी मदद के लिए आगे आगे रहे हैं.

घरों से पुराने कैरम और लूडो निकल गए हैं. भाभी रोज नए-नए पकवान बनाकर खिला रही हैं तो पतिदेव भी बरतन साफ करने लगे हैं. कहीं नए रिश्तों में प्यार पनप रहा है तो कहीं फेसबुक पर लाइव गिटार बजाया जा रहा है. नॉनवेज के स्वाद में वेज सब्जियां बनाई जा रही हैं तो कहीं लता जी के गानों की मधुर संगीत सुनाई दे रही है. पड़ोसियों के चेहरे दिखने लगे हैं, रिश्तेदारों को फोन मिलाए जा रहे हैं. माने, यकीन पर दुनिया टिकी है.

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इन सब के बीच सोनम, यही नाम है इस हिम्मत वाली लड़की का. यह वह सोनम नहीं है जिसका नाम वायरल नोट पर लिखा था कि, सोनम गुप्ता बेवफा है. यह तो हमेशा दूसरों का साथ देने वाली 29-30 साल की सेल्फ डिपेंड लड़की है. जिसने अपने दम पर अपनी पहचान बनाई. वैसे तो सोनम के हिम्मत की कई कहानियां है. फिलहाल मैं इस कहानी के बारे में बता रही हूं.

सोनम जौनपुर की रहने वाली है और लखनऊ के एक बैंक में अच्छी पोजिशन पर है. सोनम के माता-पिता और भाई जौनपुर में ही रहते हैं जबकि ये अकेले लखनऊ में रहती हैं. मजदूरों की परेशानी सामने आई कुछ जैसे-तैसे अपने घर पहुंचे हैं तो कुछ के लिए रहने खाने की व्यवस्था की जा रही है. बहुत सारे सामाजिक संस्थान, नेता, अभिनेता और आम लोग भी मदद के लिए आगे आगे रहे हैं.

हमसब की तरह सोनम ने भी लॉकडाउन की खबर सुनी, फिर ऑफिस से मेल भी आ गया कि 21 दिनों के लिए काम पर नहीं आना है. अब अकेली सोनम को कुछ समझ नहीं आया कि वो करे तो क्या करे. कुछ दिन सोशल मीडिया पर समय व्यतीत किया, एक-दो दिन पकवान भी बना लिए. वॉट्सऐप पर स्टेटस भी लगा लिए, लोगों को वीडियो कॉल भी कर लिया. धीरे-धीरे अकेलापन डिप्रेशन में बदलने लगा.

अब सोनम को घर की याद आने लगी, उपर से उसे अपनी मां की फिक्र थी जिनकी तबियत भी ठीक नहीं थी. सोनम ने अपने फेसबुक पर ये भी लिखा था कि कोई जौनपुर जाने वाला हो तो बताए. तीन-चार के कई प्रयास किए कि वह घर पहुंच जाए लेकिन सब फेल हो गया. अब सोनम अकेले पैदल तो जा नहीं सकती थी तो एक दिन सुबह पांच बजे अपनी स्कूटी निकाली और निकल पड़ी लखनऊ से जौनपुर की तरफ. रास्ते में पुलिस वालों ने रोका, कई जगह स्क्रीनिंग भी हुई लेकिन सौनम ने हार नहीं मानी और 5-6 घंटे स्कूटी चलाने के बाद दोपहर तक अपने घर पहुंच गई. इस दौरान उसे हल्की चोट भी लगी लेकिन घर जाने के अलावा उसे कुछ दिख ही नहीं रहा था.

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अगले दिन जब मैनें उसे वीडियो कॉल किया तो अपने घर पर थी और मुस्कुरा रही थी, मैंने पूछा क्या हाल, उसने बस इतना जबाव दिया घर पर हूं. मैंने पूछा कैसे, उसने बोला स्कूटी चलाकर. सच मैं उस वक्त हैरान रह गई थी, लेकिन उसके चेहरे की वो खुशी मैंने अपने दिल के कैमरे में कैद कर ली. सोनम की दाद इसलिए भी देनी चाहिए क्योंकि जब ससुराल वालों ने और दहेज की मांग की और घरवालों को परेशान किया तो उसने अपनी सगाई खुद तोड़ दी लेकिन अपने माता-पिता का सिर नहीं झुकने दिया.

गजब! सोनम वाकई तुम कुछ भी कर सकती हो…

नोट: आप इस सोनम की बातों में न आएं और ऐसा करने की सोचें भी नहीं. ऐसा करने के पीछे सोनम की अपनी कुछ जरूरी वजह थी. यह जोखिन भरा हो सकता है और बिना कर्फ्यू पास के आप कहीं आ-जा नहीं सकते, इसलिए घर में रहें इसी में आपकी भलाई है.

#coronavirus: बैंकों की मेगा मर्जरी, कहीं आप भी तो नहीं इस बैंक के खाताधारक

लॉक डाउन में जहां देश में सब कुछ ठप सा है, वहीं 1 अप्रैल 2020 से देश के कुछ पब्लिक सेक्टर बैंकों का वजूद खत्म होने जा रहा है यानी ये बैंक अब अपनी पहचान हमेशाहमेशा के लिए खो देंगे.

जी हां, 1 अप्रैल, 2020 से देश के तमाम ग्राहकों का बैंक बदलने वाला है, जो देश के वित्तीय क्षेत्र का सब से बड़ा मर्ज होगा.

इन मर्ज बैंकों में इलाहाबाद बैंक, सिंडिकेट बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, आंध्र बैंक, कारपोरेशन बैंक वगैरह आते हैं.

रिजर्व बैंक के मुख्य महाप्रबंधक योगेश दयाल द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार इलाहाबाद बैंक की सभी शाखाएं 1 अप्रैल, 2020 से इंडियन बैंक की शाखाओं के रूप में काम करेंगी, वहीं इलाहाबाद बैंक के खाताधारक और जमाकर्ता सभी इंडियन बैंक के ग्राहक के तौर पर माने जाएंगे.

आंध्र बैंक और कार्पोरेशन बैंक की सभी शाखाएं यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के शाखा के तौर पर काम करेंगी. इन बैंकों के ग्राहक, खाताधारक और जमाकर्ता सभी यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के ग्राहक  माने जाएंगे.

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ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया की सभी ब्रांच पंजाब नेशनल बैंक यानी पीएनबी में मर्ज हो जाएंगी. इस का मतलब यह है कि इन दोनों बैंकों के ग्राहक अब पंजाब नेशनल बैंक के ग्राहक माने जाएंगे.

सिंडिकेट बैंक कैनरा बैंक में मर्ज हो रहा है. सिंडिकेट बैंक के सभी ग्राहक अब कैनरा बैंक के खाताधारक माने जाएंगे.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैंकों के महाविलय की घोषणा करते हुए कहा कि केंद्र सरकार भारत को 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने को प्रतिबद्ध है. सरकार का फोकस बैंकिंग सेक्टर को मजबूत करने पर है. कर्ज बांटने में सुधार लाना सरकार की प्राथमिकता है.

उन्होंने यह भी कहा कि मर्ज होने के बाद सरकारी बैंकों की संख्या 27 से घट कर 12 रह जाएगी.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सरकारी बैंक चीफ रिस्क अफसर की नियुक्ति करेंगे, वहीं वित्तीय सेवा सचिव राजीव कुमार ने कहा कि पूर्व में एसबीआई में जो भी बैंक मर्ज हुए, उस के कारण कोई छंटनी नहीं हुई और सेवा स्थिति पहले से बेहतर हुई है.

इस से पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में भी बैंकों को मर्ज किया था. सब से पहले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में उस के 5 सहयोगी बैंकों- स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर और स्टेट बैंक ऑफ पटियाला के अलावा महिला बैंक को मर्ज किया गया.

1 अप्रैल 2017 से स्टेट बैंक में सहयोगी बैंकों का मर्ज प्रभावी हो गया, वहीं बैंक ऑफ बड़ौदा में विजया बैंक और देना बैंक का मर्ज हुआ.

बता दें कि पंजाब नेशनल बैंक देश का तीसरा सब से बड़ा बैंक माना जाता रहा है, इस से पहले एसबीआई यानी स्टेट बैंक इंडिया और बैंक ऑफ बड़ौदा आते हैं.

वैसे, बैंक के विलय की योजना सब से पहले दिसंबर 2018 में पेश की गई थी.

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि बैंकों के विलय का फैसला हर बैंक का निदेशक मंडल पहले ही ले चुका है. नरेंद्र मोदी की सरकार ने बीते साल अगस्त में बैंकों के मेगा मर्जरी का ऐलान किया था.

वहीं बैंक यूनियनों का मानना है कि बैंकिंग सेक्टर्स की समस्याओं का समाधान बैंकों के विलय से नहीं होगा. उन्होंने सरकार के इस कदम का विरोध किया है.

भले ही ये बैंकें अब दूसरी बैंकों में मर्ज हो रही हैं, फिलहाल अभी किसी भी बैंक के कर्मचारियों को निकालने की कोई योजना नहीं है. कहने का मतलब यह है कि ग्राहकों को घबराने की जरूरत नहीं है.

#coronavirus: लौकडाउन के बीच…

लॉकडाउन‌‌ की खामोशी के लम्हों में नेचर की गुनगुनाहट को ध्यान से सुनो… फिर फील करो कि — लौकडाउन मुसीबत है या सेहत के लिए तोहफा.

घर में लोग परिवार के साथ समय बिता रहे हैं. हां,  कुछ लोग जरूर घर परिवार से दूर हैं. ऐसा भी लॉकडाउन की वजह से ही है. जो जहां था उसे वही ठहरना पड़ा .

भारत, इंडिया, हिंदुस्तान नाम से मशहूर हमारे देश के प्रधानमंत्री की 21 दिनों की लॉकडाउन कॉल पर देशवासी सरकार के साथ हैं. राज्य सरकार या स्थानीय प्रशासन ने कुछ शहरों में कर्फ्यू भी लगा दिया है.

लॉकडाउन के दौरान जिंदगी का एक हफ्ते का समय गुजर गया. चेहरों पर चिंताएं हैं . देश की सड़कों पर जिंदगी बसर करने वाला कहां जाए, रैनबसेरा हर शहर में नहीं. रेहड़ी पटरी वाले 21 दिनों तक कैसे गुजर करें, हर गरीब तक मदद नहीं पहुंच रही. जरूरी चीजों के अलावा दूसरे सामानों के छोटे दुकानदारों की स्थिति भी रोज कुआं खोदने जैसी है. निचले स्तर के कर्मचारी के पास पैसा नहीं, घर में राशन नहीं. मध्यवर्ग की आय के स्रोत बंद है. वेतनभोगी वेतन पर निर्भर हैं.

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दिल्ली में मेरे निवास के करीबी इलाकों कृष्णानगर, चंद्रनगर, खुरेजी, जगतपुरी में हर कैटेगरी के लोग रहते हैं. लोग व्यक्तिगत तौर पर तो कुछ कमेटियां और क्षेत्र के विधायक जरूरतमंदों को खाना राशन, दाल, सब्जी मुहैया कराने के साथ नकद रुपए भी दे रहे हैं. ऐसा इन इलाकों में ही नहीं, बल्कि पूरी दिल्ली में और देश की हर बस्ती के सभी इलाकों में हो रहा होगा.

कृष्णानगर विधानसभा क्षेत्र की एक सड़क के किनारे झुग्गियों में रहने वाले महिपाल, चांदनी, रफीकन, कुणाल, फहीम, फरजाना वगैरह लौकडाउन पर कुछ नहीं कहते. हालांकि, अपनी जिंदगी के बारे में वे सबकुछ सुनने व सुनाने को तैयार हैं.

झुग्गियों में रहने वाले ये सभी कोशिश करते हैं कि एक मीटर की दूरी बनाए रखें ताकि वे सेफ रह सकें. वे अपनी बेचारगी पर कहते हैं कि उन्हें तो सालभर मदद की जरूरत रहती है. उन परिवारों के पुरुष वह महिलाएं जो भी काम करते हैं उस से जीविका चलाना ही मुश्किल है. और, अब तो लॉकडाउन ने कमर तोड़ दी है. मौजूदा मदद के बारे में उन का कहना है कि विधायक जी द्वारा सूचित किए गए स्थलों में से एक स्थल पर जा कर वे दोपहर व शाम का खाना ले आते हैं.

लॉकडाउन की जिंदगी का दूसरा रूप यह है कि साधन संपन्न लोग घरों में परिवार सहित तरह-तरह के पकवान के चटखारे ले रहे हैं. साथ ही, वे दूसरों को ये पकवान खिला भी रहे हैं सोशल मीडिया पर ही सही. ऐसा व्हाट्सएप ग्रुप में देखा जा रहा है. व्हाट्सएप पर सुबह फ्रेंच फ्राइज तो दोपहर छोले भटूरे और शाम पूरी हलवा के साथ हो रही है.

लॉकडाउन की जिंदगी का एक रुख और. लोगों को कहीं जाना नहीं है, इसलिए वे खानापीना बहुत ही संतुलित ले रहे हैं. पौष्टिक तत्वों पर वे बहुत ध्यान दे रहे हैं. साथ ही, समय-समय पर नाश्ता, लंच व डिनर कर रहे हैं.

कुल मिलाकर लॉकडाउन के दौर में जिंदगी मुसीबतभरी तो है, लेकिन किसी के लिए स्वादभरी भी है, वहीं, कुछ के लिए सेहतभरी भी.

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