रिश्ते पर भारी न पड़ जाएं राजनीतिक मतभेद

हम अक्सर राजनीतिक मुद्दे पर लोगों को वादविवाद करते देखते हैं. लेकिन कई बार ये विवाद झगड़े का रूप भी ले लेते हैं. रिश्ते कितने भी अच्छे क्यों न हों जब सोच अलग होती है तो उन में दरार आ ही जाती है.

ऐसा ही कुछ हुआ सपना और नीलम के बीच. नीलम पढ़ने में तेज है, सामाजिक भी है, पारिवारिक भी है, लेकिन अकसर जब वह अपने दोस्तों के साथ होती है और वादविवाद के दौरान राजनीतिक मुद्दे आ जाते हैं तो वह बहुत अग्रैसिव हो जाती है. चेहरा लाल हो जाता है. कभीकभी तो गुस्से में कांपने भी लगती है.

कुछ दिनों पहले की बात है. नीलम और सपना अपने बाकी दोस्तों के साथ कालेज की कैंटीन में बैठे थे. चाय पीतेपीते सब की नजर कैंटीन में लगे टीवी पर थी. तभी किसी एक राजनीतिक दल का प्रचार आने लगा. नीलम ने प्रचार देखते ही कहा, ‘‘देखना, इस बार इसी की सरकार बनेगी. सही माने में ऐसा नेता ही देश का सिपाही है.’’

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नीलम की इस बात से सपना सहमत नहीं थी. वह अपनी राय देते हुए बोली, ‘‘किसी खास नेता का पक्ष करना एक व्यक्तिगत मामला है. तुम्हें यह पसंद होगा मुझे नहीं.’’

इस पर नीलम का मुंह बन गया. उस ने चाय के कप को सपना की तरफ गुस्से में पटकते हुए कहा, ‘‘क्यों इस में क्या खराबी है?’’

तभी वहां बाकी दोस्तों ने भी इस राजनीतिक दल और इस के विचारों का विरोध किया. नीलम अकेले उस के पक्ष में थी. सपना और बाकी दोस्त उस दल की खामियां निकालने में लगे हुए थे. ऐसे में नीलम खुद को बहुत अकेला महसूस करने लगी. फिर वह गुस्से में पैर पटकती हुई वहां से चली गई.

नीलम और सपना आसपास ही रहती थीं. इसलिए दोनों कालेज भी एकसाथ आयाजाया करती थीं. लेकिन उस दिन नीलम बिना बताए ही कालेज से निकल गई. सपना ने जब उसे फोन कर के पूछा कि कहां है तो नीलम ने अनमने ढंग से कहा, ‘‘मेरी तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए मैं जल्दी घर आ गई.’’

सपना यह सुन कर उस का हाल जानने के लिए कालेज से सीधे नीलम के घर चली गई. वहां उस ने नीलम को अपने भाई के साथ छत पर बैडमिंटन खेलते पाया. उसे देख कर ऐसा लगा ही नहीं कि उस की तबीयत खराब है. सपना ने नीलम से बात करने की कोशिश की तो नीलम उसे नजरअंदाज करते हुए चली गई.

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कुछ दिनों तक सपना ने भी नीलम से बात नहीं की. एक दिन कालेज में डिबेट प्रतियोगिता आयोजित की गई. इस में छात्रों को किसी एक राजनीतिक दल के पक्ष या विपक्ष में बोलना था. इस प्रतियोगिता में सपना और नीलम ने भी भाग लिया. नीलम को ऐसे दल का नाम दिया गया जिस के पक्ष में सपना थी.

पहले बारी सपना ने किसी राजनीतिक दल की तारीफों के पुल बांध दिए. लेकिन जब नीलम की बारी आई तो उस ने शुरुआत ही ऐसे की जैसे मानो किसी ने उस के घर वालों को कुछ उलटा बोल दिया हो. दरअसल, नीलम कैंटीन की बात को भूली नहीं थी, इसलिए इस डिबेट के सहारे वह अपने दोस्तों को जवाब दे रही थी. प्रतियोगिता तो वह जीत गई, लेकिन इस राजनीतिक मतभेद के बाद अपने दोस्तों से दूर हो गई.

आमतौर पर बसों में, ट्रेनों में अथवा किसी सार्वजनिक जगह पर हम अकसर लोगों को राजनीतिक मुद्दे पर बात करते हुए देखते हैं. सार्वजनिक जगहों पर जब ऐसे मुद्दे उठाए जाते हैं तो यह लड़ाई की खास वजह बनती है. कोई जरूरी नहीं है कि वहां एकमत राय रखने वाले लोग हों.

चुनावी शोर

चुनावी समय शुरू होने से पहले ही लोग अलगअलग समूहों में दिखने लग जाते हैं. कल तक जो एकसाथ बैठ कर चाय पीते थे वे अलगअलग राजनीति दलों के सहायक बन कर एकदूसरे से लड़ने पर उतारू हो जाते हैं जैसे कोई इन की संपत्ति हड़पने की कोशिश कर रहा हो.

राजनीतिक मुद्दे पर अपनी बात रखना, अपनी राय देना हर किसी का अधिकार है, लेकिन इन मुद्दों की आड़ में लोग एकदूसरे से झगड़ने लग जाते हैं. एक  तरफ यह देख कर अच्छा लगता है कि देश की जनता इन मुद्दों पर आपस में वादविवाद करती है, लेकिन सोचिए अगर यही मुद्दे दुश्मनी की वजह बन जाएं तो?

दिल्ली मैट्रो में या तो लोग मौन व्रत रखे नजर आते हैं या फिर मोबाइल में खोए नजर आते हैं. लेकिन बात जब राजनीतिक मुद्दों पर बहस करने की आती है तो 2 अनजान व्यक्ति कब दोस्त बन जाते हैं और 2 दोस्त कब अनजान बन जाते हैं, इस का पता ही नहीं चलता.

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सौरभ और उस का दोस्त अमित मंडीहाउस से नोएडा जाने के लिए मैट्रो में चढ़े. दोनों की पहले से ही किसी विषय पर बात हो रही थी, लेकिन धीरेधीरे दोनों की आवाज पूरी मैट्रो में गूंजने लगी. दरअसल, दोनों राजनीतिक मुद्दे पर बात कर रहे थे. दोनों एकदूसरे से तेज आवाज में बात कर रहे थे. साइड में बैठा एक युवक सौरभ का साथ देते हुए दूसरे राजनीतिक दल की बुराई करने लगा. धीरेधीरे 2-4 लोग और बोल उठे. ऐसे में दोनों दोस्तों के बीच तूतू, मैंमैं शुरू हो गई. यह देखते ही बाकी लोग शांत हो गए. कुछ लोगों ने दोनों को शांत करवाया. दोनों शांत तो हो गए, लेकिन जैसे ही मैट्रो से बाहर निकले दोनों का गुस्सा साफ नजर आ रहा था.

राजनीतिक मुद्दों पर वादविवाद हर कोई करता है. इन मुद्दों के कारण रिश्तों में खटास आ जाए तो यह सरासर मूर्खता है.

इस में कोई संदेह नहीं है कि वादविवाद से हमारी समझ बढ़ती है, बहुत कुछ नया मालूम होता है, सामान्य ज्ञान में सुधार होता है, आत्मविश्वास भी बढ़ता है, मगर जब आप ऐसे मुद्दों को उठाते हैं, उन पर विचारविमर्श करते हैं तो नकारात्मक रूप से नहीं, बल्कि एक समूह में रह कर भी इन मुद्दों पर बात की जा सकती है. लेकिन कुछ लोग ऐसा नहीं करते. कई बार ऐसे मामले हिंसक भी हो जाते हैं, जो बड़े हादसे का रूप ले लेते हैं.

बुरे वक्त में मदद के लिए आप के पास कोई नेता नहीं आएगा. आप का दोस्त ही आएगा. इसलिए रिश्ते सब से पहले हैं, राजनीतिक मुद्दों के कारण संबंध खराब न करें.

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