ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर धोखा या जरूरत

खाने की टेबल पर बैठा जयंत कहीं खोया हुआ था. वह कुछ खा भी नहीं रहा था. तभी उस की वाइफ अपूर्वा ने उसे टोकते हुए कहा, ‘‘आप कहां खोए हुए हैं?’’

‘‘कहीं नहीं,’’ कहते हुए जयंत ने अपूर्वा की बात को टाल दिया.

असल में जयंत रिया के बारे में सोच रहा था. रिया जयंत की गर्लफ्रैंड है. वह 2 सालों से उस के साथ रिलेशनशिप में है. जयंत को हाल ही में बिजनैस में घाटा हुआ है. अब वह सोच रहा है कि वह अपनी शादी और रिलेशनशिप दोनों को कैसे मैनेज करेगा. रिया पूरी तरह जयंत पर निर्भर है. बिजनैस में हुए घाटे की वजह से जयंत अब रिया का खर्चा नहीं उठा पा रहा है. उस ने सोचा कि वह रिया से बात करेगा, लेकिन इस का कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि वह सोचती है कि औरतों की सभी जरूरतों का ध्यान मर्दों को रखना चाहिए.

रिया की ऐसी सोच ने जयंत को परेशान कर दिया है. अब वह रिया से रिश्ता तोड़ना चाहता है. लेकिन प्रौब्लम यह है कि रिया इस के लिए भी तैयार नहीं है. जयंत बड़ी दुविधा में है कि इस समस्या का छुटकारा कैसे होगा.

न व्यावहारिक न किफायती

ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर न तो व्यावहारिक हैं और न ही किफायती. यह अपने साथ कई खर्चे और प्रौब्लम ले कर आता है. ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर कई तरह के होते हैं. जिन लोगों के पार्टनर इमोशनल नहीं होते, ऐसे लोग अपनी मैरिज से बाहर इमोशन ढूंढ़ते हैं. ये लोग एक ऐसे पार्टनर की खोज में निकलते हैं जिस से ये इमोशनली जुड़ सकें. इस तरह के अफेयर को इमोशनल अफेयर कहते हैं. जो लोग अपनी मैरिड लाइफ से बोर हो चुके होते हैं और अपनी लाइफ में एक स्पार्क चाहते हैं ऐसे लोग वन नाइट स्टैंड का कौन्सैप्ट अपनाते हैं.

इस के अलावा लोग कुछ सैक्स ऐडिक्ट अफेयर भी करते हैं. ऐसा अफेयर वे लोग करते हैं जो सैक्स ऐडिक्ट होते हैं. ऐसे लोगों के लिए सैक्स ही सबकुछ होता है. कुछ लोग लव ऐडिक्ट अफेयर भी करते हैं. ऐसा अफेयर वे लोग करते हैं जो लव ऐडिक्ट होते हैं. इन के लिए लव बहुत इंपौर्टैंट होता है.

सुमित की शादी को 2 साल हो गए है. लेकिन वह अपनी पुरानी गर्लफ्रैंड प्रिया को नहीं भूल पाया है. वह अपनी वाइफ और गर्लफ्रैंड दोनों के साथ रिलेशन रखना चाहता है लेकिन प्रौब्लम यह है कि वह अपनी वाइफ के साथ दिल्ली में रहता है और गर्लफ्रैंड बैंगलुरु में जौब करती है. उस के लिए दोनों रिलेशन को मैनेज करना मुश्किल हो गया है.

वह कहता है कि बारबार बैंगलुरु जाने से उस की बीवी को उस पर शक होने लगा है. अपना ऐक्सपीरियंस बताते हुए वह ऐक्स्ट्रा मैरिड अफेयर से दूर रहने की सलाह देता है. उन का मानना है कि दो रिलेशन एकसाथ चलना आसान नहीं है और इसे ऐंजौय करने के लिए आप के पास बहुत सारा पैसा होना चाहिए. जब सच आता है सामने

शादीशुदा होते हुए अफेयर रखना आसान नहीं है क्योंकि आप अपनी मैरिड लाइफ से छिप कर यह अफेयर कर रहे हैं. ऐसे में कभी भी आप का भांड़ा फूट सकता है. उस वक्त आप इसे कैसे संभालेंगे यह आप को सोचना होगा.

वाणी प्रिया कहती है, ‘‘ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर निभाना आसान नहीं है क्योंकि यह बहुत जोखिम भरा है. साथ ही साथ ये बहुत खर्चीला भी है. इस से न केवल आप की मैरिड लाइफ खतरे में पड़ सकती है बल्कि यह आप का डिवोर्स भी करवा सकता है. लेकिन अगर आप मैरिज और अफेयर दोनों का खर्चा उठा सकते हैं तो बेशक आप ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर रख सकते हैं. अगर आप की मैरिड लाइफ का चार्म खत्म हो गया है तो अपने पार्टनर से इस बारे में खुल कर बात करें.’’

जेब पर भारी

अर्जुन रामपाल और उन की पत्नी मेहर जेसिया का डिवोर्स नहीं हुआ. उस से पहले ही अर्जुन का लिव इन रिलेशनशिप थी. इसी बीच उन की गर्लफ्रैंड प्रैगनैंट हो गई. इस के बाद उन्होंने मेहर को डिवोर्स दे दिया.आज वह अपनी लिव इन पार्टनर से बिना शादी ही अपना रिश्ता निभा रहे हैं. ऐसा वे इसलिए कर पाए क्योंकि वे अमीर हैं, लेकिन अगर आप अमीर नहीं हैं तो ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर आप की जेब पर भारी पड़ेगा.

क्या कहते हैं आंकड़े

आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों के ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर ज्यादा होते हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि महिलाओं की संख्या 12% और पुरुषों की संख्या 28% है. सर्वे में 77% वूमन ने माना कि उन की मैरिड लाइफ बेजान होने की वजह से उन्होंने ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर किया. 72% वूमन को ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर करने का कोई पछतावा नहीं है.

इस के अलावा 10 में से 7 वूमन ने माना कि उन के हसबैंड घर के कामों में उन का हाथ नहीं बंटाते इस की वजह से उन्होंने ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर किया. 10 में से 4 वूमन ने माना कि अननोन लोगों के साथ फ्लर्ट करने से हसबैंड के साथ उन की इंटीमेसी बेहतर हुई है.

जिन महिलाओं के पति दूसरे शहर में जौब करते हैं या ज्यादा समय तक घर से दूर रहते हैं उन की महिलाएं ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की ओर जल्दी आकर्षित होती हैं. इसलिए यह जरूरी है कि दूर होते हुए भी अपने रिश्ते में प्यार बनाए रखें.

वहीं अगर पुरुषों की बात करें तो कई बार पत्नी के प्रैगनैंट होने पर पति के ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के चांस बढ़ जाते हैं. इस के अलावा पत्नी से सैक्सुअल डिजायर पूरी न होने की वजह से भी पति अकसर ऐसा कदम उठाते हैं.

दिल्ली की अदिति यादव (बदला हुआ नाम) के लिए प्रौब्लम तब खड़ी हुई जब मयंक को पता चला कि उस का ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर है. उस ने इस के पीछे की वजह जाननी चाही तो उसे पता चला कि वह अदिति को उतना वक्त नहीं दे पाता जितना वह चाहती है. वह कहता है, ‘‘ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के कई कारण हो सकते हैं. जरूरी है कि आप उन कारणों को पहचानें और उन पर काम करें.’’

झारखंड महिला हैल्पलाइन ‘181 अभयम’ ने कुछ आंकड़े पेश किए. इन आंकड़ों में हर घंटे एक ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर से जुड़ा केस रिकौर्ड किया गया. 2018 से 2022 में हैल्पलाइन पर आने वाली शिकायतें बढ़ने लगीं. जहां 2018 में 3,837 शिकायतें आईं थीं वहीं 2022 में 9,382 तक पहुंच गईं. इन आंकड़ों से यह पता चलता है कि बीते 5 सालों में ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर ढाई गुना बढ़े हैं.

वजह कई हैं

ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर करने की लोगों के पास अपनी कई वजहें होती हैं. लेकिन फिजिकल नीड, इमोशनल अटैचमैंट न होना, डोमैस्टिक वायलेंस, कम्युनिकेशन गैप अटैंशन की कमी, अकेलापन, बच्चे की रिस्पौंसिबिलिटी, सैक्सुअल नीड न पूरी होना, कम एज में शादी होना, थौट्स न मिलना, लाइफ की प्रायौरिटी अलगअलग होना, कौमन इंटरैस्ट का न होना, रिलेशन में स्पार्क न होना, अट्रैक्शन की कमी होना, बैड पर खराब परफौर्मैंस होना, कैरियर अचीवमैंट जैसी तमाम वजहों से पार्टनर ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की तरफ बढ़ते हैं. लेकिन इन सब में सब से कौमन ‘फिजिकल नीड’ है.

आसान नहीं यह

ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर न सिर्फ पैसे खर्च कराता है बल्कि इसे ज्यादा दिनों तक छिपाया भी नहीं जा सकता. अफेयर की बात पता चलते ही पार्टनर आप का जीना दूभर कर देता है. ऐसे में अगर आप डिवोर्स के बारे में सोचते हैं तो यह इतना आसान नहीं होगा क्योंकि हमारे देश में डिवोर्स लेना आसान नहीं है.

डिवोर्स होने के बाद आप को फाइनैंशियल क्राइसेस से गुजरना पड़ सकता है. अगर आप अमीर हैं तो ठीक है वरना कई तरह की प्रौब्लम्स आप को झेलनी पड़ सकती हैं.

ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर रखना चाहते हैं तो पार्टनर के रहने की जगह, उस के खर्चे, मैडिकल बिल सब उठाने के लिए तैयार रहना होगा. इस के अलावा ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर एक जोखिमभरा खेल है.

सुसाइड का कारण बनता अकेलापन

आकड़े बताते हैं कि आम घरों को किसी बाहर वाले के हमलावर से हुई किसी अजीज की हत्या से कम और किसी अजीज की आत्महत्या से ज्यादा डरना चाहिए. भारत समेत 113 देशों के आंकड़ों से पता चलता है कि दक्षिणी अमेरिका को छोड़ दें तो लगभग सब जगह सूसाइड ज्यादा जानलेवा हैं बजाए मर्डर के. जापान में प्रति लाख पौपुलेशन में से 1412 लोग आत्महत्या से मरते हैं और दूसरों के हाथों मर्डर से सिर्फ 0.25 परसैंट मर्डर और सूसाइड में 57 गुना का फर्क है.

भारत में हर लाख पर 11.3 सूसाइड हो रहे हैं और 2.2 मई पाकिस्तान जिसे हम आमतौर पर ला एंड  आर्डर में निखट्टू समझते हैं. मर्डर 8.8 प्रति लाख पर सूसाइड 3.8 प्रति लाख. मतलब कि पाकिस्तान का प्रशासन अपराध रोकने में ज्यादा कामयाब है पर लोगों के खुद मरने से नहीं रोक पाता. बांग्लादेश का गुणगान करे रूका नहीं जा पाता कमेटी वहां मर्डर भी कम 4.7 प्रति लाख और सूसाइड भी कम 2.4 प्रति लाख है. इन 3 दक्षिणी एशियाई देशों में भारत सब से निखद है और हल्ला मचाने में नंबर वन.

सब से ज्यादा चौंकाने वाला आंकड़ा अमेरिका का है जहां गन खरीदना आसान है और जहां की हर फिल्म सीरियल या नौवल में हत्या ही मुख्य बात होती है. वहां भई रेट 4.9 प्रति लाख है और सूसाइट रेट 11.7 प्रति लाख. यूरोपीय देशों मं जहां गन आसानी से स्टोरों में नहीं मिलती मर्डर रेट कम है. 1.3 प्रति लाख फ्रांस में, 0.7 प्रति लाख स्पेन में 1.0 प्रति लाख ब्रिटेन में.

अपनी जान देना असल में समाज की पोल खोलता है और मर्डर रेट शासन की. दक्षिणी अमेरिका के वैंजूएला जैसे देश में इस कदर माफिया और गैंगबाजी है कि वहां मर्डर रेट 49.9 प्रति लाख है और जापान में लोग इस कदर डिप्रैशन और लोमीनैस के शिकार है कि सूसाइड रेट 14.2 और साउथ कोरिया में 19.5 प्रति कोर्स है.

सूसाइड रेट ज्यादा होने का मतलब है कि कोई जना इतना परेशान अकेला है कि उसे जीने का कोई मकसद नजर नहीं आता. जापान और साउथ कोरिया में पैसे की कमी नहीं है. खाने पीने की कमी नहीं है, गरीबी नहीं है, वहां जीने का मकसद नहीं रह गया. इन दोनों देशों में अकेले वृद्धों की गिनती बढ़ती जा रही है. तलाक ज्यादा हो रहे हैं. बिना शादी किए लोगों की गिनती बढ़ रही है. वहां पुलिस से डर लगता है पर उस से ज्यादा खाली सन्नाटेदार घर से डर लगता है.

भारत में यह स्थिति एक वर्ग विशेष में तेजी से बढ़ रही है. आज बड़ी आयु के युवाओं की गिनती तेजी से बढ़ रही है जो अकेले पड़ गए हैं, जिन के पास पैसे हैं पर कोई हंसने बोलने के लिए नहीं. इस वर्ग के लोगों को घर में घुस कर मारने वाले अपराधी से डर नहीं है. दिनोंदिन कोई न बोलने वाले से डर है.

यह दुर्दशा सिर्फ बूढ़ों की नहीं है जिन्हें अकेले छोड़ कर बच्चे गायब हो गए हैं. यह युवाओं की भी है जिन्हें ब्रेकअप और मांबाप भाईबहन छोड़ गए हैं. घर होने के बावजूद, खाने में कमी न  होने के बावजूद डिप्रेशन होना बड़ी बात नहीं है अगर बात करने के लिए सिर्फ डिलीवरी बौय हो. औन लाइन व्यापार तो बस्ती के नुक्कड़ के मौर्य पौय स्टोर के मालिक से भी नाता तोड़ रहा है. टैक्नोलौजी हरेक पर भारी पड़ रही है क्योंकि बिना ट्यूशन कौंटैक्ट के बहुत कुछ मोबाइल या कंप्यूटर पर किया जा रहा है.

ग्लोबल वाकिंग और रूसी हमले से परेशान दुनिया को इन अकेले सुसाइड करने वालों की फिक्र नहीं है. पुलिस के लिए ये समस्या नहीं है क्योंकि सिर्फ मृत की लाश को ठिकाने के अलावा उन्हें कुछ नहीं करना होता. समाज को चिंता नहीं है क्योंकि ये सुसाइड करने वाले के हैं जो पहले ही समाज से कह चुके हैं, अकेले में छिप गए हैं.

जब सताने लगे अकेलापन

रंजना का अपने पति से तलाक हो गया सुन कर धक्का लगा. 45 वर्षीय रंजना भद्र महिला है. पति, बच्चे सब सुशिक्षित. भला सा हंसताखेलता परिवार. फिर अचानक यह क्या हुआ? बाद में पता चला कि रंजना ने दूसरी शादी कर ली. दूसरा पति हर बात में उन के पहले पति से उन्नीस ही है. किसी ने बताया रंजना की मुलाकात उस व्यक्ति से फेसबुक पर हुई थी और उन्हीं के बेटे ने उन्हें बोरियत से बचाने के लिए उन का फेसबुक पर अकाउंट बनाया था. प्रारंभिक जानपहचान के बाद उन की घनिष्ठता बढ़ती गई, जो बाद में प्यार में बदल गई. वह व्यक्ति भी उसी शहर का था. कभीकभी होने वाली मुलाकात एकदूसरे के बिना न रह सकने में तबदील हो गई. वह भी शादीशुदा था. इस शादी के लिए उस ने अपनी पत्नी को बड़ी रकम दे कर उस से छुटकारा पा लिया.

कुछ साल पहले तक ऐसे समाचार अखबारों में पढ़े जाते थे और वे सभी विदेशों के होते थे. तब अपने यहां की संस्कृति पर बड़ा मान होता था. लेकिन आज हमारे देश में भी यह आम बात हो गई है. हमारा सामाजिक व पारिवारिक परिवेश तेजी से बदल रहा है. इन परिवर्तनों के साथ आ रहे हैं मूल्यों और पारिवारिक व्यवस्था में बदलाव. आज संयुक्त परिवार तेजी से खत्म होते जा रहे हैं. सामाजिक व्यवस्था नौकरी पर टिकी है जिस के लिए बच्चों को घर से बाहर जाना ही होता है. पति के पास काम की व्यस्तता और बच्चों की अपनी अलग दुनिया. अत: महिलाओं के लिए घर में अकेले समय काटना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में उन का सहारा बनती है किट्टी पार्टी या फेसबुक पर होने वाली दोस्ती.

आइए जानें कुछ उन कारणों को जिन के चलते महिलाएं अकेलेपन की शिकार हो कर ऐसे कदम उठाने को मजबूर हो रही हैं:

संयुक्त परिवार खत्म हो रहे हैं. एकल परिवार के बढ़ते चलन से पति व बच्चों के घर से चले जाने के बाद महिलाएं घर में अकेली होती हैं. तब उन का समय काटे नहीं कटता.

अति व्यस्तता के इस दौर में रिश्तेदारों से भी दूरी सी बन गई है. अत: उन के यहां आनाजाना, मिलनाजुलना कम हो गया है. साथ ही सहनशीलता में भी कमी आई है. इसलिए  रिश्तेदारों का कुछ कहना या सलाह देना अपनी जिंदगी में दखल लगता है, जिस से उन से दूरी बढ़ा ली जाती है.

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विश्वास की कमी के चलते सामाजिक दायरा बहुत सिमट गया है. अब पासपड़ोस पहले जैसे नहीं रह गए. पहले किस के घर कौन आ रहा है कौन जा रहा है की खबर रखी जाती थी. दिन में महिलाएं एकसाथ बैठ कर बतियाते हुए घर के काम निबटाती थीं. इस का एक बड़ा कारण दिनचर्या में बदलाव भी है. सब के घरेलू कामों का समय उन के बच्चों के अलग स्कूल टाइम, ट्यूशन की वजह से अलगअलग हो गया है.

पति की अति व्यस्तता भी इस का एक बड़ा कारण है. अब पहले जैसी 10 से 5 वाली नौकरियां नहीं रहीं. अब दिन सुबह 5 बजे से शुरू होता है, जो सब के जाने तक भागता ही रहता है. इस से पतिपत्नी को इतमीनान से साथ बैठ कर पर्याप्त समय बिताने का मौका ही नहीं मिलता. कम समय में जरूरी बातें ही हो पाती हैं.

ऐसे ही पुरुषों की व्यस्तता भी बहुत बढ़ गई है. सुबह का समय भागदौड़ में और रात घर पहुंचतेपहुंचते इतनी देर हो जाती है कि कहनेसुनने के लिए समय ही नहीं बचता. इसलिए आजकल पुरुष भी अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं और औफिस में या फेसबुक पर उन की भी दोस्ती महिलाओं से बढ़ रही है जिन के साथ वे अपने मन की सारी बातें शेयर कर सकें.

यदि अकेले रहने की वजह परिवार से मनमुटाव है, तो ऐसे में पति का उदासीन रवैया भी पत्नी को आहत करने वाला होता है. उसे लगता है कि उस का पति उसे समझ नहीं पा रहा है या उस की भावनाओं की उसे कतई कद्र नहीं है. इस से पतिपत्नी के बीच भावनात्मक अलगाव पैदा हो रहा है.

टीवी सीरियलों में आधुनिक महिलाओं के रूप में जो चारित्रिक हनन दिखाया जा रहा है उस का असर भी महिलाओं के सोचनेसमझने पर हो रहा है. अब किसी पराए व्यक्ति से बातचीत करना, दोस्ती रखना, कभी बाहर चले जाना जैसी बातें बहुत बुरी बातों में शुमार नहीं होतीं, बल्कि आज महिलाएं अकेले घर का मोरचा संभाल रही हैं. ऐसे में बाहरी लोग आसानी से उन के संपर्क में आते हैं.

पति परमेश्वर वाली पुरानी सोच बदल गई है.

इंटरनैट के द्वारा घर बैठे दुनिया भर के लोगों से संपर्क बनाया जा रहा है. ऐसे में अकेलेपन, हताशानिराशा को बांट लेने का दावा करने वाले दोस्त महिलाओं की भावनात्मक जरूरत में उन के साथी बन कर आसानी से उन के फोन नंबर, घर का पता हासिल कर उन तक पहुंच बना रहे हैं.

नौकरीपेशा महिलाएं भी घरबाहर की जिम्मेदारियां निभाते हुए इतनी अकेली पड़ जाती हैं कि ऐसे में किसी का स्नेहस्पर्श या  भावनात्मक संबल उन्हें उस की ओर आकर्षित करने के लिए काफी होता है.

अत्यधिक व्यस्तता और तनाव की वजह से पुरुषों की सैक्स इच्छा कम हो रही है. सैक्स के प्रति पुरुषों की अनिच्छा स्त्रियों में असंतोष भरती है. ऐसे में किसी और पुरुष द्वारा उन के रूपगुण की सराहना उन में नई उमंग भरती है और वे आसानी से उस की ओर आकर्षित हो जाती हैं. लेकिन क्या ऐसे विवाहेतर संबंध सच में महिलाओं या पुरुषों को भावनात्मक सुकून प्रदान कर पाते हैं? होता तो यह है कि जब ऐसे संबंध बनते हैं दिमाग पर दोहरा दबाव पड़ता है. एक ओर जहां उस व्यक्ति के बिना रहा नहीं जाता तो वहीं दूसरी ओर उस संबंध को सब से छिपा कर रखने की जद्दोजेहद भी रहती है. ऐसे में यदि कोई टोक दे कि आजकल बहुत खुश रहती हो या बहुत उदास रहती हो तो एक दबाव बनता है.

जब संबंध नएनए बनते हैं तब तो सब कुछ भलाभला सा लगता है, लेकिन समय के साथ इस में भी रूठनामनाना, बुरा लगना, दुख होना जैसी बातें शामिल होती जाती हैं. बाद में स्थिति यह हो जाती है कि न इस से छुटकारा पाना आसान होता है और न बनाए रखना, क्योंकि तब तक इतनी अंतरंग बातें सामने वाले को बताई जा चुकी होती हैं कि इस संबंध को झटके से तोड़ना कठिन हो जाता है. हर विवाहेतर संबंध की इतिश्री तलाक या दूसरे विवाह में नहीं होती. लेकिन इतना तो तय है कि ऐसे संबंध जब भी परिवार को पता चलते हैं विश्वास बुरी तरह छलनी होता है. फिर चाहे वह पति का पत्नी पर हो या पत्नी का पति पर अथवा बच्चों का मातापिता पर. बच्चों पर इस का सब से बुरा असर पड़ता है. एक ओर जहां उन का अपने मातापिता के लिए सम्मान कम होता है वहीं परिवार के टूटने की आशंका भी उन में असुरक्षा की भावना भर देती है, जिस का असर उन के भावी जीवन पर भी पड़ता है और वे आसानी से किसी पर विश्वास नहीं कर पाते.

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यदि परिवार और रिश्तेदार इसे एक भूल समझ कर माफ भी कर दें तो भी आगे की जिंदगी में एक शर्मिंदगी का एहसास बना रहता है, जो सामान्य जिंदगी बिताने में बाधा बनता है. विवाहेतर संबंध आकर्षित करते हैं, लेकिन अंत में हाथ लगती है हताशा, निराशा और टूटन. इन से बचने के लिए जरूरी है कि अकेलेपन से बचा जाए. खुद को किसी रचनात्मक कार्य में लगाया जाए. अपने पड़ोसियों से मधुर संबंध बनाए जाएं, रिश्तेदारों से मिलनाजुलना शुरू किया जाए. अपने पार्टनर से अपनी परेशानियों के बारे में खुल कर बात की जाए और अपने पूर्वाग्रह को भुला कर उन की बातें सुनी और समझी जाएं. हमारी सामाजिक व पारिवारिक व्यवस्था बहुत मजबूत और सुरक्षित है. इसे अपने बच्चों के लिए इसी रूप में संवारना हमारा कर्तव्य है. आवेश में आ कर इसे तहसनहस न करें.

वहम है अकेलापन

समय पर विवाह न हो पाने, जीवनरूपी सफर में हमसफर द्वारा बीच में ही साथ छोड़ देने या पतिपत्नी में आपसी तालमेल न हो पाने पर जब तलाक हो जाता है तो ऐसी स्थिति में एक महिला अकेले जीवन व्यतीत करती है. लगभग 1 दशक पूर्व तक इस प्रकार अकेले जीवन बिताने वाली महिला को समाज अच्छी नजर से नहीं देखता था और आमतौर पर वह पिता, भाई या ससुराल वालों पर निर्भर होती थी. मगर आज स्थितियां इस के उलट हैं. आज अकेली रहने वाली महिला आत्मनिर्भर, स्वतंत्र और जीवन में आने वाली हर स्थिति का अपने दम पर सामना करने में सक्षम है.

‘‘यह सही है कि हर रिश्ते की भांति पतिपत्नी के रिश्ते का भी जीवन में अपना महत्त्व है, परंतु यदि यह रिश्ता नहीं है आप के साथ तो उस के लिए पूरी जिंदगी परेशान और तनावग्रस्त रहना कहां तक उचित है? यह अकेलापन सिर्फ मन का वहम है और कुछ नहीं. इंसान और महिला होने का गौरव जो सिर्फ एक बार ही मिला है उसे मैं अपने तरीके से जीने के लिए आजाद हूं,’’ यह कहती हैं एक कंपनी में मैनेजर 41 वर्षीय अविवाहिता नेहा गोयल. वे आगे कहती हैं, ‘‘मैं आत्मनिर्भर हूं. अपनी मरजी का खाती हूं, पहनती हूं यानी जीती हूं.

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घर की स्थितियां कुछ ऐसी थीं कि मेरा विवाह नहीं हो पाया, परंतु मुझे कभी जीवनसाथी की कमी नहीं खली, बल्कि मुझे लगता है कि यदि मेरा विवाह होता तो शायद मैं इतनी आजाद और बिंदास नहीं होती. तब मेरी उन्नति में मेरी जिम्मेदारियां आड़े आ सकती थीं. मैं अभी तक 8 प्रमोशन ले चुकी हूं, जिन्हें यकीनन परिवार के चलते नहीं ले सकती थी.’’ केंद्रीय विद्यालय से प्रिसिंपल पद से रिटायर हुईं नीता श्रीवास्तव का अपने पति से उस समय तलाक हुआ जब वे 45 वर्ष की थीं और उन का बेटा 15 साल का. वे कहती हैं, ‘‘कैसा अकेलापन? मैं आत्मनिर्भर थी.

अच्छा कमा रही थी. बेटे को अच्छी परवरिश दे कर डाक्टर बनाया. अच्छा खाया, पहना और खूब घूमी. पूरी जिंदगी अपनी शर्तों पर बिताई. कभी मन में खयाल ही नहीं आया कि मैं अकेली हूं. जो नहीं है या छोड़ गया है, उस के लिए जो मेरे पास है उस की कद्र न करना कहां की बुद्धिमानी है?’’

रीमा तोमर के पति उन्हें उस समय छोड़ गए जब उन का बेटा 10 साल का और बेटी 8 साल की थी. उन की उम्र 48 वर्ष थी. पति डीएसपी थे. अचानक एक दिन उन्हें अटैक आया और वे चल बसे. अपने उन दिनों को याद करते हुए वे कहती है, ‘‘यकीनन मेरे लिए वे दिन कठिन थे. संभलने में थोड़ा वक्त तो लगा पर फिर मैं ने जीवन अपने तरीके से जीया.

आज मेरा बेटा एक स्कूल का मालिक है और बेटी अमेरिका में है. पति के साथ बिताए पल याद तो आते थे, परंतु कभी किसी पुरुष की कमी महसूस नहीं हुई. मैं अपनी जिंदगी में बहुत खुश थी और आज भी हूं.’’ मनोवैज्ञानिक काउंसलर निधि तिवारी कहतीं हैं, ‘‘अकेलापन मन के वहम के अलावा कुछ नहीं है. कितनी महिलाएं जीवनसाथी और भरेपूरे परिवार के होते हुए भी सदैव अकेली ही होती हैं. वंश को बढ़ाने और शारीरिक जरूरतों के लिए एक पति की आवश्यकता तो होती है, परंतु यदि मन, विचार नहीं मिलते तो वह अकेली ही है न? इसलिए अकेलेपन जैसी भावना मन में कभी नहीं आने देनी चाहिए.’’

अकेली औरतें ज्यादा सफल कुछ समय पूर्व एक दैनिक पेपर में एक सर्वे प्रकाशित हुआ था जो अविवाहित, तलाकशुदा और विधवा महिलाओं पर कराया गया था. उस के अनुसार:

अकेली रहने वाली 93% महिलाएं मानती हैं कि उन का अकेलापन गृहस्थ महिलाओं की तुलना में जीवन के सभी क्षेत्रों में सफल रहने में अधिक सहायक सिद्ध हुआ है. इस से उन्हें आजादी से जीवन जीने का अधिकार मिला है.

65% महिलाएं जीवन में पति की आवश्यकता को व्यर्थ मानती हैं और वे विवाह के लिए बिलकुल भी इच्छुक नहीं हैं. द्य आवश्यकता पड़ने पर विवाह करने के बजाय इन्होंने किसी अनाथ बच्चे को गोद लेना अधिक अच्छा समझा.

इन्हें कभी खालीपन नहीं अखरता. ये अपनी रुचि के अनुसार सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेती है और आधुनिक मनोरंजन के साधनों का लाभ उठाती हैं. चिंतामुक्त हो कर जी भर कर सोती हैं.

इस सर्वेक्षण के अनुसार एकाकी जीवन जीने वाले पुरुषों की संख्या महिलाओं की संख्या के अनुपात में बहुत कम है.

बढ़ रहा सिंगल वूमन ट्रैंड

पिछले दशक से यदि तुलना की जाए तो एकाकी जीवन जीने वाली महिलाओं की संख्या में 39 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. विदेशों में अकेले जीवन जीने वाली महिलाओं की उपस्थिति समाज में बहुत पहले से ही है, साथ ही वहां वे उपेक्षा और उत्पीड़न की शिकार भी नहीं होतीं. भारतीय समाज में 1 दशक में महिलाओं की स्थिति में तेजी से सुधार हुआ है. हाल ही में आई पुस्तक ‘आल द सिंगल लेडीज अनमैरिड वूमन ऐंड द राइज औफ एन इंडिपैंडैंट नेशन’ की लेखिका रेबेका टेस्टर के अनुसार 2009 के अनुपात में इस दशक में सिंगल महिलाओं की बढ़ती संख्या समाज में उन के महत्त्व का दर्ज कराती है.

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यह सही है कि हर रिश्ते की अपनी गरिमा और महत्त्व होता है. अकेलापन सिर्फ मन का वहम तो है, परंतु इस के लिए सब से आवश्यक शर्त है महिला की आत्मनिर्भरता और आत्मशक्ति का मजबूत होना, क्योंकि यदि वह आत्मनिर्भर नहीं है तो उसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पराधीन होना होगा. पराधीनता तो सदैव कष्टकारी ही होती है. आत्मनिर्भरता की स्थिति में उस पर किसी का दबाव नहीं होता और अपने ऊपर उंगली उठाने वालों को भी मुंहतोड़ जवाब दे पाने में सक्षम होती है. ‘‘अकेले रहने वाली महिलाओं को अपनी आत्मशक्ति को मजबूत रखना चाहिए. जो जिंदगी आप ने चुनी है उस में खुश रहना चाहिए. कभी किसी को अपने पति के साथ देख कर मन को कमजोर करने वाले विचार नहीं आने चाहिए,’’ यह कहती हैं नीता श्रीवास्तव.

जब भी कभी ऐसा अवसर जीवन में आता है तो इसे सिर्फ अपने मन का वहम मानें और सचाई को स्वीकार कर के जीवन को आगे बढ़ाएं. जिंदगी जिंदादिली का नाम है न कि किसी के सहारे का मुहताज होने का. स्वयं को अंदर से मजबूत कर के अपनी शक्ति को सामाजिक और रचनात्मक कार्यों में लगाना चाहिए. साथ ही कुछ ऐसे संसाधनों को भी खोजना चाहिए जिन में आप व्यस्त रहें.

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