Famous Hindi Stories : अदृश्य मोहपाश

Famous Hindi Stories : परीक्षा के अंतिम दिन घर आने पर पुन्नी इतनी थकी हुई थी कि लेटते ही सो गई. उठी तो शाम होने को थी, खिड़की से देखा तो पोर्टिको में मम्मी की गाड़ी खड़ी थी यानी वे आ चुकी थीं. छोटू से मम्मी के कमरे में चाय लाने को कह कर उस ने धीरे से मम्मी के कमरे का परदा हटाया, मम्मी अलमारी के सामने खड़ी, एक तसवीर को हाथ में लिए सिसक रही थीं, ‘‘आज पुन्नी की आईएएस की लिखित परीक्षा पूरी हो गई है, सफलता पर उसे और उस के पापा को पूरा विश्वास है. लगता है बेटी को आईएएस बनाने का तुम्हारा सपना पूरा करने की मेरी वर्षों की तपस्या सफल हो जाएगी.’’

पुन्नी ने चुपचाप वहां से हटना बेहतर सम झा. उस का सिर चकरा गया. मम्मी रोरो कर कह क्या रही हैं, ‘उस के पापा का विश्वास…बेटी को आईएएस बनाने का तुम्हारा सपना…? कैसी असंगत बातें कर रही हैं, डिगरी कालेज की प्रिंसिपल मालिनी वर्मा? और वह तसवीर किस की है?’

चाय की ट्रौली मम्मी के कमरे में ले जाते छोटू को उस ने लपक कर रोका, ‘‘उधर नहीं, बरामदे में चल.’’

‘‘आप को हो क्या गया है, दीदी? कहती कुछ हो और फिर करती कुछ हो. दोपहर को मु झे फिल्म की सीडी लगाने को बोल कर आप तो सो गईं, मु झे मांजी से डांट खानी पड़ी…’’

‘‘मम्मी दोपहर को ही आ गई थीं?’’ पुन्नी ने छोटू की बात काटी.

‘‘आई तो अभी हैं, मु झे डांट कर तुरंत अपने कमरे में चली गईं.’’

‘और कमरे में जा कर उस तसवीर से बातें कर रही हैं? मगर तसवीर है किस की?’ पुन्नी ने सोचा.

तभी मालिनी बाहर आ गईं. चेहरे पर से आंसुओं के निशान तो धो लिए थे लेकिन आंखों की नमी तो धुलती नहीं. इस से पहले कि वे कुछ बोलतीं,

पापा चहकते हुए आ गए, ‘‘हैलो, डिप्लोमैट…’’

‘‘डिप्लोमैट? किस से बात कर रहे हो, अभय?’’

‘‘अपनी बेटी से, मालिनी, उस का आईएफएस में चयन यानी डिप्लोमैट बनना तो पक्का सम झो,’’ पापा की खुशी समेटे नहीं सिमट रही थी, ‘‘आज जो प्रश्न पूछे गए हैं उन सब के उत्तर तो इसे जबानी याद हैं.’’

‘‘लेकिन आप को इस का प्रश्नपत्र किस ने दिखा दिया?’’ मालिनी ने जिरह की.

‘‘नीलाभ ने. वह परीक्षा भवन से सीधा अपने पापा के पास आया था. उसी का कहना है कि जिस फर्राटे से पुन्नी सब सवालों के सही जवाब सब को बता रही थी, उस का नाम प्रथम

5 प्रत्याशियों में होगा. फिर मैं ने प्रश्नपत्र देखा तो वह सब तो वे प्रश्न थे जो हम ने कल रात रिवाइज कराए थे.’’

‘‘आज ही नहीं पापा, अकसर हर रोज कई सवाल वही होते थे जो आप रात को रिवाइज करवाते थे,’’ पुन्नी ने कहा.

‘‘और तू उन्हें कंठस्थ कर लेती थी, नीलाभ की बात से तो यही लगा. यह बता, दोपहर को क्या किया?’’

‘‘मु झ से फिल्म ‘ओह माई गौड’ की सीडी लगवा कर खुद सो गईं,’’ छोटू ने शिकायत की.

‘‘और तु झे फिल्म अकेले देखनी पड़ी, कैसी है?’’ अभय ने पूछा.

‘‘पूरी नहीं देखी, मांजी ने डांट कर टीवी बंद करवा दिया.’’

‘‘कोई बात नहीं, अब सब के साथ देख लेना, खाना बनाने की जरूरत नहीं है, बाहर से मंगवा लेंगे,’’ मालिनी ने सहृदयता से कहा.

फिल्म देखते हुए मालिनी भी सब के साथ सहज भाव से हंस रही थीं लेकिन पुन्नी को उन की सहजता ओढ़ी हुई लगी और हंसी जैसे दबी हुई सिसकी. अगली सुबह मालिनी का व्यवहार सब के साथ सामान्य था.

‘‘पुन्नी, तु झे कहीं जाना हो तो मैं गाड़ी तेरे लिए छोड़ जाती हूं, मैं तेरे पापा के साथ चली जाऊंगी.’’

‘‘मु झे कहीं नहीं जाना, मम्मा, आज घर पर ही रहूंगी.’’

‘‘फिर भी अगर किसी के साथ कुछ प्रोग्राम बन जाए तो मु झे फोन कर देना, ड्राइवर से गाड़ी भिजवा दूंगी या अभय, तुम पुन्नी के साथ लंच करने घर आ जाओ न फिर…’’

‘‘ओह मम्मा, प्लीज, आप दोनों इतमीनान से घर आना,’’ पुन्नी ने बात काटी,

‘‘मेरा मूड या तो आज सोने का है या गानेवाने सुनने का. आप लोग मु झे फोन भी मत करना और छोटू, तू भी मेरे आगेपीछे मत घूमना. मैं जिस कमरे में चाहे बैठूंगी या सोऊंगी.’’

‘‘अब और कुछ मत कहना मालिनी, वरना समय पर आने पर भी पाबंदी लग जाएगी,’’ पापा ने कहा.

उन दोनों के जाते ही पुन्नी मालिनी की अलमारी के सामने जा खड़ी हुई. अलमारी में तो ताला नहीं था मगर उस का सेफ लौक्ड था. चाबी जरूर मां ने अपनी साडि़यों के नीचे रखी होगी, सोच कर पुन्नी ने सब साडि़यों को बाहर निकाल कर  झाड़ा, दूसरे कपड़े भी देख लिए, कुछ किताबें और पुरानी पत्रिकाएं भी थीं. उन का भी हरेक पन्ना इस आस से देख लिया कि कहीं कोई पुराना खत, तसवीर या किसी कविता की पंक्तियां ही मिल जाएं लेकिन एक सूखा फूल तक नहीं मिला. सेफ की चाबी मां अपने पर्स में ही रखती होंगी और उस में से चाबी निकालना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था क्योंकि मां के घर में रहते तो यह हो नहीं सकता था और घर के बाहर मां पर्स के बगैर निकलती नहीं थीं.

मां से पूछने का मतलब था उन्हें व्यथित के साथ ही लज्जित भी करना और पापा से पूछना एक तरह से मां की शिकायत करना. तो फिर करे क्या? किस से पूछे? मां की बचपन की सहेली चित्रा आंटी को सब पता होगा. उन से पुन्नी की खूब पटती थी, आसानी से तो नहीं लेकिन मनुहार करने पर जरूर बता देंगी. चित्रा अपने पति सेवानिवृत्त एअरमार्शल ओम प्रकाश के साथ शहर से दूर अपने फार्महाउस में रहती थीं. उस ने चित्रा आंटी को फोन किया कि वह उन के पास आना चाहती है.

‘‘आज ही आजा. तेरे अंकल कुछ सामान लाने शहर गए हुए हैं, उन्हें फोन कर देती हूं कि आते हुए तु झे ले आएं,’’ चित्रा ने चहक कर कहा, ‘‘तेरी मां को भी कह देती हूं कि मैं तु झे अगवा करवा रही हूं.’’

पुन्नी ने तुरंत पापा को फोन किया.

‘‘पापा, साक्षात्कार की तैयारी से पहले मैं पूरी तरह रिलैक्स करना चाहती हूं. नो मूवीज, नो टीवी, न्यूजपेपर या फोन कौल्ज. ये सब घर पर रहते हुए तो हो नहीं सकता, सो मैं चित्रा आंटी के फार्महाउस पर जा रही हूं. वहां योगा करूंगी, ध्यान लगाने की कोशिश भी…’’

‘‘क्याक्या करोगी यह वहां जा कर सोचना,’’ अभय ने बात काटी, ‘‘नीलाभ अपने पापा की गाड़ी लेने आया हुआ है, उस से कहता हूं कि मेरी गाड़ी ले जाए और तुम्हें ओमी के फार्महाउस पर छोड़ दे.’’

‘‘ओमी अंकल मु झे लेने आ रहे हैं, पापा, वहां से लाने के लिए आप आ जाना.’’

चित्रा से बात करने के लिए उसे कोई भूमिका नहीं बांधनी पड़ी क्योंकि अगले रोज सुबह के नाश्ते के बाद ओमी अंकल जब फार्म पर चले गए तो चित्रा ने पूछा, ‘‘तेरी मां कहती थी कि तेरे पेपर बड़े अच्छे हुए हैं और तू भी बड़े आत्मविश्वास से ओमी को बता रही थी कि यहां तरोताजा होने के बाद तू धमाकेदार साक्षात्कार की तैयारी करेगी लेकिन तेरी शक्ल से तो ऐसा नहीं लग रहा. बहुत परेशान लग रही है, जैसे किसी कशमकश में फंसी हुई हो. लगता है तू यहां रिलैक्स करने नहीं, किसी परेशानी का हल ढूंढ़ने आई है.’’

‘‘आप ने ठीक सम झा, आंटी और वह परेशानी सिर्फ आप सुल झा सकती हैं

क्योंकि ननिहाल वाले तो अमेरिका में हैं, सो उन से तो पूछने का सवाल ही नहीं उठता. एक आप ही हैं जो मम्मी को बचपन से जानती हैं और मेरी परेशानी उन के अतीत से जुड़ी हुई है,’’ पुन्नी ने चित्रा को सब बता दिया.

चित्रा हताशा से सिर पकड़ कर बैठ गई.

‘‘कितना सम झाया था मालू को कि अतीत से जुड़ी कोई चीज अपने पास मत रखना और न ही अपने जेहन में लेकिन उस ने तो जैसे मेरी बात न सुनने की कसम खा रखी है. तू ने यह बात अपने पापा को तो नहीं बताई न?’’

पुन्नी को इनकार में सिर हिलाते देख कर चित्रा ने राहत की सांस ली.

‘‘बहुत अच्छा किया, नहीं तो बुरी तरह टूट जाता बेचारा. अच्छा सिला दे रही है मालिनी अभय के त्याग और प्यार का, एक नकारे और ठुकराए गए रिश्ते की सड़ीगली लाश को सहेज कर,’’ चित्रा के स्वर में तिरस्कार था या सहानुभूति, पुन्नी सम झ नहीं सकी.

‘‘प्लीज आंटी, अब पहेलियों में बात न कर के पूरी कहानी बताओ,’’ पुन्नी ने चिरौरी करी.

‘‘कह नहीं सकती कि सुनने के बाद तु झे धक्का लगेगा या इस दुविधा की स्थिति से उबरने का सुकून मिलेगा लेकिन जब इतना सम झ चुकी है कि मालिनी का अतीत है तो उस के बारे में सब जानने का तु झे पूरा हक है,’’ चित्रा ने उसांस ले कर कहा.

‘‘मैं, मालिनी, पुनीत, ओमी और अभय स्कूल से ही सहपाठी और दोस्त थे. कालेज के अंतिम वर्ष में पहुंचते ही हम सब ने भविष्य में क्या करना है, सोच लिया था. ओमी ने एअरफोर्स चुनी थी, मैं ने और मालिनी ने अध्यापन, अभय और पुनीत आईएएस प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे थे. स्कूल की दोस्ती रोमांस में बदल गई थी. मेरा और ओमी का तो खैर ठीक था क्योंकि हमारे परिवारों में मित्रता थी, किसी को हमारी शादी पर एतराज नहीं था लेकिन पुनीत का परिवार बहुत रूढि़वादी था और उस की मां बेहद बदमिजाज व तेजतर्रार थीं, उन की मरजी के बगैर घर में पत्ता भी नहीं हिलता था.

‘‘पुनीत दब्बू किस्म का ‘माताजी का लाड़ला’ था. मगर मालिनी तो हमेशा से दबंग, अपनी मरजी की मालिक थी. मैं ने उसे सम झाया कि उस के और पुनीत के प्यार का न तो कोई मेल है और न ही कोई भविष्य. पुनीत की रूढि़वादी मां उसे कदापि बहू बनाने को तैयार नहीं होंगी और वह स्वयं भी पुनीत के परिवार से तालमेल नहीं बैठा सकेगी.

‘‘‘अगर पुनीत अपनी मां का लाड़ला है तो मैं भी अपने पापा की लाड़ली हूं. वे मु झे इतना दहेज देंगे कि हिटलर माताजी मु झे  झोली पसार कर ले जाएंगी और रहा सवाल परिवार से तालमेल बैठाने का, तो शादी तय होते ही बड़े भैया हम दोनों को आगे पढ़ाई के लिए अमेरिका बुला लेंगे,’ मालिनी ने दर्प से कहा था.

‘‘मेरे इस तर्क को कि आईएएस की तैयारी करने वाला पुनीत अमेरिका क्यों जाएगा, मालिनी ने यह कह कर काट दिया कि पुनीत की तो आईएएस की प्रवेश परीक्षा पास करने लायक योग्यता ही नहीं है, इसलिए अमेरिका जाने का मौका वह नहीं छोड़ेगा.

‘‘और हुआ भी वही. पुनीत दोबारा प्रवेश परीक्षा देना चाहता था लेकिन मालिनी के सम झाने पर कि दूसरी बार भी सफल हो और फिर मुख्य और मौखिक परीक्षा में सफलता की क्या गारंटी है, सो बेहतर है कि अमेरिका चल कर अपने प्रिय विषय अर्थशास्त्र में महारत हासिल करे. पुनीत मालिनी की बात मान गया. अपेक्षा से अधिक दहेज और अमेरिका में बेटे की पढ़ाई के लालच में उस की मां ने भी बगैर हीलहुज्जत के शादी के लिए सहमति दे दी.

‘‘मालिनी के भाई ने भी पुनीत और मालिनी को बुलाने की कार्यवाही शुरू कर दी. मालिनी के दोनों भाई अमेरिका में थे ही, सेवानिवृत्त पापा मालिनी की पढ़ाई और शादी की वजह से यहां रुके हुए थे, उस की शादी के तुरंत बाद मम्मीपापा यहां की गृहस्थी समेट कर, मालिनी की शादी में आए बेटों के साथ ही अमेरिका चले गए. पुनीत को भी पेनसिल्वानियां विश्वविद्यालय में दाखिला मिल गया लेकिन मालिनी को अंगरेजी साहित्य में अभी कहीं भी दाखिला नहीं मिल रहा था. इस बीच, वह गर्भवती भी हो गई थी और सास उस का बहुत खयाल रखने लगी थीं. भैया ने पुनीत का वीजा और टिकट वगैरह भेज दिया था. सो, उसे तो जाना ही था. मालिनी यह सोच कर कि कुछ ही दिनों की तो बात है, भैया जल्दी ही उस के भी आने की व्यवस्था कर देंगे, मालिनी अकेले ससुराल में रहना मान गई. और कोई चारा भी नहीं था. मम्मीपापा अमेरिका जा चुके थे, मेरे पापा का ट्रांसफर हो गया था सो मैं होस्टल में रह कर पीएचडी कर रही थी. मालिनी मु झ से अकसर होस्टल में मिलने आती थी, सास की भी तारीफ करती थी. लेकिन एक रोज वह बहुत ही व्यथित अवस्था में आई.

‘‘कल रुटीन चैकअप के दौरान सोनोग्राफी हुई तो पता चला कि मेरे गर्भ में

लड़की है, बस, तब से मेरी सास ने विकराल रूप धारण कर लिया है कि मैं गर्भपात करवाऊं. मेरी बहुत मिन्नत और ससुरजी के सम झाने पर मानीं कि पुनीत से पूछ लें. मगर मेरे से पहले उन्होंने स्वयं पुनीत से बात की और माताजी के आज्ञाकारी बेटे ने तोते की तरह दोहरा दिया-जैसा मां कहती हैं, तुम वैसा ही करो. पुनीत ने कुछ रोज पहले ही फोन पर मु झ से कहा था कि अमेरिका में पैसा भले ही ज्यादा हो, मानसम्मान अपने देश में ही है, मैं तो नहीं बन सका लेकिन अपने बेटे को जरूर भारत में प्रशासनिक अधिकारी बना कर मानसम्मान दिलवाऊंगा. मैं ने चुहल की कि लड़की हुई तो? उस ने छूटते ही कहा था कि

तो क्या हुआ, उसे ही आईएएस अफसर बनाएंगे और वही पुनीत अब अम्मा के सुर में सुर मिला रहा है. लेकिन मेरी भी जिद है चाहे जो भी हो

मैं गर्भपात नहीं करवाऊंगी, डाक्टर और

अस्पताल के स्टाफ को साफ मना कर दूंगी. यह मेरी भ्रांति थी.

‘‘माताजी ने कहा कि वह घर पर ही

अपनी पहचान की एक मिडवाइफ को बुला

कर किस्सा खत्म करवा देंगी. मैं किसी तरह

जान बचा कर यहां आई हूं और अब वापस वहां नहीं जाऊंगी.’

‘‘मैं परेशान हो गई. न तो मालिनी को होस्टल में रख सकती थी न वापस जाने को कह सकती थी. तभी मु झे अभय का खयाल आया और मैं मालिनी को उस के घर ले गई.

‘‘अभय आईएएस की प्रवेश परीक्षा पास कर के मुख्य परीक्षा की तैयारी कर रहा था. वर्षों पहले एक सड़क दुर्घटना में उस की मां का निधन हो गया था और वकील पिता अपाहिज हो गए थे. उस के घर में सिवा पिता और नौकर के कोई और न था.

‘‘उस के पिता ने कहा कि मालिनी जब तक चाहे उन के घर में सुरक्षित रह सकती है लेकिन उसे पुलिस में ससुराल वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करानी होगी. मु झे तो समय से होस्टल पहुंचना था, सो अभय अकेला ही

मालिनी को ले कर थाने गया. फिर उस की अमेरिका में उस के घर वालों से बात करवाई. उन्होंने आश्वासन दिया कि वे पुनीत से बात करेंगे. उस जमाने में मोबाइल तो थे नहीं, ईमेल की सुविधा भी बहुत कम थी, सो रोज बात नहीं हो पाती थी.

‘‘खैर, अभय और उस के पिता ने मालिनी का बहुत साथ दिया, उस की देखभाल के लिए नौकरानी भी रख दी. लेकिन मालिनी के ससुराल वालों ने उस पर चोरी कर के घर से भागने

के आरोप में उसे गिरफ्तार करवा दिया. अभय

के पिता ने अपने संपर्क द्वारा उस की तुरंत जमानत तो करवा दी लेकिन इस से मालिनी का विदेश जाना खटाई में पड़ गया. पहले ही उसे कहीं दाखिला न मिलने के कारण वीजा नहीं

मिल रहा था. और जैसे यह काफी नहीं था,

पुनीत ने बदचलनी का आरोप लगा कर उसे तलाक का नोटिस भिजवा दिया. पुनीत को यूनिवर्सिटी में दाखिला मिल चुका था और पार्टटाइम जौब भी, अब उसे मालिनी के

परिवार की मदद की जरूरत नहीं थी और वैसे भी, उस ने यह पूछ कर उन का मुंह बंद कर दिया था कि मालिनी किस रिश्ते से अभय के घर में रह रही है?

‘‘मालिनी के अमेरिका जाने का कोई बनाव नहीं बन रहा था. भाई वृद्ध मातापिता को वापस भेजना नहीं मान रहे थे क्योंकि वे भारत में सब समेट कर बेटों के पास गए थे, एक गर्भवती बेटी के सहारे दोबारा यहां व्यवस्थित होना आसान

नहीं था.

‘‘एक बार फिर अभय मालिनी का संबल बना, सहर्ष मालिनी को अपनाकर उस की बेटी को अपना नाम दिया और भरपूर प्यार भी, मांबाप के साथ हुए हादसे के कारण वह अब तक हार्ट फ्री था. मगर अब इन चक्करों में पड़ने के कारण अभय की पढ़ाई का बहुत हरजा हुआ और उस का चयन आईएएस के बजाय आयकर विभाग में हुआ. लेकिन उसे इस का कोई मलाल नहीं है, कर्मठता से तरक्की करते हुए बीवीबेटी के साथ बेहद खुश है…’’

‘‘लेकिन, मम्मी?’’ पुन्नी ने चित्रा की बात काटी, ‘‘मम्मी तो अभी भी उसी माताजी के दब्बू बेटे की तसवीर के आगे आंसू बहा रही हैं. शर्म आती है उन्हें मम्मी कहते हुए.’’

‘‘शर्म तो मु झे भी आती है उसे अपनी सहेली कहते हुए लेकिन पुन्नी, पहले

प्यार का नशा शायद कभी नहीं उतरता. इसे विडंबना ही कहेंगे कि अभय का पहला प्यार मालिनी है और मालिनी का पहला प्यार तो पुनीत अभी तक है,’’ चित्रा ने उसांस ले कर कहा.

‘‘लेकिन मेरे लिए सब से बढ़ कर मेरे पापा हैं और आज से मैं वही करूंगी जो मेरे जन्मदाता का नहीं, मु झे अनमोल जीवन देने वाले पापा का सपना है,’’ पुन्नी ने दृढ़ता से कहा.

‘‘उस का सपना तो तेरी शादी नीलाभ से करने का है.’’

‘‘जो उन्होंने मेरी आंखों में देख कर

अपनी आंखों में बसाया है, पापा और मेरे बीच

में एक अदृश्य मोहपाश है जिसे मैं कभी टूटने नहीं दूंगी,’’ पुन्नी ने विह्वल मगर दृढ़ स्वर में कहा. चित्रा ने भावविभोर हो कर उसे गले से लगा लिया.

Hindi Kahaniyan : आखिर दोषी कौन है – क्या हुआ था रश्मि के साथ

Hindi Kahaniyan : जिसतरह दीए के साथ बाती का गहरा नाता होता है, अपनी आखिरी सांस तक वह दीए को नहीं छोड़ती, उसी के साथ ही जीती है और उस की बांहों में ही अपना दम तोड़ देती है, कुछ इसी तरह का प्यार करती थी रश्मि अपने प्रेमी आदित्य से. साथ जीनेमरने के वादे करने वाले आदित्य और रश्मि प्यार की राह पर एकदूसरे का हाथ पकड़े बहुत दूर निकल आए थे. एकदूसरे को देखे बिना कभी भी उन का दिन पूरा नहीं होता था. दोनों के परिवार भी इस रिश्ते को बहुत पसंद करते थे. दोनों के असीम प्यार को मिलाने के लिए दोनों परिवारों ने जोरशोर से तैयारियां शुरू कर दी थीं.

आदित्य की मां अनीता ही ने रश्मि के लिए उस की पसंद के कपड़े, गहने सबकुछ तैयार करवा लिया था. इकलौता ही बेटा तो था आदित्य उन का. अपने सूने आंगन में एक बेटी के कदमों को लाने की उन्हें बड़ी जल्दी थी. अपनी मंजिल को पूरा होता देख आदित्य और रश्मि की खुशी का ठिकाना न था. रश्मि के परिवार में भी जोरशोर से विवाह की तैयारियां चल रही थीं.

विवाह का मुहूर्त 1 माह बाद का निकला था. सभी को जल्दी थी, किंतु उस से पहले का कोई मुहूर्त था ही नहीं. अब सभी उस तारीख का इंतजार कर रहे थे. 1-1 कर के दिन बड़ी मुश्किल से कट रहे थे. सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थीं. वह कहते हैं न कि समय से पहले और हिस्से से ज्यादा किसी को नहीं मिलता. कुछ ऐसा ही आदित्य और रश्मि के साथ भी हुआ.

आज करवाचौथ है. रश्मि बहुत ही उत्साह में थी. आदित्य से भले ही अब तक उस का विवाह न हुआ हो पर मन ही मन वह उसे पति तो मान ही चुकी थी. यही सब सोच कर उस ने भी आज करवाचौथ का व्रत रख लिया.

सुबहसुबह आदित्य के फोन की घंटी बजी. आदित्य गहरी नींद में सो रहा था. जैसे ही देखा रश्मि का फोन है, ‘अरे इतनी सुबह रश्मि का फोन? क्यों किया होगा,’ सोचते हुए उस ने

फोन उठाया.

रश्मि ने कहा, ‘‘आदित्य, आज शाम का कोई प्रोग्राम नहीं बनाना. मैं ने आज करवाचौथ का व्रत रखा है, निर्जला तुम्हारे लिए. रात को

चांद देख कर तुम्हारे हाथों से पानी पी कर ही उपवास तोड़ूंगी. शाम को तुम मेरे लिए बिलकुल फ्री रखना.’’

‘‘अरे रश्मि यह उपवास छोड़ो यार, कहां भूखी रहोगी दिन भर.’’

‘‘नहीं आदित्य, यह व्रत तो मुझे रखना ही है. सिर्फ आज ही नहीं, हर वर्ष तुम्हारे लिए, तुम्हारी लंबी उम्र के लिए.’’

‘‘ठीक है रश्मि, तुम से कभी मैं जीत सका हूं क्या? मैं शाम को अपनेआप को तुम्हारे हवाले कर दूंगा, अब खुश?’’

‘‘आदित्य शाम को 7 बजे तक तुम मुझे लेने आ जाना, शाम को पूजा मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर पर ही करूंगी.’’

‘‘ठीक है रश्मि, जो आज्ञा.’’

रश्मि शाम का इंतजार कर रही थी. हाथों में मेहंदी, सोलहशृंगार, लाल जोड़े में सजीधजी रश्मि बहुत ही सुंदर लग रही थी. ऐसा लग रहा था मानो आज ही उस का विवाह हो.

दुलहन की तरह सजीधजी रश्मि को देख कर अनीता भी फूली नहीं समा रही थीं. चांद का इंतजार सभी कर रहे थे. रश्मि को जोर की भूख लगी थी.

रश्मि बारबार आदित्य से कह रही थी, ‘‘आदि जाओ न बाहर चांद को ढूंढ़ो, कहां छिप कर बैठा है?’’

आदित्य ने कहा, ‘‘कहां जाऊं रश्मि, मुझे तो चांद मेरी आंखों के सामने ही दिखाई दे रहा है. इस चांद के सामने उस चांद को देखने कौन जाएगा.’’

‘‘जाओ न आदि, भूख लग रही है.’’

कुछ ही समय में चांद भी निकल आया. पूजा कर के छलनी से चांद के साथ आदित्य

को निहारते हुए रश्मि ने धीरे से कहा, ‘‘आई

लव यू आदित्य.’’

आदित्य ने भी वही 3 शब्द कहते हुए अपने हाथों से उसे पानी पिलाया और मिठाई खिला कर उस का व्रत खुलवाया. रश्मि को ये क्षण ऐसे मनमोहक लग रहे थे मानो जिंदगी की सारी खुशियां सिमट कर इन पलों में समा गई हों.

रश्मि की झल सी गहरी आंखों में आदित्य को प्यार ही प्यार नजर आ रहा था. वह उस गहराई में डूबता ही चला जा रहा था.

तभी पीछे से अनीता की आवाज आई, ‘‘आदि चलो रश्मि को खाना खिलाना है या नहीं?’’

‘‘हांहां मां आते हैं.’’

दोनों डाइनिंगरूम में चले गए और फिर सब ने साथ खाना खाया. परिवार के सदस्यों के साथ बातें करते हुए रात के 12 बज गए. रश्मि का घर आदित्य के घर से बहुत दूर था. आदित्य रश्मि को छोड़ने कार से निकला.

दोनों बातें करते हुए एकदूसरे में खोए चले जा रहे थे. रात काफी हो गई थी. हर तरफ अंधेरा पसरा था. रास्ता भी सुनसान था. कहीं कोई हलचल नहीं थी. आदित्य की कार मंजिल की तरफ बढ़ रही थी कि तभी अचानक कार झटके मारने लगी और बंद हो गई.

‘‘रश्मि घबरा गई, क्या हुआ आदित्य?’’

‘‘मालूम नहीं रश्मि, अचानक क्या हो

गया. आज के पहले कभी कार इस तरह रुकी नहीं थी.’’

आदित्य ने अंदर बैठेबैठे 2-3 बार कार स्टार्ट करने की कोशिश की, किंतु वह सफल नहीं हो पाया.

‘‘रश्मि रुको, मैं बाहर बोनट खोल कर देखता हूं. क्या हो गया है, वरना फोन कर के घर से किसी को बुलाना पड़ेगा. तुम अंदर, बैठो,’’ कहते हुए आदित्य बाहर निकल गया.

तब तक अचानक मौसम का अंदाज भी बदल गया. हवा के साथ हलकीहलकी बारिश शुरू हो गई. इस बिन मौसम की बारिश से घबरा कर रश्मि भी कार से बाहर निकल आई और अपने मोबाइल से लाइट दिखाने लगी.

तभी रश्मि ने कहा, ‘‘आदि, मुझे डर लग रहा है, जल्दी से घर पर फोन कर देते हैं पापा

आ जाएंगे.’’

‘‘हां रश्मि, यह कार अपने से तो ठीक होने से रही.’’

तभी अचानक तेजी से एक कार उन के पास आ कर रुकी. उस में नशे में धुत्त 4 लड़के बैठे थे. कार से बाहर निकल कर एक लड़के ने पूछा, ‘‘क्या हुआ भाई? कोई मदद चाहिए क्या?’’

आदित्य ने कहा, ‘‘जी नहीं थैंक यू.’’

तभी एक लड़के ने आदित्य को जोर से धक्का दिया. आदित्य को बिलकुल

आइडिया नहीं था. अत: वह उस धक्के से कुछ दूर तक लड़खड़ाने के बाद संभलने लगा. तब तक दूसरे दोनों लड़कों ने रश्मि को कार में खींच लिया. तीसरा भी जल्दी से बैठ गया और चौथा ड्राइवर सीट पर पहले से ही बैठा था. उस ने तेजी से कार को भगाना शुरू कर दिया.

रश्मि चिल्लाती रही, आदित्य कार के पीछे भाग रहा था. पीछे के कांच से रश्मि की काली परछाईं कुछ क्षणों तक तड़पते हुए आदित्य को दिखाई देती रही और फिर गायब हो गई. कार दूर तक सुनसान रास्ते पर दौड़ती हुई दिखाई देती रही. आदित्य कुछ भी न कर पाया. उस की आंखों के सामने ही उस की रश्मि का हरण हो गया. एक नहीं यहां तो 4-4 रावण थे.

आदित्य ने तुरंत पुलिस को फोन लगा कर बताया. पुलिस हरकत में आए तब तक वह हैवान रश्मि को कहीं बहुत दूर ले जा चुके थे.

दोनों परिवारों में इस खबर ने तूफान ला दिया. सब चिंता में थे, सदमे में थे. घर में आंसू और सन्नाटे के सिवा कुछ भी नहीं था. दोनों परिवार इस दुख की घड़ी में साथ थे. पुलिस अपना काम कर रही थी.

2-3 घंटों के बाद उन लड़कों ने रश्मि को सड़क के किनारे झडि़यों में फेंक दिया.

उन्होंने रश्मि को धमकी देते हुए कहा, ‘‘जान प्यारी हो तो चुपचाप ही रहना वरना हम ने तुम्हारे पति का फोटो भी ले लिया है. हम उसे नहीं छोड़ेंगे, समझ.’’

रश्मि बेहोशी की हालत में सड़क के

किनारे झडि़यों में पड़ी हुई थी. सुबह मौर्निंग वाक करने आए पतिपत्नी को झडि़यों में लड़की पड़ी दिखाई दी.

तभी उस महिला ने अपने पति से कहा, ‘‘अरे यह तो कोई दुलहन लग रही है, पर इस तरह झडि़यों में… जल्दी से पुलिस को फोन करो. इस की हालत देख कर लग रहा है मामला कुछ और ही है.’’

उस के पति ने पुलिस को फोन किया. वह महिला रश्मि को होश में लाने की कोशिश कर रही थी. तब तक पुलिस भी आ गई. रश्मि को तुरंत अस्पताल ले जाया गया.

पुलिस ने आदित्य को फोन कर के बताया, ‘‘आदित्य, एक लड़की सड़क के

किनारे झडि़यों में पड़ी मिली है. उस की हालत गंभीर है. उसे हम ने अस्पताल में भरती करा दिया है. किसी बुजुर्ग दंपती को वह बेहोशी की हालत में मिली थी. उन्होंने ही हमें खबर दी है. आप आ कर देख लीजिए, लगता है यह वही है, जिस के लिए आप ने शिकायत दर्ज करवाई थी.’’

आदित्य और रश्मि के परिवार तुरंत अस्पताल पहुंच गए. रश्मि की हालत बहुत ही खराब थी. जीवन और मौत के बीच संघर्ष करती रश्मि इस वक्त बिलकुल असहाय लग रही थी. वह इस समय होश में भी नहीं थी. उस के चेहरे पर लालनीले निशान दिख रहे थे. बाकी शरीर चादर से ढका था. रश्मि की ऐसी हालत देख कर परिवार वालों की तो क्या डाक्टर और नर्स की आंखों में भी आंसू छलक आए.

आदित्य अपनी मां के कंधे पर सिर रख कर आंसू बहा रहा था. वह बहुत देर तक रश्मि की ऐसी हालत देख न पाया और वहां से बाहर निकल गया.

रश्मि को जब होश आया, दोनों परिवार

वहां मौजूद थे. उस ने चारों तरफ नजर दौड़ाई, लेकिन जिस की चाहत थी, वही उसे दिखाई नहीं दिया. उस की आंखों से आंसू बिना रुके बहते जा रहे थे.

उस के मुंह से एक ही शब्द निकल रहा था, ‘‘आदि बचाओ मुझे…’’

कुछ समय के लिए वह होश में आती, फिर उस की आंखें बंद हो जातीं. दूसरे दिन सुबह उसे पूरी तरह से होश आया. अपनी मम्मी के गले लग कर वह बुरी तरह रो रही थी. उसे सांत्वना किस तरह से दें, कोई कुछ बोल नहीं पा रहा था. सब की आंखों में सिर्फ आंसू थे. मुंह में मानो जबान नहीं है.

आखिरकार रश्मि ने चुप्पी तोड़ते हुए अपनी मम्मी से पूछा, ‘‘मम्मी आदित्य कहां है?’’

‘‘बेटा अभी तो यहीं था, शायद डाक्टर से बात करने गया होगा.’’

अनीता ने तुरंत आदित्य को फोन लगाया, ‘‘आदि कहां हो तुम? जल्दी आओ रश्मि को होश आ गया है. वह तुम्हें ही बुला रही है.’’

‘‘मां मैं उसे इस तरह तड़पता नहीं देख सकता… मैं उस का सामना नहीं कर पाऊंगा.’’

‘‘कैसी बात कर रहे हो आदित्य तुम? जल्दी से यहां आ जाओ.’’

आदित्य के मन में एक अलग ही तूफान उठा हुआ था. बलात्कार की शिकार हुई रश्मि को स्वीकार करने में अब वह हिचकिचा रहा था. इस तूफान में फंसा आदित्य अपनी मां की बात मान कर रश्मि के सामने आखिरकार आ ही गया.

रश्मि आदित्य से ऐसे लिपट गई जैसे किसी वृक्ष से बेल लिपट जाती है और उसे

छोड़ती ही नहीं. रश्मि बिना कुछ कहे रोती ही जा रही थी.

तब आदित्य ने कहा, ‘‘आई एम सौरी रश्मि, मैं तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाया,’’ इतना कहते हुए आंखों में आंसू लिए वह तुरंत कमरे से बाहर निकल गया. रश्मि अभी भी बांहें फैलाए उसे जाते देख रही थी.

अनीता को आदित्य का ऐसा व्यवहार देख कर बिलकुल अच्छा नहीं लगा. वे तुरंत रश्मि के पास आईं और उसे सीने से लगाते हुए कहने लगीं, ‘‘रश्मि बेटा सब ठीक हो जाएगा. तुम अपने आप को संभालो, हिम्मत रखो बेटा. यह बुरा वक्त था हम दोनों परिवारों के लिए… अब जितनी जल्दी हो सके, हमें इस से बाहर निकलना होगा. आदित्य अपनेआप को दोषी मान रहा है कि वह तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाया. इसलिए तुम से नजरें चुरा रहा है.’’

अगले 2 दिनों तक भी आदित्य अस्पताल नहीं आया. अनीता रोज 3-4 घंटे

रश्मि के पास आ कर रुकती थीं.

तीसरे दिन रश्मि ने पूछ ही लिया, ‘‘मां, आदित्य मुझ से मिलने क्यों नहीं आ रहा? क्या वह मुझ से नाराज है?’’

‘‘नहीं बेटा, ऐसी कोई बात नहीं, वह भी बहुत दुखी है. खुद से नाराज है. तुम्हारा सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है. मैं आज ही उसे भेजती हूं.’’

‘‘नहीं मां, जब उस की इच्छा होगी तब वह खुद आएगा. आप उस से जबरदस्ती बिलकुल

मत करना.’’

‘‘ठीक है बेटा.’’

अनीता जब घर पहुंचीं तब मन में ठान चुकी थीं कि आदित्य के मन में क्या चल रहा है, आज वे जान कर ही रहेंगी.

शाम को वे आदित्य के पास जा कर बैठीं और बड़े ही प्यार से कहा, ‘‘आदि बेटा

तुम रश्मि से मिलने आखिर क्यों नहीं जा रहे हो? आज उसे तुम्हारी बहुत जरूरत है. मैं जानती हूं तुम दुखी हो, किंतु तुम्हारा इस तरह का व्यवहार रश्मि को तोड़ देगा. जाओ जा कर उस के पास बैठो, उस से बातें करो. उसे यह विश्वास दिलाओ कि तुम उस के साथ हो.

अपने कंधे का सहारा दे कर उस के बहते आंसुओं को तुम्हें ही पोंछना होगा आदित्य. जब भी कुछ आहट होती है, उस की आंखों में केवल यह उम्मीद होती है कि दरवाजे से तुम ही अंदर आओगे. उस की आंखें हर समय केवल और केवल तुम्हें ही ढूंढ़ती रहती हैं, लेकिन हर बार उस की उम्मीद टूट जाती है, जो उस की सूनी आंखों से पानी बन कर बहने लगती है. उठो आदित्य जाओ… उस के परिवार में भी सभी को लग रहा होगा कि आदित्य आखिर क्यों नहीं आ रहा. मैं कब तक बात को संभालूंगी बेटा.’’

इतना सब सुनने के उपरांत भी आदित्य जाने के लिए तैयार नहीं हुआ. अनीता का प्यार गुस्से में बदल रहा था. वे समझ रही थीं कि आदित्य जाना नहीं चाहता.

अनीता ने गुस्से में पूछा, ‘‘आदित्य, तुम्हारे दिल में क्या चल रहा है, साफसाफ बताओ. क्या तुम अपने पांव पीछे खींच रहे हो?’’

‘‘मां आप क्या चाहती हैं? बलात्कार हुआ है उस के साथ. क्या मैं उस के साथ विवाह कर लूं? समाज, दोस्त सब मेरा मजाक उड़ाएंगे. मुझे कैसीकैसी नजरों से देखेंगे. यदि उस के साथ घर से बाहर जाऊंगा तो कैसी नजरों से उसे देखेंगे? कैसेकैसे तंज कसेंगे? ये सब सोच कर ही मैं कांप जाता हूं. मैं इस का सामना नहीं कर

सकता मां.’’

‘‘अच्छा आदित्य तो यह खिचड़ी पक रही है, तुम्हारे अंदर. मैं तो सच में यह सोच रही थी कि तुम उस की रक्षा नहीं कर पाए, इसलिए दुखी हो, शर्मिंदा हो, इसलिए उस के पास नहीं जा रहे हो. तुम्हारे ऐसे विचार सुन कर मुझे तुम्हारी मानसिकता पर तरस आ रहा है. मुझे तुम से यह उम्मीद नहीं थी. तुम ने आज मेरा सिर नीचे झका दिया है. इतने वर्षों से प्यार के वादे करने वाले, जन्मों तक साथ रहने के सपने देखने वाले, एक तूफान के आ जाने से साथी को बीच भंवर में डूबने के लिए छोड़ जाते हैं क्या? मैं ने तो रश्मि को इस घर की बेटी मान लिया है. जो भी हुआ, आखिर उस में दोषी कौन है? क्या गलती रश्मि की है?’’

‘‘मां मुझे भी बहुत दुख है पर मैं क्या करूं. मैं अपने मन को कैसे समझऊं?’’

‘‘आदि जो भी हुआ है, तुम्हें उस का सामना करना चाहिए. यों पीठ दिखाने से कुछ नहीं होगा. जो मुझे नहीं बोलना चाहिए, वह भी मैं तुम से पूछती हूं कि आज यदि ऐसा कुछ मेरे साथ हो जाए तो क्या तुम मुझे भी छोड़ दोगे?’’

‘‘मां यह क्या बोल रही हैं आप?’’

‘‘तुम्हें सुनना होगा आदित्य, समाज तो तब भी कुछ न कुछ कहेगा. मुझे कैसीकैसी नजरों से देखेगा. तुम्हारे साथ बाहर कहीं जाऊंगी तो तंज कसेगा. बोलो आदित्य बोलो… यदि तुम्हारी

बहन होती और उस के साथ ऐसा करती तो

क्या तुम उसे भी छोड़ देते? पूरा जीवन उसे अकेले रहने देते? क्या उस के विवाह की कोशिश नहीं करते? नहीं आदित्य, तब तुम कोई ऐसा लड़का अवश्य ढूंढ़ते जो उसे ये सब जान कर भी अपना लेता. तुम खुद ऐसा लड़का क्यों नहीं बन सकते आदित्य?’’

अपनी मां के इस तरह के तेवर देख कर आदित्य घबरा गया. वह कुछ

बोलता उस के पहले ही अनीता ने कहा, ‘‘तुम जैसे कुछ मर्द ही ऐसी घटनाओं को अंजाम देते

हैं और जीवनभर उस की सजा भोगनी पड़ती है स्त्री को. आदित्य तुम यह रिश्ता तोड़ना चाहते हो, तो तोड़ दो. मैं उस के लिए तुम से भी अच्छा लड़का ढूंढ़ूंगी जो उसे इसी रूप में स्वीकार करे और उतनी ही इज्जत और प्यार दे जितना उस

का हक है. इस के बाद कभी भी मुझे मां कहने की कोशिश भी मत करना,’’ कहते हुए अनीता

रो पड़ीं.

अनीता का हर शब्द आदित्य के सीने को छलनी कर गया. उसे उन का हर शब्द चुभ रहा था.

दूसरे दिन अनीता जब अस्पताल पहुंची तो वहां का दृश्य देख कर वे दंग रह गईं. आदित्य रश्मि के सिरहाने बैठे उस की आंखों से लगातार बहते आंसुओं को अपने हाथों से पोंछ रहा था. साथ ही वह कह रहा था, ‘‘रश्मि मुझे माफ कर दो. मैं तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाया.’’

रश्मि के माथे का चुंबन लेने के लिए जैसे ही वह झका उस की आंखों के आंसू

रश्मि के आंसुओं से जा मिले. यह संगम था आंसुओं के साथसाथ उन दोनों के मिलन का, आदित्य के पश्चात्ताप का, रश्मि की उम्मीदों का और अनीता के प्यार और विश्वास का.

अनीता उन्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थीं. उन्होंने जैसे ही अपने कदम वापस जाने के लिए उठाए, उस के कानों में आवाज आई, ‘‘आदि मैं

3 दिनों से दरवाजे पर टकटकी लगा कर तुम्हारा इंतजार कर रही थी. मैं जानती हूं कि मैं तुम्हारे लायक नहीं रही. सिर्फ एक बार तुम से मिल कर, तुम्हारी बांहों में सो जाना चाहती थी. आज तुम ने मेरी वह इच्छा पूरी कर दी,’’ कहते हुए वह आदित्य की बांहों से लिपट गई.

‘‘यह क्या कह रही हो रश्मि? मैं तो

तुम्हें एक बार नहीं हजारों बार पूरी जिंदगी

अपने सीने से लगा कर अपनी बांहों में रखना चाहता हूं.’’

तब तक रश्मि की मम्मी भी आ कर अनीता के साथ खड़े हो कर दुनिया का यह सब से सुंदर अलौकिक नजारा देख रही थीं. उन दोनों ने एकदूसरे को गले मिल कर बधाई दी.

तब तक आदित्य ने रश्मि को अपनी गोद में उठा लिया और कहा, ‘‘चलो रश्मि घर चलते हैं.’’

रश्मि अपना सारा दुखदर्द भूल कर

आदित्य को निहारे जा रही थी. इस समय उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो धरती पर ही उसे स्वर्ग मिल गया हो.

Hindi Love Stories : मेरा वसंत – क्या निधि को समझ पाया वसंत

Hindi Love Stories : मैं ने तुम से पूछा, ‘बुरा लगा?’

‘नहीं,’ तुम्हारा यह जवाब सुन मैं स्तब्ध रह गई कि क्या मेरे बात करने न करने से तुम को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता? पर मैं जब भी तुम से नाराज़ हो कर बात करना बंद करती हूं, दिल धड़कना भूल जाता है और दिमाग सोचना. मन करता है कि तुम मुझे आवाज़ दो और मैं उस आवाज़ में खो दूं अपनेआप को. कभी लगता, क्यों न कौल कर के सुन लूं तुम्हारी आवाज़, पर है न मेरे पास भी अहं की भावना कि क्यों करूं जब तुम्हें चाहत ही नहीं मुझे सुनने की.

मैं ने कहीं सुना था- ‘ज़िंदगी को लाइटली लेने का’. लेकिन ज़िदंगी का हरेक पन्ना जब तुम से जुड़ा हो तो कैसे इस को हलके में ले लूं.

कुछ लोग कहते हैं कि प्यारव्यार कुछ नहीं होता. बस, रासायनिक क्रिया है जो दिल और दिमाग़ को बंद कर देती है और सोचनेसमझने की क्रिया समाप्त कर देती है. पर अगर ऐसा है तो किसी एक के लिए ही दिल क्यों धड़कता है. समझ के बाहर है न, यह ये प्यारव्यार…

कितना अच्छा होता न, मेरी तरह तुम्हारा भी दिल सिर्फ़ मेरे लिए धड़कता और मेरा ही नाम तुम्हारी ज़बान पर होता. पर तुम्हारे लिए तो मेरे सिवा सभी लोग ख़ास हैं और हां, काम की अधिकता भी तो कारण है न मुझ से दूर जाने का.

कुछ प्यार अधूरा ही रहता है, क्या मेरे प्यार को भी अधूरापन ही मिलेगा. पर, मैं तो तुम्हारे ही रंगों में रंगी हूं, सो, तुम्हारा द्वारा दिया हुआ अधूरापन भी स्वीकार है मुझे.

तुम खुश रहो. जानते हो, चाहती हूं कि अपनी खुशी भी तुम्हें दे दूं, पर अपनी खुशी तुम्हें नहीं दे सकती क्योंकि मैं अधूरी हो कर कभी खुश नहीं रह सकती.

जा रही हूं तुम से दूर, कुछ दूर जहां से मैं तुम्हें तो देख सकूं पर तुम मुझे न देख सकोगे. जब मुझे लगेगा कि जितनी बेक़रारी मेरे दिल में है उतनी ही तुम्हारे दिल में पनपने लगी, तब मैं वापस आ जाऊंगी. तुम्हारी बांहों की गरमाहट मुझे बेचैन करेगी. पर इस बेचैनी में भी बहुत प्यारा एहसास कैद रहेगा.

फिर से आतुर मन मिलन के लिए.

तुम्हारी,

निधि.

यह पत्र पढ़ कर मैं कुछ देर सन्न रह गया. काठ बना खड़ा चुपचाप इस खत को बारबार पढ़ता रहा. परसों रात ही तो आया था एक सप्ताह के बाद. नाराज़ निधि को मनाने में एक घंटा लग गया. उस की नाराज़गी दूर नहीं हुई. अबोलापन 2 दिन रहा घर में. आज रात ही तो इस घुटनभरे अबोलापन से छुटकारा मिला था. फिर उस ने पूछा तो था, ‘मेरे नाराज़ होने से तुम को बुरा लगता है न?’ और मैं ने सहजता से कह दिया था, ‘नहीं.’

ओह, निधि, तुम बात नहीं करती हो, तो मैं भी परेशान हो जाता हूं. लेकिन मैं दर्शाना नहीं चाहता. मुझे लगता, अगर इस बात को तुम्हारे सामने कहूंगा तो तुम और ज़्यादा रूठने लगोगी और अगर मैं कह दूं कि नहीं बुरा लगता तुम बात करो या न करो तो तुम रूठना कम कर दोगी. मैं ने अपना फ़ायदा देखा, तुम्हारी भावनाओं को नजरअंदाज किया. मुझे माफ़ कर दो, निधि. तुम आ जाओ वापस. अब मैं सबकुछ तुम्हारे हिसाब से करूंगा. मैं चाहता हूं कि तुम्हें समय दूं, पर…

मुझे पता है, तुम मुझे बहुत प्यार करती हो. तभी तो इतना गुस्सा करती हो. गुस्सा भी प्यार का ही एक रूप है. पर मैं उस समय इसलिए नहीं मनाता क्योंकि तुम उस समय मेरी बात बिलकुल नहीं समझ पातीं. इंसान जब किसी से नाराज़ होता है तो वह उस समय हर हाल में गलत लगता है. तब समझाना गुस्से को बढ़ाना ही होता है. तुम समझती हो कि उन लमहों में मैं बहुत आराम से रहता हूं, तुम्हें क्या पता कि मैं हर रात जागता हूं सिर्फ तुम्हारी याद में, शायद कौल आ जाए और मैं सुन न पाऊं. लमहालमहा बेचैनी और बेक़रारी छाई रहती है. तब सिर्फ तुम खयालों में मेरे रहती हो. वक्त का पता नहीं चलता और खानापीना सब भूला रहता.

तुम सोचती हो कि मैं तुम्हें अनदेखा करता हूं पर कभी तुम खुद को मेरी जगह रख कर देखो तब समझ आएगा कि काम का कितना प्रैशर रहता है मेरे ऊपर. तब तुम कहोगी कि क्यों करते हो इतना काम. तो मेरी जान, काम नहीं करूंगा तो तुम्हारी ज़रूरतें और रोज की फ़रमाइश कौन पूरा करेगा.

ऐसा क्यों किया निधि? तुम जानती हो मैं तुम्हारे बगैर एक पल नहीं रह सकता. थोड़ी व्यस्तता थी और कभीकभी दोस्तों के पास बैठ जाता था, लेकिन मैं फिर भी समय निकालता था तुम्हारे लिए. हां, इधर कुछ ज़्यादा झगड़ा होने लगा था. लेकिन वज़ह मैं या तुम नहीं थीं. वज़ह थीं परिस्थितियां. पर क्या करता, नौकरी ही ऐसी है कि उस के लिए चौबीस घंटे भी कम ही हैं. तुम को कितनी बार समझाया- तुम नहीं समझोगी तो और कौन समझेगा, बताओ.

रोने का मन हुआ मेरा. दिल किया नौकरी छोड़ वहां भाग जाऊं जहां निधि मेरी प्रतीक्षा कर रही है. पर उस ने बताया ही नहीं कि कहां गई है. वसंत के मौसम में मेरी वसंत पता नहीं कहां चली गई? दिल ने जैसे धड़कना ही बंद कर दिया. कुछ पलों की जुदाई इतनी तकलीफदेह. अब समझ आ रहा है कि क्यों निधि मेरे कईकई दिनों बाद घर आने पर रूठ जाती थी. सच, अकेलापन बहुत उबाऊ होता है.

खिड़की के खुली रहने के बावजूद दम घुट रहा था. हवा ने भी जैसे मुंह मोड़ लिया हो. बाहर निकला. बागबानी की शौकीन निधि क्यारियों में एक से बढ़ कर एक पौधे लगाए हुए थी. इस पर पहले कभी ध्यान नहीं गया था मेरा. मन वहां भी नहीं लगा.

आज फिर लखनऊ जाना था. मन नहीं कर रहा था. फिर भी जाना तो था ही. और फिर इस अकेलेपन से दूर भी जाना चाहता था.

चाय पीने की इच्छा हुई. किचेन में जाते ही निधि की याद आई और मैं लौट आया. आंसुओं को पोंछते हुए तैयार हुआ और निकल गया घर से. महसूस हुआ, पीठ पर किसी की आंखों का स्पर्श. पलट कर देखा, कोई न था.

लखनऊ जाने के बाद मेरा मन वापस अपने घर जाने के लिए बेचैन होने लगा. ऐसा लगता, निधि मेरी प्रतीक्षा कर रही होगी. वापस आ गया इलाहाबाद.

घर पहुंच कर जब देखा नहीं है निधि, मन झुंझलाया और निधि पर गुस्सा भी आया. क्या वह नहीं जानती कि नौकरी उसी के सुखसुविधा के लिए करता हूं. सोचता हूं कि उसे दुनिया की सारी खुशियां मिलें. मेरा मन भी करता कि उस के साथ बैठ सारी ज़िंदगी गुजार दूं. पर बैठने से सबकुछ नहीं मिल जाता- वह यह क्यों नहीं समझती है. मन खीझ आया अपनेआप पर. निकल गया घर से. निरुद्देश्य घूमता रहा सड़कों पर. बनारस जाने वाली बस दिखी. और मैं जा बैठा उसी में.

भूख से पेट में जलन उठी. प्यास भी महसूस हुई. 2 दिनों से भूखेप्यासे बेवजह चलते जा रहा था मैं.

एक जगह बस रुकी. पारले जी बिस्कुट के साथ एक कप चाय गटक लिया. दुख हो या सुख, पेट कब शांत रहा है.

गंगाघाट पर घंटों बैठा रहा. पानी को रौंदते हुए नाव, स्टीमर की आवाज़, पंक्षियों की चहचहाहट, मछलियों का बारबार उछल कर पानी की सतह पर आना, बच्चों की हंसी, प्रेमीप्रेमिकाओं की प्यारभरी बातें, प्यारेप्यारे जोड़ों की मदमस्त हंसी, बुजुर्ग की आस्थाभरी निगाह- उदासी के गर्त में मुझे धकेलने लगीं.

सब खुश है, सिवा मेरे. मेरे हिस्से दुख क्यों दे गई निधि? गंगाआरती की तैयारी शुरू हो गई. भीड़ का बढ़ता रेला और मेरा मन इस भीड़ से मुक्ति के लिए छटपटाने लगा. मन किया कि आरती देख लूं, पर आस्था-अनास्था के बीच त्रिशंकु जैसा मन डोलने लगा और मैं चुपचाप वहां से निकल गया.

मन किया एक बार निधि को फोन करूं, शायद वह मान जाए और आ जाए फिर से मेरी बांहों में. पौकेट में हाथ डाला, मोबाइल नहीं था. बेचैन मन ने सोचा, कहां छोड़ दिया मोबाइल. फिर मन ने ही समझाया कि शायद हड़बड़ी में छोड़ आया हूं घर पर.

ठंडी हवा का झोंका आया, चला गया. आसमान की ओर देखा- साफ और सफेद बादल तैर रहे थे. कुछेक तारे भी दिख रहे थे. चांद बादलों में छिप शरारत कर रहा था. यही चांद कई बार हमारे प्यार को देखा करता था जब खुले छत पर, आसमान के नीचे मैं और निधि एकदूसरे की बांहों में खोए रहते थे. निधि कभीकभी शरमा कर कहती, ‘धत, चांद मुझे देख रहा है.’

मैं हंसते हुए कहता, ‘चांद भी तुम्हारी तरह शरमा कर छिप रहा है.’

‘कहां हो गुड़िया?’ मैं यह कहता और हंसी आ जाती. जब भी उसे गुड़िया कहता, वह आंखों को गोलगोल घुमा कर कहती, ‘मैं निधि हूं, छोटी सी गुड़िया नहीं. जिसे जब चाहो, चाबी से चला लो. यहां मेरी मरजी चलती है, समझे.’

तुम्हारी मरजी ही तो चलती थी सोना. सोना कहने पर वह मूर्ति जैसी खड़ी हो जाती और कहती, ‘सोना में सजीव का लक्षण कहां से लाओगे.’

पलकों पर आंसू आ गए. क्या कभी लौट कर नहीं आएगी निधि…

रात एक ढाबे पर सो कर गुजारा. सुबह हुई. समझ नहीं आ रहा था कि कहां जाऊं. आखिरकार घर जाने के लिए बस में बैठ गया. तभी ‘मूंगफली ले लो मूंगफली’ की आवाज़ आई. 9 या 10 साल के बच्चे की आवाज़ थी. मैं ने उस के चेहरे पर भोली मुसकान देखी. खरीद लिया एक पाव मूंगफली. निधि को बहुत पसंद है. जब भी हम सफ़र पर होते, वह जरूर खरीदती.

बस चलने लगी. कुछ यात्री ऊंघने लगे, कुछ बातों में मशगूल और कुछ खिड़की से बाहर का नज़ारा देखने में. ऊब कर मैं भी बाहर की ओर देखने लगा. मन कहीं भी नहीं लग रहा था.

वापस घर ही जाने का मन हुआ. सोचा, वहां निधि की यादों के साथ रह लूंगा.

घर पहुंचा, लौन में लगे पौधे मुरझा रहे थे. निधि की याद इन को भी आती होगी. सुना था कि पेड़पौधे भी उस के लिए उदास होते हैं जो उन्हें प्यार से सींचते व उन की देखभाल करते हैं. प्यारभरी नजरों से उन्हें देख, मुख्य दरवाजे का ताला खोल अंदर गया. अंदर किचेन से बरतन की आवाज़ आ रही थी. देखा, निधि चाय बना रही थी. मैं पागलों की तरह उस से लिपट गया, “मेरी जान, कहां चली गई थीं, तुम जानती हो कि तुम्हारे बगैर मैं नहीं रह सकता. एकएक पल एकएक बरस जैसा लग रहा था.”

निधि मुसकराई, “एहसास होना जरूरी है मेरी जान. किसी ने सच कहा है, ‘दूरियां प्यार को बढ़ाती हैं.’ मैं देख रही थी तुम्हारी बेचैनी, दिल कर रहा था, आ जाऊं तुम्हारे पास. पर कुछ देर और परेशान हाल देखने की चाहत के कारण मैं छिपी रही. तुम मुझे बहुत प्यार करते हो, राज. मैं तुम्हें छोड़ कर कभी नहीं जाऊंगी.”

“आज का दिन मेरे लिए खुशियोंभरा है. आज ही मेरा वसंत है और तुम मेरी बसंती,” मैं ने उसे चूमते हुए कहा.

Hindi Story : दिशा की दृष्टिभ्रम – क्या कभी खत्म हुई दिशा के सच्चे प्यार की तलाश

Hindi Story : खुशी से दिशा के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. फ्रैंड्स से बात करते हुए वह चिडि़यों की तरह चहक रही थी. उस की आवाज की खनक बता रही थी कि बहुत खुश है. यह स्वाभाविक भी था. मंगनी होना उस के लिए छोटी बात नहीं थी.

मंगनी की रस्म के लिए शहर के नामचीन होटल को चुना गया था. रात के 9 बज गए थे. सारे मेहमान भी आ चुके थे. फ्रैंड्स भी आ गई थीं. लेकिन मानस और उस के घर वाले अभी तक नहीं आए थे.

देर होते देख उस के पापा घबरा रहे थे. उन्होंने दिशा को मानस से पूछने के लिए कहा तो उस ने तुरंत उसे फोन लगाया. मानस ने बताया कि वे लोग ट्रैफिक में फंस गए हैं. 20-25 मिनट में पहुंच जाएंगे.

दिशा ने राहत की सांस ली. मानस के आने में देर होते देख न जाने क्यों उसे डर सा लगने लगा था. वह सोच रही थी कि कहीं उसे उस के बारे में कोई नई जानकारी तो नहीं मिल गई. लेकिन उस ने अपनी इस धारणा को यह सोच कर पीछे धकेल दिया कि वह आ तो रहा है. कोई बात होती तो टै्रफिक में फंसा होने की बात क्यों बताता.

अचानक उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. उस ने ‘हैलो’ कहा तो परिमल की आवाज आई, ‘‘2 दिन पहले ही जेल से रिहा हुआ हूं. तुम्हारा पता किया तो जानकारी मिली कि आज मानस से तुम्हारी मंगनी होने जा रही है. मैं एक बार तुम्हें देखना और तुम से बात करना चाहता हूं. होटल के बाहर खड़ा हूं. 5 मिनट के लिए आ जाओ, नहीं तो मैं अंदर आ जाऊंगा.’’

दिशा घबरा गई. जानती थी कि परिमल अंदर आ गया तो उस की फजीहत हो जाएगी. मानस को सच्चाई का पता चल गया तो वह उस से मंगनी नहीं करेगा.

उसे परिमल से मिल लेने में ही भलाई नजर आई. लोगों की नजर बचा कर वह होटल से बाहर चली गई.

गेट से थोड़ी दूर आगे परिमल खड़ा था. उस के पास जा कर दिशा गुस्से में बोली, ‘‘क्यों परेशान कर रहे हो? बता चुकी हूं कि मैं तुम से किसी भी हाल में शादी नहीं कर सकती.’’

‘‘तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद की है, फिर भी मैं तुम्हें परेशान नहीं कर सकता. मैं तो तुम से सिर्फ यह जानना चाहता हूं कि मेरी दुर्दशा करने के बाद तुम्हें कभी पछतावा हुआ या नहीं?’’

दिशा ने रूखे स्वर में जवाब दिया, ‘‘कैसा पछतावा? जो कुछ भी हुआ उस में सारा दोष तुम्हारा था. मैं ने तो पहले ही आगाह किया था कि मुझे बदनाम मत करो. आज के बाद अगर तुम ने मुझे फिर कभी बदनाम किया तो याद रखना पहली बार 3 साल के लिए जेल गए थे. अब उम्र भर के लिए जाओगे.’’

अपनी बात कह कर दिशा बिना परिमल का जवाब सुने होटल के अंदर आ गई. उस की फ्रैंडस उसे ढूंढ रही थीं. एक ने पूछ लिया, ‘‘कहां चली गई थी? तेरे पापा पूछ रहे थे.’’स्थिति संभालने के लिए दिशा ने बाथरूम जाने का बहाना कर दिया. पापा को भी बता दिया. फिर राहत की सांस ले कर सोफे पर बैठ गई.

उसे विश्वास था कि परिमल अब कभी परेशान नहीं करेगा और वह मानस के साथ आराम की जिंदगी गुजारेगी. परिमल से दिशा की पहली मुलाकात कालेज में उस समय हुई थी, जब वह बीटेक कर रही थी. परिमल भी उसी कालेज से बीटेक कर रहा था. वह उस की पर्सनैल्टी पर मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकी थी. लंबी चौड़ी कद काठी, आकर्षक चेहरा, गोरा रंग, स्मार्ट और हैंडसम.

मन ही मन उस ने ठान लिया था कि एक न एक दिन उसे पा कर रहेगी, चाहे कालेज की कितनी भी लड़कियां उस के पीछे पड़ी हों. दरअसल, उसे पता चला था कि कई लड़कियां उस पर जान न्योछावर करती हैं. यह अलग बात थी कि उस ने किसी का भी प्रेम प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था.

प्यार मोहब्बत के चक्कर में वह अपनी पढ़ाई खराब नहीं करना चाहता था. पढ़ाई में वह शुरू से ही मेधावी था. एक ही कालेज में पढ़ने के कारण दिशा उस से पढ़ाईलिखाई की ही बात करती थी. कई बार वह कैंटीन में उस के साथ चाय भी पी चुकी थी.

एक दिन कैंटीन में परिमल के साथ चाय पीते हुए उस ने कहा, ‘‘इन दिनों बहुत परेशान हूं. मेरी मदद करोगे तुम्हारा बड़ा अहसान होगा.’’

‘‘परेशानी क्या है?’’ परिमल ने पूछा. ‘‘कहते हुए शर्म आ रही है पर समाधान तुम्हें ही करना है. इसलिए परेशानी तो बतानी ही पडे़गी. बात यह है कि पिछले 4-5 दिनों से तुम रातों में मेरे सपनों में आते हो और सारी रात जगाए रहते हो.

‘‘दिन में भी मेरे दिलोंदिमाग में तुम ही रहते हो. शायद इसे ही प्यार कहते हैं. सच कहती हूं परिमल तुम मेरा प्यार स्वीकार नहीं करोगे तो मैं जिंदा लाश बन कर रह जाऊंगी.’’

परिमल ने तुरंत जवाब नहीं दिया. उस ने कुछ सोचा फिर कहा, ‘‘यह तो पता नहीं कि तुम मुझे कितना चाहती हो, पर यह सच है कि तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो.’’

दिशा के चेहरे की मुसकान का सकारात्मक अर्थ निकालते हुए उस ने आगे कहा, ‘‘मैं भी तुम्हारा प्यार पाना चाहता हूं. लेकिन मैं ने इस डर से कदम आगे नहीं बढ़ाए कि तुम अमीर घराने की हो. तुम्हारे पापा रिटायर जज हैं. भाई पुलिस में बड़े अधिकारी हैं. धनदौलत की कमी नहीं है.’’

दिशा उस की बातों को बडे़ मनोयोग से सुन रही थी. परिमल ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘मैं गरीब परिवार से हूं. पिता मामूली शिक्षक हैं. ऊपर से उन्हें 2 जवान बेटियों की शादी भी करनी है. यह  सच है कि तुम अप्सरा सी सुंदर हो. कोई भी अमीर युवक तुम से शादी कर के अपने आप को भाग्यशाली समझेगा. तुम्हारे घर वाले तुम्हारा हाथ भला मेरे हाथ में क्यों देंगे?’’

दिशा तुरंत बोली, ‘‘इतनी सी बात के लिए डर रहे हो? मुझ पर भरोसा रखो. हमारा मिलन हो कर रहेगा. हमें एक होने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती. तुम केवल मेरा प्यार स्वीकार करो, बाकी सब कुछ मेरे ऊपर छोड़ दो.’’

दिशा ने समझाया तो परिमल ने उस का प्यार स्वीकार कर लिया. उस के बाद दोनों को जब भी मौका मिलता कभी पार्क में, कभी मौल में तो कभी किसी रेस्तरां में जा कर घंटों प्यारमोहब्बत की बातें करते.

सारा खर्च दिशा की करती थी. परिमल खर्च करता भी तो कहां से? उसे सिर्फ 50 रुपए प्रतिदिन पौकेट मनी मिलती थी. उसी में घर से कालेज आनेजाने का किराया भी शामिल था.

2 महीने में ही दोनों का प्यार इतना अधिक गहरा हो गया कि एकदूसरे में समा जाने के लिए व्याकुल हो गए. अंतत: एक दिन दिशा परिमल को अपनी फ्रैंड के फ्लैट पर ले गई.

दिशा का प्यार पा कर परिमल उस का दीवाना हो गया. दिनरात लट्टू की तरह उस के आगेपीछे घूमने लगा. नतीजा यह हुआ कि पढ़ाई से मन हट गया और उसे दिशा के साथ उस की फ्रैंड के फ्लैट पर जाना अच्छा लगने लगा.

सहेली के मम्मीपापा दिन में औफिस में रहते थे. इसलिए उन्हें परेशानी नहीं होती थी. फ्रैंड तो राजदार थी ही.

इस तरह दोनों एक साल तक मौजमस्ती करते रहे. फिर अचानक दिशा को लगा कि परिमल के साथ ज्यादा दिनों तक रिश्ता बनाए रखने में खतरा है. वजह यह कि वह उस से शादी की उम्मीद में था.

दिशा ने परिमल से मिलनाजुलना बंद कर दिया. उस ने परिमल को छोड़ कर कालेज के ही एक छात्र वरुण से तनमन का रिश्ता जोड़ लिया. वरुण बहुत बड़े बिजनैसमैन का इकलौता बेटा था.

सच्चाई का पता चलते ही परिमल परेशान हो गया. वह हर हाल में दिशा से शादी करना चाहता था. लेकिन दिशा ने उसे बात करने का मौका ही नहीं दिया था. दिशा का व्यवहार देख कर परिमल ने कालेज में उसे बदनाम करना शुरू कर दिया. मजबूर हो कर दिशा को उस से मिलना पड़ा.

पार्क में परिमल से मिलते ही दिशा गुस्से में चीखी, ‘‘मुझे बदनाम क्यों कर रहे हो. मैं ने कभी कहा था कि तुम से शादी करूंगी?’’‘‘अपना वादा भूल गईं. तुम ने कहा था न कि हमारा मिलन हो कर रहेगा. तभी तो तुम्हारी तरफ कदम बढ़ाया था.’’ परिमल ने उस का वादा याद दिलाया.

‘‘मैं ने मिलन की बात की थी, शादी की नहीं. मेरी नजरों में तन का मिलन ही असल मिलन होता है. मैं ने अपना सर्वस्व तुम्हें सौंप कर अपना वादा पूरा किया था, फिर शादी के लिए क्यों पीछे पड़े हो? तुम छोटे परिवार के लड़के हो, इसलिए तुम से किसी भी हाल में शादी नहीं कर सकती.’’

परिमल शांत बैठा सुन रहा था. उस के चेहरे पर तनाव था और मन में गुस्सा. लेकिन उस सब की चिंता किए बगैर दिशा बोली, ‘‘तुम अच्छे लगे थे, इसीलिए संबंध बनाया था. अब हम दोनों को अपनेअपने रास्ते चले जाना चाहिए. वैसे भी मेरी जिंदगी में आने वाले तुम पहले लड़के नहीं हो. मेरी कई लड़कों से दोस्ती रही है. मैं सब से थोड़े ही शादी करूंगी? अगर आज के बाद मुझे कभी भी परेशान  करोगे तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा. बदनामी से बचने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं.’’

दिशा का लाइफस्टाइल जान कर परिमल को बहुत गुस्सा आया. इतना गुस्सा कि उस के वश में होता तो उस का गला दबा देता. जैसेतैसे गुस्से को काबू कर के उस ने खुद को समझाया. लेकिन सब की परवाह किए बिना दिशा उठ कर चली गई.

दिशा ने भले ही परिमल से बुरा व्यवहार किया, लेकिन उस ने उस की आंखों में गुस्से को देखा था, इसलिए उसे डर लग रहा था. उसे लगा कि परिमल अगर शांत नहीं बैठा तो उस की जिंदगी में तूफान आ सकता है.  वह बदनाम नहीं होना चाहती थी. इसलिए उस ने भाई की मदद ली. उस का भाई पुलिस में उच्च पद पर था, उसे चाहता भी था.

नमक मिर्च लगा कर उस ने परिमल को खलनायक बनाया और भाई से गुजारिश की कि परिमल को किसी भी मामले में फंसा कर  जेल भिजवा दे. फलस्वरूप परिमल को गिरफ्तार कर लिया गया. उस पर इल्जाम लगाया गया कि उस ने कालेज की एक लड़की की इज्जत लूटने की कोशिश की थी.

अदालत में सारे झूठे गवाह पेश कर दिए गए. पुलिस का मामला था, सो आरोपी लड़की भी तैयार कर ली गई. अदालत में उस का बयान हुआ तो 2-3 तारीख पर ही परिमल को 3 वर्ष की सजा हो गई.

परिमल हकीकत जानता था, लेकिन चाह कर भी वह कुछ नहीं कर सकता था. लंबी लड़ाई के लिए उस के पास पैसा भी नहीं था. उस ने चुपचाप सजा काटना मुनासिब समझा. इस से दिशा ने राहत की सांस ली. साथ ही उस ने अपना लाइफस्टाइल भी बदलने का फैसला कर लिया. क्योंकि वह यह सोच कर डर गई थी कि परिमल जैसा कोई और उस की जिंदगी में आ गया तो वह घर परिवार और समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी.

उस के दुश्चरित्र होने की बात पापा तक पहुंच गई तो वह उन की नजर में गिर जाएगी. पापा उसे इतना चाहते थे कि हर तरह की छूट दे रखी थी. उस के कहीं आनेजाने पर भी कोई पाबंदी नहीं थी. यहां तक कि उन्होंने कह दिया था कि अगर उसे किसी लड़के से प्यार हो गया तो उसी से शादी कर देंगे, बशर्ते लड़का अमीर परिवार से हो.

मम्मी थीं नहीं, 7 साल पहले गुजर गई थीं. भाभी अपने आप में मस्त रहती थीं. दिशा जब 12वीं में पढ़ती थी तो एक लड़के के प्रेम में आ कर उस ने अपना सर्वस्व सौंप दिया था. वह नायाब सुख से परिचित हुई तो उसे ही सच्चा सुख मान लिया.

वह बेखौफ उसी रास्ते पर आगे बढ़ती गई. नएनए साथी बनते और छूटते गए. वह किसी एक की हो कर नहीं रहना चाहती थी.

पहली बार परिमल ने ही उस से शादी की बात की थी. जब वह नहीं मानी तो उस ने उसे खूब बदनाम भी किया था.

वह बदनामी की जिंदगी नहीं जीना चाहती थी. इसलिए परिमल के जेल में रहते परिणय सूत्र में बंध जाना चाहती थी. तब उस की जिंदगी में वरुण आ चुका था.

परिमल के जेल जाने के 6 महीने बाद दिशा ने जब बीटेक कर लिया तो उस ने वरुण से अपने दिल की बात कही, ‘‘चोरीचोरी प्यार मोहब्बत का खेल बहुत हो गया. अब शादी कर के तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं.’’

वरुण दिशा की तरह इस मैदान का खिलाड़ी था. उस ने शादी से मना कर दिया, साथ ही उस से रिश्ता भी तोड़ दिया.

दिशा को अपने रूप यौवन पर घमंड था. उसे लगता था कि कोई भी युवक उसे शादी करने से मना नहीं करेगा. वरुण ने मना कर दिया तो आहत हो कर उस ने शादी से पहले अपने पैरों पर खड़ा होने का निश्चय किया.

पापा से नौकरी की इजाजत मिल गई तो उस ने जल्दी ही जौब ढूंढ लिया. जौब करते हुए 2 महीने ही बीते थे कि एक पार्टी में उस का परिचय रंजन से हुआ, जो पेशे से वकील था. उस के पास काफी संपत्ति थी. शादी के ख्याल से उस ने रंजन से दोस्ती की, फिर संबंध भी बनाया. लेकिन करीब एक साल बाद उस ने शादी से मना कर दिया.

रंजन से धोखा मिलने पर दिशा तिलमिलाई जरूर लेकिन उस ने निश्चय किया कि पुरानी बातों को भूल कर अब विवाह से पहले किसी से भी संबंध नहीं बनाएगी.

दिशा ने घर वालों को शादी की रजामंदी दे दी तो उस के लिए वर की तलाश शुरू हो गई. 4 महीने बाद मानस मिला. वह बहुत बड़ी कंपनी में सीईओ था. पुश्तैनी संपत्ति भी थी. उस के पिता रेलवे से रिटायर्ड थे. मम्मी हाईस्कूल में पढ़ाती थीं.

मानस से शादी होना तय हो गया तो दिशा उस से मिलने लगी. उस ने फैसला किया था कि शादी से पहले किसी से भी संबंध नहीं बनाएगी. लेकिन अपने फैसले पर वह टिकी नहीं रह सकी. हवस की आग में जलने लगी तो मानस से संबंध बना लिया.

2 महीने बाद जब मानस मंगनी से कतराने लगा तो दिशा ने पूछा, ‘‘सच बताओ, मुझ से शादी करना चाहते हो या नहीं?’’

‘‘नहीं.’’ मानस ने कह दिया.

‘‘क्यों?’’ दिशा ने पूछा. वह गुस्से में थी.

कुछ सोचते हुए मानस ने कहा, ‘‘पता चला है कि मुझ से पहले भी तुम्हारे कई मर्दों से संबंध रहे हैं.’’

पहले तो दिशा सकते में आ गई, लेकिन फिर अपने आप को संभाल लिया और कहा, ‘‘लगता है, मेरे किसी दुश्मन ने तुम्हारे कान भरे हैं. मुझ पर विश्वास करो तुम्हारे अलावा मेरे किसी से संबंध नहीं रहे.’’

मानस ने सोचने के लिए दिशा से कुछ दिन का समय मांगा, लेकिन उस ने समय नहीं दिया. उस पर दबाव बनाने के लिए दिशा ने अपने घर वालों को बताया कि मानस ने बहलाफुसला कर उस से संबंध बना लिए हैं और अब गलत इलजाम लगा कर शादी से मना कर रहा है.

उस के पिता और भाई गुस्से में मानस के घर गए. उस के मातापिता के सामने ही उसे खूब लताड़ा और दिशा की बेहयाई का सबूत मांगा.

मानस के पास कोई सबूत नहीं था. मजबूर हो कर वह दिशा से मंगनी करने के लिए राजी हो गया. 15 दिन बाद की तारीख रखी गई. आखिर वह दिन आ ही गया. मानस उस से मंगनी करने आ रहा था.

एक सहेली ने दिशा की तंद्रा भंग की तो वह वर्तमान में लौट आई. सहेली कह रही थी, ‘‘देखो, मानस आ गया है.’’

दिशा ने खुशी से दरवाजे की तरफ देखा. मानस अकेला था. उस के घर वाले नहीं आए थे. उस के साथ एक ऐसा शख्स था जिसे देखते ही दिशा के होश उड़ गए. वह शख्स था डा. अमरेंदु.

मानस को अकेला देख दिशा के भाई और पापा भी चौंके. उस का स्वागत करने के बाद भाई ने पूछा, ‘‘तुम्हारे घर वाले नहीं आए?’’

‘‘कोई नहीं आएगा.’’ मानस ने कहा.

‘‘क्यों नहीं आएगा?’’

‘‘क्योंकि मैं दिशा से शादी नहीं करना चाहता. मुझे उस से अकेले में बात करनी है? वह सब कुछ समझ जाएगी. खुद ही मुझ से शादी करने से मना कर देगी.’’

भाई और पिता के साथ दिशा भी सकते में आ गई. उस की भाभी उस के पास ही थी. उस की बोलती भी बंद हो गई थी.

दिशा के पिता ने उसे अकेले में बात करने की इजाजत नहीं दी. कहा, ‘‘जो कहना है, सब के सामने कहो.’’

मजबूर हो कर मानस ने लोगों के सामने ही कहा, ‘‘दिशा दुश्चरित्र लड़की है. अब तक कई लड़कों से संबंध बना चुकी है. 2 बार एबौर्शन भी करा चुकी है. इसीलिए मैं उस से शादी नहीं करना चाहता.’’

भाई को गुस्सा आ गया. उस ने मानस को जोरदार थप्पड़ मारा और कहा, ‘‘मेरी बहन पर इल्जाम लगाने की आज तक कभी किसी ने हिम्मत नहीं की. अगर तुम प्रमाण नहीं दोगे तो जेल की हवा खिला दूंगा.’’

‘‘भाईसाहब, आप गुस्सा मत कीजिए अभी सबूत देता हूं. जब मेरे शुभचिंतक ने बताया कि दिशा का चरित्र ठीक नहीं है, तभी से मैं सच्चाई का पता लगाने में जुट गया था. अंतत: उस का सच जान भी लिया.’’

मानस ने बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘मेरे साथ जो शख्स हैं, उन का नाम डा. अमरेंदु है. दिशा ने उन के क्लिनिक में 2 बार एबौर्शन कराया था. आप उन से पूछताछ कर सकते हैं.’’

डा. अमरेंदु ने मानस की बात की पुष्टि करते हुए कुछ कागजात दिशा के भाई और पिता को दिए. कागजात में दिशा ने एबौर्शन के समय दस्तखत किए थे.

दिशा की पोल खुल गई तो चेहरा निष्प्राण सा हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था  कि अब उसे क्या करना चाहिए. भाई और पापा का सिर शर्म से झुक गया था. फ्रैंड्स भी उसे हिकारत की नजरों से देखने लगी थीं.

दिशा अचानक मानस के पास जा कर बोली, ‘‘तुम ने मेरी जिंदगी तबाह कर दी. तुम्हें छोडूंगी नहीं. तुम्हारे जिंदगी भी बर्बाद कर के रख दूंगी. तुम नहीं जानते मैं क्या चीज हूं.’’

‘‘तुम्हारे साथ जो कुछ भी हो रहा है वह सब तुम्हारे लाइफस्टाइल की वजह से हो रहा है. इस में किसी का कोई दोष नहीं है. जब तक तुम अपने आप को नहीं सुधारोगी, ऐसे ही अपमानित होती रहोगी.’’

पलभर चुप रहने के बाद मानस ने फिर कहा, ‘‘आज की तारीख में तुम इतना बदनाम हो चुकी हो कि तुम से कोई भी शादी करने के लिए तैयार नहीं होगा.’’

वह एक पल रुक कर बोला, ‘‘हां, एक ऐसा शख्स है जो तुम्हें बहुत प्यार करता है. तुम कहोगी तो खुशीखुशी शादी कर लेगा.’’

‘‘कौन?’’ दिशा ने पूछा.

‘‘परिमल…’’ मानस ने कहा, ‘‘गेट पर उस से मिल कर आने के बाद तुम उसे भूल गई थीं, पर वह तुम्हें नहीं भूला है. होटल के गेट पर अब तक इस उम्मीद से खड़ा है कि शायद तुम मुझ से शादी करने का अपना फैसला बदल दो. कहो तो उसे बुला दूं.’’

‘‘तुम उसे कैसे जानते हो?’’ दिशा ने पूछा.

मानस ने बताया कि वह परिमल को कब और कहां मिला था.

कार पार्क कर मानस डा. अमरेंदु के साथ होटल में आ रहा था तो गेट पर परिमल मिल गया था. न जाने वह उसे कैसे जानता था. उस ने पहले अपना परिचय दिया फिर दिशा और अपनी प्रेम कहानी बताई.

उस के बाद कहा, ‘‘तुम्हें दिशा की सच्चाई भविष्य में उस से सावधान रहने के लिए बताई है. अगर उस से सावधान नहीं रहोगे तो विवाह के बाद भी वह तुम्हें धोखा दे सकती है.’’

मानस ने परिमल को अंदर चलने के लिए कहा तो उस ने जाने से मना कर दिया. कहा, ‘‘मैं यहीं पर तुम्हारे लौटने का इंतजार करूंगा. बताना कि तुम से मंगनी कर वह खुश है या नहीं?’’

कुछ सोच कर मानस ने उस से पूछा, ‘‘मान लो दिशा तुम से शादी करने के लिए राजी हो जाए तो करोगे?’’

‘‘जो हो नहीं सकता, उस पर बात करने से क्या फायदा? जानता हूं कि वह कभी भी मुझ से शादी नहीं करेगी.’’ परिमल ने मायूसी से कहा.

मानस ने परिमल की आंखों में देखा तो पाया कि दिशा के प्रति उस की आंखों में प्यार ही प्यार था. उस ने चाह कर भी कुछ नहीं कहा और डा. अमरेंदु के साथ होटल में चला आया.

मानस ने दिशा को सच्चाई से दोचार करा दिया तो उसे भविष्य अंधकारमय लगा. परिमल के सिवाय उसे कोई नजर नहीं आया तो वह उस से बात करने के लिए व्याकुल हो गई.

उस का फोन नंबर उस के पास था ही, झट से फोन लगा दिया. परिमल ने फोन उठाया तो उस ने कहा, ‘‘तुम से कुछ बात करना चाहती हूं. प्लीज होटल में आ जाओ.’’

कुछ देर बाद ही परिमल आ गया और दिशा ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो, परिमल. मैं तुम्हारा प्यार समझ नहीं पाई थी, लेकिन अब समझ गई हूं. मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. अभी मंगनी कर लो, बाद में जब कहोगे शादी कर लूंगी.’’

कुछ सोचने के बाद परिमल ने कहा, ‘‘यह सच है कि इतना सब कुछ होने के बाद भी मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. पर तुम आज भी मुझ से बेवफाई कर रही हो. सच नहीं बता रही हो. सच यह नहीं है कि मेरा प्यार तुम समझ गई हो, इसलिए मुझ से शादी करना चाहती हो. सच यह है कि आज की तारीख में तुम इतना बदनाम हो गई हो कि तुम से कोई भी शादी नहीं करना चाहता. मानस ने भी शादी से मना कर दिया है. इसीलिए अब तुम मुझ से शादी कर अपनी इज्जत बचाना चाहती हो.

‘‘तुम से शादी करूंगा तो प्यार की नहीं, समझौते की शादी होगी, जो अधिक दिनों तक नहीं टिकेगी. अत: मुझे माफ कर दो और किसी और को बलि का बकरा बना लो. मैं भी तुम्हें सदैव के लिए भूल कर किसी और से शादी कर लूंगा.’’

परिमल रुका नहीं. दिशा की पकड़ से हाथ छुड़ा कर दरवाजे की तरफ बढ़ गया. वह देखती रह गई. किस अधिकार से रोकती?

कुछ देर बाद मानस और डा. अमरेंदु भी चले गए. दिशा के घर वाले भी चले गए. सहेलियां चली गईं. महफिल खाली हो गई, पर दिशा डबडबाई आंखों से बुत बनी रही.

लेखक- राम महेंद्र राय

Hindi Love Stories : सफर की हमसफर

Hindi Love Stories :  दिल्ली के प्रेमी युगलों के लिए सब से मुफीद और लोकप्रिय जगह यानी लोधी गार्डन में स्वरूप और प्रिया हमेशा की तरह कुछ प्यार भरे पल गुजारने आए थे. रविवार की सुबह थी. पार्क में हैल्थ कोंशस लोग मॉर्निंग वाक के लिए आए हुए थे. कोई भाग रहा था तो कोई ब्रिस्क वाक कर रहा था. कुछ लोग तरहतरह के व्यायाम करने में व्यस्त थे तो कुछ दूसरों को देखने में. झील के सामने पड़ी लोहे की बेंच पर बैठे प्रिया और स्वरुप एकदूसरे में खोए हुए थे. प्रिया की बड़ीबड़ी शरारत भरी निगाहें स्वरूप पर टिकी थी. वह उसे अपलक निहारे जा रही थी. स्वरूप ने उस के हाथों को थामते हुए कहा, “प्रिया, आज तो तुम्हारे इरादे बड़े खतरनाक लग रहे हैं. ”

वह हंस पड़ी,” बिल्कुल जानेमन. इरादा यह है कि तुम्हे अब हमेशा के लिए मेरा हाथ थामना होगा. अब मैं तुम से दूर नहीं रह सकती. तुम ही मेरे होठों की हंसी हो. भला हम कब तक ऐसे छिपछिप कर मिलते रहेंगे? और फिर प्रिया गंभीर हो गई.

स्वरूप ने बेबस स्वर में कहा,” अब मैं क्या कहूं? तुम तो जानती ही हो मेरी मां को. उन्हें तो वैसे ही कोई लड़की पसंद नहीं आती उस पर हमारी जाति भी अलग है.”

“यदि उन के राजपूती खून वाले इकलौते बेटे को सुनार की गरीब बेटी से इश्क हो गया है तो अब तुम या मैं क्या कर सकते हैं? उन को मुझे अपनी बहू स्वीकार करना ही पड़ेगा. पिछले 3 साल से कह रही हूँ. एक बार बात कर के तो देखो.”

“एक बार कहा था तो उन्होंने सिरे से नकार दिया था. तुम तो जानती ही हो कि मां के सिवा मेरा कोई है भी नहीं. कितनी मुश्किलों से पाला है उन्होंने मुझे. बस एक बार वे तुम्हें पसंद कर लें फिर कोई बाधा नहीं. तुम उन से मिलने गई और उन्होंने नापसंद कर दिया तो फिर तुम तो मुझ से मिलना भी बंद कर दोगी. इसी डर से तुम्हे उन से मिलवाने नहीं ले जाता. बस यही सोचता रहता हूं कि उन्हें कैसे पटाऊं.”

“देखो अब मैं तुम से तो मिलना बंद नहीं कर सकती तो फिर तुम्हारी मां को पटाना ही अंतिम रास्ता है.”

“पर मेरी मां को पटाना ऐसी चुनौती है जैसे रेगिस्तान में पानी खोजना.”

“ओके तो मैं यह चुनौती स्वीकार करती हूं. वैसे भी मुझे चुनौतियों से खेलना बहुत पसंद है. “बड़ी अदा के साथ अपने घुंघराले बालों को पीछे की तरफ झटकते हुए प्रिया ने कहा और उठ खड़ी हुई.

“मगर तुम यह सब करोगी कैसे?” स्वरूप ने उठते हुए पूछा.

“एक बात बताओ. तुम्हारी मां इसी वीक मुंबई जाने वाली हैं न किसी ऑफिसिअल मीटिंग के लिए. तुम ने कहा था उस दिन.

“हां, वह अगले मंगल को निकल रही हैं. आजकल में रिजर्वेशन भी कराना है मुझे.”

“तो ऐसा करो, एक के बजाए दो टिकट करा लो. इस सफर में मैं उन की हमसफर बनूंगी. पर उन्हें बताना नहीं,” आंखे नचाते हुए प्रिया ने कहा तो स्वरूप की प्रश्नवाचक निगाहें उस पर टिक गईं.

प्रिया को भरोसा था अपने पर. वह जानती थी कि सफर के दौरान आप सामने वाले को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं. जब हम इतने घंटे साथ बिताएंगे तो हर तरह की बातें होंगी. उन्हें एक दूसरे को इंप्रेस करने का मौका मिलेगा. उन में दोस्ती हो सकेगी. कहने की जरुरत भी नहीं पड़ेगी. यह तय हो जाएगा कि वह स्वरूप की बहू बन सकती है. उस ने मन ही मन फैसला कर लिया था कि यह उस की आखिरी परीक्षा है.

स्वरूप ने मुस्कुराते हुए सर हिला तो दिया था पर उसे भरोसा नहीं था. उसे प्रिया का आइडिया बहुत पसंद आया था पर वह मां के जिद्दी, धार्मिक व्यवहार को जानता था. फिर भी उस ने हाँ कर दिया.

उसी दिन शाम में उस ने मुंबई राजधानी एक्सप्रेस (गाड़ी संख्या 12952 ) के एसी 2 टियर श्रेणी में 2 टिकट (एक लोअर और दूसरा अपर बर्थ )रिज़र्व कर दिया. जानबूझ कर मां को अपर बर्थ दिलाई और प्रिया को लोअर.

जिस दिन प्रिया को मुंबई के लिए निकलना था, उस से 2 दिन पहले से वह अपनी तैयारी में लगी थी. यह उस की जिंदगी का बहुत अहम सफर था. उस की ख़ुशियों की चाबी यानी स्वरुप का मिलना या न मिलना इसी पर टिका था. प्रिया ने वह सारी चीज़ें रख लीं जिन के जरिये उसे स्वरुप की मां पर इम्प्रैशन जमाने का मौका मिल सकता था.

ट्रेन शाम 4.35 पर नई दिल्ली स्टेशन से छूटनी थी. अगले दिन सुबह 8.35 ट्रेन का मुंबई अराइवल था. कुल 1385 किलोमीटर की दूरी और 16 घंटों का सफर था. इन 16 घंटों में उसे स्वरुप की मां को जानना था और अपना पूरा परिचय देना था.

वह समय से पहले ही स्टेशन पहुँच गई और बहुत बेसब्री से स्वरुप और उस की मां के आने का इंतजार करने लगी. कुछ ही देर में उसे स्वरुप आता दिखा. साथ में मां भी थी. दोनों ने दूर से ही एकदूसरे को आल द बेस्ट कहा.

ट्रेन के आते ही प्रिया सामान ले कर अपने बर्थ की तरफ बढ़ गई.  सही समय पर ट्रेन चल पड़ी. आरंभिक बातचीत के साथ ही प्रिया ने अपनी लोअर बर्थ मां को ऑफर कर दी. उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया क्यों कि उन्हें घुटनों में दर्द रहने लगा था. वैसे भी बारबार ऊपर चढ़ना उन्हें पसंद नहीं था. उन की नजरों में प्रिया के प्रति स्नेह के भाव झलक उठे. प्रिया एक नजर में उन्हें काफी शालीन लगी थी. दोनों बैठ कर दुनिया जहान की बातें करने लगे. मौका देख कर प्रिया ने उन्हें अपने बारे में सारी बेसिक जानकारी दे दी कि कैसे वह दिल्ली में रह कर जॉब कर रही है और इस तरह अपने मांबाप का सपना पूरा कर रही है. दोनों ने साथ ही खाना खाया। प्रिया का खाना चखते हुए मां ने पूछा,” किस ने बनाया? तुम ने या कामवाली रखी है?”

“कामवाली तो है आंटी पर खाना मैं खुद ही बनाती हूं. मेरी मां ने मुझे सिखाया है कि जैसा खाओ अन्न वैसा होगा मन. अपने हाथों से बनाए खाने की बात ही अलग होती है. इस में सेहत और स्वाद के साथ प्यार जो मिला होता है”.

उस की बात सुन कर मां मुस्कुरा उठीं. तुम्हारी मां ने तो बहुत अच्छी बातें सिखाई है. जरा बताओ और क्या सिखाया है उन्होंने?”

“कभी किसी का दिल न दुखाओ, जितना हो सके दूसरों की मदद करो. आगे बढ़ने के लिए दूसरे की मदद पर नहीं बल्कि अपनी काबिलियत और परिश्रम पर विश्वास करो. प्यार से सब का दिल जीतो। ”

प्रिया कहे जा रही थी और मां गौर से उसे सुन रही थीं. उन्हें प्रिया की बातें बहुत पसंद आ रही थी. इसी बीच मां बाथरूम के लिए उठी कि अचानक झटका लगने से डगमगा गई और किनारे रखे ब्रीफ़केस के कोने से पैर में चोट लग गई. चोट ज्यादा नहीं थी मगर खून निकल आया. उस ने मां को बैठाया और अपने बैग में रखे फर्स्ट ऐड बॉक्स को खोलने लगी. मां ने आश्चर्य से पूछा ,”तुम हमेशा यह डब्बा ले कर निकलती हो ?”

“हां आंटी, चोट मुझे लगे या दूसरों को मुझे अच्छा नहीं लगता। तुरंत मरहम लगा दूं तो दिल को सुकून मिल जाता है. वैसे भी जिंदगी में हमेशा किसी भी तरह की परेशानी से लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए।”

कहते हुए प्रिया ने तुरंत चोट वाली जगह पर मरहम लगा दिया और इस बहाने उस ने मां के पैर भी छू लिए. मां ने प्यार से उस का गाल थपथपाया और पूछने लगी, “तुम्हारे पापा क्या करते हैं? तुम्हारी मां हाउसवाइफ हैं या जॉब करती हैं?”

प्रिया ने बिना किसी लागलपेट के साफ़ स्वर में जवाब दिया,” मेरे पापा सुनार हैं और वे ज्वेलरी शॉप में काम करते हैं. मेरी मां हाउसवाइफ हैं. हम 2 भाईबहन हैं. छोटा भाई इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा है और मैं यहां एक एमएनसी कंपनी में काम करती हूं. मेरी सैलरी अभी 80 हजार प्रति महीने है और उम्मीद करती हूं कि कुछ सालों में अच्छा मुकाम हासिल कर लूंगी।”

“बहुत खूब!” मां के मुंह से निकला। उन की प्रशंसा भरी नजरें प्रिया पर टिकी हुई थीं, “बेटा और क्या शौक है तुम्हारे?”

“मेरी मम्मी बहुत अच्छी डांसर है. उन्होंने मुझे भी इस कला में निपुण कराया है. डांस के अलावा मुझे कविताएं लिखने और फोटोग्राफी करने का भी शौक है. तरहतरह के डिशेज तैयार करना और सब को खिला कर वाहवाही लूटना भी बहुत पसंद है.”

ट्रेन अपनी गति से आगे बढ़ रही थी और इधर प्रिया और मां की बातें भी बिना किसी रूकावट चली जा रही थी.

कोटा और रतलाम स्टेशनों के बीच जब कि ट्रेन 140 किलोमीटर प्रति घंटे की तेज रफ़्तार से चल रही थी अचानक एक झटके से रुक गई. दूरदूर तक जंगली सूना इलाका था. आसपास न तो कोई आवागमन के साधन थे और न खानेपीने की चीजें थीं. ट्रेन करीब 8-9 घंटे वहीं खड़ी रहनी थी. दरअसल पटरी में क्रैक की वजह से ट्रेन के आगे वाला डब्बा उलट गया था. यात्री घायल तो नहीं हुए मगर अफरातफरी जरूर मच गई थी. क्रैन आने और पलटे हुए डब्बे को हटाने में काफी समय लगना था. इधर प्रिया खुश हो रही थी कि इसी बहाने उसे मां के साथ बिताने को ज्यादा वक्त मिल जाएगा.

एक्सीडेंट 11 बजे रात में हुआ था और अब सुबह हो चुकी थी. यह इलाका ऐसा था कि दूरदूर तक चायपानी या कचौड़ीपकौड़ी बेचने वाला तक नजर नहीं आ रहा था. ट्रेन के पैंट्री कार में भी अब खाने की चीजें खत्म हो चुकी थी. 12 बज चुके थे. मां सोच रही थी कि चाय का इंतजाम हो जाता तो चैन आता. तब तक प्रिया पैंट्री कार से गर्म पानी ले आई. अपने पास रखी टीबैग,चीनी और मिल्क पाउडर से उस ने फटाफट गर्मगर्म चाय तैयार की और फिर टिफिन बॉक्स निकाल कर उस में से दाल की कचौड़ी और मठरी आदि कागज़ के प्लेट में रख कर नाश्ता सजा दिया। टिफिन बॉक्स निकालते समय मां ने गौर किया था कि प्रिया के बैग में डियो के अलावा भी कोई स्प्रे है.

“यह क्या है प्रिया ” मां ने उत्सुकता से पूछा तो प्रिया बोली,” आंटी यह पेपर स्प्रे है ताकि किसी बदमाश से सामना हो जाए तो उस के गलत इरादों को कभी सफल न होने दूँ. सिर्फ यही नहीं अपने बचाव के लिए मैं हमेशा एक चाकू भी रखती हूं। मैं खुद कराटे में ब्लैक बेल्ट होल्डर हूं. इसलिए खुद की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखती हूं.”

“बहुत अच्छे ! मां की खुशी चेहरे पर झलक रही थी. अच्छा प्रिया यह बताओ कि तुम अपनी सैलरी का क्या करती हो? खुद तुम्हारे खर्चे भी काफी होंगे आखिर अकेली रहती हो मेट्रो सिटी में और फिर ऑफिस में प्रेजेंटेबल दिखना भी जरूरी होता है. आधी सैलरी तो उसी में चली जाती होगी।”

“अरे नहीं आंटी। ऐसा कुछ नहीं है. मैं अपनी सैलरी के चार हिस्से करती हूं। दो हिस्से यानी 40 हजार भाई की इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पापा को देती हूं. एक हिस्सा खुद पर खर्च करती हूं और बाकी के एक हिस्से से फ्लैट का किराया देने के साथ कुछ पैसे सोशल वर्क में लगाती हूं.”

“सोशल वर्क? ” मां ने हैरानी से पुछा.

“हां आंटी, जो भी मेरे पास अपनी समस्या ले कर आता है उस का समाधान ढूंढने का प्रयास करती हूँ. कोई नहीं आया तो खुद ही ग़रीबों के लिए कपड़े, खाना वगैरह खरीद कर उन्हें बाँट देती हूँ. ”

तब तक ट्रेन वापस से चल पड़ी। दोनों की बातें भी चल रही थीं. मां ने प्रिया की तरफ देखते हुए कहा,”मेरा भी एक बेटा है स्वरूप. वह भी दिल्ली में जॉब करता है. ”

स्वरुप का नाम सुनते ही प्रिया की आँखों में स्वाभाविक सी चमक उभर आई. अचानक मां ने प्रिया की तरफ देखते हुए पुछा, “अच्छा यह बताओ बेटे कि आप का कोई ब्वॉयफ़्रेंड है या नहीं ? सचसच बताना.”

प्रिया ने 2 पल मां की आँखों में झाँका और फिर नजरें झुका कर बोली,”जी है.”

ओह ! मां थोड़ी गंभीर हो गईं,”बहुत प्यार करती हो उस से? शादी करने वाले हो तुम दोनों? ”

प्रिया को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे? इस तरह की बातों का हां में जवाब देने का अर्थ है खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना. फिर भी जवाब तो देना ही था. सो वह हंस कर बोली, “आंटी शादी करना तो चाहते हैं मगर क्या पता आगे क्या लिखा है। वैसे आप अपने बेटे के लिए कैसी लड़की ढूंढ रही हैं?”

” ईमानदार, बुद्धिमान और दिल से खूबसूरत.” मां ने जवाब दिया.

दोनों एकदूसरे की तरफ कुछ पल देखती रहीं फिर प्रिया ने पलकें झुका लीं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि मां से क्या कहे और कैसे कहे। दोनों ने ही इस मसले पर फिर बात नहीं की. प्रिया के दिमाग में बड़ी उधेड़बुन चलने लगी थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि मां ने उसे पसंद किया या नहीं. उस ने स्वरूप को वे सारी बातें मैसेज कर के बताईं . मां भी खामोश बैठी रहीं. प्रिया कुछ देर के लिए आंखें बंद कर लेट गई. उसे पता ही नहीं चला कि कब उसे नींद आ गई. मां के आवाज लगाने पर वह हड़बड़ा कर उठी तो देखा मुंबई आ चुका था और अब उसे मां से विदा लेनी थी.

स्टेशन पर उतर कर वह खुद ही बढ़ कर मां के गले लग गई. मन में एक अजीब से घबराहट थी. वह चाहती थी कि मां कुछ कहें. पर ऐसा नहीं हुआ. मां से विदा ले कर वह अपने रास्ते निकल आई. अगले दिन ही फ्लाइट पकड़ कर वापस दिल्ली लौट आई.

फिर वह स्वरुप से मिली और सारी बातें विस्तार से बताईं. ब्वॉयफ़्रेंड वाली बात भी. स्वरूप भी कुछ समझ नहीं सका कि मां को प्रिया कैसी लगी. मां 2 दिन बाद लौटने वाली थीं. दोनों ने 2 दिन बड़ी उलझन में गुजारा. उन की जिंदगी का फैसला जो होना था.

नियत समय पर मां वापस लौटी. स्वरूप बहुत बैचैन था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि मां से कैसे पूछे. वह चाहता था कि मां खुद ही उस से प्रिया की बात छेड़े. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. एक दिन और बीत गया. अब तो स्वरुप की हालत खराब होने लगी. अंततः उस ने खुद ही मां से पूछ लिया,” मां आप का सफर कैसा रहा? सह यात्री कैसे थे?”

“सब अच्छा था.” मां ने छोटा सा जवाब दिया.

स्वरूप और भी ज्यादा बैचैन हो उठा. उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे पूछे मां से. उस से रहा नहीं गया तो उस ने सीधा पूछ लिया, “और वह जो लडकी थी

जाते समय साथ में. उस ने आप का ख़याल तो रखा? ‘

” क्यों पूछ रहे हो? जानते हो क्या उसे?” मां ने प्रश्नवाचक नजरें उस पर टिका दीं.

स्वरूप घबड़ा गया. जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो, “जी ऐसा कुछ नहीं. मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा था. ”

“ओके ! सब अच्छा रहा. अच्छी थी लड़की.” मां फिर छोटा सा जवाब दे कर बाहर निकलने लगीं. लेकिन फिर ठहर गईं और बोलीं,

“हां एक बात बता दूं कि मेरे साथ जो लड़की थी न उस की कई बातों ने मुझे अचरज में डाल दिया. जानते हो मेरे दाहिने पैर में चोट लगी तो उस ने क्या

किया?

“क्या किया मां ?” अनजान बनते हुए स्वरुप ने पूछा.

“मेरे दाहिने पैर में मलहम लगाने के बहाने उस ने मेरे दोनों पैरों को छू लिया. फिर जब मैं ने उस से यह पूछा कि क्या उस का कोई बॉयफ्रेंड है तो 2 पल के लिए उस के दिमाग में एक जंग सा छिड़ गया. लग रहा था जैसे वह सोच रही हो कि अब मुझे क्या जवाब दे. एक बात और जानते हो, तेरा नाम लेते ही उस की नजरों में अजीब सी चमक आई और पलके झुक गई. मैं समझ नहीं सकी कि ऐसा क्यों है?

मां की बातें सुन कर स्वरूप के चेहरे पर घबराहट की रेखाएं खिंच गईं. वह एकटक मां की तरफ देखे जा रहा था जैसे मां उस के एग्जाम का रिजल्ट सुनाने

वाली हैं.

मां ने फिर कहा,” एक बात और बताउं स्वरूप, जब वह सो रही थी तो उस के मोबाइल स्क्रीन पर मुझे तुम्हारे कई सारे व्हाट्सएप मैसेज आते दिखे क्यों कि उस ने तुम्हारे मैसेज पॉप अप मोड में रखा था. मैसेज कुछ इस तरह के थे, ‘डोंट वरी प्रिया. मां के साथ तुम्हारा यह सफर हम दोनों की जिंदगी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है’ , ‘मां बस एक बार तुम्हें पसंद कर लें फिर हम हमेशा के लिए एक हो जाएंगे.’

फिर तो मेरा शक यकीन में बदल गया कि तुम दोनों मिल कर मुझे बेवकूफ़ बना रहे हो,” कहतेकहते मां थोड़ी गंभीर हो गईं.

स्वरूप की आँखों में बेचैनी साफ झलकने लगी,” नहीं मॉम ऐसा नहीं है.” उस ने मां के कंधे पकड़ कर कहा तो वह झटके से अलग होती हुई बोली,” देखो स्वरूप एक बात अच्छी तरह समझ लो.. .”

“क्या मॉम ?” डरासहमा सा स्वरूप खड़ा रहा.

“यही कि तुम्हारी पसंद ….” कहतेकहते मां ठहर गईं. स्वरूप को लगा जैसे उस की धड़कनें रुक जाएंगी. तभी मां खिलखिला कर हंस पड़ी,” जरा अपनी सूरत

तो देखो. ऐसा लग रहा है जैसे एग्जाम में फेल होने के बाद चेहरा बन गया हो तुम्हारा. मैं तो कह रही थी कि तुम्हारी पसंद बहुत अच्छी है. मुझे बस ऐसी

ही लड़की चाहिए थी बहू के रूप में. सर्वगुण संपन्न. रियली आई लाइक योर चॉइस.”

मां के शब्द सुन कर स्वरूप अपनी खुशी रोक नहीं पाया और मां के गले से लग गया. “आई लव यू ममा.”

मां प्यार से बेटे का कंधा थपथपाने लगीं.

Hindi Love Stories : तू आए न आए – शफीका को क्यों मिला औरत का बदनुमा दाग

Hindi Love Stories : मैं इंगलैंड से एमबीए करने के लिए श्रीनगर से फ्लाइट पकड़ने को घर से बाहर निकल रहा था तो मुझे विदा करने वालों के साथसाथ फूफीदादी की आंखों में आंसुओं का समंदर उतर आया. अम्मी की मौत के बाद फूफीदादी ने ही मुझे पालपोस कर बड़ा किया था. 2 चाचा और 1 फूफी की जिम्मेदारी के साथसाथ दादाजान की पूरी गृहस्थी का बोझ भी फूफीदादी के नाजुक कंधों पर था. ममता का समंदर छलकाती उन की बड़ीबड़ी कंटीली आंखों में हमारे उज्ज्वल भविष्य की अनगिनत चिंताएं भी तैरती साफ दिखाई देती थीं. उन से जुदाई का खयाल ही मुझे भीतर तक द्रवित कर रहा था.

कार का दरवाजा बंद होते ही फूफीदादी ने मेरा माथा चूम लिया और मुट्ठी में एक परचा थमा दिया, ‘‘तुम्हारे फूफादादा का पता है. वहां जा कर उन्हें ढूंढ़ने की कोशिश करना और अगर मिल जाएं तो बस, इतना कह देना, ‘‘जीतेजी एक बार अपनी अम्मी की कब्र पर फातेहा पढ़ने आ जाएं.’’

फूफीदादी की भीगी आवाज ने मुझे भीतर तक हिला कर रख दिया. पूरे 63 साल हो गए फूफीदादी और फूफादादा के बीच पैसिफिक अटलांटिक और हिंद महासागर को फैले हुए, लेकिन आज भी दादी को अपने शौहर के कश्मीर लौट आने का यकीन की हद तक इंतजार है.

इंगलैंड पहुंच कर ऐडमिशन की प्रक्रिया पूरी करतेकरते मैं फूफीदादी के हुक्म को पूरा करने का वक्त नहीं निकाल पाया, लेकिन उस दिन मैं बेहद खुश हो गया जब मेरे कश्मीरी क्लासफैलो ने इंगलैंड में बसे कश्मीरियों की पूरी लिस्ट इंटरनैट से निकाल कर मेरे सामने रख दी. मेरी आंखों के सामने घूम गया 80 वर्षीय फूफीदादी शफीका का चेहरा.

मेरे दादा की इकलौती बहन, शफीका की शादी हिंदुस्तान की आजादी से ठीक एक महीने पहले हुई थी. उन के पति की सगी बहन मेरी सगी दादी थीं. शादी के बाद 2 महीने साथ रह कर उन के शौहर डाक्टरी पढ़ने के लिए लाहौर चले गए. शफीका अपने 2 देवरों और सास के साथ श्रीनगर में रहने लगीं.

लाहौर पहुंचने के बाद दोनों के बीच खतों का सिलसिला लंबे वक्त तक चलता रहा. खत क्या थे, प्यार और वफा की स्याही में डूबे प्रेमकाव्य. 17 साल की शफीका की मुहब्बत शीर्ष पर थी. हर वक्त निगाहें दरवाजे पर लगी रहतीं. हर बार खुलते हुए दरवाजे पर उसे शौहर की परछाईं होने का एहसास होता.

मुहब्बत ने अभी अंगड़ाई लेनी शुरू ही की थी कि पूरे बदन पर जैसे फालिज का कहर टूट पड़ा. विभाजन के बाद हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच खतों के साथसाथ लोगों के आनेजाने का सिलसिला भी बंद हो गया.

शफीका तो जैसे पत्थर हो गईं. पूरे 6 साल की एकएक रात कत्ल की रात की तरह गुजारी और दिन जुदाई की सुलगती भट्टी की तरह. कानों में डाक्टर की आवाजें गूंजती रहतीं, सोतीजागती आंखों में उन का ही चेहरा दिखाई देता था. रात को बिस्तर की सिलवटें और बेदारी उन के साथ बीते वक्त के हर लमहे को फिर से ताजा कर देतीं.

अचानक एक दिन रेडियो में खबर आई कि हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच होगा. इस मैच को देखने जाने वालों के लिए वीजा देने की खबर इक उम्मीद का पैगाम ले कर आई.

शफीका के दोनों भाइयों ने रेलवे मिनिस्टर से खास सिफारिश कर के अपने साथसाथ बहन का भी पाकिस्तान का 10 दिनों का वीजा हासिल कर लिया. जवान बहन के सुलगते अरमानों को पूरा करने और दहकते जख्मों पर मरहम लगाने का इस से बेहतरीन मौका शायद ही फिर मिल पाता.

पाकिस्तान में डाक्टर ने तीनों मेहमानों से मिल कर अपने कश्मीर न आ सकने की माफी मांगते हुए हालात के प्रतिकूल होने की सारी तोहमत दोनों देशों की सरकारों के मत्थे मढ़ दी. उन के मुहब्बत से भरे व्यवहार ने तीनों के दिलों में पैदा कड़वाहट को काई की तरह छांट दिया. शफीका के लिए वो 9 रातें सुहागरात से कहीं ज्यादा खूबसूरत और अहम थीं. वे डाक्टर की मुहब्बत में गले तक डूबती चली जा रही थीं.

उधर, उन के दोनों भाइयों को मिनिस्टरी और दोस्तों के जरिए पक्की तौर पर यह पता चल गया था कि अगर डाक्टर चाहें तो पाकिस्तान सरकार उन की बीवी शफीका को पाकिस्तान में रहने की अनुमति दे सकती है. लेकिन जब डाक्टर से पूछा गया तो उन्होंने अपने वालिद, जो उस वक्त मलयेशिया में बड़े कारोबारी की हैसियत से अपने पैर जमा चुके थे, से मशविरा करने के लिए मलयेशिया जाने की बात कही.

साथ ही, यह दिलासा भी दिया कि मलयेशिया से लौटते हुए वे कश्मीर में अपनी वालिदा और भाईबहनों से मिल कर वापसी के वक्त शफीका को पाकिस्तान ले आएंगे. दोनों भाइयों को डाक्टर की बातों पर यकीन न हुआ तो उन्होंने शफीका से कहा, ‘बहन, जिंदगी बड़ी लंबी है, कहीं ऐसा न हो कि तुम्हें डाक्टर के इंतजार के फैसले पर पछताना पड़े.’

‘भाईजान, तलाक लेने की वजह दूसरी शादी ही होगी न. यकीन कीजिए, मैं दूसरी शादी तो दूर, इस खयाल को अपने आसपास फटकने भी नहीं दूंगी.’ 27 साल की शफीका का इतना बड़ा फैसला भाइयों के गले नहीं उतरा, फिर भी बहन को ले कर वे कश्मीर वापस लौट आए.

वापस आ कर शफीका फिर अपनी सास और देवरों के साथ रहने लगीं. डाक्टर की मां अपने बेटे से बेइंतहा मुहब्बत करती थीं. बहू से बेटे की हर बात खोदखोद कर पूछती हुई अनजाने ही बहू के भरते जख्मों की परतें उधेड़ती रहतीं.

शफीका अपने यकीन और मुहब्बत के रेशमी धागों को मजबूती से थामे रहीं. उड़तीउड़ती खबरें मिलीं कि डाक्टर मलयेशिया तो पहुंचे, लेकिन अपनी मां और बीवी से मिलने कश्मीर नहीं आए. मलयेशिया में ही उन्होंने इंगलैंड मूल की अपनी चचेरी बहन से निकाह कर लिया था. शफीका ने सुना तो जो दीवार से टिक कर धम्म से बैठीं तो कई रातें उन की निस्तेज आंखें, अपनी पलकें झपकाना ही भूल गईं. सुहागिन बेवा हो गईं, लेकिन नहीं, उन के कान और दिमाग मानने को तैयार ही नहीं थे.

‘लोग झूठ बोल रहे हैं. डाक्टर, मेरा शौहर, मेरा महबूब, मेरी जिंदगी, ऐसा नहीं कर सकता. वफा की स्याही से लिखे गए उन की मुहब्बत की शीरीं में डूबे हुए खत, उस जैसे वफादार शख्स की जबान से निकले शब्द झूठे हो ही नहीं सकते. मुहब्बत के आसमान से वफा के मोती लुटाने वाला शख्स क्या कभी बेवफाई कर सकता है? नहीं, झूठ है. कैसे यकीन कर लें, क्या मुहब्बत की दीवार इतनी कमजोर ईंटों पर रखी गई थी कि मुश्किल हालात की आंधी से वह जमीन में दफन हो जाए? वो आएंगे, जरूर आएंगे,’ पूरा भरोसा था उन्हें अपने शौहर पर.

शफीका के दिन कपड़े सिलते, स्वेटर बुनते हुए कट जाते लेकिन रातें नागफनी के कांटों की तरह सवाल बन कर चुभतीं. ‘जिन की बांहों में मेरी दुनिया सिमट गई थी, जिन के चौड़े सीने पर मेरे प्यार के गुंचे महकने लगे थे, उन की जिंदगी में दूसरी औरत के लिए जगह ही कहां थी भला?’ खयालों की उथली दुनिया के पैर सचाई की दलदल में कईकई फुट धंस गए. लेकिन सच? सच कुछ और ही था. कितना बदरंग और बदसूरत? सच, डाक्टर शादी के बाद दूसरी बीवी को ले कर इंगलैंड चला गया. मलयेशिया से उड़ान भरते हुए हवाईजहाज हिमालय की ऊंचीऊंची प्रहरी सी खड़ी पहाडि़यों पर से हो कर जरूर गुजरा होगा? शफीका की मुहब्बत की बुलंदियों ने तब दोनों बाहें फैला कर उस से कश्मीर में ठहर जाने की अपील भी की होगी. मगर गुदाज बीवी की आगोश में सुधबुध खोए डाक्टर के कान में इस छातीफटी, दर्दभरी पुकार को सुनने का होश कहां रहा होगा?

शफीका को इतने बड़े जहान में एकदम तनहा छोड़ कर, उन के यकीन के कुतुबमीनार को ढहा कर, अपनी बेवफाई के खंजर से शफीका के यकीन को जख्मी कर, उन के साथ किए वादों की लाश को चिनाब में बहा दिया था डाक्टर ने, जिस के लहू से सुर्ख हुआ पानी आज भी शफीका की बरबादी की दास्तान सुनाता है.

शफीका जारजार रोती हुई नियति से कहती थी, ‘अगर तू चाहती, तो कोई जबरदस्ती डाक्टर का दूसरा निकाह नहीं करवा सकता था. मगर तूने दर्द की काली स्यायी से मेरा भविष्य लिखा था, उसे वक़्त का ब्लौटिंगपेपर कभी सोख नहीं पाया.’

शफीका के चेहरे और जिस्म की बनावट में कश्मीरी खूबसूरती की हर शान मौजूद थी. इल्म के नाम पर वह कश्मीरी भाषा ही जानती थी. डाक्टर की दूसरी बीवी, जिंदगी की तमाम रंगीनियों से लबरेज, खुशियों से भरपूर, तनमन पर आधुनिकता का पैरहन पहने, डाक्टर के कद के बराबर थी.

इंगलैंड की चमकदमक, बेबाकपन और खुद की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए हाथ आई चाचा की बेशुमार दौलत ने एक बेगर्ज मासूम मुहब्बत का गला घोंट दिया. शफीका ने 19 साल, जिंदगी के सब से खूबसूरत दिन, सास के साथ रह कर गुजार दिए. दौलत के नशे में गले तक डूबे डाक्टर को न ही मां की ममता बांध सकी, न बावफा पत्नी की बेलौस मुहब्बत ही अपने पास बुला सकी.

डाक्टर की वादाखिलाफी और जवान बहन की जिंदगी में फैलती वीरानी और तनहाई के घनघोर अंधेरे के खौफ से गमगीन हो कर शफीका के बड़े भाई ने अपनी बीवी को तलाक देने का मन बना लिया जो डाक्टर की सगी बहन थी. लेकिन शफीका चीन की दीवार की तरह डट कर सामने खड़ी हो गई, ‘शादी के दायित्व तो इन के भाई ने नहीं निभाए हैं न, दगा और फरेब तो उन्होंने मेरे साथ किया है, कुसूर उन का है तो सजा भी उन्हें ही मिलनी चाहिए. उन की बहन ने आप की गृहस्थी सजाई है, आप के बच्चों की मां हैं वे, उस बेकुसूर को आप किस जुर्म की सजा दे रहे हैं, भाई जान? मेरे जीतेजी यह नहीं होगा,’ कह कर भाई को रोका था शफीका ने.

खौफजदा भाभी ने शफीका के बक्से का ताला तोड़ कर उस का निकाहनामा और डाक्टर के साथ खींची गई तसवीरों व मुहब्बतभरे खतों को तह कर के पुरानी किताबों की अलमारी में छिपा दिया था. जो 15 साल बाद रद्दी में बेची जाने वाली किताबों में मिले. भाभी डर गई थीं कि कहीं उन के भाई की वजह से उन की तलाक की नौबत आ गई तो कागजात के चलते उन के भाई पर मुकदमा दायर कर दिया जाएगा. लेकिन शफीका जानबूझ कर चुपचाप रहीं.

लंबी खामोशी के धागे से सिले होंठ, दिल में उमड़ते तूफान को कब तक रोक पाते. शफीका के गरमगरम आंसुओं का सैलाब बड़ीबड़ी खूबसूरत आंखों के रास्ते उन के गुलाबी गालों और लरजाते कंवल जैसे होंठों तक बह कर डल झील के पानी की सतह को और बढ़ा जाता. कलैंडर बदले, मौसम बदले, श्रीनगर की पहाडि़यों पर बर्फ जमती रही, पिघलती रही, बिलकुल शफीका के दर्दभरे इंतजार की तरह.

फूलों की घाटी हर वर्ष अपने यौवन की दमक के साथ अपनी महक लुटा कर वातावरण को दिलकश बनाती रही, लेकिन शफीका की जिंदगी में एक बार आ कर ठहरा सूखा मौसम फिर कभी मौसमेबहार की शक्ल न पा सका. शफीका की सहेलियां दादी और नानी बन गईं. आखिरकार शफीका भी धीरेधीरे उम्र के आखिरी पड़ाव की दहलीज पर खड़ी हो गईं.

बड़े भाईसाहब ने मरने से पहले अपनी बहन के भविष्य को सुरक्षित कर दिया. अपनी पैंशन शफीका के नाम कर दी. पूरे 20 साल बिना शौहर के, सास के साथ रहने वाली बहन को छोटे भाईभाभी ले आए हमेशा के लिए अपने घर. बेकस परिंदे का आशियाना एक डाल से टूटा तो दूसरी डाल पर तिनके जोड़तेजोड़ते

44 साल लग गए. चेहरे की चिकनाई और चमकीलेपन में धीरेधीरे झुर्रियों की लकीरें खिंचने लगीं.

प्यार, फिक्र और इज्जत, देने में भाइयों और उन के बच्चों ने कोई कमी नहीं छोड़ी. भतीजों की शादियां हुईं तो बहुओं ने सास की जगह फूफीसास को पूरा सम्मान दिया. शफीका के लिए कभी भी किसी चीज की कमी नहीं रही, मगर अपने गर्भ में समाए नुकीले कंकड़पत्थर को तो सिर्फ ठहरी हुई झील ही जानती है. जिंदगी में कुछ था तो सिर्फ दर्द ही दर्द.

अपनी कोख में पलते बच्चे की कुलबुलाहट के मीठे दर्द को महसूस करने से महरूम शफीका अपने भतीजों के बच्चों की मासूम किलकारियों, निश्छल हंसी व शरारतों में खुद को गुम कर के मां की पहचान खो कर कब फूफी से फूफीदादी कहलाने लगीं, पता ही नहीं चला.

शरीर से एकदम स्वस्थ 80 वर्षीया शफीका के चमकते मोती जैसे दांत आज भी बादाम और अखरोट फोड़ लेते हैं. यकीनन, हाथपैरों और चेहरे पर झुर्रियों ने जाल बिछाना शुरू कर दिया है लेकिन चमड़ी की चमक अभी तक दपदप करती हुई उन्हें बूढ़ी कहलाने से महफूज रखे हुए है.

पैरों में जराजरा दर्द रहता है तो लकड़ी का सहारा ले कर चलती हैं, लेकिन शादीब्याह या किसी खुशी के मौके पर आयोजित की गई महफिल में कालीन पर तकिया लगा कर जब भी बैठतीं, कम उम्र औरतों को शहद की तरह अपने आसपास ही बांधे रखतीं.

उन के गाए विरह गीत, उन की आवाज के सहारेसहारे चलते चोटखाए दिलों में सीधे उतर जाते. शफीका की गहरी भूरी बड़ीबड़ी आंखों में अपना दुलहन वाला लिबास लहरा जाता, जब कोई दुलहन विदा होती या ससुराल आती. उन की आंखों में अंधेरी रात के जुगनुओं की तरह ढेर सारे सपने झिलमिलाने लगते. सपने उम्र के मुहताज नहीं होते, उन का सुरीला संगीत तो उम्र के किसी भी पड़ाव पर बिना साज ही बजने लगता है.

एक घर, सजीधजी शफीका, डाक्टर का चंद दिनों का तिलिस्म सा लगने वाला मीठा मिलन, बच्चों की मोहक मुसकान, सुखदुख के पड़ाव पर ठहरताबढ़ता कारवां, मां, दादी के संबोधन से अंतस को सराबोर करने वाला सपना…हमेशा कमी बन कर चुभता रहता. वाकई, क्या 80 साल की जिंदगी जी या सिर्फ जिंदगी की बदशक्ल लाश ढोती रहीं? यह सवाल खुद से पूछने से डरती रहीं शफीका.

शफीका ने एक मर्द के नाम पूरी जिंदगी लिख दी. जवानी उस के नाम कर दी, अपनी हसरतों, अपनी ख्वाहिशों के ताश के महल बना कर खुद ही उसे टूटतेबिखरते देखती रहीं. जिस्म की कसक, तड़प को खुद ही दिलासा दे कर सहलाती रहीं सालों तक.

रिश्तेदार, शफीका से मिलते लेकिन कोई भी उन के दिल में उतर कर नहीं देख पाता कि हर खुशी के मौके पर गाए जाने वाले लोकगीतों के बोलों के साथ बजते हुए कश्मीरी साजों, डफली की हर थाप पर एक विरह गीत अकसर शफीका के कंपकंपाते होंठों पर आज भी क्यों थिरकता जाता है-

‘तू आए न आए

लगी हैं निगाहें

सितारों ने देखी हैं

झुकझुक के राहें

ये दिल बदगुमां है

नजर को यकीं है

तू जो नहीं है

तो कुछ भी नहीं है

ये माना कि महफिल

जवां है हसीं है.’

अब आज पूरे 3 महीनों बाद मुझे अचानक डायरी में फूफीदादी का दिया हुआ परचा दिखाई दिया तो इंटरनैट पर कश्मीरी मुसलमानों के नाम फिर से सर्च कर डाले. पता वही था, नाम डा. खालिद अनवर, उम्र 90 साल. फोन मिलाया तो एक गहरी लेकिन थकी आवाज ने जवाब दिया, ‘‘डाक्टर खालिद अनवर स्पीकिंग.’’

‘‘आय एम फ्रौम श्रीनगर, इंडिया, आई वांट टू मीट विद यू.’’

‘‘ओ, श्योर, संडे विल बी बैटर,’’ ब्रिटिश लहजे में जवाब मिला.

जी चाहा फूफीदादी को फोन लगाऊं, दादी मिल गया पता…वैसे मैं उन से मिल कर क्या कहूंगा, अपना परिचय कैसे दूंगा, कहीं हमारे खानदान का नाम सुन कर ही मुझे अपने घर के गेट से बाहर न कर दें, एक आशंका, एक डर पूरी रात मुझे दीमक की तरह चाटता रहा.

निश्चित दिन, निश्चित समय, उन के घर की डौरबैल बजाने से पहले, क्षणभर के लिए हाथ कांपा था, ‘तुम शफीका के भतीजे के बेटे हो. गेटआउट फ्रौम हियर. वह पृष्ठ मैं कब का फाड़ चुका हूं. तुम क्या टुकड़े बटोरने आए हो?’ कुछ इस तरह की ऊहापोह में मैं ने डौरबैल पर उंगली रख दी.

‘‘प्लीज कम इन, आई एम वेटिंग फौर यू.’’ एक अनौपचारिक स्वागत के बाद उन के द्वारा मेरा परिचय और मेरा मिलने का मकसद पूछते ही मैं कुछ देर तो चुप रहा, फिर अपने ननिहाल का पता बतलाने के बाद देर तक खुद से लड़ता रहा.

अनौपचारिक 2-3 मुलाकातों के बाद वे मुझ से थोड़ा सा बेबाक हो गए. उन की दूसरी पत्नी की मृत्यु 15 साल पहले हो चुकी थी. बेटों ने पाश्चात्य सभ्यता के मुताबिक अपनी गृहस्थियां अलग बसा ली थीं. वीकैंड पर कभी किसी का फोन आ जाता, कुशलता मिल जाती. महीनों में कभी बेटों को डैड के पास आने की फुरसत मिलती भी तो ज्यादा वक्त फोन पर बिजनैस डीलिंग में खत्म हो जाता. तब सन जैसी सफेद पलकें, भौंहें और सिर के बाल चीखचीख कर पूछने लगते, ‘क्या इसी अकेलेपन के लिए तुम श्रीनगर में पूरा कुनबा छोड़ कर यहां आए थे?’

हालांकि डाक्टर खालिद अनवर की उम्र चेहरे पर हादसों का हिसाब लिखने लगी थी मगर बचपन से जवानी तक खाया कश्मीर का सूखा मेवा और फेफड़े में भरी शुद्ध, शीतल हवा उन की कदकाठी को अभी भी बांस की तरह सीधा खड़ा रखे हुए है. डाक्टर ने बुढ़ापे को पास तक नहीं फटकने दिया. अकसर बेटे उन के कंधे पर हाथ रख कर कहते हैं, ‘‘डैड, यू आर स्टिल यंग दैन अस. सो, यू डौंट नीड अवर केयर.’’ यह कहते हुए वे शाम से पहले ही अपने घर की सड़क की तरफ मुड़ जाते हैं.

शरीर तो स्वस्थ है लेकिन दिल… छलनीछलनी, दूसरी पत्नी से छिपा कर रखी गई शफीका की चिट्ठियां और तसवीरों को छिपछिप कर पढ़ने और देखने के लिए मजबूर थे. प्यार में डूबे खतों के शब्द, साथ गुजारे गिनती के दिनों के दिलकश शाब्दिक बयान, 63 साल पीछे ले जाता, यादों के आईने में एक मासूम सा चेहरा दिखलाई देने लगता. डाक्टर हाथ बढ़ा कर उसे छू लेना चाहते हैं जिस की याद में वे पलपल मरमर कर जीते रहे. बीवी एक ही छत के नीचे रह कर भी उन की नहीं थी. दौलत का बेशुमार अंबार था. शानोशौकत, शोहरत, सबकुछ पास में था अगर नहीं था तो बस वह परी चेहरा, जिस की गरम हथेलियों का स्पर्श उन की जिंदगी में ऊर्जा भर देता.

मेरे अपनेपन में उन्हें अपने वतन की मिट्टी की खुशबू आने लगी थी. अब वे परतदरपरत खुलने लगे थे. एक दिन, ‘‘लैपटौप पर क्या सर्च कर रहे हैं?’’

‘‘बेटी के लिए प्रौपर मैच ढूंढ़ रहा हूं,’’ कहते हुए उन का गला रुंधने लगा. उन की यादों की तल्ख खोहों में उस वक्त वह कंपा देने वाली घड़ी शामिल थी, जब उन की बेटी का पति अचानक बिना बताए कहीं चला गया. बहुत ढूंढ़ा, इंटरनैशनल चैनलों व अखबारों में उस की गुमशुदगी की खबर छपवाई, लेकिन सब फुजूल, सब बेकार. तब बेटी के उदास चेहरे पर एक चेहरा चिपकने लगा. एक भूलाबिसरा चेहरा, खोयाखोया, उदास, गमगीन, छलछला कर याचना करती 2 बड़ीबड़ी कातर आंखें.

किस का है यह चेहरा? दूसरी बीवी का? नहीं, तो? मां का? बिलकुल नहीं. फिर किस का है, जेहन को खुरचने लगे, 63 साल बाद यह किस का चेहरा? चेहरा बारबार जेहन के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. किस की हैं ये सुलगती सवालिया आंखें? किस का है यह कंपकंपाता, याचना करता बदन, मगर डाक्टर पर उस का लैशमात्र भी असर नहीं हुआ था. लेकिन आज जब अपनी ही बेटी की सिसकियां कानों के परदे फाड़ने लगीं तब वह चेहरा याद आ गया.

दुनियाभर के धोखों से पाकसाफ, शबनम से ज्यादा साफ चेहरा, वे कश्मीर की वादियां, महकते फूलों की लटकती लडि़यों के नीचे बिछी खूबसूरत गुलाबी चादर, नर्म बिस्तर पर बैठी…खनकती चूडि़यां, लाल रेशमी जोड़े से सजा आरी के काम वाला लहंगाचोली, मेहंदी से सजे 2 गोरे हाथ, कलाई पर खनकती सोने की चूडि़यां, उंगलियों में फंसी अंगूठियां. हां, हां, कोई था जिस की मद्धम आवाज कानों में बम के धमाकों की तरह गूंज रही थी, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी खालिद, हमेशा.

लाहौर एयरपोर्ट पर अलविदा के लिए लहराता हाथ, दिल में फांस सी चुभी कसक इतनी ज्यादा कि मुंह से बेसाख्ता चीख निकल गई, ‘‘हां, गुनहगार हूं मैं तुम्हारा. तुम्हारे दिल से निकली आह… शायद इसीलिए मेरी बेटी की जिंदगी बरबाद हो गई. मेरे चाचा के बहुत जोर डालने पर, न चाहते हुए भी मुझे उन की अंगरेज बेटी से शादी करनी पड़ी. दौलत का जलवा ही इतना दिलफरेब होता है कि अच्छेअच्छे समझदार भी धोखा खा जाते हैं.

‘‘शफीका, तुम से वादा किया था मैं ने. तुम्हें लाहौर ला कर अपने साथ रखने का. वादा था नए सिरे से खुशहाल जिंदगी में सिमट जाने का, तुम्हारी रातों को हीरेमोती से सजाने का, और दिन को खुशियों की चांदनी से नहलाने का. पर मैं निभा कहां पाया? आंखें डौलर की चमक में चौंधिया गईं. कटे बालों वाली मोम की गुडि़या अपने शोख और चंचल अंदाज से जिंदगी को रंगीन और मदहोश कर देने वाली महक से सराबोर करती चली गई मुझे.’’

अचानक एक साल बाद उन का दामाद इंगलैंड लौट आया, ‘‘अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा. आप की बेटी के साथ ही रहूंगा. वादा करता हूं.’’

दीवानगी की हद तक मुहब्बत करने वाली पत्नी को छोड़ कर दूसरी अंगरेज औरत के टैंपरेरी प्यार के आकर्षण में बंध कर जब वह पूरी तरह से कंगाल हो गया तो लौटने के लिए उसे चर्चों के सामने खड़े हो कर वायलिन बजा कर लोगों से पैसे मांगने पड़े थे.

पति की अपनी गलती की स्वीकृति की बात सुन कर बेटी बिलबिला कर चीखी थी, ‘‘वादा, वादा तोड़ कर उस फिनलैंड वाली लड़की के साथ मुझ पत्नी को छोड़ कर गए ही क्यों थे? क्या कमी थी मुझ में? जिस्म, दौलत, ऐशोआराम, खुशियां, सबकुछ तो लुटाया था तुम पर मैं ने. और तुम? सिर्फ एक नए बदन की हवस में शादी के पाकीजा बंधन को तोड़ कर चोरों की तरह चुपचाप भाग गए. मेरे यकीन को तोड़ कर मुझे किरचियों में बिखेर दिया.

‘‘तुम को पहचानने में मुझ से और मेरे बिजनैसमैन कैलकुलेटिव पापा से भूल हो गई. मैं इंगलैंड में पलीपढ़ी हूं, लेकिन आज तक दिल से यहां के खुलेपन को कभी भी स्वीकार नहीं कर सकी. मुझ से विश्वासघात कर के पछतावे का ढोंग करने वाले शख्स को अब मैं अपना नहीं सकती. आई कांट लिव विद यू, आई कांट.’’ यह कहती हुई तड़प कर रोई थी डाक्टर की बेटी.

आज उस की रुलाई ने डाक्टर को हिला कर रख दिया. आज से 50 साल पहले शफीका के खामोश गरम आंसू इसी पत्थरदिल डाक्टर को पिघला नहीं सके थे लेकिन आज बेटी के दर्द ने तोड़ कर रख दिया. उसी दम दोटूक फैसला, दामाद से तलाक लेने के लिए करोड़ों रुपयों का सौदा मंजूर था क्योंकि बेटी के आंसुओं को सहना बरदाश्त की हद से बाहर था.

डाक्टर, शफीका के कानूनी और मजहबी रूप से सहारा हो कर भी सहारा न बन सके, उस मजलूम और बेबस औरत के वजूद को नकार कर अपनी बेशुमार दौलत का एक प्रतिशत हिस्सा भी उस की झोली में न डाल सके. शफीका की रात और दिन की आह अर्श से टकराई और बरसों बाद कहर बन कर डाक्टर की बेटी पर टूटी. वह मासूम चेहरा डाक्टर को सिर्फ एक बार देख लेने, एक बार छू लेने की चाहत में जिंदगी की हर कड़वाहट को चुपचाप पीता रहा. उस पर रहम नहीं आया कभी डाक्टर को. लेकिन आज बेटी की बिखरतीटूटती जिंदगी ने डाक्टर को भीतर तक आहत कर दिया. अब समझ में आया, प्यार क्या है. जुदाई का दर्द कितना घातक होता है, पहाड़ तक दरक जाते हैं, समंदर सूख जाते हैं.

मैं यह खबर फूफीदादी तक जल्द से जल्द पहुंचाना चाहता था, शायद उन्हें तसल्ली मिलेगी. लेकिन नहीं, मैं उन के दिल से अच्छी तरह वाकिफ था. ‘मेरे दिल में डाक्टर के लिए नफरत नहीं है. मैं ने हर लमहा उन की भलाई और लंबी जिंदगी की कामना की है. उन की गलतियों के बावजूद मैं ने उन्हें माफ कर दिया है, बजी,’ अकसर वे मुझ से ऐसा कहती थीं.

मैं फूफीदादी को फोन करने की हिम्मत जुटा ही नहीं सका था कि आधीरात को फोन घनघना उठा था, ‘‘बजी, फूफीदादी नहीं रहीं.’’ क्या सोच रहा था, क्या हो गया. पूरी जिंदगी गीली लकड़ी की तरह सुलगती रहीं फूफीदादी.

सुबह का इंतजार मेरे लिए सात समंदर पार करने की तरह था. धुंध छंटते ही मैं डाक्टर के घर की तरफ कार से भागा. कम से कम उन्हें सचाई तो बतला दूं. कुछ राहत दे कर उन की स्नेहता हासिल कर लूं मगर सामने का नजारा देख कर आंखें फटी की फटी रह गईं. उन के दरवाजे पर एंबुलैंस खड़ी थी. और घबराई, परेशान बेटी ड्राइवर से जल्दी अस्पताल ले जाने का आग्रह कर रही थी. हार्टअटैक हुआ था उन्हें. हृदयविदारक दृश्य.

मैं स्तब्ध रह गया. स्टेयरिंग पर जमी मेरी हथेलियों के बीच फूफीदादी का लिखा खत बर्फबारी में भी पसीने से भीग गया, जिस पर लिखा था, ‘बजी, डाक्टर अगर कहीं मिल जाएं तो यह आखिरी अपील करना कि वे मुझ से मिलने कश्मीर कभी नहीं आए तो मुझे कोई शिकवा नहीं है लेकिन जिंदगी के रहते एक बार, बस एक बार, अपनी मां की कब्र पर फातेहा पढ़ जाएं और अपनी सरजमीं, कश्मीर की खूबसूरत वादियों में एक बार सांस तो ले लें. मेरी 63 साल की तपस्या और कुरबानियों को सिला मिल जाएगा. मुझे यकीन है तुम अपने वतन से आज भी उतनी ही मुहब्बत करते हो जितनी वतन छोड़ते वक्त करते थे.’

गुनाहों की सजा तो कानून देता है, लेकिन किसी का दिल तोड़ने की सजा देता है खुद का अपना दिल.

‘तू आए न आए,

लगी हैं निगाहें

सितारों ने देखी हैं

झुकझुक के राहें…’

इस गजल का एकएक शब्द खंजर बन कर मेरे सीने में उतरने लगा और मैं स्टेयरिंग पर सिर पटकपटक कर रो पड़ा.

Love Story In Hindi : कसक – क्या प्रीति अलग दुनिया बसा पाई

Love Story In Hindi : ‘‘मैंअपनी कार से जैसे ही घर के आंगन में घुसा मेरी नजर बोगनवेलिया पर पड़ी. सच कितना मनमोहक रंग था. उस का खिलाखिला सा चटक रानी कलर, कितना खूबसूरसूत लग रहा था. फिर एक ठंडी हवा का झंका प्रीति की याद दिला गया…

लाख कोशिश करने पर भी उसे भुला पाना आसान नहीं. उस ने बौटनी विषय (वनस्पति शास्त्र) में एमएससी की थी. तभी तो उसे पेड़पौधों का बहुत ज्ञान था. हर पौधे के बारे में वह बताती रहती थी कि आरुकेरिया लगाना हो तो जोड़े में लगाना चाहिए.

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लेकिन एक पौधा ही उस का बहुत महंगा आता था. मैं ने कहा था कि यदि शौक पूरा करना है तो एक ही ला कर लगा लो. उस ने सामने लान में कई रंगों के गुलाब ला कर लगा ये थे जो उस घर में आज भी उस की शोभा बढ़ा रहे थे. उस के बाद उस ने बहुत ही खूबसूरसूत और दुलर्भ पौधे मंगवा कर लगवा ये जिन के बारे में मैं जानता भी नहीं था.

वह कहती थी, ‘‘युक्लिपटिस तो घर में कभी भूल कर भी मत लगा न… उस की जड़ें जमीन का सारा पानी सोख जाती हैं और उसे देखने के लिए गरदन पूरी ऊपर करनी पड़ती है,’’ और वह अपनी गरदन पूरी ऊपर कर के बताती.

प्रीति की उस अदा पर हंसी आ जाती थी. मैं मन ही मन सोचता कि कब तक उसे याद कर के पलपल मरता रहूंगा? मुझे उसे भूल जाना चाहिए. मगर दूसरे ही पल मन ही मन सोचता कि उसे भूल जाना इतना आसान नहीं है.

घर में घुसने से पहले ही मन उदास हो  गया. घर के बाहर जो मेरी नेम प्लेट लगी थी, वह भी उसी ने बनवाई थी और उसे देख कर कहा था कि वाह मोहित सिंहजी आप तो बड़े रोबदार लग रहे हो.

उस दिन रविवार था. किताबों की अलमारी साफ किए बहुत समय हो गया था. सो मैं ने यह निश्चय किया कि बहादुर को कह दूंगा, उसे जब समय मिलेगा, वह अपने हिसाब से इस की सफाई कर देगा. लेकिन बहादुर इस की सफाई करे उस के पहले कुछ बेकार किताबों  को रद्दी में निकालने के लिए उन्हें एक बार देख लेना चाहिए, यह सोच कर मैं ने किताबों की अलमारी खोली और किताबें निकालने लगा.

2 पुरानी किताबों के बीच में से एक खूबसूरत सा कार्ड निकला, जिस पर लिखा था ‘मोहित वैड्स प्रीति.’ यह कार्ड भी उस ने ही पसंद किया था. कहने लगी थी कि अगर तुम्हें भी पसंद हो तो इस में हम लाल रंग की जगह हलका गुलाबी और सुनहरी रंग करवा दें.

आज भी वह शादी का कार्ड ज्यों का त्यों था और मुंह चिड़ा रहा था कि तुम जो इतना अपनी मुहब्बत का दम  भरते थे, उस का क्या हुआ.

सच, वह प्रेम विवाह था या पारंपरिक विवाह, कोई कह नहीं सकता था. मैं ने प्रीति को देखा, वह मुझे इतनी पसंद आ गई कि यह चाहत प्रेम में कब बदल गई पता ही नहीं चला. फिर भी यह कहना गलत होगा कि यह प्रेम विवाह था. मैं ने घर वालों की रजामंदी से सभी रिश्तेदारों के बीच हिंदू संस्कारों को पूरा करते हुए पारंपरिक तरीके से यह विवाह किया था.

प्रीति दुलहन के रूप में घर आई. इतनी खूबसूरसूत बहू पा कर सभी खुश थे. प्रीति को जैसे कुदरत ने स्वयं अपने हाथों से बनाया हो. जो भी उसे देखता मुग्ध हुए बिना नहीं रहता था. बोलती तो जैसे वातावरण में मधुर संगीत बज उठता, चलती तो जैसेजैसे धरतीआसमान मंत्रमुग्ध हो देखने लगते. रूप ऐसा कि हाथ रख दो तो मैली हो जाए. गुणों की खान थी वह. ऊपर से सुरुचिपूर्ण रहनसहन उस की सुदरता में चार चांद लगा देता था.

वह कालेज में व्याख्या के पद पर 2 साल से कार्यरत थी. मुझे तो लगता था जैसे मुझे मनमांगी मुराद मिल गई हो. शादी से पहले मैं ने न जाने कितनी लड़कियां देखी थीं, परंतु हर बार यह कह कर टाल दिया कि इसे देख कर मन के शिवालय में घंटी नहीं बजी. जब प्रीति को देखा तो मेरे मनमंदिर में मधुर घंटियां बज उठी थी. कितनी लड़कियों की तसवीरें देखी, लेकिन कोई मन के अलबम में फिर नहीं हुई, लेकिन प्रीति मन में ऐसी बसी कि फिर किसी लड़की की तरफ आंख उठा कर नहीं देखा.

मुझे आज भी याद है वह शादी का दिन, उस के साथ बीते वे मधुर क्षण, कितनी कोमल, कितनी प्यारी, कितनी अच्छी थी प्रीति. शादी के कुछ महीने मुहब्बत की बातें करते, घूमतेघूमते पलक झपकते ही निकल गए. उन दिनों प्रीति के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता था. मैं ही नहीं सारे घर वाले खासकर के मम्मीपापा भी उस की तारीफ करते नहीं थकते थे. ऐसा कुछ विशेष था उस में जो हर किसी को दीवाना बना देता था.

मुझे भी मेरे सभी दोस्त छेड़ते थे कहते कि देखो इस ने तो भाभी पर मोहित हो कर अपना नाम सार्थक कर लिया.

शादी के बाद मुश्किल से 6 महीने बीते होंगे कि मेरी पोस्टिंग देहरादून हो गई. मैं प्रीति को ले कर देहरादून आ गया. उस ने अपनी नौकरी से कुछ दिनों की छुट्टी ले ली. मैं ने तब भी बहुत समझया था, ‘‘मेरी तो जगहजगह पोस्टिंग होती रहेगी? तुम छुट्टी कब तक लेती रहोगी. यह नौकरी छोड़ दो और आराम से मेरे साथ चल कर रहो.’’

मगर उस समय वह मेरी बात टाल गई. बात आईगई हो गई और हम वहां पहुंच गए. वहां मुझे बंगला मिल गया. हम दोनों ने अपने घर को मनचाहे रूप में सजाया. कई प्लान बनाए. ऐसे करेंगे, वैसे करेंगे, यह होगा, वह होगा और न जाने क्याक्या सोचते रहते थे. हंसतेखिलखिलाते, हाथों में हाथ डाले जीवन के वे सुहाने पल पंख लगा कर उड़ गए.

उस समय मैं अपनेआप को दुनिया का सब से खुशहाल इंसान समझने लगा था. यहां आने के बाद मैं उसे अपने से दूर भेजना नहीं चाहता था. मैं चाहता था वह सदा मेरी बांहों के घेरे में रहे. हर पल मेरे घर को महकाती रहे. तो इस में मैं ने क्या गलत चाहा था.

हर पति अपनी पत्नी को इसी तरह चाहता है. मैं ने उस से कहा भी था कि मेरी इतनी अच्छी नौकरी है, सब सुखसुविधाएं हैं, तुम अपनी नौकरी से इस्तीफा दे कर यहीं रहो या यहां के कालेज में जौब कर लो.

मुझे लगा वह मान गई. फिर मैं निश्चिंत हो गया. मैं तो यही सोचता था कि लड़कियां तभी नौकरी करती हैं जब वे जीवनयापन के लिए मजबूर हो जाती हैं.

प्रीति ने मुझ से झठ बोला. उस ने नौकरी से इस्तीफा नहीं दिया बल्कि अपनी छुट्टियां बढ़ा ली थीं. मुझे लगता था कि वह मेरे साथ खुश है. उस ने यहां आ कर जाना कि यहां जिंदगी कितनी अलग है. यहां एक औफिस क्लब था, जिस का मैं भी सदस्य था. वहां पार्टियां होती रहती थीं. उसे पार्टियों में जाना अच्छा लगता था.

शुरूशुरू  में वह क्लब में डांस करने में हिचकिचाती थी. उस समय मैं ने ही उसे बहुत संबल दिया. मेरे प्रोत्साहित करने पर धीरेधीरे वह खुलने लगी और जल्द ही वह पार्टी में आकर्षण का केंद्र बनती चली गई. तब मुझे बुरा नहीं लगा था.

मैं अपने सहकर्मियों के बीच गर्व महसूस करने लगा था, यह सोच कर कि सब की बीवियों में मेरी बीवी ही इतनी सुंदर और आकर्षक है.

अब सोचता हू कि शायद मैं ने वहीं गलती कर दी. यदि मैं उसे वहीं रोक देता, मैं उसे वहीं समझ जाता, तो शायद इतनी बात नहीं बढ़ती. परंतु नहीं मुझे बाद में समझ आया कि प्रीति बंध कर रहने वाली इंसान नहीं थी, वह तो स्वतंत्र आकाश में उड़ान भरने वाला परिंदा थी. उस ने घर की परिधि में रहना नहीं सीखा था. यहां आ कर उसे उड़ने के लिए खुला आसमान मिल गया था.

उसे सजनासंवरना, मौजमस्ती करना, सैरसपाटे, होटलों में खाना और शौपिंग करना बहुत पसंद था. शुरूशुरू में उस के मोह में यह सब मुझे भी गलत नहीं लगता था. लेकिन हर बात की जब अति हो जाती है तब वही बात बुरी लगने लगती है.

यहां आए अभी कुछ दिन ही हुए थे. एक दिन उस ने कहा, ‘‘जानू हम शादी के बाद कहीं हनीमून पर नहीं गए.’’

‘‘चलो न कहीं चलते हैं,’’ मैं भी उसे मना नहीं कर सका, ‘‘तुम बताओ कहां चलना है.’’

‘‘जहां तुम कहो, चलते हैं,’’ और उस के कहने पर हम दोनों ने कश्मीर का ट्रिप प्लान किया.

फिरदौस ने सच ही कहा है कि कश्मीर धरती का स्वर्ग है. यह वहां जा कर ही जाना. हरीभरी वादियां, कलकल बहती नदियां, बर्फ से ढके पर्वत मन मोह लेते. श्रीनगर में डलझल, शिकारे और गुलमर्ग, सोनमर्ग के बर्फीले पहाड़, फूलों से लदे बगीचे, देवदार के ऊंचेऊंचे वृक्ष आदि सभी कुछ बहुत ही मनमोहक. वह उन नजारों में खो कर रह गई. जगहजगह घूमना, फोटो खिंचाना उस का शौक था.

मैं ने भी उसे बहुत घुमाया, ढेरों तोहफे दिए, जी भर कर प्यार किया. उस के प्रेम में डूबा हुआ था मैं.

तभी फिर अचानक मुझे उस के व्यवहार पर संदेह होने लगा. मैं जब भी औफिस से घर लौट कर आता तो वह कभीकभी घर पर नहीं मिलती थी. पूछने पर बहाने बना देती थी. धीरेधीरे वह मुझे इग्नोर करने लगी. फिर कई बार उसे किसी और के साथ हाथ में हाथ डाले हंसतेबतियाते देख संदेह गहराने लगा था.

जब मैं उस से पूछता कि वह कौन था तो जवाब में कहती कि तुम बेकार ही शक करते हो. वह तो मेरा दोस्त था.

इस बात से मैं क्षुब्ध रहने लगा. वह मुझे धोखा दे रही थी. मैं उस के प्रेम में इतना पागल था कि उस के द्वारा दिए जा रहे धोखे को धोखा मानने को तैयार ही नहीं था. मेरा प्यार मुझ से दूर होता जा रहा था. उस के व्यवहार में, मैं बदलाव महसूस कर रहा था. ऐसा लगता कि वह मुझ से बोर हो चुकी है और अब कोई दूसरा तलाश रही है.

कई बार मन करता कि पूंछूं कि प्रीति मेरे प्यार में क्या कमी रह गई थी? तुम किस बात का मुझ से बदला ले रही हो? अब मुझ से पहले जैसा प्यार नहीं रहा तुम्हें. आखिर क्यों?

उस की तरफ से किसी भी क्यों का कोई जवाब नहीं था. मेरा मन बहुत दुखी था और सांत्वना देने वाला कोई नहीं था.

कई बार घर में अकेले बैठे सोचता रहता था कि मुझ से कहां गनती हो गई? क्या प्रीति को चुनने में मुझ से कोई भूल हुई? कभीकभी बहुत गुस्सा भी आता. आखिर मैं एक मर्द हूं, प्रीति का मुझे अनदेखा करना, उस का बेगानापन, पराए लोगों के साथ उस का घूमना, कईकई घंटे घर से गायब रहना अब सहन नहीं हो रहा था. मेरा दिल टूट चुका था. फिर भी मैं ने सब्र किया यह सोच कर कि सब ठीक हो जाए.

एक रात क्लब में पार्टी थी. उस समय प्रीति बहुत खूबसूरसूत लग रही थी. थोड़ी देर

में मैं ने देखा वह अपने होश में नहीं थी. उस ने शायद ज्यादा पी ली थी. यह मैं ने पहली बार देखा, उस के हाथ में सिगरेट भी थी और वह अफसरों के बीच में बेतरह पश्चिमी संगीत पर नाच रही थी. मेरी सहनशक्ति जवाब दे चुकी थी.

मैं ने उस के पास जा कर कहा, ‘‘प्रीति चलो घर चलते हैं.’’

उस ने मेरा हाथ झटक दिया. मैं ने फिर कोशिश की, परंतु नाकामयाब रहा. मैं वहां कोई तमाशा नहीं करना चाहता था, पर जब पानी सिर से ऊपर निकलने लगा तब अंत में मैं उसे घसीटता हुआ घर ले आया.

उसी दिन से वह मुझ से नाराज रहने लगी क्योंकि पार्टी में मैं ने उस का अपमान जो कर दिया था. घर आते ही वह मुझ पर बरस पड़ी, ‘‘तुम होते कौन हो मुझे रोकने वाले? हर किसी को अपना जीवन अपने तरीके से जीने का हक है. तुम मुझ से यह हक नहीं छीन सकते.’’

यहां कोई फिल्म का दृश्य नहीं फिल्माया जा रहा था, यहां हकीकत में मेरी जिंदगी पर बन आई थी. स्थिति मेरे हाथ से निकलती जा रही थी.

इसी बीच मम्मीपापा का फोन आया, ‘‘बहुत दिन हो गये तुम लोगों से मिले. बड़ी याद आ रही है, सो हम कल आ रहे हैं.’’

सुन कर मुझेे बेहद खुशी हुई. मैं ने उन के आने की खबर जब प्रीति को सुनाई तो उस ने कोई खुशी जाहिर नहीं की. उस के माथे की त्योरियां चढ़ गईं क्योंकि उस की स्वतंत्रता में खलल पड़ने वाला था. यह वही प्रीति थी जो अपने सासससुर का बहुत आदर करती थी और वे भी उसे बेहद चाहते थे. उस का ऐसा मन देख कर मुझे बहुत दुख पहुंचा.

मैं ने उसे बहुत समझया, ‘‘वे तो कुछ ही दिनों के लिए आ रहे हैं. तुम उन से प्यार से मिलोगी तो उन्हें अच्छा लगेगा.’’

मगर वह नहीं मानी. उस ने न उन से निभाया न ही उन का मानसम्मान किया. मैं ने सोचा था कि मम्मी आ कर उसे समझ लेंगी और पापा के सामने शर्म से प्रीति भी सही राह पर आ जाएगी, परंतु उस का व्यवहार देख कर मुझे बहुत शर्मिंदगी उठानी पड़ी.

मम्मी उसे हर तरह से समझने की कोशिश कर रही थीं. विवाह के बंधन, पतिपत्नी के

बीच के अटूट संबंध, समाज का डर, रिश्तेनाते उसे कुछ न बांध सका. मम्मी उसे व्रत, तीजत्योहार, रीतिरिवाज समझने के प्रयत्न करतीं, तो वह उलटीसीधी बातें कर के उन का अपमान करती, तर्कवितर्क करती. मम्मी ने भी हथियार डाल दिए.

दिनप्रतिदिन झगड़े बढ़ते चले गए. सासससुर उसे बोझ लग रहे थे. इस स्थिति में जीना दूभर हो गया था. मेरे गले में जैसे फंदा सा कसता जा रहा था. मम्मीपापा से मेरी हालत देखी नहीं जा रही थी. उन का प्रीति के साथ रहना भी मुश्किल हो रहा था और वे मुझे इस हालत में छोड़ कर भी जाना नहीं चाहते थे.

मैं तो जैसे सलीब पर टंग गया. एक रात प्रीति को समझतेसमझते मैं थक गया. वह बराबर मम्मी पापा के लिए अनापशनाप कहे जा रही थी, उन्हें अपमानित कर रही थी. यह सब बरदाश्त के बाहर हो गया था.

वह अपना तकिया उठा कर बाहर जाने लगी और बोली, ‘‘तुम्हारे मम्मीपापा माई फुट.’’

उस की इस बदतमीजी से खीज कर स्वत: ही मेरा हाथ उस पर उठ गया. मैं ने उस से कहा, ‘‘सौरी बोलो प्रीति.’’

उस ने कहा, ‘‘किस बात के लिए बोलूं? तुम सौरी बोलो, तुम ने हाथ उठाया है.’’

उस ने माफी नहीं मांगी उलटी जोरजोर से चिल्लाने लगी. यहां से जाने का बहाना मिल गया था उसे. बस फिर क्या था, उस ने अपना सूटकेस उतारा और उस में अपना सामान पैक कर दिल्ली अपने पीहर चली गई. हां, वह दिल्ली की रहने वाली थी. ऐसा लगा जैसे वह किसी मौके की तलाश में ही थी.

मुझे खुद पर ग्लानी हो आई कि यह क्या कर दिया मैं ने. उसे मनातेमनाते ही उसे खो दिया. मैं ने उसे बहुत रोकना चाहा. अनजाने में घबरा कर कि कहीं उसे खो न दूं, मैं ने माफी भी मांगी, लेकिन फिर उस ने एक न सुनी. लगा उसे बहुत अभिमान हो गया था शायद. उस घमंड ने उसे

न झकने दिया न ही उस ने अपनी गलती की माफी मांगी.

तभी मेरे मन ने मुझे धिक्कारा कि गलती कर के भी माफी न मांगे और मांबाप का

सम्मान न कर सके, ऐसा खोखला व्यक्तित्व है उस का, जिस के पीछे तू दीवाना हो रहा है.

जाने दे उसे. चली जाने दे. उसी दिन खत्म हो गया. वह रिश्ता शोर सुन कर मम्मीपापा बाहर आ गए थे.

मम्मी पागलों की तरह ‘बहूबहू’ पुकारती रहीं. कभी मेरी तरफ हाथ पसारतीं तो कभी दरवाजे की तरफ उसे रोक लेने को दौड़तीं.

उस ने फिर किसी की नहीं सुनी न पीछे मुड़कर ही देखा.

पापा शांत अपनी कुरसी पर बैठे हुए यह तमाशा देखते रहे. कुछ नहीं बोले. उन के चेहरे पर एक अजीब सा दर्द साफ दिखाई दे रहा था. चुप न रहते तो क्या करते? और फिर इस तरह से सूने दिनों की शुरुआत हो गई और यह सूनेपन का सिलसिला जिंदगीभर चलता ही रहा. कभी न खत्म होने वाला सिलसिला.

एक घर 3 कोनों में बंट गया- मैं, पापा और मम्मी. खाने की टेबल पर कभीकभी साथ हो लेते. वे दोनों कभी साथ बैठते, बतियाते और जी हलका कर लेते, परंतु मेरे कोने का अंधेरा, मेरे मन की कसक बढ़ती ही गई. कुछ दिन बाद वे लोग भी चले गए.

इतने बड़े बंगले में समय गुजारना बहुत मुश्किल था. हर कोने में प्रीति की यादें बसी थीं. समय काटे नहीं कटता था. अकेले रहते हुए सूनापन मन में ऐसा रम गया था कि कोई जोर से बोलता तो मैं चौंक जाता. औफिस भी जाता था, सभी काम होते थे, लेकिन कहीं भी मन नहीं लगता था. किसी से हंसीमजाक करना बिलकुल न सुहाता था.

उस दिन भी क्लब में बैठा था. सभी ऐंजौय कर रहे थे. तभी किसी ने कहा, ‘‘यार विक्रम तूने मोहित को देखा?’’

उस ने हाथ का इशारा कर के कहा, ‘‘वहां उस कोने वाली टेबल पर. वह आजकल बहुत पीने लगा है. तुम तो पहले भी मिले हो. जानते हो न उसे.’’

‘‘हां बिलकुल अच्छी तरह से जानता हूं. बहुत हंसमुख हुआ करता था.’’

यह सुरेंद्र ही था जो विक्रम को मेरे बारे में बता रहा था. विक्रम इसी महीने यहां

ट्रांसफर हो कर आया था.

‘‘अब वह पहले वाला मोहित नहीं रहा…

न वह हंसता है न ही मजाक करता है,’’

सुरेंद्र बोला.

विक्रम ने अचंभित हो कर पूछा, ‘‘ऐसा क्या हो गया भाई?’’

उस ने विक्रम को बताया, ‘‘धोखा दे गई इस की पत्नी इसे. शायद किसी के साथ भाग गई. तभी से यह देवदास बना फिरता है.’’

मन हुआ जा कर उस का गला पकड़ लूं या जबान खींच लूं उस की पर यह सोच कर कि गलत भी तो नहीं कह रहा वह मैं चुपचाप वहां से उठ कर चला आया.

ऐसे जुमले अकसर महफिलों में, पार्टियों में मेरे बारे में सुनाई देने लगे थे. शुरू में बुरा लगता था, लेकिन धीरेधीरे यह सब सुनने की आदत सी हो गई.

एक दिन पापा का फोन आया. कहने लगे, ‘‘यहां आ जाओ कोई बात करनी है,’’ बहुत दिनों बाद उन्होंने मौन तोड़ा था और संयत हो कर मुझे अपना फैसला सुनाया, जिसे सुन कर मैं स्तब्ध

रह गया.

मुझे उसे तलाक के लिए स्वयं को तैयार करने में काफी समय लग गया. असल में उम्मीद लगाए बैठा था कि प्रीति एक न एक दिन जरूर लौट आएगी. वह भी मुझ से ज्यादा दिन अलग नहीं रह पाएगी, लेकिन मैं प्रति दिन उस का इंतजार करता ही रह गया. उसे नहीं आना था तो वह नहीं आई.

कोर्टकचहरियों के चक्कर इंसान को तोड़ कर रख देते हैं, यह मैं ने तभी जाना था. सम्मन आते थे, तारीखें पड़ती थीं, जिरह होती थी. वकीलों के वाकजाल से भला कौन बच सकता. कोर्ट में झठेसच्चे आरोप और उन्हें सिद्ध करने

के प्रयास.

इस सारी प्रक्रिया के दौरान मानसिक तनाव

के बीच में धीमी गति से गुजरता हुआ

जीवन… ऐसी कितनी ही भयानक रातें मुझे गुजारनी पड़ीं. एक रात वह भी थी जिस दिन प्रीति घर छोड़ कर गई थी. वह अमावस की

रात से भी ज्यादा काली रात थी. बाहर तो घना अंधेरा था, ही लेकिन मन के अंदर भी तूफान उठ रहा था.

हर बार चीखने का मन करता था.

मन यह पूछना चाहता था कि प्रीति मैं ने क्या बिगाड़ा था तुम्हारा जो तुम ने मेरे साथ धोखा किया? मैं ने तो तुम्हें पलकों पर बैठाया था, जी जान से प्यार किया था. मेरे प्यार में क्या कमी रह गई थी? तुम मुझ से कहती तो सही.’’

सोचता हूं कि अंतत: फैसला होगा ही और वह इस विवाह बंधन से मुक्त हो जाएगी. वह तो निर्मोही है, धोखेबाज है, न जाने किस मिट्टी की बनी है. लेकिन मैं ने तो उस से प्यार किया था, किया है और शायद जीवनपर्यंत करता रहूंगा. मैं आज भी स्वयं को इस तलाक के लिए राजी नहीं कर पाया जो परिवार और समाज चाहता था, वह उस ने हमारे बीच करवा दिया.

मगर मैं ने उसे दिल से नहीं माना. यह कैसा प्रेम संबंध था? यह कैसा विवाह संबंध था, जिसे मैं ने माना? लेकिन उस ने नहीं माना. यह कसक सदा मेरे मन में रहेगी कि क्यों प्रीति तुम ने ऐसा क्यों किया?’’

Hindi Love Stories : दो युवतियां – क्या हुआ था प्रतिभा के साथ

 Hindi Love Stories : वर्षों पहले एक बड़े शहर में 2 युवतियों की मुलाकात एक कालेज में हुई. एक उसी शहर की थी जबकि दूसरी किसी छोटे कसबे से शहर में पढ़ने आई थी. दोनों युवतियां अलगअलग परिवेश की थीं. दोनों का आर्थिक स्तर और विचारधारा भी अलग थी. दोनों के विचार आपस में बिलकुल नहीं मिलते थे, लेकिन दोनों में एक समानता थी और वह यह कि दोनों ही युवतियां थीं और एक ही कक्षा की छात्राएं थीं.

कक्षा में दोनों साथसाथ ही बैठती थीं, इसलिए विपरीत सोच और स्तर के बावजूद दोनों में दोस्ती हो गई थी. धीरेधीरे उन की यह दोस्ती इतनी प्रगाढ़ हो गई कि वे दो जिस्म एक जान हो गई थीं.

शहरी युवती अत्याधुनिक और खूबसूरत थी. उस का पिता एक बड़ा अफसर था इसलिए वह बड़े बंगले में रहती थी. उस के पास सारी सुखसुविधाएं मौजूद थीं. वह कार से कालेज आतीजाती और महंगा मोबाइल इस्तेमाल करती थी. वह काफी खुले विचारों की थी इसलिए उस की दोस्ती भी कालेज के कई युवकों से थी. ऐसा लगता था, जैसे वह कालेज के हर युवक से प्रेम करती थी. कालेज का हर छात्र उस का दीवाना था. उस का खुलापन और युवकों के साथ उस की मित्रता देख कर कोई भी यह सहज अनुमान लगा सकता था कि वह उन युवकों में से ही किसी एक के साथ शादी करेगी.

दूसरी तरफ कसबाई युवती इतनी सीधीसादी थी कि वह युवकों से बात करते हुए भी घबराती थी. वह होस्टल में रहती थी लेकिन अपनी कसबाई संस्कृति और संस्कारों से बाहर नहीं निकल पाई थी. उस के पास एक सस्ता सा मोबाइल था, जिस में उस के किसी बौयफ्रैंड का नंबर नहीं था. उस में केवल उस के मांबाप और कुछ रिश्तेदारों के नंबर थे. सुबहशाम वह केवल अपने मांबाप से ही बात करती थी.

शहरी युवती जब भी कालेज कैंपस में होती, उसे देख कर लगता जैसे चांद दिन में निकल कर अपनी शीतल चमक से सब को जगमग कर रहा है. युवक तारों की तरह उस के इर्दगिर्द लटक जाते और टिमटिमाने का प्रयास करते. कसबाई युवती उस के साथ बिलकुल वैसे ही लगती, जैसे एलईडी बल्ब के सामने जीरोवाट का बल्ब जल रहा हो. वह यदि अकेला जलता तो शायद थोड़ीबहुत रोशनी भी देता, लेकिन उस शहरी युवती के सौंदर्य के सामने उस की रोशनी बिलकुल फीकी लगती और ऐसा लगता जैसे दिन की रोशनी में शमा की रोशनी घुलमिल गई हो.

दोनों युवतियों की अपनीअपनी जिंदगी थी, उन की अपनीअपनी सोच थी और वे एकदूसरे के बारे में क्या सोचती थीं, यह अब उन्हीं की जबानी…

शहरी युवती…

जब से कालेज आई हूं, जीवन में एक अद्भुत परिवर्तन आया है. स्वच्छंदता है, उच्छृंखलता है, मस्ती और जोश है. इतनी सारी खुशियां पहली बार जीवन में आई हैं. समझ नहीं आता, उन्हें किस प्रकार समेट कर अपने दामन में भरूं. अगर समेट लूं, तो उन्हें सहेज कर कहां रखूंगी. डर भी लगता है कि कहीं एक दिन यह खुशियों का संसार टूट कर बिखर न जाए. कहते हैं, ‘खुशियों के दिन कम होते हैं.’ जीवन में जब ज्यादा खुशियां आती हैं, तो दुखों का अंधेरा उन से ज्यादा लंबा और घना होता है, लेकिन आगे आने वाले दुखों के बारे में सोच कर क्यों परेशान हुआ जाए. जब चारों तरफ फूल खिले हों, तो पतझड़ की कल्पना बेमानी लगती है. खुशियों का इंद्रधनुष जब आसमान में खिला हो तो काली घटाओं का आना बुरा लगता है.

ऐसी आजादी कहां मिलेगी? इतने सारे दोस्त और खुला वातावरण… युवकों के साथ दोस्ती करना कितना अच्छा लगता है. पहले कितने प्रतिबंध थे, अब तो कोई रोकनेटोकने वाला नहीं है. चाहे जिस से दोस्ती कर लो. युवक भी पतंगे की तरह युवतियों की तरफ खिंचे चले आते हैं. कितना शौक होता है युवकों को भी जल कर मर जाने का. समझ में नहीं आता, युवक इतने उतावले क्यों होते हैं युवतियों का प्यार हासिल करने के लिए. युवती को देखते ही उन का दिल बागबाग होने लगता है. वे लपक कर पास आ जाते हैं, जैसे युवती किसी विश्वसुंदरी से कमतर नहीं है और युवती के सामने उन की वाणी में कालिदास का मेघदूत आ विराजता है.

मेरी दोस्ती कई युवकों से है. सभी हैंडसम, स्मार्ट और अमीर घरों के हैं. वे मुझ पर मरते हैं. सभी ने मुझ से प्रेम निवेदन किया है, लेकिन मैं जानती हूं, ये सभी झूठे हैं. वे मेरे सौंदर्य पर मोहित हैं और येनकेन प्रकारेण मेरे शरीर को भोगने के लिए मेरे आगेपीछे भंवरे की तरह मंडराते रहते हैं, यह सोच कर कि कभी न कभी तो फूल का रस चूसने को मिलेगा.

लेकिन मैं भी इतनी बेवकूफ नहीं हूं और न ही इतनी नादान कि एकसाथ कई युवकों से प्यार करूं. दोस्ती तक तो ठीक है, लेकिन इतने युवकों का प्यार ले कर मैं कहां रखूंगी? किसी एक से प्यार करना तो संभव हो सकता है, पर इन में से कोई भी युवक मुझे सच्चा प्यार नहीं करता. सब की बातें झूठी हैं, वादे खोखले हैं, बस मुझे लुभा कर वे मेरे सौंदर्य को पाना चाहते हैं. यदि मैं ने हंसीमजाक में किसी से शादी की बात कर ली, तो वह दूसरे दिन ही कालेज छोड़ कर भाग जाएगा, लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगी. भुलावे में रख कर उन को बेवकूफ बनाया जा सकता है. कम से कम कैंटीन में ले जा कर भरपेट खिलातेपिलाते तो हैं.

युवकों को विश्वास है कि मैं उन्हें दिल से प्यार करती हूं, लेकिन वे भुलावे में जी रहे हैं. मेरा झुकाव किसी की तरफ नहीं है, मैं उन में से किसी के साथ प्यार करने का जोखिम नहीं उठा सकती हूं. प्यार में खुशी के दिन कम और दुख के ज्यादा होते हैं. मिलन के बाद विरह बहुत दुखदायी होता है. मिलन तो क्षणिक होता है, लेकिन विरह की घडि़यां इतनी लंबी होती हैं कि काटे नहीं कटतीं. बिलकुल जाड़े की तरह काली अंधेरी, सिहरती रातों की तरह.

मेरी कोशिश है कि मैं किसी युवक के प्यार में न पड़ूं, इसलिए मैं उन से अकेले में मिलने से बचती हूं. एकांत दो दिलों को ज्यादा करीब ला देता है. एकदूसरे को अपनी भावनाएं व्यक्त करने का मौका मिलता है. भावुकता भरी बातें होती हैं. ऐसी बातें सुन कर दिल पिघलने लगता है और जब दो दिल साथसाथ पिघलते हैं, तो घुलमिल कर चाशनी की तरह एक हो जाते हैं. मैं ऐसा बिलकुल नहीं चाहती.

मगर युवकों का चरित्र भी बड़ा विरोधाभासी होता है. एक तरफ तो वे युवती को प्यार करने का दम भरते हैं और दूसरी तरफ उस पर शंका भी करते हैं, उस के ऊपर एकाधिकार चाहते हैं. जब मैं एक युवक से बात करती हूं, तो दूसरा क्रोध से लालपीला हो जाता है. मेरे ऊपर नाराजगी प्रकट करता है. मुझे दूसरे युवकों से बात करने, उन से मिलनेजुलने और उन के साथ घूमनेफिरने पर मना करता है. तब मैं उस से साफसाफ शब्दों में कह देती हूं, ‘‘मेरे ऊपर हुक्म चलाने की जरूरत नहीं है. मैं तुम्हारी दोस्त हूं, कोई खरीदी हुई वस्तु नहीं, समझे.’’

एक ही डांट में युवक को अपनी औकात समझ आ जाती है. वह सहम कर कहता है, ‘‘ऐसी बात नहीं है. मैं तो बस तुम्हें सचेत कर रहा था. वह युवक अच्छा नहीं है. वह तुम्हें बरगला कर तुम्हारी इज्जत के साथ खिलवाड़ कर सकता है.’’

‘‘अच्छा,’’ मैं मुसकरा कर कहती हूं, ‘‘लेकिन यही बात वह युवक भी तुम्हारे बारे में कहता है.’’

इस के आगे युवक की जबान बंद हो जाती है.

कालेज में युवकों से दोस्ती के दौरान मैं ने एक बात अनुभव की कि युवक हर युवती से अपनी दोस्ती को प्यार समझते हैं और इसी प्यार का वास्ता दे कर वे उस के शरीर को भोगना चाहते हैं. जब तक वे उस के शरीर को भोग नहीं लेते, तब तक उस के आगेपीछे मंडराते रहते हैं. जब उसे भोग लेते हैं तो उस के प्रति उन का प्यार कम होने लगता है और फिर किसी दूसरी युवती की तरफ देखना शुरू कर देते हैं.

यह मेरा ही नहीं बल्कि मेरी अन्य सहेलियों का भी व्यक्तिगत अनुभव है. मैं ने देखा है कि ऐसी युवतियां अकसर दुखी रहती हैं, क्योंकि एक बार अपना सबकुछ लुटा देने के बाद उन के पास कुछ नहीं बचता. फिर भी वे युवकों के प्रति पूरी तरह समर्पित रहती हैं, जबकि युवक भंवरे की तरह दूसरी युवती रूपी तितली के ऊपर मंडराने लगता है. मैं ने इन अनुभवों से यही सीख ली है कि कालेज में युवकों के प्यार में कोई स्थायित्व नहीं होता. यह केवल मौजमस्ती के लिए होता है. असली प्यार वही होता है, जिस में बंधन होता है, दायित्व होता है.

सहेलियों की बात चली तो मैं बता दूं, मेरी एक सहेली है, जो मेरी अन्य सहेलियों से कुछ अलग है, लेकिन मेरी अभिन्न मित्र है. वह मेरी ही कक्षा में है और हम दोनों साथसाथ बैठती हैं, इसलिए दोनों में काफी लगाव है. वह किसी कसबेनुमा गांव की है

और यहां होस्टल में रहती है. बहुत आधुनिक नहीं है, लेकिन बुद्धिमान है. थोड़ी संकोची स्वभाव की है, ज्यादा बोलती नहीं है और युवकों के सामने तो वह शर्म के मारे निगाहें फेर लेती है. मेरे साथ रहती है, लेकिन मेरे किसी दोस्त से बात तक नहीं करती.

प्रतिमा नाम है उस का. वह बहुत खूबसूरत तो नहीं है. पहली नजर में कोई युवक उसे पसंद नहीं करेगा, लेकिन बारबार देखने और मिलने से कोई न कोई उस की तरफ आकर्षित हो सकता है. मैं ने उसे आधुनिक ढंग से सजनेसंवरने और कपड़े पहनने के कुछ टिप्स दिए, जिस से अब वह कुछ सुंदर दिखने लगी है. किसी न किसी दिन कोई युवक उस की तरफ अवश्य आकर्षित होगा. प्रतिमा भोली है. मुझे बस एक ही डर लगता है कि यदि वह किसी युवक के प्यार में गिरफ्तार हो गई तो कहीं वासना के दलदल में न फंस जाए.

आजकल के युवक प्यार के बदले सीधे शरीर मांगते हैं. अब पुराने जमाने की तरह महीनों चोरीचोरी देखना, फिर पत्र लिख कर अपनी भावनाओं को एकदूसरे तक पहुंचाना, उस के बाद मिलने के लिए तड़पना… और सालों बाद जब मुलाकात होती थी, तो पकड़े जाने के डर से कुछ कर भी नहीं पाते थे और आज तो प्यार हो चाहे न हो, शरीर का मिलन तुरंत हो जाता है. फिर कुछ दिन बाद एकदूसरे से अलग भी हो जाते हैं, जैसे यात्रा में 2 व्यक्ति अचानक मिले हों और कुछ पल साथ बिता कर अपने गंतव्य पर जुदा हो कर चल दिए हों. आजकल प्यार नहीं होता, लेनदेन होता है… शरीर और महंगे उपहारों का आदानप्रदान होता है.

मैं यह नहीं कहती कि प्रतिमा दोस्ती और प्यार में फर्क करना नहीं जानती. वह युवा है. कसबे से शहर आई है. ग्रैजुएशन कर रही है. प्यार से तो अनभिज्ञ नहीं होगी, क्योंकि प्यार के खेल तो हर जगह होते हैं. गांव, गली और शहर… सब जगह. कौन इस से अछूता है. क्या पता प्रतिमा भी किसी न किसी को प्यार करती हो. हालांकि उस के हावभाव से लगता नहीं है.

कसबाई युवती…

मेरे हावभाव से किसी को मेरे स्वभाव का जल्दी पता नहीं चलता. मैं बहुत संकोची और शर्मीली हूं. संभवत: कसबाई संस्कृति और संस्कारों ने मेरे अंदर एक स्वाभाविक संकोच भर दिया है. अब मैं 18 वर्ष की आयु में शहर पढ़ने के लिए आई हूं, तो स्वाभाविक तौर पर मुझे अपने स्वभाव में परिवर्तन लाना होगा.

मैं होस्टल में रहती हूं, जहां एक से एक बदमाश, शैतान और चालू युवतियां रहती हैं. उन सब ने मुझे कितना परेशान किया, कमरे में बंद कर के नंगा नाच करवाया, गाना गवाया और बहुत से ऐसे कृत्य करवाए, जिन का मैं यहां वर्णन नहीं कर सकती. ये सब करवाने के पीछे उन युवतियों का क्या मकसद था, यह आज तक मेरी समझ में नहीं आया. यदाकदा अब भी सीनियर युवतियां मुझ से वैसा ही दुर्व्यवहार करती रहती हैं, लेकिन मैं न तो उन के जैसी बदमाश और चालू बन सकी, न उन में से किसी के साथ मेरी दोस्ती हो सकी.

मेरी दोस्ती है तो प्रियांशी से, जो मेरी होस्टलमेट नहीं, क्लासमेट है. हम दोनों कक्षा में साथसाथ बैठती हैं और कक्षा के बाहर लाइब्रेरी से ले कर कैंटीन तक साथ रहती हैं. हम दोनों में बहुत सी बातें होती हैं, लेकिन हम दोनों का स्वभाव बिलकुल अलग है. वह खुले विचारों की आधुनिका है, तो मैं संकोची और संस्कारवान रूढि़वादी युवती, लेकिन मैं रूढि़वादी संस्कारों के बंधन में घुटन महसूस कर रही हूं. मैं शहर में आ कर अपने बंधन तोड़ देना चाहती हूं, पंख फैला कर खुले आसमान में उड़ना चाहती हूं.

मैं खुल कर किसी से बातें नहीं कर पाती. युवकों के सामने पड़ते ही मेरे संस्कार मेरे पैरों को जकड़ लेते हैं, हाथों को बांध देते हैं और जबान पर ताला लगा देते हैं. मैं किसी युवक से अपने मन की बात कह नहीं पाती. लेकिन अगर मैं किसी तरह साहस कर के कुछ कहना चाहूं तो कहूं किस से? कोई युवक मेरी तरफ निगाह उठा कर भी नहीं देखता.

सचाई तो यह है कि हर युवक आवारा भंवरे की तरह सुगंधित और सुंदर फूल का रस चूसने के लिए लालायित ही नहीं बेचैन भी रहता है. वह एक सौंदर्यहीन, असुगंधित जंगली फूल की तरफ कभी आकर्षित नहीं होता. मैं अकसर हीनभावना से ग्रस्त हो जाती हूं. प्रियांशी मेरी घनिष्ठ सहेली है, लेकिन उस के साथ रहते हुए मुझे हीनभावना का एहसास होता है और मैं उस के सौंदर्य से ईर्ष्या करने लगती हूं. वह असीम सौंदर्य की धनी है, शायद मेरे हिस्से का सौंदर्य भी उस के ही खाते में चला गया.

वह इतनी सुंदर और मैं सौंदर्यहीन, दबे हुए रंग की युवती. हालांकि शारीरिक सौष्ठव और अंगों की पुष्टता के मामले में मैं उस से किसी तरह कमतर नहीं हूं, लेकिन युवती की सुंदरता का मापदंड उस का चेहरा होता है, उस का दमकता हुआ माथा, बड़ीबड़ी काली आंखें, सुंदर लंबी नाक, कश्मीरी सेब की तरह गाल, भरे हुए संतरे की फांक जैसे गुलाबी होंठ और लंबी गरदन, यह एक युवती की सुंदरता के मापदंड होते हैं. इन में मैं प्रियांशी के सामने कहीं नहीं ठहरती.

कालेज का हर युवक प्रियांशी की तरफ आकर्षित है, उस के साथ दोस्ती करना चाहता है. दोस्ती क्या, दोस्ती की आड़ में प्यार का नाटक कर के उस को हासिल करने का प्रयास करता है, लेकिन प्रियांशी उन के साथ केवल दोस्ती करती है. मेरे सामने तो वैसे ही दिखाती है, अकेले में मिल कर कैसी बातें करती है, मुझे नहीं पता.

प्रियांशी की दोस्ती कालेज के कई युवकों से है. मैं भी चाहती हूं कि मेरा कोई दोस्त बने. प्रियांशी के कहने पर मैं ने अपने गैटअप में कई परिवर्तन किए और अब मैं पहले से ज्यादा खूबसूरत लगने लगी हूं. फिर भी कोई युवक मेरी तरफ मुंह उठा कर नहीं देखता. इस का प्रमुख कारण है, प्रियांशी. मैं हर वक्त उस के साथ रहती हूं. उस के सामने मुझे कौन देखेगा, कौन चाहेगा. उस के सुंदर व्यक्तित्व के सामने मेरा थोड़ा सा सौंदर्य बुझे हुए चिराग जैसा हो जाता है.

मुझे अपनी अलग पहचान बनानी होगी. यदि मुझे नए जमाने के साथ चलना है, तो मुझे खुद ही कुछ करना होगा. प्रियांशी के साथ रहते हुए कोई युवक मेरा दोस्त नहीं बनने वाला. मुझे उस से कट कर अकेले रहना होगा. जब मैं अकेली रहूंगी तभी कोई युवक मुझ से बात करने का प्रयास करेगा, तभी मैं उसे अपनी बातों और नयनों के तीर से घायल कर पाऊंगी. फिर मैं उस के घायल दिल पर अपने प्यार का मरहम लगा कर उसे वश में कर लूंगी.

लेकिन मैं किस युवक को अपने वश में करूं, क्योंकि कक्षा के अधिकांश युवक तो प्रियांशी को ही चाहते हैं. मेरी तरफ कोई भूल कर भी नहीं देखता. कैंपस के दूसरे युवक भी किसी न किसी युवती के साथ अटैच्ड हैं. मैं किस को अपनी तरफ आकर्षित करूं?

मैं यह सोच कर परेशान हो जाती हूं, एक अजीब बेचैनी मेरे अंदर घर करती जा रही है. मैं जवान हूं, लेकिन कोई भी युवक मेरा दोस्त नहीं है. सभी युवतियों के दोस्त हैं, बौयफ्रैंड हैं, प्रेमी हैं और एक मैं हूं, जिस की कोई जानपहचान तक किसी युवक से नहीं है. मेरी जैसी युवतियां आज बैकवर्ड मानी जाती हैं.

एक प्रियांशी ही मुझ से दोस्ती का रिश्ता कायम किए हुए है, लेकिन कब तक? जब उस का मन किसी युवक से अकेले में बात करने का होगा, तो वह भी मुझ से किनारा कर लेगी? तब क्या मैं हताश और निराश नहीं हो जाऊंगी. कहते हैं न किसी जवान युवती को अगर सही समय पर प्यार नहीं मिलता और उस की इच्छाएं, कामनाएं और भावनाएं दबी रह जाती हैं, तो वह हताशा की शिकार हो जाती है. उसे दौरे पड़ने लगते हैं और वह हताशा के अतिरेक में आत्महत्या तक कर लेती है.

लेकिन मैं आत्महत्या नहीं करूंगी. मैं इतनी सुंदर नहीं हूं, पर इतनी बुरी भी नहीं कि कोई युवक मुझे प्यार ही न करे. प्रयास करने से क्या नहीं होता? आज अगर कोई युवक मेरी तरफ प्यार भरी नजर से नहीं देखता, तो यह केवल प्रियांशी के कारण. अब मैं उस के घर में सेंध लगाऊंगी. हां, आप नहीं समझे?

मैं उसी के दोस्तों में से किसी एक को पटाऊंगी और वे सब प्राप्त कर के दिखाऊंगी, जो एक पुरुष से स्त्री को प्राप्त होता है. मैं अधूरी नहीं रहना चाहती. मैं जवान हूं, मेरी कामनाएं हैं और मेरी भी भावनाएं मचलती हैं, मुझे प्यार चाहिए, भरपूर प्यार… एक पुरुष का प्यार… हर तरफ वसंत के फूल खिले हैं. प्यार का रस टपक रहा है. मैं किसी को अकेला नहीं देखती. कैंपस का हर युवक किसी न किसी के प्यार में गिरफ्तार है, तो मैं अकेली पतझड़ की गरम हवा क्यों बरदाश्त करूं? इसी वसंत में कोई मेरे लिए भी प्यार के गीत गाएगा, हवा मेरे लिए भी खुशबू ले कर आएगी. पतझड़ के गीत गाने का मौसम अभी मेरे जीवन में नहीं आया है.

शहरी युवती…

वसंत का आगमन हो चुका है. फूलों ने पेड़ों पर एक अनोखी छटा बिखेरी हुई है. हवा में अनोखी सुगंध है, जो मन को मुग्ध कर देती है. तन और मन दोनों ही मचलते हैं. कुछ करने का मन करता है, लेकिन मैं अपने मन को रोक लेती हूं. तन को बहकने नहीं देती.

मेरे सभी दोस्तों ने वैलेंटाइन डे पर मुझे गुलाब के साथ महंगे गिफ्ट भेंट किए हैं. साथ ही उन्होंने प्रेम निवेदन भी किया है, लेकिन मैं ने बहुत विनम्रता से उन के प्रेम को ठुकरा दिया है. उन सब के चेहरों पर खिले हुए वसंत के फूल मुरझा गए हैं. उन की आंखों के सामने पतझड़ के सुर्ख पत्ते उड़ने लगे. ऐसा लगा, जैसे उन के चेहरे का सारा खून सूख कर पानी बन गया हो. उन के चेहरे एकदम सफेद पड़ गए, लेकिन इस से मुझे क्या? यह उन की समस्या थी. जो प्यार करता है, वह विरह का दुख भी सहता है. मैं ने तो उन्हें प्रेम के लिए उत्प्रेरित नहीं किया था. मैं अगर उन से प्यार नहीं करती तो इस में मेरा क्या दोष? प्यार उन्होंने किया, तो उस का परिणाम भी वही भुगतेंगे.

इस के बाद मैं ने महसूस किया कि सारे युवक मुझ से दूरदूर रहने की कोशिश करने लगे हैं, तो मैं ने भी उन से दोटूक बात कर के उन के मन की बात जाननी चाही और उन से बातें करने के बाद जो सचाई उभर कर सामने आई उस में एक बात पूरी तरह सत्य साबित हो गई कि युवकयुवतियों के बीच की सीमा शारीरिक मिलन पर जा कर समाप्त होती है. यही उस की पूर्णता है. यही शाश्वत सत्य है.

‘‘क्या बात है, आजकल तुम मुझ से दूरदूर रहते हो.’’

‘‘क्या करूं ? पत्थर से सिर टकराने से क्या फायदा? उस में फूल कभी नहीं खिलते,’’ युवक ने मायूसी से कहा.

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘तुम्हारे पास एक युवती का दिल नहीं है. तुम किसी युवक को प्यार नहीं कर सकती.’’

‘‘कल तक तो मेरे पास सबकुछ था आज मैं ने तुम्हारा प्रेम निवेदन ठुकरा क्या दिया कि मैं युवती ही नहीं रही. वाह, क्या दोस्ती में प्यार नहीं होता.’’

‘‘नहीं, वैसा प्यार नहीं होता, जैसा एक युवकयुवती के बीच होना चाहिए.’’

‘‘यह कैसा प्यार होता है? क्या मुझे समझाने का प्रयत्न करोगे?’’ प्रियांशी ने थोड़ा तल्खी से पूछा.

‘‘तुम सब समझती हो, तभी तो हमारे प्यार को ठुकरा दिया है.’’

‘‘फिर भी बताओ न, तुम्हारे मुख से भी तो सुनूं.’’

‘‘यही न जैसे कि कहीं एकांत में बैठना, प्यार भरी बातें करना, एकदूसरे को स्पर्श करना, चुंबन करना और… और…’’

‘‘और फिर तनबदन में आग लगे, तो वासना के दरिया में डूब कर अपनी प्यास बुझाना, क्यों यही चाहते हो न तुम एक युवती से?’’

‘‘हां, और क्या? सभी ऐसा करते हैं, हम दोनों करेंगे तो कौन सा धरतीआसमान फट जाएंगे.’’

‘‘लेकिन ये सब करने की हमारे संस्कार अनुमति कहां देते हैं. इस के लिए तो शादी जैसा पवित्र रिश्ता बना है. ये सब यदि हम तभी करें तो क्या ज्यादा उचित नहीं होगा. अभी तो हमारी पढ़ाई की उम्र है.’’

‘‘हुंह, पढ़ाई की उम्र… और जो एकदूसरे के प्रति आकर्षण होता है, स्वाभाविक खिंचाव होता है, भावनाएं मचलती हैं, उन का क्या किया जाए. शारीरिक क्रियाएं अपना काम करना बंद नहीं करतीं, समझी, प्रियांशीजी,’’ लड़के के स्वर में तल्खी थी, ‘‘तुम हठी और जिद्दी हो. जानबूझ कर अपनी भावनाओं को कुचल कर दबाने का प्रयास करती हो. देख लेना, अगर यही स्थिति रही तो एक दिन हिस्टीरिया की शिकार हो जाओगी.’’

‘‘उस की फिक्र तुम मत करो दोस्त, ऐसी स्थिति आने से पहले ही मैं शादी कर लूंगी. लेकिन तुम्हारे जैसे किसी लंपट से तो शादी बिलकुल नहीं करूंगी.’’

इस के बाद मेरी दोस्ती उन युवकों से खत्म हो गई. उन के प्यार का रंग बदरंग हो गया. इस से एक बात प्रमाणित हो गई कि युवकयुवती आपस में कभी दोस्त बन कर नहीं रह सकते. उन के बीच जो कुछ होता है, वह मात्र शारीरिक आकर्षण होता है, जो आखिर में शारीरिक मिलन पर जा कर समाप्त होता है.

कहते हैं, दुनिया में कुछ भी टिकाऊ नहीं है… रिश्ते और नाते भी नहीं, स्वार्थ पर आधारित कोई भी चीज टिकाऊ नहीं हो सकती. लेकिन मुझे हैरानी होती है, प्रतिमा और मेरे बीच स्वार्थ का कोई आधार नहीं था, फिर भी आजकल वह मुझ से खिंचीखिंची रहती है. पता नहीं उस के मन में क्या है? वह आजकल मुझ से कम बात करती है. कक्षा में साथ बैठती है, पर ऐसे जैसे दो दुश्मन गलती से अगलबगल बैठ गए हों. मैं उस से कुछ पूछती हूं, तो वह कुछ बताती नहीं है. कक्षा के बाहर भी मेरे साथ नहीं रहती. न साथ लाइब्रेरी जाती है, न कैंटीन. मैं ने अपनी तरफ से प्रयास किया कि उस के साथ मेरे रिश्ते सामान्य बने रहें, लेकिन वह अडिग चट्टान की तरह अपने मन को कठोर बनाए हुए है, तो मैं क्या कर सकती हूं. ऐसी स्थिति में दोस्ती के तार कांच की तरह झनझना कर टूट जाते हैं. मेरा भी मन उस से खट्टा होने लगा है.

मेरी समझ में अच्छी तरह आ गया है कि मेरी सुंदरता प्रियांशी के सामने बिलकुल वैसी ही है, जैसी पूर्णिमा की रात को उस के अगलबगल रहने वाले तारों की होती है, जो चांद की चमक के सामने किसी को दिखाई नहीं देते. मैं ने मन बना लिया है कि यदि मुझे अपने अस्तित्व को बचाए रखना है, तो प्रियांशी से दूर जाना होगा.

वह अच्छी युवती है, अच्छी दोस्त है, सलाहकार है, लेकिन इस उम्र में मुझे एक अच्छी दोस्त की नहीं बल्कि एक अच्छे प्रेमी की आवश्यकता है. मेरे बदन में जो आग है उसे प्रेमी की ठंडी फुहारें ही बुझा सकती हैं. मैं प्रियांशी से धीरेधीरे किनारा कर रही हूं और उसे इस बात का आभास भी हो गया है, लेकिन मुझे उस की चिंता नहीं करनी है. उस की चिंता करूंगी तो मैं कभी किसी युवक का प्यार हासिल नहीं कर पाऊंगी.

सौंदर्य और प्रेम के बीच एक अनोखा विरोधाभास मैं ने अनुभव किया. अधिक सुंदर युवती अति साधारण रंगरूप और कदकाठी वाले युवक के साथ प्यार के रंग में रंग जाती है, तो दूसरी तरफ अति साधारण युवती अति सुंदर और अमीर युवक को फंसाने में कामयाब हो जाती है. इस में अपवाद भी हो सकते हैं, परंतु विरोधाभास बहुत है और यह एक परम सत्य है.

मेरे सौंदर्य पर कई युवक मरने लगे थे. अत: मैं ने किसी एक युवक को चुना. प्रियांशी के ठुकराए प्रेमी ही मेरा शिकार बन सकते थे, क्योंकि घायल की गति घायल ही जान सकता था. मैं ने प्रवीण की तरफ ध्यान दिया. वह अमीर युवक था और कार से कालेज आता था. उस से बात करने में कई दिन लग गए. जब वह एकांत में मिला तो मैं ने हलके से मुसकरा कर उस की तरफ देखा. उस के होंठों पर भी एक टूटी हुई मुसकराहट बिखर गई. मैं ने अपनी शर्म त्याग दी थी, संकोच को दबा दिया था. प्यार के लिए यह दोनों ही दुश्मन होते हैं. मैं ने कहा, ‘‘कैसे हैं?’’

‘‘ठीक हूं. आप कैसी हैं?’’

‘‘बस, ठीक ही हूं. आप तो हम जैसे साधारण लोगों की तरफ ध्यान ही नहीं देते कि कभी हालचाल ही पूछ लें.’’

वह संकोच से दब गया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

फिर वह चुप हो कर ध्यान से मेरा चेहरा देखने लगा. मैं एकटक उसे ही देख रही थी. मैं ने बिना हिचक कहा, ‘‘केवल गुलाब के फूल ही खुशबू नहीं देते, दूसरे फूलों में भी खुशबू होती है. कभी दूसरी तरफ भी नजर उठा कर देख लिया कीजिए.’’

प्रवीण के चेहरे पर हैरानी के भाव दिखाई दिए. मैं लगातार मुसकराते हुए उसे देखे जा रही थी. वह मेरे मनोभाव समझ गया. थोड़ा पास खिसक आया और बोला, ‘‘प्रियांशी के साथ रहते हुए कभी ऐसा नहीं लगा कि आप के मन में ऐसा कुछ है. आप तो सीधीसादी, साधारण सी चुप रहने वाली युवती लगती थीं. कभी आप को हंसतेमुसकराते या बात करते नहीं देखा. ऐसी नीरस युवती से कैसे प्यार किया जा सकता है.’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं है. आप प्रियांशी के सौंदर्य की चमक में खोए हुए थे, तभी तो आप को उस के पास जलता हुआ चिराग दिखाई नहीं दिया. लेकिन यह सत्य है कि चांद सब का नहीं होता और चांद की चमक घटतीबढ़ती रहती है. उस के जीवन में अमावस भी आती है, लेकिन चिराग तो सब के घरों में होता है और यह सदा एक जैसा ही चमकता है.’’

‘‘वाह, बातें तो आप बहुत सुंदर कर लेती हैं. आप का दिल वाकई बहुत खूबसूरत है. मैं समुद्र में पानी तलाश रहा था, जबकि खूबसूरत मीठे जल की झील मेरे सामने ही लहरा रही है.’’

‘‘आप उस झील में डुबकी लगा सकते हैं.’’

‘‘सच, मुझे विश्वास नहीं होता,’’ उस ने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाया.

मैं ने लपक कर उस का हाथ थाम लिया, ‘‘आप विश्वास कर सकते हैं. मैं प्रियांशी नहीं प्रतिमा हूं.’’

‘‘उसे भूल गया मैं,’’ कह कर उस ने मुझे अपने आगोश में ले लिया.

‘‘आग दोनों तरफ लगी थी और उसे बुझाने की जल्दी भी थी. पहले तो हम उस की कार में घूमे, फिर पार्क के एकांत कोने में बैठ कर गुफ्तगू की, हाथ में हाथ डाल कर टहले. प्यार की प्राथमिक प्रक्रिया हम ने पूरी कर ली, पर इस से तो आग और भड़क गई थी. दोनों ही इसे बुझाना चाहते थे. मैं इशारोंइशारों में उस से कहती, कहीं और चलें?’’

‘‘कहां?’’ वह पूछता.

‘‘कहीं भी, जहां केवल हम दोनों हों, अंधेरा हो और…’’

फिर हम दोनों शहर के बाहर एक रिसोर्ट में गए. प्रवीण ने वहां एक कौटेज बुक कर रखा था. वहां हम दोनों स्वतंत्र थे. दिन में खूब मौजमस्ती की और रात में हम दोनों… वह हमारा पहला मिलन था, बहुत ही अद्भुत और अनोखा… पूरी रात हम आनंद के सागर में गोते लगाते रहे. पता ही नहीं चला कि कब रात बीत गई.

फिर यह सिलसिला चल पड़ा.

प्यार के इस खेल से मैं ऐसी सम्मोहित हुई और उस में इस तरह डूब गई कि पढ़ाई की तरफ से अब मेरा ध्यान एकदम हट गया. वार्षिक परीक्षा में मैं फेल होतेहोते बची. प्रियांशी हैरान थी. उसे पता चल चुका था कि मैं कौन सा खेल खेल रही हूं. उस ने मुझे समझाने का प्रयास किया, लेकिन मैं ने उस पर ध्यान नहीं दिया. प्यार में प्रेमीप्रेमिका को किसी की भी सलाह अच्छी नहीं लगती.

गरमी की छुट्टियों में मैं अपने घर भी नहीं गई. प्रवीण के प्यार ने मुझे इस कदर भरमा दिया कि मैं पूरी तरह उसी के रंग में रंग गई. मांबाप का प्यार पीछे छूट गया. उन से पढ़ाई का झूठा बहाना बनाया और गरमी की छुट्टियों में भी होस्टल में ही रुकी रही. पूरी गरमी प्रवीण के साथ मौजमस्ती में कट गई. पढ़ाई के नाम पर कौपीकिताबों पर धूल की परतें चढ़ती रहीं.

प्रियांशी को पता था कि मैं शहर में ही हूं, उस ने कई बार मिलने का प्रयास किया, पर मैं बहाने बना कर टालती रही. उस से अब दोस्ती केवल हायहैलो तक ही सीमित रह गई थी. मुझे मेरी चाहत मिल गई थी, उस में डूब कर अब बाहर निकलना अच्छा नहीं लग रहा था. देहसुख से बड़ा सुख और कोई नहीं होता. मैं जिस उम्र में थी, उस में इस का चसका लगने के बाद, अब मुझे किसी और सुख की चाह नहीं रह गई थी.

एक दिन प्रियांशी ने कहा, ‘‘प्रतिमा, मुझे नहीं पता तुम क्या कर रही हो, लेकिन मुझे जितना आभास हो रहा है, उस से यही प्रतीत होता है कि तुम पतन के मार्ग पर चल पड़ी हो.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि आज हर युवकयुवती यही कर रहे हैं.’’

‘‘हो सकता है, पर इस राह की मंजिल सुखद नहीं होती.’’

‘‘जब कष्ट मिलेगा, तब यह राह छोड़ देंगे.’’

‘‘तब तक बहुत देर हो जाएगी,’’प्रियांशी के शब्दों में चेतावनी थी. मैं ने ध्यान नहीं दिया. जब आंखों में इंद्रधनुष के रंग भरे हों, तो आसमान सुहाना लगता है, धरती पर चारों तरफ हरियाली ही नजर आती है. प्रवीण के संसर्ग से मैं कामाग्नि में जलने लगी थी. हर पल उस से मिलने का मन करता, लेकिन रोजरोज मिलना उस के लिए भी संभव नहीं था. मिल भी जाएं, तो संसर्ग नहीं हो पाता. मैं कुढ़ कर रह जाती. उस के सीने को नोचती सी कहती, ‘‘यह तुम ने कहां ला कर खड़ा कर दिया मुझे. मैं बरदाश्त नहीं कर सकती. मुझे कहीं ले कर चलो.’’

वह संशय भरी निगाहों से देखता हुआ कहता, ‘‘प्रतिमा, रोजरोज यह संभव नहीं है. तुम अपने को संभालो, प्यार में केवल सैक्स ही नहीं होता.’’

‘‘लेकिन मैं अपने को संभाल नहीं सकती. मेरे अंदर की आग बढ़ती जा रही है. इसे बुझाने के लिए कुछ करो.’’

प्रवीण जितना कर सकता था, कर रहा था. उस ने मेरे ऊपर काफी रुपया खर्च किया. अधिकांश रुपया तो होटल और रिसोर्ट्स में खर्च हुआ था. बाकी मेरे उपहारों पर… फिर भी मैं संतुष्ट नहीं थी. उपहारों से तो थी, पर शरीर की मांग बढ़ती ही जा रही थी और इसे पूरा करने में प्रवीण खुद को असमर्थ पा रहा था. मैं जितना मांगती, उतना ही वह पीछे हटता जाता.

आखिर प्रवीण मेरी बढ़ती मांग से परेशान हो गया. अब वह मुझ से कटने लगा, लेकिन मैं उसे कहां छोड़ने वाली थी. अभी कुछ छुट्टियां बाकी थीं. मैं ने उस से कहा, ‘‘छुट्टियां खत्म होने से पहले एक बार वाटर पार्क चलते हैं. रात को रिसोर्ट में  ही रुकेंगे.’’

प्रवीण कुछ सोच कर बोला, ‘‘यार, मैं ने काफी पैसा खर्च कर दिया है. अभी छुट्टियां हैं. पिताजी से मांगना मुश्किल है. मैं क्या बताऊंगा उन्हें? मम्मी का पर्स मैं ने खाली कर दिया है. कालेज बंद है इसलिए  कौपीकिताबों का बहाना भी नहीं चल सकता.’’

‘‘तो फिर… कुछ न कुछ करो.’’

‘‘मैं एक काम करता हूं. मैं अपने कुछ दोस्तों से बात करता हूं. हम सभी मिल कर प्रोग्राम बनाते हैं. इस से रिसोर्ट और वाटर पार्क का खर्च आपस में बंट जाएगा. किसी एक के ऊपर बोझ भी नहीं पड़ेगा.’’

‘‘लेकिन तुम और मैं…’’

‘‘हम दोनों अलग कमरे में रह कर मौज करेंगे.’’

मैं ने ज्यादा नहीं सोचा, मान गई. अगले ही दिन प्रवीण अपने 4 दोस्तों के साथ मुझे ले कर एक बहुत अच्छे रिसोर्ट कम वाटर पार्क में चला गया. दिन भर हम लोगों ने वाटर पार्क में मस्ती की. शाम को खाना खाया. प्रवीण ने अपने दोस्तों के साथ बियर पी. कुछ ने शायद ड्रिंक भी ली थी. मैं ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. मुझे तो खाना खा कर कमरे में जाने की जल्दी थी, ताकि मैं प्रवीण के साथ अपने कामसुख को प्राप्त कर सकूं.

उस दिन पहली बार ऐसा हुआ जब खाना खातेखाते मुझे झपकी आने लगी. खाना खत्म होने तक मैं मदहोश सी हो गई थी. मुझे याद है, प्रवीण मुझे सहारा दे कर कमरे में लाया था. कमरे के अंदर आते ही मैं ने अनिद्रा में उस को कस कर भींच लिया था. फिर मैं उस को अपने ऊपर लिए पलंग पर गिर पड़ी.

कैसी थी वह रात… भयानक और लिजलिजी सी. सारी रात मैं जागतीसोती सी अवस्था में रही. जब भी मेरी तंद्रा टूटती मुझे लगता, कोई पहाड़ मेरे ऊपर सरक रहा है. मैं फूल सी मसलती जाती और लगता, जैसे मेरे अंदर कोई गरम लावा बह रहा था. बेहोशी के आलम में मैं कुछ समझ न पाती कि मेरे साथ क्या हो रहा था, पर जो भी हो रहा था, वह बहुत घिनौना और भयानक था. पूरी रात न तो मेरी बेहोशी टूटी, न मेरे ऊपर से पहाड़ हटा, मैं टूटी ही नहीं, मसल दी गई थी, पूरी तरह से. अब मैं किसी मंदिर का फूल नहीं थी, मैं सड़क पर गिरा हुआ एक फूल थी, जिस के ऊपर से सैकड़ों लोगों के पैर गुजर चुके थे.

अगले दिन दोपहर को जब मेरी तंद्रा टूटी, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे साथ क्या हुआ था. पूरी रात मुझे 5 दरिंदों ने झिंझोड़ा ही नहीं, नोच कर खाया भी था. मेरे शरीर के खून की एकएक बूंद उन पांचों वहशियों ने पी थी, उन के मुख लाल थे और मैं रक्तविहीन, अर्द्धबेहोशी की हालत में लुटी, असहाय बिस्तर पर निर्वस्त्र पड़ी थी. मुझ में इतनी भी ताकत नहीं बची थी कि मैं उठ कर अपनी अस्मत को कपड़े के एक टुकड़े से ढक सकती.

वे पांचों कुटिलता से मुसकरा रहे थे. मेरा शरीर जल रहा था, लेकिन मैं उठ कर उन के रक्त से सने मुख नहीं नोच सकती थी. मैं ने अपने मुरदा हाथों को उठा कर किसी तरह अपनी जांघों के बीच रखा, तभी प्रवीण की कुटिलता भरी हंसी की ध्वनि मेरे कानों में पड़ी. वह कह रहा था, ‘‘आशा है, अब तुम्हारी कामेच्छा शांत हो गई होगी. इस के बाद अब तुम्हें किसी और के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.’’

सुनतेसुनते मैं फिर से बेहोश होने लगी थी और इसी अर्द्धबेहोशी की हालत में मैं ने देखा कि पांचों भेडि़यों के जबड़े फैलने लगे थे. उन की आंखों में क्रूरता और पिपासा के भाव जाग्रत हो रहे थे. वे फिर से मेरे ऊपर हमला करने के लिए स्वयं को तैयार कर रहे थे.

अंतिम हमला मैं ने कैसे झेला, मुझे नहीं पता.

शहर वाली युवती…

प्रतिमा की आंखों में इंद्रधनुषी सपने थे, लेकिन सपने देखने वाला व्यक्ति यह भूल जाता है कि नींद टूटने के बाद केवल सुबह का उजाला ही नहीं दिखाई पड़ता है, कभीकभी चारों तरफ नीरव रात का अंधेरा भी होता है. इंद्रधनुषी आसमान में घनघोर घटाएं भी घिरती हैं जो कभीकभी अतिवृष्टि से धरा को जलमग्न कर देती हैं. तब चारों ओर सैलाब का हाहाकार होता है, जिस में सबकुछ बह जाता है.

मुझे यह महसूस हो रहा था, प्रतिमा प्रेम के रंग में नहीं, बल्कि आधुनिकता की बंधनहीन स्वतंत्रता और उच्छृंखलता के बीच भटक गई थी. वह प्रेम की पवित्रता और मर्यादा को तोड़ कर पाश्चात्य सभ्यता के नवनिर्मित उन्मुक्त संसार में विचरने लगी थी. इस उन्मुक्त संसार में कोई नैतिक मूल्य नहीं थे. युवकों और युवतियों को जो अच्छा लग रहा था, वही कर रहे थे. मेरा मानना है कि प्रेम को उन्मुक्त नहीं होना चाहिए. बिना किसी प्रतिबंध और प्रतिबद्धता के जब हम कोई कार्य करते हैं, तो उस के दुष्परिणाम भी भयंकर होते हैं.

आज का युवा जिस संसार में सामाजिक मूल्यों को तोड़ कर रह रहा है, उस के दुष्परिणाम दोचार साल में ही सामने आने लगते हैं. एकदूसरे के ऊपर आरोपप्रत्यारोप, अत्याचार, शोषण और बलात्कार के मुकदमे दर्ज हो रहे हैं. जो जीवन में कभी नहीं होता था, वह युवा अपने छात्र जीवन में ही एक अपराधी की तरह झेलने को मजबूर हो जाता है. यही आधुनिक प्रेम की परिणति है.

प्रतिमा कितनी सीधी और शर्मीली थी, लेकिन आज उस ने शर्म और संकोच के सभी बंधन तोड़ दिए हैं. जो व्यक्ति कभी घर से नहीं निकलता है, वह बाहर की धूप में आ कर चौंधिया जाता है, रास्ते उसे भरमाते हैं, तो हवाएं उसे मदहोश कर देती हैं. ऐसे में उस का भटकना स्वाभाविक होता है. प्रतिमा के साथ भी यही हो रहा था. अचानक कसबे से शहर आई तो यहां की चकाचौंध ने उसे भ्रमित कर दिया. चारों तरफ चमकदमक थी और वह उस रंगीन दुनिया में भटक गई.

मैं उस के बारे में चिंतित हूं. मुझे पता चल गया है कि वह प्रवीण के साथ कौन सा खेल खेल रही थी. मैं उसे समझाना चाहती हूं, पर वह मुझ से बात ही नहीं करती, जैसे मैं प्रवीण को उस से छीन लूंगी. मुझे क्या पड़ी है?

प्रवीण को तो मैं ने ही ठुकराया था. फिर मुझे युवकों की क्या कमी? सारे तो मेरे पीछे पड़े रहते हैं, लेकिन प्रतिमा ने ऐसा क्यों किया? चटाक से सारे बंधन तोड़ दिए और परदों को खींच कर फाड़ दिया. क्या कोई विश्वास करेगा कि कुछ दिन पहले तक वह एक शर्मीली युवती थी. इतनी शर्मीली कि युवतियों से भी बात करने में उस की जबान लड़खड़ाने लगती थी, लेकिन आज वह युवकों के साथ तितलियों की तरह उड़ती फिर रही है.

प्रेम की बयार न जाने उसे ले कर कहां पटकेगी?

यों ही एक दिन मेरे मन में आया कि अचानक जा कर प्रतिमा से मिलूं. मैं उस के होस्टल गई, वह वहां नहीं थी. किसी को पता भी नहीं था कि कहां गई है? छुट्टियां थीं, इसलिए वार्डन को भी परवा नहीं थी. मैं ने उस का मोबाइल मिलाया लेकिन वह बंद था. मुझे चिंता हुई. उस के होस्टल के चौकीदार से बस इतना पता चला कि 3-4 दिन से वह होस्टल नहीं आई थी.

कुछ सोच कर मैं ने प्रवीण को फोन मिलाया. उस का फोन भी स्विच औफ था. अचानक दिमाग में आया कि उन दोनों के साथ कोई हादसा तो नहीं हो गया. मैं ने अपनी कुछ क्लासमेट्स से बात की. उन्हें भी उन का कुछ पता नहीं था. प्रतिमा मुझ से विरक्त थी, पर मुझे उस की चिंता थी. पहले मैं ने अपने मम्मीपापा से बात की. उन्होंने भी चिंता व्यक्त की कि कुछ भी हो सकता है. फिर हमसब कालेज प्रशासन से मिले. उन्होंने तत्काल प्रतिमा के घर संपर्क करने के लिए कहा. कालेज रिकौर्ड से उस के घर का पता और फोन नंबर मिल गया. पता चला कि प्रतिमा घर भी नहीं गई थी.

सब ने सलाह की कि पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दी जाए. यह कालेज प्रशासन की तरफ से हुआ. पुलिस ने सब से पहला काम यह किया कि मेरे कहने पर प्रवीण और प्रतिमा के कौल डिटेल्स निकलवाए. उन से पता चला कि प्रतिमा की अंतिम बातचीत प्रवीण के फोन पर हुई थी और उस की अंतिम लोकेशन रोहतक रोड का एक रिसोर्ट था. प्रवीण के फोन की भी यही लोकेशन थी. हालांकि प्रवीण के फोन से बाद में अन्य लोगों से भी बात हुई थी और उस की अंतिम बातें शहर की लोकेशन से हुई थीं. इस से यह साबित हो गया कि अंतिम समय में प्रतिमा और प्रवीण एकसाथ थे.

पुलिस ने सक्रियता दिखाई और सब से पहले प्रवीण के घर पर छापा मारा. वह घर पर निश्चिंत और बेखौफ था. उसे थाने लाया गया. उस से पूछताछ हुई, पर हर पेशेवर अपराधी की तरह उस ने भी मनगढ़ंत कहानियां सुनाईं, पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन फोन के कौल डिटेल्स अलग ही कहानी बयां कर रहे थे. उन के आधार पर प्रवीण टूट गया. फिर जो उस ने कहानी सुनाई, वह प्रतिमा के जोशीले प्रेम के दर्दनाक अंत की कहानी थी.

प्रतिमा ने जब प्रेम के मैदान में कदम रखा तो वह बहुत तेज दौड़ने लगी. प्रवीण उस की हर जरूरत पूरी करता, पर हर रोज प्रतिमा की शारीरिक जरूरत पूरी करना न तो प्रवीण के वश में था, न यह संभव था. इस के लिए वक्त और धन दोनों की आवश्यकता थी. वह प्रतिमा से मना करने लगा तो वह उग्र होने लगी और उसे धमकियां देती कि बलात्कार के मामले में फंसा देगी. तंग आ कर प्रवीण ने उस से छुटकारा पाने का एक खतरनाक तरीका अपनाया.

एक सोचीसमझी साजिश के तहत प्रवीण प्रतिमा को अपने मित्रों के साथ ले कर लोनावला के एक रिसोर्ट में गया. उस ने शाम के खाने में प्रतिमा को बेहोशी की दवा दे दी थी. फिर रात भर उन पांचों ने मिल कर उस के साथ बुरी तरह बलात्कार किया और यह सिलसिला अगले दिन शाम तक जारी रहा. तब तक प्रतिमा मृतप्राय सी हो गई थी. वे भी थक गए थे. रात को उन सब ने मिल कर तय किया कि प्रतिमा को उसी हालत में जंगल में फेंक कर भाग जाएंगे. खुले जंगल में कोई जानवर उसे खा जाएगा या फिर वह यों ही समाप्त हो जाएगी.

मृतप्राय प्रतिमा को ये लोग जंगल में फेंक कर रात को ही शहर भाग आए थे. अब प्रतिमा का पता नहीं था.

पुलिस ने तुरंत प्रवीण के अन्य चारों दोस्तों को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें साथ ले कर वह घटनास्थल पर पहुंचे, जहां प्रतिमा को जीवित या मृत अवस्था में फेंका गया था. वहां न कोई लाश मिली, न उस के अवशेष. संबंधित थाने में पता किया गया, तो पता चला कि 2 दिन पहले एक युवती नग्नावस्था में बेहोश जंगल में कुछ गांव वालों को मिली थी. उन्होंने पुलिस को खबर की, पुलिस ने युवती को कसबे के अस्पताल में भरती करवा दिया था और अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर तफतीश आरंभ कर दी थी.

स्थानीय पुलिस को घटनास्थल से ऐसा कोई सूत्र नहीं मिला, जिस से वह अपनी कार्यवाही आगे बढ़ा सके. प्रतिमा अभी तक बेहोश थी. उस का बयान दर्ज नहीं हुआ था.

अस्पताल जा कर जब मैं ने प्रतिमा की हालत देखी, तो मैं स्वयं बेहोश होतेहोते बची. कोई भेडि़या भी उस को इस तरह नोच कर नहीं खाता, जिस तरह से प्रवीण और उस के दोस्तों ने उस के शरीर के साथ अत्याचार किया था.

काश, प्रतिमा यह बात समझ पाती कि प्रेम जीवन के लिए आवश्यक है, पर इतना भी आवश्यक नहीं कि उस के लिए अपनेआप को ही हवन कर दिया जाए. अगर वह समय पर समझ लेती, तो उस की यह दुर्दशा न होती.

प्रतिमा जाने कब होश में आएगी. जब उसे होश आएगा, तब क्या वह किसी पुरुष को फिर से प्यार करने की हिम्मत जुटा पाएगी? अधिकांश प्रेमसंबंधों का अंत विरह में होता है, पर ऐसा कभी नहीं होता, जैसा. प्रतिमा के प्रेम का हुआ था.

Hindi Fiction Stories : एक अच्छा दोस्त

Hindi Fiction Stories :  सतीश लंबा, गोरा और छरहरे बदन का नौजवान था. जब वह सीनियर क्लर्क बन कर टैलीफोन महकमे में पहुंचा, तो राधा उसे देखती ही रह गई. शायद वह उस के सपनों के राजकुमार सरीखा था.

कुछ देर बाद बड़े बाबू ने पूरे स्टाफ को अपने केबिन में बुला कर सतीश से मिलवाया.

राधा को सतीश से मिलवाते हुए बड़े बाबू ने कहा, ‘‘सतीश, ये हैं हमारी स्टैनो राधा. और राधा ये हैं हमारे औफिस के नए क्लर्क सतीश.’’

राधा ने एक बार फिर सतीश को ऊपर से नीचे तक देखा और मुसकरा दी.

औफिस में सतीश का आना राधा की जिंदगी में भूचाल लाने जैसा था. वह घर जा कर सतीश के सपनों में खो गई. दिन में हुई मुलाकात को भूलना उस के बस में नहीं था.

सतीश और राधा हमउम्र थे. राधा के मन में उधेड़बुन चल रही थी. उसे लग रहा था कि काश, सतीश उस की जिंदगी में 2 साल पहले आया होता.

राधा की शादी 2 साल पहले मोहन के साथ हुई थी. वह एक प्राइवेट कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर था. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी, मगर मोहन को कंपनी के काम से अकसर बाहर ही रहना पड़ता था. घर में रहते हुए भी वह राधा पर कम ही ध्यान दे पाता था.

यों तो राधा एक अच्छी बीवी थी, पर मोहन का बारबार शहर से बाहर जाना उसे पसंद नहीं था. मोहन का सपाट रवैया उसे अच्छा नहीं लगता था. वह तो एक ऐसे पति का सपना ले कर आई थी, जो उस के इर्दगिर्द चक्कर काटता रहे. लेकिन मोहन हमेशा अपने काम में लगा रहता था.

अगले दिन सतीश समय से पहले औफिस पहुंच गया. वह अपनी सीट पर बैठा कुछ सोच रहा था कि तभी राधा ने अंदर कदम रखा.

सतीश को सामने देख राधा ने उस से पूछा, ‘‘कैसे हैं आप? इस शहर में पहला दिन कैसा रहा?’’

सतीश ने सहज हो कर जवाब दिया, ‘‘मैं ठीक हूं. पहला दिन तो अच्छा ही रहा. आप कैसी हैं?’’

राधा ने चहकते हुए कहा, ‘‘खुद ही देख लो, एकदम ठीक हूं.’’

इस के बाद राधा लगातार सतीश के करीब आने की कोशिश करने लगी. धीरेधीरे सतीश भी खुलने लगा. दोनों औफिस में हंसतेबतियाते रहते थे.

हालांकि औफिस के दूसरे लोग उन की इस बढ़ती दोस्ती से अंदर ही अंदर जलते थे. वे पीठ पीछे जलीकटी बातें भी करने लगे थे.

राधा के जन्मदिन पर सतीश ने उसे एक बढि़या सा तोहफा दिया और कैंटीन में ले जा कर लंच भी कराया.

राधा एक नई कशिश का एहसास कर रही थी. समय पंख लगा कर उड़ता गया. सतीश और राधा की दोस्ती गहराती चली गई.

राधा शादीशुदा है, सतीश यह बात बखूबी जानता था. वह अपनी सीमाओं को भी जानता था. उसे तो एक अजनबी शहर में कोई अपना मिल गया था, जिस के साथ वह अपने सुखदुख की बातें कर सकता था.

सतीश की मां ने कई अच्छे रिश्तों की बात अपने खत में लिखी थी, मगर वह जल्दी शादी करने के मूड में नहीं था. अभी तो उस की नौकरी लगे केवल 8 महीने ही हुए थे. वह राधा के साथ पक्की दोस्ती निभा रहा था, लेकिन राधा इस दोस्ती का कुछ और ही मतलब लगा रही थी.

राधा को लगने लगा था कि सतीश उस से प्यार करने लगा है. वह पहले से ज्यादा खुश रहने लगी थी. वह अपने मेकअप और कपड़ों पर भी ज्यादा ध्यान देने लगी थी. उस पर सतीश का नशा छाने लगा था. वह मोहन का वजूद भूलती जा रही थी.

सतीश हमेशा राधा की पसंदनापसंद का खयाल रखता था. वह उस की हर बात की तारीफ किए बिना नहीं रहता था. यही तो राधा चाहती थी. उसे अपना सपना सच होता दिखाई दे रहा था.

एक दिन राधा ने सतीश को डिनर पर अपने घर बुलाया. सतीश सही समय पर राधा के घर पहुंच गया.

नीली जींस व सफेद शर्ट में वह बेहद सजीला जवान लग रहा था. उधर राधा भी किसी परी से कम नहीं लग रही थी. उस ने नीले रंग की बनारसी साड़ी बांध रखी थी, जो उस के गोरे व हसीन बदन पर खूब फब रही थी.

सतीश के दरवाजे की घंटी बजाते ही राधा की बांछें खिल उठीं. उस ने मीठी मुसकान बिखेरते हुए दरवाजा खोला और उसे भीतर बुलाया.

ड्राइंगरूम में बैठा सतीश इधरउधर देख रहा था कि तभी राधा चाय ले कर आ गई.

‘‘मैडम, मोहनजी कहां हैं? वे कहीं दिखाई नहीं दे रहे,’’ सतीश ने पूछा.

राधा खीज कर बोली, ‘‘वे कंपनी के काम से हफ्तेभर के लिए हैदराबाद गए हैं. उन्हें मेरी जरा भी फिक्र नहीं रहती है. मैं अकेली दीवारों से बातें करती रहती हूं. खैर छोड़ो, चाय ठंडी हो रही है.’’

सतीश को लगा कि उस ने राधा की किसी दुखती रग पर हाथ रख दिया है. बातोंबातों में चाय कब खत्म हो गई, पता ही नहीं चला.

राधा को लग रहा था कि सतीश ने आ कर कुछ हद तक उस की तनहाई दूर की है. सतीश कितना अच्छा है. बातबात पर हंसतामुसकराता है. उस का कितना खयाल रखता है.

तभी सतीश ने टोकते हुए पूछा, ‘‘राधा, कहां खो गई तुम?’’

‘‘अरे, कहीं नहीं. सोच रही थी कि तुम्हें खाने में क्याक्या पसंद हैं?’’

सतीश ने चुटकी लेते हुए जवाब दिया, ‘‘बस यही राजमा, पुलाव, रायता, पूरीपरांठे और मूंग का हलवा. बाकी जो आप खिलाएंगी, वही खा लेंगे.’’

‘‘क्या बात है. आज तो मेरी पसंद हम दोनों की पसंद बन गई,’’ राधा ने खुश होते हुए कहा.

राधा सतीश को डाइनिंग टेबल पर ले गई. दोनों आमनेसामने जा बैठे. वहां काफी पकवान रखे थे.

खाते हुए बीचबीच में सतीश कोई चुटकुला सुना देता, तो राधा खुल कर ठहाका लगा देती. माहौल खुशनुमा हो गया था.

‘काश, सब दिन ऐसे ही होते,’ राधा सोच रही थी.

सतीश ने खाने की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘वाह, क्या खाना बनाया?है, मैं तो उंगली चाटता रह गया. तुम इसी तरह खिलाती रही तो मैं जरूर मोटा हो जाऊंगा.’’

‘‘शुक्रिया जनाब, और मेरे बारे में आप का क्या खयाल है?’’ कहते हुए राधा ने सतीश पर सवालिया निगाह डाली.

‘‘अरे, आप तो कयामत हैं, कयामत. कहीं मेरी नजर न लग जाए आप को,’’ सतीश ने मुसकरा कर जवाब दिया.

सतीश की बात सुन कर राधा झूम उठी. उस की आंखों के डोरे लाल होने लगे थे. वह रोमांटिक अंदाज में अपनी कुरसी से उठी और सतीश के पास जा कर स्टाइल से कहने लगी, ‘‘सतीश, आज मौसम कितना हसीन है. बाहर बूंदों की रिमझिम हो रही?है और यहां हमारी बातोें की. चलो, एक कदम और आगे बढ़ाएं. क्यों न प्यारमुहब्बत की बातें करें…’’

इतना कह कर राधा ने अपनी गोरीगोरी बांहें सतीश के गले में डाल दीं. सतीश राधा का इरादा समझ गया. एक बार तो उस के कदम लड़खड़ाए, मगर जल्दी ही उस ने खुद पर काबू पा लिया और राधा को अपने से अलग करता हुआ बोला, ‘‘राधाजी, आप यह क्या कर रही?हैं? क्यों अपनी जिंदगी पर दाग लगाने पर तुली हैं? पलभर की मौजमस्ती आप को तबाह कर देगी.

‘‘अपने जज्बातों पर काबू कीजिए. मैं आप का दोस्त हूं, अंधी राहों पर धकेलने वाला हवस का गुलाम नहीं.

‘‘आप अपनी खुशियां मोहनजी में तलाशिए. आप के इस रूप पर उन्हीं का हक है. उन्हें अपनाने की कोशिश कीजिए,’’ इतना कह कर सतीश तेज कदमों से बाहर निकल गया.

राधा ठगी सी उसे देखती रह गई. उसे अपने किए पर अफसोस हो रहा था. वह सोचने लगी, ‘मैं क्यों इतनी कमजोर हो गई? क्यों सतीश को अपना सबकुछ मान बैठी? क्यों इस कदर उतावली हो गई?

‘अगर सतीश ने मुझे न रोका होता तो आज मैं कहीं की न रहती. बाद में वह मुझे ब्लैकमेल भी कर सकता था. मगर वह ऐसा नहीं है. उस ने मुझे भटकने से रोक लिया. कितना महान है सतीश. मुझे उस की दोस्ती पर नाज है.’

लेखक- नरेंद्र सिंह ‘नीहार’

Hindi Love Stories : क्या मानसी अपने पति को धोखा दे रही थी?

Hindi Love Stories : अचानक शुरू हुई रिमझिम ने मौसम खुशगवार कर दिया था. मानसी ने एक नजर खिड़की के बाहर डाली. पेड़पौधों पर झरझर गिरता पानी उन का रूप संवार रहा था. इस मदमाते मौसम में मानसी का मन हुआ कि इस रिमझिम में वह भी अपना तनमन भिगो ले.

मगर उस की दिनचर्या ने उसे रोकना चाहा. मानो कह रही हो हमें छोड़ कर कहां चली. पहले हम से तो रूबरू हो लो.

रोज वही ढाक के तीन पात. मैं ऊब गई हूं इन सब से. सुबहशाम बंधन ही बंधन. कभी तन के, कभी मन के. जाओ मैं अभी नहीं मिलूंगी तुम से. मन ही मन निश्चय कर मानसी ने कामकाज छोड़ कर बारिश में भीगने का मन बना लिया.

क्षितिज औफिस जा चुका था और मानसी घर में अकेली थी. जब तक क्षितिज घर पर रहता था वह कुछ न कुछ हलचल मचाए रखता था और अपने साथसाथ मानसी को भी उसी में उलझाए रखता था. हालांकि मानसी को इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी और वह सहर्ष क्षितिज का साथ निभाती थी. फिर भी वह क्षितिज के औफिस जाते ही स्वयं को बंधनमुक्त महसूस करती थी और मनमानी करने को मचल उठती थी.

इस समय भी मानसी एक स्वच्छंद पंछी की तरह उड़ने को तैयार थी. उस ने बालों से कल्चर निकाल उन्हें खुला लहराने के लिए छोड़ दिया जो क्षितिज को बिलकुल पसंद नहीं था. अपने मोबाइल को स्पीकर से अटैच कर मनपसंद फिल्मी संगीत लगा दिया जो क्षितिज की नजरों में बिलकुल बेकार और फूहड़ था.

अत: जब तक वह घर में रहता था, नहीं बजाया जा सकता था. यानी अब मानसी अपनी आजादी के सुख को पूरी तरह भोग रही थी.

अब बारी थी मौसम का आनंद उठाने की. उस के लिए वह बारिश में भीगने के लिए आंगन में जाने ही वाली थी कि दरवाजा खटखटाने की आवाज आई.

इस भरी बरसात में कौन हो सकता है. पोस्टमैन के आने में तो अभी देरी है. धोबी नहीं हो सकता. दूध वाला भी नहीं. तो फिर कौन है? सोचतीसोचती मानसी दरवाजे तक जा पहुंची.

दरवाजे पर वह व्यक्ति था जिस की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी.

‘‘आइए,’’ उस ने दरवाजा खोलते हुए कुछ संकोच से कहा और फिर जैसे ही वह आगंतुक अंदर आने को हुआ बोली, ‘‘पर वे तो औफिस चले गए हैं.’’

‘‘हां, मुझे पता है. मैं ने उन की गाड़ी निकलते देख ली थी,’’ आगंतुक जोकि उन के महल्ले का ही था ने अंदर आ कर सोफे पर बैठते हुए कहा.

यह सुन कर मानसी मन ही मन बड़बड़ाई कि जब देख ही लिया था तो फिर क्यों चले आए हो… वह मन ही मन आकाश के बेवक्त यहां आने पर कु्रद्ध थी, क्योंकि उन के आने से उस का बारिश में भीगने का बनाबनाया प्रोग्राम चौपट हो रहा था. मगर मन मार कर वह भी वहीं सोफे पर बैठ गई.

शिष्टाचारवश मानसी ने बातचीत का सिलसिला शुरू किया, ‘‘कैसे हैं आप? काफी दिनों बाद नजर आए.’’

‘‘जैसा कि आप देख ही रहीं… बिलकुल ठीक हूं. काम पर जाने के लिए निकला ही था कि बरसात शुरू हो गई. सोचा यहीं रुक जाऊं. इस बहाने आप से मुलाकात भी हो जाएगी.’’

‘‘ठीक किया जो चले आए. अपना ही घर है. चायकौफी क्या लेंगे आप?’’

‘‘जो भी आप पिला दें. आप का साथ और आप के हाथ हर चीज मंजूर है,’’ आकाश ने मुसकरा कर कहा तो मानसी का बिगड़ा मूड कुछ हद तक सामान्य हो गया, क्योंकि उस मुस्कराहट में अपनापन था.

मानसी जल्दी 2 कप चाय बना लाई. चाय के दौरान भी कुछ औपचारिक बातें होती रहीं. इसी बीच बूंदाबांदी कम हो गई.

‘‘आप की इजाजत हो तो अब मैं चलूं?’’ फिर आकाश के चेहरे पर वही मुसकराहट थी.

‘‘जी,’’ मानसी ने कहा, ‘‘फिर कभी फुरसत से आइएगा भाभीजी के साथ.’’

‘‘अवश्य यदि वह आना चाहेगी तो उसे भी ले आऊंगा. आप तो जानती ही हैं कि उसे कहीं आनाजाना पसंद नहीं,’’ कहतेकहते आकाश के चेहरे पर उदासी छा गई.

मानसी को लगा कि उस ने आकाश की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो, क्योंकि वह जानती थी कि आकाश की पत्नी मानसिक रूप से अस्वस्थ है और इसी कारण लोगों से बात करने में हिचकिचाती है.

‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’ अगले दिन भी जब उसी मुसकराहट के साथ आकाश ने पूछा तो जवाब में मानसी भी मुसकरा दी और दरवाजा खोल दिया.

‘‘चाय या कौफी?’’

‘‘कुछ नहीं… औपचारिकता करने की आवश्यकता नहीं. आज भी तुम से दो घड़ी बात करने की इच्छा हुई तो फिर चला आया.’’

‘‘अच्छा किया. मैं भी बोर ही हो रही थी,’’ मानसी जानती थी कि उन्हें यह बताने की आवश्यकता नहीं थी कि क्षितिज कहां है, क्योंकि निश्चय ही वे जानते थे कि वे घर पर नहीं हैं.

इस तरह आकाश के आनेजाने का सिलसिला शुरू हो गया वरना इस महल्ले में किसी के घर आनेजाने का रिवाज कम ही था. यहां अधिकांश स्त्रियां नौकरीपेशा थीं या फिर छोटे बालबच्चों वाली. एक वही अपवाद थी जो न तो कोई जौब करती थी और न ही छोटे बच्चों वाली थी.

मानसी का एकमात्र बेटा 10वीं कक्षा में बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता था. अपने अकेलेपन से जूझती मानसी को अकसर अपने लिए एक मित्र की आवश्यकता महसूस होती थी और अब वह आवश्यकता आकाश के आने से पूरी होने लगी थी, क्योंकि वे घरगृहस्थी की बातों से ले कर फिल्मों, राजनीति, साहित्य सभी तरह की चर्चा कर लेते थे.

आकाश लगभग रोज ही आफिस जाने से पूर्व मानसी से मिलते हुए जाते थे और अब स्थिति यह थी कि मानसी क्षितिज के जाते ही आकाश के आने का इंतजार करने लग जाती थी.

एक दिन जब आकाश नहीं आए तो अगले दिन उन के आते ही मानसी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, कल क्यों नहीं आए? मैं ने कितना इंतजार किया.’’

आकाश ने हैरानी से मानसी की ओर देखा और फिर बोले, ‘‘क्या मतलब? मैं ने रोज आने का वादा ही कब किया है?’’

‘‘सभी वादे किए नहीं जाते… कुछ स्वयं ही हो जाते हैं. अब मुझे आप के रोज आने की आदत जो हो गई है.’’

‘‘आदत या मुहब्बत?’’ आकाश ने मुसकरा कर पूछा तो मानसी चौंकी, उस ने देखा कि आज उन की मुसकराहट अन्य दिनों से कुछ अलग है.

मानसी सकपका गई. पर फिर उसे लगा कि शायद वे मजाक कर रहे हैं. अपनी सकपकाहट से अनभिज्ञता का उपक्रम करते हुए वह सदा की भांति बोली, ‘‘बैठिए, आज क्षितिज का जन्मदिन है. मैं ने केक बनाया है. अभी ले कर आती हूं.’’

‘‘तुम ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया.’’ आकाश फिर बोले तो उसे बात की गंभीरता का एहसास हुआ.

‘‘क्या जवाब देती.’’

‘‘कह दो कि तुम मेरा इंतजार इसलिए करती हो कि तुम मुझे पसंद करती हो.’’

‘‘हां दोनों ही बातें सही हैं.’’

‘‘यानी मुहब्बत है.’’

‘‘नहीं, मित्रता.’’

‘‘एक ही बात है. स्त्री और पुरुष की मित्रता को यही नाम दिया जाता है,’’ आकाश ने मानसी की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘हां दिया जाता है,’’ मानसी ने हाथ को हटाते हुए कहा, ‘‘क्योंकि साधारण स्त्रीपुरुष मित्रता का अर्थ इसी रूप में जानते हैं और मित्रता के नाम पर वही करते हैं जो मुहब्बत में होता है.’’

‘‘हम भी तो साधारण स्त्रीपुरुष ही हैं.’’

‘‘हां हैं, परंतु मेरी सोच कुछ अलग है.’’

‘‘सोच या डर?’’

‘‘डर किस बात का?’’

‘‘क्षितिज का. तुम डरती हो कि कहीं उसे पता चल गया तो?’’

‘‘नहीं, प्यार, वफा और समर्पण को डर नहीं कहते. सच तो यह है कि क्षितिज तो अपने काम में इतना व्यस्त है कि मैं उस के पीछे क्या करती हूं, वह नहीं जानता और यदि मैं न चाहूं तो वह कभी जान भी नहीं पाएगा.’’

‘‘फिर अड़चन क्या है?’’

‘‘अड़चन मानसिकता की है, विचारधारा की है.’’

‘‘मानसिकता बदली जा सकती है.’’

‘‘हां, यदि आवश्यकता हो तो… परंतु मैं इस की आवश्यकता नहीं समझती.’’

‘‘इस में बुराई ही क्या है?’’

‘‘बुराई है… आकाश, आप नहीं जानते हमारे समाज में स्त्रीपुरुष की दोस्ती को उपेक्षा की दृष्टि से देखने का यही मुख्य कारण है. जानते हो एक स्त्री और पुरुष बहुत अच्छे मित्र हो सकते हैं, क्योंकि उन के सोचने का दृष्टिकोण अलग होता है. इस से विचारों में विभिन्नता आती है. ऐसे में बातचीत का आनंद आता है, परंतु ऐसा नहीं होता.’’

‘‘अकसर एक स्त्री और पुरुष अच्छे मित्र बनने के बजाय प्रेमी बन कर रह जाते हैं और फिर कई बार हालात के वशीभूत हो कर एक ऐसी अंतहीन दिशा में बहने लगते हैं जिस की कोई मंजिल नहीं होती.’’

‘‘परंतु यह स्वाभाविक है, प्राकृतिक है, इसे क्यों और कैसे रोका जाए?’’

‘‘अपने हित के लिए ठीक उसी प्रकार जैसे हम ने अन्य प्राकृतिक चीजों, जिन से हमें नुकसान हो सकता है, पर नियंत्रण पा लिया है.’’

‘‘यानी तुम्हारा इनकार है,’’ ऐसा लगता था आकाश कुछ बुझ से गए थे.

‘‘इस में इनकार या इकरार का प्रश्न ही कहां है? मुझे आप की मित्रता पर अभी भी कोई आपति नहीं है बशर्ते आप मुझ से अन्य कोई अपेक्षा न रखें.’’

‘‘दोनों बातों का समानांतर चलना बहुत मुश्किल है.’’

‘‘जानती हूं फिर भी कोशिश कीजिएगा.’’

‘‘चलता हूं.’’

‘‘कल आओगे?’’

‘‘कुछ कह नहीं सकता.’’

सुबह के 10 बजे हैं. क्षितिज औफिस चला गया है पर आकाश अभी तक नहीं आए. मानसी को फिर से अकेलापन महसूस होने लगा है.

‘लगता है आकाश आज नहीं आएंगे. शायद मेरा व्यवहार उन के लिए अप्रत्याशित था, उन्हें मेरी बातें अवश्य बुरी लगी होंगी. काश वे मुझे समझ पाते,’ सोच मानसी ने म्यूजिक औन कर दिया और फिर सोफे पर बैठ कर एक पत्रिका के पन्ने पलटने लगीं.

सहसा किसी ने दरवाजा खटखटाया. मानसी दरवाजे की ओर लपकी. देखा दरवाजे पर सदा की तरह मुसकराते हुए आकाश ही थे. मानसी ने भी मुसकरा कर दरवाजा खोल दिया. उस ने आकाश की ओर देखा. आज उन की वही पुरानी चिरपरिचित मुसकान फिर लौट आई थी.

इसी के साथ आज मानसी को विश्वास हो गया कि अब समाज में स्त्रीपुरुष के रिश्ते की उड़ान को नई दिशाएं अवश्य मिल जाएंगी, क्योंकि उन्हें वहां एक आकाश और मिल गया है.

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