मां मां होती है: भाग-3

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दोनों बहनों में केवल फोन से ही बातें होतीं. कुसुम मां की खाने की फरमाइशें देख कर हैरान हो जाती. अगर कुछ कहो तो मां वही पुराना राग अलापतीं, ‘तुम्हारे पापा होते तो आज मेरी यह गत न होती.’ यह सब सुन कर वह भी चुप हो जाती. मगर रमेश उबलने लगा था. उस ने पीना शुरू कर दिया. अकसर देररात गए घर आता और बिस्तर पर गिरते ही सो जाता.

कुसुम कुछ समझानाबुझाना चाहती भी, तो वह अनसुना कर जाता. दोनों के बीच का तनाव बढ़ने लगा था. मगर आंटी को सिर्फ समय से अपनी सफाई, पूजा, सत्संग और भोजन से मतलब था. इन में कोई कमी हो जाए, तो चीखचीख कर वे घर सिर पर उठा लेतीं. अब हर वक्त प्रज्ञा को याद करतीं कि वह ऐसा करती थी, महेश मेरी कितनी सेवा करता था आदिआदि.

यह सब सुन कर रमेश का खून खौल जाता. असल में महेश अपने भाइयों में सब से छोटा होने के कारण सब की डांट सुनने का आदी था. लेकिन रमेश 2 बहनों का एकलौता भाई होने के कारण लाड़ला पुत्र था. उस के बरदाश्त की सीमा जब खत्म हो गई तो एक रात वह वापस घर ही नहीं आया.

सब जगह फोन कर कुसुम हाथ पर हाथ धर कर बैठ गई. सुबह ननद

का फोन आया कि वह हमारे घर में

है. कानपुर से लखनऊ की दूरी महज

2-3 घंटे की तो है, सारी रात वह कहां था? इस का कोई जवाब ननद के पास भी नहीं था. फिर तो वह हर 15 दिन में बिना बताए गायब हो जाता और पूछने पर तलाक की धमकी देने लगा. कभी कहता, ‘कौन सा सुख है इस शादी से, अंधी लड़ाका सास और बेवकूफ बीवी, न दिन में चैन न रात में.’

कुसुम के शादीशुदा जीवन में तलाक की काली छाया मंडराने लगी थी. वह अकसर मेरे सामने रो पड़ती. आंटी किसी की बात सुनने को तैयार ही नहीं थीं. उस दिन उन की चीखपुकार सुन कर मैं उन से मिलने चली गई. पता चला कुसुम की छोटी बेटी रिनी की गेंद उछल कर उन के कमरे में चली गई. बस, इतने में ही उन्होंने घर सिर पर ले रखा था. पूरा कमरा धोया गया. दरवाजे, खिड़की, परदे, चादर सब धुलने के बाद ही उन्हें संतुष्टि हुई.

कुसुम ने बताया, ‘वह अपनी बेटियों को सिर्फ सोते समय ही मां के कमरे में ले जाती है. बाकी समय वह अपना कमरा बंद कर बैठी रहती है ताकि रिनी और मिनी उन के सामान को हाथ न लगा सकें. वैसे, मिनी 6 साल की हो गई है और बहुत समझदार भी है. वह दिन में तो स्कूल चली जाती है और शाम को दूसरे कमरे में ही बैठ कर अपना होमवर्क करती है, या फिर बाहर ही खेलती रहती है. लेकिन रिनी थोड़ी शैतान है. उसे नानी का बंद कमरा बहुत आकर्षित करता है. वह उस में घुसने के मौके तलाश करती रहती है.

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‘रिनी दिनभर घर में ही रहती है और स्कूल भी नहीं जाती है. आज जब मां रसोई तक उठ कर गईं तो दरवाजा खुला रह गया. रिनी ने अपनी गेंद उछाल कर नानी के कमरे में डाल दी. फिर भाग कर उठाने चली गई. क्या कहूं इसे? 3 साल की छोटी बच्ची से ऐसा क्या अपराध हो गया जो मेरी मां ने हम दोनों को इतने कटु वचन सुना दिए.’

तभी आंटी कमरे से निकल कर मुझ से उलझ पड़ीं, ‘तुम्हारी मां ने तो तुम लोगों को कोई साफसफाई सिखाई नहीं है. मैं ने प्रज्ञा और कुसुम को कैसे काम सिखाया, मैं ही जानती हूं. मगर अपनी औलादों को यह कुछ न सिखा सकी. मैं मर क्यों नहीं जाती. क्या यही दिन देखने बाकी रह गए थे. बेटियों के रहमोकरम पर पड़ी हूं. इसी बात का फायदा उठा कर सब मुझे परेशान करते हैं. कुसुम, तेरी भी 2 बेटियां हैं. तू भी जब मेरी स्थिति में आएगी न, तब तुझे पता चलेगा.’

मैं यह सब सुन कर सन्न रह गई. ऐसा अनर्गल प्रलाप, वह भी अपनी बेटी के लिए. कुसुम अपनी बेटी को गोद में ले कर मुझे छोड़ने गेट तक आ गई.

‘ऐसी मां देखी है कभी जो सिर्फ और सिर्फ अपने लिए जी रही हो?’

मैं क्या जवाब देती?

‘रमेश भी परेशान हो चुका है इन की हरकतों से, हमारे दांपत्य जीवन में भी सन्नाटा पसरा रहता है. जरा भी आहट पा, कमरे के बाहर मां कान लगा कर सुनने को खड़ी रहती हैं कि कहीं हम उन की बुराई तो नहीं कर रहे हैं. ऐसे माहौल में हमारे संबंध नौर्मल कैसे रह सकते हैं? अब तो रमेश को भी घर से दूर भागने का बहाना चाहिए. पता नहीं अपनी बहनों के घर जाता है या कहीं और? किस मुंह से उस से जवाब तलब करूं. जब अपनी मां ही ऐसी हो तो दूसरे से क्या उम्मीद रखना.’

आंटी का सनकीपन बढ़ता ही जा रहा था. उस दिन रिनी का जन्मदिन था, जिसे मनाने के लिए कुसुम और उस की मां में पहले ही बहुत बहस हो चुकी थी. आंटी का कहना था, ‘घर में बच्चे आएंगे तो यहांवहां दौड़ेंगे, सामान छुएंगे.’

कुसुम ने कहा, ‘तुम 2-3 घंटे अपने कमरे को बंद कर बैठ जाना, न तुम्हें कोई छुएगा न ही तुम्हारे सामान को.’

जब आंटी की बात कुसुम ने नहीं सुनी तो वे बहुत ही गुस्से में आ गईं. जन्मदिन की तैयारियों में जुटी कुसुम की उन्होंने कोई मदद नहीं की. मैं ही सुबह से 2-3 बार उस की मदद करने को जा चुकी थी. शाम को सिर्फ 10-12 की संख्या में बच्चे एकत्रित हुए और दोढाई घंटे में लौट गए.

आंटी कमरे से बाहर नहीं आईं. 8 बज गए तो कुसुम ने आंटी को डिनर के लिए पुकारा. तब जा कर वे अपने कोपभवन से बाहर निकलीं. शायद, उन्हें जोरों की भूख लग गई थी. वे अपनी कुरसी ले कर आईं और बरामदे में बैठ गईं. तभी रमेश अपने किसी मित्र को साथ ले कर घर में पहुंचा. उन्हें अनदेखा कर कुसुम से अपने मित्र का परिचय करा कर वह बोला, ‘यह मेरा बचपन का मित्र जीवन है. आज अचानक गोल मार्केट में मुलाकात हो गई. इसीलिए मैं इसे अपने साथ डिनर पर ले कर आ गया कि थोड़ी गपशप साथ में हो जाएगी.’

कुसुम दोनों को खाना परोसने को उठ कर रसोई में पहुंची ही थी कि बरामदे से पानी गिराने और चिल्लाने की आवाज आने लगी. आंटी साबुन और पानी की बालटी ले कर अपनी कुरसी व बरामदे की धुलाई में जुट गई थीं.

दरअसल, जीवन ने बरामदे में बैठ कर सिगरेट पीते समय आंटी की कुरसी का इस्तेमाल कर लिया था. आंटी रसोई से खाना खा कर जब निकलीं तो जीवन को अपनी कुरसी पर बैठा देख आगबबूला हो गईं. और फिर क्या था. अपने रौद्र रूप में आ गईं. जीवन बहुत खिसियाया, रमेश और कुसुम भी मेहमान के आगे शर्म से गड़ गए. दोनों ने जीवन को मां की मानसिक स्थिति ठीक न होने का हवाला दे कर बात संभाली.

दरअसल, आंटी अपने पति की मृत्यु के बाद से खुद को असुरक्षित महसूस करने लगी थीं. वे ज्यादा पढ़ीलिखी न होने के कारण हीनभावना से ग्रस्त रहतीं. दूसरे लोगों से यह सुनसुन कर कि तुम्हारा कोई बेटा ही नहीं है, उन्होंने अपनी पकड़ बेटियों पर बनाए रखने के लिए जो चीखपुकार और धौंस दिखाने का रास्ता अख्तियार कर लिया था, वह बेटियों को बहुत भारी पड़ रहा था.

एक दिन आंटी रात में टौर्च जला कर घूम रही थीं कि किसी सामान में उलझ कर गिर पड़ीं. उन के सिर में अंदरूनी चोट आ गई थी. उस दिन से जो बिस्तर में पड़ीं तो उठ ही न पाईं. 6 महीने गुजर गए, लगता था कि अब गईं कि तब गईं. इसी बीच रमेश का भी तबादला दिल्ली हो गया. कुसुम ने अपनी मां को ऐंबुलैंस में दिल्ली ले जाने का फैसला कर लिया. जब वे जा रही थीं तब यही कह रही थीं, ‘पता नहीं वे दिल्ली तक सहीसलामत पहुंच भी पाएंगी या नहीं.’

मौका पाते ही मैं ने कुसुम को फोन लगाया और हालचाल पूछे. उस ने बताया, ‘‘यहां दीदी के ससुराल वालों का बहुत बड़ा पुश्तैनी घर है. मैं ने भी इसी में एक हिस्से को किराए पर ले लिया है. अब हम दोनों बहनें मिल कर उन की देखभाल कर लेती हैं अपनीअपनी सुविधानुसार.’’

‘‘और तुमहारे पति का मिजाज कैसा है?’’

‘‘उन की तो एक ही समस्या रहती थी हमारी प्राइवेसी की, वह यहां आ कर सुलझ गई. मैं भी अपने पति और बच्चों को पूरा समय दे पाती हूं.’’ उस की आवाज की खनक मैं महसूस कर रही थी.

‘‘और आंटी खुश हैं कि नहीं? या हमेशा की तरह खीझती रहती हैं?’’

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‘‘मां को तो अल्जाइमर रोग लग गया है. वे सबकुछ भूल जाती हैं. कभीकभी कुछ बातें याद भी आ जाती हैं तो थोड़ाबहुत बड़बड़ाने लगती हैं. वैसे, शांत ही रहती हैं. अब वे ज्यादा बातें नहीं करतीं. बस, उन का ध्यान रखना पड़ता है कि वे अकेले न निकलें घर से. यहां दीदी के ससुराल वालों का पूरा सहयोग मिलता है.’’

‘‘तुम्हारी मां धन्य हैं जो इतनी समझदार बेटियां मिली हैं उन को.’’

‘‘मैं तो हमेशा मां की जगह पर खुद को रख कर देखती थी और इसीलिए शांत मन से उन के सारे काम करती थी. मेरी भी 2 बेटियां हैं. मां पहले ऐसी नहीं थीं. पापा का अचानक जीवन के बीच भंवर में छोड़ जाना वे बरदाश्त न कर सकीं और मानसिक रूप से निर्बल होती चली गईं. शायद वे अपने भविष्य को ले कर भयभीत हो उठी थीं. चलो, अब सब ठीक है, जैसी भी हैं आखिर वे हमारी मां हैं और मां सिर्फ मां होती है.’’

और मैं उस की बात से पूरी तरह सहमत हूं.

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