social story in hindi

social story in hindi
डाक्टर बोस ने विनय की सारी बात सुनने के बाद तुरंत अपनी सैक्रेटरी को कैबिन में बुलाया और कहा, ‘‘अगले 2 दिन की मेरी सारी अपौइंमैंट कैंसिल कर दो.’’
डाक्टर बोस ने विनय से कहा, ‘‘सर आप चिंता मत करिए. मैं कल ही बैंगलुरु पहुंच जाऊंगा.’’
विनय ने हाथ जोड़ कर उन्हें थैंक्यू कहा और उठ कर जाने लगा तो डाक्टर बोस ने कहा, ‘‘सर मेरी फीस.’’
विनय वापस मुड़ा और बोला, ‘‘सौरी डाक्टर मैं इस बारे में बात करना भूल गया.’’
डाक्टर बोस ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं. आप एक काम करिए एक खाली चैक पर अपने साइन कर के यहां छोड़ दीजिए.’’
विनय सोचने लगा इन नई पीढ़ी के डाक्टरों को सिर्फ पैसों से मतलब है. इंसान की भावनाओं और तकलीफ से इन्हें कुछ लेनादेना नहीं. उस ने अपने बैग से चैकबुक निकाल एक चैक फाड़ा और उस पर अपने साइन कर के टेबल पर रख दिया.
अगले दिन डाक्टर बोस बैंगलुरु पहुंच गए. उन्होंने अस्पताल जा कर शिखा के
सारे टैस्ट एक बार फिर करवाए और रिपोर्ट आने के बाद दूसरे दिन शिखा का औपरेशन कर दिया. औपरेशन सफल रहा.
विनय डाक्टर बोस को थैंक्यू बोलने के लिए उन से मिलने पहुंचा तो पता चला कि वे औपरेशन करने के एक घंटे बाद ही मुंबई वापस चले गए.
शिखा थोड़े दिन अस्पताल में रहने के बाद ठीक हो कर घर आ गई थी. विनय शिखा को डाक्टर बोस के बारे में बताते हुए कह रहा था
कि थोड़ा अजीब सा रवैया लगा मुझे उन का पर इतनी सी उम्र में इतना बड़ा नाम कमाना कोई छोटी बात नहीं है. तारीफ के लायक तो है
डाक्टर बोस.
दोनों बातें कर ही रहे थे कि कूरियर से एक डाक आई जो नौकर ने ला कर विनय के हाथ में दे दी थी. उस ने लिफाफे को पलट कर देखा तो पीछे डाक्टर बोस का नाम लिखा था.
विनय ने लिफाफा खोला तो उस में वही चैक था जो साइन कर के उस ने डाक्टर बोस
की टेबल पर छोड़ था. चैक में पैसे भरने की जगह अब भी खाली थी, पर चैक के पीछे कुछ लिखा था.
‘‘डियर सर,
‘‘इस महीने की 7 तारीख को मुंबई में मेरे अस्पताल की ओपनिंग है, जिस में आप को अपनी फैमिली के साथ उपस्थित होना है. यह ही मेरी फीस है.
‘‘थैंक्यू.
‘‘आप का डाक्टर बोस.’’
शिखा ने विनय से कहा, ‘‘सच ही कह रहे थे आप यह तो बहुत ही अजीब डाक्टर है. अब तो मेरे मन में भी इन से मिलने की इच्छा जाग उठी है.’’
विनय ने कहा, ‘‘डाक्टर बोस की इस
इच्छा का हमें मान तो रखना ही होगा शिखा. मैं कल ही 7 तारीख की फ्लाइट के टिकट बुक
कर देता हूं और उन्हें मैसेज भी कर देता हूं कि हम 7 तारीख को सुबह की फ्लाइट से मुंबई आ रहे हैं.’’
7 तारीख को विनय और शिखा मुंबई के लिए रवाना हो गए. दोनों एयरपोर्ट से जैसे ही बाहर निकले उन्हें एक आदमी हाथ में डाक्टर विनय सिंह नाम का बोर्ड ले कर खड़ा दिखा.
विनय उस के पास गया और बोला, ‘‘मैं ही हूं डाक्टर विनय सिंह हूं. लेकिन आप को किस ने भेजा है?’’
उस आदमी ने कहा, ‘‘वैलकम सर, मुझे डाक्टर बोस ने आप को रिसीव करने के लिए भेजा है,’’ और फिर उस आदमी ने अस्पताल पहुंच कर विनय और शिखा को पूरे सम्मान के साथ मुख्य अतिथि के स्थान पर बैठा दिया.
शिखा और विनय अचानक मिलने वाले इस सम्मान से बहुत हैरान थे.
शिखा विनय से कह रही थी, ‘‘ये सब
क्या हो रहा है, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है. पहले तो डाक्टर बोस ने हम से फीस नहीं ली और आज यहां बुला कर हमें इतना सम्मान दे
रहे हैं. आखिर इस के पीछे क्या वजह हो
सकती है?’’
विनय शिखा के सवालों पर कुछ प्रतिक्रिया करता उस से पहले ही माइक की आवाज आई, ‘‘वैलकम लेडीज ऐंड जैंटलमैन.’’
विनय ने शिखा को बताया, ‘‘यह ही डाक्टर बोस हैं.’’
डाक्टर बोस ने आगे बोलना शुरू किया, कहा इस से पहले कि मुख्य अतिथि रीबन काट कर अस्पताल की ओपनिग करें मैं इन के प्रभावी व्यक्तित्व के बारे में आप सब को कुछ बताना चाहता हूं.
‘‘अकसर हमारी सफलता के पीछे कुछ ऐसे लोग होते हैं जो भले ही हमारी रोज की जिंदगी का हिस्सा न हों, हर पल हमारे साथ न रहें पर उन की सोच और उन के विचार हमारे दिल और दिमाग पर बहुत गहरी छाप छोड़ देते हैं, जिस कारण हम उन्हें अपना आदर्श मान लेते हैं.
‘‘आज से 20 साल पहले सिगनल पर बेहोश पडे़ एक लड़के को अगर ऐसे ही एक महान व्यक्तित्त्व ने सहारा न दिया होता, समय पर उसे अस्पताल पहुंचा कर उस की मदद न की होती और ममता भरा हाथ उस के सिर पर न फेरा होता तो वह लड़का आज डाक्टर अतुल बोस बन कर आप के सामने खड़ा न होता. सिगनल पर किताबें बेचने वाले लड़के से डाक्टर बोस बनने तक का मेरा सफर जिस महान व्यक्तित्व से प्रभावित है आप सभी को आज उन से मिलवाते हुए मुझे बेहद खुशी हो रही है.’’
शिखा और विनय ये सब सुन कर अपनी कुरसी पर से उठ खड़े हुए. दोनों हैरानी से एकदूसरे की तरफ देख रहे थे और सोच रहे थे अतुल ही डाक्टर बोस है. शिखा को ये सब
किसी सपने से कम नहीं लग रहा था. उस ने कभी नहीं सोचा था कि अतुल से उस की मुलाकात इतने आश्चर्यजनक ढंग से होगी. शिखा की आंखें आज नम नहीं थीं बल्कि खुशी के आंसुओं से भरी थीं.
डाक्टर बोस शिखा और विनय के पास आए और फिर शिखा का हाथ
पकड़ा कहा, ‘‘आइए मैडमजी अपने अतुल की सफलता का दरवाजा अपने हाथों से खोलिए.’’
शिखा ने रिबन काट कर अतुल के अस्पताल का उद्घाटन कर दिया.
डाक्टर बोस जैसे ही शिखा और विनय के पैर छूने के लिए झुके तो विनय ने उन्हें अपने सीने से लगा लिया. शिखा ने उन के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘मुझे तुम पर बहुत गर्व है अतुल. आखिर तुम हार्ट स्पैशलिस्ट बन ही गए.’’
अतुल ने हंसते हुए कहा, ‘‘हार्ट स्पैशलिस्ट नहीं मैडमजी दिल का डाक्टर.’’
‘‘हां, दिल का डाक्टर,’’ बोल कर शिखा भी जोर से हंस दी.
शिखा दौड़ते हुए विनय के पास आई और बोली, ‘‘क्या हुआ सरगम को? आपने मुझे फोन क्यों नही किया? बुखार कैसे आ गया उसे.’’
शिखा सरगम को देखने के लिए उस के कमरे मे जाने लगी तो विनय ने उस का हाथ पकड़ कर उसे सोफे पर बैठा दिया और पानी का गिलास उसे देते हुए कहा, ‘‘कुछ नहीं हुआ है सरगम को, वह बिलकुल ठीक है और तुम से कितनी बार कहा है कि इतनी जल्दी टैंशन में मत आया करो. पहले ही बीपी ज्यादा रहता है.’’
शिखा ने कहा, ‘‘पर मम्मी ऐसा क्यों बोल रही हैं?’’
‘‘उफ शिखा मां की आदत तुम जानती हो न किसी भी बात को बढ़ाचढ़ा कर बोलने की उन की पुरानी आदत है. तुम परेशान मत हो. सफर से आई हो. आराम करो. मैं हौस्पिटल जा कर आता हूं… शाम को मिलते हैं.’’
शाम को विनय के अस्पताल से लौटने के बाद शिखा और विनय साथ बैठ कर चाय पी रहे थे, तो विनय ने शिखा से पूछा, ‘‘तुम्हारी मीटिंग कैसी रही?’’
‘‘अच्छी रही. आप को कुछ और भी बताना है,’’ बोल कर शिखा ने विनय को अतुल के बारे में सब बताया, ‘‘मुझे पूरा यकीन है वह लड़का अतुल जरूर एक दिन बहुत बड़ा हार्ट स्पैशलिस्ट बनेगा.’’
विनय ने शिखा से कहा, ‘‘बहुत अच्छा किया तुम ने उसे अपना कार्ड दे कर, उसे शिक्षित होने के लिए जो भी मदद चाहिए होगी हम उस तक पहुंचाने की पूरी कोशिश करेंगे.’’
शिखा ने कहा, ‘‘जी, मैं ने भी यही सोच कर उसे अपना कार्ड दिया है.’’
इस बात को 1 साल बीत गया था. अचानक एक दिन शिखा के फोन की घंटी बजी.
उस ने फोन उठा कर हैलो बोला तो उस के चेहरे पर मुसकान आ गई, ‘‘हैलो अतुल
कैसे हो? तुम ठीक हो न? किसी मदद की जरूरत है क्या? बोलो बेटा.’’
अतुल ने कहा, ‘‘हां मैडमजी मै ठीक हूं और किसी मदद की जरूरत नहीं है. आप को एक बात बतानी थी इसलिए फोन किया.’’
‘‘हांहां बोलो,’’ शिखा ने कहा.
अतुल ने कहा, ‘‘मैडमजी मैं ने 10वीं की परीक्षा में टौप किया है और मुझे यहां जूतों के एक बड़े शोरूम में नौकरी भी मिल गई है. अब मैं अपनी आगे की पढ़ाई का खर्च अच्छे से उठा सकूंगा. यही बताने के लिए आप को फोन किया,’’ शिखा ने कहा, ‘‘शाबाश अतुल. ऐसे ही आगे बढ़ते रहना. तुम सोच भी नहीं सकते तुम्हारी इस सफलता के बारे में सुन कर मुझे कितनी खुशी हो रही है. आगे कभी किसी तरह की मदद की जरूरत पडे़ तो फोन जरूर करना.’’
‘‘थैंक्यू मैडमजी, अब फोन रखता हूं्,’’ अतुल बोला.
फोन कट चुका था. अतुल की सफलता की खबर ने शिखा की आंखों को फिर से नम कर दिया था.
शिखा ने विनय को अतुल की सफलता के बारे में बताया तो उसे भी बहुत खुशी हुई. कुछ महीनों बाद शिखा को एक बार फिर औफिस के काम से मुंबई जाने का अवसर मिला. अतुल से मिलने की आस में शिखा बहुत उत्साहित थी. इस बार विनय भी शिखा के साथ मुंबई जा रहा था. शिखा को पूरा यकीन था कि विनय को अतुल से मिल कर बहुत खुशी होगी.
मुंबई आ कर शिखा ने सब से पहले अपने औफिस का काम खत्म किया. उस के बाद विनय के साथ अतुल से मिलने के लिए उसी सिगनल पर पहुंच गई जहां अतुल उसे मिला था. अतुल वहां नजर नहीं आया तो शिखा ने उस सिगनल पर सामान बेचने वाले दूसरे बच्चों से अतुल के बारे में पूछताछ की. तब उन बच्चों ने बताया कि अतुल अब सिगनल पर किताबें नहीं बेचता. उस की एक बड़ी दुकान में नौकरी लग गई है.
शिखा ने दुकान का नाम पूछा तो किसी को उस की जानकारी नहीं थी. शिखा सोचने लगी कि अतुल ने जब फोन किया था तब बताया तो था कि जूतों के शोरूम में नौकरी मिली है उसे. कितनी बड़ी गलती हो गई मेरे से. मैं ने अतुल से दुकान का नाम नहीं पूछा. ये सब सोच कर शिखा बहुत निराश हो गई. उस ने थोड़ी देर सोचा, फिर ड्राइवर से कहा, ‘‘गाड़ी स्टेशन के पास वाली झोंपड़पट्टी की तरफ ले चलो.’’
‘‘कौन सा स्टेशन मैडम?’’ ड्राइवर ने पूछा, ‘‘मुंबई में बहुत स्टेशन हैं. जब तक आप नाम नहीं बताएंगी मैं आप को नहीं ले जा पाऊंगा.’’
विनय ने शिखा को समझाया कि डाइवर सही कह रहा है. मुंबई जैसे शहर में बिना किसी जानकारी के किसी को ढूंढ़ना आसान नहीं है.
शिखा और विनय अगले दिन बैंगलुरु लौट आए. शिखा को अतुल से मुलाकात न हो पाने का बहुत अफसोस हुआ.
अतुल का फिर कभी फोन नहीं आया.
कहते हैं समय के साथ हर याद धुंधली पड़ने लगती है.
मगर 20 साल गुजर जाने के बाद भी शिखा के जेहन में अतुल आज भी एक मासूम सी याद बन कर अपनी जगह बनाए हुए था. शिखा और विनय अब सीनियर सिटिजन की श्रेणी में आ चुके थे. उन की बेटी सरगम की शादी हो चुकी थी. शिखा की तबीयत बीपी ज्यादा होने के कारण अकसर खराब रहने लगी थी. विनय ने सरगम की शादी के बाद शिखा की नौकरी छुड़वा दी थी. अब विनय अपना ज्यादा समय शिखा के साथ ही गुजारता था.
अचानक एक दिन शिखा की तबीयत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई.
विनय ने तुरंत उसे अपने अस्पताल में भरती कर दिया. सारे टैस्ट करवाने के बाद विनय समझ गया कि अब औपरेशन ही शिखा का आखिरी इलाज है. उस ने शिखा के औपरेशन के लिए किसी बड़े हार्ट सर्जन से संपर्क करने का फैसला लिया.
उस ने इस बारे में अपने अस्पताल के दूसरे डाक्टरों से सलाह ली तो उन्होंने बताया हार्ट स्पैशलिस्ट की सूची में आजकल डाक्टर बोस का नाम सब से ऊपर है पर वे बहुत व्यस्त रहते हैं. उन से महीनों पहले अपौइंमैंट लेनी पड़ती है.’’
विनय ने डाक्टर अतुल के क्लीनिक में
फोन कर के अपौइंमैंट मांगा तो पता चला वे सेमिनार अटैंड करने अमेरिका गए हैं और 2 दिन बाद लौटेंगे.
2 दिन बाद विनय डाक्टर बोस से मिलने मुंबई पहुंच गया. विनय ने उन की सैक्रेटरी को अपना कार्ड दिया और आग्रह करते हुए कहा, ‘‘मेरा डाक्टर बोस से मिलना बहुत जरूरी है.’’
थोड़ी देर बाद विनय को बुलाया गया. वह जैसे ही उन के कैबिन के अंदर गया तो हैरान हो गया. उस ने डाक्टर बोस की जो छवि अपने मन में बनाई थी वह बिलकुल उस के विपरीत थे. उन की उम्र 40 के आसपास रही होगी. इतनी सी उम्र में इतना बड़ा नाम, उस ने तो सोचा था डाक्टर बोस तजरबे के साथ उम्र में भी काफी बडे़ होंगे, इसीलिए तो उन का नाम हार्ट सर्जन की सूची में सब से ऊपर है.’’
विनय को देख कर डाक्टर बोस अपनी कुरसी से उठ कर खडे़ हो गए और बोले, ‘‘आइए सर, क्या सेवा कर सकता हूं आप की?’’
विनय ने शिखा की तबीयत की पूरी जानकारी देते हुए उस की सारी रिपोर्टें उन्हे दिखाईं.
गाड़ी के अचानक ब्रेक लगने से शिखा का ध्यान बाहर गया तो उस ने देखा कि सिगनल पर बहुत भीड़ जमा थी. उसे मीटिंग में जाने के लिए देर हो रही थी. उस ने ड्राइवर से उतर कर देखने को कहा तो ड्राइवर ने बताया कि कोई 14-15 साल का लड़का है. सडक पर बेहोश पड़ा है. शायद किसी गाड़ी ने उसे टक्कर मारी है.’’
शिखा ने कहा, ‘‘उसे अस्पताल ले जाना चाहिए.’’
ड्राइवर हंसा और बोला, ‘‘अरे मैडम लगता है आप मुंबई में नई आई हैं, इसलिए ऐसा कह रही हैं.’’
यहां हर टै्रफिक सिगनल की यही कहानी है. गलती इन बच्चों के मांबाप की है जो छोटी सी उम्र में इन्हें काम पर लगा कर छोड़ देते हैं. चलिए, मैं आप को दूसरे रास्ते से पहुंचा देता हूं.’’
शिखा ने कहा, ‘‘नहीं रुको.’’
वह गाडी से उतरी और उस ने भीड़ में खड़े लोगों से चिल्लाते हुए कहा, ‘‘इस बच्चे की जगह अगर आप में से किसी का बच्चा होता तब भी आप लोग ऐसे ही खड़े हो कर तमाशा देखते? चलिए हटिए सब यहां से.’’
शिखा ने ड्राइवर से कहा, ‘‘बच्चे को उठा कर गाड़ी में लिटा दो और जल्दी से किसी अस्पताल ले चलो,’’ फिर उस ने फोन कर के अपनी मीटिंग कैंसिल कर दी थी.’’
अस्पताल में डाक्टर ने उस बच्चे का चैकअप किया और शिखा से
कहा, ‘‘अच्छा हुआ आप इसे समय पर यहां ले आईं. सिर पर चोट लगी है. इसे यहां लाने मैं थोड़ी देर और होती तो खतरा हो सकता था. अब डरने की बात नहीं है. थोड़ी देर बाद इसे होश आ जाएगा, फिर यह घर जा सकता है.’’
शिखा उस लड़के के पास जा कर बैठ गई थी. कुछ देर बाद उसे होश आ गया था. शिखा ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा, ‘‘अब कैसा लग रहा है अतुल? दर्द तो नहीं हो रहा न?’’
उस बच्चे ने हैरानी से शिखा की ओर देखा और कहा, ‘‘अरे मैडमजी, आप को मेरा नाम कैसे पता?’’
शिखा ने कहा, ‘‘तुम्हारे हाथ पर लिखा है न.’’
अतुल ने कहा, ‘‘हां, पर यह तो बंगला में लिखा है? आप को बंगाली भाषा आती है?’’
‘‘हां थोड़ीबहुत आती है. चलो अब तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देती हूं,’’ शिखा ने कहा.
‘‘नहीं मैडमजी. मैं अभी घर नहीं जा सकता. मुझे अभी काम है. आप को मेरे आसपास एक किताबों का थैला पड़ा मिला होगा न?
‘‘हां वह गाड़ी में ही है. चलो. ड्राइवर को बता दो तुम्हें कहां छोड़ना है,’’ शिखा ने कहा.
गाड़ी में बैठते ही शिखा के बौस का फोन आ गया. वे शिखा पर मीटिंग कैंसिल करने के लिए चिल्ला रहे थे. शिखा उन्हें समझाने की कोशिश कर रही थी.
अतुल बडे़ ध्यान से सब सुन रहा था.
शिखा के फोन रखने के बाद अतुल ने उन से कहा ‘‘माफ कर दीजिए मैडमजी, ऐसा लग रहा है कि मेरे कारण आप को डांट पड़ गई. आप के काम का भी नुकसान हो गया. आप को देख कर लगता है कि आप किसी ऊंचे पद पर काम करती है.’’
शिखा ने हंसते हुए कहा, ‘‘हां मैं बैंगलुरु में एक बड़ी कंपनी में सीईओ हूं. यहां मुंबई में एक मीटिंग के लिए ही आई थी, पर तुम्हें माफी मांगने की जरूरत नहीं है. मिटिंग तो कल भी हो जाएगी पर आज अगर मै तुम्हें परेशानी में छोड़ कर चली जाती तो खुद से कभी नजरें नहीं मिला पाती. किसी के कठिन समय में उस के काम आना इस से बडा दूसरा और कोई काम नहीं होता. अच्छा अब तुम अपने बारे में भी तो कुछ बताओ,’’ शिखा ने कहा.
‘‘मैं अनाथ हूं मैडमजी,’’ अतुल बोला.
एक मुंहबोली मौसी है उन के साथ स्टेशन के पास वाली झोंपड़पट्टी में रहता हूं. सरकारी स्कूल में 9वीं कक्षा का छात्र हूं. मौसी बड़ी मुश्किल से मेरे खानेपीने का खर्च उठा पाती हैं. मुझे पढ़नेलिखने का बहुत शौक है, इसलिए स्कूल छूटने के बाद सिगनल पर ये कहानी की किताबें बेच कर खुद की शिक्षा का इंतजाम करता हूं.’’
शिखा ने पूछा, ‘‘क्या बनना चाहते हो?’’
अतुल ने बिना देर किए जवाब दिया, ‘‘डाक्टर और वह भी हार्ट स्पैशलिस्ट.’’
शिखा ने कहा, ‘‘अरे वाह. दिल का डाक्टर? इस की कोई खास वजह?’’
अतुल ने कहा, ‘‘मैं ने अपनी मां को नहीं देखा मैडमजी पर मेरी मौसी बताती हैं कि दिल का दौरा पड़ने से उन की मौत हुई थी. इसलिए मैं ने सोचा है कि मैं दिल का डाक्टर बनूंगा. अपनी मां के लिए तो मैं कुछ नहीं कर सका पर दूसरों के काम आ कर उन की सेवा कर के मुझे ऐसा लगेगा कि मै अपनी मां को श्रद्धांजलि दे पाया.’’
‘‘तुम्हारी सोच बहुत अच्छी है अतुल,’’ शिखा ने कहा.
फिर शिखा ने अतुल को बताया कि उस के पति भी बैंगलुरु में बडे़ डाक्टर हैं.
अतुल ने कहा, ‘‘अच्छा, क्या नाम है साहबजी का?’’
‘‘डाक्टर विनय सिंह.’’
‘‘मैं साहबजी से जरूर मिलना चाहूंगा. अगली बार जब आप मुंबई आओ तो साहबजी को भी साथ में लाना.’’
शिखा ने हंसते हुए कहा, ‘‘वे बहुत वयस्त रहते हैं, फिर भी अगर कभी मौका लगा तो तुम्हारे लिए कोशिश जरूर करूंगी.’’
बातोंबातों में अतुल की मंजिल आ चुकी थी. वह गाड़ी से उतरा तो शिखा भी उस के साथ उतर गई.
‘‘चलता हूं मैडमजी आप की मदद के लिए बहुतबहुत शुक्रिया,’’ और फिर उस ने शिखा के पैर छूए.’’
अतुल का पैर छूना शिखा को भावुक कर गया. शिखा की आंखें नम हो गई थीं.
उस ने अतुल से कहा, ‘‘तुम एक बहुत अच्छे इंसान हो अतुल. अपने अंदर की मासूमियत को कभी खोने मत देना और हां याद रखना कोई भी अच्छे काम को उस के अंजाम तक पहुंचाने में बहुत बाधाएं आती हैं, पर हार मत मानना, इसी लगन और मेहनत के साथ पढ़ाई करना और आगे बढ़ना.’’
शिखा ने अपने पर्स में से अपना कार्ड निकाला और अतुल को देते हुए कहा, ‘‘इस में मेरा फोन नंबर है, कभी भी किसी भी तरह की कोई मदद चाहिए होगी तो फोन कर लेना. मुझे तुम्हारी मदद करने में बहुत खुशी होगी.’’
अतुल ने कार्ड ले कर अपने थैले में डाल लिया और शिखा से कहा, ‘‘आपकी कही हुई हर बात को मैं हमेशा याद रखूंगा मैडमजी.’’
शिखा देर तक उसे जाते हुए देखते रही.
अतुल ने अपने थैले में से कुछ किताबें निकाल कर हाथ में पकड़ीं, थैला कंधे पर लटकाया और सिगनल पर रुकने वाली गाडि़यों के पीछे भागने लगा.
शिखा वापस आ कर गाड़ी में बैठ गई थी. अगले दिन उस ने अपनी मीटिंग अटैंड की और वापस बैंगलुरु के लिए रवाना हो गई.
शिखा घर पहुंची तो उस ने देखा उस की सास और विनय किसी बात को ले कर बहस कर रहे थे.
उस की सास ने जैसे ही शिखा को देखा उन की आवाज ने जोर पकड़ लिया, ‘‘लो आ गई मेम साहब, बच्ची 2 दिन से बुखार में पड़ी है. फुरसत मिल गई होगी बाहर के कामों से तो घरपरिवार पर भी थोड़ी नजर डाल लेना,’’ बोल कर सास अपने कमरे में चली गई.