मेड इन चाइना फिल्म रिव्यू: लेखक व निर्देशक की विफलता का परिणाम

रेटिंगःदो स्टार

निर्देशकः मिखिल मुसाले

कलाकारः राज कुमार राव,मौनी रौय, गजराज राव,बोमन ईरानी, परेश रावल,सुमित व्यास व अन्य.

अवधिः दो घंटे नौ मिनट

परिंदा जोशी के उपन्यास ‘‘मेड इन चाइना’’ पर इसी नाम की फिल्म ‘‘मेड इन चाइना’’ लेकर आए हैं, जो कि एक गुजराती बिजनेसमैन की कहानी है.  मगर इसमें टैबू समझ जाने वाले सेक्स के विषय का मिश्रण कर चूंचूं का मुरब्बा बना डाला.  फिल्मकार ने उपन्यास का बंटाधार कर डाला. .

कहानीः

फिल्म की कहानी अहमदाबाद के एक गुजराती व्यापारी परिवार की है. परिवार के मुखिया मेहता (मनोज जोशी) के दो बेटे देवराज (सुमित व्यास) और रघुवीर (राज कुमार राव) हैं.  रघुवीर की पत्नी रूक्मणी (मौनी रौय) और एक बेटा है. मेहता ने अपना व्यापार रघुवीर को सौंपकर खुद एक मंदिर के ट्रस्टी बन गए हैं.  देवराज तो एक मोटीवेशनल स्पीकर (गजराज राव) के साथ जुड़े हुए हैं.  रघुवीर अब तक 13 तरह के व्यापार में हाथ आजमा चुका है और हर व्यापार में वह असफल रहा है. मगर उसकी पत्नी रूक्मणी हमेशा उसके साथ खड़ी नजर आती है.

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फिलहाल रघुवीर नेपाली चटाई बेच रहा है,मगर लाभ नहीं हो रहा है. मोटीवेशनल स्पीकर के लिए चीन से धन इकट्ठा करने के लिए देवराज को चीन जाना है,वह अपने पिता से कहकर रघुवीर के साथ ले जाता है. वहां देवराज तो असफल हो जाता है, मगर रघ्ुावीर को एक चीनी मिलता है, जिससे रघुवीर को सेक्स कमजोरी दूर करने की दवा का नुस्खा मिल जाता है. अब रघुवीर भारत वापस आकर भारतीय जुगाड़ के साथ नया बिजनेस शुरू करता है. इसके लिए वह मशहूर सेक्सोलॉजिस्ट डाक्टर वर्दी (बोमन ईरानी)के साथ हाथ मिलाता है. तो वहीं वह मशहूर फायनेंसर तमन (परेश रावल)से भी सलाह लेता रहता है. सारा खेल जम जाता है और उसकी सेक्स कमजोरी ूदूर करने की दवा ‘‘टाइगर सूप’’उंची कीमत पर बिकने लगती है. फिर तमन  बहुत बड़ी राशि रघुवीर के व्यापार में लगाते हैं. इससे मोटीवेशनल स्पीकर और उसके भाई देवराज को तकलीफ होती है. वह उसे फंसाने की सोचने लगते हैं. फिर कहानी कई मोड़ो से होकर गुजरती है और एक दिन वह बहुत बड़ी कारपोरेट कंपनी का सीईओ बन जाता है.

निर्देशनः

पूरी फिल्म देखने के बाद यह अहसास करना मुश्किल हो जाता ैहै कि ‘‘मेड इन चाइना’’के निर्देशक वही मिखिल मुसाले है,जिन्हे दो वर्ष पहले गुजराती फिल्म‘‘रौंग साइड राजू’’ के लिए सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था. इसकी सबसे बड़ी कमजोर कड़ी पटकथा है. निर्देशक मिखिल मसाले ने दीवाली के अवसर पर पूरे परिवार का मनोरंजन करने के साथ संदेश देने की नेक नीयत से एक गुजराती व्यवसायी एंटरप्रिनोर की कहानी के साथ भारत में टैबू समझे जाने वाले सेक्स समस्या पर जागरूकता वाली फिल्म बनाने का प्रयास किया,मगर ऐसा करते समय वह कुछ नया नही परोस पाए. फिल्म सेक्स, सेक्स से जुड़़ी बीमारी तथा सेक्स शिक्षा से जुड़ी तमाम वर्जनाओ पर बात करती है, मगर फिल्म का क्लायमेक्स जरुरत से ज्यादा डॉ.  वर्दी का उपदेशात्मक भाषण के अलावा कुछ नही है. इतना ही नही इसी तरह का क्लायमेक्स और यही बातें कुछ समय पहले प्रदर्शित असफल फिल्म ‘‘खानदानी शफाखाना’’ में दर्शक देख चुके हैं. सबसे बड़ी समस्या यह है कि फिल्म से ह्यूमर ही गायब है.

इंटरवल से पहले फिल्म कुछ ज्यादा ही कमजोर है. कहानी आगे बढ़ती नहीं,बल्कि घसीटी जाती है. देवरासज का किरदार जिस तरह से परदे पर आता है और रघुवीर से उसकी बातचीत, इस बात का असहास ही नहीं कराती कि वह दोनों भाई हैं. कुछ किरदारों का औचित्य समझ में नही आता. इंटरवल के बाद कहानी गति पकड़ती है.

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अभिनयः

रघुवीर के किरदार में राज कुमार राव ने बेहतरीन अभिनय किया है. बोमन ईरानी ने छा गए हैं.  पूरी फिल्म सिर्फ राज कुमार राव व बोमन ईरानी के ही कंधे पर है. इनके बीच की केमिस्ट्री देखते ही बनते हैं.  मगर कई दृश्यो में बोमन ईरानी के आगे अभिनय के मामले में राज कुमार राव बौने साबित होते है. मौनी रौय का किरदार तो जबरन ठूसा हुआ लगता है. मौनी ने यह फिल्म क्यों की,यह तो वही जाने. अमायरा दस्तूर की प्रतिभा को जाया किया गया. सुमित व्यास और गजराज राव के किरदार सही ढंग से लिखे ही नहीं गए. लंबे समय बाद परदे पर परेश रावल का आगमन सुखद अहसास देता है.

राज कुमार राव,बोमन ईरानी और परेश रावल की मौजूदगी के चलते फिल्म का वजूद बचा रहता है.

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