महायोग: धारावाहिक उपन्यास, भाग-3

अब तक की कथा :

नील लंदन से अपनी मां के साथ लड़की देखने भारत आया था. दिया व उस के परिवार के ठाटबाट से प्रभावित नील व उस की मां ने विवाह के लिए तुरंत हां कर दी थी. अपनी दादी की कन्यादान करने की जिद तथा पंडित की ‘महायोग’ की भविष्यवाणी ने दिया के पत्रकार बनने के सपने को चिंदीचिंदी कर के हवा में बिखरा दिया.

अब आगे..

यशेंदु के मन में कहीं कुछ हलचल व बेचैनी थी. एक तरफ उन्हें दिया रूपी घर की रोशनी के विलीन हो जाने का गम सता रहा था तो दूसरी ओर मां के प्रति उन का दायित्व व आदर उन्हें उन के चरणों में झुकने को मजबूर कर रहे थे. आज की युवतियों के लिए केवल पति पा जाना ही उपलब्धि नहीं होती, वे पहले अपने भविष्य के प्रति सचेत व चौकन्नी होती हैं. उस के बाद विवाह के बारे में सोचती हैं. दिया का विवाह हुआ पर उसे स्वयं ही विश्वास नहीं हो रहा था कि वाकई उसी का विवाह हुआ है.

दिया सुंदर थी. मुसकराते मुख पर सदा एक चमक बनी रहती. इसी दिया को उस की सहेली के भाई के विवाह में नाचते हुए जब एक परिवार ने देखा तो झट से उन्हें लंदन में बसे हुए अपने घनिष्ट मित्र की याद आई. मित्र की मृत्यु हो चुकी थी, उन की पत्नी और बेटा लंदन में ही रहते थे. मां अपने सुपुत्र के लिए सुंदर, सुघड़ बहू की तलाश कर रही थी. दिया को जिन लोगों ने पसंद कर लिया था वे खोजते हुए दिया की दादी के पास पहुंच गए थे और उन्होंने सारी बात दादी के समक्ष खोल कर रख दी थी. लंदन वाला लड़का अपनी मां के साथ जल्दी ही भारत में दुलहन खोजने आने वाला था. इस से पहले भी वह दुलहन की तलाश में 2-3 बार भारत के चक्कर लगा चुका था. परंतु कहीं पर जन्मपत्री न मिलती तो कहीं उन के हिसाब से सुंदर, सुशील कन्या न मिल पाती. दिया को पसंद करते ही लड़के के पिता के मित्र ने दिया की दादी से मिल कर जन्मपत्री बनवा ली थी और इस प्रकार दिया के जीवन पर विवाह की मुहर लगाने का फैसला करना निश्चित होने जा रहा था.

लड़का गोत्र, धर्म के अनुसार भी उच्च था और सितारों के हिसाब से भी. दादी को बस एक ही बात की हिचक थी कि उन की पोती सात समंदर पार चली जाएगी तो म्लेच्छ हो जाएगी परंतु जब उन्होंने बिचौलिए से यह सुना कि लंदन में बस जाने वाला परिवार अति धार्मिक, पूजापाठ व पंडितपुजारियों को पूजने वाला है तो उन की बाछें खिल गईं. अरे, ऐसा ही तो घरवर चाहिए था उन्हें अपनी पोती के लिए. बस, इतनी दूर. बीच वालों ने आश्वासन दिया, ‘‘अरे अम्माजी, आजकल ये दूरी क्या दूरी है. यशेंदुजी तो कितनी बार औफिस के काम से विदेश जा चुके हैं. पूरी दुनियाभर का दौरा कर लिया है उन्होंने, फिर लंदन तो ये रहा.’’

बीच वालों ने चुटकी बजाते हुए दिया की दादी के समक्ष कुछ ऐसा खाका खींचा कि दादी बिना लड़के को देखे व बिना लड़के की मां से मिले ही विभोर हो गईं और उन पर व यशेंदु पर कुछ ऐसा सम्मोहन हुआ कि उन्होंने पंडित से दोनों की कुंडली मिलवाने का फैसला कर ही लिया. जब कामिनी से ही पूछने की आवश्यकता नहीं समझी गई तो दिया की तो बात ही कहां आती थी? परंतु जब कामिनी के समक्ष बात आई तब वह छटपटा उठी और  उस ने दबे स्वर से विरोध किया भी परंतु उन के पुरोहित के हिसाब से जन्मपत्री इतनी बढि़या मिल रही थी कि मानो संसार के सर्वश्रेष्ठ गुण दिया की झोली में आ पड़ेंगे. कामिनी को लगा कि उस की ही कहानी एक बार फिर दोहराई जा रही है.

कामिनी ने रोती हुई दिया को समझाया था, अभी कौन सा लड़के ने उसे और उस ने लड़के को देख लिया है. अभी दिल्ली दूर है, चिंता न करे. परंतु दिल्ली दूर नहीं थी. 15 दिनों में ही वह सुदर्शन लड़का अपनी मां के साथ अहमदाबाद पधार गया. कामिनी ने कई बार यशेंदु यानी यश से कहा कि वह कम से कम लड़के वालों के मूल का तो पता कर ले. यश ने पूछताछ जो भी की हो, पत्नी को तो अपने खयाल से उस समय संतुष्ट कर ही दिया था, जो वास्तव में अंदर से बहुत अधिक असहज थी.

दिया का भी बुरा हाल था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि उस के घर वाले उसे इस प्रकार घर से खदेड़ने पर क्यों तुले हैं? उत्तर वही था जन्मपत्री का बहुत बढि़या मिलान, क्या ग्रह हैं, सारे गुण मिल रहे हैं न.

‘‘नहीं यश, इस लड़के को हाथ से न जाने देना,’’ दादी बेटे को फुसला रही थीं.

वैसे तो यशेंदु ने भी मन ही मन कहीं कुछ हलचल सी, बेचैनी सी महसूस की थी परंतु मां के बारंबार एक ही बात की पुनरावृत्ति करने व पंडित के दृढ़ विश्वास के कारण उन के मन में भी अपनी बेटी के भविष्य की एक सुखद झांकी सज गई थी. उन की लाड़ली सुंदर, कमसिन व फूल सी प्यारी थी.

हर व्यक्ति को अपनी मानसिक व शारीरिक जरूरतों को पूरा करना होता है. ये जरूरतें नैसर्गिक हैं. ये यदि न हों तो भी व्यक्ति नौर्मल नहीं है और यदि ये पूरी न हों तो भी व्यक्ति नौर्मल न रहे. प्रकृति के साथ किसी भी प्रकार का झगड़ाटंटा मोल लेने की आखिर जरूरत क्या है? अब अपनी बात को बल देने अथवा अपनी बात मनवाने या फिर प्राकृतिक गुणों अथवा अवगुणों को किसी गणना से अपने अनुसार फिट बैठाने के लिए हम जिन उपायों को उपयोग में लाते हैं वे तो हमारे स्वयं के ही बनाए गए होते हैं. परंतु जब गले तक डूब कर हम उन में बारंबार डुबकी लगाते रहते हैं तो कभी न कभी तो थोड़ाबहुत पानी गले के अंदर भी पहुंच ही जाता है. यही हाल यशेंदु का हो रहा था.

उन्हें कभी मां की बात सही लगती तो वे उन के साथ बेटी के ब्याह के स्वप्निल समुद्र में गोते लगाने लगते, कभी फिर कामिनी पर दृष्टि घुमाते तो कामिनी की बात उन्हें काफी हद तक ठीक लगती और जब अपनी लाड़ली पर दृष्टिपात करते तो उन का कलेजा मुंह को आता. हाय, अपनी फूल सी बच्ची को अपनी दृष्टि से इतनी दूर भेज देंगे. उस के जाने से रह क्या जाएगा इस घर में. सारी रोशनी उस के जाते ही विलीन हो जाएगी. परंतु मातापिता की परमभक्ति ने यश का पलड़ा मां

के चरणों में झुका दिया था. सालभर पहले पिता तो पोती का कन्यादान देने की हुड़क मन में समेटे कूच कर गए थे, अब क्या मां भी? नहींनहीं, वे रात को उठ कर बैठ जाते.

कामिनी सबकुछ देखसुन कर भी न कुछ देख पाती, न कुछ सुन पाती. एकाध बार एकांत में पति के सम्मुख उस ने अपनी विचारधारा रखने का प्रयास किया था, ‘‘क्यों नहीं आप, अम्माजी को समझा पाते? आप शिक्षित हैं, दुनिया देखी है. देख रहे हैं, तब भी…’’

‘‘कामिनी, प्लीज, मैं मां के विरुद्ध नहीं जा पाऊंगा, मुझे परेशान मत करो,’’ वे जैसे पत्नी को झिड़क से देते.

कामिनी और भी शांत हो जाती. बेटी का मासूम चेहरा, उस की आंखों के मासूम सपने उस की आंखों में घूमने लगते. और दिया? उसे तो मानो अपने से ही अजीब सी शर्म व अलगाव सा महसूस होने लगा था. कैसे बचाए वह अपनेआप को? उस की कई करीबी सहेलियां थीं जिन्हें इस के बारे में जानकारी थी बल्कि उसी की एक सहेली से ही तो दिया व उस के परिवार के बारे में पूछताछ कर के यह रिश्ता दिया की दादी तक पहुंचा था. जब कभी सहेलियों में चर्चा होती, दिया की प्रशंसा होने लगती :

‘‘वाह दिया, बैठेबिठाए इतना बढि़या रिश्ता.’’

‘‘और क्या, पता नहीं, क्यों यह बिसूरता सा मुंह बनाए रहती है. अरे पहले लड़के को देख तो ले.’’

‘‘कभीकभी अगर कोई छोटामोटा दुर्गुण हो तब भी उसे देख कर मुंह घुमा लेना पड़ता है. तू बेकार ही…’’

दिया खीज जाती. क्या ये सहेलियां वे ही हैं जो उस से अपने पैरों पर खड़े होने की, अपने कैरियर की बातें करती थीं? रिश्ते की बात दिया की हो रही थी और शहनाई इन के दिलों में बजने लगी थी.

‘‘तो भाई, तुम लोगों में से कोई कर लो उस लड़के से शादी,’’ दिया खीज कर बोल उठी थी.

‘‘हमारे ऐसे दिन कहां?’’ एक ने लंबी सांस भर कर कहा और सब की सब खिलखिला कर हंस दी थीं. फिर तो दिया ने कभी कोई बात करने की चेष्टा भी नहीं की. ‘जो होगा, देखा जाएगा,’ उस ने अपने सिर को झटक दिया था और अपने भविष्य के बारे में सिर खपाना ही छोड़ दिया था.

आखिरकार, वह वक्त आया कि मां, बेटा व उन का बिचौलिया दिया के घर में पधारे. नील 27वें वर्ष में लगा था. दिया 19 की हो कर 20वें में लगी थी और ग्रेजुएशन कर रही थी. कामिनी का मन अब उम्र की देहरी पर पहुंच गया. आज के जमाने में कौन उम्र में इतना लंबा गैप रखता है? वह सोच ही रही थी कि भाई के साथ दिया ड्राइंगरूम में आ पहुंची. निर्विकार भाव से वह नमस्ते कर के अपनी मां के पास सोफे पर बैठ गई. नील और उस की मां ने दृष्टि उठा कर दिया को देखा और दोनों के चेहरे खिल उठे.

‘‘बेटी, यहां आ कर बैठो, मेरे पास,’’ नील की मां ने दिया को संकेत से बुलाया परंतु वह वहीं जमी रही.

‘‘अरे शरमा क्यों रही हो, आओ न,’’ उन्होंने फिर उसे बुलाया.

दिया ने एक सरसरी दृष्टि मां कामिनी पर डाली और जा कर नील की मां के पास बैठ गई. उस ने कोई पैरवैर छूने का दिखावा नहीं किया. कुछ ही पल में दिया वहां से उठ कर चल दी थी क्योंकि बड़ा भाई स्वदीप उसे हिदायत दे कर लाया था कि नील ने लड़का हो कर उन की मां के पांव छुए हैं तो वह भी नील की मां के पैर छुए. लेकिन दिया ने बड़े भाई को कुछ ऐसी दृष्टि से घूरा था कि वह सकपका कर वहां से चल दिया था. उसी के पीछेपीछे दिया भी चली आई थी. पर कुछ ही देर में पुन: नील की मां के पास आ कर बैठ गई.

नील की मां दिया से इधरउधर की बातें करती रहीं. उन्हें बताया गया था कि दिया संगीत व नृत्य में भी पारंगत है तो उन्होंने बड़ी प्रसन्नता दिखाई थी. उन के अनुसार, नील उन का इकलौता पुत्र था. सो, उन के घर में सारी रौनक नील व उन के परिवार से ही होनी थी.

जब दिया व नील का परिचय कराया गया तब दिया ने एक बार नील को ठीक से देखा, उस के युवा मन में एक बार तो थोड़ी धुकधुक सी हुई थी परंतु उसे अपने पत्रकारिता के शौक को पूरा न कर पाने का दुख महसूस हो रहा था.

युवा मन न जाने कितने सपने संजोता है. आज की युवतियों के लिए केवल पति पा जाना ही उपलब्धि नहीं होती, वे पहले अपने भविष्य के प्रति सचेत व चौकन्नी होती हैं. उस के बाद विवाह के बारे में सोचती हैं. दिया भी ऐसा ही सोचती थी. उस के घर में सभी तो सुशिक्षित हैं, सभी के शिक्षित स्वप्न हैं. नवीन सोच, नए परिवेश, भारत से विदेश तक लड़की को भेजने की तैयारी पर उसे परोसी जाने वाली थेगली सी चिपकी मानसिक पीड़ा भी. पता नहीं क्या होने को है? कामिनी व दिया की बेचैनी उन के मुख पर पसरी हुई थी.

आगे पढ़ें- ‘‘आगे क्या करने का विचार है, बेटी?’’ अचानक नील की मां ने चुप्पी तोड़ी...

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