शादी के लिए मेरे घरवाले मुझ पर प्रैशर डाल रहे हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 27 साल की हूं शादी को ले कर मेरे घर वाले मुझ पर प्रैशर डाल रहे हैं. कई लड़कों से मिली, लेकिन बात नहीं बनी. भविष्य को ले कर काफी टैंशन में हो जाती हूं और अपना वर्तमान समय उस से खराब कर लेती हूं. जब ऐसे विचार आते हैं तब ऐसा लगता जैसे भविष्य एकदम अंधकारमय है. मैं कुछ नहीं कर पाऊंगी. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

कभीकभार फैमिली का प्रैशर हमें कुछ निर्णय लेने पर मजबूर कर देता है. मगर शादी एक बहुत ही अहम निर्णय है. इसे किसी के दबाव में आ कर न लिया जाए. जब आप को लगे कि आप इमोशनली, मैंटली और फाइनैंशली तैयार हैं तभी शादी करने का निर्णय लें.

फैमिली मैंबर्स से बात कर उन्हें समझाएं कि आप फिलहाल शादी के लिए तैयार नहीं हैं. जब हो जाएंगी तब खुद उन्हें बता देंगी. आप के ऐसा करने से वे रिलैक्स फील करेंगे.

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सोनिया 20 साल की हुई नहीं कि उस की मां को उस की शादी की चिंता सताने लगी. लेकिन सोनिया ने तो ठान लिया है कि वह पहले पढ़ाई पूरी करेगी, फिर नौकरी करेगी और तब महसूस हुआ तो शादी करेगी वरना नहीं. सोनिया की इस घोषणा की जानकारी मिलते ही परिवार में हलचल मच गई. सभी सोनिया से प्रश्न पर प्रश्न पूछने लगे तो वह फट पड़ी, ‘‘बताओ भला, शादी में रखा ही क्या है? एक तो अपना घर छोड़ो, दूसरे पराए घर जा कर सब की जीहुजूरी करो. अरे, शादी से पतियों को होता आराम, लेकिन हमारा तो होता है जीना हराम. पति तो बस बैठेबैठे पत्नियों पर हुक्म चलाते हैं. खटना तो बेचारी पत्नियों को पड़ता है. कुदरत ने भी पत्नियों के सिर मां बनने का बोझ डाल कर नाइंसाफी की है. उस के बाद बच्चे के जन्म से ले कर खानेपीने, पढ़ानेलिखाने की जिम्मेदारी भी पत्नी की ही होती है. पतियों का क्या? शाम को दफ्तर से लौट कर बच्चों को मन हुआ पुचकार लिया वरना डांटडपट कर दूसरे कमरे में भेज आराम फरमा लिया.’’

यह बात नहीं है कि ऐसा सिर्फ सोनिया का ही कहना है. पिछले दिनों अंजु, रचना, मधु, स्मृति से मिलना हुआ तो पता लगा अंजु इसलिए शादी नहीं करना चाहती, क्योंकि उस की बहन को उस के पति ने दहेज के लिए बेहद तंग कर के वापस घर भेज दिया. रचना को लगता है कि शादी एक सुनहरा पिंजरा है, जिस की रचना लड़कियों की आजादी को छीनने के लिए की गई है. स्मृति को शादीशुदा जीवन के नाम से ही डर लगता है. उस का कहना है कि यह क्या बात हुई. जिस इज्जत को ले कर मांबाप 20 साल तक बेहद चिंतित रहते हैं, उसे पराए लड़के के हाथों निस्संकोच सौंप देते हैं. उन की बातें सुन कर मन में यही खयाल आया कि क्या शादी करना जरूरी है. उत्तर मिला, हां, जरूरी है, क्योंकि पति और पत्नी एकदूसरे के पूरक होते हैं. दोनों को एकदूसरे के साथ की जरूरत होती है. शादी करने से घर और जिंदगी को संभालने वाला विश्वसनीय साथी मिल जाता है. व्यावहारिकता में शादी निजी जरूरत है, क्योंकि पति/पत्नी जैसा दोस्त मिल ही नहीं सकता.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- क्या जरूरी है शादी करना

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शादी में न करें जल्दबाजी

शादी को ले कर हमारे समाज में 2 बातें प्रचलित हैं- छोटी उम्र में शादी और चट मंगनी पट ब्याह. लेकिन इन्हीं 2 कारणों से कई बार शादीशुदा जीवन में परेशानियां झेलनी पड़ जाती हैं. आखिर शादी जैसा अहम निर्णय, जिस से हमारा पूरा जीवन बदल जाता है, उसे लेने में जल्दबाजी क्यों?

कच्ची उम्र की कम समझदारी और कम तजरबा हमारे आने वाले जीवन में ऐसा विष घोलने की क्षमता रखता है, जिस से मीठे के बजाय कड़वे अनुभव हमारी यादों में जुड़ते जा सकते हैं. शादी सिर्फ 2 प्यार करने वालों का मिलन नहीं, अपितु यह ऐसे 2 इंसानों को एक बंधन में बांधती है जिन की परवरिश, शख्सीयत, भावनाएं, शिक्षा और कई बार भाषा भी भिन्न होती है. कभीकभी तो शादी के जरीए 2 अलग संस्कृतियों का भी मेल होता है.

ऐसे बंधन को बांधने से पहले समझदारी इसी में है कि एकदूसरे की पसंदनापसंद, जिंदगी के लक्ष्यों, एकदूसरे के परिवारों के बारे में जानने के लिए ज्यादा वक्त दिया जाए. धैर्य के साथ अपने होने वाले साथी को अच्छी तरह जानने में ही अक्लमंदी है. टैक्सास विश्वविद्यालय के प्रोफैसर टेड हस्टन के अनुसार विवाह के धागे को जोड़ने से पहले अपनी आंखें खोल कर अपने साथी की अच्छाइयां तथा कमियां भली प्रकार तोल लेनी चाहिए.

सही कारणों के लिए ही करें शादी

हां करने से पहले जांच लें कि आप हां क्यों करना चाहती हैं. कहीं इसलिए तो नहीं कि परिवार वाले कह रहे हैं या फिर उम्र हो रही है अथवा आप की सहेलियों की शादियां हो रही हैं? ध्यान रहे कि इस नए रिश्ते को निभाना आप को है. इसलिए अच्छी तरह विचार कर के निर्णय लें.

उर्मिला आज भी पछताती है कि क्यों उस ने कालेज में चूड़े पहनने के चाव में शादी की इतनी जल्दी मचाई. चूड़े तो पहन लिए पर जल्द ही गलत आदमी से शादी करने का दंड उसे भुगतना पड़ा. जिस उम्र में उसे अपनी शिक्षा की ओर ध्यान देना चाहिए था, उस उम्र में उठाए गलत कदम के कारण वह स्वावलंबी नहीं बन पाई और अब गलत पति को सहने के सिवा उस के पास कोई और चारा नहीं.

आर्थिक मजबूती परख लें: 18 की होते ही रचना ने अपने ही संगीत शिक्षक से भाग कर शादी कर ली. किंतु तोतामैना का यह रोमांस अल्पायु निकला. कारण? उस का पति केवल उसे ही संगीत सिखाता था. उस के पास और कोई विद्यार्थी नहीं था. जल्द ही पैसे की तंगी ने शादी के रिश्ते से संगीत गायब कर दिया. जब गृहस्थी का भार पड़ा तो दोनों ही अपने निर्णय पर पछताए.

यदि आप का होने वाला पति घरगृहस्थी के खर्च उठाने में असमर्थ है तो शादी का डूबना तय समझिए.

स्वभाव जांचना बेहद जरूरी: अकसर लड़कियां सुनहरे ख्वाब संजोते समय अपने प्रेमी या मंगेतर का स्वभाव जांचना दरकिनार कर बैठती हैं. कुछ ये सोचती हैं कि अभी उन का रिश्ता मजबूत नहीं है. इसीलिए वह उन से इस प्रकार बात कर रहा है तो कुछ सोचती हैं कि शादी के बाद वे अपने हिसाब से अपने पति का स्वभाव बदल लेंगी. दोनों स्थितियों में नुकसान लड़की का होता है. यह बात तय है कि शादी के बाद कोई किसी का स्वभाव नहीं बदल सकता. जो जैसा है उसे वैसे ही स्वीकार करना आवश्यक है. यदि आप का प्रेमी या मंगेतर गुस्सैल है तो शादी के बाद उस के गुस्से का निशाना अकसर आप को ही बनना पड़ेगा. इसलिए ऐसे इंसान से शादी न करें, जिस का अपने गुस्से पर काबू न हो.

एकदूसरे का प्यार आंकना: जब भी मिलें या बातचीत करें तब यह अवश्य परखें कि क्या आप के होने वाले पति का प्यार आप के लिए सच्चा है? क्या उसे आप की भावनाओं की कदर है? क्या वह आप की खुशी के लिए कदम उठाता है? क्या वह अपने मन की बात आप से करता है? और जो बातें आप उस से करती हैं, क्या वह उन्हें अपने तक रख पाता है?

इसी प्रकार अपनी भावनाएं भी परखनी जरूरी हैं. क्या आप उसे प्यार करती हैं? यदि नहीं तो अभी शादी के लिए आगे बढ़ना गलत रहेगा. गृहस्थ जीवन के सागर में बहुत ऊंचीनीची लहरें आती हैं. ऐसे समय में एकदूसरे के प्रति प्रेम ही गृहस्थी की नैया को डूबने से बचाता है.

जबान संभाल कर:

पहली स्थिति:

पत्नी: मेरे दफ्तर में आजकल कुछ टैंशन चल रही है. लगता है कुछ लोगों को निकाला जाएगा.

पति (मखौल उड़ाते हुए): तब तो तुम्हारा नंबर जरूर लगेगा.

दूसरी स्थिति:

पत्नी: मेरे दफ्तर में आजकल कुछ टैंशन चल रही है. लगता है कुछ लोगों को निकाला जाएगा.

पति: अच्छा? तुम किसी बात की चिंता मत करना. हम दोनों मिल कर इस गृहस्थी को सुचारु रूप से चला लेंगे. मैं तुम्हें कुछ अच्छे कैरियर कंसल्टैंट के नंबर दूंगा, तुम उन से बात करना. यदि तुम्हारी नौकरी चली भी जाती है, तो वे नई नौकरी पाने में तुम्हारी मदद करेंगे.

शादी 2 ऐसे लोगों को जोड़ती है जो एकदूसरे से अलहदा हैं. वे जिस तरह अपनी बात रखते हैं उस का असर काफी हद तक उन के शादीशुदा जीवन पर पड़ता है. वे या तो बातबात पर नुक्स निकाल सकते हैं और शिकायत कर सकते हैं या फिर प्यार से एकदूसरे का हौसला बढ़ा सकते हैं. जी हां, अपनी बातों से हम या तो अपने जीवनसाथी को चोट पहुंचा सकते हैं या उस के जख्मों पर मरहम लगा सकते हैं. अपनी जबान पर लगाम न लगाने से शादीशुदा जीवन में भारी तनाव पैदा हो सकता है.

मातापिता बनने से पहले: शादी के बाद अगला पड़ाव होता है संतान. एक संतान का आगमन पतिपत्नी के रिश्ते को पूरी तरह बदल देता है. एक ओर जहां पत्नी मां बनते ही अपना पूरा ध्यान बच्चे पर केंद्रित कर देती है, वहीं पति अकसर पत्नी के जीवन में आए इस बदलाव में अपना पुराना स्थान खोजता रहता है. मातापिता बनने से पूर्व यह जरूरी है कि पतिपत्नी के आपसी रिश्ते का गठबंधन मजबूत हो चुका हो ताकि जब नए रोल को निभाने का समय आए तो एकदूसरे के प्रति किसी गलतफहमी की गुंजाइश न रहे.

एक बैंक की मैनेजर ऋतु गोयल कहती हैं, ‘‘जब मेरी बेटी ने अपनी पसंद से शादी करने की इच्छा जताते हुए मुझे अपने बौयफ्रैंड के बारे में बताया तो मैं ने उस से पूछा कि सब से पहले 10 जरूरी गुणों के बारे में सोचो जो तुम अपने जीवनसाथी में देखना चाहोगी. अगर तुम्हारे बौयफ्रैंड में सिर्फ 7 गुण दिखते हैं तो खुद से पूछो कि क्या तुम रोजाना उन 3 कमियों को बरदाश्त कर पाओगी? अगर तुम्हारे मन में जरा भी शक है, तो कोई भी कदम उठाने से पहले अच्छी तरह सोच लेना.’’

यह सच है कि आप को हद से ज्यादा की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए. अगर आप शादी करना चाहते हैं, तो यह सचाई ध्यान में रखें कि आप को ऐसा साथी कभी नहीं मिलेगा, जिस में कोई खोट न हो और जो आप से शादी करेगा उसे भी ऐसा साथी नहीं मिलेगा, जिस में कोई खोट न हो. ‘जल्दबाजी में शादी करो और इत्मीनान से पछताओ’ कहावत को चरितार्थ करने में समझदारी नहीं है.

कंपैटिबिलिटी क्विज

कंपैटिबिलिटी में 3 बातें खास होती हैं- आपसी मित्रता व समझौता करने की क्षमता, एकदूसरे के प्रति सहानुभूति व एकदूसरे की आवश्यकताओं की पूर्ती करने का माद्दा. इस क्विज को सुलझाएं. इस से आप जान पाएंगी कि आप दोनों शादी के लिए कितने तैयार हैं:

(1) आप दोनों को ले कर विचारविमर्श करते हैं:

क. कभीकभी

ख. आएदिन

ग. कभी नहीं

घ. हमेशा.

सही जवाब है हमेशा. यदि आप दोनों शादी को ले कर गंभीर हैं तो विवाह संबंधी विचारविमर्श आप दोनों की सूची में होना चाहिए.

(2) साथी का मुझे छोड़ कर चले जाने का विचार मात्र ही मुझे:

क. उदास कर देता है

ख. चैन देता है

ग. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता

घ. मैं बुरी तरह टूट कर बिखर जाऊंगी.

सही जवाब है उदास कर देता है. यदि आप का रिश्ता स्वस्थ है तो आप का पूरा वजूद केवल अपने साथी के इर्दगिर्द नहीं घूमेगा. आप के रिश्ते में एक संतुलन होगा. आप अपने साथी को चाहेंगी अवश्य, किंतु चाहने और आवश्यकता होने में फर्क होता है.

(3) शादी मेरे लिए:

क. फिल्मों की तरह रोमानी है

ख. बेहद कठिन राह है

ग. इतनी कठिन भी नहीं

घ. परिश्रम व मजे का तालमेल है.

सही जवाब है परिश्रम व मजे का तालमेल. शादी में मेहनत जरूर लगती है पर वह नामुमकिन नहीं. शादी को सफल बनाने के लिए उस की ओर लगातार ध्यान देना चाहिए.

(4) अपने साथी को देख कर मैं:

क. उत्साहित व प्रसन्न हो जाती हूं

ख. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता

ग. घबराने लगती हूं

घ. थोड़ाबहुत खुश होती हूं.

सही जवाब है उत्साहित व प्रसन्न हो जाती हूं. यदि आप को अपने साथी को देखने से शादी से पहले खुशी नहीं मिलती है तो बाद में क्या होगा. यह बात सच है कि शादी का खुमार समय के साथ कम होता जाता है और उसे बरकरार रखने के लिए मेहनत करनी पड़ती है. इसलिए शुरुआत उत्साह व खुशी से होनी चाहिए.

(5) खास मुद्दों पर हम दोनों:

क. कभी चर्चा नहीं करते हैं

ख. कभीकभार चर्चा कर लेते हैं

ग. रोज चर्चा करते हैं

घ. तभी चर्चा करते हैं जब बात हाथ से बाहर हो जाए.

सही जवाब है कभीकभार चर्चा कर लेते हैं. जिंदगी में इतना कुछ घटित होता रहता है कि यदि आप चर्चा नहीं करते हैं तो अभी आप शादी के लिए तैयार नहीं हैं और यदि आप रोज चर्चा करते हैं तो आप के रिश्ते में तनाव अधिक है और मस्ती कम. अच्छा रिश्ता मस्तीभरा तथा गंभीर बातों का मिलाजुला रस होता है.

(6) प्रेम मेरे लिए:

क. लेनदेन की सुंदर अभिव्यक्ति है

ख. मेरा खयाल रखने के लिए साथी की खोज है

ग. अपने साथी का ध्यान रखना

घ. किसी और की तरह बन जाना.

सही जवाब है लेनदेन की सुंदर अभिव्यक्ति. प्यार में केवल एक ही साथी दूसरे का खयाल रखे यह मुमकिन नहीं. प्यार समझौते का दूसरा नाम है, जिस में दोनों तरफ से आदानप्रदान होना आवश्यक है.

सुख की गारंटी नहीं शादी

लंदन स्कूल औफ इकोनौमिक्स के प्रोफैसर (जो हैप्पीनैस ऐक्सपर्ट भी हैं) पाल डोलन के शब्दों में, ‘‘शादी पुरुषों के लिए तो फायदेमंद है, लेकिन महिलाओं के लिए नहीं. इसलिए महिलाओं को शादी के लिए परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि वे बिना पति के ज्यादा खुश रह सकती हैं खासकर मध्य आयुवर्ग की विवाहित महिलाओं में अपनी हमउम्र अविवाहित महिलाओं की तुलना में शारीरिक और मानसिक परेशानियां होने का ज्यादा खतरा होता है. इस से वे मर भी जल्दी सकती हैं.’’

विवाहित महिलाओं की तुलना में अविवाहित महिलाएं ज्यादा खुश रहती हैं. शादीशुदा, कुंआरे, तलाकशुदा, विधवा और अलग रहने वाले लोगों पर किए गए सर्वे के आधार पर पाल डोलन का कहना है कि आबादी में जो हिस्सा सब से स्वस्थ और खुशहाल रहता है वह उन महिलाओं का है जिन्होंने कभी शादी नहीं की और जिन के बच्चे नहीं हैं. उन के मुताबिक जब पतिपत्नी एकसाथ होते हैं और उन से पूछा जाए कि वे कितने खुश हैं तो उन का कहना होता है कि वे बहुत खुश हैं. लेकिन जब पति या पत्नी साथ में नहीं हों तो वे स्वाभाविक रूप से यह कहते सुने जा सकते हैं कि जिंदगी दूभर हो गई है.

अगर कहीं भी शादी की बात पर बहस होती है तो शादी की जरूरत के कई कारण बताए जाते हैं जैसे नई सृष्टि की रचना, भावनात्मक सुरक्षा, सामाजिक व्यवस्था, औरत मां बन कर ही पूरी होती है, स्त्रीपुरुष एकदूसरे के पूरक हैं, समाज में अराजकता रोकने में सहायक आदि. ये सारे कारण शादी को महज एक जरूरत का दर्जा देते हैं, मगर कोई यह नहीं कहता कि हम ने शादी अपनी खुशी के लिए की है.

ज्यादातर घरों में लड़कियों को बचपन से शादी कर के खुशीखुशी घर बसाने के सपने दिखाए जाते हैं. हर बात के पीछे उन्हें समझया जाता है कि शादी के बाद वे अपने मन का कर सकेंगी, शादी के बाद बहुत प्यार मिलेगा, शादी के बाद अपने घर जाएंगी या फिर शादी के बाद ही उन का जीवन सार्थक होगा वगैरहवगैरह. मगर सच तो यह है कि शादी के बाद भी बहुत सी लड़कियों के सपने हकीकत के आईने में बेरंग ही नजर आते हैं.

अपना घर

घर की बुजुर्ग महिलाओं द्वारा लड़कियों के मन में बचपन से यह बात भरी जाती है कि मां का घर उस का अपना नहीं है. उसे मायका छोड़ कर ससुराल जाना पड़ेगा और वही उस का अपना घर कहलाएगा. ससुराल पहुंच कर लड़की को पता चलता है कि वह इस घर में बाहर से आई है और कभी सगी नहीं कहलाएगी. वह बहू ही रहेगी कभी बेटी नहीं हो सकती.

मायके के पास पैसों की कितनी भी कमी हो पर लड़की को कभी महसूस नहीं होने देते, जबकि ससुराल कितनी भी धनदौलत से पूर्ण हो पर बहू को अपनी सीमा में रहना होता है. शुरुआत में कई साल उसे घरपरिवार के किसी भी मसले में बोलने का हक नहीं दिया जाता. ससुराल वाले कितने भी एडवांस हों, मगर बहू तो बहू ही होती है. वह बेटे या बेटी की बराबरी नहीं कर सकती.

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अकेलापन

लड़कियों को बचपन से शादी के सपने दिखाए जाते हैं. जिस लड़की की किसी कारणवश शादी नहीं हो पाती या फिर वह स्वयं शादी करना नहीं चाहती तो मांबाप या रिश्तेदारों के साथसाथ सारा समाज उसे सिखाता है कि शादी के बाद ही लाइफ सैटल हो पाती है. शादी के बिना जीवन में कुछ भी नहीं रखा. भले ही वह लड़की सैल्फ डिपैंडैंट हो, अच्छा कमा रही हो मगर उसे बुढ़ापे का डर जरूर दिखाया जाता है.

उसे बताया जाता है कि जब घर में सब खुद के परिवारों में व्यस्त हो जाएंगे तो वह अकेली रह जाएगी. यह सोच काफी हद तक सही है क्योंकि समय के साथ जब मांबाप चले जाते हैं और भाईबहन अपनी दुनिया में व्यस्त हो जाते हैं तब अविवाहित लड़की खुद को अकेला महसूस करती है. मगर इस का समाधान कठिन नहीं. यदि वह अपने काम में व्यस्त रहे और रिश्तेदारों व दोस्तों के साथ अच्छे संबंध बना कर रखे तो इस तरह की समस्या नहीं आती.

बात पते की

लड़कियों को बचपन से यह भी सिखाया जाता है कि एक औरत मां बनने के बाद ही पूर्ण होती है. लड़कियों पर कम उम्र में ही शादी के लिए दबाव डाला जाता है ताकि वे सही उम्र में मां बन जाएं. मां बनना जीवन की एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है मगर जरा सोचिए इस के कारण लड़की को सब से पहले तो अपनी पढ़ाई और कैरियर बीच में छोड़ना पड़ता है. फिर वह शादी कर दूसरे घर आ जाती है और वहां एडजस्टमैंट कर ही रही होती है कि हर तरफ से बच्चे के लिए दबाव पड़ने लगती है.

सही समय पर बच्चे हो गए तो सब अच्छा है पर मान लीजिए किसी कारण से बच्चे नहीं हुए तब क्या होता है? दबी आवाज में उस पर ही इलजाम लगाए जाते हैं. उसे बांझ कह कर पुकारा जाता है. सालोंसाल बच्चे की चाह में घर वाले उसे पंडेपुजारियों और झड़फूंक वालों के पास ले जाते हैं. इन सब के बीच उस महिला को कितना मैंटल स्ट्रैस होता होगा यह बात समझनी भी जरूरी है.

शादी के बाद पति गलत आदतों का शिकार निकल जाए तो जरूरी नहीं कि आप की जिंदगी खुशहाल ही रहेगी. शादी के समय आप को यह पता नहीं होता कि आप का पति कैसा है? पति अच्छा निकला तो लड़की सुकूनभरी जिंदगी जीती है, मगर जरूरी नहीं कि हमेशा ऐसा ही हो. कितनी ही लड़कियां शादी के बाद अपने शराबी पति के अत्याचारों का शिकार बन जाती हैं तो कुछ पति की बेवफाई से परेशान रहती हैं.

कुछ के पति बिजनैस डुबो देते हैं तो कुछ दोस्तबाजी के चक्कर में बीवी को रुलाते रहते हैं. बहुत से पति ऐसे भी होते हैं जो पत्नी के साथ मारपीट करते हैं और उसे अपने पैरों की जूती से ज्यादा नहीं समझते. ऐसे में आप यह कैसे कह सकते हैं कि शादी के बाद लड़की को सुख ही मिलेगा और उस का जीवन संवर जाएगा? संभव तो यह भी है न कि उस की जिंदगी बरबाद ही हो जाए और उसे उम्रभर घुटघुट कर जीना पड़े.

ससुराल वालों के सितम

कई बार ऐसा भी होता है कि मांबाप तो अच्छा घर देख कर बेटी की शादी करते हैं, मगर नतीजा उलटा निकलता है. बहुत से मामलों में ससुराल वाले लड़की पर जुल्म करते हैं. कभी दहेज के लिए धमकाते हैं तो कभी घरेलू हिंसा करते हैं. बहुत सी लड़कियों को ससुराल में जिंदा जला दिया जाता है. कुछ घरों में ऊपरी तौर पर भले ही कुछ न किया जाए पर दिनरात ताने दिए जाते हैं, बुराभला कहा जाता है.

अकसर सास बहू के खिलाफ बेटे के कान भरती पाई जाती है. ऐसे हालात में लड़की को शादी के बाद घुटघुट कर जीना पड़ता है और उस की जिंदगी खुशहाल होने के बजाय बरबाद हो जाती है.

मांबाप का कर्तव्य है कि वे अपनी बेटियों को हमेशा अप्रत्याशित के लिए तैयार रहने के काबिल बनाएं. शादी के बाद भी ऐसा बहुत कुछ हो सकता है जिस का मुकाबला करने के लिए खुद को मजबूत बनाना पड़ता है और दिमाग से ही नहीं, मन से व तन से भी. बेहतर होगा कि मातापिता बेटियों पर शादी के लिए दबाव डालने के बजाय उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाएं.

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शादी मजबूरी क्यों

एक शादीशुदा महिला ही जानती है कि शादी के बाद असल में उसे क्याक्या ?ोलना पड़ता है. यही वजह है कि आज बहुत सी लड़कियां शादी करना नहीं चाहतीं. उन का मानना है कि जब वे खुद कमा रही हैं और शांति से जी रही हैं तो फिर शादी कर के अपनी परेशानियां क्यों बढ़ाएं. दरअसल, हमारा सामाजिक तानाबाना ही इस तरह का रहा है जहां यह माना जाता है कि महिलाओं का काम घर संभालना और बच्चे पैदा करना होता है जबकि पुरुषों का काम कमाना और महिलाओं को संरक्षण देना. लेकिन वक्त के साथ महिलाओं और पुरुषों के रोल बदल रहे हैं. ऐसे में सोच बदलनी भी जरूरी है.

यह सही है कि अविवाहित जीवन में महिलाओं को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. मगर शादी भी इंसान को अनेक सामाजिक व पारिवारिक झंझटों में फंसाती है. तो फिर अविवाहित जीवन को गलत या हेय क्यों माना जाए? क्यों न लड़कियों को खुद तय करने दिया जाए कि उन्हें क्या करना है?

30-35 साल से ऊपर की अविवाहित महिला अब भी लोगों की आंखों में खटकती है. लड़की भले ही कितना भी पढ़लिख ले और ऊंचे पद पर पहुंच जाए, लेकिन उसे ससुराल भेज कर ही मातापिता के सिर से बोझ उतरता है. ज्यादातर लोगों की सोच यह होती है कि 30 साल से ऊपर की अविवाहित लड़की सुखी हो ही नहीं सकती.

सुख का सीधा संबंध शादी से है. मगर सच तो यह है कि सुखी या दुखी और खुश या नाखुश होने की परिभाषा सब के लिए अलगअलग होती है. ऐसी बहुत सी अविवाहित महिलाएं हैं जो 30 के ऊपर हैं और अपनेआप में पूर्ण हैं. आप मदर टेरेसा, लता मंगेशकर, पीनाज मसानी, बरखा दत्त, सोनल मान सिंह जैसी बहुत सी महिलाओं का नाम ले सकते हैं. हम यदि कहीं भी अचीवर्स लिस्ट ढूंढ़ते हैं तो कभी भी शादी क्राइटेरिया नहीं होता यानी जीवन में आप की खुशी शादी पर निर्भर नहीं करती.

मातापिता का कर्तव्य है कि बच्चों को शिक्षित करें, आत्मनिर्भर बनाएं और उस के बाद अपने जीवन के निर्णय ख़ुद लेने दें. सब के सुख अलगअलग होते हैं. सुख को अगर परिभाषित करें तो कोई भी इंसान जब अपने मन की करता है या कर पाता है शायद तभी वह सब से सुखद स्थिति में होता है.

विवाह तभी करना चाहिए जब आप किसी को इतना चाहें कि उस के साथ जीवन बिताना चाहें. मगर जिस की शादी में रुचि न हो उसे कभी भी नहीं करनी चाहिए. प्रेम हो तो शादी करें, मगर उस में भी खुशी मिलेगी ही यह कहा नहीं जा सकता. जीवन में खुशियां चुननी पड़ती हैं. कोई हाथ में रख कर नहीं देता. खुशियां पाने का यत्न हम सभी करते हैं. कभी सफल होते हैं तो कभी असफल. विवाह करना या न करना व्यक्ति का निजी मामला है. इस में कोई कुछ नहीं कह सकता. हमारे समाज में शादीशुदा, अविवाहित और समलैंगिक के लिए व्यक्ति के स्तर पर समान इज्जत होनी चाहिए. कोई क्या चुनता है यह व्यक्तिगत मसला है.

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