मौसमें गुल भी: ऐसा क्या हुआ कि खालिद की बांहों में लिपटी गई गजल

‘‘खालिद साहब, एक गलती तो मैं ने आप से शादी कर के की ही है, लेकिन अब आप के साथ जीवनभर सिसकसिसक कर दूसरी गलती नहीं करूंगी. बस, आप मुझे तलाक दे दें,’’ गजल बोलती रही और खालिद सुनता रहा.

थोड़ी देर बाद खालिद ने संजीदगी से समझाते हुए कहा, ‘‘गजल, तुम ठीक कह रही हो, तुम ने मुझ से शादी कर के बहुत बड़ी गलती की है. तुम्हें पहले ही सोचना चाहिए था कि मैं किसी भी तरह तुम्हारे काबिल न था. लेकिन अब जब एक गलती हो चुकी है तो तलाक ले कर दूसरी गलती मत करो. जानती हो, एक तलाकशुदा औरत की समाज में क्या हैसियत होती है?’’ खालिद ने चुभते हुए शब्दों में कहा, ‘‘गजल, उस औरत की हैसियत नाली में गिरी उस चवन्नी जैसी होती है, जो चमकतीदमकती अपनी कीमत तो रखती है, मगर उस में ‘पाकीजगी’ का वजूद नहीं होता.’’

‘‘बस या कुछ और?’’ गजल ने यों कहा जैसे खालिद ने उस के लिए नहीं किसी और के लिए यह सब कहा हो.

‘‘गजल,’’ खालिद ने हैरत और बेबसी से उस की तरफ देखा. गजल उस की तरफ अनजान नजरों से देख रही थी. जिन आंखों में कभी प्यार के दीप जलते थे, आज वे किसी गैर की लग रही थीं.

‘‘गजल, तुम्हें कुछ एहसास है कि तुम क्या चाहती हो? तुम जो कदम बिना सोचेसमझे उठाने जा रही हो उस से तुम्हारी जिंदगी बरबाद हो जाएगी.’’

ये भी पढ़ें- पिघलती बर्फ: क्यों स्त्रियां स्वयं को हीन बना लेती हैं?

‘‘मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि मैं कौन सा कदम उठाने जा रही हूं और मेरे लिए क्या सही और क्या गलत है. मैं अब इस घुटन भरे माहौल में एक पल भी नहीं रह सकती. रोटी, कपड़ा और एक छत के सिवा तुम ने मुझे दिया ही क्या है? जब से हमारी शादी हुई है, कभी एक प्यार भरा शब्द भी तुम्हारे लबों से नहीं फूटा. शादी से पहले अगर मुझे मालूम होता कि तुम इस तरह बदल जाओगे तो हरगिज ऐसी भूल न करती.’’

‘‘क्या?’’ हैरत से खालिद का मुंह खुला का खुला रह गया, ‘‘तुम्हारे खयाल में यह मेहनत, दिनरात की माथापच्ची मैं किसी और के लिए करता हूं? यकीन मानो, यह सब मैं तुम्हारी खुशी की खातिर ही करता हूं, वरना दालरोटी तो पहले भी आराम से चलती थी. रही बात शादी से पहले की, तो शादी से पहले तुम मेरी महबूबा थीं, पर अब तुम मेरी जिंदगी का एक हिस्सा हो, मेरी बीवी हो. मेरे ऊपर तुम्हारा अधिकार है, मेरा सबकुछ तुम्हारा है और तुम पर मेरा पूरा अधिकार है.’’

‘‘लेकिन औरत सिर्फ एक मशीन से मुहब्बत नहीं कर सकती, उसे जज्बात से भरपूर जिंदगी की जरूरत होती है,’’ गजल ने गुस्से से कहा.

‘‘तो यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’ खालिद ने दुख भरे लहजे में कहा.

‘‘हां.’’

‘‘ठीक है, फैसले का हक तुम्हें जरूर हासिल है, लेकिन मेरी एक बात मानना चाहो तो मान लो वरना तुम्हारी मरजी. शायद अभी भी तुम पर मेरा इतना हक तो बाकी होगा ही कि मैं तुम से कुछ गुजारिश कर सकूं.

‘‘तुम्हें तलाक चाहिए, इसलिए कि मैं तुम्हें जिंदगी से भरपूर व्यक्ति नजर नहीं आता. तुम्हारी हर शाम क्लबों और होटलों के बजाय घर की चारदीवारी में गुजरती है. तुम्हारी नजर में घर में रहने वाली हर औरत बांदी होती है, जबकि ऐसा हरगिज नहीं है. वैसे अगर तुम्हारा यही खयाल है तो फिर मैं कर ही क्या सकता हूं. मगर मेरी तुम से हाथ जोड़ कर विनती है कि तुम तलाक लेने से पहले कुछ दिन के लिए मुझ से अलग हो जाओ और यह महसूस करो कि तुम मुझ से तलाक ले चुकी हो, भले ही दुनिया वालों पर भी यह जाहिर कर दो.’’

कुछ क्षण रुक कर खालिद ने आगे कहा, ‘‘सिर्फ चंद माह मुझ से अलग रह कर जहां दिल चाहे रहो. जहां दिल चाहे आओजाओ. जिस से तुम्हारा मन करे मिलोजुलो और फिर लोगों का रवैया देखो. उन की निगाहों की पाकीजगी को परखो. अगर तुम्हें कहीं मनचाही पनाहगाह मिल जाए, एतबार की छांव और जिंदगी की सचाइयां मिल जाएं तो मैं अपनी हार मान कर तुम्हें आजाद कर दूंगा.

‘‘वैसे आजाद तो तुम अभी भी हो. मगर गजल, मैं तुम्हें भटकने के लिए दुनिया की भीड़ में अकेला कैसे छोड़ दूं. तलाक मांग लेना बहुत आसान है, मगर सिर्फ मुंह से तीन शब्द कह देना ही तलाक नहीं है. तलाक के भी अपने नियम, कानून होते हैं और इस तरह छोटीछोटी बातों पर न तो तलाक मांगे जाते हैं और न ही दिए जाते हैं.’’

गजल खालिद द्वारा कही बातों पर गहराई से मनन करती रही. उसे लगा कि खालिद का विचार ऐसा बुरा भी नहीं है. वह आजादी से तजरबे करेगी. वह खालिद की ओर देखते हुए बोली, ‘‘ठीक है खालिद, मैं जानती हूं कि हमें हर हाल में अलग होना है. मगर मैं जातेजाते तुम्हारा दिल तोड़ना नहीं चाहती, लेकिन मेरा तलाक वाला फैसला आज भी अटल है और कल भी रहेगा. फिलहाल, मैं तुम से बिना तलाक लिए अलग हो रही हूं.’’

‘‘ठीक है,’’ खालिद ने डूबते मन से कहा, ‘‘तुम जाना चाहती हो तो जाओ. अपना सामान भी लेती जाओ, मुझे कोई आपत्ति नहीं है. जितना रुपयापैसा भी चाहिए, ले जाओ.’’

‘‘शुक्रिया, मेरे वालिद मेरा खर्च उठा सकते हैं,’’ गजल ने अकड़ कर कहा और खालिद के पास से उठ गई.

खालिद खामोशी से गजल को सामान समेटते हुए देखता रहा.

शीघ्र ही गजल ने सूटकेस उठाते हुए कहा, ‘‘अच्छा, मैं चलती हूं.’’

‘‘गजल, तुम सचमुच जा रही हो?’’ खालिद ने दर्द भरे स्वर में पूछा.

ये भी पढ़ें- वहां आकाश और है: पति के जाते ही आकाश का इंतजार करती थी मानसी

‘‘हां…’’ गजल ने सपाट लहजे में कहा और बाहर निकल गई.

उस के जाते ही खालिद के दिलोदिमाग में हलचल सी मच गई. उस का दिल चाहा कि दौड़ कर गजल का रास्ता रोक ले, उसे अपने प्यार का वास्ता दे कर घर में रहने के लिए विवश कर दे. उस ने गेट के बाहर झांका, लेकिन गजल उस की आंखों से ओझल हो चुकी थी. उसे घर काटने को दौड़ने लगा. वहां की प्रत्येक चीज से दहशत सी होने लगी. वह आराम से कुरसी पर अधलेटा सिगरेट पर सिगरेट फूंकता रहा.

उधर जैसे ही गजल मायके पहुंची, उस के वालिद ने चौंक कर कहा, ‘‘अरे बेटी तुम…क्या इस बार तीनचार दिन तक रहोगी?’’ उन की नजर सूटकेस की तरफ गई.

‘‘जी हां, मेरा अब हमेशा के लिए यहां रहने का इरादा है,’’ उस ने लापरवाही से कंधे उचकाए.

‘‘मैं कुछ समझा नहीं.’’

‘‘ओह, आप तो बस पीछे ही पड़ जाते हैं. दरअसल, मैं ने आप की बात न मान कर अपनी मरजी से खालिद से शादी की थी, लेकिन यह मेरी बहुत बड़ी भूल थी, अब मैं ने खालिद से अलग होने का फैसला कर लिया है. बहुत जल्दी तलाक भी हो जाएगा.’’

‘‘क्या तुम तलाक लोगी?’’

‘‘जी हां, अब मैं घुटघुट कर नहीं जी सकती. काश, मैं ने पहले ही आप की बात मान ली होती. खैर, तब न सही अब सही.’’

‘‘देखो गजल, जिंदगी के कुछ फैसले जल्दबाजी में नहीं किए जाते. एक भूल तुम ने पहले की थी और अब जिंदगी का इतना बड़ा फैसला भी जल्दबाजी में करने जा रही हो. ऐसा न हो कि तुम्हें सारी जिंदगी रोना पड़े और तुम्हारे आंसू पोंछने वाला भी कोई न हो.

‘‘देखो बेटी, मैं ने खालिद से शादी के लिए तुम्हें क्यों मना किया था, शायद तुम उस हद तक कभी सोच नहीं सकती. दरअसल, हर मांबाप अपने बच्चे की आदत से अच्छी तरह वाकिफ होते हैं. वे बखूबी जानते हैं कि उन का बच्चा किस माहौल में, किस तरह और कब तक सामंजस्य बैठा सकता है.

‘‘मैं जानता था कि तुम एक आजाद परिंदे की मानिंद हो, तुम्हारे और खालिद के खयालात में जमीनआसमान का फर्क है. तुम्हारा नजरिया ‘दुनिया मेरी मुट्ठी में’ जैसा है, जबकि खालिद समाज के साथ उस की ऊंचनीच देख कर फूंकफूंक कर कदम रखने वाला है. मैं जानता था कि जब जज्बात का नशा उतर जाएगा, तब तुम पछताओगी. वैसे खालिद में कोई कमी नहीं थी. लेकिन मैं नहीं चाहता था कि तुम्हें शादी के बाद पछताना पड़े.’’

‘‘ओह, आप बिना वजह मुझे परेशान कर रहे हैं. मैं ने अपना फैसला आप को सुना दिया है और यही मेरे हक में सही है. पर अभी मैं रिहर्सल पर हूं, मैं अभी कुछ माह तक तलाक नहीं लूंगी. बस, उस से अलग रह कर खुशी के लिए तजरबे करूंगी.’’

‘‘तो गोया तुम्हारे दिल में उस की चाहत है, पर तुम अपने वालिद की दौलत के नशे में चूर हो.’’

‘‘अब्बाजान, आप भी कैसी दकियानूसी बातें करने लगे हैं. मुझे बोर मत कीजिए. अब मैं आजादी से चैन की सांस लूंगी.’’

दिन गुजरने लगे. घर में रोज गजल के दोस्तों की महफिलें जमतीं, उस ने भी क्लब जाना शुरू कर दिया था. भैया और भाभी अब उस से खिंचेखिंचे से रहने लगे थे. उन के प्यार में अब पहले जैसी गर्मजोशी नहीं थी, लेकिन गजल ने इन बातों पर खास ध्यान नहीं दिया. वह दोनों हाथों से दौलत लुटा रही थी. अपने पुरुष मित्रों को अपने आसपास देख कर वह खुशी से फूली न समाती.

ये भी पढ़ें- अपना पराया: किसने दीपेश और अनुपमा को अपने पराए का अंतर समझाया

रात देर गए जब गजल घर लौटती तो कभीकभी जेहन के दरीचों में खालिद का वजूद अठखेलियां करने लगता. वह अकसर बगैर तकिए के सो जाती. सुबह उसे ध्यान आता कि खालिद हर रोज उस के सिर के नीचे तकिया रख देते थे.

एक दिन गजल अपनी जिगरी दोस्त निशा के घर गई. थोड़ी देर बाद एकांत में वह उस से बोली, ‘‘यह क्या, हमेशा बांदियों की तरह अपने पति के इर्दगिर्द मंडराती रहती हो?’’

‘‘यही तो जिंदगी की असली खुशी है, गजल,’’ निशा ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘ऊंह, यह असली खुशी तुम्हीं को मुबारक हो.’’

जब वह लौटने लगी तो निशा ने कहा, ‘‘हम चारपांच सहेलियां अपनेअपने परिवार के साथ पिकनिक पर जा रही हैं… जूही, शैल, कल्पना, गजला आदि चल रही हैं. तुम भी चलो न…कल सुबह चलेंगे.’’

‘‘हांहां, जरूर जाऊंगी,’’ गजल ने मुसकराते हुए कहा.

पिकनिक पर गजल अपनेआप को बहुत अकेला महसूस कर रही थी. उस की सहेलियां अपने पति और बच्चों के साथ हंसखेल रही थीं. उसे पहली बार खालिद की कमी का एहसास हुआ. उस की सहेलियों के शौहर उसे अजीब नजरों से देख रहे थे, जैसे वह कोई अजूबा हो.

वापसी पर गजल बहुत खामोश थी. घर आ कर भी वह बुझे मन से अपने कमरे में पड़ी रही. वह एकटक छत को घूरते कुछ सोचती रही. अब भैयाभाभी का सर्द रवैया भी उसे अखरने लगा था. वालिद भी उस से बहुत कम बातें करते थे. एक दिन अचानक गम का पहाड़ गजल पर टूट पड़ा. उस के पिता को दिल का दौरा पड़ा और वे हमेशाहमेशा के लिए उसे अकेला छोड़ कर चले गए.

कुछ दिन इसी तरह बीत गए. अब जब वह भैया से पैसों की मांग करती तो वे चीख उठते, ‘‘यह कोई धर्मशाला या होटल नहीं है. एक तो तुम अपना घरबार और इतना अच्छा पति छोड़ कर चली आई, दूसरे, हमें भी तबाह करने पर तुली हो.

‘‘कान खोल कर सुन लो, अब तुम्हें फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी,’’ तभी भाभी की कड़क आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘और तुम्हारे लफंगे दोस्त भी इस घर में कदम नहीं रखेंगे. यह हमारा घर है, कोई तफरीहगाह नहीं.’’

‘‘भाभी…’’ वह चीख पड़ी, ‘‘अगर यह आप का घर है तो मेरा भी इस में आधा हिस्सा है.’’

‘‘इस भ्रम में मत रहना गजल बीबी, तुम्हारा इस घर में अब कोई हक नहीं. यह घर मेरा है, तुम तो अपना घर छोड़ आई हो. औरत का असली घर उस के पति का घर होता है और फिर जायदाद का तुम्हारे पिता बंटवारा नहीं कर गए हैं. जाओ, मुकदमा लड़ कर जायदाद ले लो.’’

गजल हैरत से भैयाभाभी को देखती रही. फिर शिथिल कदमों से अपने कमरे तक आई और बिस्तर पर गिर कर फूटफूट कर रोने लगी. आज उसे एहसास हुआ कि यह घर उस का अपना नहीं है. इस घर में वह पराई है. यह तो भाभी का घर है. वह देर तक आंसू बहाती रही. रोतेरोते उस की आंख लग गई. तभी टैलीफोन की घंटी से वह हड़बड़ा कर उठ बैठी. न जाने क्यों, उस के जेहन में यह खयाल बारबार आ रहा था कि हो न हो, खालिद का फोन ही होगा. उस ने कांपते हाथों से रिसीवर उठा लिया, ‘‘हैलो, मैं गजल…’’

‘‘गजल, मैं निशान बोल रहा हूं. तुम जल्दी से तैयार हो कर होटल ‘बसेरा’ में आ जाओ. हम आज बहुत शानदार पार्टी दे रहे हैं. तुम मुख्य मेहमान हो, आ रही हो न?’’

‘‘हां, निशान, मैं तैयार हो कर फौरन पहुंच रही हूं,’’ गजल ने घड़ी पर नजर डाली, शाम के 6 बज रहे थे, वह स्नानघर में घुस गई.

होटल के गेट पर ही उसे निशान, नदीम, अभय और संदीप खड़े मिल गए. चारों दोस्तों ने उस का गर्मजोशी से स्वागत किया, गजल ने चारों तरफ नजर दौड़ाई, ‘‘अरे, और सब कहां हैं? शैला, जूही, निशा, कल्पना, गजला वगैरह कहां हैं?’’

‘‘गजल, किन लोगों का नाम गिनवा रही हो. क्योें उन दकियानूसी औरतों की बात कर रही हो. अरे, वे सब तुम्हारी तरह स्मार्ट और निडर नहीं हैं. वे तो इस समय अपनेअपने पतियों की मालिश कर रही होंगी या फिर बच्चों की नाक साफ कर रही होंगी. वे सब बुजदिल हैं, उन में जमाने से टकराने का साहस नहीं है.’’

ये भी पढ़ें- लौटती बहारें: मीनू के मायके वालों में कैसे आया बदलाव

गजल दिल ही दिल में अपनी तारीफ सुन कर बहुत खुश हो रही थी.

‘‘संदीप हाल में बैठोगे या फिर यहीं लौन में,’’ गजल ने चलतेचलते पूछा.

‘‘ओह गजल, यहां बैठ कर हम बोर नहीं होना चाहते. हम ने एक कमरा बुक करवाया है, वहीं चल कर पार्टी का आनंद लेते हैं.’’

‘‘पर तुम लोगों ने किस खुशी में पार्टी दी है?’’

‘‘तुम्हें आश्चर्यचकित करने के लिए क्योंकि आज तुम्हारी शादी की वर्षगांठ है.’’

चलतेचलते गजल के कदम रुक गए, उस के अंदर कहीं कुछ टूट कर बिखर गया.

कमरे में पहुंचते ही खानेपीने का कार्यक्रम शुरू हो गया

‘‘गजल, एक पैग तुम भी लो न,’’ निशान ने गिलास उस की ओर बढ़ाया.

‘‘नहीं, धन्यवाद. मैं पीती नहीं.’’

‘‘ओह गजल, तुम तो आजाद पंछी हो, कोई दकियानूसी घरेलू औरत नहीं…लो न.’’

‘‘नहीं निशान, मुझे यह सब पसंद नहीं.’’

‘‘घबराओ मत बेबी, सब चलता है, आज के दिन तो तुम्हें एक पैग लेना ही चाहिए वरना पार्टी का रंग कैसे आएगा?’’ संदीप ने बहकते हुए कहा. तभी अभय ने बढ़ कर गजल को अपनी बांहों में जकड़ लिया. नदीम ने भरा गिलास उस के मुंह से लगाना चाहा तो वह तड़प कर एक ओर हट गई, ‘‘मुझे यह सब पसंद नहीं, तुम लोगों ने मुझे समझ क्या रखा है…’’

‘‘बेबी, तुम क्या हो, यह हम अच्छी तरह जानते हैं. ज्यादा नखरे मत करो, इस मुबारक दिन को मुहब्बत के रंगों से भर दो. तुम भी खुश और हम भी खुश,’’ अभय ने उस की ओर बढ़ते हुए कहा,

‘‘1 साल से तुम अपने पति से दूर हो, हम तुम्हारी रातें रंगीन कर देंगे.’’

गजल थरथर कांप रही थी. वह दौड़ती हुई दरवाजे की तरफ बढ़ी, पर उसे निशान ने बीच में ही रोक लिया. वह चीखने लगी, ‘‘छोड़ दो मुझे, मैं कहती हूं छोड़ दो मुझे.’’ तभी दरवाजे का हैंडल घूमा. सामने खालिद को देख कर सब को सांप सूंघ गया. गजल दौड़ कर उस से लिपट गई, ‘‘खालिद, मुझे इन दरिंदों से बचाओ…ये मेरी इज्जत…’’ आगे उस की आवाज गले में अटक गई.

वे चारों मौका देख कर खिसक गए थे.  ‘‘घबराओ नहीं गजल, मैं आ गया हूं. शायद अब तुम्हारा तजरबा भी पूरा हो गया होगा? 1 साल का समय बहुत होता है. वैसे अगर अभी भी तुम और…?’’

गजल ने खालिद के मुंह पर अपनी हथेली रख दी. वह किसी बेल की भांति खालिद से लिपटी हुई थी. खालिद धीरे से बोला, ‘‘वह तो अच्छा हुआ कि मैं ने तुम्हें कमरे में दाखिल होते हुए देख लिया था वरना आज न जाने तुम पर क्या बीतती? मैं एक मीटिंग के सिलसिले में यहां आया था. तभी इन चारों के साथ तुम पर नजर पड़ गई.’’

‘‘मुझे माफ नहीं करोगे, खालिद?’’ गजल ने नजरें झुकाए हुए कहा, ‘‘मैं बहुत शर्मिंदा हूं. मैं ने तुम्हें जानने की कोशिश नहीं की. झूठी आन, बान और शान में मैं कहीं खो गई थी. तुम ने सही कहा था, बगैर शौहर के एक औरत की समाज में क्या इज्जत होती है, यह मैं ने आज ही जाना है.’’

‘‘सुबह का भूला  शाम को घर लौट आए तो हर हालत में उस का स्वागत करना चाहिए.’’

‘‘तो क्या तुम ने मुझे माफ कर दिया?’’

‘‘हां, गजल, तुम मेरी अपनी हो और अपनों से गलतियां हो ही जाती हैं.’’

ये भी पढ़ें- अंधेर नगरी का इंसाफ: अंबिका के साथ जो कुछ हुआ क्या उस में यशोधर भी दोषी

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें