कब जागेगी जनता

अहमदाबाद म्यूनिसिपल कौरपोरेशन को फटकार लगाते हुए गुजरात उच्च न्यायालय ने कहा है कि नगर निगमों का काम यह तय करना नहीं है कि कौन क्या खाता है. कट्टर हिंदू लोग सड़कों पर मीट बेचने वालों की दुकानों को बंद करने के लिए अहमदाबाद म्यूनिसिपल कौरपोरेशन का सहारा ले रहे हैं और कमिश्नर से एक आदेश ले कर उन्होंने कई रेहडि़यों को जब्त करा दिया है.

हम क्या पहनें, क्या खाएं, क्या उत्सव मनाएं, क्या देखें, क्या न बोलें, कैसे पूजापाठ करें यह ठेका अब भगवा मंडली ने ले लिया है और हर राज्य, शहर, गांव में कुछ खाली बैठे लोग इस बात की ताक में रहते हैं कि कैसे मुसलिमों और ईसाइयों को परेशान किया जाए और कैसे सभी हिंदुओं को एक कतार में खड़ा कर के उन से एक सी ड्रिल कराई जाए. इस काम में हिंदू राज करेगा की भावना तो रहती है, साथ ही हिंदू धर्म की दुकानदारी भी चमकती है और उस के पीछे गुंडागर्दी, वेश्यावृत्ति, औरतों को उठाना, बलात्कार, लूटखसोट सब छिप जाते हैं.

गुरुग्राम में मुसलमान शुक्रवार की नमाज सड़क पर न पढ़ें, इस का लगातार आंदोलन चलाया जा रहा है जो उन लोगों द्वारा शहर की सड़कों को जन्माष्टमी, रामलीला, दुर्गापूजा, दशहरे, कांवड़ यात्रा पर बंद रखने का हक रखते हैं. कई शहरों में नवरात्रों के दिनों में मीट की ब्रिकी बंद हो जाती है, कहीं शराब की बिक्री दिखावे के लिए भी बंद करा दी जाती है. इस सब को कराने के लिए खाली बैठे निक्कमे पंडेपुजारी किस्म के लोग कुछ भक्तों को जमा कर के हल्ला करने लगते हैं और जब से राममंदिर का सुप्रीम कोर्ट का अतार्तिक फैसला रंजन गोगोई ने दिया है उन के हौसले बढ़े हुए हैं कि कानून भी उन की मुट्ठी में ही है, व्यवस्था भी.

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इस का खमियाजा हर आम घर को भुगतना पड़ता है. मीट खाना सेहत के लिए सही है या नहीं यह तो नहीं कह सकते पर लगभग 99% दुनिया की आबादी सदियों से मीट खा कर जिंदा रही है. शाकाहारी फैशन तो भारत में कहीं अहिंसा के नाम पर अपनाने को थोपा गया है या अब पर्यावरण के नाम पर कहा जा रहा है.

हिंदूवादियों ने इसे धर्म का हथियार बना लिया और साल के 365 दिनों में से सिर्फ 9 दिन मीट न खाने वाले भी अहमदाबाद में रेहडि़यों के खिलाफ एकजुट हो जाते हैं ताकि सत्ता की धांधली जमती रहे.

ये वही लोग हैं जो कहते हैं कि लड़कियां टौपजींस न पहनें, जाति और धर्म के बाहर प्रेम व विवाह न करें, वैलेंटाइन डे न मनाएं, करवाचौथ पर कुंआरियों, विधवाओं, तलाकशुदाओं को अलग रखें, शुभ कामों में विधवाओं और निपूतियों का साया न पड़ने दें. मीट या नमाज के खिलाफ हल्ला कर के तो धर्म को ही जीवनपद्धति स्रोत मानने को मजबूर करते हैं और हर थोड़े दिनों में घरों के सामने चंदे की रसीदबुक ले कर खड़े हो जाते हैं. जिस ने नहीं दिया वह पापी है, समाज का गुनहगार है. घर की औरतों को समाज में रहने के लिए उन उद्दृंडियों की बातें माननी पड़ती हैं जो गले में भगवा दुपट्टा डाले, तिलक लगा कर हर कानून की अवहेलना करने का हक रखते हैं.

अहमदाबाद म्यूनिसिपल कौरपोरेशन को पड़ी डांट सही है. उम्मीद करें कि अब जनता खुद खड़ी होगी इन धर्म के लुटेरों के खिलाफ.

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आ गया जिलेटिन का शाकाहारी पर्याय

खाने की दुनिया में बहुत कुछ नया हो रहा है जो थोड़ा एक्साइटिंग है तो थोड़ा पृथ्वी को बचाने वाला भी. पशुओं को मारे बिना मीट बनाने की प्रक्रिया चालू हो रही है. लैबों में पैदा सैल्स को कई गुना कर के असली स्वाद वाला मीट बन सकता है. इससे लाखों पशुओं को सिर्फ मार कर मीट के लिए पैदा नहीं किया जाएगा और वे पृथ्वी पर बोझ नहीं बनेंगे. इसी तरह बिना पशुओं का दूध बनने जा रहा है, जिसका गुण और स्वाद असली दूध की तरह होगा. चिकन भी ऐसा ही होगा.

यही जिलेटिन के साथ होगा. जिलेटिन पशुओं की हड्डियों से बनता है और दवाओं के कैप्सूलों में इस्तेमाल होता है. पेट में जाने पर जिलेटिन पानी में घुल जाता है और दवा अपना काम शुरू कर देती है. जो वैजीटेरियन हैं वे कैप्सूल नहीं लेना चाहते और वैजिटेरियन कैप्सूलों की मांग बन रही है.

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दवा कंपनियों का कहना है कि वैजिटेरियन कैप्सूल महंगे होंगे. फिलहाल चुनावों के कारण यह काम टल गया है. जिलेटिन खाने में डलता है और मीठी गोलियों, केकों, मार्शमैलो आदि में भराव का भी काम करता है और वसा यानी फैट की कमी को भी पूरा करता है. रबड़ की तरह का जो स्वाद बहुत सी खाने की चीजों में आता है वह जिलेटिन के कारण ही है.

जिलेटिन का फूड में इस्तेमाल असल में जिलेटिन का इस्तेमाल फूड इंडस्ट्री में फार्मा इंडस्ट्री से ज्यादा होता है.

इसे वैजिटेरियन खाने में भी डाल दिया जाता है जबकि यह सूअर, गाय, मछली की खाल व हड्डियों को गला कर ही बनाया जाता है.

होने को तो जिलेटिन के वैजिटेरियन अपोजिट हैं पर इस्तेमाल करने वाले उत्पादकों के लिए महंगे और प्रोसैस करने में मुश्किल हैं. अब जैलजेन नाम की कंपनी पशु मुक्त जिलेटिन टाइप का कैमिकल बना रही है जो खाने, दवाओं, कौस्मैटिक्स में इस्तेमाल हो सकता है. डा. निक ओजुनोव और डा. एलैक्स लोरेस्टानी मौलिक्यूलर बायोलौजिस्ट हैं और सिंथैटिक बायोलौजी पर काम करते हुए उन्होंने सोचा कि जैसा इंसुलिन के लिए हुआ कि सुअर के भगनाशय से निकली इंसुलिन की जगह कृत्रिम इंसुलिन बना लिया गया, वही काम जिलेटिन के लिए क्यों नहीं हो सकता.

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पशु मुक्त जिलेटिन जैलजेन जिस का नाम लैलटोर है अब जिलेटिन के उत्पादन को पशु मुक्त बनाने में लग गई है. ये लोग बिना पशु मारे सैल्स से बैक्टीरिया को मल्टीप्लाई कर के जिलेटिन बना रहे हैं. वैजिटेरियन उत्पादों की दुनियाभर में मांग बढ़ रही है और उस के पीछे धार्मिक कारण तो हैं ही, पर्यावरण संतुलन भी है.

पशुओं से बनने वाला मीट, स्किन, दूसरे कैमिकल प्रकृति पर भारी पड़ते हैं. पशु बेहद पानी, जगह, कैमिकल, दवाएं इस्तेमाल करते हैं और अब ये मार दिए जाते हैं. मारने के बाद बचे कूड़े के निबटान में भी बड़ी समस्याएं हैं और गरीब देशों में इस कूड़े को ऐसे ही ढेरों में फेंक दिया जाता है जहां से बदबू और बीमारियां फैलती हैं. अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्थित यह कंपनी पर्यावरण संरक्षण में बड़ा सहयोग दे रही है.

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