कोविड-19 ने बढ़ाया आयुष का महत्त्व- विमल शुक्ला

विमल शुक्ला

एमडी, मेघदूत, ग्रामोद्योग सेवा संस्थान, लखनऊ.

किसी भी कंपनी की प्रगति उस के संस्थापकों की सोच, मेहनत और ईमानदारी पर निर्भर करती है. हमारे देश की बहुत पुरानी कहावत है कि जैसा अन्न आप खाते हो वैसी आप की सोच हो जाती है. ‘मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान’ के संस्थापक विजय शंकर शुक्ला मूल रूप से हरदोई जिले के रहने वाले थे. उन के पिता जटाशंकर सांस्कृत्यायन कवि और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने पर उन को जेल जाना पड़ा. अपने परिवार को अंग्रेजों के अत्याचारों से बचाने के लिए उन्होंने लखनऊ रहने भेज दिया. उन के बेटे विजय शुक्ला की परवरिश लखनऊ में हुई. यहीं पलेबढ़े और जीवनयापन शुरू किया. विजय शंकर शुक्ला पर महात्मा गांधी की स्वदेशी नीति का गहरा प्रभाव पड़ा.

विजय शंकर शुक्ला ने त्रिफला प्रयोगशाला शुरू की, जिस में त्रिफला से जुड़े उत्पाद तैयार होने लगे. इस के 2 लाभ थे- गांव से जुड़े लोगों को रोजगार मिलने लगा और स्वदेशी को बढ़ावा मिल रहा था. 1985 में खादी ग्रामोद्योग विभाग ने उन के इस काम को देखा और इस से काफी प्रभावित हुआ. खादी ग्रामोद्योग की पहल पर विजय शंकर शुक्ला और उन के बेटे विमल शुक्ला तथा अन्य ने मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान की स्थापना की. 7 लाख के लोन से इस कंपनी का काम शुरू हुआ. आज मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान के 240 से अधिक उत्पाद हैं. 1 लाख 10 हजार के टर्नओवर से जो काम आगे बढ़ा तो करोड़ों के कारोबार तक पहुंच गया.

मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान देश की जानीपहचानी कंपनी है, जो पूरी तरह से स्वदेशी है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पास ही बक्शी का तालाब इलाके और मध्य प्रदेश में कंपनी की 2 फैक्टरियां हैं, जिन में निर्मित उत्पाद पूरे देश में उपलब्ध है. कोविड-19 के दौर में जब आयुषकुल यानी जड़ीबूटी और आयुर्वेदिक उत्पादों का महत्त्व बढ़ा तो मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान के उत्पादों ने लोगों को अपनी इम्युनिटी बढ़ाने में मदद की. आयुष क्वाथ (काढ़ा), इम्यून अप सिरप व टैबलेट, गिलोय बटी और सैनिटाइजर की डिमांड अस्पतालों में बढ़ गई. मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान ने सेवाभाव के साथ किफायती दाम पर यह सामग्री देश को उपलब्ध कराई, ताकि लोग कोविड-19 के संक्रमण से लड़ने के लिए खुद को तैयार कर सकें.

मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान की नीतियों, आयुष के बढ़ते महत्त्व और कारोबार की हालत पर संस्थान के एमडी विमल शुक्ला से लंबी बातचीत हुई. पेश हैं, उस के कुछ खास अंश:

मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान ने जनता के बीच अपनी जो जगह बनाई उस के पीछे क्या मुख्य बातें हैं?

सब से बड़ी बात हमारी कंपनी पूरी तरह से स्वदेशी है. हमारा उद्देश्य केवल कारोबार करना नहीं है. हम कारोबार के साथसाथ गरीब और जरूरतमंद लोगों को काम भी दे रहे हैं. हमारे सभी उत्पाद पूरी तरह से स्वदेशी और हमारी कंपनी में बने हैं. हमारी पैकेजिंग तक अपनी है. किसी दूसरी कंपनी से बने सामान का प्रयोग हम नहीं करते. हमारे उत्पादों में सामान्य घरेलू प्रयोग, हर्बल प्रसाधन और डाक्टरों की राय से लिए जाने वाले हर तरह के उत्पाद हैं. ये सभी आयुष की देखरेख में दिए गए लाइसैंस के निर्देशों से निर्मित हैं. मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान का अपना फार्महाउस है,

जहां पर सैंपल जड़ीबूटियां तैयार होती  हैं. कुशल देखरेख में इन को तैयार किया जाता है.

बैंक लोन को ले कर कंपनी परेशान रहती है, इस की क्या वजह होती है?

कुछ कंपनियों की सोच यह होती है कि वे रातोंरात प्रगति कर लें. इस के लिए वे बैंक लोन लेती हैं. कंपनियां बैंक लोन अधिक ले लेती हैं. उन के अनुमान के अनुरूप लाभ नहीं होता है. तब नुकसान होने लगता है. एक बार अगर बैंक का ब्याज रुक जाता है तो हालात को संभालना मुश्किल हो जाता है. मेरा अपना अनुभव है कि बैंक लोन कम से कम लिया जाए. हम लोगों ने केवल एक बार लोन लिया. उस के बाद जो बचत होती थी उसी से आगे बढ़ते थे. आज हम परेशान नहीं हैं, क्योंकि हमारे ऊपर कोई बैंक लोन नहीं है. अगर बैंक लोन होता तो हमें भी परेशान होना पड़ता. हमारा मूलमंत्र है कि धीरेधीरे और अपनी ताकत से आगे बढ़ा जाए. कहावत भी है कि उधार का खाना पुआल का तापना बराबर होता है.

कोविड-19 के दौरान आप सब से तेजी से सैनिटाइजर लोगों तक पहुंचाने में कैसे सफल हुए?

सैनिटाइजर बनाने का काम हमारे यहां 2015 से हो रहा है. ऐसे में हमारे पास पूरा सिस्टम था. यही नहीं हम पैकिंग के लिए बोतलें भी बनाते हैं. जब लौकडाउन की बात होने लगी और सैनिटाइजर का प्रयोग बढ़ने लगा तो हम ने अपनी फैक्टरी में उसे अधिक मात्रा में बनाने का काम शुरू किया. उत्तर प्रदेश सरकार ने भी हमें पूरा सहयोग किया. हमें बड़ी मात्रा में सैनिटाइजर बनाने के लिए अल्कोहल का लाइसैंस 3 दिन में उपलब्ध कराया. हमारे पास पूरे देश में वितरक थे. वहां से यह सैनेटाइजर पूरे देश तक पहुंच सका. इस के साथ ही हमारे खास उत्पाद सैनिटाइजर, आयुष काढ़ा, गिलौय और कई अन्य उत्पाद पोस्टऔफिस की 17 हजार शाखाओं के जरीए जरूरतमंद लोगों तक पहुंचने लगे. इस से हमारे यहां काम करने वाले लोगों को काम मिलता रहा और जो लोग इस से जुड़े रहे उन का भी रोजगार चलता रहा.

कोविड-19 के दौर में उद्योगधंधों को सब से अधिक नुकसान हुआ. इस से बचने के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए?

सरकार को चाहिए कि उद्योगधंधों को बचाने के लिए उन की मदद करे. मदद केवल उद्योगधंधे चलाने वालों की ही नहीं वहां काम करने वालों को दी जाए. उद्योगधंधों में काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन का एक हिस्सा सरकार सीधे कर्मचारी के खाते में दे. इस से जनता की सीधे मदद हो सकेगी. इस के अलावा उद्योगधंधों को टैक्स में छूट दी जाए ताकि वे इस कठिन दौर में खुद को बचाने के साथसाथ अपने कर्मचारियों को भी बचा सकें. कोविड के दौर में केवल आयुष से जुड़े उत्पाद ही बिक रहे हैं. ऐसे में दूसरे उद्योगधंधों को बचाने के लिए सरकार को अधिक प्रयास करना चाहिए.

 

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