बच्चे के जीवन में पेरेंट्स की भूमिका को लेकर क्या कहती हैं एक्ट्रेस मेघना मलिक, पढ़ें इंटरव्यू

लड़कियों ने अगर कोई सपना किसी क्षेत्र में जाने के लिए देखा है…. तो उनको सिर्फ एक सहारे की जरुरत होती है….उनके माता-पिता, समाज और उनकी कम्युनिटी आगे बढ़ने में रोड़े न अटकाएं………जो पिता अपने बेटियों को रोकेगा नही….. वे आगे अपना रास्ता अवश्य बना लेंगी….लड़कियों में प्रतिभा है…..उन्होंने जो सोचा है, उसे अवश्य कर लेगी. कहना है अभिनेत्री मेघना मलिक का, जिन्होंने एक लम्बी जर्नी एंटरटेनमेंट की दुनिया में तय किया है और अपने काम से संतुष्ट है.

अभिनेत्री मेघना मलिक हरियाणा के सोनीपत की है. धारावाहिक ‘न आना देस लाडो’ में अम्मा की भूमिका से वह चर्चा में आई. मेघना एक थिएटर आर्टिस्ट है. इंग्लिश लिटरेचर में मास्टर डिग्री लेने के बाद मेघना दिल्ली आई और नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में ग्रेजुएट किया और अभिनय की तरफ मुड़ी. सौम्य और हंसमुख स्वभाव की मेघना हमेशा खुश रहना पसंद करती है. फिल्म साइना में वह साइना की माँ उषा रानी नेहवाल की भूमिका निभाई है, जिनका उद्देश्य बेटी को एक मंजिल तक पहुंचाने की रही और इसके लिए उन्होंने बेटी को भरपूर सहयोग दिया. पेरेंट्स डे के अवसर पर मेघना ने पेरेंट्स की सहयोग का बच्चे की कामयाबी पर असर के बारें में बातचीत की. आइये जाने क्या कहती है, मेघना मलिक अपनी जर्नी और जर्नी के बारें में.

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सवाल-इस फिल्म में माँ की भूमिका निभाना कितना चुनौतीपूर्ण रहा?

जब मैंने निर्देशक अमोल गुप्ते की स्क्रिप्ट पढ़ी और मेरे किरदार को जाना, तो लगा कि यही एक भूमिका जो मुझे हमेशा से करनी थी और मुझे उसे करने को मिल रहा है. कहानी की पृष्ठभूमि हरियाणा की है. असल में भी साइना नेहवाल भी हरियाणा की है. उनकी बैडमिन्टन खेल ने नयी जेनरेशन को पूरी तरह से प्रभावित किया है. उन्हें देखकर बच्चों में इस खेल के प्रति रूचि बढ़ी है. पहले बैडमिन्टन इतना प्रचलित खेल नहीं था, लेकिन सायना की जीत ने सबको प्रेरित किया है. उषा रानी नेहवाल लाइमलाइट में नहीं थी, पर उन्हें अपनी बेटी की प्रतिभा की जानकारी थी. माता-पिता दोनों ने सायना के सपनों को पूरा किया है. इसके अलावा उषा रानी को सभी जानते है, इसलिए उनकी भूमिका को सही तरह से पर्दे पर लाना मेरे लिए बड़ी चुनौती थी. जब उषा रानी फिल्म को देखे,तो उन्हें लगना चाहिए  कि ये अभिनय वे खुद कर रही है, क्योंकि एक माँ जो बेटी की हर अवस्था में साथ थी, उस चरित्र को मुझे क्रिएट करना था. साइना के पेरेंट्स फिल्म देखकर मुझे फ़ोन पर बताया कि मेरी भूमिका में वे खुद को देख पा रही है. मुझे ये कोम्प्लिमेंट्स बहुत पसंद आया.

 

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सवाल-माँ की भूमिका लड़कियों की परवरिश में कितनी होती है?

मेरी फिल्म देखने के बाद एक आर्मी ऑफिसर ने फ़ोन किया और कहा कि मैं लद्दाख में पोस्टेड हूं, लेकिन मेरा परिवार दिल्ली में रहता है. मेरी पत्नी और बेटी फिल्म देखने के बाद फ़ोन कर बताया कि बच्चे की परवरिश में पत्नी भी मेरा साथ देगी. जबकि पहले वह मना कर रही थी. आपकी फिल्म ने सोच को बदला है.

सवाल-आपने अधिकतर माँ की भूमिका निभाई है, क्या आपने कभी हिरोइन बनने का सपना नहीं देखा?

मैं एक अभिनेत्री हूं, फिर चाहे मुझे माँ, चाची या सांस की भूमिका मिले, चरित्र कैसा है उस पर अधिक फोकस्ड रहती हूं. अगर कोई मुझे हिरोइन बना देगा, तो वह भी बन जाउंगी.(हंसती हुई) ये सामने वाले की सोच है, मेरी नहीं.

सवाल-आपने एक लम्बी जर्नी तय की है, कितने खुश है?

बचपन से अभिनय का शौक था, लेकिन वहां थिएटर नहीं था, कोई गाइड करने वाला भी नहीं था. मेरी माँ डॉ. कमलेश मलिक जो एक अध्यापिका थी अब रिटायर्ड हो चुकी है. एक लेखिका और कवयित्री है. वह मेरे लिए मोनो एक्ट लिखती थी और मैं उसे करती थी. फिर उसे मैं स्कूल में करती थी. उन्होंने मेरी प्रतिभा को पहचाना और बहुत सहयोग दिया. मैं केवल 4 साल की अवस्था में मंच तक पहुँच चुकी थी, जिसमें नाटक, मोनोएक्टिंग आदि करने लगी और अभिनय से जुड़ गयी. इसके अलावा स्कूल, कॉलेज में भी मैंने हमेशा मंच पर कुछ न कुछ किया है. जर्नी वही से शुरू किया. मुझे जो स्क्रिप्ट पसंद आती है, उसमें किसी भी चरित्र में मैं काम कर सकती हूं. कई बार चुनौती तो कई बार पैसे के लिए भी काम करना पड़ता है, जो मुंबई में रहने के लिए बहुत जरुरी है.

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सवाल-पेरेंट्स की कौन सी बात जीवन में उतारना चाहती है?

मेरी माँ की स्प्रिट बहुत अच्छी है. क्लब जाना, मेंबर बनना, लिखना आदि सब करती है. इसके अलावा खाना बनाना, हम दोनों बहनों को पढ़ाना, संस्कृत में पी एच डी करना सब साथ-साथ करती रही. मैंने उन्हें कभी थकते हुए नहीं देख. मुझे उनसे ऐसी स्प्रिट और आत्मविश्वास को अपने जीवन में लाना चाहती हूं. मेरे पिता भी हमेशा चाहते थे कि हम दोनों वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर हो. कर्म को ही उन्होंने धर्म बताया है.

सवाल-कुछ पेरेंट्स अपनी इच्छाओं को बच्चों पर थोपते है, उनके लिए आप क्या कहना चाहती है?

बच्चों पर कभी भी पेरेंट्स को अपनी इच्छाओं को थोपना नहीं चाहिए, इससे बच्चे को किसी भी चीज में मन नहीं लगता. केवल डॉक्टर और इंजिनियर बनना ये पुरानी बात हो चुकी है. बच्चे की रूचि के हिसाब से जाने दे, इससे उसकी रूचि के बारें में पता लग सकेगा और उसकी ग्रोथ भी अच्छी होगी. अपने सपने में बच्चों को ढूढने के वजाय, उन्हें सपनों को देखने दें और थोड़ी सहयोग दे. पैरेंट्स की भूमिका इतनी ही होनी चाहिए. इससे बच्चे का भविष्य अच्छा होता है.

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