मेघनाद: कुछ ऐसा ही था उसका व्यक्त्तिव

‘मेघनाद…’ हमारे प्रोफैसर क्लासरूम में हाजिरी लेते हुए जैसे ही यह नाम पुकारते, ‘खीखी’ की दबीदबी आवाजें आने लगतीं. एक तो नाम भी मेघनाद, ऊपर से जनाब 6 फुट के लंबे कद के साथसाथ अच्छेखासे सांवले रंग के मालिक भी थे. उस पर घनीघनी मूंछें. कुलमिला कर मेघनाद को देख कर हम शहर वाले उसे किसी फिल्मी विलेन से कम नहीं समझते थे.

पास ही के गांव से आने वाला मेघनाद पढ़ाई में अव्वल तो नहीं था लेकिन औसत दर्जे के छात्रों से तो अच्छा ही था.

आमतौर पर क्लास में पीछे की तरफ बैठने वाला मेघनाद इत्तिफाक से एक दिन मेरे बराबर में ही बैठा था. जैसे ही प्रोफैसर ने उस का नाम पुकारा कि ‘खीखी’ की आवाजें आने लगीं.

मेरे लिए अपनी हंसी दबाना बड़ा ही मुश्किल हो रहा था. मुझे लगा कि मेघनाद को बुरा लग सकता है, लेकिन मैं ने देखा कि वह खुद भी मंदमंद मुसकरा रहा था.

कुछ दिनों से मैं नोट कर रहा था कि मेघनाद चुपकेचुपके श्वेता की तरफ देखता रहता था. कालेज में लड़कियों की तरफ खिंचना कोई नई बात नहीं थी लेकिन श्वेता अपने नाम की ही तरह खूब गोरी और बेहद खूबसूरत थी. क्लास के कई लड़के उस पर फिदा थे लेकिन श्वेता किसी को भी घास नहीं डालती थी.

मैं ने यह बात खूब मजे लेले कर अपने दोस्तों को बताई.

एक दिन जब प्रोफैसर महेश ने मेघनाद का नाम पुकारा तो कोई जवाब नहीं आया. उन्होंने फिर से नाम पुकारा लेकिन फिर भी कोई जवाब नहीं आया.

मेघनाद कभी गैरहाजिर नहीं होता था इसलिए प्रोफैसर महेश ने सिर उठा कर फिर से उस का नाम लिया. अब तक क्लास की ‘खीखी’ अच्छीखासी हंसी में बदल गई थी.

इतने में श्वेता ने मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘‘सर, वह शायद लक्ष्मणजी के साथ कहीं युद्ध कर रहा होगा.’’

यह सुन कर सभी हंसने लगे. यहां तक कि प्रोफैसर महेश भी अपनी हंसी न रोक पाए.

तभी सब की नजर दरवाजे पर पड़ी जहां मेघनाद खड़ा था. आज उस की ट्रेन लेट हो गई थी तो वह भी थोड़ा लेट हो गया था. उस ने श्वेता की बात सुन ली थी और उस का चेहरा उतर गया था.

मुझे मेघनाद का उदास सा चेहरा देख कर अच्छा नहीं लगा. शायद उस को लोगों की हंसी से ज्यादा श्वेता की बात बुरी लगी थी.

बीएससी पूरी कर के मैं दिल्ली आ गया और फिर अगले 10 सालों में एक बड़ी मैडिकल ट्रांसक्रिप्शन कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर बन गया.

कालेज के मेरे कुछ दोस्त सरकारी टीचर बन गए तो कुछ अपना कारोबार करने लगे.

कालेज के कुछ पुराने छात्रों ने 10 साल पूरे होने पर रीयूनियन का प्रोग्राम बनाया. अनुराग, अजहर, विनोद, इकबाल, पारुल वगैरह ने प्रोग्राम के लिए काफी मेहनत की.

प्रोग्राम में अपने पुराने साथियों से मिल कर मुझे बहुत अच्छा लगा.

यों तो प्रोग्राम में अपनी क्लास के करीब आधे ही लोग आ पाए, फिर भी उन सब से मिल कर काफी अच्छा लगा.

मेरे सहपाठी हेमेंद्र और दीप्ति शादी कर के मुंबई में रह रहे थे तो संजय एक बड़ी गारमैंट कंपनी में वाइस प्रैसीडैंट बन गया था. अतीक जरमनी में सीनियर साइंटिस्ट के पद पर था. वह प्रोग्राम में तो नहीं आ पाया लेकिन उस ने हम सब को अपनी शुभकामनाएं जरूर भेजी थीं.

वंदना एक कामयाब डाक्टर बन गई थी. हमारे टीचरों ने भी हम सब को अपनेअपने फील्ड में कामयाब देख कर अपना आशीर्वाद दिया. कुलमिला कर सब से मिल कर बहुत अच्छा लगा.

हमारे सीनियर मैनेजर मनीष सर 2 साल के लिए अमेरिका जा रहे थे. उन की जगह कोई नए सीनियर मैनेजर हैदराबाद से आ रहे थे. मेरे साथी असिस्टैंट मैनेजर ऋषि, जिन को औफिस में सब ‘पार्टी बाबू’ के नाम से बुलाते थे, ने नए सीनियर मैनेजर के स्वागत में एक छोटी सी पार्टी करने का सुझाव दिया. हम सभी को उन की बात जंच गई और सभी लोग पार्टी की तैयारियों में लग गए.

तय दिन पर नए सीनियर मैनेजर औफिस में पधारे और उन को देखते ही मेरे आश्चर्य की कोई सीमा न रही. मेरे सामने मेघनाद खड़ा था. वह भी मुझे देख कर तुरंत पहचान गया और बड़ी गर्मजोशी से आ कर मिला.

मेघनाद बड़ा आकर्षक लग रहा था. सूटबूट में आत्मविश्वास से भरपूर फर्राटेदार अंगरेजी में बात करता एक अलग ही मेघनाद मेरे सामने था. अपने पहले ही भाषण में उस ने सभी औफिस वालों को प्रभावित कर लिया था.

थोड़ी देर बाद चपरासी ने आ कर मुझ से कहा कि सीनियर मैनेजर आप को बुला रहे हैं. मेघनाद ने मेरे और परिवार के बारे में पूछा. फिर वह अपने बारे में बताने लगा कि ग्रेजुएशन करने के बाद वह कुछ साल दिल्ली में रहा, फिर हैदराबाद चला गया. पिछले साल ही उस ने हमारी कंपनी की हैदराबाद ब्रांच जौइन की थी.

फिर उस ने मुझे रविवार को सपरिवार अपने घर आने की दावत दी.

रविवार को मैं अपनी श्रीमती के साथ मेघनाद के घर पहुंचा. घर पर मेघनाद के 2 प्यारेप्यारे बच्चे भी थे. लेकिन असली झटका मुझे उस की पत्नी को देख कर लगा. मेरे सामने श्वेता खड़ी थी. मेरे हैरानी को भांप कर मेघनाद भी हंसने लगा.

‘‘हैरान हो गए क्या…’’ मेघनाद ने हंसते हुए कहा, फिर खुद ही वह अपनी कहानी बताने लगा, ‘‘दिल्ली आने के बाद नौकरी के साथसाथ मैं एमबीए भी कर रहा था. वहां मेरी मुलाकात श्वेता से हुई थी. फिर हमारी दोस्ती हो गई और कुछ समय बाद शादी. वैसे, मुझ में इन्होंने क्या देखा यह आज तक मेरी समझ में नहीं आया.’’

श्वेता ने भी अपने दिल की बात बताई, ‘‘कालेज में तो मैं इन को सही से जानती भी नहीं थी, पता नहीं कहां पीछे बैठे रहते थे. दिल्ली आ कर मैं ने इन के अंदर के इनसान को देखा और समझा. मैं ने अपनी जिंदगी में इन से ज्यादा ईमानदार, मेहनती और प्यार करने वाला इनसान नहीं देखा.’’

मेघनाद और श्वेता के इस प्रेम संसार को देख कर मुझे वाकई बड़ी खुशी हुई. सच ही है कि आदमी की पहचान उस के नाम या रंगरूप से नहीं, बल्कि उस के गुणों से होती है. और हां, अब मुझे मेघनाद नाम सुन कर हंसी नहीं आती, बल्कि फख्र महसूस होता है.

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