अगर आपको भी मेनोपौज हो गया है तो धबराइए मत ये कोई बीमारी नहीं है

45 साल की सुधा को पिछले एक साल से पीरियड्स में गड़बड़ी हो रही थी, कभी 2 से 3 महीने बाद तो कभी महीने में दो बार भी हो रहा था. सुधा ने अपने जान-पहचान की महिलाओं से बात की और इस बारें में जानकारी लेनी चाही. सबने कहा कि यह मेनोपॉज का समय है इसलिए ऐसा हो रहा है. धीरे-धीरे बंद हो जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. एक साल बाद भी उन्हें महीने में दो बार पीरियड्स होने के साथ-साथ फ्लो भी बहुत रहने लगा, जिससे वह कमजोर होने लगी और हर बात पर गुस्सा करने लगी. इसके बाद  सुधा स्त्रीरोग विशेषज्ञ के पास गयी और डॉक्टर ने सारी जांच के बाद उसे दवाइयां दी, जिससे माहवारी बंद हो गयी, लेकिन दवा के छोड़ते ही फिर ऐसी समस्या होने लगी. डॉक्टर ने अब इसका इलाज ऑपरेशन बताया, जो सुधा को चिंतित कर रहा है.

मेनोपॉज या रजोनिवृत्ति एक साधारण प्रक्रिया है, जो हर महिला के मासिक धर्म का चक्र समाप्त हो जाने पर होता है. इससे घबराना या परेशान होने की कोई वजह नहीं होती. इस बारें में मुंबई की कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल के ऑब्‍सटेट्रिशियन एवं गाइनकोलॉजिस्‍ट डॉ. वैशाली जोशी कहती है कि रजोनिवृत्ति होने पर कई महिलाएं घबरा जाती है, उन्हें लगता है कि अब स्त्रीत्व उनमें ख़त्म हो गया है. जबकि यह एक प्राकृतिक नियम है, जो हर महिला को होता है. यह तब होता है, जब अंडाशय से अंडाणुओं की उत्‍पत्ति और हॉर्मोन्‍स का स्राव बंद हो जाता है. जब किसी औरत को एक साल तक पीरियड (मासिक धर्म) नहीं आता, तो ऐसा मान लिया जाता है कि वो मेनोपॉज की अवस्‍था में पहुंच चुकी है. मेनोपॉज की औसत आयु 50 वर्ष है, जबकि पश्चिमी देशों की महिलाओं के लिए 52 वर्ष हो सकता है. यह एक स्‍वाभाविक प्रक्रिया होने के साथ-साथ अनिवार्य परिवर्तन भी है, जो महिलाओं में उम्र बढ़ने के साथ होता है. इसके 3 स्टेज निम्न है,

मेनोपॉज के स्टेज                   

  • पेरिमेनोपॉज़ यानि ‘रजोनिवृत्ति के करीब’ यह रजोनिवृत्ति का शुरूआती स्टेज है, जिसके बाद से पीरियड बंद होने की शुरुआत हो जाती है, यह मेनोपॉज के 5 से10 वर्ष पहले शुरू हो सकता है.
  • जब किसी महिला को 12 महीने तक पीरियड नहीं आता है, तो उसे मेनोपॉज या रजोनिवृत्ति मान लिया जाता है.
  • पोस्ट-मेनोपॉज मासिक धर्म के एक साल बाद शुरू होता है.

मेनोपॉज आखिर है क्या 

  • प्राकृतिक रूप से उम्र ढलने पर अंडाशय से अंडाणुओं और हॉर्मोन्‍स के कम निकलने की वजह से होता है,
  • फोर्स्‍ड मेनोपॉज तब होता है, जब कीमो या रेडियो थिरेपी के इलाज से अंडाशय को सर्जिकली हटा दिया जाता है, क्योंकि इस थिरेपी से कई बार अंडाशय नष्ट हो जाता है, इसके अलावा मेनोपॉज के दौरान ब्लीडिंग बंद न कर पाने की स्थिति में भी अंडाशय को निकाल देना पड़ता है.

डॉ. वैशाली आगे कहती है कि प्री-मैच्‍योर मेनोपॉज में नार्मल लेवल पर हॉर्मोन स्रावित करने की अंडाशयों की क्षमता घट जाने की वजह से हो सकता है, यह जीन संबंधी विकार या ऑटोइम्‍यून बीमारियों के कारण हो सकता है,लेकिन यह केवल 1% महिलाओं में देखने को मिलता है.

मेनोपॉज के लक्षण 

  • हॉट फ्लैशेज
  • रात में पसीना आना
  • योनि का सूखापन
  • उदासी, चिंता और चिड़चिड़ापन
  • जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द
  • यौन संबंधों में रूचि का घटना
  • मासिक-धर्म में अनियमितता
  • वजन बढ़ना आदि.

हर महिला में रजोनिवृत्ति के अलग-अलग लक्षणों का अनुभव 4 से 5 साल पहले से होने लगता है और इससे निपटने के कई तरीके है. रजोनिवृत्ति के लक्षण कितने समय तक महिला को रहेगा, इसे बताना संभव नहीं. कई महिलाओं में ये लक्षण 3 वर्षों के भीतर समाप्‍त हो जाते है.

अपने अनुभव के बारें में डॉ. वैशाली कहती है कि मेनोपॉज को कभी हल्के में न ले, क्योंकि ये व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन को प्रभावित कर सकती है. नीद की समस्या, ऑस्टियोपोरोसिस, चिडचिडापन, मनोदशा में बदलाव आदि होने पर डॉ. की सलाह तुरंत लेनी चाहिए. एक बार एक महिला अपनी 43 साल की बेटी और दामाद के साथ मेरे पास आई, क्योंकि मेनोपॉज  की वजह से उसकी मनोदशा में गंभीर परिवर्तन, गुस्‍सा, अनिद्रा आदि की शिकार हो चुकी थी, जिससे उसका पर्सनल रिलेशनशिप प्रभावित हो रहा था. मैंने उसकी एनीमिया और कार्य सम्बन्धी बातों पर ध्यान न देकर उसकी हार्मोनल इलाज किया,जिससे    बेटी के स्‍वभाव में पिछले 6 से 8 महीने में पूरी तरह से बदलाव आ गया. इसके अलावा पूरे परिवार की साइकोलॉजिकल काउंसलिंग की गयी. इससे उनका पूरा परिवार इकाई एक साथ रहने लगे और उनके जीवन स्तर में सुधार हुआ.

क्या है इलाज 

रजोनिवृत्ति की इलाज के लिए साधारणत: हार्मोन परीक्षण की आवश्यकता नहीं होती. यदि 45 वर्ष से अधिक उम्र की महिला में मेनोपॉज के लक्षण दिखाई पड़ती है, तो लक्षण के आधार पर चिकित्सा की जाती है. कई बार मेनोपॉज की अवस्था में कई समस्याएं, मसलन, नींद की

रहे सावधान  

रजोनिवृत्ति की अवस्‍था में पहुंचने से पहले तक, गर्भधारण संभव है. इसलिए अनियोजित गर्भधारण से बचने और सुरक्षित यौन संबंध बनाने के लिए सेक्स के दौरान कंडोम जैसे गर्भनिरोधक का उपयोग करना आवश्यक है.

अंत में यही कहना सही होगा कि रजोनिवृत्ति को स्‍वीकार करें और इसे सहजता से लें. स्वस्थ जीवन शैली, वर्कआउट, मेडिटेशन आदि के द्वारा खुद को फिट रखा जा सकता है. व्यायाम से मेनोपॉज के शारीरिक और भावनात्मक लक्षणों से निपटने में सहायता मिलती है. इसके अलावा अपने परिवार, पति, करीबी दोस्तों और स्त्री रोग विशेषज्ञ के साथ लक्षणों के बारे में खुलकर चर्चा करें. याद रखें रजोनिवृत्ति की अवस्‍था हर महिला के जीवन में आती है और जीवन की यह अवस्‍था भी खूबसूरत होती है, जिसे सकारात्‍मक तरीके से बिताया जाना चाहिए.

मेनोपॉज के दौरान बढ़ते वजन से जंग: जानें पीरियड में कैसे घटाएं वजन

मेनोपॉज एक सामान्य प्रक्रिया है जिसका अनुभव महिलाओँ को उम्र बढने के साथ होता है. जब महिलाओँ की माहवारी बंद होती है तब उनके शरीर में कई तरह के बदलाव आते हैं जिसका असर उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति दोनोँ पर पडता है. इस दौरान महिलाओँ का वजन भी बढ सकता है. उम्र बढने के साथ महिलाओँ के लिए वजन पर नियंत्रण रखना कठिन हो सकता है. ऐसा देखा जाता है कि बहुत सारी महिलाओँ का वजन मेनोपॉज होने की प्रक्रिया में बहुत अधिक बढ जाता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मेनोपॉज के दौरान वजन बढने से रोकना मुश्किल होता है. लेकिन अगर आप स्वस्थ जीवनशैली और खान-पान की अच्छी आदतोँ का पालन करती हैं, तो इस अतिरिक्त वजन को बढने से रोका जा सकता है.

1. मेनोपॉज के दौरान वजन बढने के कारण

मेनोपॉज के दौरान, हार्मोनल बदलावोँ की वजह से महिलाओँ के पेट, कूल्हो और जांघोँ के आस-पास अधिक फैट जमा होने की आशंका बढ जाती है. हालांकि मेनोपॉज के दौरान अतिरिक्त वजन बढने के लिए अकेले हार्मोनल बदलाव जिम्मेदार नहीं होते हैं. वजन बढने का सम्बंध बढती उम्र के साथ-साथ जीवनशैली और जेनेटिक कारणोँ के साथ भी होता है. वजन बढने के साथ मांसपेशियोँ का घनत्व कम होने लगता है, जबकि फैट का अनुपात शरीर में बढने लगता है. मसल मास कम होने के कारण  शरीर कैलोरी का इस्तेमाल कम करता है (बीएमआर-बेसल मेटाबोलिक रेट). ऐसे में वजन को स्वस्थ्य सीमा में रखना कठिन हो जाता है. अगर एक महिला अपना खाना-पीना उतना ही रखती है, जितना पहले और साथ में शारीरिक सक्रियता नहीं बढा पाती है तो वह मोटी हो जाती है.

2. जैनेटिक कारण

इसके साथ-साथ, मेनोपॉज सम्बंधी वजन बढने में जैनेटिक कारक भी जिम्मेदार होते हैं. अगर आपकी माँ अथवा अन्य करीबी सम्बंधियोँ का वजन अधिक है तो आपको भी पेट के आस-पास अतिरिक्त फैट जमा होने का खतरा अधिक रहता है. इतना ही नहीं, व्यायाम की कमी, अस्वस्थ्य खान-पान, नींद की कमी आदि कारणोँ से भी वजन बढता है. ऐसा इसलिए क्योंकि यदि किसी को नींद कम आती है तो वह अतिरिक्त कैलोरी लेकर वजन में बढोत्तरी को न्योता दे देती हैं.

3. एस्ट्रोजन के स्तर से मेनोपॉज के दौरान पडता है वजन पर असर

एस्ट्रोजन की मात्रा कम होने का सबसे आम कारण है मेनोपॉज. ऐसा तब होता है जब महिला के प्रजनन सम्बंधी हार्मोंस कम होने लगते हैं और उनकी माहवारी बंद हो जाती है. ऐसे में महिलाओँ का वजन बढ सकता है. जैसा कि पहले बताया जा चुका है मेनोपॉज के दौरान वजन बढने का एक कारण हार्मोंस के स्तर का घटना-बढना होता है. एस्ट्रोजन हार्मोन दिल को सुरक्षा देता है और इसकी कमी होने पर डायबीटीज और हार्ट डिजीज जैसी समस्याओँ का खतरा तेजी से बढता है. हार्मोनल बदलाव की वजह से अक्सर लोगोँ की सक्रियता कम हो जाती है और उनकी मांसपेशियोँ का घनत्व कम हो जाता है. इसका मतलब है कि ये महिलाएं दिन भर में पहले की तुलना में कम कैलोरी बर्न कर पाती हैं.

4. मेनोपॉज के बाद वजन बढने से होने वाली समस्याओँ के बारे में जानें:

मेनोपॉज के बाद बढने वाले वजन की वजह से तमाम तरह की समस्याओँ का खतरा बढ जाता है:

अत्यधिक वजन, खासकर शरीर के बीच के हिस्से में. टाइप 2 डायबीटीज, दिल की बीमारियोँ और तमाम प्रकार के कैंसर का खतरा बढना, इनमेँ ब्रेस्ट, कोलोन और एंडोमेट्रियल कैंसर का खतरा सबसे अधिक बढ जाता है.

 5. मेनोपॉज के बाद वजन बढने से रोकने के तरीके

शारीरिक रूप से सक्रिय रहें

एरोबिक एक्सरसाइज अथवा स्ट्रेंथ ट्रेनिंग करेँ इससे आपको वजन घटाने में सहायता मिलेगी. एरोबिक एक्टिविटी जैसे कि तेज कदमोँ से चलना, जॉगिंग जैसे व्यायाम कम से कम हफ्ते में 150 मिनट तक करेँ. इसी प्रकार से स्ट्रेंथ ट्रेनिंग एक्सरसाइज हफ्ते में कम से कम दो बार करेँ.

6. खान-पान की अच्छी आदतेँ अपनाएँ

अपने वजन को स्वस्थ्य सीमा में रखने के लिए संतुलित आहार लेँ और कैलोरी का ध्यान रखें.  पोषण के साथ समझौता किए बिना कैलोरी कम रखने के लिए यह ध्यान रखेँ कि आप क्या खा-पी रहें.

आपके आहार में भरपूर दूध और दूध से बने अन्य उत्पाद भरपूर मात्रा में होने चाहिए ताकि जीवन के इस चरण में आपके लिए जरूरी मात्रा में कैल्शियम मिले.

फल, सब्जियां और साबुत अनाज भरपूर मात्रा में खाएँ खासकर ऐसी चीजेँ जिन्हेँ कम प्रॉसेस किया गया हो और फाइबर से भरपूर हों.

प्लांट-बेस्ड आहार अन्य सभी चीजोँ से बेहतर विकल्प होता है.

फलियां, नट्स, सोया, फिश और कम फैट वाले डेयरी उत्पाद इस्तेमाल करेँ.

रेड मीट कम खाएं इसकी जगह चिकन खाना बेहतर विकल्प हो सकता है.

अतिरिक्त शुगर वाले पेय पदार्थ जैसे कि सॉफ्ट ड्रिंक, जूस, एनर्जी ड्रिंक, फ्लेवर्ड पानी और चाय या कॉफी आदि कम मात्रा में लेँ.

इसके अलावा अन्य चीजेँ जैसे कि कुकीज, पाई, केक, डोनट्स, आइस क्रीम और कैंडी जैसी चीजेँ भी वजन बढने का कारण बनती हैं.

 डॉ. संचिता दूबे, कंसल्टेंट, ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गायनेकॉलजी, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा

मेनोपौज से जुड़े मिथ्स को जानना है बेहद जरूरी

45 साल की रश्मि पिछले कुछ दिनों से अपने स्वास्थ्य में असहजता महसूस कर रही थी. इस वजह से उसे नींद अच्छी तरह से नहीं आ रही थी. ठण्ड में भी उसे गर्मी महसूस हो रही थी. पसीने छूट रहे थे. उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. बात-बात में चिडचिडापन आ रहा था. डौक्टर से सलाह लेने के बाद पता चला कि वह प्री मेनोपौज के दौर से गुजर रही है. जो समय के साथ-साथ ठीक हो जायेगा.

दरअसल मेनोपौज यानी रजोनिवृत्ति एक नैचुरल बायोलौजिकल प्रक्रिया है,जो महिलाओं की 40 से 50 वर्ष के बीच में होता है. महिलाओं में कई प्रकार के हार्मोनल बदलाव इस दौरान आते है और मासिक धर्म रुक जाता है.  इस बारें में ‘कूकून फर्टिलिटी’ के डायरेक्टर, गायनेकोलोजिस्ट और इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉ.अनघा कारखानिस कहती है कि अगर कोई महिला पूरे 12 महीने बिना किसी माहवारी के गुजारती है तो उसे मेनोपौज ही कही जाती है, ऐसे में कुछ महिलाओं को लगता है कि मेनोपौज से उनकी प्रजनन क्षमता समाप्त होने की वजह से वे ओल्ड हो चुकी है, जबकि कुछ महिलाओं को हर महीने की झंझट से दूर होना भी अच्छा लगता है. इतना ही नहीं इसके बाद किसी भी महिला को बिना चाहे माँ बनने की समस्या भी चली जाती है.

इसके आगे डौ.अनघा बताती है कि मेनोपौज एक सामान्य प्रक्रिया होने के बावजूद उसे लेकर कई भ्रांतियां महिलाओं में है, जबकि कुछ महिलाओं में मूड स्विंग और बेचैनी रहती भी नहीं है, लेकिन वे मेनोपौज के बारें में सोचकर ही परेशान रहने लगती है,जिससे न चाहकर भी उनका मनोबल गिरता है और वे डिप्रेशन की शिकार होती है. जबकि ये सब मिथ है और इसका मुकाबला आसानी से किया जा सकता है, जो निम्न है,

मेनोपौज एक नयी शुरुआत

ये एक अवधारणा सालों से चली आ रही है कि मेनोपौज के बाद जीवन अंतिम दौर में पहुंच जाता है. ये शायद प्राचीन काल में था, जब महिलाओं का जीवन मेनोपौज के द्वारा ही आंकी जाती थी, अब महिलाएं रजोनिवृत्ति के बाद भी अधिक दिनों तक स्वस्थ जीवित रहती है और जीवन का एक तिहाई भाग वे अपने परिवार के साथ ख़ुशी-ख़ुशी बिताती है,जो 51 के बाद से ही शुरू होता है. इसमें वे अपने जीवन के सभी लक्ष्यों को पूरा करने की क्षमता रखती है, क्योंकि केवल माहवारी बंद हुई है और कुछ भी बदला नहीं है. उन्हें अपने हिसाब से जीने का पूरा अधिकार मिलता है.

अधिकतर महिलाओं को इस फेज से गुजरने पर एंग्जायटी होती है

ये पूरी तरह से सही नहीं है, महिलाओं को भी पुरुषों की तरह ही डिप्रेशन और अप्रसन्नता का सामना करना पड़ता है, मूड स्विंग अधिकतर हार्मोनल बदलाव की वजह से होती है, जो केवल मेनोपौज की वजह से नहीं होता, दूसरी समस्याएं भी हो सकती है, जिसकी जांच करवा लेना सही होता है,

सभी महिलाएं मेनोपौज के दौरान कुछ अलग लक्षण अनुभव करती है

ये सही है कि रजोनिवृत्ति के दौरान महिलाओं में कुछ लक्षण मसलन अचानक गर्मी लगना, बेड टाइम पसीना, मूड में अस्थिरता आदि होते है, पर ये हर महिला के लिए अलग होता है. कुछ को ये अनुभव बहुत कम भी हो सकता है.

मेनोपौज के बाद वजन अपने आप बढ़ता है

बहुत सारी महिलाओं का वजन 35 से 45 उम्र के दौरान बढती है. इसका मेनोपौज से कुछ लेना देना नहीं होता और ये जांच के बाद ही पता चल पाता है. कुछ शोध कर्ताओं का कहना है कि ये अभी पता नहीं चल पाया है कि मोटापे की वजह मेनोपौज ही है, क्योंकि इस उम्र में महिलाओं की एक्टिवनेस कम हो जाती है, जिससे मोटापा अपने आप ही आ जाती है. ये सही है कि  मेनोपौज में शरीर में फैट की प्रतिशत बढ़ जाती है,ऐसे में अगर खान-पान पर ध्यान दिया जाय तो वजन नहीं बढ़ पाता.

मेनोपौज के बाद सेक्स में रूचि कम हो जाती है

ये पूरी तरह से गलत है,क्योंकि मेनोपौज के बाद सेक्स करने से गर्भधारण की चिंता नहीं रहती. अगर आपने 12 महीने बिना माहवारी के गुजार दिया है, तो आप बिना चिंता के अपनी सेक्सुअल लाइफ जी सकते है और ये सही भी है कि इस समय सेक्सुअल एक्टिवनेस की वजह से आपका मानसिक सामंजस्य भी बना रहता है.

मेनोपौज के बाद भी महिला प्रेग्नेंट हो सकती है

जब महिला इस दौर से गुजरती है और माहवारी का समय बार-बार बदल रहा है, तो इस समय महिला प्री मेनोपौज की स्थिति में है, ऐसे में पार्टनर के साथ सेक्सुअल इंटरकोर्स किया है, तो गर्भधारण हो सकता है और आपको डौक्टर की सलाह से गर्भनिरोधक दवाइयां लेने की जरुरत है. 12 महीने बिना मासिक धर्म के गुजर जाने पर ही प्रेगनेंसी की समस्या नहीं रहती.

डौ.अनघा का आगे कहना है कि ये सारे मिथ की वजह से महिलाएं मेनोपौज के बाद अपने आपको कमजोर और लाचार महसूस करती है, जिसकी कतई जरुरत नहीं है. असल में इस समय महिलाओं की स्वस्थ रहकर अधिक से अधिक एक्टिव होने की जरुरत होती है, ताकि उनके उद्देश्य जिसे उसने अभी तक पूरा नहीं कर पायी हो, उसे कर लें, अपने प्यारे दोस्त और परिवार जनों के साथ ट्रेवल करें. इतना ही नहीं,जो महिलाएं रजोनिवृत्ति के बाद अपने स्वास्थ्य और माइंड की सही देखभाल करती है, वे अधिक अच्छी और सम्पूर्ण जीवन मेनोपौज के बाद ही बिता पाती है, उन्हें कोई रोक नहीं पाता.

मेनोपौज का रिस्क कम करता है टमाटर, ऐसे करें प्रयोग

मेनोपौज आज अधिकतर महिलाओं के लिए एक बड़ी परेशानी बनी हुई है. एक उम्र में आ कर देखा जाता है कि एक बड़ी संख्या में महिलाओं को इस परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. एक हाल की स्टडी में ये बात सामने आई है कि टमाटर का प्रयोग मेनोपौज के लक्षणों को कम करने में काफी मदद करता है.

शोध में पाया गया है कि आठ हफ्तों तक दिन में दो बार 200 मिलिलीटर टमाटर का जूस मेनोपौज के लक्षणों को कम करने में काफी मददगार होता है. इसके अलावा स्ट्रेस और कौलेस्ट्रौल की परेशानी में भी ये बेहद लाभकारी है.

टोक्यो मंडिकल यूनिवर्सिटी में 93 महिलाओं पर इस शोध को किया गया. इसमें महिलाओं के हृदय की गति जैसी कुछ चीजों की जांच की गई. नतीजों में ये बात सामने आई कि स्ट्रेस, उलझन, हौट फ्लैश जैसी परेशानियां काफी कम हुई हैं. इसके अलावा आराम करने के दौरान महिलाओं की अधिक कैलोरी बर्न होती है.

एक अन्य शोध में ये बात सामने आई कि मेनोपौज के बाद महिलाओं के लिए टमाटर का अधिक सेवन ब्रेस्ट कैंसर के रिस्क को भी कम करता है. टमाटर में विटामिन सी, लाइकोपीन, विटामिन और पोटैशियम जैसे जरूरी तत्व पाए जाते हैं. टमाटर में कौलेस्ट्रोल घटाने की क्षमता होती है. वजन घटाने में भी टमाटर का अहम योगदान होता है.

कम सेक्स करना बन सकता है प्री मेनोपोज़ का कारण

सेक्स शादीशुदा लोगो के लिए उनके रिश्ते में मजबूती देने में एक अहम भूमिका निभाता है. यह हमारी पर्सनल लाइफ के साथ साथ शारारिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में बेहद कारगर सिद्ध होता है लेकिन आज के समय का लाइफस्टाइल ऐसा हो गया है की लोग अपनी व्यस्तता के चलते सेक्स को  तवज्जो नहीं देती और सेक्स को सिर्फ वंश बढ़ाने का उद्देश्य मनने लगते हैं तो कुछ महिलएं  कामकाजी होने के कारण अपने काम को प्राथमिकता देना पसंद करती है और थकान के कारण सेक्स करने से बचने लगती हैं लेकिन एक स्टडी में पाया गया है की सेक्स हमारे काम करने की क्षमता को बढ़ता है और जो महिलाऐं सेक्स करने से बचती है उन में तनाव की बढ़ोतरी होती है देखा जाए तो पुरुष सेक्स के  मामले में महिलाओं से अधिक रूचि रखतें हैं और महिलाऐं कम अहमियत देती हैं इस  कारण महिलाओं में  मेनोपॉज़ की समस्या उम्र से पहले होने लगती है.

 मेनोपॉज़ होने का कारण

जिस तरह किशोरावस्था यानि  12 से 15  कि उम्र में  महिलाओं के पीरियड्स शुरू हो जाते हैं. पीरियड्स का होने  का संकेत है कि महिला के शरीर में हार्मोनल बदलाव होने लगे है और अब वह गर्भधारण करना चाहे  तो अब वह इस के लिए शारारिक रूप से तैयार होने लगी है लेकिन 45  कि उम्र के बाद महिलाओं में पीरियड्स बंद होने लगते है जिसे मेनोपोज़ कहा जाता है इसे रजोनिवृत्ति भी कहते हैं. लेकिन अब देखा जा रहा है कि जो महिलाएं सेक्सुअली कम एक्टिव होती हैं, उनको 35 की  उम्र में ही मेनोपोज़ कि समस्या का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि कम सेक्स करने के कारण उनका शरीर ओव्यूलेशन बंद करने के जल्दी संकेत देने लगता है, जिसके कारण उनका मेनोपॉज़ समय से पहले हो जाता है. सेक्स कि कमी के कारण प्रजनन की प्रक्रिया में कमी आने लगती है जिस कारण अंडों का बनना बंद होने लगता है , इसलिए ओवरी प्रजनन की क्षमता बिल्कुल खो देती है।और मेनोपॉज़ हो जाता है.

 जल्दी मेनोपोज़ बन सकता है समस्या

जनन शक्ति या गर्भ धारण की क्षमता खत्म हो जाती  है. खून में असंतुलन के कारण गर्मी लगती है, दिल तेज धड़कता है, रात में पसीना आता है, नींद नहीं आती है.  हड्डी कमजोर होने लगती है इसके कारण जोड़ों, पीठ और मांसपेशियों में दर्द का अनुभव होता है. तनाव, चिड़ाचिड़ापन, उदासी, कुछ भी न करने की इच्छा, याद न रहना, जैसी मानसिक समस्या भी होने लगती हैं

प्री मेनोपॉज  से बचाव है जरूरी

महिलाओं को शारारिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि  हफ़्ते में एक बार सेक्स अवश्य करें , ऐसा करने से उनमें मेनोपॉज़ होने की संभावना, उन महिलाओं की तुलना में 28% कम होता है, जो महिलाएं महीने में एक बार सेक्स करती हैं.

शारारिक व मानसिक रूप  से स्वस्थ रहने के लिए सेक्स एक अहम रोल अदा  करता है यह सिर्फ मेनोपोज़ से ही नहीं बल्कि आपको फिट और हेल्दी रखने में भी मदद करता है साथ ही आपके रिश्ते को मजबूती भी देता

मेरी माहवारी बंद हुए 10 साल हो गए हैं, मुझे पिछले कुछ दिनों से सफेद पानी आ रहा है, यह कैंसर का लक्षण तो नहीं है?

सवाल

मेरी उम्र 60 साल है. मेरी माहवारी बंद हुए 10 साल हो गए हैं. मुझे पिछले कुछ दिनों से सफेद पानी आ रहा है. यह कैंसर का लक्षण तो नहीं है?

जवाब

मेनोपौज यानी माहवारी बंद होने के बाद सफेद पानी आ सकता है. योनी से सफेद पानी निकलना हमेशा कैंसर नहीं होता. यह सामान्य संक्रमण भी हो सकता है. लेकिन अगर बहुत समय से सफेद पानी आ रहा है और बीचबीच में ब्लीडिंग भी हो रही हो तो यह कैंसर का कारण हो सकता है. आप तुरंत किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञा को दिखाएं. अल्ट्रासाउंड कराने के बाद ही पता चलेगा कि बच्चेदानी में कोई गांठ तो नहीं है.

इसे भी पढ़ें 

सवाल 

मेरी उम्र 45 साल है. पिछले कुछ समय से मेरे निप्पल से व्हीटिश फ्ल्यूड डिस्चार्ज हो रहा है. क्या करूं?

जवाब

निप्पल से व्हीटिश फ्ल्यूड डिस्चार्ज होना सामान्य नहीं है. यह स्तन कैंसर का संकेत हो सकता है. स्तन कैंसर से संबंधित जांच कराने में देरी न करें. अल्ट्रासाउंड और बाकी जांचें कराने पर ही पता चलेगा कि इस का कारण स्तन कैंसर है या नहीं.

सवाल

मेरी नानी और भाभी दोनों की लंग्स कैंसर के चलते मृत्यु हो चुकी है. मैं जानना चाहती हूं कि महिलाएं तो धूम्रपान नहीं करतींफिर भी उन्हें फेफड़ों का कैंसर क्यों हो जाता है?

जवाब

यह सही है कि जिन्हें फेफड़ों का कैंसर होता हैउन में से 90% लोग तो धूम्रपान करते हैं. मगर केवल धूम्रपान ही इस का एकमात्र कारण नहीं है. चूल्हे पर खाना बनानावायु प्रदूषणसीमेंट उद्योग में काम करनाज्यादा धूलमिट्टी वाले स्थान पर रहना भी फेफड़ों के कैंसर का कारण बन सकता है.

सवाल

मुझे डाक्टर ने रैडिएशन थेरैपी कराने के लिए कहा है. लेकिन मुझे डर लग रहा है?

जवाब

रैडिएशन थेरैपी कैंसर के उपचार की एक बहुत ही सुरक्षित प्रक्रिया है. रैडिएशन हाई ऐनर्जी रेज होती हैं. इन में कोई करंट नहीं होता है. आप डरें नहीं क्योंकि इस में जलन या गरमी नहीं लगती है. सीटी स्कैन की तरह 5 मिनट के लिए मशीन में जाते हैंफिर बाहर आ जाते हैं.

Winter Special: जाने मेनोपॉज के दौरान कैसे अपनी त्वचा का बचाव कर सकते हैं आप?

मेनोपॉज बढ़ती उम्र में जीवन का एक हिस्सा है. यह महिलाओं के शारीरिक, जातीय और सामाजिक पहलुओं को जोड़ता है. दुनिया में हर जगह जब महिलाओं की उम्र आधी हो जाती है तो वे अनियमित पीरियड्स या मेनोपॉज का अनुभव करती हैं. इन सब चीजों में डॉक्टरी मदद से कुछ राहत मिल जाती है. ईस बारे में बता रहे हैं-एलाइव वेलनेस क्लीनिक के मुख्य त्वचा रोग विशेषज्ञ और डायरेक्टर डॉ चिरंजीव छाबरा.

मेनोपॉज प्राकृतिक रूप से होने वाली एक ‘बायोलॉजिकल’ प्रक्रिया है. मेनोपॉज तब होता है जब ओवरीज (अंडाशय) हार्मोन का उत्पादन ज्यादा मात्रा में करना बंद कर देती हैं. ओवरीज टेस्टोस्टेरोन के अलावा वे फीमेल हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का उत्पादन करते हैं. जब पीरियड्स आते हैं तो एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन उसमे मुख्य भूमिका निभाते हैं. जिस तरह से आपका शरीर कैल्शियम का इस्तेमाल करता है या ब्लड कोलेस्ट्राल लेवल को संतुलित करता है उसी के हिसाब से एस्ट्रोजन का उत्पादन भी प्रभावित होता है.

जब मेनोपॉज होता है तो ओवरी से फेलोपियन ट्यूब में अंडे रिलीज होना बंद हो जाते हैं और महिला तब अपने आखिरी मासिक चक्र में होती है.

मेनोपॉज के दौरान महिलाओं को होने वाली समस्याएं

मेनोपॉज के दौरान अनियमित रूप से पीरियड्स आते हैं, उम्र से सम्बंधित त्वचा पर लक्षण दिखते हैं, धूप से त्वचा के डैमेज हो जाती है, स्किन ड्राई हो जाती है, चेहरे के बाल नज़र आते हैं, बालों का झड़ना, झुर्रियाँ, फुंसियाँ, हार्ट तेज होना, सिरदर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, और दर्द, सेक्स न करने की भावना होना, एकाग्रता में और याददाश्त सम्बन्धी परेशानी, वजन बढ़ना और कई तरह के मुँहासे होते हैं.

समस्याएं–

– गर्माहट का झोंका लगना (गर्मी का अचानक अहसास जो पूरे शरीर में हो).

– रात में पसीना आना और/या ठंड लगना.

– सर्विक्स में सूखापन; सेक्स के दौरान बेचैनी होना

– पेशाब करने की बार-बार जरूरत महसूस होना

– नींद न आने की समस्या (अनिद्रा).

– भावनात्मक बदलाव (चिड़चिड़ापन, मिजाज, हल्का डिप्रेशन).

– मुंह, आँख और स्किन का ड्राई होना

मेनोपॉज आने पर स्किन से सम्बंधित सावधानी–

विटामिन  D और कैल्शियम से भरपूर चीजें खाएं

मेनोपॉज संबंधी हार्मोनल बदलाव हड्डियों को कमजोर बना देते हैं. जिससे ऑस्टियोपोरोसिस होने का खतरा बढ़ सकता है क्योंकि कैल्शियम और विटामिन D की कमी हो जाती है. इसलिए अपनी डाइट में उन चीजों को शामिल करें जिसमे कैल्शियम और विटामिन डी प्रचुर मात्रा में हो.

 

ट्रिगर खाद्य पदार्थ खाने से बचें–

कुछ खाद्य पदार्थों से गर्म झोंके आने, रात को पसीना आने और मूड स्विंग से जोड़ कर देखा जाता है. जब रात में इसका सेवन किया जाता है, तो उनके ट्रिगर होने की संभावना और भी ज्यादा हो सकती है. कैफीन, शराब और मसालेदार भोजन से बचें.

 

हयालूरोनिक एसिड–

जब उम्र बढ़ती है तो शरीर में हयालूरोनिक एसिड कम हो जाता है, जिस वजह यह एसिड त्वचा और ऊतकों की सुरक्षा नहीं कर पाता है. इसलिए हयालूरोनिक जैल और सीरम लगाने की जरूरत होती है. प्रोफिलो  भी ऐसा ही एक इंजेक्टेबल स्किन रीमॉडेलिंग ट्रीटमेंट है. इस इलाज को तब अमल में लाया जाता है जब त्वचा को हाइड्रेटेड, जवान और स्वस्थ रखने के लिए हयालूरोनिक एसिड को सीधे त्वचा की परतों में इंजेक्ट किया जाता है. यह थेरेपी कई रूपों में आती है. इन थेरेपी में बायो रीमॉडेलर, स्किन बूस्टर, फ्रैक्शनल मेसोथेरेपी और लिप फिलर्स शामिल हैं.

 

फल और सब्जियों का भरपूर सेवन करें–

फलों और सब्जियों से भरपूर डाइट का सेवन  करने से मेनोपॉज के कई लक्षणों को रोकने में मदद मिल सकती है.  फल और सब्जियों में कम कैलोरी होती हैं. इनसे आप अपने वजन को भी संतुलित रख सकते हैं.

 

रिफाइन शुगर और प्रोसेस्स्ड फ़ूड का सेवन कम करें–

रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट और शुगर से ब्लड शुगर के स्पाइक्स और ड्रॉप्स बन सकते हैं. इससे व्यक्ति थका हुआ और चिड़चिड़ा महसूस कर सकता है. यह मेनोपॉज के शारीरिक और मानसिक लक्षणों को बढ़ा सकता है. हाई-रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट डाइट पोस्टमेनोपॉज़ल महिलाओं में डिप्रेशन के ख़तरे को बढ़ा सकते हैं.

अन्य तरीके–

महिलाएं इलाज के रूप में प्रोफिलो के माध्यम से हाइलूरोनिक एसिड का भी उपयोग कर सकती हैं. प्रोफिलो एक ऐसा तरीका है जिससे उम्र बढ़ने से सम्बंधित संकेतो और लक्षणों को मिटाया जा सकता है. कई महिलाएं जीवन के इस फेज में काफी खुश होती है क्योंकि उन्हें बच्चे पैदा होने की चिंता नहीं रह जाती है. इससे वे नई चीजें अपनाने में लग जाती हैं.

मेनोपौज से जुड़ी फैक्ट और इलाज के बारे में बताएं?

सवाल-

मुझे मेनोपौज होना शुरू हो गया है. ऐसे में क्या मुझे जन्मनियंत्रण का खयाल रखना चाहिए या नहीं?

जवाब-

आप को मेनोपौज होना शुरू हो चुका है तो संभव है आप को 1 साल से मासिकधर्म नहीं हुआ होगा. महिलाओं को 1 साल मासिकधर्म नहीं होता है तो उन्हें जन्मनियंत्रण के साधनों का प्रयोग करना चाहिए. मेनोपौज के बाद भी महिलाओं को यौन संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए कंडोम का उपयोग जारी रखना चाहिए.

सवाल-

मैं 53 वर्षीय हूं. मुझे अभी तक मेनोपौज नहीं हुआ है. मैं जानना चाहती हूं कि शरीर इस बदलाव की ओर बढ़ रहा है या नहीं?

जवाब-

मेनोपौज की औसत आयु 45 से 55 वर्ष के बीच होती है, इसलिए संभव है कि आप भी इस बदलाव की ओर बढ़ रही हैं. मगर यह जरूरी नहीं होता कि सभी महिलाओं को इस उम्र तक मेनोपौज हो ही जाए.

सवाल-

मैं 40 वर्षीय हूं और मुझे मेनोपौज हो रहा है. जल्दी मेनोपौज होने के कारण मुझे पेट पर बहुत ब्लोटिंग हो रही है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

मेनोपौज में सूजन व ब्लोटिंग बहुत आम बात है और ऐसा कई कारणों से हो सकता है. ऐस्ट्रोजन का गिरता स्तर पाचन को प्रभावित कर सकता है, जिस के परिणामस्वरूप सूजन हो जाती है. ऐस्ट्रोजन का गिरता स्तर कार्बोहाइड्रेट के पाचन पर भी प्रभाव डाल सकता है, जिस से स्टार्च और शुगर पचाने में और अधिक मुश्किल हो जाती है. इस से अकसर सूजन हो जाती है और साथ ही आप थकान भी महसूस कर सकती हैं.

रोज सैर करना आप के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है, क्योंकि इस से आप का पाचनतंत्र मजबूत होगा. सैर करने के अलावा गहरीगहरी सांसें लें और शरीर को टोन करें.

पास्ता, केक, बिस्कुट और सफेद चावल से परहेज करें. अगर लंबे समय तक दर्द ठीक न हो तो किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञा से मिलें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

40+ महिलाओं के लिए हैल्थ टिप्स

उम्र का एक ऐसा पड़ाव आता है जब महिलाएं प्रजनन की उम्र को पार कर रजोनिवृत्ति की ओर कदम बढ़ाती हैं. यह उम्र का नाजुक दौर होता है, जब शरीर कई बदलावों से गुजरता है. इस में ऐस्ट्रोजन हारमोन का लैवल कम होने से हड्डियों की कमजोरी, टेस्टोस्टेरौन हारमोन के कम होने के कारण मांसपेशियों की कमजोरी तथा वजन बढ़ने से मधुमेह व उच्च रक्तचाप होने की संभावना बढ़ जाती है.

ऐसे में चालीस पार महिलाएं कैसे अपने शरीर का ध्यान रखें? अपनी नियमित दिनचर्या में क्या बदलाव लाएं ताकि स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकें? ऐसे ही और कई प्रश्नों के उत्तरों के लिए स्त्रीरोग विशेषज्ञ डा. निर्मला से मुलाकात की:

40+ की उम्र में महिलाओं के अंदर क्या क्या बदलाव आते हैं?

40+ उम्र में शारीरिक बदलाव में प्रमुख है वजन का बढ़ना. महिलाओं के कूल्हों, जांघों के ऊपरी हिस्सों और पेट के आसपास चरबी जमा होने लगती है. वजन बढ़ने के कारण उच्च रक्तचाप व मधुमेह का खतरा भी बढ़ जाता है. इस के अलावा ऐस्ट्रोजन हारमोन का लैवल घटने से हड्डियां कमजोर होने लगती हैं, जिस से बचाव के लिए स्वस्थ आहार (कम कैलोरी का भोजन, प्रोटीन भोजन में शामिल करना, फल, सब्जियां, अंकुरित व साबूत अनाज) अपनाना चाहिए.

वजन पर नियंत्रण रखने के लिए कम से कम 30 मिनट तक नियमित व्यायाम जरूर करना चाहिए. व्यायाम कार्डियो ऐक्सरसाइज, ऐरोबिक्स आदि रूप में हो सकता है. टेस्टोस्टेरौन हारमोन स्राव की कमी मांसपेशियों पर असर डालती है, जिस के कारण फ्रोजन शोल्डर (कंधों में तेज दर्द होना व जाम की स्थिति) की परेशानी भी हो सकती है.

व्यायाम के द्वारा ही इस पर काबू पाया जा सकता है.

दूसरा बदलाव मानसिक तौर पर होता है, जिस में हारमोन की गतिविधियों के कारण मूड स्विंग होता है. कभीकभी चिड़चिड़ापन बढ़ने लगता है, गुस्से पर काबू खोने लगता है. ऐसे में यदि उन के साथ सहानुभूति, प्रेम का वातावरण स्थापित न हो तो कई महिलाएं डिप्रैशन की शिकार भी हो जाती हैं.

आजकल ब्रैस्ट कैंसर व गर्भाशयमुख कैंसर के केस बहुत आम हो गए हैं. इस से बचाव व स्वयं सतर्कता जांच कैसे करें?

स्तन कैंसर का इलाज मौजूद है, बशर्ते महिलाएं इस की शुरुआत होते ही इलाज शुरू कर दें. सर्वप्रथम स्नान के समय अपने एक हाथ को ऊपर उठा कर  दूसरे हाथ से स्तन की जांच स्वयं करनी चाहिए. किसी भी प्रकार की गांठ या स्राव निकलने पर तुरंत डाक्टर से संपर्क करना चाहिए.

इसी प्रकार योनि से किसी भी प्रकार का स्राव, मासिकचक्र के अतिरिक्त समय पर होने पर सजग हो जाना चाहिए. इसकी जानकारी डाक्टर को जरूर देनी चाहिए. जिन के परिवार में कैंसर के मरीज पूर्व में रहे हों जैसे नानी या मां को कैंसर हुआ हो, उन्हें नियमित तौर पर वीआईए टैस्ट, पीएपी टैस्ट जरूर करवाना चाहिए.

ऐनीमिया यानी महिलाओं में खून की कमी भी हो जाती है. इसके बचाव के क्या उपाय हैं?

हमारे देश में यह परेशानी बहुत आम हो गई है. इसके प्रमुख लक्षण हैं कमजोरी, शरीर पीला पड़ना, सांस फूलना. गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली महिलाओं में यह कमी ज्यादा देखने को मिलती है. सरकारी अस्पतालों में आयरन की गोलियां मुफ्त उपलब्ध कराई जाती हैं, अत: इनका सेवन कर आयरन की कमी पर काबू पाया जा सकता है, इस के अतिरिक्त हरी पत्तेदार सब्जियां, गुड़, काले चने, खजूर, सेब, अनार, अमरूद इत्यादि में आयरन की प्रचुर मात्रा होती है. लोहे के बरतनों में खाना पकाने से भी शरीर को आयरन की पूर्ति होती है. इसके अलावा 6 माह के अंतराल में कीड़ों की दवा जरूर लेनी चाहिए.

40+ महिलाओं में कैल्सियम की कमी क्यों बढ़ जाती है?

हां, स्तनपान कराने वाली महिलाओं, गर्भवती महिलाओं के अलावा यह कमी 40+ महिलाओं में ऐस्ट्रोजन हारमोन घटने के कारण भी होने लगती है. इसे दूर करने के लिए दूध, पनीर और दूध से बने पदार्थों का नियमित सेवन करना चाहिए. गर्भवती महिला को 3 माह के गर्भ के बाद से ही कैल्सियम की गोली रोज खानी शुरू कर देनी चाहिए. शिशु को स्तनपान कराने वाली मांएं 3-4 गिलास दूध का नियमित सेवन करें. 40+ महिलाओं को विटामिन डी युक्त कैल्सियम खाना चाहिए. धूप का सेवन भी लाभदायक रहता है. समयसमय पर कैल्सियम व विटामिन डी का टैस्ट भी करवाना चाहिए.

शुगर यानी डायबिटीज भी महामारी का रूप लेती जा रही है. इस से बचाव के क्या उपाय हैं?

गर्भावस्था में उन महिलाओं को मधुमेह होने की संभावना बढ़ जाती है, जिनके माता या पिता को यह पहले से हो या महिलाओं को पौलिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम की बीमारी हो. 40+ में भी यह उन महिलाओं को होती हैं, जिनके परिवार में यह बीमारी पहले से हो. इस के अलावा खानपान में लापरवाही और शारीरिक निष्क्रियता भी इस बीमारी के होने के प्रमुख कारणों में हैं. इस के लक्षणों में प्रमुख हैं- वजन बढ़ना, अधिक भूख व प्यास लगना और बारबार पेशाब जाना.

इस के बचाव के लिए 40+ होने पर वर्ष में एक बार अपना रूटीन चैकअप कराना चाहिए और खून की जांच (ब्लड शुगर फास्टिंग) और (ब्लड शुगर पीपी) खाना खाने के डेढ़ घंटे के बाद करवानी चाहिए.

इस समस्या के प्रकट होने पर अपने आहार एवं दिनचर्या में बदलाव ला कर इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है. नियमित व्यायाम व खाने में मीठी चीजों, शकरकंद, आलू, केला, आम, अरबी, चावल आदि का परहेज करना चाहिए. समस्या बढ़ने पर दवा व इंसुलिन के इंजैक्शन भी उपलब्ध हैं, जिन्हें डाक्टर की सलाह एवं निगरानी में लेना चाहिए.

थायराइड की समस्या उत्पन्न होने के क्या कारण हैं?

अकसर किशोरावस्था व गर्भवती महिलाओं में जो थायराइड की समस्या देखने को मिलती है उसे हाइपोथाइरोडिज्म कहते हैं. इसके लक्षणों में प्रमुख हैं गले में सूजन, वजन का बढ़ना, मासिकधर्म की अनियमितता आदि.

किशोर युवतियों को शारीरिक विकास के लिए आयोडीन की जरूरत होती है, जिसकी कमी होने से प्यूबर्टी गोइटर हो जाता है. इसके अलावा किसी विशेष क्षेत्रवासियों में भी यह कमी देखने को मिलती है. इसका कारण वहां की जमीन में ही आयोडीन की कमी होना है.

खून की जांच कराने पर इसकी कमी पता चल जाती है. आयोडीन नमक का प्रयोग एवं अपने डाक्टर की सलाह लेकर नियमित दवा का सेवन करना चाहिए. अकसर लड़कियों में यह कमी 20-21 वर्ष के बाद ठीक हो जाती है तो गर्भवती महिलाओं में प्रसव के बाद इस के लक्षण समाप्त हो जाते हैं.

मेनोपौज की शुरुआत किस उम्र से शुरू होती है?

मेनोपौज महिलाओं की उस अवस्था को कहते हैं जब अंडाशय में अंडाणुओं के बनने की क्रिया समाप्त होने लगती है और मासिक धर्म बंद हो जाता है. जब लगातार 12 महीने मासिकधर्म न आए तो इसे हम रजोनिवृत्ति कहते हैं. मेनोपौज होने का मतलब है प्रजनन क्षमता का खत्म हो जाना. यह 40 से 50 वर्ष के बीच की उम्र में हो सकती है.

सभी महिलाओं में अंडाणु के निर्माण होने और फिर इस चक्र के बंद हो जाने का एक अलग समय होता है. महिला के गर्भधारण करने के लिए प्रोजेस्टेरौन और ऐस्ट्रोजन हारमोन का बनना जरूरी होता है. जब ये दोनों हारमोन बनने बंद होने लगते हैं तो महिलाओं के मासिक धर्म और डिंबोत्सर्जन से नियंत्रण हट जाता है और मासिक धर्म अनियमितता व मासिक धर्म बंद होने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. महिला की 40 से 50 वर्ष की उम्र भी एक कारक है.

मेनोपौज के कारण शरीर में निम्न परिवर्तन आते हैं जैसे गर्भाशय का आकार छोटा होना, शरीर में थकावट, अचानक तीव्र गरमी लगना, जोड़ों में दर्द होना, शरीर में अतिरिक्त वसा का जमाव, नींद में खलल बढ़ जाना आदि. इन लक्षणों के कारण व्यग्रता या अवसाद की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है.

मेनोपौज एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिस के लिए किसी प्रकार की दवा की जरूरत नहीं होती है, किंतु योनि के सूखेपन या बारबार होने वाली तीव्र गरमी को कम करने के लिए डाक्टर से परामर्श ले सकती हैं.

जानें कब और कितना करें मेनोपौज के बाद HRT का सेवन

महिलाओं में प्राकृतिक रूप से मेनसेज 45 से 52 वर्ष की आयु में धीरेधीरे या फिर अचानक बंद हो जाता है. यह रजोनिवृत्ति मेनोपौज कहलाती है. मेनोपौज के दौरान अंडाशय से ऐस्ट्रोजन और कुछ हद तक प्रोजेस्टेरौन हारमोन का स्राव बंद होने के कारण अनेक शारीरिक एवं व्यावहारिक बदलाव होते हैं. विशेष रूप से ऐस्ट्रोजन हारमोन का स्राव बंद होने के कारण महिलाओं में अनेक समस्याएं हो सकती हैं. रजोनिवृत्ति के बाद ये समस्याएं पोस्ट मेनोपोजल सिंड्रोम (पीएमएस) कहलाती हैं. इन में स्तन छोटे होने लगते हैं और लटक जाते हैं, योनि सूखी रहती है, यौन संबंध बनाने में दर्द हो सकता है, चेहरे पर बाल निकल सकते हैं. मानसिक असंतुलन हो सकता है, जल्दी गुस्सा आ सकता है, तनावग्रस्त हो सकती हैं, हार्टअटैक का खतरा बढ़ सकता है व कार्यक्षमता घट सकती है.

पीएमएस का समाधान

पीएमएस के कारण जिन महिलाओं का दृष्टिकोण सकारात्मक होता है और जो खुश व संतुष्ट रहती हैं, उन्हें परेशानियां कम होती हैं. उन्हें किसी उपचार की जरूरत नहीं होती है. जिन महिलाओं को हलकी परेशानियां होती हैं, वे अपनी जीवनशैली में सुधार कर, समय पर भोजन कर, सक्रिय रह कर व नियमित व्यायाम कर इन से छुटकारा पा सकती हैं. जिन महिलाओं को गंभीर परेशानियां होती हैं उन्हें इन से छुटकारा पाने के लिए डाक्टर से बचाव और उपचार के लिए ऐस्ट्रोजन हारमोन या ऐस्ट्रोजन+प्रोजेस्टेरौन हारमोन के मिश्रण की गोलियों के नियमित सेवन की सलाह दे सकते हैं. यह उपचार विधि हारमोन रिप्लेसमैंट थेरैपी यानी एचआरटी कहलाती है. लेकिन इन गोलियों के लंबे समय तक सेवन के दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं. अत: रजोनिवृत्ति के बाद इन का सेवन करते समय क्या सावधानियां बरतनी चाहिए उन का पता होना चाहिए.

ये भी पढ़ें- Arthritis: गलत व ओवर एक्सरसाइज से बचें 

एचआरटी के लाभ

रजोनिवृत्ति के बाद एचआरटी के सेवन से होने वाली हौटफ्लैशेज यानी शरीर में गरमी लगने से अटैक, पसीना आना, हृदय का तेजी से धड़कना आदि लक्षणों से राहत मिलती है.

हारमोन सेवन से योनि में बदलाव नहीं होता, वह सूखी नहीं होती और मिलन के समय रजोनिवृत्ति के बाद दर्द भी नहीं होता.

स्ट्रोजन हारमोन की कमी होने से योनि में संक्रमण आसानी से होता है. अत: एचआरटी सेवन से यौन संक्रमण से बचाव होता है.

रजोनिवृत्ति के बाद एचआरटी का सेवन मूत्र संक्रमण से भी बचाव करता है.

एचआरटी के सेवन से रजोनिवृत्ति के दौरान होने वाले मांसपेशियों, जोड़ों के दर्द, मांसपेशियों के पतला होने, शक्ति कम होने आदि समस्याओं से राहत मिलती है.

अनिद्रा, चिंता, अवसाद की समस्या भी एचआरटी के सेवन से कम हो जाती है और कार्यक्षमता बरकरार रहती है.

महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद हड्डियों की सघनता कम होने से औस्टियोपोरोसिस की समस्या हो सकती है. इस के कारण हड्डियों में दर्द होता है और वे हलकी चोट या झटके से भी टूट सकती हैं. एचआरटी सेवन से इन कष्टों, जटिलताओं की संभावना कम हो जाती है.

एचआरटी के सेवन से कार्यक्षमता, निर्णय लेने की क्षमता, एकाग्रता में कमी होने की संभावना भी कम हो जाती है.

रजोनिवृत्ति के बाद एचआरटी के सेवन से त्वचा की कोमलता, लावण्य और बालों की चमक बरकरार रहती है.

इन के सेवन से वृद्धावस्था में दांतों, आंखों में होने वाले बदलाव भी देरी से और मंद गति से होते हैं.

अध्ययनों से पता चला है कि एचआरटी का सेवन करने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर की संभावना कम हो जाती है. उन में आंतों के कैंसर व हृदय रोग का खतरा भी कम होता है.

एचआरटी के सेवन के दुष्प्रभाव

अकेले ऐस्ट्रोजन हारमोन सेवन से गर्भाशय कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. अत: यदि गर्भाशय मौजूद है, तो ऐस्ट्रोजन प्रोजेस्टेरौन मिश्रित गोलियों का सेवन करें. यदि औपरेशन से गर्भाशय निकाल दिया गया है तो अकेले ऐस्ट्रोजन हारमोन का सेवन करें.

एचआरटी के सेवन से रक्त वाहिनियों में रक्त थक्का बनने की संभावना बढ़ जाती है. यह किसी भी अंग में फंस कर रक्तप्रवाह को बाधित कर हार्टअटैक, पक्षाघात आदि का कारण बन सकता है.

ये भी पढ़ें- मैडिकल टैस्ट क्यों जरूरी

इस के सेवन से कुछ हद तक पित्ताशय में पथरी की संभावना भी बढ़ जाती है.

एचआरटी की न्यूनतम प्रभावी खुराक रजोनिवृत्ति के दौरान और बाद में होने वाली समस्याओं से बचाव के लिए सुरक्षित रूप से 5 वर्ष तक ली जा सकती है. फिर धीरेधीरे बंद कर दें.

रजोनिवृत्ति के बाद होने वाली समस्याओं से बचाव के लिए सिर्फ एचआरटी सेवन ही एकमात्र विकल्प नहीं है. रजोनिवृत्ति के दौरान और बाद में पर्याप्त मात्रा में ऐसा संतुलित भोजन करें, जिस में कैल्सियम प्रचुर मात्रा में हो. इस के अलावा मल्टीविटामिन के कैप्सूल्स और विटामिन डी का सेवन करें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें