क्यों अंधविश्वास के अंधेरे में मासिक धर्म

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

मैं एक पुरुष हूं और इस नाते मुझे महिलाओं के जैसे होने वाले मासिकधर्म का कोई भी डर नहीं है, मगर 2 ऐसी घटनाएं मैं ने अपनी बहन के साथ देखीं, जिन्होंने मेरे मन को पूरी तरह न केवल हिलाया, बल्कि स्त्री के प्रति और भी श्रद्धा से भर दिया. मेरी दीदी जो मुझ से 5 साल बड़ी हैं, जब वे 10वीं कक्षा में थीं तब वे अचानक स्कूल से एक दिन जल्दी घर वापस आ गईं. उन का चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. उन के कुरते के पिछले हिस्से पर खून के निशान थे उन्हें उन्होंने पानी से धोया था और जिस कारण उन के कपड़े पूरी तरह गीले हो गए थे. मेरे पूछने पर वे बात टाल गईं और मां ने मुझे डांट कर चुप करा दिया.

बड़ा होने पर धीरेधीरे मैं स्वयं समझ गया कि उस दिन दीदी के साथ क्या हुआ था. जो भी हुआ उस समय दीदी की मनोदशा की सोच कर मैं आज भी कांप उठता हूं.

मुझे अपने बचपन की दूसरी घटना याद आती है जब मेरी दीदी की शादी के बाद मैं पहली बार उन के घर गया था तो एक सुबह मैं

ने देखा कि दीदी जमीन पर सो रही थीं,  जबकि जीजाजी बिस्तर पर. दीदी से मैं ने इस  का कारण पूछा तो उन्होंने सहजता से बता दिया कि स्त्रियों में जब मासिकचक्र होता है तो वे अछूत हो जाती हैं और उन्हें जमीन पर ही सोना पड़ता है.

उस समय तो उन की बात बहुत अजीब लगी, पर मैं करता भी क्या. इसलिए मैं चुप ही रहा. मगर आज जब मैं बड़ा हो गया हूं तो मैं ने इस विषय पर लिख कर अंधविश्वास खत्म करने की बात सोची और इसीलिए आज यह लेख लिख रहा हूं.

सामान्य प्रक्रिया

अपने जीवनकाल में हर महिला को मासिकचक्र से गुजरना पड़ता है, जो बहुत ही सामान्य प्रक्रिया है पर धार्मिक दृष्टि से औरतों को अपवित्र माना जाता है.

मगर यदि मासिकधर्म के होने से कोई महिला अपवित्र हो जाती है तब तो इस दुनिया का हर पुरुष और महिला अपवित्र है, क्योंकि जन्म के समय हर बच्चा उसी रक्त में सना होता है.

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अगर खुले दिमाग से गौर किया जाए तो मासिकचक्र के दौरान स्त्री को अपने से अलग रखना पुरुष के झूठे अहंकार को पोषित करने के अलावा और कुछ नहीं और इस काम में  काफी हद तक पुरुषों की सहायता की है हिंदू  धर्म के पुराणों ने. पुराणों की एक कथा के अनुसार इंद्र देवता ने अपने हिस्से का पाप औरतों को भी दे दिया था और इसी कारण महिलाओं को प्रतिमाह इस मासिकधर्म की पीड़ा से गुजरना पड़ता है.

हारमोंस में बदलाव

मुंबई में महिलाओं पर किए गए एक सर्वे में एक कामकाजी महिला ईशा बताती हैं, ‘‘मैं अपने पति से कोई भी पीड़ा शेयर नहीं करती, फिर भी वे मेरी असहजता देख कर समझ जाते हैं और चूंकि मैं इन दिनों में हारमोंस में बदलाव के कारण थोड़ी चिड़चिड़ी हो जाती हूं, इसलिए वे मुझे मानसिक रूप से सहयोग देते ही घर के कामकाज में भी मेरी मदद करते हैं.’’

जबकि ईशा के साथ ही काम करने वाली नेहा कहती है, ‘‘अब क्या बताऊं आप को…मेरे  ये 6-7 दिन नर्क जैसे बीतते हैं, क्योंकि मेरे पति को इन्हीं दिनों में संबंध बनाने की प्रबल इच्छा होती है, जबकि मेरे लिए ऐसा कर पाना लगभग असंभव सा होता है और जब मैं उन्हें मना  करती हूं तो वे नाराज हो कर मारपीट पर उतर आते हैं.’’

लिव इन रिश्तों में रहने वाली एक महिला कोमल बताती है, ‘‘मैं और मेरे पार्टनर यहां मुंबई में अपने कैरियर की तलाश कर रहे हैं. ऐसे में मेरे इन दिनों में वैसे तो वह ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं देता, पर मैं उस के व्यवहार में कुछ रूखापन सा महसूस करती हूं.’’

मुंबई के ही एक कालेज में बीए तृतीय वर्ष की छात्रा सब्या बताती है कि वह और उस का बौयफ्रैंड एकदूसरे से बहुत प्रेम करते हैं और आगे चल कर शादी भी करना चाहते हैं पर जिन दिनों मैं मासिकचक्र के दौर से गुजर रही होती हूं उन दिनों बौयफ्रैंड मेरा और भी अधिक ध्यान रखता है और मेरे बदले व्यवहार और चिड़चिड़ेपन  पर नाराज नहीं होता, बल्कि और अधिक केयरिंग हो जाता है और मेरी पढ़ाई और अन्य कामों में मेरी सहायता करता है.

इन दिनों में संबंध बनाने को ले कर उस  वर्ग की महिलाओं को समस्या आती है, जिन  के पुरुष कमाने के लिए महीनों तक बाहर रहते  हैं और साल में कभीकभार ही घर आते हैं और आकस्मिक घर आने पर प्रेम से भरे पति को  ऐसे में यदि पत्नी सैक्स का सुख देने से वंचित कर दे तो यह भी पति के गुस्से का कारण  बनता है.

पैड्स पर होने वाला खर्चा भी कम तो नहीं

बाजार में मिलने वाले सैनिटरी पैड्स विभिन्न कंपनियों के होते हैं. आमतौर पैड्स का एक पैकेट क्व30 से क्व35 का आता है और एक महिला को 1 महीने में इस तरह के 2-3 पैकेट खर्च हो जाते हैं. इस प्रकार एक महीने में क्व100 से क्व150 का खर्चा हो ही जाता है.

जो महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं उन्हें तो इस खर्चे से कोई असर नहीं पड़ता पर जो गांवों में रहती हैं या जिन के पतियों के पास कोई रोजगार नहीं होता है उन के लिए पैड्स खरीदने पर आने वाला यह खर्चा सिरदर्द बन जाता है और खुद के पास रोजगार न होने की हालत में एक पति को पैसे के लिए अपने पिता पर निर्भर रहना पड़ता है और हर महीने पिता से पैसे मांगना एक बेरोजगार शादीशुदा युवक के लिए काफी शर्म भरा अनुभव होता है.

पैड्स का निस्तारण एक बड़ी समस्या

सैनिटरी पैड्स प्रयोग करने के बाद इन्हें सुरक्षित ठिकाने लगाना भी एक टेढ़ी खीर  होती है. जिन घरों में लोग संयुक्त परिवार में रहते  हैं और रूढि़वादिता से बंधे होने के कारण इन  घरों की बहुओं और बेटियों को इन दिनों में अलगथलग रहना पड़ता है और असली  परेशानी तब आती है जब इन पैड्स को प्रयोग  के बाद फेंकने की बारी आती है. ऐसे में ये महिलाएं रात होने का इंतजातर करती हैं और दबे पैर छत पर जा कर कूड़े के ढेर में फेंकती हैं.

कालोनियों में भी इन पैड्स का निस्तारण एक बड़ी समस्या बन कर उभर रहा है. महिलाएं प्रयोग के बाद इन्हें सड़क के किनारे लगी डस्टबिन में फेंक देती है, जिन्हें कुत्ते मुंह में  डाल कर नोच डालते हैं और इधरउधर बिखेर  देते हैं.

हमारे समाज में बहुत से अंधविश्वास भी फैले हुए हैं, उन में से कुछ इस प्रकार हैं:

अंधविश्वास के कारण

गाय को न छूना: मासिकधर्म के समय महिलाओं को गाय तक को छूने की मनाही होती, क्योंकि अगर रजस्वला स्त्री ने गाय को छू लिया तो गाय दूध देना बंद कर देगी. तभी हास्यप्रद और अवैज्ञानिक बात है.

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तुलसी के पौधे से दूर रहना: महिलाओं को तुलसी के पौधे से दूर रहना होता है. अगर मासिकधर्म के दौरान स्त्री की छाया तुलसी के पौधे पर पड़ गई तो वह सूख जाएगा. इस  का वैज्ञानिक कारण पूछने पर कोई बता नहीं  पाता और सिर्फ यह कह कर पल्ला झड़ लेते  हैं कि यह बात उन्हें उन के बड़ेबुजुर्गों ने बताई है, इसलिए वे इसे मानते आ रहे हैं.

इन बातों के अलावा अचार न छूना, किसी को पानी तक न देना और घर के ही एक कोने में पड़े रहना जो पूरी तरह से किसी भी यातना से कम नहीं है.

इन दिनों हिंदू स्त्रियों को मंदिर जाने की  भी मनाही होती है, सबरीमाला के मंदिर में  10 साल से ले कर 50 साल की स्त्रियों को  प्रवेश की जो मनाही है वह शायद स्त्री के रजस्वला होने के कारण ही बनाई गई है और स्त्रियां घर में भी किसी प्रकार की पूजापाठ नहीं कर सकती हैं. महिलाएं इन दिनों भगवान के नाम का उच्चारण भी नहीं कर सकती हैं और अगर ऐसा कर दिया तो उन्हें एक और बड़ा पाप लग सकता है.

धर्म के नाम पर साजिश

ईसाई धर्म में स्त्रियों को किसी तरह  की खास मनाही नहीं है. अगर स्त्रियां चाहें तो  वे चर्च भी जा सकती हैं. इस पूरी दुनिया में  सिख धर्म ही ऐसा धर्म है जो एक रजस्वला स्त्री को इन दिनों में और भी ज्यादा पवित्र मानता  है. सिख धर्म के  अनुसार जिस रक्त से  जीवन पनपता है और जो स्त्री पूरे संसार को  जन्म देती है वह भला अपवित्र कैसे हो सकती  है, बल्कि वह तो इन दिनों में और भी पवित्र  हो जाती है और इसी अवधारणा के चलते  सिख महिलाओं पर कोई पाबंदी नहीं होती और  वे गुरुद्वारे भी जा सकती हैं.

ये तो वे बातें हैं, जिन्हें सदियों से मानते आ रहे हैं पर किसी भी बात को मानने से ज्यादा जरूरी है उस का वैज्ञानिक आधार जानना. आज बाजार में बहुत सी ऐसी पुस्तकें हैं जिन्हें पढ़ कर आप अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं, साथ ही आप अपनी बेटी को भी मासिकधर्म के बारे में सहीसही बताएं.

खुल कर बताएं

जब आप की बेटी 9-10 साल की हो जाए तब आप उसे मासिकधर्म के बारे में सबकुछ बताना शुरू कर दें ताकि बेटी का बालमन उसे आसानी से समझ सके.

अधिकतर हम सभी खून देख कर घबरा जाते हैं. खून का मतलब चोट लगना होता है. हमारी यही मनोदशा रहती है और जब आप की बेटी पहली बार इस अनुभव से गुजरे तो वह बिना घबराए इस प्रक्रिया से आसानी से गुजर सके इस बात की जिम्मेदारी मां और बाप दोनों पर समान रूप से होती है.

अगर मातापिता दोनों काम पर जाते हैं तो बेटी के लिए एक आकस्मिक मासिक किट तैयार कर दें, जिस में एक पैंटी का जोड़ा और 2-3 पैड्स रख दें. शुरुआत में मासिकधर्म काफी अनियमित हो सकता है.

ऐसे में यह किट आप की बेटी को स्कूल में भी भयमुक्त रखेगी और यदि हो सके तो बेटी को यह भी बताएं कि यह जीवन को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक प्रक्रिया है और इस से शर्म महसूस करने की जगह अपनेआप को गौरवान्वित महसूस करना चाहिए. अपनी बिटिया को बताएं कि यह एक नैसर्गिक क्रिया है.

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शर्म की बात नहीं

पिछले दिनों सोशल मीडिया पर ‘हैप्पी टू ब्लीड’ नामक कैंपेन काफी लोकप्रिय हुई थी.  इस कैंपेन में एक लड़की को समय से पहले मासिकधर्म होने लगा था और उस का उसे  पता नहीं चला और पुरुष उसे अजीब नजरों से घूरते रहे. उस की अनभिज्ञाता देख रास्ते में एक महिला ने उसे सैनिटरी पैड दिया तब उस की समझ में आया कि उसे मर्द रास्ते में क्यों घूर  रहे थे.

उस लड़की ने खून में भीगा अपना पाजामा सोशल मीडिया पर भी शेयर किया और लिखा कि मेरी यह पोस्ट उन महिलाओं के लिए है जिन्होंने मेरे स्त्रीत्व को छिपाने में मेरी मदद करी, मेरे लिए यह कोई शर्म की बात नहीं है, बल्कि हर महीने दर्द के साथ होने वाली एक सामान्य प्रक्रिया है.

जिस स्त्री को पीरियड नहीं आते, वह  भी तनाव में रहती है और हर महिला को इसे सामान्य ढंग से ही लेना चाहिए न कि इसे एक पाप और टैबू मान कर अंधविश्वास में जिंदगी बसर करनी चाहिए.

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