डॉक्टर्स भी हो रहे हैं मानसिक रोग का शिकार, पढ़ें खबर

कोरोना काल में घरों में कैद लोग जिस तरह से मानसिक रूप से बीमार हो रहे है, वैसी ही बीमारी के इलाज कर रहे डॉक्टर्स और नर्सेज भी इन दिनों मानसिक बीमारी के शिकार हो रहे है. इसकी वजह कोविड 19 का नयी बीमारी होना, बीमारी से लड़ने के लिए सही प्रोटेक्शन उन्हें न मिल पाना,लम्बे समय तक काम पर रहना,बीमार लोगों की संख्या में लगातार बढ़ना, परिवार को उनके मरीज़ के बारें में अच्छी समाचार का न दे पाना आदि कई है. इससे वे एंग्जायटी के शिकार होकर मानसिक तनाव में रहने को विवश हो रहे है. इतना ही नहीं कोरोना का इलाज कर रहे डॉक्टर्स और नर्सेज से समाज और आसपास के लोग भी अच्छा व्यवहार करने से कतराते है. कही पर उन्हें अपने घरों में रहने से भी रोका गया. उनके साथ बदसलूकी की गई. इस लॉक डाउन में भी उन्हें काम पर आना पड़ा. साथ ही वे वायरस के काफी नजदीक थे, क्योंकि वे इलाज कर रहे है, जिससे उन्हें अपने परिवार की चिंता भी रही है. इससे पाया गया कि एक बड़ी संख्या में हेल्थकेयर से जुड़े लोग एंग्जायटी, इनसोम्निया और मनोवैज्ञानिक डिस्ट्रेस के शिकार हुए.

लेना पड़ता है कठिन निर्णय

इसके अलावा कई देशों में तो डॉक्टर्स को ये भी निर्णय लेना भारी पड़ा, जिसमें वे ये तय नहीं कर पा रहे थे कि किसे वेंटिलेटर का सपोर्ट दिया जाय किसे नहीं. इसमें पाया गया कि बुजुर्ग से वेंटिलेटर को हटाकर यूथ को दिया गया. जिसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव डॉक्टर्स पर बहुत पड़ा, जब वे अपने आगे किसी दम तोड़ते हुए व्यक्ति को देखा और वे कुछ नहीं कर पाएं. इसकी वजह उपकरणों का सही तादाद में समय पर न मिलना हुआ है. कई हेल्थकेयर से जुड़े व्यक्ति ने तो मानसिक दबाव में आकर आत्महत्या तक कर डाली.

खुद और परिवार को सुरक्षित रखना है चुनौती

मुंबई की ग्लोबल हॉस्पिटल के मनोचिकित्सक डॉ. संतोष बांगरकहते है कि कोरोना कहर में डॉक्टर्स को सबसे अधिक उनकी खुद की रक्षा करना भारी पड़ता है, जिसमें पीपीइ किट और इलाज के लिए जरुरत के सामान की कमी, उनके परिवार की सुरक्षा आदि होती है. इससे उनकी एंग्जायटी लेवल बढ़ जाता है, इस पेंड़ेमिक में कई डॉक्टर्स में इनसोम्निया की बीमारी अधिक देखी जा रही है. इतना ही नहीं कोरोना मरीज़ की इलाज़ करते हुए डॉक्टर्स अपने परिवार के साथ भी क्वालिटी टाइम नहीं बिता पाते, क्योंकि उन्हें लम्बे समय तक हॉस्पिटल में बिताना पड़ता है. आने के बाद भी वे परिवार से दूर खुद को क्वारेंटिन करते है, क्योंकि उन्हें डर लगा रहता है कि कही उनके साथ संक्रमण तो नहीं आई. इसके अलावा कोरोना संक्रमित मरीजों के परिवार को उनके हालात के बारें में बताना भी उनके लिए मानसिक दबाव होता है, क्योंकि परिवार डॉक्टर्स से कुछ अच्छा ही सुनने की उम्मीद करते है. हालाँकि अस्पताल के प्रबंधन डॉक्टर्स के मानसिक और भावनात्मक हालात को सुधारने के लिए कोशिश कर रही है, पर इसका फायदा बहुत अधिक नहीं दिखाई पड़ रहा है, क्योंकि दिनोंदिन कोरोना के मरीज़ बढ़ते जा रहे है.

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पर्याप्त उपकरणों की कमी

इसके आगे डॉक्टर का कहना है कि भारत जैसे देश में जहाँ जनसँख्या का भार अधिक है, गरीबी अधिक है,मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर सही नहीं है, कोरोना संक्रमण के व्यक्ति का इलाज करना बहुत मुश्किल होता है. ऐसे कई उदाहरण है, जहाँ डॉक्टर्स को कठिन निर्णय लेना पड़ा, मसलन रोगी को वेंटिलेटर पर रखे या नहीं, अर्जेंट जरुरत के आधार पर उसका ऑपरेशन करें या नहीं. डॉक्टर्स अधिकतर शांत रहकर सोचते है, पर कुछ विषयों में संभव नहीं होता और तनाव के शिकार होते है. इस तनाव से निकलने के लिए डॉक्टर्स को खुद की फिटनेस, डाइट और स्ट्रेस फ्री रहने के बारें में सोचना पड़ेगा और खुद को लगातार कोविड 19 को लेकर अपडेट रहने की जरुरत है, ताकि उनका मानसिक स्तर सही रहे. इसके बावजूद अगर समस्या है तो एक्सपर्ट की राय अवश्य लेना उचित होगा.

डॉक्टर्स मानते है कि इस मुश्किल घड़ी में कोरोना मरीज जिधर से उनके पास इलाज के लिए आते है वही से वापस ठीक होकर अपने घर जायें. इससे कुछ भी अलग उन्हें मानसिक पीड़ा देती है.सीरियस पेशेंट का इलाज करना आज भी तनाव पूर्ण है. हेल्थकेयर प्रोफेशन से जुड़े हुए लोग हमेशा किसी न किसी तरह के मनोवैज्ञानिक तनाव के शिकार होते है,जिससे निकलने में उन्हें मुश्किल होता है. इस बारें में डॉक्टर्स से जाने कैसे वे अपने मेंटल हेल्थ को बनाये रखते है,

 वोकहार्ड हॉस्पिटल, मुंबई सेंट्रल के इंटरनल मेडिसिन एक्सपर्टडॉ. बेहराम पार्डिवाला कहते है कि इस बात का तनाव हमेशा रहता है कि मुझे कोरोना न हो जाय और उसका रिस्क लेना भी पड़ता है, क्योंकि रोगी को देखना जरुरी है. सावधानियां लेता हूं और हर दिन अच्छा जाय इसकी कामना करता हूं. कई बार कोरोना रोगी अस्पताल में आने के बाद बेड न होने की वजह से उसे मना करना पड़ा. बहुत अफ़सोस और ख़राब लगता है. कई बार वे हाथ जोड़कर वार्ड में रखने के लिए कहते है, पर मेरी हिम्मत नहीं हुई क्योंकि वह तड़प कर मर जायेगा. इसका अफ़सोस बहुत होता है. इसका मानसिक दबाव काफी दिनों तक रहता है. उस मरीज़ की याद आती है. नींद नहीं आती. उस मरीज़ के बारें में जानने की इच्छा होती है. इसके अलावा हर डॉक्टर्स  की सोच एक जैसी नहीं होती. मैंने ये प्रोफेशन आज से सालों पहले कदम रखा था और परिवार का एकलौता डॉक्टर बना था. उस समय मैंने सोच लिया था कि ये पब्लिक सर्विस है, इसे मुझे उसी रूप में करना है और करता हूं. इससे मानसिक शांति बनी रहती है.

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अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल दिल्ली की नवनीत कौर कहती है कि कोरोना संक्रमण के दौरान मैं बहुत अधिक खुद के लिए सावधानियां बरत रही हूं. अस्पताल से घर जाकर भी हायजिन के सभी नियमों का पालन करती हूं. खुद के डाइट का पूरा ध्यान रखती हूं. किसी बात से अधिक तनाव नहीं है, क्योंकि मैं एक डॉक्टर हूं और कैसे क्या करना है जानती हूं. ये सही है कि डॉक्टर्स भी कई बार बहुत अधिक मानसिक तनाव के शिकार होते है. मुझे याद आता है, जब मैं अपने होम टाउन गयी थी और मेरी एक प्रेग्नेंट पेशेंट ने मेरे आने तक इंतजार किया और मेरे कहने पर भी किसी से कंसल्ट नहीं किया. मेरे आने तक उसकी हालत ख़राब हो गयी थी मैंने उसे बचाने की बहुत कोशिश की, पर उसे बचा नहीं पाई. कई दिनों तक उसका चेहरा मेरे आगे घूमता रहा. मैं मानसिक दबाव में कई दिनों तक रही. मैं सोचती रही कि काश मैं पहले उसे देख पाती तो शायद उसकी ये दशा न होती. आज भी उस महिला को याद कर मेरा मन दुखी हो जाता है. इस तरीके के तनाव से बचने के लिए सकारात्मक सोच रखनी पड़ती है और आसपास के दोस्त और परिवार से बातचीत बनाये रखना पड़ता है.

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मुंबई की जनरल फिजिशियन डॉ. सरोज शेलार कहती है कि मुझे कई बार मानसिक दबाव से गुजरना पड़ा है, कोरोना संक्रमण का इलाज़ करते हुए पूरी सावधानी मैं लेती हूं, क्योंकि मेरे दो छोटे बच्चे और बुजुर्ग सास-ससुर है. मेरे पास केवल कोरोना ही नहीं, बल्कि कई प्रकार के संक्रमित व्यक्ति आते है और मेरा शरीर इससे कुछ हद तक इम्युन हो चुका है, पर परिवार नहीं, इसलिए मानसिक तनाव रहता है. इस प्रोफेशन में मानसिक दबाव हमेशा रहता है. मुझे अभी भी याद है जब मैं एक 10 साल के बच्चे को इस लिए नहीं बचा पायी, क्योंकि मेरे पास संसाधन की कमी थी और मैं इस प्रोफेशन में नयी थी. उसकी याद कई दिनों तक रही, उससे निकलने में काफी समय लगा था. ऐसा जब भी मन समस्या ग्रस्त होता है तो मैडिटेशन, वर्कआउट, परिवार से संवाद आदि करती हूं.

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