ओटीटी प्लेटफॉर्म का प्रभाव

बीते पिछले कुछ सालों में ऑनलाइन मनोरंजन इंडस्ट्री में बहुत ज्यादा वृद्धि देखी गयी है. नेटफ्लिक्स, अमेज़ॅन प्राइम, डिज़नी होस्टस्टार, आदि जैसी ऑनलाइन स्ट्रीमिंग सेवाओं के मिलने और तेज़, सस्ती इंटरनेट सेवाओं की शुरूआत होने से भारत में ओटीटी कंटेंट की बहुत बड़ी मात्रा खपत हो रही है. डॉ. प्रकृति पोद्दार, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, निदेशक पोद्दार वेलनेस के मुताबिक यहाँ पर बहुत सारे लोग ओटीटी कंटेंट के उपयोगकर्ता  बन गए है. पीडब्ल्यूसी के मीडिया एंड एंटरटेनमेंट आउटलुक 2020 के अनुसार भारत का ओटीटी बाजार 2024 तक दुनिया का छठा सबसे बड़ा बाजार बनने की ओर अग्रसर है.

 ओटीटी प्लेटफॉर्म पर डार्क और वायलेंट शो लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को किस प्रकार प्रभावित कर रहे हैं?

जबकि ओटीटी प्लेटफार्मों की बाजार हिस्सेदारी में भी बढ़ोत्तरी जारी है. इन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्मों की मुख्य समस्या इनका डार्क और वायलेंट कंटेंट रहा है. यह दर्शकों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. स्क्वीड गेम, हाउस ऑफ सीक्रेट्स, यू और अन्य जैसे वेब सीरीज शो लोगों के बीच कौतुहल का विषय बने हुए हैं, लेकिन वे हिंसा, ड्रग्स, सेक्स और अपराध की संवेदनशीलता को बढ़ा रहे हैं जिससे लोगों का मानसिक स्वास्थ्य नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहा है और सोशल स्किल में गिरावट हो रही हैं.

वायलेंट (हिंसक) और डार्क शो से नस्लीय हिंसक व्यवहार

ओटीटी प्लेटफॉर्म की लोकप्रियता के पीछे सबसे बड़ा कारण मनोरंजन है. स्मार्टफोन, लैपटॉप आदि जैसे गैजेट्स की उपलब्धता और इंटरनेट सेवाओं की पहुंच आसान होने से ओटीटी कंटेंट को कभी भी, कहीं भी देखने की सुविधा मिल जाती है. युवा, विशेष रूप से फ्रेश कंटेंट, दिलचस्प प्लॉट्स और किरदारों और परिस्थितियों की यथार्थवादी प्रस्तुतियों (रियल रिप्रजेंटेशन) के प्रतिनिधित्व से ओटीटी कंटेंट को ज्यादा देख रहे हैं, इन कंटेंट के साथ वे खुद को जोड़ कर देखते हैं. जबकि कुछ कंटेंट शिक्षित और सूचनात्मक है, कुछ हिंसक, अश्लील सामग्री को इस तरह से दिखाया जा रहा है जो दर्शकों के मानसिक स्वास्थ्य को गहराई से प्रभावित कर रहे है.

जब लोग सामूहिक गोलीबारी और अन्य हिंसा के हिंसक वीडियो देखते हैं, तो उनमे प्रत्यक्ष रूप से ट्रामा के होने की संभावना बढ़ जाती हैं. इससे एंग्जाइटी, डिप्रेशन, क्रोनिक स्ट्रेस और अनिद्रा की संभावना बढ़ जाती है. जिन लोगों को PTSD है, उनके लिए इन वीडियो को देखने से फ्लैशबैक जैसे लक्षणों में वृद्धि हो सकती है.

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क्रूर, हिंसक शो या फिल्मों को बार-बार देखने से दर्शकों में भय और चिंता बढ़ सकती है, और यहां तक कि इससे लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं. अध्ययनों के अनुसार आपदाओं, विशेष रूप से आतंकवाद को देखने से PTSD, डिप्रेशन, स्ट्रेस, एन्ग्जाईटी और यहां तक कि नशीलें पदार्थों के सेवन के मामलों में वृद्धि हो सकती है.

युवाओं और बच्चों में किसी के व्यवहार को खुद में नकल करने की ज्यादा संभावना होती है क्योंकि वे आसानी से ऑनलाइन वेब शो और अन्य वीडियो सामग्री पर दिखाई जाने वाली चीज़ों से जुड़े हो सकते हैं. इसका असर यह हो रहा है कि आज के युवाओं में बहुत सारे व्यवहार परिवर्तन लक्षण पैदा हो रहे है. यह न केवल उन्हें उनके व्यवहार और उनके विचारों दोनों में आक्रामक बनाता है, बल्कि उनमे धूम्रपान, शराब पीने, ड्रग्स, न्यूडिटी और अश्लीलता जैसी नियमित रूप से देखी गई चीज़ों से भी प्रभावित होने की संभावना को बढ़ा देता है. ये सब चीजें कई ऑनलाइन वेब शो में अक्सर दिखाए जाते हैं. ये कंटेंट आगे चलकर कम उम्र के लोगों में अस्वस्थ आदतों को विकसित कर सकते हैं.

कई स्टडी में पाया गया है कि हिंसक शो देखने और बच्चों द्वारा हिंसक व्यवहार में वृद्धि के बीच संबंध है. इस बात की पुष्टि 1000 से ज्यादा अध्ययनो में हो चुकी है. बहुत ज्यादा हिंसक चीजें देखने से व्यवहार आक्रामक हो जाता है, यह चीजें खासकर लड़कों में ज्यादा देखने को मिलती है.

बिंज-वाचिंग (किसी कंटेंट को लगातार देखना) से चिंता बढ़ जाती है

बिंज-वाचिंग अपेक्षाकृत एक नई घटना है, लेकिन निश्चित रूप से पिछले कुछ सालों में ओटीटी दर्शकों के बीच यह एक लोकप्रिय ट्रेंड बन गया है. कई स्टडी से पता चला है कि जो लोग बिंज-वाचिंग करते हैं, उनमें ख़राब वाली नींद और अनिद्रा से पीड़ित होने की संभावना ज्यादा होती है. बिंज-वाचिंग करना सर्कैडियन लय को बाधित कर सकता है, जिससे सोना मुश्किल हो जाता है.

मनोवैज्ञानिक रूप से एक वेब सीरीज एक व्यक्ति को घंटों तक बांधे रह सकती है, इस दौरान वह व्यक्ति सोना भी भूल  सकता है. ओटीटी शोज के ड्रामा, टेंशन, सस्पेंस और एक्शन को लोग खूब एन्जॉय करते हैं, लेकिन ये हार्ट रेट रुकने, ब्लडप्रेशर और एड्रेनालाईन को भी बढ़ाते हैं. जब कोई व्यक्ति इन्हे देखने के बाद सोने की कोशिश करता है तो यह अनुभव  एक तनावपूर्ण या हल्का दर्दनाक जैसा महसूस हो सकता है, जो सोने में परेशानी पैदा कर सकता है. नींद में यह व्यवधान व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है.

कई अध्ययनों में पाया गया है कि नींद की कमी की समस्या ध्यान, काम करने की याददाश्त और भावनात्मक व्यवहार जैसे मानसिक कामों को आसानी से नुक़सान पहुंचा सकते है. लंबे समय तक अनिद्रा से पीड़ित रहने पर  डिप्रेशन और एंग्जाइटी डिसऑर्डर का ज्यादा खतरा पैदा हो सकता है. बहुत ज्यादा बैठे रहना और स्नैकिंग भी मोटापे और इससे संबंधित समस्याओं जैसे डायबिटीज और हृदय की बीमारियों के खतरे को बढ़ाता है.

 सावधानी और निष्कर्ष

कोई भी जॉनर (शैली) का कंटेंट सबसे उपयुक्त की श्रेणी में नहीं आता है, लोगों को ऐसे किसी भी कंटेंट को देखने से बचना चाहिए जो उन्हें ट्रिगर करने वाला लगे और उन्हें समाज से अलग रखने को प्रेरित करें. एक व्यक्ति को यह समझने की जरूरत है कि कंटेंट को देखने के लिए कोई प्रिसक्रिप्शन (नुस्खा) नहीं है. एक संतुलित जीवन जीने के लिए सही नुस्खा डिजिटल चीजों को ज्यादा देखना नहीं है. जो लोग डिजिटल कंटेंट को ज्यादा देखते हैं, उनके लिए जीवन और काम के बीच संतुलन नहीं रह पाता है इससे उनका स्वास्थ्य नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है. दरअसल बार-बार डिजिटल डिटॉक्स करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना एक्सरसाइज, कला या सामाजिककरण होता है.

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महामारी के दौरान अच्छी नींद के साथ न करें समझौता

अच्छी नींद स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण घटक है. नींद पूरी न होने से शरीर में शारीरिक गतिविधियां प्रभावित हो सकती हैं जिससे शारीरिक और मानसिक रोगों को बढ़ावा मिल सकता है. नींद की समस्या या अनिद्रा अक्सर कम शारीरिक और/या मनोवैज्ञानिक कारणों की वजह से पैदा होती है. अक्सर तनाव/चिंता/अवसाद या मूड डिसॉर्डर की समस्या कमजोर गुणवत्ता की नींद की वजह से देखने को मिलती है.

इस बारे में बता रहीं हैं गुरुग्राम के पारस अस्पताल की मनोचिकित्सक और सलाहकार डॉक्टर ज्योति कपूर.

कोविड महामारी से विभिन्न स्तरों पर लोग प्रभावित हुए हैं और हम अपने इर्द-गिर्द ज्यादातर लोगों में तनाव में इजाफा देख रहे हैं. लॉकडाउन और वर्क फ्रॉम होम परिवेश से एक मुख्य समस्या अनुशासित रुटीन का अभाव कार्य घंटे लंबी रातों में खिंचना है. वित्तीय दबाव और रोजगार खोने के डर की वजह से कर्मचारी कार्य घंटे सीमित बनाए रखने में सक्षम नहीं हैं और दुर्भाग्यवश, कई कॉरपोरेट कर्मचारी नियोक्ता की तरफ से प्रबंधन को लेकर असंवेदनशीलता की शिकायत कर रहे हैं. इन सभी समस्याओं ने कामकाजी लोगों के सोने के रुटीन को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया है, क्योंकि उनमें तनाव का स्तर बढ़ रहा है.
स्कूल जाने वाले बच्चों में भी, जल्दी उठने की आदत प्रभावित हुई है जिससे सुबह के समय ज्यादा देर तक सोने और देर रात तक इंटरनेट और गेम खेलने की प्रवृत्ति बढ़ी है.

ऑनलाइन पढ़ा रहे शिक्षक भी छात्र की जरूरतें पूरी नहीं होने तक और स्कूल प्रशासन की जरूरतों को देखते हुए अपनी मोबाइल पहुंच समाप्त करने में सक्षम नहीं हैं.

मनोचिकित्सा ओपीडी में कोविड-19, लॉकडाउन से संबंधित सामाजिक अकेलेपन और अनुशासन के अभाव से जुड़ी समस्याओं के कारण नींद से प्रभावित होने वाले मरीजों की संख्या बढ़ रही है.

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नींद से जुड़ी अनियमितताओं के प्रबंधन के लिए लोगों से जुड़े जैविक, मनो-सामाजिक और पर्यावरण संबंधी कारकों का आकलन करने की जरूरत है. अच्छी नींद सुनिश्चित करने के लिए परिवेश और व्यवहार में बदलाव पहला उपचार है. यह निम्नलिखित नींद स्वच्छता प्रणालियों से जुड़ा हुआ हैः

1. बिस्तर पर सोने का नियमित समय बनाएं और उस पर अमल करें
2. सोने से 3 घंटे पहले तक व्यायाम से परहेज करें
3. रात का भोजन सोने से 2 घंटे पहले कर लें
4. सोने से 3 घंटे पहले चाय, कॉफी, तंबाकू के सेवन से परहेज करें
5. सोने के समय के रुटीन पर पालन करें
6. बेडरूम में आरामदायक वातावरण सुनिश्चित करें
7. दिन के समय में सोने से बचें
8. दिन के दौरान नियमित तौर पर व्यायाम करें
9. सोते समय भावनात्मक रूप से प्रभावित करने वाली गतिविधियों से बचने की कोशिश करें
10. नींद से संबंधित समस्याएं दूर करने के लिए कई अन्य गैर-चिकित्सकीय उपाय भी हैं जो मरीज की परिस्थितियों और जरूरतों के आधार पर अलग अलग हो सकते हैं.

सभी उम्र और पेशों के लोगों को लॉकडाउन संबंधित तनाव दूर करने और लंबे समय स्वास्थ्य संबंधित जटिलताओं से बचने के लिए नींद का रुटीन बनाने की जरूरत है.

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कोविड-19 के दौरान मासिक चक्र का रखें ध्यान

कोरोना वायरस से आज पूरी दुनिया परेशान हो रही है. इससे बचने के लिए लोग स्वच्छता और सोशल डिस्टेंगसिंग का पूरी तरह से पालन कर रहे है. जिससे इस वायरस से बचा जा सके, लेकिन क्या हम महिलाओं ने सोचा की कोविड-19 के समय में क्या करें, जब मासिक धर्म की तारीख के बाद ज्यादा रक्तस्राव हो या बिल्कुल नहीं हो, भले ही यह गर्भावस्था की स्थिति न हो, क्योंकि कोविड-19 महामारी के दौरान लड़कियां जांच कराने के लिए अस्पताल जाने में असमर्थ है. ऐसे समय में सी के बिरला होस्पिटल, गुरुग्राम की स्त्री रोग एवं प्रसूति विशेषज्ञ डाॅ. अरुणा कालरा असंतुलित हार्मोनल स्वास्थ्य के बारे में जानकारी दे रही हैं.

मासिक चक्र

हर महीने मासिक रक्तस्राव हमारी हार्मोनल अवस्था का एक स्वस्थ संकेत है. सामान्य मासिक चक्र हमें हमारी शारीरिक फिटनेस, मानसिक स्वास्थ्य और संतुलित जीवनशैली से अवगत कराता है.

यह हमारे प्रजनन स्वास्थ्य, हड्डियों की मजबूती, त्वचा की सूजन, बाल और दिल एवं दिमाग की सुचारू गतिविधि बनाए रखने वाले हार्मोनल ग्लैंड्स का एक बेहद महत्वपूर्ण नेटवर्क है।

हमारा मासिक चक्र ओवरियन और पिट्यूटरी हार्मोन से नियंत्रित होता है। मासिक चक्र की पहली आधी अवधि मुख्य तौर पर एस्ट्रोजेनिक चरण से जुड़ी होती है और बाद की अवधि में प्रोजेस्टेराॅन हार्मोन का असर देखा जाता है और हार्मोन कर स्राव हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से प्रभावित होता है। हार्मोनल स्थिति बेहद नाजुक होती है.

मौजूदा समय में, कोविड-19 की वजह से पैदा हुई गंभीर स्थिति में कुछ भी सामान्य नहीं है और जिंदगी काफी बदल गई है और हमारे ऊपर दबाव बढ़ सकता है. यह दबाव न सिर्फ हमारे मानसिक स्वास्थ्य को, बल्कि हमारे हार्मोनल स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता हैं। अवसाद और चिंता हमारे मासिक चक्र को प्रभावित करते हैं और इस मौजूदा महामारी के दौरान हमारे लिए यह सामान्य बात है कि अगली तारीख में विलंब हो जाए या फिर मासिक चक्र की तारीख के बाद ज्यादा रक्तस्राव हो जाए.

डाॅ.अरुणा कालराके अनुसार ऐसे कई कारण हैं जो मासिक चक्र को प्रभावित कर सकते हैं। ये निम्नलिखित हैः

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1. तनाव
2. नींद नही आना
3. लंबा स्क्रीन टाइम
4. काम का अधिक दबाव
5. बैठक की समय सीमा
6. व्यायाम और कसरत ना करना
7. आहार संबंधी आदतेः ज्यादा जंक फूड और अस्वस्थ खानपान आदतों से मोटापे को बढ़ावा मिलता हैं, हार्मोन गतिविधि में समस्या आती है. कम खाने, भूखे रहने या वजन बढ़ने को लेकर ज्यादा चिंतित रहना भी हार्मोनल रिसेप्टर के नुकसान और असामान्य हार्मोनल चक्र के लिए जिम्मेदार हैं.
8. खाने की आदतों में बदलाव
9. मनोवैज्ञानिक आघात
10. किसी और बीमारी के लिए ज्यादा दवाएं लेना
11. अनियमित तौर से हार्मोनल टेबलेट्स लेना या गर्भनिरोधक गोलियां लेना
12. अनियमित थायराॅयड प्रोफाइल
13. अनियमित प्रोलैक्टिन वैल्यू
14. कार्य /स्वास्थ और भविष्य को लेकर अनिश्चितता
15. कोविड-19 महामारी से सम्बंधित होने का डर
16. मौजूदा समय में और भविष्य की वित्तीय अस्थिरता की आशंका.
17. समय का सही उपयोग करने में सक्षम नही रहना और दिमाग में खालीपन महसूस करना.
18. तनाव, अनिद्रा, चिंता और कोरोना आइसोलेशन का दबाव और आने वाले समय को लेकर अनिश्चितता को बढ़ावा देने में अहम योगदान दे रहे हैं.

उपर्युक्त कई कारण अस्वस्थ जीवनशैली की वजह से देखने को मिलते हैं.

कार्बोहाइड्रेट वाला आहार, वसायुक्त भोजन, कम प्रोटीन का आहार, देर से सेना, पर्याप्त नींद नहीं लेना, मोबाइल और कम्प्यूटर का ज्यादा इस्तेमाला करना, व्यायाम नहीं करना और ज्यादा मानसिक दबाव ऐसी अस्वस्थ आदते हैं जो अंडाशय के लिए नुकसानदायक हैं और पाॅलीसिस्टिक ओवरियन डिजीज सिंड्रोम यानी पीसीओएस/पीसीओडी के लिए जिम्मेदार हैं.

जब हम अपनी मासिक धर्म संबंधित अनियमितता के कारण का पता लगा लेंगे तो उपचार आसान हो जाएगा.

यह ध्यान रखना जरूरी है कि इसकी आशंका नहीं है कि यह महामारी हमारे मासिक चक्र को प्रभावित करेगी. लेकिन यदि हम कोरोना वायरस से जुड़ी खबरों को लेकर मानसिक रूप से ज्यादा प्रभावित महसूस करते हैं तो यह उपयुक्त होगा कि हम स्वयं पर ध्यान केंद्रित करें और स्वयं देखभाल पर जोर दें. कोविड-19 अपडेट्स पर नजर बनाए रखने के बजाय, हमें दिन में कुछ खास समय इससे संबंधित खबरें जानने की कोशिश करनी चाहिए. हमें हर दिन कुछ स्ट्रेचिंग और गहरी सांस लेने की भी कोशिश करनी चाहिए. यदि हम अपने पार्टनर्स, रूममेट, या फैमिली के साथ रहते हैं तो हमें इस खाली समय का इस्तेमाल अपने संबंधों को मजबूत बनाने के लिए करना चाहिए. हमें फोन या वीडियो काॅल के माध्यम से अपने दोस्तों और पड़ोसियों के साथ भी संपर्क बनाए रखना चाहिए, क्योंकि हमारा अच्छा संबंध किसी की मदद करने और एक-दूसरे से जुड़े रहने में मददगार साबित हो सकता है. नियमित व्यायाम, फाइबरयुक्त आहार, स्वस्थ हाॅबीज, कार्यालय घंटों को सीमित करने और तनाव को दूर बनाए रखने से असंतुलित हार्मोनल स्वास्थ्य में सुधार लाया जा सकता है और इससे नियमित मासिक चक्र में मदद मिल सकती है.

कई अन्य बातें भी ध्यान में रखी जा सकती हैं, जो निम्नलिखित हैंः
1. आयरन और मल्टीविटामिन सप्लीमेंट भी मददगार हैं.
2. उचित गर्भनिरोधक तरीके का ही इस्तेमाल करें.
3. ज्यादा रक्तस्राव होने पर दिन में 2-3 बार एंटी-इन्फ्लेमेटरी मेडिसिंस का इस्तेमाल करें.
4. मसिक चक्र के दौरान भी व्यायाम करते रहने से निश्चित तौर पर मासिक धर्म संबंधी समस्याएं दूर करने में मदद मिलेगी.

डिम्बग्रंथि रोग से संबंधित अत्यधिक रक्तस्राव एक ऐसी समस्या है. जिसमें अक्सर गंभीर अनियमित रक्तस्राव होता है. इसकी जांच में प्रेगनेंसी टेस्ट, बीटा सबयूनिट ऑफ ह्यूमेन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन टेस्ट, थायराॅयड-स्टिमुलेटिंग हार्मोन और प्रोलैक्टिन लेवल की जांच, हिस्टेरोस्काॅपी, या ट्रांसवैजाइनल अल्ट्रासोनोग्राफी जैसे टेस्ट शामिल हैं. डिम्बक्षरण के कारणों में किशोरावस्था, पेरीमेनोपाॅज, गर्भावस्था, हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया, थायराॅयड रोग, प्राइमरी पिट्यूटरी रोग, प्रीमेच्योर ओवरियन फेलर, आइएट्रोजेनिक और मेडिकेशंस शामिल हैं. जांच की पुष्टि हो जाने पर निष्चित तौर पर उपचार किया जा सकता है.

इन समस्याओं से गर्भाशय में डिम्बग्रंथि अनियमितता से संबंधित असामान्य रक्तस्राव की स्थिति पैदा हो सकती है और शल्य चिकित्सा के बजाय सामान्य चिकित्सा के साथ इनका इलाज किया जाना चाहिए। उपचार के विकल्पों में शामिल हैं –

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1. प्रोजेस्टिन-ओनली कंट्रासेप्सन, ओर्जेट्रेल-रिलीजिंग इंट्राअटेरिन डिवाइस – आईयूडी, मिरेना)
2. मेडराक्सीप्रोजेस्टेरॉन एसीटेट (प्रोवेरा), नॉरीथिंड्रोन, और डिपोट मेडरॉक्सीप्रोजेस्टेरॉन एसीटेट (डिपो-प्रोवेरा) और
3. संयुक्त हार्मोनल गर्भनिरोधक (जैसे, ट्रांसडर्मल पैचेस, वैजाइनल रिंग्स, ओरल कंट्रासेप्टिव्स)

ये विकल्प एंडोमेट्रियम को पतला करते हैं और इस वजह से रक्तस्राव में कमी आती है.

यदि चिकित्सकीय उपचार विफल साबित होता है, या इसे सहन नहीं किया जाता है, तो एंडोमेट्रियल एब्लेशन और हिस्टेरेक्टोमी अन्य विकल्प हैं, हालांकि एंडोमेट्रियल एब्लेशन प्राथमिक विकल्प नहीं समझा गया है. उन महिलाओं में सर्वाइकल प्रिजर्वेशन के बगैर हिस्टेरेक्टोमी एब्लेशन पर विचार किया जा सकता है जो बच्चे पैदा करने की जिम्मेदारी पूरी कर चुकी हों, जिनमें मेडिकल थेरेपी विफल रही हों, या उपचार के लिए सहज स्थिति में नहीं हों.

#lockdown: कोरोनावायरस से बढ़ रही है लोगों में मानसिक समस्या

कोरोना वायरस के फैलने के कारण दुनिया के कई देशों के साथ भारत में भी लॉकडाउन घोषित कर दिया गया और अब भारत में लॉगडाउन की अवधि बढ़ाकर 3 मई तक कर दी गई है. इससे लोग घरों में रहने को मजबूर हो गए हैं. लगातार घरों में बंद-बंद रहने के कारण लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर खराब असर पड़ने लगा है. कोरोना वायरस संक्रमन लोगों के लिए जानलेवा तो साबित हो ही रहा है, इससे लोगों में मानसिक समस्याएँ भी बढ़ रही है. विभिन्न राज्यों में इसकी वजह से कम से कम एक दर्जन लोगों ने आत्महत्या कर ली है. केरल में तो 7 लोग लॉकडाउन के कारण शराब नहीं मिलने की वजह से अवसादग्रस्त होकर जान दे चुके हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना की वजह से सिर्फ भारत में लाखों संख्या में लोग मानसिक समस्याओं के शिकार हो रहे हैं. कई लोगों में तो पागलपन जैसे लक्षण भी उभर रहे हैं. लॉकडाउन में शराब न मिलने के कारण लोग पेंट, सैनिटाइजर और वार्निश जैसी चीजों का सेवन कर रहे हैं और जिसके चलते दो लोगों की मौत भी हो चुकी है.

कोरोना के फैलने का जितना डर लोगों को बाहर जाने पर लग रहा है उतना ही मानसिक डर लोगों को अब घर में रहते हुए सताने लगा है. लॉकडाउन  की वजह से घर में कैद,  वे चिंता और अवसाद के शिकार तो हो ही रहे हैं, इससे बचने के लिए वे नशीली चीजों का सेवन भी ज्यादा करने लगे हैं. इससे मेंटल हेल्थ पर भी ज्यादा खराब असर पड़ने लगा है. यह स्थिति सिर्फ भारत या अमेरिका में ही नहीं, बल्कि इस समस्या से दुनिया भर के लोग जूझ रहे हैं.

दूसरी ओर लॉकडाउन के बाद लोगों को आर्थिक मंदी ने भी तनाव बढ़ा दिया है. अब लोगों में अपनी रोजी-रोटी की जुगाड़ के साथ-साथ कोरोना के डर से भी लड़ना है.

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लॉकडाउन में अजब-गज़ब बीमारी

लॉकडाउन में लोगों को अजब-गज़ब बीमारी हो रही है. किसी को नींद नहीं आ रही है, तो किसी की नींद संक्रमन के खौफ से टूट जा रही है. डॉक्टरों के पास भी आने वाले 30% मामले ऐसे ही हैं. पटना एम्स और आईजी आईएमस के टेलामेडिसिन में भी ऐसे मामले अधिक हैं. हर दिन ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ रही है, जो लॉकडाउन के कारण नकारात्मक विचारों से घिर रहे हैं. डॉक्टरों का कहना है कि यह स्थिति ठीक नहीं है. इससे बचाव के लिए सकारात्मक होना होगा. घर में रचनात्मक कार्यों के साथ बच्चों और बुजुर्गों को खौफ से बाहर लाने का प्रयास करना होगा.

लॉकडाउन के बाद लोगों की दिनचर्या बिगड़ी तो उनकी सोच नकारात्मक होने लगी. लोगों में अब हर समय सिर्फ संक्रमन की बात हो रही है. ऐसे में लोगों के दिमाग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. बच्चे सबसे अधिक डरे हुए हैं, वृद्ध भी इससे परे नहीं हैं. डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों के लिए डर की स्थिति काफी धातक है. भविष्य में यह फोबिया का रूप ले सकता है. इससे बचाव को लेकर घर के अभिभावकों को ध्यान देना होगा. घर में हर समय कोरोना की चर्चा से भी बच्चों के दिमाग पर असर पड़ रहा है. बच्चों को ऐसी दहशत से बाहर निकालना होगा, क्योंकि पहली बार ऐसा हो रहा है, जब लंबे समय तक लोगों को घरों में कैद रहना पड़ रहा है.

डॉक्टरों के पास सुबह से शाम तक ऐसी कॉल

पटना एम्स और आईजीआईएमएस के डॉक्टरों के साथ पीएमसीएच व आईएमएस द्वारा जारी किए नंबरों पर रोग से जुड़े कॉल 60 प्रतिशत हैं, जबकि 30 प्रतिशत से अधिक कॉल मानसिक रोग से जुड़े हैं. यह बीमारी सिर्फ दिनचर्या प्रभावित होने और नकारात्मक सोच के कारण हुई है.

मानसिक तनाव के कारण परेशान हैं लोग

क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट मीनाक्षी भट का कहना हा कि अधिकतर लोग मानसिक तनाव के कारण परेशान है. सामान्य दिनचर्या बदल गई और वह खुद घर में एडजेस्ट नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे हालात में वह तनाव की स्थिति का सामना कर रहे हैं.

देश में मनोचिकित्सकों की सबसे बड़ी एसोसिएशन indian Psychiatric Society ने कुछ चौंकने वाले आंकड़े जारी किए हैं. इसके सर्वे के मुताबिक, कोरोना वायरस के आने के बाद देश में मानसिक रोगों से पीड़ित मरीजों की संख्या 15 से 20 फीसदी तक बढ़ गई है. सर्वे बताता है कि मरीजों की ये संख्या एक हफ्ते के अंदर ही बढ़ी है. लोगों में लॉकडाउन की वजह से बिजनेस, नौकरी, कमाई और बचत को खोने का डर भी इसका कारण माना जा रहा है. चिंता की बात यह है कि कोरोना के बाद अगर मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ती है तो इसके लिए देश में जागरुता और सुविधाएं, दोनों की ही कमी है.

इंडियन काउंसिल मेडिकल रिसर्च के अनुसार, भारत में हर पाँच में से एक व्यक्ति मानसिक रोग का शिकार हैं. लेकिन दूसरा पहलू ये हैं कि दुनिया के स्वास्थय कार्यकर्ताओं में केवल 1% मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े हैं. भारत में मानसिक स्वास्थयकर्मी बहुत कम है. भारत में इसका आंकड़ा और भी कम है. National Mental Health प्रोग्राम का बजट पिछले वर्ष ही 50 करोड़ से घटाकर 40 करोड़ कर दिया गया था. और भारत अपने स्वास्थ्य बजट का 0.06% ही मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च कर रहा है.

किंम्स कॉलेज लंदन ने फरवरी में क्वारंटीन के अवसर से जुड़े 24 पेपर्स का रिसर्च किया था और इसे मेडिकल जनरल लेनसीप में प्रकाशित किया था. इस रिव्यू के अनुसार, क्वारंटीन में रहने वाले आधे से ज्यादा लोगों में उदासी, तनाव और डिप्रेशन के लक्षण देखे गए. एक्सपर्ट ने बताया कि एक जगह सीमित रहने और सामाजिक संपर्क कम होने की वजह से यह समस्या बढ़ती जाती है.

कोरोना से भयभीत लोग

पुणे में अपना बिजनेस चलाने वाली श्रद्धा केजरीवाल को एक सप्ताह से बुरे-बुरे सपने आ रहे हैं. वह कहती हैं कि कारोबार ठप्प होने और अनिश्चित भविष्य की चिंता ने मेरी नींद उड़ा दी है. वह फिलहाल एक मनोचिकित्सक की सेवाएँ ले रही हैं. पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकोटा में तो सैंकड़ों लोग मानसिक अवसाद की चपेट में हैं. किसी को लगातार हाथ धोने की वजह से कोरोना फोबिया हो गया है तो किसी को छींक आते ही कोरोना का डर सताने लगता है. ऐसे कई मरीज मनोचिकित्सक के पास पहुँच रहे हैं. सोशल मीडिया पर फैलने वाली अफवाहों ने स्थिति को और गंभीर कर दिया है.

एकदम दुरुस्त मानसिक स्वास्थ्य वाले अचानक बीमार

विशेषज्ञों का कहना है कि उनके पास सलाह के लिए आने वालों या फोन करने वालों में कई लोग ऐसे हैं जिनका स्वास्थय पहले एकदम दुरुस्त था. मनोचिकित्सक रंजन घोष बताते हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमन की वजह से लोगों को भीड़ से डर लगने लगा है. ट्रोमा थैरेपिस्ट रुचिका चंद्रशेखर कहती हैं कि कोरोना वायरस के चलते जारी लॉकडाउन की वजह से अवसाद और चिंता के लक्षण तेजी से बढ़ रहे हैं. इससे जीवन पर खतरा भी बढ़ेगा.

ऑनलाइन काऊसडलक्षण पोर्टल चलाने वाली आकृति तरफदार कहती हैं कि लॉकडाउन की वजह से लाखों लोग घर से काम कर रहे हैं. इसका मतलब जीवन को नए सिरे से व्यवस्थित करना है. इसका दिमाग पर भारी असर पड़ता है. सोशल मीडिया पर फैलने वाली अफवाहों भी दिमाग पर प्रतिकूल असर डालती है. रुचिका कहती हैं कि लंबे समय से घरों में बंद रहने की वजह से पहले से इस बीमारी के चपेट में रहने वाले लोगों की समस्या और गंभीर हो रही है. बीते 10 दिन में मेरे पास पहुँचने वाले मरीजों की तादाद दोगुनी से ज्यादा हो गई है.

कोरोना वायरस ने दुनियाँ भर में डर और चिंता का माहौल बना दिया है. इसके कारण देश में मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ रही है. अध्ययन के मुताबिक, कोरोना मरीज, क्वारंटाइन या आइसोलेशन में रह रहे व्यक्ति, यहाँ तक कि इलाज कर रहे व्यक्ति की मानसिक सेहत पर भी इससे असर पड़ रहा है. इसके कारण देश में अवसाद, एंग्जायटी, डिप्रेशन व मानसिक रोगियों की संख्या 20% बढ़ गई है.

विश्व स्वास्थय संगठन (WHO )ने इस दौरान लोगों को अपने मानसिक स्वास्थ्य का खास ख्याल रखने को कहा है. इंडियन साइकियाट्रिक सोसायटी के एक सर्वे में यह कहा गया है कि कोरोना वायरस का मामला सामने आने के बाद देश में मानसिक रोगों से पीड़ित मरीजों की संख्या में 15 से 20 फीसदी तक वृद्धि हुई है. लॉकडाउन के कारण लोगों में जरूरी चीजों की दिक्कतें हो रही है. उनके बिजनेस, नौकरी और आमदनी के स्रोतों पर खतरा मंडरा रहा है. इससे लोगों में चिंता का होना स्वाभाविक है.

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चिंता की बात यह है जो लोग पहले से किसी मानसिक बीमारी के शिकार है, उनकी हालत लॉकडाउन में ज्यादा खराब हो सकती है. सबसे बड़ी दिक्कत तो यह है कि इस दौरान वे डॉक्टरों से मिल कर सलाह भी नहीं ले सकते हैं. ऐसी हालत में आप इन पाँच तरीकों को अपनाकर राहत पा सकते हैं.

सही खान-पान

चिंता, घबराहट और अवसाद की स्थिति में लोगों की भूख कम हो जाती है या भूख होने के बावजूद खाने की इच्छा नहीं होती. सही पोषण न मिलने से समस्याएँ और भी बढ़ती है. इसलिए हर हाल में खाना न छोड़े. हेल्दी डायट लेने की कोशिश करें.

एक्सरसाइज और योगा

तनाव. चिंता और अवसाद से बचने के लिए एक्सरसाइज और योगा करने से फायदा तो होगा कि मन भी शांत राहेंगा. पोजेटिव विचार आएंगे. इसलिए लॉकडाउन के दौरान नियमित तौर पर योगा और एक्सरसाइज करते रहें.

अपनों के बीच रहें

लोगों से सोशल डिस्टेन्सिंग रखें, पर अपने परिवार के लोगों के बीच समय बिताएँ, बातें करें. बच्चों को समय दें, उनके साथ साथ खेलें. पुराने फ़ोटोज़ देखकर हँसे और याद करें वह वक़्त.  दोस्त-रिशतेदारों से फोन पर बातें करें, उनसे जुड़े रहें.  खाली बैठे रहने से चिंता और अवसाद और घेरने लगती है. सकारात्मक सोच बनाए रखें. परिवार के लोगों के बीच बैठने बातें करने से चिंता और घबराहट नहीं होती.

संगीत सुने

तनाव ज्यादा घेरने लगें, तो संगीत सुनें, इससे काफी राहत मिलती है. इसलिए थोड़ा समय संगीत को जरूर दें. क्योंकि इससे मन को शांति तो मिलेगी ही, आत्मविश्वास भी बढ़ेगा.

किताबें पढ़ें

सोशल मीडिया पर इधर-उधर की चीजें न देखें, इससे तनाव और बढ़ता है. उसकी जगह अपनी मनपसंद किताबें पढ़ें, ताकि आपको सकारात्मक ऊर्जा का एहसास हो सके.

नींद पूरी लें

नींद पूरी नहीं हो पाने से कई तरह की समस्याएँ बढ़ने लगती है. चिंता-घबराहट, नकारात्मक विचार पनपने लगते हैं. इसलिए नींद पूरी लें.

सकारात्म्क सोच रखें

कोरोना वायरस की जानकारी जरूरी है, लेकिन इससे जुड़ी सारी खबरे सही ही हो जरूरी नहीं. इसलिए कोरोना से संबन्धित ज्यादा जानकारी पढ़ने-सुनने से बचें.

नशीली पदार्थों का सेवन न करें

कुछ लोग चिंता और परेशानी में नशीली पदार्थों की सेवन करने लगते हैं. इससे कुछ समय तो राहत मिलती है, लेकिन बाद में ज्यादा तनाव महसूस होने लगता है. इससे आपकी इम्यूनिटी पर भी बुरा असर पड़ता है. अगर आप ज्यादा दिक्कत महसूस करने लगें हैं, तो फोन से डॉक्टर से संपर्क कर सलाह ले लें. अगर डॉक्टर एंगजाइटी और तनाव कम करने के लिए कोई दवा लेने की सलाह देत हैं, तो उसे लें, पर बिना डॉक्टर के परमर्श के कोई दवा लेना आपके लिए हानिकारक भी हो सकता है.

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बुढ़ापे से पहले ही जाग जाएं

अमेरिका का एक मजेदार पर चौंकाने वाला आंकड़ा है. अमेरिका में लगभग 4 करोड़ से ऊपर की आयु के वयस्क अपना काम छोड़ कर अपने वृद्ध मातापिता की देखभाल कर रहे हैं. अनुमान है कि ये वयस्क लगभग लाख डौलर का नुकसान प्रति वयस्क कर रहे हैं. भारत की स्थिति भी इस से कुछ अलग नहीं होगी बस यहां लोग नौकरियां नहीं छोड़ रहे, क्योंकि घरों में आमतौर पर पत्नियां हैं, जिन्होंने कभी काम नहीं किया, पर उन औरतों की गिनती धीरेधीरे बढ़ रही है, जिन्होंने मांपिता या सासससुर की देखभाल के लिए अच्छीखासी नौकरियां छोड़ दीं.

चूंकि अब वृद्ध अकसर 75-80 की आयु में ही होते हैं तब तक बच्चे खुद 45-50 के हो चुके होते हैं. यदि घर में 2 कमाने वाले हों तो 1 को नौकरी छोड़ देनी होती है. पिछली पीढ़ी में यह सुविधा थी कि वे 2-3 बच्चों के मांबाप थे और कोई न कोई उन की देखभाल के लिए आ ही जाता था पर अब जो 40-50 आयु के हैं उन्हें चिंता सता रही है कि उन की देखभाल कौन करेगा.

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आज कम बच्चे, देर से शादी, अकेले रहने का सुख, घर के कामों के प्रति अरुचि, महंगे होते अस्पताल एक चुनौती बन रहे हैं. 40-45 वालों को प्रलोभन दे कर ओल्डऐज होम, इंश्योरैंस पौलिसियां, जमा खाते में धन की योजनाएं परोसी जा रही हैं. पर जिस तरह की बेईमानियां प्राइवेट और सरकारी कंपनियों व बैंकों में हो रही हैं, कोई भरोसा नहीं कि आज का जमा कराया पैसा 30 साल बाद मिले ही नहीं, क्योंकि कंपनी या बैंक बंद हो चुका हो.

वृद्धों की सुरक्षा के लिए बच्चे सब से बड़ी गारंटी रहे हैं पर अब लगता है कि जवानी को पूरी तरह ऐंजौय करने के लिए या कैरियर बनाने की धुन में युवा अपने लिए बुढ़ापे में एक गड्ढा खुद ही खोद रहे हैं, जिस में उन का जीवन दफन हो जाएगा.

इस का एक सरल सा उपाय है सैल्फ गवर्न्ड होम्स फौर ऐज्ड यानी खुद के चलाए जाने वाले ऐसे घर जिन में बूढ़े अपनी देखभाल खुद कर सकें. यह भी इतना आसान नहीं है. इस में वृद्धों और प्रौढ़ों को समय रहते आसपास के वृद्धों को जमा करना होगा. अपने आर्थिक स्तर के अनुसार 5-7 कमरों के घर का इंतजाम कर सकें जिस में 5-7 जोड़े ही रहें.

वे अपना खर्चा कैसे चलाएंगे? कोई फैजदिल हो कोई कंजूस उस से कैसे निबटेंगे यह फैसला करना होगा. 40-45 की आयु में फैसला करना आसान है जब बच्चे बड़े न हुए हों. एक बार बच्चे बड़े हुए नहीं कि वे संपत्ति के लालच में मातापिता को कुछ नहीं करने देंगे. आपसी छोटेबड़े विवादों को सुलटाने का हिसाब करना होगा.

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वृद्धों की मानसिक सुरक्षा आर्थिक सुरक्षा से ज्यादा चाहिए होती है पर उन की देखभाल करने वाले केअरगिवर यह सम झ नहीं पाते. बहुतों की नजरें तो मिलने वाली संपत्ति पर होती हैं. जहां बच्चे या नजदीकी रिश्तेदार नौकर केअरगिवर रख देते हैं वहां केअरगिवर चोरी करने, आलस्य, मारपीट करने तक से बाज नहीं आते और हत्या तक कर देते हैं. कम बच्चों का एक फौलआउट वृद्धों की बेचारगी है. औरतों को ज्यादा सावधान रहना होगा, क्योंकि उन्हें तो तकनीक भी देर से सम झ आती है.

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