#lockdown: मेरे सामने वाली खिड़की पे (भाग-1)

अमन अभी घर में पैर रखने ही जा रहा था कि रचना चीख पड़ी. “बाहर…….. बाहर जूता खोलो. अभी मैंने पूरे घर में झाड़ू-पोंछा लगाया है और तुम हो की जूता पहनकर अंदर घुसे जा रहे हो.“

“अरे, तो क्या हो गया ? रोज तो आता हूँ” झल्लाते हुए अमन जूता बाहर ही खोलकरजैसे ही अंदर आने लगा, रचना ने फिर उसे टोका.

“नहीं, बैठना नहीं, जाओ पहले बाथरूम और अच्छे से हाथ-मुंह-पैर सब धोकर आओ और हाँ, अपना मोबाइल भी सेनीटाइज़ करना मत भूलना. वरना, यहाँ-वहाँ कहीं भी रख दोगे और फिरपूरे घर में इन्फेक्शन फैलाओगे” रचना की बात पर अमन ने उसे घूर कर देखा.‘हुम्म, घूर तो ऐसे रहे हैं जैसे खा ही जाएंगे. एक तो इस कोरोना की वजह से बाई नहीं आ रही है. सोसायटी वालों की तरफ से सख़्त मनाही है और ऊपर से इनकी नावाबी देखो.जैसे मैं इनके बाप की नौकर………..ये नहीं होता जरा की काम में मेरी थोड़ी हेल्प कर दें. नहीं, उल्टेकाम को और बढ़ा कर रख देते हैं. कहीं जूता खोल कर रख देंगे, कहीं भिंगा तौलिया फेंक आएंगे. कितनी बार कहा, हाथ धो कर फ्रिज या किचन का कोई समान छुआ करो.लेकिन नहीं, समझ ही नहीं आता इन्हें. बेवकूफ कहीं के.‘ अपने मन में ही भुनभुनाई रचना.

“हुं…..बड़ी आई साफसफाई पर लेक्चर देने वाली.समझती क्या है अपने आप को? जैसे इस घर की मालकिन यही हो. हाँ, करूंगा, जैसा मेरा मन होगा करूंगा.’ अमन भन्नाता हुआ अपने कमरे में घुस गया और दरवाजा भीडका दिया.

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‘वैसे, गलती इन मर्दों की भी नहीं है. गलती है उन माँओं की, जो बेटियों को तो सारी शिक्षा, संस्कार दे डालती है, पर अपने बेटों को कुछ नहीं सिखातीं, क्योंकि उन्हें तो कोई जरूरत ही नहीं है न सीखने की. बीबी तो मिल ही जाएगी बना कर खिलाने वाली’ अमन को भुनभुनाते देख, वह भी चुप नहीं रह पाई और बोल दिया जो मन में आया. बहुत गुस्सा आ रहा था उसे आज.कहा था अमन से, लॉकडाउन की वजह से बाई कुछ दिन काम पर नहीं आएगी, तो वह उसकी मदद कर दिया करे काम में, क्योंकि उसे और भी काम होते हैं. ऊपर से अभी ऑफिस का काम भी उसे घर से करना पड़ रहा है, तो समय नहीं मिल पाता है. लेकिन अमन ने ‘तुम्हारा काम है तुम जानो. मुझसे नहीं होगा’ कह कर बात वहीं खत्म कर दी,तो गुस्सा तो आयेगा ही न? क्या वह अकेली रहती है इस घर में ? जो सारे कामों की ज़िम्मेदारी उसकी ही है ?आखिर वह भी तो नौकरी करती है बाहर जाकर. यह बात अमन क्यों नहीं समझता.खाना खाते समय भी दोनों में घर के काम को लेकर बहस शुरू हो गई. रचना ने सिर्फ इतना कहा कि घर के कुछ समान लाने थे. अगर वह ले आता तो अच्छा होता. वह गई थी दुकान राशन का सामान लाने, पर वहाँ बड़ी लंबी लाइनें लगी थी इसलिए वापस चली आई.

“तो वापस क्यों आ गई ? क्या जरा देर खड़ी रह कर सामान खरीद नहीं सकती थी जो बार-बार मुझे फोन कर के परेशान कर रही थी ? एक तो मुझे इस लॉकडाउन में भी बैंक जाना पड़ रहा है, ऊपर से तुम चाहती हो कि मैं घर के कामों में भी तुम्हारी मदद कर दूँ? नहीं हो सकता है” चिढ़ते हुए अमन बोला.

“हाँ, पता है मुझे, तुम से तो कोई उम्मीद लगाना ही बेकार है.और क्या करती मैं, धूम में खड़ी-खड़ी पकती रहती ?फोन इसलिए कर रही थी कि तुम ऑफिस से आते हुए घर के सामान लेते आना? लेकिन नहीं,तुम तो फोन भी नहीं उठा रहे थे मेरा. वैसे, एक बात बताओ? अभी तो बैंक में पब्लिक डीलिंग हो नहीं रही है, फिर करते क्या हो, जो मेरा एक फोन नहीं उठा सकते या घर का कोई सामान खरीद कर नहीं ला सकते ? बोलो न ?घर-बाहर के सारे कामों की ज़िम्मेदारी मेरी ही हैक्या ? तुम्हें  कोई मतलब नहीं ?”

“पब्लिक डीलिंग नहीं  होती है तो क्या बैंक में काम नहीं होते हैं ? और ज्यादा सवाल मत करो मुझसे, जो करना है जैसे करना है समझो अपना, समझी. खुद तो आराम से ‘वर्क फ्रोम होम’ कर रही हो. जब मर्ज़ी आता है आराम कर लेती हो, दोस्तों से बातें कर लेती हो और दिखा रही हो कि कितना काम करती हो?” अमन की बातें सुनकर रचना दंग रह गई कि कैसा इंसान है ये ? जरा भी दर्द नहीं है ?क्या सोचता है वह घर में आराम करती रहती है?

“हाँ, बोलो न, क्या मुश्किल है, बताओ मुझे ? जब मन आए काम करो, जब मन आए आराम कर लो. इतना अच्छा तो है, फिर भी नाक-मुंहघुनती रहती हो. सच में, तुम औरतों को तो समझना ही मुश्किल है” अमन ने कहा तो रचना का पारा और चढ़ गया.अभी वह कुछ बोलती ही किउसकी दोस्त मानसी का फोन आ गया.

“हैलो, मानसी, बता,कैसा चल रहा है तेरा ? बच्चे-वच्चे सब ठीक तो हैं न ?” लेकिन मानसी बताने लगी कि बहुत मुश्किल हो रहा रहा है, घर-बच्चे और ऑफिस का काम संभालना. क्या करें कुछ समझ नहीं आ रहा है. “कोई चिंता मत कर. चलने दे जैसा चल रहा है. क्या कर सकती है तू ? लेकिन बच्चे और अपने स्वस्थ्य का ध्यान रख, वह जरूरी है अभी” थोड़ी देर और मानसी से बात कर रचना ने फोन रख दिया. फिर किचन का सारा काम समेट कर अपने टेबल पर जाकर बैठ गई.

उस दिन जब उसने मानसी से अपनी समस्या बताई थी कि घर में वह ऑफिस की तरह काम नहीं कर पा रही है और ऊपर से बॉस का प्रेशर बना रहता है हरदम, तब मानसी ने ही उसे सुझाया था कि बेडरूम या डायनिंग टेबल पर बैठकर काम करने के बजाय वह अपने घर के किसी कोने में ऑफिसजैसा बना ले और वहीं बैठकर काम करे, तो सही रहेगा.  जब ब्रेक लेने का मन हो तो अपनी सोसायटी के एक चक्कर लगा आए.  या पार्क में कुछ देर बैठ जाए. तो अच्छा लगेगा, क्योंकि वह भी  ऐसा ही करती है. “अरे, वाह ! क्या आइडिया दिया तूने मानसी. मैं ऐसा ही करती हूँ” कहते हुए चहक पड़ी थी रचना.लेकिन मानसी की स्थिति जानकर दुख भी हुआ.

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मानसी बताने लगी कि उसकेदो-दो बच्चे हैं ऊपर से बूढ़े सास-ससुर, घर के काम के साथ-साथ उनका भी बराबर ध्यान रखना होता है और अपने ऑफिस का काम भी करना पड़ता है. पति हैं की जहां हैं वहीं फँस चुके हैं आ नहीं सकते, तो उसपरही घर-बाहर सारे कामों की ज़िम्मेदारी पड़ गयी है. उस पर भी कोई तय शिफ्ट नहीं है कि उसे कितने घंटे काम करना पड़ता है. बताने लगी कि कल रात वह 3 बजे सोयी, क्योंकि दो बजे रात तक तो व्हाट्सऐप पर ग्रुप डिस्कशन ही चलता रहा  कि कैसे अगर वर्क फ्रोम होम लंबा चला तो, सबको इसकी ऐसी प्रैक्टिस करवाई जाए कि सब इसमें ढल जाएँ.  उसकी बातेंसुनकर रचना का तो दिमाग ही घूम गया. जानती है वह कि उसके बच्चे कितने शैतान हैं और सास-ससुर ओल्ड.‘कैसे बेचारी सब का ध्यान रख पाती होगी ?’ सोचकर ही उसे मानसी पर दया आ गई.लेकिन इस लॉकडाउन में वह उसकी कोई मदद भी तो नहीं कर सकती थी. सो फोन पर ही उसे ढाढ़स बँधाती रहती थी.

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