मेरी बेचारी वाचलिस्ट: हर घर की कहानी

आजघर के काम से थोड़ा जल्दी फ्री हो गई तो सोचा, चलो अब आराम से लेट कर आईपैड पर ‘मैरिड वूमन’ देखूंगी. जैसे ही कानों में इयरफोन लगा कर आराम से लेट कर पोज बनाया, शिमोली अंदर आई. मैं इसी घड़ी से बच रही थी. पता नहीं कैसे सूंघ लेते हैं ये बच्चे कि मां कुछ देखने लेटी है.

उस ने बहुत ही ऐक्ससाइटेड हो कर पूछा, ‘‘वाह मम्मी, क्या देखने लेटीं?’’

‘‘मैरिड वूमन.’’

शिमोली को करंट सा लगा, ‘‘क्या? आप ‘मेड’ नहीं देखेंगी जो मैं ने आप को बताई थी?’’

‘‘देखूंगी बाद में.’’

‘‘मुझे पता था जो आदिव बताता है वह तो फौरन देख लेती हैं आप.’’

‘‘अरे, फौरन कहां देखती हूं कुछ? इतना टाइम मिलता है क्या?’’

‘‘मम्मी, मुझे कुछ नहीं पता, आप पहले ‘मेड’ देखो. इतने सारे शोज बता रखे हैं आप को, आप को उन की वैल्यू ही नहीं. एक तो अच्छेअच्छे शोज बताओ, ऊपर से आप देखने के लिए तैयार ही नहीं होतीं. मैं ही आप को बताने में अपना टाइम खराब करती हूं.’’

‘‘शिमो बेटा, मेरी सारी फ्रैंड्स ने ‘मैरिड वूमन’ शो देख लिया है, मुझे भी देखनी है.’’

‘‘मतलब मेरे बताए शोज की कोई वैल्यू

ही नहीं?’’

‘‘अरे, देख लूंगी बाद में.’’

‘‘मुझे पता है अभी आदिव आप को कोई शो बताएगा, आप देखने बैठ जाएंगी.’’

वहशिमोली ही क्या जो मुझे अपनी पसंद का शो दिखाए बिना चैन से बैठ जाए, मेरे हाथ से आईपैड ले कर फौरन ‘मेड’ का पहला ऐपिसोड लगा कर दे दिया और बोली, ‘‘पहले यह देखो.’’

अब जितना टाइम था मेरे पास, उस में से काफी तो इस बातचीत में खत्म हो चुका था. मैं ‘मेड’ देखने लगी. ‘मैरिड वूमन’ आज फिर रह गया था. यह कोई आज की बात ही थोड़े ही है. यह तो मेरे मां होने के रोज के इम्तिहान हैं जो मेरे दोनों बच्चे शिमोली और आदिव लेते रहते हैं.

ये भी पढ़ें- ताईजी: क्या रिचा की परवरिश गलत थी

मैं ने अनमनी सी हो कर शो रोका और सोचने लगी कि मेरी वाचलिस्ट में कितने शोज हो चुके हैं जो मुझे देखने हैं पर कितने दिनों से देख ही नहीं पा रही. होता यह है कि आदिव और शिमोली जो शोज देखते हैं जो उन्हें अच्छा लगता है, दोनों चाहते हैं कि मैं भी जरूर देखूं. पसंद दोनों की अलगअलग है.

दोनों यही चाहते हैं कि मैं उन्हीं का बताया शो देखूं और सितम यह भी कि मुझे उस शो की तारीफ भी करनी है जो उन्हें पसंद आया हो. अगर कभी कह दो कि उतना खास तो नहीं लगा मुझे तो सुनने को मिलता है कि आप की पसंद ही नीचे की हो गई है, पता नहीं अपनी फ्रैंड्स के बताए हुए कौनकौन आम से शोज देखने लगी हूं. मतलब तुम्हारी पसंद खास, मेरी आम.

बहुत नाइंसाफी है, भई. इंसान बाहर वालों से ज्यादा अच्छी तरह निबट लेता है पर शिमोली और आदिव से डील करना मैनेजमैंट के एक पूरे कोर्स को पास करना है.

पिछले दिनों आदिव के कहने पर ‘कोटा फैक्टरी’ के दोनों सीजन देखे, उसे जीतेंद्र पसंद है तो मां का फर्ज बनता है कि वे भी शो देखे और हर ऐपिसोड पर वाहवाह करें और बेटे को थैंक्स बोल कर कहें कि वाह बेटा, तुम ने मुझे कितना अच्छा शो दिखाया नहीं तो मैं दुनिया से ऐसे ही चली जाती.

मेरी सहेली रोमा का एक दिन फोन आया. बोली, ‘‘‘बौलीवुड बेगम’  देखा? नहीं देखा तो फौरन देख ले… मजा आ गया.’’

मैं जब यह शो देखने बैठी, एक ही ऐपिसोड देखा था कि आदिव आया, बोला, ‘‘छोड़ो मम्मी, मैं बताता हूं आप को एक अच्छा शो.’’

मैं ने कहा, ‘‘यह भी अच्छा

है, अभी शुरू किया है, अच्छा लग रहा है.’’

‘‘अरे, नहीं मम्मी, आप के पास टाइम है तो देखो. रुको, मैं ही लगा कर देता हूं.’’

देखते ही देखते ‘बौलीवुड बेगम’ चला गया और सामने था ‘जैकरायान.’

यह टाइम भी तो वर्कफ्रौम होम का है, सब बाहर जाएं तो

कुछ अपनी पसंद का चैन से देखा जाए पर नहीं, पता नहीं कैसे कुछ भी देखना शुरू करते ही सब अपनीअपनी पसंद बताने आ जाते हैं. अरे, भई, मेरी भी एक बेचारी वाचलिस्ट है जो मुझे आवाजें देती रहती है. बच्चों की तो छोड़ो, बच्चों के पापा वीर भी कहां कम हैं.

उन्हें ऐक्शन फिल्म्स पसंद हैं तो वे चाहते हैं कि जब वे देखें तो मैं उन की पसंद की मूवी देखने में अपनी हसीं कंपनी दूं, उन्हें अच्छा लगता है अपनी पसंद की मूवी में मेरा साथ. जब गाडि़यां हवा में उड़ रही होती हैं, मेरा मन करता है कि किसी कोने में बैठ कर कानों में इयरफोन लगाऊं और आराम से कोई अपनी पसंद का शो देख लूं. कोशिश भी की तो वीर ने फरमाया, ‘‘अरे, नैना आओ न, तुम ने सुना नहीं? साथ मूवी देखने से प्यार बढ़ता है, एकदूसरे के साथ टाइम बिताने का यह अच्छा तरीका है, आओ न.’’

मन कहता है अरे, वीर इंसान. अकेले क्यों नहीं देख लेते एक्शन फिल्म. इस में भी कंपनी चाहिए? कोविड के टाइम रातदिन साथ बिता कर साथ रहने में कोई कसर रह गई है क्या? मुझे सस्पैंस वाली मूवीज या रोमांटिक कौमेडी अच्छी लगती है, बच्चे ऐसी मूवीज के नाम भी बताते हैं पर दोनों के बीच यह कंपीटिशन खूब चलता  है कि मम्मी किस के बताए हुए शो को देख रही हैं.

यह अच्छा नया तरीका है सिबलिंगरिवेलरी का. पुराना तरीका अच्छा नहीं था जहां बस इतने में निबट जाता था कि मम्मी ने किसे 1 लगाया, किसे 2? किसे ज्यादा डांट पड़ी, किसे कम. अब उस दिन मुझे ‘होस्टेजिस’ देखना था, हाय. रानितराय. जमाने से फैन हूं उस की. पर इतनी आसानी से कहां देख पाई, दोनों से प्रौमिस करना पड़ा कि ‘होस्टेजिस’ खत्म करते ही ‘अवेंजर्स’ और ‘द इंटर्न’ देखूंगी. देखे भी. अच्छे थे. पर मेरी अपनी लिस्ट का क्या? जब रानितराय का ‘कैंडी’ आया, मुझे न चाहते हुए भी साफसाफ कहना ही पड़ा कि अब मैं इसे देख कर ही कुछ और देखूंगी, जब तक वे शो खत्म नहीं किए, दोनों मुझे ऐसे देख रहे थे कि कोई गुनाह कर रही हूं.

ये भी पढ़ें- जब मियांबीवी राजी तो: झूमुर ने क्या किया था

अपना टाइम खराब कर रही हूं, परेशानी असल में इस बात की है कि बच्चे बड़े हो जाएं तो उन से इन छोटीछोटी बातों के लिए उलझा नहीं जाता. लगता है कि छोटी सी फरमाइस ही तो कर रहे हैं कि हमारी पसंद का शो देख लो पर इस चक्कर में अपनी वाचलिस्ट तो लंबी होती जा रही है न.

देखिए, जितनी छोटी यह प्रौब्लम सुनने में लग रही है न, उतनी है नहीं. देखने का टाइम कम हो, शोज की लिस्ट लंबी हो, दूसरों की लिस्ट उस से भी लंबी हो कि मुझे क्याक्या दिखाना है, बताइए, कितना मुश्किल है मैनेज करना. अपनी लिस्ट, शिमोली की लिस्ट, आदिव की लिस्ट, वीर की लिस्ट. मेरी अपनी बेचारी लिस्ट.

मैं यही सब सोच रही थी कि शिमोली की आवाज आई, ‘‘मम्मी, यह क्या आंखें बंद किएकिए क्या सोचने में अपना टाइम खराब कर दिया? एक भी ऐपिसोड खत्म नहीं किया ‘मेड’ का? ओह. सो डिसअपौइंटिंग. आप से एक शो ठीक से नहीं देखा जाता.’’

मैं ने कहा, ‘‘बस, मूड ही

नहीं हुआ. पता नहीं क्याक्या सोचती रह गई.’’

वह मेरे पास ही लेट गई, पूछा, ‘‘क्या सोचने लगीं मम्मी?’’

‘‘बेचारी के बारे में सोच

रही थी.’’

‘‘कौन बेचारी?’’

‘‘मेरी बेचारी वाचलिस्ट.’’

उस ने पहले मुझे घूरा, फिर हम दोनों एकसाथ जोर से हंस पड़ीं.

ये भी पढ़ें- बबूल का माली: क्यों उस लड़के को देख चुप थी मालकिन

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें