मैट्रो मेरी जान: रफ्तार से चलती जिंदगी की कहानी

मैट्रो का दरवाजा खुला. भीड़ के साथ बासू भी अंदर हो गया. वह सवा 9 बजे से मैट्रो स्टेशन पर खड़ा था. स्टेशन पर आने के बाद बासू ने 4 टे्रनें इसलिए निकाल दीं क्योंकि उन में भीड़ अधिक थी. उस ने इस ट्रेन में हर हालत में घुसने का इरादा कर लिया. इतने बड़े रेले के एकसाथ घुसने से लोगों को परेशानी हुई. एक यात्री ने आने वाली भीड़ से परेशान होते हुए कहा, ‘‘अरे, कहां आ रहे हो भाईसाहब? यहां जगह नहीं है.’’

दरअसल दरवाजे से दूर खड़े लोगों को धक्का लग रहा था. ‘‘भाईसाहब, थोड़ाथोड़ा अंदर हो जाइए. अंदर काफी जगह है,’’ कोच में सब से बाद में चढ़ने वाले एक व्यक्ति ने कहा. वह दरवाजे पर लटका हुआ था.

‘‘हां हां, यहां तो प्लाट कट रहे हैं. तू भी ले ले भाई,’’ अंदर से कोई बोल पड़ा. यह व्यंग्य उस व्यक्ति की समझ में नहीं आया. उस ने कहने वाले का चेहरा देखने का प्रयास किया पर भीड़ में पता न चला.

‘‘क्या मतलब है आप का? मैं समझा नहीं,’’ उस ने भी हवा में मतलब समझने का प्रयास किया.

‘‘जब समझ में नहीं आता तो समझने की तकलीफ क्यों करता है?’’ फिर कहीं से आवाज आई.

पहले वाले ने फिर सिर उठा कर जवाब देने वाले को देखने का प्रयास किया पर मैट्रो की भीड़ ने उस का दूसरा प्रयास भी विफल कर दिया. उसे थोड़ा गुस्सा आ गया.

‘‘कौन हैं आप? कैसे बोल रहे हैं?’’ उस ने गुस्से से कहा.

‘‘क्यों भाई, आई कार्ड दिखाऊं के?’’ जवाब भी उतने ही जोश में दिया गया.

‘‘ला दिखा,’’ उस ने भी कह दिया.

‘‘तू कोई लाट साहब है जो मेरा आई कार्ड देखेगा?’’ वह भी बड़ा ढीठ था.

इस के साथ ही वाक्युद्ध शुरू हो गया. कोई किसी को देख नहीं पा रहा था. गालीगलौज का दौर पूरे शबाब पर आ कर मारपीट में तब्दील होने वाला था कि लोगों ने दोनों अदृश्य लड़कों के बीच में पड़ कर युद्ध विराम करवा दिया. इतने में पहले वाले का स्टेशन आ गया. वह बड़बड़ाता हुआ स्टेशन पर उतर गया. इस के साथ ही सारा मामला खत्म हो गया. अभी टे्रन थोड़ी दूर ही चली होगी कि एकाएक धीमी हुई और रुक गई. इस के साथ ही घोषणा होने लगी :

‘इस यात्रा में थोड़ा विलंब होगा. आप को हुई असुविधा के लिए खेद है.’ इस पर यात्रियों के चेहरे बिगड़ने लगे.

‘‘ओ…फ्…फो….या…र…व्हाट नानसेंस.’’

‘‘यार…यह तो रोजरोज की बात हो गई.’’

‘‘हर स्टेशन पर खड़ी हो जाती है.’’

‘‘आजकल रोज औफिस देर से पहुंचता हूं. बौस बहुत नाराज रहता है. उस को क्या पता कि मैट्रो की हालत क्या हो रही है,’’ एक ने अपनी परेशानी बताई.

‘‘एक दिन बौस को मैट्रो में ले आओ. उस को भी पता चल जाएगा,’’ इस मुफ्त की सलाह के साथ ही एक जोर का ठहाका लगा. किसी ने हंसतेहंसते कहा, ‘‘श्रीधरन को भी ले आओ. उसे भी इस रूट की हालत पता चल जाएगी.’’ और इसी के साथ सुझावों की झड़ी लग गई.

‘‘भाई साहब, जब तक कोच नहीं बढ़ेंगे तब तक समस्या नहीं सुलझेगी,’’ एक ने कहा.

‘‘मेरे खयाल में फ्रीक्वेंसी बढ़ानी चाहिए,’’ एक महिला ने बहुमूल्य सुझाव दिया.

‘‘फ्रीक्वेंसी बढ़ाने से कुछ नहीं होगा. कोच ही बढ़ाने चाहिए.’’

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इस के साथ ही मैट्रो चल पड़ी. लोग चुप हो गए. थोड़ी देर में ही मैट्रो ने सीटी बजाते हुए स्टेशन मेें प्रवेश किया. चढ़ने वाले कतारबद्ध खड़े थे. दरवाजा खुलते ही लोग बाड़े में बंद भेड़बकरियों की तरह अपनेअपने गंतव्य की ओर भागे. इस तेजी से कुछ लोगों का मन  खिन्न हो उठा. ‘‘एक जमाना हुआ करता था. लोग फुरसत के क्षणों को बेहतरीन ढंग से बिताने के लिए कनाट प्लेस आया करते थे. गेलार्ड रेस्टोरैंट और शिवाजी स्टेडियम के पास बना कौफी हाउस तो कनाट प्लेस की जान और शान हुआ करते थे. कौफी हाउस में बुद्धजीवियों का जमघट रहता था. लंबेलंबे बहस मुबाहिसे चलते रहते थे. किसी को जल्दी नहीं,’’ एक व्यक्ति ने कनाट प्लेस के इतिहास की झलक दिखाई.

‘‘अरे, अपनीअपनी विचारधारा और मान्यताओं के हिसाब से जीनेमरने वाले लोग तर्कवितर्क की रणभूमि में जब अपनेअपने अस्त्रशस्त्र के साथ उतरते थे तो बेचारी निरीह जनता कौतूहल से मूकदर्शक बनी देखती, सुनती रहती थी. इस बौद्धिक युद्ध में आराम तो कतई हराम था. युद्धविराम तभी होता था जब मुद्दे का कोई हल निकल आता था. वक्त की कोई बाधा न थी.’’ दूसरे ने कनाट प्लेस का बौद्धिक पक्ष उजागर किया.

दूर खड़े एक सज्जन बड़ी देर से सबकुछ सुन रहे थे. वह भी बहती गंगा में हाथ धोने का लोभ संवरण नहीं कर पाए. उन के अंदर का कलाकार बाहर आ कर कहने लगा, ‘‘कई कलाकार, साहित्यकार और रचनाशील प्रकृति के हुनरमंद लोग हाथ में कौफी ले कर अधखुली पुतलियों को घुमाते हुए शरीर की बाधा को लांघ जाते थे. किसी और दुनिया में विचरण करतेकरते कालजयी कृतियों को जन्म दे डालते थे.’’

बासू के पास इस से ज्यादा सुनने का वक्त न था. वह तेजी से उतरा. भीड़ के रेले के साथ लगभग भागते हुए नीचे केंद्रीय सचिवालय-जहांगीरपुरी मैट्रो रेल लाइन पर पहुंच गया. गनीमत थी कि यहां की लाइन छोटी थी. 2 मिनट में ट्रेन आ गई. दरवाजा खुला. एक रेला तेजी से निकला. ज्यादातर लोग एस्केलेटर की ओर भागे. दरवाजे से भीड़ छटते ही वह तेजी से ट्रेन में घुस गया. अगला स्टेशन पटेल चौक था. स्टेशन आते ही वह उतरा और तेजी से सीढि़यों की ओर भागा. यहां पर ‘इफ यू वांट टू स्टे फिट, यूज स्टेअर्स’ लिखा हुआ था. परंतु लोग उन का उपयोग स्वेच्छा से नहीं, अपितु मजबूरी में कर रहे थे क्योंकि एस्केलेटर पर भारी भीड़ थी. उस ने जल्दीजल्दी कदम बढ़ाने शुरू किए. यातायात की चिल्लपों के साथसाथ चलते हुए वह अपने दफ्तर के सामने आ गया. यहां पर हड़बड़ी में असावधानी से सड़क पार करना अपनी मौत को दावत देने जैसा ही था. पता नहीं कब कौन सा वाहन आप की मौत का सामान बन जाए. उस ने सड़क पर दोनों ओर देखा और तेजी से सड़क पार करने लगा.

शाम को औफिस से निकलने के बाद जब वह राजीव चौक पहुंचा तो वहां का नजारा देख कर दंग रह गया. पूरा स्टेशन कुंभ मेले में तब्दील हो चुका था. जिधर देखो सिर ही सिर. यों तो लाइनें लगी हुई थीं. लाइनों में लगे पढ़ेलिखे, नौकरीपेशा और जागरूक नागरिक थे. पर जैसे ही ट्रेन आती, सारी तमीजतहजीब गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो जाती.

लाइन मेें खड़े कुछ लोग बेचारे शराफत के पुतले बन कर चींटी की गति से आगे बढ़ रहे थे. उधर ‘बी प्रैक्टीकल, टैंशन लेने का नहीं, देने का है’ टाइप के लोग इस लोचेलफड़े में पड़ने को तैयार नहीं थे. वे लाइन की परवा किए बगैर सीधे ट्रेन में चढ़ रहे थे. इस पुनीत कार्य में महिला सशक्तीकरण से सशक्त हुई महिलाएं भी कतई पीछे न थीं. तमीज, तहजीब और कायदेकानून से चलने वाले लोग यों भी आज के जमाने में निरीह और बेचारे ही सिद्ध हो रहे हैं. अपने देश में विदेशों की कानून व्यवस्था की तारीफ के पुल बांधने वालों की कमी नहीं है. देश में इस के पालनहार गिनती के हैं. तुर्रा यह कि इस देश में वे लोग भी नियमकानून का पालन नहीं करते जो कई वर्ष विदेशों में रह कर आते हैं. जो वहां मौजूद सुविधाओं के बारे में बिना रुके बोलते रहते हैं.

एक दिन उसे मैट्रो कोच में कहीं से एक महिला की तेज आवाज सुनाई दी. वह किसी आदमी से मुखातिब थी, ‘‘आप जरा ठीक से खड़े होइए,’’ उस ने गर्जना की. ‘‘भीड़ इतनी है. क्या करें?’’ उस आदमी ने सच में दूर होने की कोशिश करते हुए कहा. पर कुछ अधिक नहीं कर पाया तो बोला, ‘‘अगर इतनी समस्या है तो आप टैक्सी क्यों नहीं कर लेतीं? यहां तो ऐसा ही होता है,’’ उस ने सचाई बताने की कोशिश की.

‘‘शटअप, इडियट.’’

पुरुष के कुछ कहने से पहले ही स्टेशन आ गया. महिला को वहीं उतरना था, सो वह उतर गई. पुरुष कसमसा कर रह गया. किसी महिला पीडि़त व्यक्ति ने उस की पीड़ा बांटते हुए कहा, ‘छोड़ो भाईसाहब, जमाना इन्हीं का है. बड़ी बदतमीज हो गई हैं ये,’’ उस के इस वाक्य से उस के जख्मों पर मरहम लग गया. वह ‘और नहीं तो क्या?’ कह कर शांत हो गया.

तभी सीट पर बैठी एक महिला ने अपने आसपास नजर दौड़ाई. वह उतरना चाह रही थी. सो उस ने रास्ते में खड़े लगभग 65 साल के आदमी से पूछा, ‘‘आप कहां उतरेंगे?’’ इस प्रश्न के लिए वह सज्जन तैयार नहीं थे. सो वह अचकचा गए. उन्हें अपनी निजता पर किया गया यह हमला कतई पसंद नहीं आया. सो उन्होंने प्रश्न के मंतव्य पर गौर न करते हुए जवाबी मिसाइल दाग दी.

‘‘व्हाई शुड आई टैल यू?’’

यह सुन कर महिला स्तब्ध रह गई और वह चुपचाप अपने स्टेशन पर उतर गई. वह सज्जन भी शांत हो अपने स्टेशन पर उतर गए. तभी किसी ने बताया, ‘‘दरअसल मैट्रो के लगातार विस्तार ने जहां एक ओर सुविधाएं दी हैं वहीं दूसरी ओर कुछ समस्याएं भी उत्पन्न कर दी हैं.’’ एक दिन बासू सुबह कुछ जल्दी निकला. उस ने देखा कि डब्बे के बीच में कालेज के कुछ विद्यार्थियों का झुंड खड़ा है. उन के युवा होने की खुशबू पूरे कोच में फैल रही थी. लड़कियां तितलियों की मानिंद और लड़के उन्मुक्त पंछियों की तरह मानो खुले आकाश में विचरण कर रहे हों. हंसी के ठहाके गूंज रहे थे. तभी एक लड़की ने लड़के से पूछा, ‘‘ओए प्रिंस, तेरी प्रैक्टीकल की फाइल कंपलीट हो गई?’’

‘‘तू अब पूछ रही है. वह तो मैं ने कब की कंपलीट कर के सबमिट भी करा दी.’’

‘‘चल, झूठा कहीं का,’’ यह कहने के साथ ही उस लड़की ने उस के गाल पर एक प्यार भरी चपत भी जड़ दी. मानो यह प्यारे से झूठ की प्यारी सी सजा हो.

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‘‘मैं झूठ नहीं बोल रहा. तू रवि से पूछ ले,’’ लड़के ने फिर झूठ बोला.

‘‘ओए, उस से क्या पूछूं. वह तो है ही एक नंबर का झूठा,’’ यह कहने के साथ ही उस ने रवि की पीठ पर भी एक हलकी सी चपत रख दी.

‘‘ओए, नैंसी…क्या कर रही है. मुझे क्यों मार रही है? मैं ने क्या किया है?’’ रवि ने प्यार भरी झिड़की दी.

‘‘ओए, तू ही सब का गुरु है,’’ अब स्वीटी ने उस के गाल पर हलकी चपत मारते हुए कहा.

‘‘यार, तू भी शुरू हो गई,’’ उस ने स्वीटी की तरफ दिलकश नजरों से देखते हुए कहा.

‘‘इस पुनीत से पूछते हैं. इस ने अब तक क्या किया है?’’ अब दीपिका ने नैंसी और स्वीटी की ओर देखते हुए कहा.

‘‘यार, क्या बताऊं, मेरा तो बहुत बुरा हाल है. मैं ने तो अब तक फाइल भी नहीं बनाई,’’ पुनीत ने मायूसी से कहा.

‘‘ओ हो हो…इस बेचारे का क्या होगा,’’ दीपिका ने अफसोस जताने का अभिनय करते हुए कहा.

‘‘यूनिवर्सिटी आ गई. चलो उतरो,’’ नैंसी ने प्रिंस को लगभग आगे की ओर धकेलते हुए कहा.

इस के साथ ही वे हंसते हुए उतर गए. उन के जाते ही ऐसा लगा मानो चहचहाते पंछियों का कोई झुंड पेड़ से उड़ कर मुक्त गगन में विचरण करने चला गया हो. एक दिन एक अधेड़ युवक और एक  युवती कोच को जोड़ने वाले ज्वाइंट  पर खड़े अपनी बातों में मशगूल थे. एक स्टेशन पर अचानक कुछ लड़कियां और कुछ स्त्रियां कपड़े, बरतनों की पोटली लिए उन के करीब आ धमकीं. वे पोटलियां इधरउधर फैला कर वहीं बैठ गईं. इस प्रयास में पोटली पास खड़े युवक की पैंट से टकरा गई.

‘‘अरे, तुझे दिखाई नहीं देता क्या?’’ युवक ने नाराज होते हुए कहा.

‘‘ऐसा क्या कर दिया जो बोल रहा है?’’ स्त्री उस की ओर देखते हुए बोली.

‘‘पोटली मार कर मेरी पैंट खराब कर दी और पूछ रही है कि क्या कर दिया?’’ उस ने गुस्से से देखते हुए कहा.

‘‘तो क्या हो गया? चढ़नेउतरने में ऐसा ही होता है.’’

‘‘ऐसा कैसे होता है? पोटली ले कर चलते हो. दूसरों के कपड़े खराब करते रहते हो.’’

‘‘ओए, ज्यादा बकवास न कर. मैट्रो तेरे बाप की नहीं है.’’

इस के बाद वह युवक भी गुस्से में कुछ और कहना चाहता था पर तभी किसी नेक आदमी ने नेक सलाह दी, ‘‘अरे, भाई साहब, किस के मुंह लग रहे हो? इन से आप जीत नहीं सकते. समझदार लोग बेवकूफों के मुंह नहीं लगा करते.’’ अपनेआप को समझदार सुनने के बाद वह आदमी चुप हो गया. हां, उस ने इतना अवश्य किया कि वहां से हट कर दूर खड़ा हो गया. नए साल के नए दिन जब बासू ट्रेन में चढ़ा तो अजब वाकया पेश आ रहा था. बहुत सारे लोग कान पर मोबाइल लगाए बातों में मशगूल हो रहे थे. अपनीअपनी धुन में मस्त. एक सज्जन कान से मोबाइल लगाए चिल्ला कर कुछ इस तरह बधाई दे रहे थे, ‘‘नहीं यार, मैं हैप्पी न्यू ईयर कह रहा हूं.’’ वहीं दूसरे सज्जन कुछ गुस्से में किसी को फोन पर धमका  रहे थे, ‘‘अबे तू पागल है. इतनी बात हो गई और तुझे हैप्पी न्यू ईयर की पड़ी है. कुछ सोचता भी है या नहीं…’’

एक अन्य सज्जन मोबाइल पर कुछ झल्ला रहे थे, ‘‘चिल्ला क्यों रहा है. मैं कोई बहरा हूं? तेरी गलती है. पहले बताना चाहिए था.’’

‘‘कितनी बार बता चुका हूं? पर तुझे सुनाई ही नहीं देता,’’ ये कोई और सज्जन थे जो फोन पर किसी को डांट रहे थे.

एक सज्जन सिर हिला कर किसी की बात से सहमत होते हुए बोल रहे थे, ‘‘हां हां, चाची 60 की हैं, साली 16 की.’’

‘‘तू ऐसा कर 60 वाली रहने दे और 16 वाली 100 भेज दे,’ उन के बगल में खड़े सज्जन फोन पर स्टील प्लेट्स का आर्डर दे रहे थे.

एक सज्जन फोन पर कुछ यों बोल रहे थे, ‘‘यार, बाहरवाली से ही इतना परेशान हो जाता हूं कि घरवाली की चिंता कौन करे?’’ तो उन्हीं के पास खड़े एक अन्य सज्जन किसी को इस तरह सांत्वना दे रहे थे, ‘‘यार, तू उस की टैंशन मत ले. उसे मैं संभाल लूंगा.’’ एक लड़का अपनी गर्लफ्रैंड से कुछ नोट्स लेने के लिए बड़ी देर से उस की चिरौरी कर रहा था. अचानक उस की आवाज तेज हो गई, ‘‘यार, इतनी देर से मांग रहा हूं, दे दे ना.’’

वहीं एक कोने में कंधा टिकाए खड़ी लड़की हंसते हुए अपने बौयफ्रैंड को यह कह कर नचा रही थी, ‘‘यार, जब देखो तब कुछ न कुछ मांगते रहते हो. मेहनत करो. कब तक मांगते रहोगे?’’ तभी दरवाजे के पास एक ग्रुप आ कर खड़ा हो गया. इस में 2 लड़के और 2 लड़कियां थीं. उन की बातचीत से लग रहा था कि वे डेटिंग पर जा रहे हैं. उन में से एक लड़का फोन पर बड़ी देर से किसी से हंसहंस कर बात कर रहा था. उस के पास खड़ी लड़की काफी परेशान हो रही थी. जब उस से न रहा गया तो वह बोल पड़ी, ‘‘ओए, हम भी हैं. भूल गया क्या?’’

काफी इंतजार करने के बाद जब उस ने फोन बंद किया तो लड़की ने हाथ बढ़ा कर उस का सेल फोन छीनने की कोशिश की. फोन स्विच औफ हो गया. लड़का भाव खा गया, ‘‘क्या यार, सोमी तू भी कमाल है. बात भी नहीं करने दी,’’ उस ने गुस्से से कहा.

‘‘हम यहां बेवकूफ हैं,’’ सोमी ने जवाब में कहा, ‘‘तू हमें अवौइड कर के इतनी देर से उस से बातें कर रहा है और हम से कह रहा है कि 2 मिनट सब्र नहीं कर सकती.’’

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‘‘लीव इट यार,’’ दूसरा लड़का जो काफी देर से शांत था, अब बोल पड़ा.

‘‘व्हाई लीव इट? सोमी सही कह रही है,’’ दूसरी लड़की ने सोमी का पक्ष लिया.

‘‘ओके. आई नो. पर बात को खत्म करो यार,’’ रोमी ने कहा.

‘‘मैं ने बहुत बार कहा पर यह नहीं माना. ज्यादा स्मार्ट समझता है अपने को,’’ सोमी ने कहा.

‘‘टैनी, मैं साफसाफ कह रही हूं. अगर तुझे वह पसंद है तो तू उसी के साथ जा पर यह नहीं होगा कि तू डेटिंग पर मेरे साथ जा रहा है और मजे किसी और के साथ कर रहा है. ऐसा नहीं चलेगा.’’

‘‘यार, तेरी प्रौब्लम क्या है? तू क्या करेगी,’’ वह भी भाव खाने लगा.

‘‘मैं तेरा फोन तोड़ डालूंगी.’’

‘‘ले तोड़,’’ यह कहने के साथ ही वह फिर फोन मिलाने लगा.

इस पर सोमी आपा खो बैठी. उस ने हाथ बढ़ा कर फोन छीनना चाहा. लड़के ने फोन जोर से पकड़ लिया. दोनोें के बीच छीनाझपटी में फोन मैट्रो के फर्श पर गिर कर टूट गया. दोनों के चेहरे तमतमा गए. तकरार में डेटिंग की मस्ती खत्म हो चुकी थी. इसलिए डेटिंग को वेटिंग बना चारों अगले स्टेशन पर उतर गए. तभी एक सज्जन के फोन की घंटी बज उठी, ‘‘हैलो…हैलो…’’

‘‘मैं हरी बोल रहा हूं,’’ दूसरी ओर से आवाज आई.

‘‘हां हरी, बोलो. क्या बात है?’’ उन्होंने पान की गिलौरी चबाते हुए कहा.

‘‘बाबा के क्या हालचाल हैं? पापा कह रहे हैं कि आज शाम को बाबा के घर जाएंगे,’’ दूसरी ओर से आवाज आई.

इस पर उन्होंने पान चबाते हुए जवाब दिया, ‘‘बाबा तो अजमेर गए.’’ तभी मैट्रो राजीव चौक में प्रवेश करने लगी. अंडरग्राउंड होेने से यहां कभीकभी फोन का नेटवर्क काम नहीं करता, सो उन के लाख चिल्लाने का कोई फायदा नहीं हुआ. नेटवर्क फेल हो गया और मैट्रो सीटी बजाती हुई तेजी से आगे बढ़ी जा रही थी.

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