प्रेग्नेंसी के बाद बढ़े वजन को ऐसे करें कम

प्रेग्नेंसी के बाद वजन घटाना एक बड़ी चुनौती होती है. आमतौर पर प्रेग्नेंसी के बाद महिलाओं का वजन बढ़ जाता है और आपकी लाख कोशिशों के बाद भी वो अपना वजन कम नहीं कर पाती. इस खबर में हम आपको उन तरीकों के बारे में बताएंगे जिनकी मदद से आप प्रेग्नेंसी के बाद भी अपना वजन कम कर सकेंगी.

खाना और नींद रखें अच्छी

आपको बता दें कि तनाव और नींद पूरी ना होने से कई तरह के रोग हो जाते हैं. इसके अलावा आप बाहर का खाना बंद कर दें. घर का बना खाना खाएं और पर्याप्त नींद लें. स्ट्रेस ना लें. खुद को कूल रखें.

बच्चे को कराएं ब्रेस्टफीड

मां का दूध बच्चों के लिए अमृत रसपान

आपको ये जान कर हैरानी होगी पर ये सच है कि ब्रेस्टफीड कराने से महिलाओं के वजन में तेजी से गिरावट आती है. और इस बात का खुसाला कई शोधों में भी हो चुका है. ब्रेस्टफीड कराने से शरीर की 300 से 500 कैलोरी खर्च होती है. कई जानकारों का मानना है कि स्तमपान कराने से महिलाओं का अतिरिक्त वजन कम होता है.

 खूब पीएं पानी

diet to loose weight

पानी पीना वजन कम करने का सबसे आसान तरीका है. अगर आप सच में अपना वजन कम करना चाहती हैं तो अभी से रोजाना 10 से 12 ग्लास पानी पीना शुरू कर दें.

टहला करें

प्रेग्नेंसी के बाद वजन कम करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप वौक शुरू करें. कई रिपोर्टों में भी ये बाते सामने आई है कि प्रेग्नेंसी के बाद वजन घटाने के लिए जरूरी है टहलना.

प्रेग्नेंसी के बाद कम करना है वजन तो अपनाएं ये आसान तरीके

प्रेग्नेंसी के बाद वजन घटाना एक बड़ी चुनौती होती है. आमतौर पर प्रेग्नेंसी के बाद महिलाओं का वजन बढ़ जाता है और आपकी लाख कोशिशों के बाद भी वो अपना वजन कम नहीं कर पाती. इस खबर में हम आपको उन तरीकों के बारे में बताएंगे जिनकी मदद से आप प्रेग्नेंसी के बाद भी अपना वजन कम कर सकेंगी.

 खूब पीएं पानी

पानी पीना वजन कम करने का सबसे आसान तरीका है. अगर आप सच में अपना वजन कम करना चाहती हैं तो अभी से रोजाना 10 से 12 ग्लास पानी पीना शुरू कर दें.

टहला करें

प्रेग्नेंसी के बाद वजन कम करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप वौक शुरू करें. कई रिपोर्टों में भी ये बाते सामने आई है कि प्रेग्नेंसी के बाद वजन घटाने के लिए जरूरी है टहलना.

खाना और नींद रखें अच्छी

आपको बता दें कि तनाव और नींद पूरी ना होने से कई तरह के रोग हो जाते हैं. इसके अलावा आप बाहर का खाना बंद कर दें. घर का बना खाना खाएं और पर्याप्त नींद लें. स्ट्रेस ना लें. खुद को कूल रखें.

बच्चे को कराएं ब्रेस्टफीड

आपको ये जान कर हैरानी होगी पर ये सच है कि ब्रेस्टफीड कराने से महिलाओं के वजन में तेजी से गिरावट आती है. और इस बात का खुसाला कई शोधों में भी हो चुका है. ब्रेस्टफीड कराने से शरीर की 300 से 500 कैलोरी खर्च होती है. कई जानकारों का मानना है कि स्तमपान कराने से महिलाओं का अतिरिक्त वजन कम होता है.

आधुनिक महिलाओं में बांझपन की बीमारी का कारण और निदान

महिलाओं के जीवन में मां बनना सबसे बड़ा सुख माना जाता है लेकिन आजकल की आधुनिक जीवनशैली और अन्‍य कारणों की वजह से अब महिलाओं में बांझपन यानि इनफर्टिलिटी की समस्‍या बढ़ रही है. अगर आप भी बांझपन का शिकार हैं या इससे बचना चाहती हैं तो आइए जानते हैं औनलाइन हेल्थकेयर कंपनी myUpchar से इसके कारण, लक्षण और इलाज के बारे में.

क्‍या होता है बांझपन

बांझपन वह स्थिति है जिसमें महिलाएं गर्भधारण नहीं कर पाती हैं. अगर कोई महिला प्रयास करने के बाद भी 12 महीने से अधिक समय तक गर्भधारण नहीं कर पाती है तो इसका मतलब है कि वो महिला बांझपन का शिकार है. गौरतलब है कि गर्भधारण न हो पाने का कारण पुरुष बांझपन भी हो सकता है.

कुछ महिलाएं शादी के बाद कभी कंसीव नहीं कर पाती हैं तो कुछ स्त्रियों को एक शिशु को जन्‍म देने के बाद दूसरी बार गर्भधारण करने में मुश्किलें आती हैं. इस तरह बांझपन दो प्रकार का होता है.

क्‍या है बांझपन का कारण

  • फैलोपियन ट्यूब अंडे को अंडाशय से गर्भाशय तक पहुंचाती है, जहां भ्रूण का विकास होता है. पेल्विक में संक्रमण या सर्जरी के कारण फैलोपियन ट्यूब को नुकसान पहुंच सकता है जिससे शुक्राणुओं को अंडों तक पहुंचने में दिक्‍कत आती है और इसी वजह से महिलाओं में बांझपन उत्‍पन्‍न होता है.
  • महिलाओं के शरीर में हार्मोनल असंतुलन होने के कारण भी इनफर्टिलिटी हो सकती है. शरीर में सामान्‍य हार्मोनल परिवर्तन ना हो पाने की स्थिति में अंडाशय से अंडे नहीं निकल पाते हैं.
  • गर्भाशय की असामान्य संरचना, पौलिप्स या फाइब्रौएड के कारणबांझपन हो सकता है.
  • तनाव भी महिलाओं में बांझपन का प्रमुख कारण है.
  • महिलाओं की ओवरी 40 वर्ष की आयु के बाद काम करना बंद कर देती है. अगर इस उम्र से पहले किसी महिला की ओवरी काम करना बंद कर देती है तो इसकी वजह कोई बीमारी, सर्जरी, कीमोथेरेपी या रेडिएशन हो सकती है.
  • पीसीओएस की बीमारी के कारण भी आज अधिकतर महिलाएं बांझपन का शिकार हो रही हैं. इस बीमारी में फैलोपियन ट्यूब में सिस्‍ट बन जाते हैं जिसके कारण महिलाएं गर्भधारण नहीं कर पाती हैं.

बांझपन के लक्षण

  • myUpchar की गायनेकोलौजिस्ट डा. अर्चना नरूला के अनुसार लम्बे समय तक गर्भधारण में असमर्थता ही बांझपन का सबसे मुख्‍य लक्षण है.
  • अगर किसी महिला का मासिक धर्म 35 दिन या इससे ज्‍यादा दिन का हो तो ये बांझपन का लक्षण हो सकता है. इसके अलावा बहुत कम दिनों की माहवारी या 21 दिन से पहले माहवारी का आना अनियमित माहवारी कहलाता है जोकि बांझपन बन सकता है.
  • चेहरे पर अनचाहे बाल आना या सिर के बालों का झड़ना भी महिलाओं में इनफर्टिलिटी की वजह से हो सकता है.

बांझपन से कैसे बचें

बांझपन से बचने के लिए जीवनशैली में सुधार करना सबसे जरूरी है. यहां कुछ ऐसे सरल सुझाव दिए गए हैं जिन्हें अपनाकर इनफर्टिलिटी से बच सकते हैं.

संतुलित आहार खाएं

  • बांझपन को दूर करने के लिए उचित भोजन करना बहुत जरूरी है. अपने आहार में जस्ता, नाइट्रिक औक्साइड और विटामिन सी और विटामिनई जैसे पोषक तत्वों को शामिल करें.
  • ताजी फल-सब्जियां खाएं. शतावरी और ब्रोकली से फर्टिलिटी बढ़ती है. इसके अलावा बादाम, खजूर, अंजीर जैसे सूखे-मेवे खाएं.
  • आपको रोज़ कम से कम 5-6 खजूर या किशमिश खानी चाहिए. डेयरी उत्पाद, लहसुन, दालचीनी, इलायची को अपने आहार में शामिल करें.
  • सूरजमुखी के बीज खाएं. चकोतरा और संतरे का ताजा रस पीएं. फुल फैट योगर्ट और आइस्‍क्रमी से भी फर्टिलिटी पावर बढ़ती है.
  • जो महिलाएं अपनी फर्टिलिटी पावर को बढ़ाना चाहती हैं उन्‍हें अपने आहार में टमाटर, दालें, बींस और एवोकैडो को शामिल करना चाहिए.
  • अनार में फोलिक एसिड और विटामिन बी प्रचुर मात्रा में होता है. फर्टिलिटी को बढ़ाने के लिए महिलाओं को अनार का सेवन जरूर करना चाहिए.
  • विटामिन डी के लिए अंडे खाएं और ओमेगा 3 फैटी एसिड युक्‍त खाद्य पदार्थों का सेवन करें. कंसीव करने की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए रोज़ एक केला खाएं.
  • अश्‍वगंधा शरीर में हार्मोंस के संतुलन को बनाए रखता है और प्रजनन अंगों की समुचित कार्यक्षमता को बढ़ावा देती है. बार-बार गर्भपात होने के कारण शिथिल गर्भाशय को समुचित आकार देकर उसे बनाने में अश्‍वगंधा मदद करता है. महिलाओं को अपने आहार में दालचीनी को भी जरूर शामिल करना चाहिए.

इन खाद्य पदार्थों से रहें दूर

  • धूम्रपान और शराब बांझपन का प्रमुख कारण हैं इसलिए इनसे दूर रहें.
  • तैलीय भोजन और सफेद ब्रैड जैसे परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट से बचें.
  • प्रिजर्वेटिव्स फूड, कैफीन और मांस का सेवन कम करें. फ्रेंच फ्राइज, तली हुई और मीठी चीजों का बहुत कम सेवन करें.
  • इसके अलावा कोल्‍ड ड्रिंक आदि भी ना पीएं. कौफी और चाय भी कम पीएं क्‍योंकि इनमें कैफीन की मात्रा अधिक होती है जिसका फर्टिलिटी पर बुरा असर पड़ता है.

ये आदतें छोड़ दें

  • मासिक धर्म के दिनों में तैलीय और मसालेदार भोजन ना लें.
  • मारिजुआना या कोकीन का सेवन ना करें.
  • धूम्रपान करने से ओवरी की उम्र और अंडों की आपूर्ति कम हो जाती है. धूम्रपान फैलोपियन ट्यूब और सर्विक्‍स को भी नुकसान पहुंचाता है जिससे एक्‍टोपिक प्रेग्‍नेंसी या गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए सिगरेट बिलकुल ना पीएं.
  • शराब का सेवन ना करें. गर्भधारण से पूर्व शराब का सेवन करने वाली महिलाओं में औव्‍यूलेशन विकार हो सकता है इसलिए शराब से दूर रहें.
  • अगर आपका वजन बहुत ज्‍यादा या कम है तो उसे भी संतुलित करें. इनफर्टिलिटी से जूझ रही महिलाओं को अपना वजन संतुलित रखना चाहिए.
  • आधुनिक युग में बांझपन का प्रमुख कारण तनाव है. तनाव से दूर रहकर बांझपन की समस्‍या से बचा जा सकता है. मानसिक शांति पाने के लिए रोज़ सुबह प्राणायाम करें.

बांझपन की जांच

अगर कोई महिला लंबे समय से गर्भधारण नहीं कर पा रही है तो उसे डौक्टर के निर्देश पर निम्‍न जांच करवानी चाहिए:

  • ओव्यूलेशनटेस्ट: इसमें किट से घर पर ही ओव्यूलेशन परीक्षण कर सकती हैं.
  • हार्मोनल टेस्‍ट: ल्‍युटनाइलिंग हार्मोन और प्रोजेस्‍टेरोन हार्मोन की जांच से भी बांझपन का पता लग सकता है. ल्युटनाइज़िंगहार्मोन का स्तर ओव्यूलेशन से पहले बढ़ता है जबकि प्रोजेस्टेरोन हार्मोन ओव्यूलेशन के बाद उत्पादित हार्मोन होता है. इन दोनों हार्मोंस के टेस्‍ट से ये पता चलता है कि ओव्यूलेशन हो रहा है या नहीं.  इसके अलावा प्रोलैक्टिन हार्मोन के स्तर की भी जांच की जाती है.
  • हिस्टेरोसल पिंगोग्राफी: ये एक एक्स-रे परीक्षण है. इससे गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब और उनके आस-पास का हिस्‍सा देखा जा सकता है. एक्‍स-रे रिपोर्ट मेंगर्भाशय या फैलोपियन ट्यूब को लगी कोई चोट या असामान्‍यता को देखा जा सकता है. इसमें अंडे की फैलोपियन ट्यूब से गर्भाशय तक जाने की रूकावट भी देख सकते हैं.
  • ओवेरियन रिज़र्वटेस्ट: ओव्यूलेशन के लिए उपलब्ध अंडे की गुणवत्ता और मात्रा को जांचने में मदद करता है. जिन महिलाओं में अंडे कम होने का जोखिम होता है, जैसे कि 35 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं, उनके लिए रक्त और इमेजिंग टेस्ट का इस्तेमाल किया जा सकता है.
  • थायरौयड और पिट्यूटरी हार्मोन की जांच: इसके अलावा प्रजनन प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने वाले ओव्यूलेटरीहार्मोन्स के स्तर के साथ-साथ थायरौयड और पिट्यूटरी हार्मोन  की जांच भी की जाती है.
  • इमेजिंग टेस्ट: इसमें पेल्विक अल्ट्रासाउंड होता है जोकि गर्भाशय या फैलोपियन ट्यूब में हुए किसी रोग की जांच करने के लिए किया जा सकता है.

बांझपन का इलाज

चूंकि बांझपन एक जटिल विकार है इसलिए डा. नरूला कहती हैं कि, “इनफर्टिलिटी का इलाज इसके होने के कारण, आयु, यह समस्या कितने समय से है और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है. बांझपन के इलाज में वित्तीय, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति महत्‍व रखती है.”

आइए जानें आपके पास क्या विकल्प हैं इनफर्टिलिटी को दूर करने के लिए:

  • दवाएं: ओव्यूलेशन विकार के कारण गर्भधारण ना हो पाने की स्थिति में दवाओं से इलाज किया जाता है. ये दवाएं प्राकृतिक हार्मोन फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हार्मोन (एफएसएच) और ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (एलएच) की तरह काम करती हैं.इन दवाओं से ओव्यूलेशन को ट्रिगर किया जाता है.
  • आधुनिक तकनीक: प्रजनन क्षमता बढ़ाने के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किए गए तरीकों में शामिल हैं –
    • इन्ट्रायूट्राइन गर्भाधान (आईयूआई) – आईयूआई के दौरान, लाखों स्वस्थ शुक्राणुओं को गर्भाशय के अंदर ओव्यूलेशन के समय रखा जाता है.
    • आईवीएफ – इस प्रक्रिया में अंडे की कोशिकाओं को महिला के गर्भ से बाहर निकालकर उसे पुरुष के स्‍पर्म के साथ निषेचित किया जाता है. ये पूरी प्रक्रिया इनक्‍यूबेटर के अंदर होती है और इस पूरी प्रक्रिया में लगभग तीन दिन का समय लगता है. भ्रूण के पर्याप्‍त विकास के बाद इसे वापिस महिला के गर्भ में पहुंचा दिया जाता है. इस प्रक्रिया के 12 से 15 दिनों तक महिला को आराम करने की सलाह दी जाती है.
  • सर्जरी: कई सर्जिकल प्रक्रियाएं बांझपन को ठीक यामहिला प्रजनन क्षमता में सुधार ला सकती हैं. हालांकि, बांझपन के इलाज में अब ऊपर बताई गयी नई पद्धतियां आ चुकी हैं जिनके कारण सर्जरी बहुत ही कम की जाती है. गर्भधारण की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए लैप्रोस्कोपिक या हिस्ट्रोस्कोपी सर्जरी की जा सकती है. इसके अलावा फैलोपियन ट्यूब अवरुद्ध होने पर ट्यूबल सर्जरी भी की जा सकती है.

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गर्भावस्था में होने वाली उल्टी को इन पांच तरीकों से करें काबू

गर्भावस्था में उल्टी का होना बेहद आम बात है. इस दौरान महिलाओं में कई तरह के शारीरिक बदलाव होते हैं. इसका असर उनके मानसिक सेहत पर भी होता है. इस दौरान उनमें कई तरह के हार्मोंनल बदलाव होते हैं जिसके कारण उल्टी की समस्या होती है.

उल्टी होना गर्भावस्था की पहचान होती है. इसके अलावा प्रेग्नेंसी के तीसरे महीने से जी मिचलना और मौर्निंग सिकनेस भी होने लगते हैं. अगर आपकी उल्टी सामान्य है तो घबराने की कोई बात नहीं लेकिन अगर आपको बहुत अधिक उल्टी हो रही है तो तुरंत सतर्क हो जाइए.

इस खबर में हम आपको कुछ घरेलू उपायों के बारे में बताएंगे जिससे आप इन परेशानियों का घर बैठे इलाज कर सकेंगी.

  • ऐसी स्थिति में आंवले का मुरब्बा खाना भी काफी असरदार होता है.
  • गर्भावस्था के लगातार उल्टी होने पर सूखे या हरे धनिया को पीस कर मिश्रण बना लें. समय समय पर इसका सेवन करने से उल्टी की समस्या बंद हो जाती है. इसमें काला नमक मिला कर भी सेवन किया जा सकता है.
  • जीरा, नमर, नींबू का रस और सेंधा नमक का मिश्रण तैयार कर लें. कुछ देर पर इसे चूसते रहें. ऐसा करने से आपको फायदा होगा.
  • तुलसी के पत्ते के रस में शहद मिलाकर चाटने से भी फायदा होता है.
  • अगर आपको लगातार उल्टियां हो रही हैं तो रात में एक ग्लास पानी में काले चने को भींगा कर छोड़ दें और सुबह में उस पानी को पी लें. ऐसा करने से आपको काफी फायदा होगा.

गर्भावस्था में इसे करें अपनी डाइट में शामिल, स्वस्थ होता है बच्चा

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के खानपान का विशेष ध्यान दिया जाता है. इस दौरान गर्भवती महिला के डाइट का सीधा प्रभाव उसके बच्चे पर भी होता है. इसलिए जरूरी है कि उसके पोषण का खासा ख्याल रखा जाए. जानकारों की माने तो गर्भावस्था के दौरान अंडा खाना बेहद फायदेमंद होता है. अंडे में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, सेलेनियम, जिंक, विटामिन A, D और कुछ मात्रा में B कौम्प्लेक्स भी पाया जाता है. जो शरीर की सभी जरूरतों को पूरा करने का सबसे बेहतर सूपर फूड है.

कई तरह के स्टडीज से भी ये बात सामने आई है कि गर्भावस्था के दौरान अंडा खाने से बच्चे का दिमाग तेज होता है. इसके साथ ही उसकी सीखने की क्षमता भी तेज होती है. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि गर्भावस्था में अंडा खाना कैसे लाभकारी है और आपके बच्चे पर उसका सकारात्मक असर कैसे होगा.

अंडा प्रोटीन का प्रमुख स्रोत है. इसमें प्रोटीन की प्रचूरता होती है. आपको बता दें कि गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए प्रोटीन बेहद जरूरी तत्व होता है. असल में उसकी हर कोशिका का निर्माण प्रोटीन से होता है. गर्भावस्था में अंडा खाने से भ्रूण का विकास बेहतर होता है.

आपको बता दें कि गर्भवती महिला के लिए एक दिन में दो सौ से तीन सौ तक एडिशनल कैलोरी लेनी चाहिए. इससे उसे और बच्चे, दोनों को पोषण मिलता है. अंडे में करीब 70 कैलोरी होती है जो मां और बच्चे दोनों को एनर्जी देती है.

आपको बता दें कि अंडे में 12 तरह के विटामिन्स होते हैं. इसके अलावा कई तरह के लवण भी इसमे होते हैं. इनमें मौजूद choline और ओमेगा-3 फैटी एसिड बच्चे के संपूर्ण विकास को बढ़ावा देते हैं. इसके सेवन से बच्चे को मानसिक बीमारियां होने का खतरा कम हो जाता है और उसका दिमागी विकास भी होता है.

अगर गर्भवती महिला का ब्लड कोलेस्ट्रौल स्तर सामान्य है तो वह दिन में एक या दो अंडे खा सकती है. अंडे में कुछ मात्रा में सैचुरेटेड फैट भी होता है. अगर महिला का कोलेस्ट्रौल लेवल अधिक है तो उसे जर्दी वाला पीला हिस्सा नहीं खाना चाहिए.

प्रेग्नेंसी में होती है मौर्निंग सिकनेस? ऐसे करें ठीक

27 वर्षीय अंजलि को प्रैगनैंट होते ही मौर्निंग सिकनेस की समस्या शुरू हो गई, लेकिन उस ने इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया, क्योंकि परिवार वालों ने कहा था कि यह आम बात है. 2-3 महीनों में यह समस्या ठीक हो जाती है. मगर अंजलि के साथ ऐसा नहीं हुआ. धीरेधीरे वह कमजोर होती गई. और फिर एक वक्त ऐसा आया कि चलने फिरने में भी असमर्थ महसूस करने लगी.

परेशान हो कर जब डाक्टर के पास आई तो उन्होंने बताया कि वह डिहाइड्रेशन की शिकार हो चुकी है, जो इस अवस्था में बिलकुल ठीक नहीं है और किसी भी वक्त मिस कैरेज हो सकता है. अंजलि को हौस्पिटल में दाखिल कर आईवी के द्वारा पानी और दवा दी गई. 2-3 दिनों में वह स्वस्थ हो गई. बाद में एक हैल्दी बच्चे को जन्म दिया.

बीमारी नहीं है यह

असल में प्रैगनैंसी में मौर्निंग सिकनेस आम बात है. यह कोई बीमारी नहीं, क्योंकि इस दौरान महिलाएं कई हारमोनल बदलावों से गुजरती हैं. पहली तिमाही में मौर्निंग सिकनेस ज्यादा होती है. इस बारे में मुंबई की ‘वर्ल्ड औफ वूमन क्लीनिक’ की डाइरैक्टर और स्त्रीरोग विशेषज्ञा बंदिता सिन्हा बताती हैं कि गर्भावस्था में मौर्निंग सिकनेस को अच्छा माना जाता है, करीब 60 से 80% महिलाओं को यह होती है, लेकिन बारबार होने पर शरीर से अधिक मात्रा में पानी बाहर निकल जाता है, जिस से निर्जलीकरण हो जाता है और इस का प्रभाव बच्चे और मां दोनों पर पड़ने लगता है.

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कुछ महिलाओं को सवेरे ही नहीं, पूरा दिन यह समस्या होती रहती है. लेकिन यह अधिक और 3 महीने के बाद भी होती है, तो डाक्टर की सलाह लेना जरूरी होता है, क्योंकि हारमोनल बदलाव 4-5 महीने तक ही रहता है. इस के बाद शरीर इसे एडजस्ट कर लेता है.

बारबार उलटियां होने पर महिला थकान और कमजोरी महसूस करती है. इस से गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास पर असर पड़ता है. वह कुपोषण का शिकार हो सकता है, जिस से मिस कैरेज या समय से पहले डिलिवरी होने का डर रहता है.

गंभीर मौर्निंग सिकनेस को हाइपरमेसिस ग्रैविडेरम कहते हैं. इस का इलाज समय रहते करा लेना चाहिए ताकि बच्चा और मां दोनों स्वस्थ रहें. यह समस्या उन महिलाओं को अधिक होती है, जिन के जुड़वां या ट्रिप्लेट बच्चे होते हैं.

ऐसे करें काबू

इन बातों का ध्यान रखने से मौर्निंग सिकनेस को काबू में किया जा सकता है:

  • सुबह बिस्तर से उठते ही तुरंत ड्राई प्लेन बिस्कुट, ड्राई फ्रूट्स, सेब, इडली आदि का सेवन करें. बाद में कोई तरल पदार्थ या पानी पीएं.
  • थोड़ीथोड़ी देर बाद कुछ न कुछ खाती रहें.
  • जिस फूड की गंध से उलटी आती हो उसे न खाएं.
  • बाहर का खाना न खाएं, क्योंकि इस से अपच होने पर ऐसिडिटी की मात्रा बढ़ जाती है, जिस से उलटियां होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है.
  • खाना अधिक गरम न खाएं. हमेशा हलका ठंडा भोजन करें.
  • पानी, सूप, नारियल पानी, इलैक्ट्रोल पाउडर आदि का अधिक सेवन करें. फ्रूट जूस न लें, क्योंकि इस में कैमिकल होता है, जो कई बार नुकसानदायक साबित होता है.
  • वजन अधिक होने पर उलटियां होने के चांस अधिक रहते हैं, इसलिए वजन को काबू में रखें.
  • जिन्हें माइग्रेन या ऐसिडिटी अधिक होती हो, उन्हें भी उलटियां अधिक हो सकती हैं.
  • तनाव को दूर रखें.
  • पूरी नींद लें.

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ये घरेलू नुसखे भी अपना सकती हैं:

  • अदरक को नमक के साथ लेने पर काफी हद तक इस परेशानी को दूर किया जा सकता है.
  • पानी, नीबू और पुदीने के रस को मिला कर लेने से भी मौर्निंग सिकनेस दूर होती है.

इस के बाद भी अगर मौर्निंग सिकनेस की समस्या रहती है, तो तुरंत डाक्टर से मिलें.

महिलाओं में तेजी से बढ़ रही है बांझपन, ऐसे करें इलाज

औरतों के लिए मां बनना किसी सपने से कम नहीं होता. पर आज की खराब लाइफस्टाइल और खानपान के कारण महिलाओं को प्रेग्नेंसी में काफी परेशानियां आ रही हैं. इस खबर में हम आपको इनफर्टिलिटी के बारे में और इसके इलाज के बारे में बताएंगे. तो आइए शुरू करें.

क्या होती है इनफर्टिलिटी

इनफर्टिलिटी यानी बांझपन एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें महिलाओं को गर्भधारण करने में परेशानी होती है. अगर कोई महिला लगातार कोशिशों के बाद भी एक साल से अधिक समय तक कंसीव नहीं कर पा रही है तो इसका मतलब हुआ वो इनफर्टिलिटी या बांझपन का शिकार हो सकती है.

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क्या हो सकते हैं बांझपन के कारण

  • बांझपन के कई कारण हो सकते हैं कई बार खाने से जुड़ा कोई रोग या एन्‍डोमीट्रीओसिस (महिलाओं से संबंधित बीमारी जिसमें पीरियड्स और सेक्स के दौरान महिला को दर्द होता है) भी बांझपन की वजह बन सकता है.
  • इसके अलावा तनाव के कारण कई बार महिलाएं इनफर्टाइल हो जाती हैं.
  • हार्मोनल इमबैलेंस भी बांझपन का कारण हो सकता है. इस अवस्था में शरीर में सामान्‍य हार्मोनल परिवर्तन ना हो पाने की वजह से अंडाशय से अंडे नहीं निकल पाते हैं.
  • पीसीओएस भी एक वजह है महिलाओं के बांझपन का. इस बीमारी में फैलोपियन ट्यूब में सिस्‍ट बन जाते हैं जिसके कारण महिलाएं गर्भधारण नहीं कर पाती हैं.
  • शादी में होने वाली देरी भी इस परेशानी का कारण हो सकती है. आज महिलाएं शादी करने से पहले अपना करियर बनाना चाहती हैं, जिसके कारण उनकी शादी में देरी होती है. बता दें, महिलाओं की ओवरी 40 वर्ष की आयु के बाद काम करना बंद कर देती है. अगर इस उम्र से पहले किसी महिला की ओवरी काम करना बंद कर देती है तो इसकी वजह कोई बीमारी, सर्जरी, कीमोथेरेपी या रेडिएशन हो सकती है. अत्यधिक जंकफूड का सेवन करने से भी महिलाओं को बांझपन की परेशानी होती है.

कैसे बचें बांझपन से

जानकारों की माने तो बांझपन से बचने के लिए अपनी जीवनशैली को दुरुस्त करना जरूरी है. इसके अलावा महिलाओं को अपने खानपान पर भी खासा ध्यान देना होगा. फास्टफूड या जंकफूड का अत्यधिक इस्तेमाल उनकी इस परेशानी का कारण है.

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मौसमी फल और सब्जियों का सेवन करने से भी महिलाएं अपनी फर्टिलिटी बढ़ा सकती हैं. जानकारों का मानना है कि इस समस्या से बचने के लिए महिलाओं को अपने आहार में जस्ता, नाइट्रिक ऑक्साइड और विटामिन सी और विटामिन ई जैसे पोषक तत्वों को शामिल करना चाहिए.  इसके अलावा महिलाओं को अपनी दिनचर्या में वाटर इन्टेक भी बढ़ना चाहिए.

मां की इस एक गलती से बच्चे हो सकते हैं मोटापे का शिकार

धूम्रपान सेहत के लिए बेहद हानिकारक होता है, फिर चाहे वो पुरुष हो या महिला, धूम्रपान सभी की सेहत को बुरी तरह से प्रभावित करता है. खास कर के गर्भवती महिलाओं को और अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए. जो महिलाएं प्रेग्नेंसी के वक्त स्मोकिंग करती हैं वो अपनी सेहत के साथ साथ अपने बच्चे की भी सेहत के साथ खिलवाड़ करती हैं. हाल ही में सामने आई एक स्टडी में ये बात सामने आई की जो महिलाएं प्रेग्नेंसी के वक्त धूम्रपान करती हैं, उनके बच्चे बड़े हो कर मोटापे का शिकार हो सकते हैं.

क्या कहती है रिपोर्ट

स्टडी की रिपोर्ट में बताया गया है कि जो महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान धूम्रपान करती हैं उनके बच्चे की स्किन में केम्रीन प्रोटीन फैल जाता है. बता दें यह एक तरह का प्रोटीन है जो शरीर में फैट कोशिकाओं द्वारा बनता है.

smoking of mother causes obesity in child

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कहीं आपके प्रेग्नेंट ना होने का कारण आपके पति की ये कमी तो नहीं?

क्या कहती है पहले की रिपोर्ट

इसी मामले में आई पिछली रिपोर्ट में कहा गया था कि मोटापे से पीड़ित लोगों के ब्लड में केम्रीन प्रोटीन भारी मात्रा में पाया जाता है. जबकि हाल में इसपर आई नई रिपोर्ट के मुताबिक प्रेग्नेंसी के दौरान स्मोकिंग करने से बच्चों की जींस में बदलाव आते हैं, जो शरीर की फैट कोशिकाओं को बनाने में अहम भूमिका निभाती हैं.

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बच्चों की अच्छी सेहत के लिए इस खबर को पढ़ें

क्या कहते हैं जानकार

शोध में शामिल जानकारों की माने तो स्टडी के आधार पर ये कहा जा सकता है कि जो महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान धूम्रपान करती हैं, उनके बच्चों को मोटे होने का अधिक खतरा होता है. हालांकि, इसके पीछे के कारण की अभी पूरी तरह से पुष्टि नहीं हो पाई है.

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ये हैं सैंपल

बता दें, इस स्टडी के लिए शोधकर्ताओं ने 65 प्रेग्नेंट महिलाओं को शामिल किया. नतीजों में सामने आया कि स्टडी में शामिल आधी से ज्यादा प्रेग्नेंट महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान धूम्रपान करती थीं.

अगर मां को है डायबिटिज तो बच्चों को हो सकती है ये बीमारी

आजकल लोगों में शुगर की शिकायत बेहद आम हो गई है. खानपान और खराब लाइफस्टाइल इसका सबसे बड़ा कारण है. ये परेशानी किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है. ऐसे में गर्भवती महिलाएं जो शुगर से पीड़ित हैं उनके लिए खतरा और अधिक हो जाता है. हाल ही में हुए एक शोध में ये बात सामने आई कि गर्भवती महिलाएं जिनको शुगर की बीमारी है उनके बच्चों में अटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऔर्डर (एएसडी) का खतरा बढ़ जाता है.

क्या है अटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऔर्डर (एएसडी)

ये एक तरह की मानसिक बीमारी है जिसमें व्यक्ति को समाजिक संवाद स्थपित करने में परेशानी आती है और वो आत्मकेंद्रित बन जाता है.

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क्या कहता है शोध

इस शोध में ये बात सामने आई कि यह खतरा टाइप-1 और टाइप-2 के विकार और गर्भावस्था के दौरान मधुमेह से पीड़ित होने से संबंधित है. शोध में पाया गया कि एएसडी का खतरा मधुमेह रहित महिलाओं के बच्चों की तुलना में उन गर्भवती महिलाओं के बच्चों में ज्यादा होता है, जिनमें 26 सप्ताह के गर्भ के दौरान मधुमेह की शिकायत पाई जाती है.

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कौन हैं सैंपल

इस शोध में 4,19,425 बच्चों को शामिल किया गया, जिनका जन्म 28 से 44 सप्ताह के भीतर हुआ था. यह शोध 1995 से लेकर 2012 के दौरान किया गया.

प्रेग्नेंसी में नहीं आती है नींद? आजमाएं तुरंत असर करने वाली ये 6 आसान टिप्स

प्रेग्नेंसी का वक्त महिलाओं के लिए बेहद खास होता है. इस दौरान महिलाओं को अधिक देखभाल की जरूरत होती है. इसके अलावा उन्हें अच्छी डाइट की जरूरत होती है ताकि जच्चा और बच्चा दोनों की सेहत पर किसी तरह का बुरा असर ना पड़े. इन्ही सारी जरूरी चीजों में अच्छी और पूरी नींद भी शामिल है.

प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं के शरीर में ऐसे कई बदलाव होते हैं जो उनकी सेहत पर असर डालते हैं. इस दौरान महिलाओं के हार्मोन्स में भी बहुत से बदलाव होते हैं जो उनकी दिनचर्या पर बुरा असर डालते हैं. इन बदलावों का नतीजा है कि कई बार गर्भवती महिलाओं को घबराहट महसूस होती है. ऐसे में उन्हें नींद नहीं आती, जिसका सीधा असर उनके बच्चे पर भी होता है.

ऐसे में हम आपको कुछ टिप्स बताने वाले हैं, जिसे फौलो कर के प्रेग्नेंट महिलाएं सुकून की नींद ले सकेंगी.

  • सोने से पहले हल्का म्यूजिक सुने. इससे मन शांत रहता है और अच्छी नींद आती है.
  • प्रेग्नेंसी के तीसरे महीने से कमर के बल ज्यादा देर तक ना सोएं. थोड़ी थोड़ी देर में करवट बदलते रहें. कोशिश करें कि अधिक समय बाईं करवट सोएं. इस तरह से सोने से ब्लड सर्कुलेशन ठीक रहता है.
  • दिन भर हल्का ही सही, पर कुछ ना कुछ खाते रहें. खाली पेट रहने से जी मिचलता है.
  • सोने से पहले गुनगुने पानी से नहाएं. ऐसा करने से शरीर की थकान दूर होती है और आपको अच्छी नींद आएगी.
  • रात में हल्के खाने का सेवन करें. एसिडिटी और अपच की समस्या से बचने के लिए मसालेदार और तली हुई चीजों का सेवन ना करें.
  • हेल्दी रहने के लिए हल्के एक्सरसाइजेज करते रहें. इससे आपके पैर दर्द और ऐंठन कम होगी.
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