मेरे औफिस का सहकर्मी मुझे परेशान करता है?

सवाल

मैं 27 वर्षीय अविवाहित युवती हूं. एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती हूं. औफिस का माहौल ठीक है पर अपने एक सहकर्मी से परेशान रहती हूं. दरअसल, वह मुझे व्हाट्सऐप पर दिनरात मैसेज भेजता रहता है. वह रिप्लाई भी करने को कहता है पर मुझे झुंझलाहट होती है. एक तो समय का अभाव दूसरा काम का बोझ. हालांकि उस के मैसेज मर्यादा से बाहर नहीं होते पर बारबार मैसेज आने से मैं परेशान हो जाती हूं. मेरा ध्यान भी काम से बंट जाता है. मैं नहीं चाहती कि उस सहकर्मी से मेरे औफिशियल व्यवहार पर ग्रहण लगे, पर साथ ही यह भी चाहती हूं कि वह मुझे इस तरह परेशान न करे. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

अगर आप को उस सहकर्मी का व्हाट्सऐप करना पसंद नहीं है, तो आप उसे सीधे तौर पर मना कर दें. आप कह सकती हैं कि संदेश काम से संबंधित हों तो ठीक है अन्यथा उलजलूल व्हाट्सऐप न करें. आप उसे यह भी कह सकती हैं कि औफिस के टाइम में व्हाट्सऐप पर टाइमपास करने से उस की छवि गलत बनेगी और बौस तक बात पहुंचने पर तरक्की पर ग्रहण लग जाएगा. वैसे लगातार उस के भेजे गए व्हाट्सऐप मैसेज को इग्नौर करेंगी और कोई जवाब नहीं देंगी तो कुछ दिनों बाद वह खुद ही व्हाट्सऐप करना बंद कर देगा. इस से सांप भी मर जाएगा और लाठी भी न टूटेगी.

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औफिस में कई बार कठिन परिस्थितियां आती हैं क्योंकि यहां आप को कैरियर के साथसाथ कलीग्स और बौस का भी खयाल रखना पड़ता है. इन मुश्किलों से निबटने के लिए काफी सावधानी और संयम बरतने की जरूरत पड़ती है. जानिए ऐसी ही कुछ मुश्किल सिचुएशंस और उन के समाधान के बारे में.

1. आप का पूर्व बौस आप का जूनियर बन जाए

आप जिस कंपनी में काम करते थे, वहां के बौस का आप बड़ा सम्मान करते थे. अचानक एक दिन आप को पता लगता है कि वही बौस आप की मौजूदा कंपनी में काम करने लगा है और अब वह आप को रिपोर्ट करेगा यानी अब वह आप का जूनियर है. ऐसी स्थिति में आप को सिचुएशन को बहुत ही आराम से हैंडिल करना होगा. इस बात का खयाल रखें कि पूर्व बौस को इंडस्ट्री में आप से ज्यादा अनुभव है और मौजूदा स्थिति में उसे कंफर्टेबल होना चाहिए. आप को उस से सलाह लेनी चाहिए. अगर आप अपने पूर्व बौस के साथ काम करने में सहज नहीं हैं तो आप प्रबंधन की मंजूरी से एक अलग टीम के साथ काम कर सकते हैं. अगर आप को मौजूदा स्थिति में ही काम करना है तो पूर्व बौस से काम की चुनौतियों को ले कर चर्चा करें. आप अब भी अपने पर्सनल स्पेस में पूर्व बौस का सम्मान करते रहें. अपने नियोक्ता को इस बारे में बता दें कि वह शख्स आप का बौस रह चुका है. अगर आप खुद ऐसे व्यक्ति को रिपोर्ट कर रहे हैं, जो पहले आप के जूनियर के तौर पर काम कर चुका है तो प्रोफैशनल की तरह व्यवहार करें.

कहीं ऑफिस पॉलिटिक्स बिगाड़ न दे मेंटल हेल्थ, बचने के लिए अपनाएं ये टिप्स

रौनक बेहद खुश मिज़ाज़ पर्सनालिटी का व्यक्ति था। जो घर और ऑफिस दोनों में बेहतर सामंजस्य बनाए रखता। ऑफिस में बॉस खुश और घर में परिवार वाले. लेकिन पिछले कुछ दिनों से वो बेहद उखड़ा-उखड़ा ,चिड़चिड़ा रहने लगा जिसका कारण था ऑफिस पॉलिटिक्स का शिकार होना.  हर किसी के ऑफिस में अलग अलग मिज़ाज़ के लोग होते हैं.  कुछ एक दूसरे की सफलता को देख कर खुश होते हैं तो कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो जलन महसूस करते हैं जिस कारण वह दूसरों को नाकारा साबित करना ,गॉसिपिंग या खुद को सर्वश्रेष्ठ घोषित करने की आड़ में उसे नुकसान पहुंचाना चाहते हैं जिस कारण अच्छी परफॉरमेंस वाला व्यक्ति भी तनाव में रहने लगता है. ऐसे में जरूरी हैं कि आपको इस परेशानी से बाहर निकलने के गुर आते हों. यहां हम ऐसे टिप्स साझा कर रहे हैं जो आपके लिए मददगार साबित होंगे.

खुद पर भरोसा रखें –

किसी भी परिस्थिति में खुद पर विश्वास न खोएं। कही सुनी बातों को सुनने की जगह अपने काम पर पहले से ज्यादा ध्यान लगाएं. हर टास्क समय पर पूरा करें.

नकरात्मकता से बचें –

ऐसे व्यक्ति बहुत खतरनाक सिद्ध होते हैं जो एक दूसरे की पीठ पीछे बुराई करते हैं. ऐसी नकरात्मक सोच रखने वाले व्यक्तियों से दुरी बनाएं. क्योंकि यही वो लोग होते हैं जो ऑफिस पॉलिटिक्स में महारत रखते हैं. इनकी गॉसिप में खुद शामिल होने से बचें.

सही जानकारी हासिल करें –

पूरानी कहावत हैं कि हमें आँखों देखी बातों पर विश्वास करना चाहिए न की दुसरो की बातों में आना चाहिए. जब तक आपके पास सही जानकारी न हो तब तक कोई रियेक्ट न करें.

बॉस से करें चर्चा –

यदि आप सही हैं और बात बहुत बढ़ गयी हैं तो अपने बॉस से उस विषय पर चर्चा अवश्य करें क्योंकि कई बार ऐसी परिस्थितियों में ऑफिस का माहोल भी बिगाड़ जाता है

प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ में अंतर –

प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ को एक दूसरे पर हावी न होने दे. कोशिश करें कि ऑफिस में हर किसी के साथ अपनी पर्सनल लाइफ का ज़िक्र न करें. साथ ही घर में आते ही ऑफिस के कामों से दुरी बनाएं और अपने परिवार के साथ वक़्त बिताएं।लेकिन यदि आप ऑफिस की किसी बात से परेशान है तो किसी ऐसे व्यक्ति से बात करें जो भरोसेमंद भी हो और आपकी बात को समझ सके.

इन 17 टिप्स के साथ बनाएं लाइफ को खुशहाल

सफलता और खुशहाल जीवन बिताना सभी चाहते है, पर किसी के लिए भी संभव नहीं है कि वह पूरा जीवन बिना उतार-चढ़ाव के बिता दें, क्योंकि जीवन है, तो नकारात्मकता आएगी ही. ये जरुरी नहीं कि जीवन के हर पल में आपको सफलता मिले और आपको सारी खुशियाँ हमेशा मिले. जीवन की ऐसी मुश्किल परिस्थितियों में सामंजस्य बनाए रखना बेहद जरुरी होता है, ये संतुलन दिमाग और शरीर के ज़रिये ही होती है, लेकिन कैसे? नया साल 2020 आ गया है. हम आपको बताते है खुशहाल जीवन बिताने के 20 सूत्र जिसे अपनाकर आप भी अपने जीवन को खुशहाल बना सकते है,

1. जिंदगी हमें जीने की कई मौके देती है, जिसे जीवन में सही तरीके से उतारकर व्यक्ति आगे बढ़ सकता है, अगर किसी कारणवश वह हाथ से निकल जाय, तो निराश होने की जरुरत नहीं, क्योंकि इससे आगे आने वाले मौके को आप खो सकते है, हमेशा अपना ध्यान वर्तमान की ओर रखें,

2. अपने लिए जिए किसी और के लिए नहीं, अपने से प्यार करें, आपको अपनी ख़ुशी खुद ही निर्धारित करनी पड़ती है, खुद से प्यार करने वाला ही दूसरे को प्यार कर सकता है.

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3. अपने आसपास के परिवार और मित्र को समझने की कोशिश करें, उनके साथ क्वालिटी समय बिताएं, किसी त्यौहार या अवसर पर साथ रहने की कोशिश करें.

4. किसी के साथ हुई गलत फहमी को मिलबैठकर सुलझाएं, क्योंकि आवेग या आवेश में कही गयी कोई बात कभी किसी को भी दुखी कर सकती है,

5. जिंदगी में हमेशा कुछ नया किसी से भी सीखने की कोशिश करें, सीखना बंद करने पर आप बहुतों से पीछे छूट सकते है,

6. अपने ज्ञान को लेकर अहंकार न करें, जिसे जब भी कुछ जानने की इच्छा हो उसे सहायता करें और उसे एवज में कुछ पाने की कभी कोशिश न करें,

7. अगर कोई व्यक्ति आपको नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है, तो उससे किनारा कर लेना ही उचित होता है,जितना संभव हो सकें उसकी गलतियों को माफ़ करें,

8. अगर कुछ समझाना ही है तो सही बातचीत के ज़रिये समझाने की कोशिश करें.

9. जिंदगी आसान नहीं होती, नकारात्मकता आपके आसपास हमेशा होने पर भी उसमें से सकारात्मकता को खोजकर निकालें,

10. जीवन में लोगों को महत्व देना सीखें, मजबूत रिश्ते ही आपकी मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत बनाते है,जिसमें माता-पिता, सगे सम्बन्धी और दोस्तों का शामिल होना बहुत जरुरी है, लेकिन सही दोस्तों का चुनाव करना बहुत जरुरी है, अगर सही दोस्त है तो वे आपकी जिंदगी को खुशियों से भर देंगे, पर बेईमान और धोखेबाज़ दोस्त आपके जीवन को ख़राब कर सकते है,

11. अपने अतीत से निकलकर वर्तमान में जीने की कोशिश करें, आलोचनाओं का सामना करने की क्षमता रखें, गलतियों को स्वीकार करने की भी साहस रखें और उससे सीख लें, किसी को उसका जिम्मेदार न बनाएं.

12. ज्यादा सुनने की क्षमता बढायें, इससे आप किसी भी समस्या का समाधान जल्दी कर पाते है, धन आपको ख़ुशी देती है, पर उससे अपनी खुशियों का आकलन न करें, मेहनत और कमिटमेंट के साथ किया गया हर काम धन लाती है, जरुरत मंदों की सहायता करने का हमेशा प्रयास करें.

13. अपने शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान नए साल में अवश्य रखें, अगर कोई बीमारी आपके आसपास है तो उसके लिए नियमित शारीरिक चर्चा और दवा का सेवन करें, क्योंकि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मानसिक अवस्था का निवास रहता है,

14. जिंदगी के रफ़्तार के साथ-साथ अपने शरीर को आराम देने की भी जरुरत होती है, इसलिए व्यस्त दिनचर्या से थोडा समय निकालकर अपने लिए रखें और उसमें जो भी अच्छा लगे उसे करने की कोशिश करें.

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15. बहुत सारे लोग काम में व्यस्त रहते हुए अपने शौक को भूलाकर जीवन जीते है, उन्हें अपने शौक पूरे करने के समय अवश्य निकालने चाहिए, ताकि आपको ख़ुशी मिले और जीवन में नीरसता न हो,

16. जिंदगी बहुत जटिल होने की वजह से नकारात्मकता आपके आस-पास हमेशा मौजूद रहती है, ऐसे में सही राह चुनना कई बार मुश्किल हो जाता है, लोग आपको सकारात्मकता सोचने की सलाह तो दे देते है पर उसमें से निकल पाना मुश्किल होता है, ऐसे में किसी एक्सपर्ट की राय लेना कभी भी ख़राब नहीं होता.

17. अधिक से अधिक मुस्कराने की कोशिश करें, इससे आपकी जिंदगी काफी हद तक आसान हो जाती है, कुछ लोग सुबह उठकर 5 मिनट तक मुस्कराते ही रहते है, ऐसा करने पर उनका सारा दिन अच्छा निकलता है.

अगर दोस्ती नहीं खोना चाहते तो भूलकर भी अपने यहां दोस्त को न लगवाएं नौकरी

कई महीनों की अथक मेहनत के बाद रवि शंकर जिस वेब पोर्टल में काम कर रहे थे, वह चल निकला था. अब पोर्टल को ठीकठाक विज्ञापन मिलने लगे थे और ज्यादा से ज्यादा तथा अच्छे कंटेंट की मांग भी होने लगी थी. ऐसे में एक दिन रवि को उनके एडिटर ने अपने केबिन में बुलाया और बोले-

‘रवि तुम्हारी नजर में कोई ठीकठाक कंटेंट राइटर हो तो उसे बुलाओ. अपने को एक दो और कंटेंट राइटर चाहिए होंगे.’

रवि संपादक जी के कहने पर एक मिनट को कुछ सोचने लगा और फिर बोला-

‘सर, मेरे एक दोस्त हैं, एक अखबार में फीचर पेज देखते थे. अच्छा लिख लेते हैं. कई विषयों पर पकड़ है और अनुभवी भी हैं. लेकिन…’

‘लेकिन क्या?’

संपादक जी ने रवि के इस तरह चुप हो जाने पर पूछा. इस पर रवि ने कहा-

‘सर, वो तनख्वाह थोड़ी ज्यादा मांगेंगे.’

अगर तुम कह रहे हों कि वह योग्य हैं और कई विषयों पर लिख लेते हैं तो तनख्वाह थोड़ी ज्यादा दे देंगे. आखिर काम भी अच्छा होगा.

‘हां, सर ये तो है.’

‘तो फिर उन्हें बुला लो.’

‘ठीक है सर, कब बुला लूं.’

‘कल बुला लो.’

‘ओके’

यह कहकर रवि अपनी वर्किंग डेस्क पर आ गया और वहीं से ललित वत्स को फोन किया और बोला, ‘कल मेरे दफ्तर आ जाओ, हमें एक सीनियर कंटेंट राइटर की जरूरत है. मेरी बाॅस से बात हो चुकी है, शायद तुम्हारा काम हो जायेगा.’ ललित ने अपने पुराने दोस्त रवि का धन्यवाद किया और अगले दिन दोपहर में वह उसके दफ्तर मंे पहुंच गया. ललित का व्यक्तित्व प्रभावशाली था, विषयों की समझ ठीक थी और उन्हें व्यक्त करने का तरीका भी वह अच्छा जानता था. कुल मिलाकर पहली मुलाकात में ही रवि के संपादक जी उससे प्रभावित हुए और तीसरे दिन से रवि व ललित सहकर्मी हो चुके थे.

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जैसा कि रवि को आभास भी था, जल्द ही ललित के काम करने की प्रभावशाली शैली तथा अच्छी जानकारियों के चलते वह दफ्तर में ‘नेक्स्ट टू बाॅस’ हो गया. रवि को हालांकि इससे कोई खास दिक्कत नहीं थी, फिर भी थोड़ी ईष्र्या तो होती ही है. शायद वह इस ईष्र्या को भी दबा लेता, लेकिन दफ्तर में दूसरे नंबर की हैसियत में आते ही ललित ने अपने पुराने दोस्त को न सिर्फ यह जताने की कोशिश की कि दफ्तर में वह उसके मातहत है बल्कि उसके काम पर अकसर मीनमेख निकालने लगा. हद तो तब हो गई, जब वह उस छोटे से दफ्तर में सार्वजनिक रूप से रवि के लिखने के ढंग की ही आलोचना नहीं करने लगा बल्कि एक दो बार तो सबके सामने ही उसकी स्टोरी को इस तरह रिजेक्ट कर दिया, जैसे वह अभी ट्रेनी राइटर हो. जल्द ही रवि के लिए दफ्तर में स्थितियां इतनी बुरी हो गईं कि उसे नौकरी छोड़नी पड़ी. दरअसल अब बाॅस को भी लगने लगा था कि ललित न सिर्फ बेहतर लेखक है बल्कि वह अच्छी तरह से आॅफिस भी संभाल सकता है तो उन्होंने रवि के जाने की परवाह नहीं की.

एच आर विशेषज्ञ कहते हैं कि अपने किसी दोस्त को अपने यहां नौकरी देकर परेशानी मोल नहीं लेनी चाहिए. अगर आपके हाथ में हो तो किसी अजनबी को भले अपने दफ्तर में साथ काम करने का मौका दे दें, लेकिन दोस्त को न दें. क्योंकि अजनबी को संभालना भी आसान होता है और निकलना तो और भी ज्यादा आसान होता है. चाहे आप बाॅस हों या फिर एक साधारण कर्मचारी अपने कार्यस्थल में किसी पुराने दोस्त के साथ होना हमेशा नुकसानदेह होता है. खासकर तब, जब दोस्त ईष्र्यालु हो, कार्यस्थल के प्रोटोकाॅल का पालन न करता हो और महत्वाकांक्षी हो. वास्तव मंे दोस्त अगर कार्यस्थल साझा करते हों तो अकसर सिरदर्द बन जाते हैं.

मान लीजिए सब कुछ ठीक है लेकिन दोस्त महत्वाकांक्षी है, वह आपसे आगे जाना चाहता है. सवाल है क्या आप यह स्थिति स्वीकार कर लेंगे? शायद ऐसा नहीं होगा. क्योंकि उसके आगे जाने का रास्ता आपको पीछे धकेलकर जा सकता है. अगर ऐसा कुछ भी न हो और आपके दोस्त का परफोर्मेंस उम्मीद से कम हो तो कंपनी से इसके लिए आपको बातें सुननी पड़ सकती हैं और अगर बेहतर हो तो उसके साथ आपकी पसंद न आने वाली तुलना की जा सकती है, ताकि आपको डाउन किया जा सके. कई बार यदि दफ्तर मंे आपके द्वारा लाया गया आपका दोस्त कामचोर है तो प्रबंधन आपसे उम्मीद करता है कि आप उस पर दबाव बनाएं, उसे समझाएं. अगर आप ऐसा करते हैं तो संभव है आपका दोस्त आपको अपना सिरदर्द मानने लगे और ऐसा नहीं करते तो हो सकता है कंपनी प्रबंधन आप पर दोष मढ़ने लगे कि आपने कैसा कर्मचारी ला दिया है.

लब्बोलुआब यह कि अपने कार्यस्थल में दोस्त को प्रवेश दिलाकर आप परेशानियां ही परेशानियां मोल लेंगे. मान लीजिए आपके दोस्त में तमाम सारी खूबियां हैं, वह आपके कार्यस्थल में आते ही छा जाता है. हर कोई उसकी तारीफ करने लगता है और दफ्तर की महिला कर्मचारी तो मानो उस पर फिदा ही हो जाती हैं, तब क्या होगा? निश्चित ही उसका प्रभामंडल आपको अच्छा नहीं लगेगा. आप बेहद ईष्र्यालु हो जाएंगे, आपको खुद पर गुस्सा आयेगा और सोचेंगे पता नहीं वह कौन सी घड़ी थी, जब मेरी मति मारी गई और मैंने अपने ही दफ्तर में अपने आपका डिमोशन कर लिया. ऐसी सैकड़ों परेशानियों का एक ही हल है कि कभी भी अपने किसी दोस्त को अपनी कंपनी में नौकरी न लगवाइये अगर आपको उसके साथ दोस्ती हमेशा हमेशा के लिए रखनी है.

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Coronavirus Effect: लोगों में सहकर्मियों को लेकर बदल गई है सोच

अभी भी सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं पूरी दुनिया में आधे से ज्यादा दफ्तर बंद हैं, जो दफ्तर खुले भी हैं, वहां भी आधी अधूरी उपस्थिति ही है. महीनों से लाखों करोड़ों लोग जिन्हें कभी हफ्ते में भी छुट्टी लेने की इजाजत नहीं थी, घरों में कैद हैं. पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर लोग या तो ‘वर्क फ्राम होम’ कर रहे हैं या फिर बिना वेतन की छुट्टी का दंश झेल रहे हैं. शायद इसलिए भी लोगों को अपने दफ्तरों की बहुत याद आ रही है. लेकिन एक और वजह है दफ्तरों को मिस करने की. दरअसल घर में रहने के दौरान बहुत से लोगों ने अपने दफ्तर के दौरान के व्यवहार पर मनन किया है और पाया है कि शायद उनका अपने सहकर्मियों से अच्छा व्यवहार नहीं था. इसलिए तमाम ऐसे लोगों ने मन ही मन यह संकल्प लिया है कि नये सिरे से जब दफ्तर अपनी पूरी क्षमता से खुलने शुरु होंगे तो उनका अपने सहकर्मियों के साथ व्यवहार अब पहले से भिन्न होगा.

यह कहने की जरूरत नहीं है कि दफ्तर की पाॅलिटिक्स पूरी दुनिया में होती है. शायद ये इंसानी स्वभाव है. लेकिन लंबे समय तक दफ्तर से दूर रहने के कारण अब ज्यादातर लोग यही कामना कर रहे हैं कि दफ्तर जल्दी से जल्दी खुलें और फिर से वे अपनी दफ्तरी जिंदगी को एंज्वाॅय करें. लंबे समय तक घर में रहने के बाद और अपनी अब तक की दफ्तरी जिंदगी पर मनन करने के बाद अब ज्यादातर लोगों ने यह सोचा है कि जब फिर से दफ्तर खुलेंगे तो अपने सहकर्मियों के प्रति उनका व्यवहार पहले से भिन्न होगा. एक अकेले हिंदुस्तान में ही नहीं, पूरी दुनिया में लोगों की अपने दफ्तर के लोगों से नहीं पटती है. पब्लिक डीलिंग दफ्तरों के ऐसे कर्मचारी जो ग्राहकों के बीच बड़े लोकप्रिय होते हैं, कई बार उनका भी अपने सहकर्मियों के साथ अच्छा रिश्ता नहीं रहता.

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हालांकि यह बात भी सही है कि दुनिया के किसी भी कोने में चले जाइये, छोटे या बड़े किसी भी किस्म के दफ्तर में चले जाइये, हर जगह ऐसे लोग मिल जाएंगे, जिन्हें अपने सहकर्मियांे में कोई न कोई कमी जरूर नजर आयेगी. हर किसी को लगता है कि वह तो बिल्कुल सही है, लेकिन उसका सहकर्मी यानी कुलीग सही नहीं है. ठीक उसी तरह जैसे हर किसी को अपने अच्छे और अपने पड़ोसी के खराब होने की गलतफहमी रहती है.

लेकिन दुर्भाग्य से हम अपने पड़ोसियों की ही तरह किसी हद तक अपने सहकर्मियों को भी तब तक नहीं चुन सकते जब तक कि हम एक नियोक्ता न हों अथवा अपनी लगी लगायी नौकरी पर लात मारने का जोखिम लेने के लिए तैयार न हों. मतलब यह कि सहकर्मी को भी पड़ोसी की तरह बदले जाने की कम ही उम्मीद होती है. ऐसे में भलाई इसी बात पर है कि क्यों न हम सहकर्मी से बनाकर चलें. यह कोई असंभव टास्क नहीं है. हममें से कोई भी अपने दफ्तर में सहकर्मियों के बीच सम्मान पा सकता है, लोकप्रिय हो सकता है बशर्ते वह सचेत रूप में ऐसा करना चाहता हो. वास्तव में दफ्तर में हम तभी सबके प्रिय या कि लोकप्रिय हो सकते हैं, जब हम खुद खुश रहें और अपने सहकर्मियों को भी खुश रखें या उन्हें खुश रहने का मौका दें.

याद रखिए दफ्तर में सिर्फ अपनी छवि के लिए ही लोकप्रिय होना जरूरी नहीं है बल्कि अपने बेहतर परफाॅर्मेंस के लिए भी यह जरूरी है. हर कोई कार्यस्थल पर दिन में अमूमन आठ घंटे गुजारता है. इस दौरान सहकर्मियों से हमें अपने संबंध के आधार पर तनाव, गुस्सा, खुषी या अच्छेपन का अहसास हो सकता है. अगर आपको लगता है कि आपके सहकर्मी आपके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते, इसलिए आप भी उनसे अच्छा व्यवहार नहीं करते तो एक बार फिर से सोचिए. जरा सोचिए कि अपनी सहकर्मी से आखिर संपर्क के दौरान क्या आपने उस पर सौ प्रतिषत ध्यान दिया था. पूर्ण ध्यान देने के लिए आवष्यक है कि भटकाने वाली चीजों को नजरंदाज करके सिर्फ उसी पर फोकस करें.

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दफ्तर में सहकर्मियों के बीच सम्मान पाने के लिए जरूरी नहीं है कि उनकी हां में हां बजाएं. आप उन्हें तव्वजो देकर, उनके दृष्टिकोण को सुनकर, उनकी राय का सम्मान करके भी उनसे प्यार और सम्मान पा सकते हैं. दफ्तर में लोकप्रिय होने के लिए हमें अच्छा वक्ता नहीं बल्कि अच्छा श्रोता होने की जरूरत होती है. अच्छा श्रोता बनकर ही आप अपने सहकर्मियों को सम्मानित करते हैं. इससे वह भी आपके प्रति सम्मान का भाव रखता है. अब चूंकि दफ्तर से लंबी जुदाई के बाद आपने दफ्तर की कीमत पहचान ली है, इसलिए अब जब दफ्तर खुलें तो अपने सहकर्मियों के साथ वाकई पहले से भिन्न रिश्ते रखें तभी इस बेचैनी का कोई फायदा है.

ये बातें बौस को नहीं पसंद

लेखिका- आरती श्रीवास्तव

जब तक आप खुद अपने बौस न हों, आप कहीं भी काम करें आप का कोई न कोई बौस जरूर होगा. बौस आप से खुश रहे, यह आप के लिए अच्छा है और एक प्रकार से जरूरी भी है. ‘द बौस इज औलवेज राइट’ यह कथन हम सब ने सुना होगा. हालांकि, इस का मतलब यह नहीं लगा लेना चाहिए कि बौस के साथ आप का कोई मतभेद नहीं होना चाहिए या बौस कभी गलत हो ही नहीं सकता. बौस भी हमारी तरह हाड़मांस का जीव होता है और हम जिन भूमिकाओं में हैं ऐसी ही भूमिकाओं से गुजरते हुए वह बौस की कुरसी तक पहुंचा होता है.

जैसे कर्मचारी अलगअलग प्रकार के होते हैं वैसे ही बौस लोगों की भी किस्में हुआ करती हैं. यदि बौस परिपक्व तथा संतुलित दृष्टिकोण वाला है तो अपने मातहतों से उस की अपेक्षाएं भी वाजिब होंगी. इस तरह के बौस को चापलूसी व जीहुजूरी नहीं पसंद होती. उत्तम कोटि के बौस अपनी टीम के सदस्यों के कार्य, उत्पादकता व आचरण पर नजर रखते हैं और इन्हीं के आधार पर कर्मचारियों का मूल्यांकन करते हैं. यदि आप निष्ठापूर्वक तथा ईमानदारी से संगठन में अपना काम करते हैं तो बौस की नजर में आप को अच्छा कर्मचारी माना ही जाना चाहिए. ज्यादा जरूरी यह जानना है कि योग्य बौस अपने कर्मचारियों में किन बातों को पसंद नहीं करते. ये सारी बातें काम से ही जुड़ी हुई हैं.

आप बौस के पास बिजनैस से जुड़ी किसी चर्चा के लिए जाते हैं और यह जाहिर होता है कि आप पूरी तैयारी के साथ नहीं गए हैं तो बौस को अच्छा नहीं लगता. आप के लिए सिर्फ विचार प्रकट करना पर्याप्त नहीं, विचार के पीछे तर्क भी बताने को तैयार रहना चाहिए. कुछ बौस निर्णय लेने में आंकड़ों पर बहुत निर्भर करते हैं. वहां अपनी बात को वजनदार बनाने के लिए आप को आंकड़ों पर आधारित अनुमानों के साथ जाना होगा.

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किसी को कुछ नया, कुछ अलग करने को कहा जाए और वह सीधे कह दे कि उस से यह नहीं होगा तो यह अच्छी छवि नहीं पेश करता. उत्तर होना चाहिए ‘हां, मैं कोशिश करता हूं और मदद की जरूरत होगी तो अमुक से पूछ लूंगा.’

संगठनों में काम का बोझ कभी कम, कभी सामान्य तो कभी ज्यादा हुआ करता है. कर्मचारियों की भूमिकाएं भले विभाजित हों, पर एक अच्छी टीम में जरूरत के अनुसार सदस्य एकदूसरे के साथ कार्य शेयर करते हैं.

प्रत्येक कर्मचारी को अच्छा टीम प्लेयर होना चाहिए. आप इस पर ध्यान देंगे तो दिनोंदिन बेहतर होते जाएंगे. जब कोई कंपनी कर्मचारियों का चयन कर रही होती है तो उम्मीदवार में टीमभावना की परख विशेष रूप से करती है. लोगों से ही टीम बनती है तथा संगठन टीमों को मिला कर बना होता है. हां, कार्य को ले कर आप से कोई बिलकुल अनुचित अपेक्षा की जाए तो आप विनम्रतापूर्वक अपना प्रतिरोध व्यक्त कर सकते हैं, करना भी चाहिए.

कंपनियां लोगों को उन की योग्यताओं, कुशलताओं तथा दृष्टिकोण अर्थात एटीट्यूड के आधार पर चुनती हैं. पर इस का मतलब यह नहीं होता कि आप हमेशा उसी स्तर पर बने रहेंगे. समय के साथ इन का विकास होना चाहिए, तभी तो आप का भी विकास होगा.

नया ज्ञान हासिल करने, नई कुशलताएं अर्जित करने तथा अपने दृष्टिकोण को व्यापक बनाने के प्रति उदासीनता आप में निहित संभावनाओं को साकार होने से तो रोकेगी ही, आप बौस की दृष्टि में भी कभी सामान्य से विशिष्ट नहीं हो पाएंगे.

मौका देख कर बौस के सामने औरों की कमियां गिनाने वाले शायद यह बताना चाहते हैं कि वे खुद कितने अच्छे हैं. समझदार बौस ऐसी आलोचनाएं सुन भले ही लें, कर्मचारियों के विषय में राय बनाने के लिए औरों की टिप्पणियों को महत्त्व नहीं देते.

बौस खुद भी तो देखता रहता है कि कौन कर्मचारी क्या और कैसे कार्य कर रहा है. निर्णय लेने में ढीला या अकुशल होना भी आप की छवि बिगाड़ता है. कई संगठनों में जो प्रणाली है, उस के अनुसार बौस को नीचे वालों की संस्तुतियों पर निर्णय लेना होता है. अगर यह संस्तुति करना आप का कार्य है तो आप की टिप्पणी स्पष्ट होनी चाहिए कि किसी प्रस्ताव विशेष को स्वीकार किया जाना है या नहीं, साथ ही, इस के साथ औचित्य भी बताना चाहिए.

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हमारा अपनी मुश्किलों को ले कर परेशान होना स्वाभाविक है. परंतु मुश्किलें और चुनौतियां आप की कंपनी के साथ भी होती हैं. संगठन के सभी कर्मचारियों को खुद रुचि ले कर जानना चाहिए कि कंपनी का कारोबार कैसा चल रहा है, इस के समक्ष किस प्रकार की चुनौतियां हैं तथा आप कंपनी की मदद किस प्रकार से कर सकते हैं.

सिर्फ अपनी सीट पर बैठे हुए कार्य करते रहना, कोई नवीन पहल न करना तथा प्रत्येक छोटेबड़े परिवर्तन का प्रकट या अप्रकट रूप से विरोध करना आप की छवि को खराब करता है. क्या आप ऐसा चाहेंगे?

औफिस की मुश्किल सिचुएशन

औफिस में कई बार कठिन परिस्थितियां आती हैं क्योंकि यहां आप को कैरियर के साथसाथ कलीग्स और बौस का भी खयाल रखना पड़ता है. इन मुश्किलों से निबटने के लिए काफी सावधानी और संयम बरतने की जरूरत पड़ती है. जानिए ऐसी ही कुछ मुश्किल सिचुएशंस और उन के समाधान के बारे में.

1. आप का पूर्व बौस आप का जूनियर बन जाए

आप जिस कंपनी में काम करते थे, वहां के बौस का आप बड़ा सम्मान करते थे. अचानक एक दिन आप को पता लगता है कि वही बौस आप की मौजूदा कंपनी में काम करने लगा है और अब वह आप को रिपोर्ट करेगा यानी अब वह आप का जूनियर है. ऐसी स्थिति में आप को सिचुएशन को बहुत ही आराम से हैंडिल करना होगा. इस बात का खयाल रखें कि पूर्व बौस को इंडस्ट्री में आप से ज्यादा अनुभव है और मौजूदा स्थिति में उसे कंफर्टेबल होना चाहिए. आप को उस से सलाह लेनी चाहिए. अगर आप अपने पूर्व बौस के साथ काम करने में सहज नहीं हैं तो आप प्रबंधन की मंजूरी से एक अलग टीम के साथ काम कर सकते हैं. अगर आप को मौजूदा स्थिति में ही काम करना है तो पूर्व बौस से काम की चुनौतियों को ले कर चर्चा करें. आप अब भी अपने पर्सनल स्पेस में पूर्व बौस का सम्मान करते रहें. अपने नियोक्ता को इस बारे में बता दें कि वह शख्स आप का बौस रह चुका है. अगर आप खुद ऐसे व्यक्ति को रिपोर्ट कर रहे हैं, जो पहले आप के जूनियर के तौर पर काम कर चुका है तो प्रोफैशनल की तरह व्यवहार करें.

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2. आप के बारे में गौसिप का माहौल

कई बार आप को पता चलता है कि औफिस में आप को ले कर काफी नैगेटिव बातें हो रही हैं जिन्हें सुन कर आप का मन दुखी भी हो जाता है और आप का औफिस जाने का भी मन नहीं करता. ऐसी स्थिति में आप को धैर्य से काम लेना होगा. अगर आप सब से उलझेंगे तो आप के रिश्ते सब के साथ और भी बिगड़ जाएंगे. वक्त के साथसाथ ऐसी बातों पर से लोग खुद ही अपना ध्यान हटा लेते हैं. वहीं, अगर आप को अफवाहें फैलाने वाले का पता चल जाए तो अलग से उस से बात जरूर करें और प्रेमपूर्वक मामला सुलझा लें.

3. आप का दोस्त काम में दक्ष नहीं है

औफिस में अगर आप को प्रमोशन दे कर टीम लीडर बनाया गया हो और आप के बैस्ट फ्रैंड को इग्नोर किया गया हो क्योंकि वह अपने काम में दक्ष नहीं है, यह भी हो सकता है कि नियोक्ता आप को यह जिम्मेदारी सौंप दें कि आप उस की परर्फौमैंस सुधारने के लिए काउंसलिंग करें, अगर वह खुद को इंप्रूव नहीं कर पाया तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाएगा. ऐसी स्थिति में अपने दोस्त से किसी रैस्टोरैंट वगैरह में मिलें. उसे बताएं कि आप को क्या जिम्मेदारी दी गई है और आप उसे दोस्त के रूप में पहली प्राथमिकता देते हैं, लेकिन फिर भी आप को बौस की बात को फौलो करना पड़ेगा. ऐसी स्थिति में वह आप की स्थिति को जरूर समझेगा और इस से आप दोनों का रिलेशन भी खराब नहीं होगा.

4. बौस के साथ सार्वजनिक झगड़ा

कभीकभी जब बौस बुरी तरह चिल्लाने लगता है तो अधीनस्थ कर्मचारी भी धैर्य खो देता है और वह भी पलट कर ऊंचे स्वर में जवाब देने लगता है. इस से मामला बिगड़ जाता है. कभी ऐसा हो जाए तो उस वक्त तुरंत अपनी जगह पर जा कर बैठ जाएं. लेकिन कुछ समय बाद सब के सामने बौस से गंभीरतापूर्वक क्षमा मांग लें. उन्हें बेहद सधी हुई भाषा में बता दें कि उन के जोर से बोलने के कारण आप ने अपना संयम खो दिया था, जो आप को नहीं खोना चाहिए था. इस से बौस को अपनी गलती समझ में आ जाएगी और आप के द्वारा सब के सामने माफी मांगने से उन के सम्मान को लगी ठेस भी दूर हो जाएगी. आप के और बौस के रिश्ते फिर से पहले जैसे हो जाएंगे.

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5. सहकर्मी जीवनसाथी को प्रमोशन मिल गया

अगर आप का पति/पत्नी आप की कंपनी में ही काम करता है और उसे प्रमोशन मिलता है तो आप को खुशी के साथसाथ ईर्ष्या भी होगी. खुद को थोड़ा समय दें और पता करें कि क्या आप इस स्थिति को उस कलीग के रूप में ले सकते हैं, जिसे प्रमोशन मिला है और आप को नहीं. इस बात को पहचानें कि आप की पहली प्राथमिकता निजी संबंध होने चाहिए. अगर आप को लगता है कि इस घटना का सामाजिक और निजी प्रभाव बहुत ज्यादा चुनौतीपूर्ण है तो आप कंपनी बदल सकते हैं. अगर आप को लगता है कि आप अपने इमोशंस पर कंट्रोल कर सकते हैं तो वहीं काम करते रहें. आप चाहें तो अपनी फीलिंग्स को अपने जीवनसाथी के साथ भी शेयर कर सकते हैं और पता कर सकते हैं कि वह इस के बारे में क्या सोचता है. अगर आप ऐसे व्यक्ति हैं जिसे प्रमोशन मिला है और जीवनसाथी उसी कंपनी में काम करता है तो पहले अपने निजी जीवन पर फोकस करना चाहिए और पार्टनर के प्रति संवेदनशील बनना चाहिए.

6. दो बौस के बीच जिन की न बनती हो

एकदूसरे को पसंद न करने वाले दो सीनियर्स के बीच में फंस जाना वाकई खतरनाक स्थिति है. ऐसी स्थिति में हर बौस आप से दूसरे बौस के बारे में जानकारी जुटाने में लगा रहेगा. इस से आप का समय बरबाद होगा और आप अपना काम पूरा नहीं कर पाएंगे. वैसे इस अनुभव से आप को पता लग जाएगा कि अलगअलग स्वभाव के 2 बौस को एकसाथ किस तरह से साधना है. आप को दोनों की निगाहों में अच्छा बने रहना होगा. किसी भी बौस की बुराई करने के बजाय हां में हां मिलाना अच्छा रहेगा. कोशिश करें कि किसी भी नैगेटिव चर्चा का हिस्सा बनने से बचें. कुछ समय बाद आप के बौस आप की इस आदत से काफी खुश होंगे कि आप पीठपीछे किसी की भी बातें नहीं करते.

7. नौकरी छोड़ना चाहते हैं

अगर आप जौब छोड़ना चाहते हैं तो किसी से चर्चा न करें. अगर कोई ऐसा कलीग है जिसे आप बचपन से जानते हैं और उस के साथ हर बार जौब स्विच की है तो उस से बातें शेयर कर सकते हैं. इस के अलावा किसी से बात शेयर करना खतरनाक हो सकता है.

8. शिकायत करना चाहते हैं

किसी की भी शिकायत करने से पहले फैक्ट्स जांच लें. ईमेल या किसी विश्वसनीय गवाह की मदद लें. अगर आप किसी जांचपड़ताल के बिना ही शिकायत करेंगे तो नुकसान आप को ही होगा.

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9. किसी से लड़ना चाहते हैं

औफिस के किसी सहकर्मी के साथ अनबन हो गई है और आप उसे मजा चखाना चाहते हैं. ऐसे में विचार करें कि क्या आप उस के साथ लड़ाई में जीत सकते हैं या नहीं. अगर नहीं जीत सकते तो रहने दें. ऐसा न हो कि खुद ही लड़ाई से परेशान हो कर रह जाएं.

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