ऑनलाइन पढ़ाई से बच्चों पर पड़ रहा बुरा असर

कोविड-19 की वजह से स्कूल, कॉलेज सब बंद हो गए हैं और बच्चों को घर में ही ऑनलाइन पढ़ाई करनी पड़ रही है.भले ही बच्चे को इससे कुछ फायदा हो भी जाए लेकिन इस ऑनलाइन पढ़ाई से जो मानसिक और शारीरिक तनाव हो रहा है उसका क्या ? इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के कई देशों में लॉकडाउन किया गया, लोगों का घरों से बाहर निकलना बंद हो गया और स्कूल-कॉलेज तो पिछले कई महीने से पूरी तरह से बंद हैं और इसी कारण से ऑनलाइन क्लासेस शुरु हुए लेकिन इससे होने वाली बीमारी ने न सिर्फ लोगों की सेहत पर बुरा असर डाला है बल्कि उनकी रोजमर्रा की जिंदगी भी पूरी तरह से बदल गयी है. बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर तो पढ़ ही रहा है लेकिन जो ऑनलाइन पढ़ाई की शुरुआत हुई उससे उनके सेहत पर भी बुरा असर पड़ रहा है.

स्कूल में पढ़ाई के साथ कई और नई चीजें सीखते हैं बच्चे

जब बच्चे स्कूल जाते हैं तो वहां वे सिर्फ पढ़ाई ही नहीं करते बल्कि साथ ही साथ वे नए लोगों से मिलते हैं दूसरों के साथ खेलते हैं यहां तो कोविड ने उनका बाहर तक खेलना बंद करवा दिया दोस्त सामाजिक कुछ रूल-रेगुलेशन में रहना सीखते हैं जो कि घर पर बिल्कुल भी संभव नहीं है.स्कूल में खेलते-कूदते हैं, शारीरिक गतिविधियां करते हैं,लेकिन घर से ऑनलाइन क्लासेज के कारण बच्चे ये सारी चीजें नहीं कर पा रहे हैं और इसका भी उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है.

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लैपटॉप और फोन का इस्तेमाल

घर से पढ़ाई करने का मतलब है कि बच्चे अब उन चीजों का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं जिसे इस्तेमाल करने से पैरंट्स पहले उन्हें मना करते थे।टीवी, लैपटॉप, कम्प्यूटर, मोबाइल जितनी भी ऑनलाइन क्लासेज हैं इनकी वजह से बच्चे घंटो मोबाइल और लैपटॉप स्क्रीन के सामने बैठे रहते हैं जिसका उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर भी बुरा असर पड़ रहा है.

बच्चे की शारीरिक सेहत पर असर

कम्प्यूटर, लैपटॉप, आईपैड या मोबाइल फोन के सामने घंटों बैठे रहने की वजह से बच्चों के शरीर पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है,जब बच्चा बहुत देर तक एक ही जगह पर एक ही पोजिशन में बैठा रहेगा तो जाहिर है कि शरीर पर इसका असर अच्छा तो बिल्कुल नहीं होगा.

आंखें पर बुरा असर और सिरदर्द

टीवी, कम्प्यूटर या फोन की स्क्रीन को घंटों तक लगातार देखते रहने से बच्चों की आंखों की रोशनी कमजोर होने लगती है और उन्हें ज्यादा पावर का चश्मा लगाने की जरूरत पड़ने लगती है. अगर समय रहते इन समस्याओं पर ध्यान न दिया जाए तो ये आगे चलकर बढ़ सकती हैं. बच्चों की मांसपेशियों और जोड़ों में भी दर्द की समस्या हो सकती है इसलिए इसका भी खास खयाल रखें.

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पैरंट्स को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए

• बच्चे लगातार स्क्रीन की तरफ न देखें बल्कि बीच-बीच में पलकों को झपकाते रहना जरूरी है
• बच्चों की आंखों की रोशनी ठीक रहे और उन्हें आंखों से जुड़ी कोई समस्या न हो इसके लिए उन्हें गाजर, पालक, कद्दू का जूस और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन जरूर कराएं.
• मोबाइल या लैपटॉप को बच्चे की आंखों से कम से कम 2 फीट की दूरी पर रखें
• बच्चे के स्क्रीन टाइम पर पैरंट्स नजर रखें, पढ़ाई के अलावा बहुत ज्यादा देर तक गैजट्स का इस्तेमाल न करने दें.
• बच्चे की आंखों की जांच करवाएं.

कामकाजी मांओं के लिए औनलाइन पढ़ाई का चैलेंज

आजकल कोविड-19 की वजह से बच्चों के स्कूल बंद हैं और उन के ऑनलाइन क्लासेज चल रहे हैं. इधर कामकाजी महिलाओं को अपने ऑफिस के काम भी घर पर करने होते हैं. पहले मांएं बच्चों को स्कूल या खेलने भेज कर चैन से अपना काम करती थीं मगर अब हर समय बच्चे घर पर होते हैं. कामकाजी माँओं के लिए अपने काम के साथसाथ बच्चों की ऑनलाइन क्लासेज पर नजर रखना आसान नहीं होता. वे न तो अपना काम छोड़ सकती हैं और न बच्चों की पढ़ाई के प्रति ही लापरवाह हो सकती हैं. नतीजा यह होता है कि दोनों के बीच फंस सी जाती हैं.

आइए जानते हैं कामकाजी महिलाओं के लिए ऑनलाइन पढ़ाई की क्या चुनौतियां हैं और उन से कैसे निपटा जा सकता है,

1.सब से पहली चुनौती तो यह आती है कि मां अपने ऑफिस का काम करे या बच्चे की ऑनलाइन पढ़ाई ठीक चल रही है या नहीं इस पर नजर रखे.

2.कई बार बच्चे पढ़ाई कम और दूसरे साइट्स खोल कर ज्यादा बैठ जाते हैं. वे लैपटॉप या फोन पर गलत चीजें देख सकते हैं. उन का मन एकाग्र नहीं होता और कई बार तो वे ऑनलाइन क्लास बंक कर के या क्लास खत्म कर के गेम्स खेलने लग जाते हैं.

3.ऑनलाइन क्लासेज के दौरान बच्चों की आंखों पर भी असर पड़ता है. लाइटिंग आदि की सही व्यवस्था न हो या क्लासेज लंबी चलें तो उन्हें तकलीफ हो सकती है.

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4.ऑनलाइन क्लास के लिए घर में नेटवर्क प्रॉब्लम न होना भी जरूरी है. साथ ही कई दफा यह समस्या भी आ जाती है कि घर में लैपटॉप और स्मार्ट फ़ोन की संख्या कम होती है जब कि वर्क फ्रॉम होम और ऑनलाइन क्लासेस करने वाले सदस्यों की संख्या ज्यादा हो जाती है. ऐसे में महिला को सब का ख़याल रखना पड़ता है.

5.बच्चों की क्लासेज़ और अपने ऑफिस के काम के साथ घर के काम निपटाना मां के लिए एक चुनौती भरा काम होता है.

इस संदर्भ में किंडरपास की फाउंडर शिरीन सुल्ताना से विस्तार में बातचीत हुई. उन के सुझाये कुछ उपाय निम्न हैं,

1.बच्चों का ध्यान भटकने से बचाएं

बच्चों का ध्यान न भटके इस के लिए मां को पेरेंटिंग कंट्रोल फीचर्स अपनाने होंगे. आप लैपटॉप या मोबाइल की सेटिंग्स में कुछ परिवर्तन कर बच्चों को गलत साइट या गेम ओवरडोज से बचा सकती हैं.

सब से पहले तो आप जिन साइट्स या गेम्स से बच्चों को दूर रखना चाहती हैं उन्हें ब्लॉक कर दें. सर्च इंजन जैसे गूगल, बिंग आदि के प्रिडिक्टिव टेस्ट का ऑप्शन बंद कर दें यानि इन में सर्च करते समय ऑटो सजेशन का फीचर ऑन न हो और बच्चे सर्च करते समय कुछ और न देखने लग जाएं. बच्चे छोटे हैं तो आप गूगल के बजाय बच्चों को kiddle.co सर्च इंजन का प्रयोग करना सिखाएं. यह पूरी तरह सुरक्षित है. डिफॉल्ट में kiddle.co लगा दें.
इसी तरह कोई लिंक वगैरह यूट्यूब के बजाय बच्चों को safetube.net पर खोलने की आदत डलवाएं. इस में कोई गलत कंटेंट नहीं होता.

बीचबीच में अपने काम से ब्रेक ले कर बच्चों पर नजर रखती रहें. वे क्या पढ़ रहे हैं और कितना समझ रहे हैं इस पर गौर करें. लैपटॉप, फोन आदि की हिस्ट्री चेक करती रहें कि बच्चे ने कहीं कोई गलत साइट तो नहीं खोली थी. बच्चे को पहले से ही यह बात समझा कर रखें कि गलत चीजों से दूर रहें. गलत लिंक ओपन न करें और उन्हें फॉरवार्ड भी न करें. इस से वायरस आ सकते हैं दिमाग में भी और लैपटॉप/फोन में भी. उन्हें समझाएं कि अपनी प्रिवेसी कैसे कायम रखी जा सकती है.

2.घर में बनाएं अलग वर्कस्पेस

अपने काम के लिए और बच्चों की पढ़ाई के लिए सोच-समझ कर जगह तय करें. इस स्थान पर अच्छी रोशनी हो ताकि बच्चे एकाग्रता के साथ पढ़ सकें. घर में उन्हें क्लासरूम जैसा अहसास हो. यह जगह बच्चे के सोने, खेलने के स्थान से दूर हो. इस के आसपास खिलौने आदि न रहें. सही माहौल में बच्चे जल्द ही ढल जाएंगे और इस स्थान पर क्लासरूम जैसा अनुभव पा सकेंगे.

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3.डिवाइस करें तैयार

औनलाईन लर्निंग ठीक से जारी रहे इस के लिए वायरलैस कनेक्शन होना ज़रूरी है. ऐसा कनेक्शन चुनें जिस का बैण्डविड्थ आप के काम और बच्चों की पढ़ाई दोनों के लिए उपयुक्त हो . उचित स्क्रीन चुनें ताकि टेक्स्ट देखते समय आंखों पर ज़ोर न पड़े. अगर आप का काम और बच्चे की औनलाईन कक्षा का समय एक ही है तो सुनिश्चित करें कि आडियो सिस्टम में किसी तरह की रूकावट न आए. इस के लिए आप हैडफोन्स का इस्तेमाल कर सकती हैं.

4.दिनचर्या और अनुशासन

लाॅकडाउन केे कारण लोगों की दिनचर्या बदल गई है. चीजें धीमी गति से बढ़ रही हैं. मगर घर में भी स्कूल जैसी दिनचर्या बना कर आप बच्चे के जीवन को व्यवस्थित बना सकती हैं. बच्चों को समय पर जगाएं, क्लास का समय होने से पहले नाश्ता दें, दिन के टाईमटेबल के अनुसार उन की किताबें तैयार करें. सुनिश्चित करें कि क्लास के दौरान बच्चे बारबार ब्रेक न लें. शाम में कुछ समय होमवर्क के लिए तय करें. इस तरह का अनुशासन बनाए रखना आसान नहीं है लेकिन अगर इसे आदत बना लिया जाए तो जीवन आसान हो जाएगा.

5.ब्रेक के लिए समय निर्धारित करें

बच्चे खासकर छोटे बच्चों की एकाग्रता 25 मिनट से ज़्यादा नहीं रहती. बच्चों से कहें कि ब्रेक के दौरान किसी पालतू जानवर के साथ खेलें, थोड़ा चलेंफिरें या परिवार के सदस्यों के बीच समय बिताएं. इसतरह का छोटा सा ब्रेक आप को और आप के बच्चे के दिमाग को तरोताज़ा कर देता है और चीज़ें व्यवस्थित रूप से चलती रहती हैं.

6.अपने बच्चे की ज़रूरत को समझें

हर बच्चे के सीखने का तरीका अलग होता है. कुछ बच्चों के लिए औनलाईन क्लासेज़ आसान हैं तो वहीं कुछ को इस के लिए ज़्यादा मार्गदर्शन की आवश्यकता है. प्ले स्कूल या छोटी कक्षाओं के बच्चों के लिए सुबह क्लास शुरू होते ही पूरे दिन के विषयों की जानकारी दे दी जाती है. कोशिश करें कि आप इस समय बच्चे के साथ रहें. इस से आप बच्चे की ज़रूरत के अनुसार पूरे दिन के लिए तैयार रहेंगी. आप अपने बच्चे के लर्निंग के तरीके को सब से अच्छी तरह जानती हैं. बच्चे के पाठ को छोटेछोटे हिस्सों में बांटें और उस के पढ़ने के लिए ऐसा समय तय करें जब बच्चा सब से ज़्यादा ध्यान दे सके.

7.सुनिश्चित करें कि आंखों पर तनाव न बढ़े

आजकल ज़्यादातर मातापिता बच्चों के स्क्रीन टाईम को लेकर परेशान हैं. बच्चों में सिरदर्द, आंखों पर दबाव की शिकायत बढ रही है. इस के लिए 20 :20: 20 आसान नियम है. हर 20 मिनट के बाद 20 सैकण्ड के लिए 20 फीट दूरी पर स्थित किसी चीज़ को घूरें.

ऑनलाइन पढ़ाई का असर बच्चों की आंखों पर न पड़े इस के लिए आप बच्चे की स्क्रीनटाइम लिमिट कर दें. पढ़ाई के बाद तुरंत टीवी या वीडियो में न उलझने दें. उन्हें बीचबीच में स्क्रीन से दूर करते रहे इस के लिए आप खुद बच्चों के साथ कैरम ,चेस, बैडमिंटन जैसे खेल खेल सकती हैं या उन्हें बाहर दूसरे बच्चों के साथ खेलने के लिए भेज सकती हैं. आप रोज बच्चे को एक घंटे कोई किताब पढ़ कर सुना सकती हैं या उसे खुद पढ़ने के लिए बोलें. वीडियो कॉल पर उन की रिश्तेदारों से बात कराएं या ग्रीटिंग कार्ड्स, पेंटिंग आदि बनाने को कहें. आप बच्चे की दोस्त बन कर रहे हैं न कि स्ट्रिक्ट पैरेंट बन कर.

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बच्चे को आई एक्सरसाइज करने या थोड़ी थोड़ी देर पार्क में घूमने के लिए भी बोलें. आप बीचबीच में ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान बच्चे की परफॉर्मेंस पर नजर रखती रहें. क्लास खत्म होने के बाद उन को बैठा कर पूछे कि आप आज क्याक्या पढ़ाया गया और किस विषय में उसे कुछ समझने में कठिनाई महसूस हुई. आप बच्चों की डेली बेसिस पर रिविज़न कराएं न कि वीकली बेसिस पर. बच्चों को टीचर या दोस्तों के आगे कभी न डांटे मगर क्लास के बाद उसे समझाने से न चूकें कि क्या गलत है और क्या सही.

अध्यापकों, अभिभावकों और बच्चों के लिए घर से पढ़ाई, लर्निंग का एक नया तरीका बन चुका है. इसे प्रभावी बनाने के लिए सकारात्मक रहें और धैर्य रखें. एक साथ मिल कर आप स्थिति को अधिक अनुकूल बना सकते हैं.

 ऑनलाइन पढ़ाई कितना सही कितना गलत 

कोरोना काल में बच्चों की पढाई एक समस्या बन चुकी है. पिछले कुछ महीनों से बच्चे एजुकेशन इंस्टीट्यूशन में जाना भूल चुके है. स्कूल और कॉलेजों में बच्चों को पढ़ाने के लिए ऑनलाइन कोर्सेज जारी है और माता-पिता पूरा दिन बच्चों की पढाई को लेकर व्यस्त है, ताकि स्कूल या कॉलेज खुलने के बाद बच्चा बाकी बच्चों की तरह ही अपने पाठयक्रम को लेकर तैयार रहे. ये सोचना शायद आसान है, पर इसका असर बच्चों पर क्या पड़ रहा है, इसे समझना जरुरी है. दिन भर घर में बैठकर पढना शायद बच्चों के लिए भी परेशानी और चिढ़चिढ़ेपन का सबब बन रही है, जिसे न तो माता-पिता और न ही स्कूल अथॉरिटी समझ पा रहे है.

1. ट्रेडिशनल क्लासेज की कमी

बच्चों पर इसके असर के बारें में पूछे जाने पर पुणे के मदरहुड हॉस्पिटल के पेडियेट्रिकस एंड नियोनेटोलोजिस्ट डॉ.तुषार पारिख कहते है कि अभी दो तरह के क्लासेज हो रहे है, जिसमें टीचर रिकॉर्ड कर उसे भेज रहे है और बच्चे अपनी सुविधानुसार पढ़ रहे है. इसके अलावा कुछ इंटरेक्टिव क्लासेस भी चल रहे है, जिसमें बच्चे एक साथ होने पर टीचर क्लासेज ले रहे है. ये ट्रेडिशन क्लासेज से काफी अलग है और इसमें बच्चों के साथ अध्यापक का जितना इंटरेक्शन होता है, वह अब नहीं हो पा रहा है. इसमें बच्चा कितना अटेंटिव है, वह देखना अब मुश्किल है. रिकार्डेड मैटर में कितना सही वे समझ रहे है, वह  भी पता नहीं. अभी ये शुरुआत है. इसलिए तकनीक की जानकारी उन्हें कम थी. टाइपिंग भी जरुरी नहीं. इसमें सही समय पर उठाना, नियम से स्कूल जाकर पढाई करना आदि सारे जो एक अनुशासन के दायरे में होता है वह अब नहीं हो रहा है. इसमें उनकी हैण्ड राइटिंग, राइटिंग स्किल सबमें कमी आ रही है. इसे देखने की जरुरत है. छात्र और बच्चों का कम्युनिकेशन इतना अच्छा नहीं है. समय के साथ-साथ बच्चे और टीचर भी सीख पाएंगे. कई स्कूल भी इस समस्या का सामना कर रहे है, क्योंकि टीचर भी इस तरीके की सॉफ्टवेयर से परिचित नहीं है. उन्हें भी सीखना पड़ रहा है. कई माता-पिता को भी इसमें समस्या आ रही है, क्योंकि कुछ बच्चे लैपटॉप तो कुछ टैब पर काम कर रहे है. 

2. स्क्रीन लिमिट होना जरुरी  

इसके आगे डॉक्टर कहते है कि छोटे बच्चों को कितना समय कंप्यूटर के आगे बिताना सही होता है, पूछे जाने पर डॉक्टर तुषार कहते है कि बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम लिमिट में होने की जरुरत होती है. स्क्रीन से निकलने वाला ब्लू लाइट उनके आँखों के लिए हानिकारक होता है. मसलन, आँखों के ब्लिंक कम करने की वजह से आँखों का ड्राई हो जाना, आँखों में इरीटेशन होना, सिरदर्द आदि की शिकायत होती है. आँखों का पॉवर भी बढ़ सकता है. अभीतक इस पर किसी का ध्यान नहीं गया है, लेकिन 30 से  45 मिनट एक साथ करवाना ठीक रहता है. इसके बाद थोडा आराम आँखों को देने की जरुरत है. इसके लिए दूर की चीजो को देखना चाहिए. इसके अलावा उनकी पोस्चर ठीक होनी चाहिए. कही भी बैठकर या लेटकर पढाई नहीं करनी चाहिए. इससे बैक पैन और नेक पैन की समस्या होती है.

3. डाइट पर रखे ध्यान 

डाइट की भी खास ध्यान रखने की जरुरत है, क्योंकि इन दिनों बच्चों की मूवमेंट कम होने की वजह से वे आलसी और मोटापे के शिकार हो रहे है, क्योंकि उन्हें बाहर जाकर खेलने का अवसर नहीं मिल पा रहा है. वे अभी घरों में बंद है. विटामिन डी की कमी उनमें हो सकती है. माता-पिता को इसमें खास ध्यान देने की आवश्यकता है. उन्हें अधिक फैट युक्त भोजन देने से बचना चाहिए. ऑयली और मीठी चीजों को भी देने से बचना चाहिए. संतुलित भोजन देने की जरुरत है. जिससे उनकी इम्युनिटी बनी रहे. शारीरिक अभ्यास में स्किपिंग, सोसाइटी के आसपास खेलना, बैडमिन्टन खेलना आदि करने के लिए उन्हें प्रेरित करें. इसके अलावा उनसे बातें करना, घर की वातावरण को हल्का करते रहना है. 

4. कम हुई कुछ बीमारियाँ 

कोरोना में अच्छी बात ये हुई है कि घर पर रहने और बच्चों की सही देखभाल करने की वजह से बच्चों में रेगुलर फ्लू और पेट की बीमारियाँ कम देखी जा रही है. इससे भविष्य में पेरेंट्स बच्चे की सही देखभाल आगे चलकर करने में समर्थ हो सकेंगे. पेरेंट्स को समझना है कि कोरोना के साथ सबकों जीना पड़ेगा, इसलिए रूटीन वैक्सीनेशन बच्चों का अवश्य करवा लें, ताकि दूसरी बीमारी से बच्चों को बचाया जा सकें. कोरोना का असर बच्चों में अधिक नहीं है, लेकिन सावधान रहने की जरुरत बच्चों को भी है. 

 बड़े बच्चों के लिए डॉ. तुषार का कहना है कि 40 से 50 मिनट ऑनलाइन काम करने के बाद थोडा आराम करें. अपनी दृष्टि को दूर तक को ले जाएँ, इससे आँखों को आराम मिलेगा. इम्युनिटी बढ़ाने के लिए किसी दवा का प्रयोग न करें. अच्छा भोजन लें, नींद पूरी करें, सही मात्रा में पानी का सेवन करें. हर 4 घंटे में पानी पियें. हरी सब्जियां, फ्रेश फल, अंडे, दाल आदि सभी नियमित और संतुलित मात्रा में लें. थोडा व्यायाम करें और खुश रहे.

5. शारीरिक संरचना पर पड़ता है प्रभाव 

ऑनलाइन पढ़ाई और मनोरंजन के लिए बच्चे आजकल 8 से 10 घंटे कम्प्यूटर के आगे बैठ रहे है, जिसका परिणाम आज भले ही न दिखे कुछ दिनों बाद देखने को मिलेगा. दिल्ली के अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल के ओर्थोपेडिक सर्जन डॉ. अश्वानी मायचंद का कहना है कि बच्चों को ऑनलाइन एक्टिविटी की वजह से दो मुख्य हार्मफुल फैक्टर हो रहा है. स्कूल में सभी बच्चे कुर्सियों पर बैठते है, लेकिन घर पर वे कही भी किसी भी पोस्चर में बैठ जाते है, इससे बैक मसल्स और पैर के मसल्स पर असर पड़ता है. कभी दर्द तो कभी मसल्स में खिचाव आ जता है, जिसके लिए वे पैन किलर लेते है या फिर जेल लगाते है. बहुत सारे बच्चे जो कॉम्पिटीशन के एग्जाम इस साल देने वाले है. कोरोना की वजह से उनकी परीक्षाएं टलती जा रही है, इससे उनका एग्जामिनेशन पीरियड ख़त्म नहीं हो रहा है. इसके अलावा लॉक डाउन की वजह से किसी प्रकार की फिजिकल एक्टिविटी बच्चों की नही हो पा रही है, जिससे उन्हें विटामिन डी नहीं मिल पा रहा है और दर्द की शिकायत होती रहती है. माता-पिता को ऐसे में लगता है कि उबके बच्चों को आर्थराइटिस हो गया है और वे उसका टेस्ट करवाना चाहते है. मेरे हिसाब से बड़े बच्चों को एक साथ में 2 से ढाई घंटे तक स्क्रीन के आगे बैठना सही होता है. आउटडोर एक्टिविटी करवाने की कोशिश सनलाइट  में करवाने की जरुरत है. बीच-बीच में ब्रेक देना, थोड़ी स्ट्रेचअप करना, हल्का फुल्का व्यायाम करने की अभी बहुत जरुरत है. साथ ही आँखों को इनफिनिटी दिशा में देखने के लिए प्रेरित करें, ताकि आँखों को रिलैक्ससेशन मिले. 

6. प्रतियोगी परीक्षाओं का भार 

डॉक्टर अश्वानी का आगे कहना है कि असल में बच्चे एग्जाम के सिर्फ दो महीने पहले ही अधिक मेहनत करते है. इस समय कोरोना की वजह से ये पीक समय तीसरी बार प्रतियोगी परीक्षाओं का आ चुका है. जब भी पीक आता है तो शरीर का कोर्टिसोल लेवल बढ़ जाता है, जिससे स्ट्रेस लेवल बढ़ जाता है, जो हार्ट और आर्टरी को प्रभावित करता है. इन 6 महीने में बच्चों को 3 बार स्ट्रेस दे रहे है. इसके लिए किसी को दोषी नही माना जा सकता, पर जरुरत है कि उन्हें इस तनाव से जितना हो सके दूर रखने की कोशिश की जाय जो उनके भविष्य के लिए भी अच्छा रहेगा. खासकर जो बच्चे एक साल ड्राप कर एग्जाम देने वाले है. उनके लिए सुझाव ये है कि जो भी लोग कोचिंग ऑनलाइन क्लास ले रहे है, उनमें योग या मैडिटेशन के क्लास भी शामिल होने चाहिए, ताकि वे रिलैक्स होकर अपने आप को शांत रख सकें.

7. शरीर के रिदम को जाने 

सबको सावधान करते हुए डॉक्टर कहते है कि शरीर का एक रिदम होता है. उसके विरुद्ध जाने पर आपको कई बिमारियों का सामना करना पड़ता है. लोगों को इसके बारे में जागरूकता कम है. शरीर का ध्यान सबसे पहले रखना है, इसे बहुत कम लोग समझते है. परफोर्मेंस पर अधिक ध्यान देते है, जो गलत है. आजकल के माता-पिता बच्चों को लेकर बहुत अधिक एम्बीसियस हो चुके है. वे चाहते है कि उनका बच्चा छोटी उम्र में ही सब जान लें और सबसे अव्वल हो जाय , जो गलत है. इससे बच्चे के मानसिक अवस्था पर दबाव पड़ता है. पेरेंट्स के लिए सुझाव ये है कि इस समय बच्चों पर पढाई का दबाव अधिक न बढाएं, उनके साथ रहें, उन्हें रिलैक्स रहने दें, खुश रखें, ये समय अच्छा है, जिसमें पूरा परिवार साथ रह रहा है. खाने के लिए बच्चों को मीठा अधिक न दें. उन्हें फल, फ्रेश सब्जियां अधिक भोजन में दें, जिसमें पोषक तत्व अधिक हो और बच्चे आसानी से पचा सकें.  

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