ऑनलाइन पढ़ाई कितना सही कितना गलत 

कोरोना काल में बच्चों की पढाई एक समस्या बन चुकी है. पिछले कुछ महीनों से बच्चे एजुकेशन इंस्टीट्यूशन में जाना भूल चुके है. स्कूल और कॉलेजों में बच्चों को पढ़ाने के लिए ऑनलाइन कोर्सेज जारी है और माता-पिता पूरा दिन बच्चों की पढाई को लेकर व्यस्त है, ताकि स्कूल या कॉलेज खुलने के बाद बच्चा बाकी बच्चों की तरह ही अपने पाठयक्रम को लेकर तैयार रहे. ये सोचना शायद आसान है, पर इसका असर बच्चों पर क्या पड़ रहा है, इसे समझना जरुरी है. दिन भर घर में बैठकर पढना शायद बच्चों के लिए भी परेशानी और चिढ़चिढ़ेपन का सबब बन रही है, जिसे न तो माता-पिता और न ही स्कूल अथॉरिटी समझ पा रहे है.

1. ट्रेडिशनल क्लासेज की कमी

बच्चों पर इसके असर के बारें में पूछे जाने पर पुणे के मदरहुड हॉस्पिटल के पेडियेट्रिकस एंड नियोनेटोलोजिस्ट डॉ.तुषार पारिख कहते है कि अभी दो तरह के क्लासेज हो रहे है, जिसमें टीचर रिकॉर्ड कर उसे भेज रहे है और बच्चे अपनी सुविधानुसार पढ़ रहे है. इसके अलावा कुछ इंटरेक्टिव क्लासेस भी चल रहे है, जिसमें बच्चे एक साथ होने पर टीचर क्लासेज ले रहे है. ये ट्रेडिशन क्लासेज से काफी अलग है और इसमें बच्चों के साथ अध्यापक का जितना इंटरेक्शन होता है, वह अब नहीं हो पा रहा है. इसमें बच्चा कितना अटेंटिव है, वह देखना अब मुश्किल है. रिकार्डेड मैटर में कितना सही वे समझ रहे है, वह  भी पता नहीं. अभी ये शुरुआत है. इसलिए तकनीक की जानकारी उन्हें कम थी. टाइपिंग भी जरुरी नहीं. इसमें सही समय पर उठाना, नियम से स्कूल जाकर पढाई करना आदि सारे जो एक अनुशासन के दायरे में होता है वह अब नहीं हो रहा है. इसमें उनकी हैण्ड राइटिंग, राइटिंग स्किल सबमें कमी आ रही है. इसे देखने की जरुरत है. छात्र और बच्चों का कम्युनिकेशन इतना अच्छा नहीं है. समय के साथ-साथ बच्चे और टीचर भी सीख पाएंगे. कई स्कूल भी इस समस्या का सामना कर रहे है, क्योंकि टीचर भी इस तरीके की सॉफ्टवेयर से परिचित नहीं है. उन्हें भी सीखना पड़ रहा है. कई माता-पिता को भी इसमें समस्या आ रही है, क्योंकि कुछ बच्चे लैपटॉप तो कुछ टैब पर काम कर रहे है. 

2. स्क्रीन लिमिट होना जरुरी  

इसके आगे डॉक्टर कहते है कि छोटे बच्चों को कितना समय कंप्यूटर के आगे बिताना सही होता है, पूछे जाने पर डॉक्टर तुषार कहते है कि बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम लिमिट में होने की जरुरत होती है. स्क्रीन से निकलने वाला ब्लू लाइट उनके आँखों के लिए हानिकारक होता है. मसलन, आँखों के ब्लिंक कम करने की वजह से आँखों का ड्राई हो जाना, आँखों में इरीटेशन होना, सिरदर्द आदि की शिकायत होती है. आँखों का पॉवर भी बढ़ सकता है. अभीतक इस पर किसी का ध्यान नहीं गया है, लेकिन 30 से  45 मिनट एक साथ करवाना ठीक रहता है. इसके बाद थोडा आराम आँखों को देने की जरुरत है. इसके लिए दूर की चीजो को देखना चाहिए. इसके अलावा उनकी पोस्चर ठीक होनी चाहिए. कही भी बैठकर या लेटकर पढाई नहीं करनी चाहिए. इससे बैक पैन और नेक पैन की समस्या होती है.

3. डाइट पर रखे ध्यान 

डाइट की भी खास ध्यान रखने की जरुरत है, क्योंकि इन दिनों बच्चों की मूवमेंट कम होने की वजह से वे आलसी और मोटापे के शिकार हो रहे है, क्योंकि उन्हें बाहर जाकर खेलने का अवसर नहीं मिल पा रहा है. वे अभी घरों में बंद है. विटामिन डी की कमी उनमें हो सकती है. माता-पिता को इसमें खास ध्यान देने की आवश्यकता है. उन्हें अधिक फैट युक्त भोजन देने से बचना चाहिए. ऑयली और मीठी चीजों को भी देने से बचना चाहिए. संतुलित भोजन देने की जरुरत है. जिससे उनकी इम्युनिटी बनी रहे. शारीरिक अभ्यास में स्किपिंग, सोसाइटी के आसपास खेलना, बैडमिन्टन खेलना आदि करने के लिए उन्हें प्रेरित करें. इसके अलावा उनसे बातें करना, घर की वातावरण को हल्का करते रहना है. 

4. कम हुई कुछ बीमारियाँ 

कोरोना में अच्छी बात ये हुई है कि घर पर रहने और बच्चों की सही देखभाल करने की वजह से बच्चों में रेगुलर फ्लू और पेट की बीमारियाँ कम देखी जा रही है. इससे भविष्य में पेरेंट्स बच्चे की सही देखभाल आगे चलकर करने में समर्थ हो सकेंगे. पेरेंट्स को समझना है कि कोरोना के साथ सबकों जीना पड़ेगा, इसलिए रूटीन वैक्सीनेशन बच्चों का अवश्य करवा लें, ताकि दूसरी बीमारी से बच्चों को बचाया जा सकें. कोरोना का असर बच्चों में अधिक नहीं है, लेकिन सावधान रहने की जरुरत बच्चों को भी है. 

 बड़े बच्चों के लिए डॉ. तुषार का कहना है कि 40 से 50 मिनट ऑनलाइन काम करने के बाद थोडा आराम करें. अपनी दृष्टि को दूर तक को ले जाएँ, इससे आँखों को आराम मिलेगा. इम्युनिटी बढ़ाने के लिए किसी दवा का प्रयोग न करें. अच्छा भोजन लें, नींद पूरी करें, सही मात्रा में पानी का सेवन करें. हर 4 घंटे में पानी पियें. हरी सब्जियां, फ्रेश फल, अंडे, दाल आदि सभी नियमित और संतुलित मात्रा में लें. थोडा व्यायाम करें और खुश रहे.

5. शारीरिक संरचना पर पड़ता है प्रभाव 

ऑनलाइन पढ़ाई और मनोरंजन के लिए बच्चे आजकल 8 से 10 घंटे कम्प्यूटर के आगे बैठ रहे है, जिसका परिणाम आज भले ही न दिखे कुछ दिनों बाद देखने को मिलेगा. दिल्ली के अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल के ओर्थोपेडिक सर्जन डॉ. अश्वानी मायचंद का कहना है कि बच्चों को ऑनलाइन एक्टिविटी की वजह से दो मुख्य हार्मफुल फैक्टर हो रहा है. स्कूल में सभी बच्चे कुर्सियों पर बैठते है, लेकिन घर पर वे कही भी किसी भी पोस्चर में बैठ जाते है, इससे बैक मसल्स और पैर के मसल्स पर असर पड़ता है. कभी दर्द तो कभी मसल्स में खिचाव आ जता है, जिसके लिए वे पैन किलर लेते है या फिर जेल लगाते है. बहुत सारे बच्चे जो कॉम्पिटीशन के एग्जाम इस साल देने वाले है. कोरोना की वजह से उनकी परीक्षाएं टलती जा रही है, इससे उनका एग्जामिनेशन पीरियड ख़त्म नहीं हो रहा है. इसके अलावा लॉक डाउन की वजह से किसी प्रकार की फिजिकल एक्टिविटी बच्चों की नही हो पा रही है, जिससे उन्हें विटामिन डी नहीं मिल पा रहा है और दर्द की शिकायत होती रहती है. माता-पिता को ऐसे में लगता है कि उबके बच्चों को आर्थराइटिस हो गया है और वे उसका टेस्ट करवाना चाहते है. मेरे हिसाब से बड़े बच्चों को एक साथ में 2 से ढाई घंटे तक स्क्रीन के आगे बैठना सही होता है. आउटडोर एक्टिविटी करवाने की कोशिश सनलाइट  में करवाने की जरुरत है. बीच-बीच में ब्रेक देना, थोड़ी स्ट्रेचअप करना, हल्का फुल्का व्यायाम करने की अभी बहुत जरुरत है. साथ ही आँखों को इनफिनिटी दिशा में देखने के लिए प्रेरित करें, ताकि आँखों को रिलैक्ससेशन मिले. 

6. प्रतियोगी परीक्षाओं का भार 

डॉक्टर अश्वानी का आगे कहना है कि असल में बच्चे एग्जाम के सिर्फ दो महीने पहले ही अधिक मेहनत करते है. इस समय कोरोना की वजह से ये पीक समय तीसरी बार प्रतियोगी परीक्षाओं का आ चुका है. जब भी पीक आता है तो शरीर का कोर्टिसोल लेवल बढ़ जाता है, जिससे स्ट्रेस लेवल बढ़ जाता है, जो हार्ट और आर्टरी को प्रभावित करता है. इन 6 महीने में बच्चों को 3 बार स्ट्रेस दे रहे है. इसके लिए किसी को दोषी नही माना जा सकता, पर जरुरत है कि उन्हें इस तनाव से जितना हो सके दूर रखने की कोशिश की जाय जो उनके भविष्य के लिए भी अच्छा रहेगा. खासकर जो बच्चे एक साल ड्राप कर एग्जाम देने वाले है. उनके लिए सुझाव ये है कि जो भी लोग कोचिंग ऑनलाइन क्लास ले रहे है, उनमें योग या मैडिटेशन के क्लास भी शामिल होने चाहिए, ताकि वे रिलैक्स होकर अपने आप को शांत रख सकें.

7. शरीर के रिदम को जाने 

सबको सावधान करते हुए डॉक्टर कहते है कि शरीर का एक रिदम होता है. उसके विरुद्ध जाने पर आपको कई बिमारियों का सामना करना पड़ता है. लोगों को इसके बारे में जागरूकता कम है. शरीर का ध्यान सबसे पहले रखना है, इसे बहुत कम लोग समझते है. परफोर्मेंस पर अधिक ध्यान देते है, जो गलत है. आजकल के माता-पिता बच्चों को लेकर बहुत अधिक एम्बीसियस हो चुके है. वे चाहते है कि उनका बच्चा छोटी उम्र में ही सब जान लें और सबसे अव्वल हो जाय , जो गलत है. इससे बच्चे के मानसिक अवस्था पर दबाव पड़ता है. पेरेंट्स के लिए सुझाव ये है कि इस समय बच्चों पर पढाई का दबाव अधिक न बढाएं, उनके साथ रहें, उन्हें रिलैक्स रहने दें, खुश रखें, ये समय अच्छा है, जिसमें पूरा परिवार साथ रह रहा है. खाने के लिए बच्चों को मीठा अधिक न दें. उन्हें फल, फ्रेश सब्जियां अधिक भोजन में दें, जिसमें पोषक तत्व अधिक हो और बच्चे आसानी से पचा सकें.  

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