REVIEW: जानें कैसी है फिल्म Operation Romeo

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः शीतल भाटिया व नीरज पांडे

निर्देशकः शशांत शाह

कलाकारःवेदिका पिंटो, भूमिका चावला, सिद्धांत गुप्ता, शरद केलकर,  किशोर कदम

अवधिः दो घंटे 15 मिनट

मलयालम फिल्मकार अनुराज मनोहर ने अपने निजी जीवन के अनुभवों पर फिल्म ‘‘इश्कः नॉट ए लव स्टोरी’’ का निर्माण किया था. जिसने 2019 में सफलता दर्ज करायी थी. उसी का हिंदी रीमेक लेकर निर्देशक शशांत शाह आ रहे हैं.  इस फिल्म का निर्माण नीरज पांडे ने किया है, जो कि ‘ए वेडनेस्डे’, ‘स्पेशल 26’, ‘बेबी’, ‘एम एस धोनीःअनटोल्ड स्टोरी’ व अय्यारी जैसी फिल्में निर्देशित कर चुके हैं. वह ‘रूस्तम’,  ‘नाम शबाना’ व ‘मिसिंग’जैसी फिल्मों का निर्माण भी कर चुके हैं. 2018 में नीरज पांडे ने ‘आदर्श सोसायटी घोटाले’पर आधारित फिल्म ‘अय्यारी’ का निर्देशन किया था, जिसे बाक्स आफिस पर सफलता नही मिली थी और उनके नाम पर ऐसा धब्बा लगा कि उसके बाद से आज तक वह फिल्म निर्देशन से दूरी बनाए हुए हैं. इसी वजह से ‘आपरेशन रोमियो’ के निर्देशन की जिम्मेदारी शशांत शाह को सौपी. मगर अफसोस समय की मांग के अनुरूप ‘मौरल पौलीसिंग’’पर आधारित फिल्म ‘‘आपरेशन रोमियो’’ निराश करती है.

कहानीः

फिल्म की कहानी के केंद्र में आई टी कंपनी में कार्यरत आदित्य उर्फ आदी (सिद्धांत गुप्ता ) व उनकी प्रेमिका नेहा (वेदिका पिंटो )  है. नेहा जयपुर के एक अति रूढ़िवादी परिवार की लड़की है, जो कि मंुबई में होस्टल में रहकर पढ़ाई कर रही है. उसका जन्मदिन आ गया है. आदित्य , नेहा के जन्मदिन को मनाने के लिए नेहा के साथ अपनी कार में डेट पर निकलता है. वह दोनों दक्षिण मुंबई शहर पहुंच जाते हैं. आदित्य की कामेच्छा बढ़ जाती है और वह आधी रात को सुनसान सड़क पर कार के अंदर एक दूसरे को ‘किस’ करने का फैसला करते हैं. तभी खुद को पुलिस इंस्पेक्टर बताने वाला कए गबरू इंसान मंगेश जाधव (शरद केलकर) उन्हे पकड़ लेता है. मंगेश का सहयोगी हवलदार (किशोर कदम) भी आ जाता है. मंगेश व उनका साथ इस प्रेमी युगल को ब्लैकमेल करना शुरू करता है. जिससे एक ट्रौमा की शुरूआत होती है. पर जब  आदी, मगेश व उसके साथी से छुटकारा पाता है, तब नेहा का तंज आदी बर्दाश्त नहीं कर पाता. उसके बाद आदित्य पूरे मामले की थाह लेने निकलता है, तो एक अलग सच सामने आता है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म की कमजोर कड़ी  रतीश रवि और अरशद सय्यद लिखित पटकथा है. लेखकद्वय ने मौरल पौलीसिंग नैतिक पुलिसिंग के विषय को रोमांच का रूप देने के प्रयास में पूरी फिल्म को ही भ्रमित बना डाला. निर्देशक भी इस विषय को संजीदगी से नहीं ले पाए. फिल्म की कहानी की पृष् ठभूमि मंुबई रखकर लेखक व निर्देशक ने गलत नींव रख दी. क्योकि फिल्म में प्रेमी युगल के साथ जो कुछ घटता है, उसकी कल्पना लोग कर ही नही सकते.  परिणामतः फिल्म देखने के बाद दर्शक निराश होने के साथ ही अपना माथा पीट लेता है. फिल्म में बार बार याद दिलाया जाता है कि पुरूष मानसिकता मंे बदलाव आया या नही और हम महिलाओें लड़कियों के लिए कितना सुरक्षित समाज का निर्माण कर पाए हैं. फिल्म के शुरूआत के 15 मिनट तो इसी पर हैं. उसके बाद लेखक व निर्देशक कहानी को रोमांचक रूप देते हुए दर्शक को शिक्षा देने के प्रयास में जुट जाते हैं, जिसमें वह बुरी तरह से असफल रहे हैं. फिल्म के क्लामेक्स में अजीबोगरीब तरीके से ‘नारीसशक्तिकरण’ की बात की गयी है. जो कि फिल्म की मूल कॉसेप्ट से अलहदा है. इससे दर्शक भ्रमित व ठगा हुआ महसूस करता है कि उसने जिस कहानी के लिए अपना समय व पैसा बर्बाद किया, वह तो यह है ही नही. क्लायमेक्स बहुत ही घटिया व गड़बड़ है. इंटरवल से पहले फिल्म को बेवजह खींचा गया है. इसे एडीटिंग टेबल पर कसा जा सकता था. इंटरवल के बाद कुछ रोमांचक दृश्य हैं.

शशांत शाह का निर्देशन काफी औसत व भ्रमित करने वाला है. कागज पर कहानी ऐसी लगती है कि वह नैतिक पुलिसिंग को एक ऐसे व्यक्ति की नजर से देखना चाहती है, जो खुद एक नैतिक पुलिस है,  लेकिन एक दुःखद स्थिति में फंस गया है. पर परदे पर वह उस बच्चे की तरह नजर आता है, जिसे समझ में नही आता कि कब गुस्सा आना चाहिए. कुल मिलाकर यह फिल्म एक थका देने वाले अनुभव के अतिरिक्त कुछ नही है.

अभिनयः

आदित्य उर्फ आदी के किरदार में सिद्धांत गुप्ता अपने शिल्प को लेकर पूरी तरह से इमानदार नजर आते हैं. उनके अंदर अभिनय की काफी संभावनाएं हैं, बशर्ते उन्हे अच्छी पटकथा व बेहतरीन निर्देशक मिल जाएं. सिद्धांत ने फिल्म के कई दृश्यों में बेबसी व कश्मकश को बेहतर तरीके से उकेरा है.

मंगेश जाधव के किरदार में शरद केलकर ने एक बार फिर साबित कर दिखाया कि उन्हे पटकथा की मदद मिले या न मिले, वह अपने काम को सही ढंग से अंजाम देने में सक्षम हैं.

किशोर कदम का अभिनय ठीक ठाक है.

नेहा के किरदार में वेदिका पिंटो ने अपने चेहरे और आंखों के हाव भाव से काफी कुछ कहने का प्रयास किया है. मगर लेखक ने उनके किरदार को सही ढंग से विकसित नही किया है. वैसे वेदिका को अपने अभिनय को निखारने के लिए काफी मेहनत करने की जरुरत है. महाराष्ट्यिन पत्नी के छोटे से किरदार में भूमिका चावला अपनी छाप छोड़ जाती हैं. अफसोस भूमिका चावला के किरदार को भी ठीक से विकसित करने में लेखक व निर्देशक विफल रहे हैं.

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