ओटीटी प्लेटफॉर्म का प्रभाव

बीते पिछले कुछ सालों में ऑनलाइन मनोरंजन इंडस्ट्री में बहुत ज्यादा वृद्धि देखी गयी है. नेटफ्लिक्स, अमेज़ॅन प्राइम, डिज़नी होस्टस्टार, आदि जैसी ऑनलाइन स्ट्रीमिंग सेवाओं के मिलने और तेज़, सस्ती इंटरनेट सेवाओं की शुरूआत होने से भारत में ओटीटी कंटेंट की बहुत बड़ी मात्रा खपत हो रही है. डॉ. प्रकृति पोद्दार, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, निदेशक पोद्दार वेलनेस के मुताबिक यहाँ पर बहुत सारे लोग ओटीटी कंटेंट के उपयोगकर्ता  बन गए है. पीडब्ल्यूसी के मीडिया एंड एंटरटेनमेंट आउटलुक 2020 के अनुसार भारत का ओटीटी बाजार 2024 तक दुनिया का छठा सबसे बड़ा बाजार बनने की ओर अग्रसर है.

 ओटीटी प्लेटफॉर्म पर डार्क और वायलेंट शो लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को किस प्रकार प्रभावित कर रहे हैं?

जबकि ओटीटी प्लेटफार्मों की बाजार हिस्सेदारी में भी बढ़ोत्तरी जारी है. इन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्मों की मुख्य समस्या इनका डार्क और वायलेंट कंटेंट रहा है. यह दर्शकों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. स्क्वीड गेम, हाउस ऑफ सीक्रेट्स, यू और अन्य जैसे वेब सीरीज शो लोगों के बीच कौतुहल का विषय बने हुए हैं, लेकिन वे हिंसा, ड्रग्स, सेक्स और अपराध की संवेदनशीलता को बढ़ा रहे हैं जिससे लोगों का मानसिक स्वास्थ्य नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहा है और सोशल स्किल में गिरावट हो रही हैं.

वायलेंट (हिंसक) और डार्क शो से नस्लीय हिंसक व्यवहार

ओटीटी प्लेटफॉर्म की लोकप्रियता के पीछे सबसे बड़ा कारण मनोरंजन है. स्मार्टफोन, लैपटॉप आदि जैसे गैजेट्स की उपलब्धता और इंटरनेट सेवाओं की पहुंच आसान होने से ओटीटी कंटेंट को कभी भी, कहीं भी देखने की सुविधा मिल जाती है. युवा, विशेष रूप से फ्रेश कंटेंट, दिलचस्प प्लॉट्स और किरदारों और परिस्थितियों की यथार्थवादी प्रस्तुतियों (रियल रिप्रजेंटेशन) के प्रतिनिधित्व से ओटीटी कंटेंट को ज्यादा देख रहे हैं, इन कंटेंट के साथ वे खुद को जोड़ कर देखते हैं. जबकि कुछ कंटेंट शिक्षित और सूचनात्मक है, कुछ हिंसक, अश्लील सामग्री को इस तरह से दिखाया जा रहा है जो दर्शकों के मानसिक स्वास्थ्य को गहराई से प्रभावित कर रहे है.

जब लोग सामूहिक गोलीबारी और अन्य हिंसा के हिंसक वीडियो देखते हैं, तो उनमे प्रत्यक्ष रूप से ट्रामा के होने की संभावना बढ़ जाती हैं. इससे एंग्जाइटी, डिप्रेशन, क्रोनिक स्ट्रेस और अनिद्रा की संभावना बढ़ जाती है. जिन लोगों को PTSD है, उनके लिए इन वीडियो को देखने से फ्लैशबैक जैसे लक्षणों में वृद्धि हो सकती है.

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क्रूर, हिंसक शो या फिल्मों को बार-बार देखने से दर्शकों में भय और चिंता बढ़ सकती है, और यहां तक कि इससे लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं. अध्ययनों के अनुसार आपदाओं, विशेष रूप से आतंकवाद को देखने से PTSD, डिप्रेशन, स्ट्रेस, एन्ग्जाईटी और यहां तक कि नशीलें पदार्थों के सेवन के मामलों में वृद्धि हो सकती है.

युवाओं और बच्चों में किसी के व्यवहार को खुद में नकल करने की ज्यादा संभावना होती है क्योंकि वे आसानी से ऑनलाइन वेब शो और अन्य वीडियो सामग्री पर दिखाई जाने वाली चीज़ों से जुड़े हो सकते हैं. इसका असर यह हो रहा है कि आज के युवाओं में बहुत सारे व्यवहार परिवर्तन लक्षण पैदा हो रहे है. यह न केवल उन्हें उनके व्यवहार और उनके विचारों दोनों में आक्रामक बनाता है, बल्कि उनमे धूम्रपान, शराब पीने, ड्रग्स, न्यूडिटी और अश्लीलता जैसी नियमित रूप से देखी गई चीज़ों से भी प्रभावित होने की संभावना को बढ़ा देता है. ये सब चीजें कई ऑनलाइन वेब शो में अक्सर दिखाए जाते हैं. ये कंटेंट आगे चलकर कम उम्र के लोगों में अस्वस्थ आदतों को विकसित कर सकते हैं.

कई स्टडी में पाया गया है कि हिंसक शो देखने और बच्चों द्वारा हिंसक व्यवहार में वृद्धि के बीच संबंध है. इस बात की पुष्टि 1000 से ज्यादा अध्ययनो में हो चुकी है. बहुत ज्यादा हिंसक चीजें देखने से व्यवहार आक्रामक हो जाता है, यह चीजें खासकर लड़कों में ज्यादा देखने को मिलती है.

बिंज-वाचिंग (किसी कंटेंट को लगातार देखना) से चिंता बढ़ जाती है

बिंज-वाचिंग अपेक्षाकृत एक नई घटना है, लेकिन निश्चित रूप से पिछले कुछ सालों में ओटीटी दर्शकों के बीच यह एक लोकप्रिय ट्रेंड बन गया है. कई स्टडी से पता चला है कि जो लोग बिंज-वाचिंग करते हैं, उनमें ख़राब वाली नींद और अनिद्रा से पीड़ित होने की संभावना ज्यादा होती है. बिंज-वाचिंग करना सर्कैडियन लय को बाधित कर सकता है, जिससे सोना मुश्किल हो जाता है.

मनोवैज्ञानिक रूप से एक वेब सीरीज एक व्यक्ति को घंटों तक बांधे रह सकती है, इस दौरान वह व्यक्ति सोना भी भूल  सकता है. ओटीटी शोज के ड्रामा, टेंशन, सस्पेंस और एक्शन को लोग खूब एन्जॉय करते हैं, लेकिन ये हार्ट रेट रुकने, ब्लडप्रेशर और एड्रेनालाईन को भी बढ़ाते हैं. जब कोई व्यक्ति इन्हे देखने के बाद सोने की कोशिश करता है तो यह अनुभव  एक तनावपूर्ण या हल्का दर्दनाक जैसा महसूस हो सकता है, जो सोने में परेशानी पैदा कर सकता है. नींद में यह व्यवधान व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है.

कई अध्ययनों में पाया गया है कि नींद की कमी की समस्या ध्यान, काम करने की याददाश्त और भावनात्मक व्यवहार जैसे मानसिक कामों को आसानी से नुक़सान पहुंचा सकते है. लंबे समय तक अनिद्रा से पीड़ित रहने पर  डिप्रेशन और एंग्जाइटी डिसऑर्डर का ज्यादा खतरा पैदा हो सकता है. बहुत ज्यादा बैठे रहना और स्नैकिंग भी मोटापे और इससे संबंधित समस्याओं जैसे डायबिटीज और हृदय की बीमारियों के खतरे को बढ़ाता है.

 सावधानी और निष्कर्ष

कोई भी जॉनर (शैली) का कंटेंट सबसे उपयुक्त की श्रेणी में नहीं आता है, लोगों को ऐसे किसी भी कंटेंट को देखने से बचना चाहिए जो उन्हें ट्रिगर करने वाला लगे और उन्हें समाज से अलग रखने को प्रेरित करें. एक व्यक्ति को यह समझने की जरूरत है कि कंटेंट को देखने के लिए कोई प्रिसक्रिप्शन (नुस्खा) नहीं है. एक संतुलित जीवन जीने के लिए सही नुस्खा डिजिटल चीजों को ज्यादा देखना नहीं है. जो लोग डिजिटल कंटेंट को ज्यादा देखते हैं, उनके लिए जीवन और काम के बीच संतुलन नहीं रह पाता है इससे उनका स्वास्थ्य नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है. दरअसल बार-बार डिजिटल डिटॉक्स करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना एक्सरसाइज, कला या सामाजिककरण होता है.

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कोरोना ने बदल दी ओटीटी प्लेटफौर्म की सूरत

योंतो 2015 से भारत में ओटीटी प्लेटफौर्म पैर पसारने लगे थे, मगर 2016 में भारत सरकार द्वारा मनोरंजन क्षेत्र में ‘सौ प्रतिशत एफडीआई’ का नियम लागू करने के साथ ‘नैटफ्लिक्स,’ ‘अमेजन,’ ‘डिज्नी प्लस हौट स्टार’ सहित कई ओटीटी प्लेटफौर्र्म भारत में तेजी से उभरे, पर 2020 में कोरोना महामारी और लौकडाउन के चलते सभी ओटीटी प्लेटफौर्र्म तेजी से लोकप्रिय हुए क्योंकि इस दौरान अपनेअपने घर में कैद हर इंसान के लिए मनोरंजन का एकमात्र साधन ओटीटी प्लेटफौर्म ही रहे. हर ओटीटी प्लेटफौर्म ने अपने साथ लोगों को जोड़ने के सारे तरीके अपनाए.

इन में से ज्यादातर ओटीटी प्लेटफौर्म मासिक या वार्षिक शुल्क लेते हैं, जबकि ‘जी-5’ और ‘सिनेमा पे्रन्योर’ जैसे कुछ ओटीटी प्लेटफौर्म दर्शकों से फिल्म देखने के प्रति फिल्म अलगअलग शुल्क वसूलते हैं.

मगर ओटीटी प्लेटफौर्म ‘एमएक्स प्लेयर’ अपने दर्शकों से कोईर् शुल्क नहीं लेता. कोई भी शख्स ‘एमएक्स प्लेयर’ पर स्ट्रीम हो रहे कार्यक्रम को मुफ्त में देख सकता है, मगर उसे हर कार्यक्रम या वैब सीरीज या फिल्म देखते समय बीचबीच में विज्ञापन भी देखने पड़ते हैं क्योंकि ‘एमएक्स प्लेयर’ विज्ञान पर आधारित ओटीटी प्लेटफौर्म है.

यों तो ‘गूगल प्ले स्टोर’ पर एमएक्स प्लेयर का एक प्रीमियम ऐप है, जो 5 डौलर में विज्ञापन स्ट्रिप्स चलाता है. लेकिन यह ऐप ज्यादातर विज्ञापन से मिलने वाले राजस्व पर ही निर्भर करता है. इन दिनों ‘एमएक्स प्लेयर’ करीब  3 दर्जन से अधिक स्थानीय व अंतर्राष्ट्रीय  ओटीटी प्लेटफौर्म संग प्रतिस्पर्धा कर रहा है.

फिलहाल ‘एमएक्स प्लेयर का स्वामित्व ‘टाइम्स ग्रुप’ के पास है और इस का मुख्यालय सिंगापुर  (71 राबिंसन रोड, सिंगापुर-068895) में है तथा यह कंपनी सिंगापुर के कानून के तहत संचालित होती है.

मोबाइल ऐप से ओटीटी प्लेटफौर्म तक

मूलत: एमएक्स प्लेयर की शुरुआत  कोरिया में एक ऐप के रूप में हुई थी, जो कि वीडियो फाइल के रूप में संग्रहीत वैब सीरीज  का प्रसारण स्थानीय मोबाइल फोन पर करता  था. छोटे संसाधनों का उपयोग करते हुए ऐप ने भारत जैसे उभरते बाजारों में कम लागत वाले ऐंड्रौइड स्मार्टफोन के साथ लाखों उपयोगकर्ताओं का विश्वास जीतने में कामयाब रहा. धीरेधीरे टाइम्स गु्रप की कंपनी ‘टाइम्स इंटरनैट’ ने इस  में निवेश शुरू किया. फिर 2017  के अंत में ‘टाइम्स इंटरनैट’ ने एमएक्स प्लेयर में  140 मिलियन डौलर का निवेश कर स्वामित्व  हासिल किया. उस के बाद एमएक्स प्लेयर  का मूल्यांकन 500 मिलियन डौलर आंका  गया था.

चाइनीज कंपनी टेनसेंट ने किया लगभग 111 मिलियन डौलर का निवेश

30 अक्तूबर, 2019 को एमएक्स प्लेयर ने सूचित किया था कि चीनी इंटरनैट की दिग्गज कंपनी टेनसेंट ने 110.8 मिलियन की राशि ‘एमएक्स प्लेयर’ ऐप में निवेश किए हैं और ‘एम एक्स प्लेयर’ वीडियो ऐप भारत और अन्य अंतर्राष्ट्रीय देशों में अपने कारोबार का विस्तार करना चाहता है.

‘‘एमएक्स प्लेयर’’ से पहले टेनसेंट ‘टाइम्स इंटरनैट’ के स्वामित्व वाले गाना विशाल ओला, टेक स्टार्टअप बायूज क्च२क्च ई कौमर्स, स्टार्टअप उडान और व्यापारियों के लिए बहीखाता सेवा ‘खाताबुक’ सहित कुछ भारतीय स्टार्टअप्स कंपनियों में निवेश किया था. टेनसेंट के ‘एमएक्स प्लेयर’ में निवेश करने पर ‘टाइम्स इंटरनेट’ के उपाध्यक्ष सत्यन गजवानी ने कहा था, ‘‘टेनसेंट संगीत और वीडियो में एक प्रमुख वैश्विक शक्ति है और हमें उन की क्षमताओं से सीखने और लाभ उठाने के लिए बहुत कुछ है.’’

जबकि ‘एमएक्स प्लेयर’ के सीईओ करण बेदी ने एक अखबार से बातचीत करते हुए कहा था, ‘‘निवेश के रूप में मिली इस रकम का उपयोग वीडियो ऐप के लिए मौलिक टीवी कार्यक्रमों का उत्पादन बढ़ाने और लाइसैंस प्राप्त साम्रग्री की अपनी सूची को व्यापक बनाने के लिए करेगा. फर्म ने अब तक अपने प्लेटफार्म पर 15 मौलिक शो जोड़े हैं तथा इस साल के अंत तक 20 अन्य का उत्पादन शुरू कर दिया है.

2019 तक भारत में एमएक्स प्लेयर के  175 मिलियन मासिक सक्रिय उपयोगकर्ता थे, जबकि वैश्विक स्तर पर 280 मिलियन से  अधिक उपयोगकर्ताओं को एकत्र किया था.

2020 में तेजी से बढ़ा एमएक्स प्लेयर

जी हां, कोरोनाकाल व लौकडाउन का फायदा ‘एमएक्स प्लेयर’ को भी मिला. इस संबंध में नवंबर, 2020 में एक अखबार से बात करते हुए एमएक्स प्लेयर के सीईओ करण बेदी कह चुके हैं, ‘‘हकीकत में आज की तारीख में ‘एमएक्स प्लेयर’ भारत का सब से बड़ा ओटीटी प्लेटफौर्म है. हमारे उपयोगकर्ताओं की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है. हम ने अपने लक्ष्य को स्पष्ट रूप से पार कर लिया है. हमारे पास सब से बड़ा होने की दृष्टि थी, लेकिन यह नहीं सोचा था कि यह जल्दी से होगा, हमारे मन में थोड़ी लंबी अवधि की रूपरेखा थी. हम ने स्क्रैच से शुरुआत की. हमें मदद करने के लिए हमारे पीछे कोई भी टीवी नैटवर्क नहीं है.

जाहिर तौर पर ‘टाइम्स’ समूह व्यवसाय में बहुत सारी मीडिया कंपनियों को लाता है, लेकिन यह मुख्य रूप से एक समाचार समूह था न कि एक मनोरंजन समूह. हमारी टीम और शेयरधारक वास्तव में इसे उभारने में कामयाब रहे. ‘एमएक्स प्लेयर’ प्लेटफौर्म कुल मिला कर 220 एमएयू के करीब है. यह एक बहुत बड़ी छलांग है, जो हमारे अलगअलग मीडिया प्लेटफौर्मों पर हुई है और ‘एवरीटेनमैंट’ की अवधारणा संग हम लगातार नए उपयोगकर्ताओं के विस्तार का आधार तैयार करने में सफल रहे.

विस्तार का आधार

‘‘इतना ही नहीं हम अपने मौजूदा उपयोगकर्ताओं के विस्तार का आधार तैयार करने में सफल रहे. यही नहीं हम ने अपने मौजूदा उपयोगकर्ताओं के आधार को पूरी तरह से बनाए रखा है और पुन: प्राप्त किया है. जब हम ने ‘एमएक्स प्लेयर’ का अधिग्रहण किया था, तब 175 मिलियन उपभोक्ता थे.’’

एमएक्स प्लेयर ने 2018 के मध्य में फिल्में और वैब सीरीज की स्ट्रीमिंग शुरू की. आज लगभग 200 टीवी चैनलों, उन के वर्तमान और अतीत के सीरियलों के अलावा ‘गाना’ के साथ एकीकरण के माध्यम से संगीत का भी स्ट्रीमिंग करता है.

‘एमएक्स प्लेयर’ ने भारत में होईचोई जैसी सभी वैब सीरियल निर्माताओं और सोनी और सन सहित शीर्ष 5 टीवी स्थानीय केबल नैटवर्क में से 3 के साथ सम झौता किया है और अब कई विदेशी वैब सीरीज व फिल्मों को हिंदी में डब कर स्ट्म कर रहा है.

डिश टीवी इंडिया की भागीदारी

अप्रैल, 2020 में लौकडाउन के समय ही डिश टीवी ने घोषणा की थी कि उस ने अपने ग्राहकों को वीडियो औन डिमांड सामग्री की पेशकश करने के लिए एमएक्स प्लेयर के साथ भागीदारी की है. डिश टीवी और डी2एच उपयोगकर्ता अपने ऐंड्रौइड सैट टौप बौक्स के माध्यम से एमएक्स प्लेयर की सामग्री का उपयोग कर सकते हैं.

उपयोगकर्ता अब लोकप्रिय एमएक्स प्लेयर की मौलिक वैब सीरीज व फिल्म, टीवी सीरियल, म्यूजिक वीडियो और फिल्मों को कई शैलियों और भाषाओं में स्ट्रीम करने में सक्षम होंगे.

सा झेदारी पर टिप्पणी करते हुए डिश टीवी इंडिया लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक और समूह के सीईओ अनिल दुआ ने कहा था, ‘‘एमएक्स प्लेयर के साथ हमारी सा झेदारी हमारी ऐंड्रौइड बौक्स उपयोगकर्ताओं के लिए 10 से अधिक भाषाओं में फैले बड़े कंटैंट लाइब्रेरी तक पहुंचना आसान बनाती है.

हमारे ग्राहकों के लिए अद्वितीय सामग्री की पेशकश हमेशा हमारे लिए एक सर्वोच्च प्राथमिकता है और इस सा झेदारी के माध्यम से हम ने अपना वादा पूरा करने के लिए एक और कदम उठाया है.’’

खर्च व परेशानी

माना कि ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘एमएक्स प्लेयर’’ पर उपलब्ध किसी भी वैब सीरीज या फिल्म को दर्शक मुफ्त में देख सकता है. (लेकिन इंटरनैट या यों कहें कि वाईफाई का खर्च तो उसे वहन ही करना पड़ता है.) लेकिन दर्शक की अकसर शिकायत रहती है कि फिल्म या वैब सीरीज रुकरुक कर चलती है अथवा आवाज टूटती रहती है, जिस के चलते उन का इंटरनैट का बिल बढ़ जाता है.

एमएक्स प्लेयर का बिजनैस मौडल क्या है

अब अहम सवाल यह है कि जब दर्शक ‘एमएक्स प्लेयर’ के कार्यक्रम मुफ्त में देखता है, तो फिर ‘एमएक्स प्लेयर’ की अपनी कमाई का जरीया क्या है? जैसा कि हम ने पहले भी बताया कि यह ओटीटी प्लेटफौर्म विज्ञापन पर आधारित है यानी एमएक्स प्लेयर की कमाई का जरीया विज्ञाप होते हैं, जिन्हें वह अपने वीडियो पर लगा कर धन कमाता है.

यह विज्ञापन उस के प्लेटफौर्म के उपयोगकर्ताओं की संख्या बल पर मिलते हैं, मगर विज्ञापन की रकम विज्ञापन को जितने दर्शक देखते हैं, उस आधार पर मिलती है. सूत्रों की मानें तो यह लगभग 23 पैसे प्रति व्यू है. जबकि बैनर विज्ञापन के लिए 13 पैसे प्रति व्यू है. वीडियों की सूची के बीच रखे गए विज्ञापन के लिए 10 पैसे प्रति व्यू है.

2019 के अंत तक एमएक्स प्लेयर के भारत में 280 मिलियन से अधिक सक्रिय मासिक उपयोगकर्ता हो चुके थे, जो देश के अन्य ओटीटी प्लेटफौर्म के मुकाबले अधिक संख्या थी. गत वर्ष इंगलैंड व अमेरिका में भी यह देखा जाने लगा है. इस के अलावा अब एमएक्स प्लेयर दूसरे निर्माता से उन की वैब सीरीज या फिल्म के प्रसारण अधिकार लेने के बजाय स्वयं मौलिक कार्यक्रम बनाने की दिशा में प्रयासरत है.

लेकिन वैब सीरीज ‘आश्रम अध्याय 1’ और ‘अध्याय 2’ की संयुक्त दर्शक संख्या एक बिलियन रही. इस से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस प्लेटफौर्म के उपयोगकर्ताओं का आधार कितना विशाल है. इसी वजह से इस प्लेटफौर्म पर लोग विज्ञापन देना पसंद करते हैं.

प्रत्येक ऐपिसोड में लगभग 6-7 विज्ञापन होते हैं. हर विज्ञापन की अवधि 30 सैकंड से ले कर 2 मिनट तक की होती है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार वैब सीरीज के दोनों अध्याय को मिला कर करीब 6 बिलियन विज्ञापन देखे गए. लेकिन ‘एमएक्स प्लेयर’ की हर वैब सीरीज या फिल्म को इतने दर्शक नहीं मिल रहे हैं.

निर्माताओं के साथ ऐग्रीमैंट

‘एमएक्स प्लेअर’ अपने प्लेटफौर्म पर किसी भी वैब सीरीज या फिल्म के प्रसारण के अधिकार हासिल करने के लिए 15 पन्नों का लंबाचौड़ा ऐग्रीमैंट करता है. इस के अनुसार ‘एमएक्स प्लेयर’ पूरे 24 माह तक सारे अधिकार रखता है. इस बीच वह कंटैंट का किसी भी रूप में उपयोग कर सकता है और अपने हिसाब से उस में विज्ञापन आदि जोड़ कर स्ट्रीम करेगा.

इस के एवज में ‘एमएक्स प्लेयर’ निर्माता को महज उस फिल्म या वैब सीरीज के लिए मिले नैट विज्ञापन राशि का सिर्फ 40-60% ही दिया जाता है. यह प्रतिशत निर्माता व कंटैंट को देख कर तय होता है जब कि ऐग्रीमैंट बनाने के खर्च से ले कर स्टांप ड्यूटी तक का खर्च भी निर्माता को ही वहन करना पड़ता है.

ऐग्रीमैंट के अनुसार हर तीन माह में इस का हिसाब किया जाता है और निर्माता को देय राशि, उस के बाद 60 दिन में देने की बात कही गई है. लेकिन अब तक कई निर्माताओं से बात करने से पता चला कि किसी को भी ‘एमएक्स प्लेयर’ से कोई रकम नहीं मिली. लेकिन सभी निर्माता फिलहाल चुप रहने में ही अपनी भलाई सम झ रहे हैं.

वास्तव में यदि अब तक ‘एमएक्स प्लेयर्स’ पर प्रसारित फिल्मों पर गौर किया जाए, तो ज्यादातर कम बजट वाली फिल्में या वैब सीरीज ही ज्यादा प्रसारित हुई हैं. इसी बीच ‘आश्रम’ सहित कुछ बड़ी वैब सीरीज भी प्रसारित हुईं. ‘एमएक्स प्लेयर’ की इस नीति के चलते अभी तक छोटे निर्माताओं को आर्थिक रूप से कोई लाभ भले न हुआ हो, मगर उन छोटे निर्माताओं का इस माने में भला हो गया कि कई वर्षों से डब्बे में बंद उन की फिल्में दर्शकों तक पहुंच गईं. एमएक्स प्लेयर ने कुछ फिल्मों को वैब सीरीज के नाम पर कई ऐपीसोडों में विभाजित कर के भी स्ट्रीम किया.

मगर अफसोस की बात यह है कि ‘एमएक्स प्लेयर’ की तरफ से किसी भी वैब सीरीज या फिल्म का सही ढंग से प्रचार नहीं किया जाता. ‘आश्रम’ या ‘बिसात’ जैसी वैब सीरीज, जिन के निर्माण से बड़े निर्माता जुड़े हुए हैं, इन के विज्ञापन जरूर दिए गए. वैसे ‘एमएक्स प्लेयर’ की पीआर टीम तो खुद को किसी से कम नहीं सम झती. वास्तव में पीआर टीम की कोई जवाबदेही तय नहीं है.

पीआर टीम पत्रकारों को प्रैस रिलीज भेज कर अपने कर्तव्यों की ‘इतिश्री’ सम झ लेती है. इस का खमियाजा ‘एमएक्स प्लेयर’ के साथ ही इस प्लेटफौर्म पर अपनी वैब सीरीज या फिल्म देने वाले निर्माताओं को भी भुगतना पड़ रहा है.

‘एमएक्स टकाटक’ और ‘एमएक्स गेमिंग’

‘‘एमएक्स प्लेयर’’ के 2 अन्य प्लेटफार्म हैं- ‘‘एमएक्स टकाटक’’ और ‘‘एमएक्स गेमिंग.’’ ‘एमएक्स गेमिंग’ तो काफी चर्चित ऐप है. वास्तव में दर्शक किसी वैब सीरीज या फिल्म को देखते समय विज्ञापन मजबूरी में देखता है. मगर गेमिंग ऐप पर वह स्वयं चाहता है कि ज्यादा से ज्यादा विज्ञापन हों, जिस से उस के बोनस पौइंट बढ़ जाएं.

इस संबंध में करण बेदी ने कहा है, ‘‘जहां तक ग्राहकों का सवाल है, तो गेमिंग एक ‘इंगेजमैंट’ और विज्ञापन के लिए सब से अच्छे प्लेटफौर्मों में से एक है. भारत अभी भी सब्सक्रिप्शन वीडियो औन डिमांड फ्रैंडली के बजाय बहुत एडवर्टाइजिंग वीडियो औन डिमांड फ्रैंडली मार्केट है.

इसलिए जब हम वीडियो में कोई विज्ञापन दिखाते हैं या उस व्यक्ति को प्रदर्शित करते हुए कहते हैं, ‘ठीक है, मु झे अपने वीडियो को जारी रखने के लिए विज्ञापन को देखना होगा.’ गेमिंग में इस के विपरीत, गेमर्स अधिक विज्ञापन चाहते हैं क्योंकि यह विज्ञापन उन के खेल में अलगअलग सकारात्मक परिणाम लाते हैं. इसलिए यदि आप एक अतिरिक्त जीवन चाहते हैं, या आप खेल में एक शक्ति चाहते हैं तो विकल्प यह है कि इसे खरीदें या विज्ञापन देखें. ज्यादातर लोग विज्ञापन देखना पसंद करते हैं. हर जगह लोग किसी भी तरह से विज्ञापनों से बचना चाहते हैं, मगर यहां गेम खेलने वाला अधिक बोनस पौइंट पाने के लिए और अधिक विज्ञापन की मांग करते हैं.

यदि आप वास्तव में चाहते हैं कि आप का ब्रैंड दर्शकों के साथ प्रतिध्वनित हो, तो इसे लगाने का सही स्थान वह है जहां लोग इसे मजबूरी के रूप में अधिक दोस्ताना तरीके से देखना चाहते हैं. इसलिए गेमिंग ऐंगेजमैंट और हमारे राजस्व में वृद्धि के लिए एक बहुत ही सकारात्मक बदलाव है.

टिकटौक पर पाबंदी

जहां तक ‘एम एक्स टकाटक’ का सवाल है, तो भारत में चाइनीज ऐप ‘टिकटौक’ बच्चों से ले कर बूढ़ों तक काफी लोकप्रिय रहा है. कईर् लोगों ने ‘टिकटौक’ बन कर काफी धन कमाया. मगर चीन से संबंधों में कड़वाहट आने के बाद भारत सरकार ने कई ‘टिकटौक’ सहित कई और चाइनीज ऐपों पर पाबंदी लगाई. ‘टिकटौक’ के बंद होते ही उसी तर्ज पर ‘एमएक्स प्लेयर’ तुरंत ‘एमएक्स टकाटक’ ले कर आ गया और उसे सब से बड़ा फायदा यह हुआ कि ‘टिकटौक’ पर लोकप्रियता बटोर चुके आधे से ज्यादा मौलिक कंटैंट बनाने वाले लोग ‘एमएक्स टकाटक’ के संग जुड़ गए.

एमएक्स टकाटक से जुड़ने पर लोगों को एक फायदा यह हो रहा है कि उन्हें उन की लोकप्रियता के आधार पर ‘एमएक्स प्लेयर’ की वैब सीरीज या फिल्म से जुड़ने के साथसाथ बौलीवुड से भी जुड़ने का अवसर मिलने की संभवनाएं हैं. इसलिए ‘एमएक्स प्लेयर’ के कर्ताधर्ताओं को यकीन है कि ‘एमएक्स टकाटक’ एक दिन ‘टिकटाक’ से अधिक लोगों तक पहुंच जाएगा.

‘एमएक्स प्लेयर’ की कार्यशैली में तमाम कमियां हैं, यदि इन पर गौर कर के सुधार किया जाए तो इस तरह के ओटीटी प्लेटफौर्म और अधिक लोकप्रिय हो सकते हैं. वैसे भी ‘प्राइस वाटर हाउस कूपर्स’ के अनुसार दुनिया में दूसरे सब से बड़े इंटरनैट बाजार के रूप में जाना जाने वाले भारत देश में वीडियो स्ट्रीमिंग का बाजार अगले 4 वर्षों में 1.7 बिलियन डौलर का होने वाला है.

  उपयोगकर्ता हैं मगर दर्शक

‘एमएक्स प्लेयर’ के मासिक उपयोगकर्ताओं की संख्या 280 मिलियन से भी अधिक है. इस के बावजूद ‘एमएक्स प्लेयर’ के दावे के ही अनुसार ‘चक्रव्यूह’ को महज 70 मिलियन, ‘बुलेट्स’ को 68 मिलियन, ‘डैंजर्स’ को 48 मिलियन लोगों ने ही देखा. यह महज प्रचार की कमी और वैब सीरीज की गुणवत्ता में कमी का ही नतीजा है.

  ‘एमएक्स प्लेयर’ को 100 से 150 मिलियन डौलर के निवेश  की तलाश

इन दिनों चर्चा है कि ‘एमएक्स प्लेयर’’ करीब 150 मिलियन डालर की राशि जुटाने के लिए प्रयत्नशील है. सूत्रों की मानें तो वर्तमान निवेशक ‘टेनसेंट’ अमेरिकन कंपनी के साथ हाथ मिलाने की तैयारी कर रहा है और उस के बाद हो सकता है कि इस का नाम बदल कर ‘यूनीकार्न’ हो जाए. पर इस संबंध में स्पष्ट कुछ नहीं है. न्यूयौर्क स्थित मर्चेंट बैंक राइन गु्रप इस सौदे पर एमएक्स प्लेयर को सलाह दे रहा है.

राइन अपने स्वयं के पैसे के साथ नए दौर में भी भाग लेने की संभावना है. पर ‘एमएक्स प्लेयर’ की तरफ से इस की पुष्टि नहीं की गई

  कुछ चर्चित वैब सीरीज

‘एमएक्स प्लेयर’ ने अब तक ‘हे प्रभु,’ ‘थिंकिस्तान’ और ‘अपरिपक’ सहित तमाम वैब सीरीज को बड़े पैमाने पर कालेज के छात्रों को लक्ष्य कर के बनाया. लेकिन कंपनी धीरेधीरे क्वीन जैसी वैब सीरीज के साथ मंच को पौपुलर कर रही है.

इतना ही नहीं पोंगा पंडितों की पोल खोलने वाली ‘आश्रम’ जैसी वैब सीरीज भी स्ट्रीम की. मादक द्रव्यों, ड्रग्स के कारोबार के इर्दगिर्द घूमती कहानी पर वैब सीरीज ‘हाई’ उस वक्त प्रसारित हुई, जब बौलीवुड में ड्रग्स की जांच एनसीबी कर रही थी. इस के अलावा ‘रक्तांचल,’ ‘भौकाल,’ ‘आप के कमरे में कौन रहता है,’ ‘बुलेट्स,’ ‘शोर इन द सिटी’ ‘चक्रव्यूह,’ ‘द मिसिंग स्टोन,’ ‘पतिपत्नी और पंगा,’ ‘बीहड़ का बागी,’ ‘हैलो मिनी,’ ‘एक थी बेगम,’ ‘विश लिस्ट’ जैसी वैब सीरीज के साथ ही ‘आखेट,’ ‘लंगड़ा राज कुमार’ जैसी कई छोटे बजट की फिल्में स्ट्रीम हो रही हैं.

इसी 26 अप्रैल से विक्रम भट्ट की रहस्य रोमांच प्रधान वैब सीरीज ‘बिसात’ भी स्ट्रीम होना शुरू हुई है. ज्ञातव्य है कि यह ओटीटी प्लेटफौर्म बोल्डनैस व सैक्स को ज्यादा परोसता आ रहा है..

स्पेशल इफ़ेक्ट का प्रयोग आने वाले समय में अधिक किया जायेगा – रवि अधिकारी

 वेब फिल्म ‘ढीठ पतंगे’ से डेब्यू करने वाले निर्माता,निर्देशक रवि अधिकारी मुंबई के है. इससे पहले वे कई शो के लिए क्रिएटिव प्रोड्यूसर रह चुके है. कला के माहौल में पैदा हुए रवि को हमेशा क्रिएटिव वर्क करना पसंद है. वे किसी भी काम को करते वक़्त उसकी गहनता को बारीकी से जांचते है और आगे बढ़ते है. उन्हें नयी कहानियां और रियल फैक्ट्स आकर्षित करती है. वे गौतम अधिकारी और अंजना अधिकारी के बेटे है. वे मानते है कि एक निर्देशक किसी फिल्म को सही दिशा देता है और इसके लिए उसे फिल्म की छोटी से छोटी बारीकियों पर ध्यान देना पड़ता है. रवि अधिकारी इन दिनों अगली फिल्म की तैयारी पर है और कोरोना संक्रमण के बाद सब कुछ फिर से नार्मल हो जाय, इसकी कामना करते है. उनसे बात हुई, पेश है कुछ अंश.

सवाल-अभी ओटीटी प्लेटफॉर्म काफी आगे बढ़ रहा है, क्या आपको अंदेशा था?

ओटीटी कई सालों से थिएटर के साथ चल रहा था, लेकिन लॉक डाउन की वजह से लोग थिएटर में जा नहीं पा रहे थे,ऐसे में लोगों ने डिजिटल मीडियम का सहारा लिया. ये तो होना ही था, क्योंकि घर पर रहकर मनोरंजन का ये एक अच्छा साधन है.

सवाल-क्या ओटीटी की वजह से थिएटर हॉल के व्यवसाय को समस्या आएगी?

ये अभी कहना मुश्किल है, क्योंकि हर फिल्म अलग ढंग से व्यवसाय करती है. छोटी फिल्में डिजिटल पर आने से भी कॉस्ट कवर हो जाता है, क्योंकि ऐसी फिल्में थिएटर से अधिक ओटीटी पर व्यवसाय कर लेती है. सेटेलाइट के अलावा डिजिटल का मार्किट भी पहले से ही खुल गया था. थिएटर के व्यवसाय को पहले से आंकना मुश्किल होता है, कभी कोई साधारण फिल्में भी चल जाती है, तो कभी कोई फिल्म अच्छा व्यवसाय नहीं कर पाती. डिजिटल में लॉस की संभावना नहीं ,लेकिन प्रॉफिट में लॉस होती है. थिएटर में जाकर अब फिल्में देखना दर्शकों के लिए थोड़ी मुश्किल होगी, क्योंकि जिस फिल्म को वे डिजिटल पर देख पा रहे है उसके लिए वे थिएटर में जाकर देखना कम पसंद करेंगे, लेकिन बड़ी और लार्जर देन लाइफ फिल्म का मजा जो थिएटर में है, वह डिजिटल पर नहीं. इसके लिए फिल्म मेकर को आज चुनौती है कि वे ऐसी फिल्म बनाएं, जिसका मज़ा केवल थिएटर में ही मिल सकें.

सवाल-डेब्यू फिल्म को ओटीटी पर रिलीज करने में कितना डर लगा?

ओटीटी पर रिलीज होने पर डर आधा हो जाता है, लेकिन कितने लोगों को फिल्म पसंद आई. ये समझना थोडा मुश्किल हो जाता है.

सवाल-फिल्म की सफलता में मुख्य क्या होती है?

फिल्म हमेशा टीम के साथ बनायीं जाती है, ये टीम वर्क होता है. कोई एक भी गलत करता है तो उसका प्रभाव नज़र आता है, इसके अलावा दर्शक को फिल्म अच्छी लगी या नहीं उसे देखना पड़ता है. पूरी टीम अच्छी फिल्म बनाने की कोशिश करती है. कहानी अच्छी होने पर भी, अगर सभी ने अच्छा काम नहीं किया है, तो परिणाम अच्छा नही आयेगा.

सवाल-फिल्म की सफलता का दारोमदार कलाकार को दिया जाता है, जबकि असफलता का जिम्मेदार

निर्देशक को. इस बात से आप कितने सहमत है?

इस बात से मैं अधिक सहमत नहीं हूं, क्योंकि फिल्म चलने से उसका फायदा सबको होताहै, केवल कलाकार को ही नहीं. कलाकार लोगों को सामने दिखते है, जबकि लेखक और निर्देशक पर्दे के पीछे होते है. कलाकार पर्दे पर होता है, इसलिए दर्शक उससे अपने आपको सीधा जोड़ पाते है.

सवाल-अभी लॉक डाउन के दौरान फिल्में अलग तरीके से शूट कर बनायीं जा रही है, बिना पूरी टीम के फिल्में बनाना कितना मुश्किल होता है?

कोविड 19 से पहले जो फिल्में बनती थी और अब जो फिल्में बन रही है. काफी अंतर आ चुका है. अभी दिशा निर्देश पहले से बहुत कड़क हो चुकी है. कही भी जाकर आप फिल्मों की शूटिंग नहीं कर सकते. उम्मीद है फिल्मों के लिखावट में भी अब काफी अंतर आएगा और स्पेशल इफ़ेक्ट का अधिक प्रयोग आने वाले समय में किया जायेगा, जिसे पहले लाइव किया जाता था.

सवाल-बड़े फिल्म मेकर अपनी टीम के साथ चार्टेड प्लेन के साथ बाहर जाकर फिल्में बना रहे है, लेकिन छोटे फिल्म मेकर के लिए क्या अब ये मुश्किल भरा दौर होगा?

ये चुनौती पूर्ण होगा अवश्य, लेकिन फिल्म अच्छे होने की जरुरत होगी. टीम क्रू कम होने से फिल्म  बनाने में समय अधिक लगेगा. छोटी फिल्मों के लिए कम बजट में अच्छी फिल्म बनाने की चुनौती होगी. ये हमेशा से ही रहा है और रहेगा.

सवाल-क्रिएटिव फील्ड में आना कैसे हुआ? पिता की इस बात को आप अपने जिंदगी में उतारते है?

बचपन से ही क्रिएटिव माहौल मिला है. स्कूल ख़त्म होने के बाद मैं शूट पर चला जाता था. मैंने बचपन से हर चीज बहुत नजदीक से देखा है. मेरे पिता गौतम अधिकारी मेरे लिए रोल मॉडल रहे है, इसलिए वे जो करते थे, उसे ही मुझे करना था. वही मेरा गोल था.

पिता की काफी चीजे है, जिसे मैं अपने जीवन में उतारना चाहता हूं. काम को लेकर हार्ड वर्क और एथिक्स कभी हिलना नहीं चाहिए. ये दो चीजे ही आपको आगे बढ़ने में मदद करती है.

सवाल-आगे की योजनाये क्या है? क्या मराठी फिल्म करने की इच्छा है?

मैंने वेब के लिए कई चीजे डेवलप की है. आगे मैं कुछ फिल्में भी प्रोड्यूस करने वाला हूं. इसके अलावा मैं स्लो राइटर हूं. लिखता हूं. पिता पर बायोपिक बनाने के लिए मुझे और अधिक मेच्योर तरीके से सोचने की जरुरत है.

इसके अलाव मैंने एक मराठी फिल्म को- डायरेक्ट की है. उसका पोस्ट प्रोडक्शन चल रहा है.

सवाल-गृहशोभा के ज़रिये क्या मेसेज देना चाहते है?

मेहनत और लगन से काम करने पर आप हमेशा सफल हो सकते है. चमत्कार तभी होता है, जब आप मेहनत कर अपने उद्देश्य की ओर बढ़ते है.

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