परिवर्तन: शिव आखिर क्यों था शर्मिंदा?

परिवर्तन: भाग 3- राहुल और कवि की कहानी

लेखक- खुशीराम पेटवाल

अचानक राहुल कुलबुलाया तो कवि की तंद्रा टूट गई. उसे भूख लग आई है. यह सोच उस ने राहुल के मुंह में अपना स्तन दे दिया और प्यार से बच्चे को थपथपाने लगी.

उस छोटी सी जगह में छेद के रास्ते बाहर से रोशनी का आना कवि को बड़ा सुखद लगा. रोशनी से ही तो जीवन है. जीवन की हलचल है. जीवन का संचार है. रात भर के लिए मौत के आगोश में दबे लोगों के लिए सूरज नया जीवन ले कर आता है. आज भी वह फिर आया है.

अचानक बाहर हलकी सी खटखट हुई. कोई है. किसी को अपनी मौजूदगी का अहसास कराने के लिए कवि फिर चिल्लाने लगी, ‘‘कोई है…कोई है…अरे, कोई तो मुझे बचा लो.’’ पर उसे लगा कि उस की आवाज बाहर नहीं जा रही है. चिल्लातेचिल्लाते वह थक गई. राहुल भी दहशत के मारे रोने लगा. जब कवि थक गई और बाहर से किसी तरह का कोई संकेत नहीं मिला तो वह सोचने लगी, देश भर में भुज में आए भूकंप की खबर फैल गई होगी. बचाव व राहत दल वाले आ चुके होंगे. शायद सेना के लोग हों.  पर मेरा अपार्टमेंट तो मुख्य सड़क से काफी दूर है. इसलिए क्या मेरे यहां तक सहायता पहुंचने में देरी हो रही है क्योंकि राहत व बचाव कार्य पहले सड़क के किनारे वाले अपार्टमेंट में ही तो होगा. बीच में कितने अपार्टमेंट हैं. शायद सभी गिरे पड़े हों. हे भगवान, राहत वालों को यहां जरूर भेजना, लेकिन जब कम रोशनी होने लगी तो भगवान पर से विश्वास उठने के साथ ही उस का दिल भी डूबने लगा.

इस छोटी सी जगह पर जहां बैठना मुश्किल है कवि ने अपने और राहुल के लिए थोड़ी सी जगह साफ कर दी है. कंकड़ बीन लिए हैं. नीचे रेत है और आज उसे थोड़ी ठंड भी लग रही है. राहुल भूख के मारे रोने लगा क्योंकि उस की भूख अब उस के दूध से शांत नहीं हो पा रही है. क्या करूं? इस अंधेरे में, इस मौत के घर में मेरे स्तनों में दूध के अलावा उसे देने को है भी क्या.

ये भी पढ़ें- आखिरी प्यादा: क्या थी मुग्धा की कहानी

उम्मीद के सहारे जिंदा कवि के स्तनों में दूध न पा कर राहुल ने अपने मसूड़े स्तनों में गड़ा दिए तो भी वह प्यार से उसे देखती रही और सोचती रही, कल तुझे कुछ न कुछ जरूर मिलेगा. कल हम बाहर जरूर जाएंगे मेरे बच्चे.

इतने दिनों बाद पहली बार कवि को अपनी मां की याद आई कि उस ने क्यों नहीं तब उन की सलाह को माना था, मां ने मना किया था कि अपार्टमेंट में मकान न ले, पर मैं ही अपनी जिद पर अड़ी रही. शहर दूरदूर तक देखा जा सकेगा. रात को उस की बालकनी में खड़े हो कर सारे भुज को देखना कितना अच्छा लगता था. वाकई कितना प्यारा, कितना सुंदर, रात के प्रकाश में जग-मगाता भुज. अब हेमंत को कहूंगी कि कोठीनुमा मकान ढूंढ़ेंगे. कवि मुसकराई और उस की आंखें मुंद गईं.

राहुल के चिल्लाने से कवि की नींद टूट गई. स्तनों में दूध नहीं था इसलिए एक बेबस मां की तरह उस ने उसे चिल्लाने दिया. थोड़ी देर में सूरज की रोशनी छेद के रास्ते भीतर आई. रोशनी के साथ ही मेरे भीतर जीवन का संचार हो गया. आशा बलवती हो गई. शायद आज कोई आए. मैं चिल्लाने लगी. राहुल भी मां को चिल्लाता देख कर रोने लगा. जब कवि चिल्लातेचिल्लाते थक गई तो उस ने राहुल की तरफ देखा. वह दोनों हाथों से मुंह में रेत डाल रहा था. ‘‘मिट्टी नो राहुल, नो,’’ कवि के मुंह से वही चिरपरिचित आवाज निकली. जब भी राहुल पार्क में खेलता तो मुंह में मिट्टी डाल लेता था.

विपरीत परिस्थितियां देख कर कवि ने खामोश रहना ही ठीक समझा. वह राहुल को उसी तरह मिट्टी के साथ खातेखेलते अपलक देखती रही. उस ने सोचा, मेरे बच्चे, रेत खाना भी तेरे नसीब में लिखा था.

कवि ने बच्चे को उठा कर अपनी छाती पर बैठा लिया. वह खेलने लगा. उस की नाक व मुंह पर रेत लगी देख कवि ने अपनी साड़ी से उस के मुंह की रेत झाड़ी तो राहुल मुसकरा दिया जिसे देख कर वह कुछ पल को दुखदर्द भूल गई. अतीत में अपनी व्यस्तता और बच्चे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को याद कर कवि भावुक हो उठी. उसे पहली बार एहसास हुआ कि जिस आधुनिक खयाल में वह जी रही थी उस में उस ने पाया कम, खोया अधिक है. वह तो ऐसी अभागी मां है जो अपने बच्चे को आज तक एक बार नहला भी न सकी है. हे ईश्वर, मेरे राहुल को बचाना. यह कवि नहीं भीतर बैठी मां के मन से निकली आवाज थी और उस ने राहुल को जोर से अपनी छाती से भींच लिया.

रात फिर घिर आई. कवि का दायां पैर आज तेज दर्द कर रहा था. शायद घुटने में भीतर चोट लगी है. थोड़ी सूजन भी है. सिर में भी हलका दर्द है. उस ने अपने पैर को दबाया, थोड़ा आगेपीछे चलाया जितना कि उस जगह चलाया जा सकता था. दर्द कम नहीं हो रहा पर यह सोच कर कि इसे तो सहना ही है. कवि ने अपने को हालात के हवाले छोड़ दिया.

पिछले 3 दिनों से कवि को प्यास ही नहीं लगी पर अब पानी की जरूरत महसूस हो रही है. भूख तो नहीं है पर प्यास से गला सूखा जा रहा है. क्या करूं? यों ही इसे भी सहना होगा. कवि ने थूक घूंटा तो कुछ राहत महसूस हुई. अब जबजब प्यास लगेगी थूक ही गले के नीचे उतारूंगी.

प्यास तो राहुल को भी लग रही होगी, कवि ने बच्चे की तरफ देख कर सोचा कि यदि दूध होता तब तो जरूरत नहीं थी पर बिना दूध के जाने कैसे जी पाएगा. राहुल को तो इस की ज्यादा जरूरत होगी.

फिर से सुबह का धुंधलका भीतर आ गया. आज कवि को शौच महसूस हो रही है. क्या करना होगा? राहुल तो 3-4 बार यहीं कर भी चुका है. उसे कवि ने रेत से ढक दिया है. यहां इन हालात में तो यही करना होगा.

अचानक लगा कि बाहर धमधम की आवाज हो रही है. लगता है कोई है. ‘बचाओ…बचाओ…मुझे यहां से बचाओ.’ कवि के चिल्लाने के साथ ही राहुल का रोना भी शुरू हो गया. कवि घंटों चिल्लाती रही. इस प्रयास में उस की आवाज भी फट गई पर सब व्यर्थ.

ये भी पढ़ें- पट्टेदार ननुआ : पटवारी ने कैसे बदल दी ननुआ और रनिया की जिंदगी

इस घर में अब फिर से रात ढल आई है. राहुल रेत खा कर सो गया है. वह अब हिलडुल भी कम रहा है. उस के रोने में भी वह ताकत नहीं है. उस की आवाज मंद पड़ती जा रही है. बेटे की यह दशा देख कर बेबस कवि सोचने लगी कि कैसे वह राहुल को दम तोड़ते हुए देख सकती है. वह एक मां है और सबकुछ बरदाश्त कर सकती है पर अपने सामने भूख से मरते बच्चे को तो नहीं देख सकती क्योंकि वह तो एक मां है. जीवन में पहली बार कवि ने ईश्वर को याद कर मनौती मानी कि भगवान, तुम मुझे और मेरे बच्चे को इस संकट से जीवित बचा लो. मैं तो सारे तीर्थ जा कर मत्था टेकूंगी.

कवि की जब आंख खुली तो सुबह का उजाला भीतर प्रवेश कर चुका था. राहुल अभी सो रहा है. जाने कैसे जिंदा है. 5-6 दिन हो गए हैं. इन 5-6 दिनों में हर पल कवि को मरना पड़ा है. वह  मरमर कर जीती रही है. वह एक दूध पीते बच्चे के साथ कैसे इतने दिनों से जिंदा है? इस प्रश्न का उत्तर कवि का मन ढूंढ़ ही रहा था कि अचानक बाहर शोर हुआ. लग रहा है कोई ऊपर है. कोई खोद रहा है.

कवि पूरी ताकत से चिल्लाई, ‘‘मैं यहां हूं, हम यहां हैं.’’ चिल्लातेचिल्लाते फेफड़े थक गए. फिर भी उस का चिल्लाना जारी रहा.

रोते हुए राहुल को थपथपाते हुए कवि बोली, ‘‘चुप हो जा मेरे बच्चे कोई है शायद. आर्मी वाले हों और जीवन पाने की खुशी में कवि राहुल को जोर से भींच कर उसे चूमने लगी. ऊपर से 2 आंखों  ने भीतर झांका तो कवि चिल्लाई और एक बार फिर बेटे को अपने में इस तरह छिपा लिया कि उसे एक खरोंच तक न लगे. ऊपर की दीवार तोड़ी जा रही थी. दो हाथ भीतर आए.

‘‘बच्चे को दो,’’ कई दिनों बाद इनसानी स्वर सुनने को मिला. कवि के उत्साह का ठिकाना न रहा. उस ने राहुल को उन 2 हाथों में थमा दिया.

भगवान यहां भी मूकदर्शक बना रहा. आखिर, इनसान की सहायता में इनसान के 2 हाथ ही आगे बढ़े और थोड़ी देर बाद कवि भी बाहर आ गई.

आर्मी वालों में शोर हुआ, ‘संभल कर,’ ‘‘सावधान’, ‘हुर्रे’. किसी ने किसी की पीठ थपथपाई. ‘बकअप’ और सब में जीवन का अद्भुत संचार हो गया. धन्यवाद, धन्यवाद आर्मी वालो.

ये भी पढ़ें- शन्नो की हिम्मत : एक लड़की ने कैसे बदल दी अपने पिता की जिंदगी

परिवर्तन: भाग 2- राहुल और कवि की कहानी

लेखक- खुशीराम पेटवाल

वह देर तक चिल्लाती रही. उस के साथ राहुल भी रोता रहा. चिल्लातेचिल्लाते उस का गला रुंध गया. थक कर वह चुप हो गई. जाने कहां हैं? कहां दबे पड़े हैं. इसी ढेर के नीचे…मेरे नीचे भी तो शायद यह छत है और मेरे ऊपर? हाथ से टटोल कर देखा तो कुछेक हाथ ऊपर एक दीवार को टिका पाया. मैं कहां दबी पड़ी हूं…अंधेरे में केवल टटोल सकती हूं.

राहुल रो रहा था. उसे शायद भूख लग आई थी. उस के मुंह में अपना स्तन दे कर कवि ने ऊपर की ओर देखा तो दीवार के एक छोटे से छेद से रोशनी छन कर भीतर आ रही थी. जितनी रोशनी अंदर आ रही थी उस से वह अपने इस नए घर को देख तो सकती ही थी.

सिर की तरफ एक 3-4 फुट ऊंची सीमेंट की कालम है. नीचे भी टेढ़े ढंग से दीवार है. इस तरह कुल 3 फुट की ऊंचाई की जगह और 2 हाथ चौड़ाई की जगह. जहां वह बैठ सकती है और किसी तरह पैर सिकोड़ कर लेट सकती है.

कवि अपने वर्तमान को समझने का प्रयास करती हुई यह नहीं जान पाई कि इस स्थिति में रहते हुए उसे कितने दिन गुजरे हैं. जो भी हो, यहां से तो निकलना ही होगा. कैसे निकलूं? कोई हो तो उसे आवाज दूं और वह जोर से चिल्लाई, ‘‘बचाओ… बचाओ…कोई है, कोई तो सुने.’’

काफी देर तक कवि चिल्लाती रही. बाहरी दुनिया को बताने की कोशिश की कि वह जिंदा है, मगर बेकार. कोई हो तो सुने. जब पूरा भुज शहर ही भूकंप की चपेट में जमीन से आ लगा है तो किसे पड़ी है कि वह उस की सुनेगा.

राहुल अपनी मां की चीखें सुन कर कुछ देर तक रोता रहा और फिर सो गया. कवि ने उसे पास से देखा. कितना प्यारा बच्चा है. कितना गोलमटोल, हाथपैर हिलाते हुए उस का राहुल कितना अच्छा लगता है. कवि के मन ने उस से ही प्रश्न पूछा, ‘तू ने अपने बेटे को इतने करीब से देखा ही कब है जो तुझे यह एहसास होता जो आज हो रहा है. तू तो हमेशा अपनी नौकरी नाम की गृहस्थी में ही व्यस्त रही है.’

ये भी पढ़ें- कल्लो : कैसे बचाई उस रात कल्लो ने अपनी इज्ज्त

सहसा कवि के दिमाग में प्रश्न कौंधा कि सातमंजिला इमारत ढह गई और मैं चौथी मंजिल वाली अपने दूध- पीते बेटे राहुल के साथ बिलकुल ठीकठीक जिंदा हूं. यह कैसे संभव हुआ? क्या इस के पीछे हेमंत का ईश्वर है या परिस्थितियों ने मुझे बचा लिया क्योंकि तब मैं दीवार के किनारे तक ही पहुंच पाई थी. फिर भी उस के कमजोर मन ने बेटी और पति के जिंदा रहने की दुआ तो मांगी थी. कवि को पहली बार पता चला कि कमजोर समय में लोग भगवान को क्यों याद करते हैं. शायद इसलिए कि उन के पास दूसरा कोई उपाय नहीं होता. मायूस हो कर ईश्वर को याद करते हैं. काम बन गया तो ठीक, नहीं बना तो ठीक.

मैं अपने और बच्चे के बचाव के लिए जब तक चिल्ला सकती थी चिल्लाती रही कि शायद शोर सुन कर कोई तो आवाज दे. अगलबगल दबे मेरी तरह जिंदा इनसान या फिर ऊपर बचाव वाला, कोई.

धीरेधीरे छेद से रोशनी कम होतीदेख कर कवि को लगा कि रात होने वाली है. वह सोचने लगी कि अंधेरा अकेला नहीं आता. वह अपने साथ लाता है तरहतरह के डर. डर चोरों का, डर अकेले होने का, डर इस खंडहर में सोने का, डर इस दीवार के गिरने का और सब से बड़ा डर खुद पर से विश्वास उठ जाने का.

कवि अपने बच्चे राहुल को सीने से लगाए हेमंत की पंक्तियां गुनगुनाने लगी, ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर न हो…’ पहली बार इन पंक्तियों को गुनगुनाते हुए कवि को ऐसा लगा जैसे उस के साथ कोई है. कोई ताकत उस के भीतर आ गई है. इस गाने में कितनी शक्ति है आज इसे वह महसूस कर रही है. और वह बड़ी देर तक बारबार इन पंक्तियों को गुनगुनाती रही.

राहुल भूख के मारे कुलबुलाने लगा. उस के मुंह में उस ने अपना स्तन दे दिया. उसे आश्चर्य इस बात का था कि उस के स्तनों में इतना दूध कहां से आ गया जबकि उस ने अपने बच्चे को दूध बहुत कम पिलाया है. वह तो जानबूझ कर पहले माह से ही बच्चे को ऊपर का दूध पिलाने पर आमादा थी पर हेमंत के बहुत आग्रह पर उस ने राहुल को पहले माह ही दूध पिलाया था. उस के बाद एकाध बार से ज्यादा उस ने राहुल को कभी दूध पिलाया हो यह उसे याद नहीं. सुंदरता को कायम रखने के चक्कर में बच्चे को दूध पिलाने में आनाकानी करती रही. जब 3 महीने से राहुल बिलकुल भी उस का दूध नहीं पी रहा है तो आज उस की छाती  से दूध कैसे उतर रहा है? और उस के मुंह का स्पर्श एक अजीब सी सिहरन पैदा कर रहा है. राहुल से हट कर जब उस का ध्यान गिरजा की तरफ गया तो मन में एक हूक सी उठी कि गिरजा को भी उस ने दूध कब पिलाया है. 1-2 महीने ही. बेचारी बच्ची, जाने कैसे बड़ी हो गई. मैं भी कैसी अभागिन मां हूं जो अपने सुख के चक्कर में अपने बच्चों को उन के सुख से वंचित रखा.

ये भी पढ़ें- तेरी देहरी : अनुभव पर क्यों डोरे डाल रही थी अनुभा

अपने बारे में सोचतेसोचते कवि कब सो गई उसे पता ही नहीं चला. जब जागी तो अपने चारों ओर अंधेरा देख कर सोचा अभी रात बाकी है. अब उसे सब से ऊपरी मंजिल पर रहने वाले हर्ष की याद आई. उस बेचारे की तो टांग भी टूटी हुई थी और बीवी भी बीमार थी. जाने अब कहां होगा वह परिवार. 7वीं मंजिल जब नीचे आई होगी तो वे कहां होंगे? यहीं कहीं मेरे ऊपर दबे होंगे. हर्ष तो बैड सहित ही नीचे आ गया होगा. वह जरूर बच गया होगा. छठी मंजिल वाली ऊषा का क्या हुआ होगा? अकेली लड़की, कोई नातेरिश्तेदार भी नहीं. पता नहीं जिंदा भी है या फिर…

बड़ी सुंदर है. हेमंत अकसर उस की तारीफ करता है. कहता है  कि क्या सुंदर कसे बदन की मलिका है यह लड़की. नितंब के अनुपात में ही छातियां. पतली कमर, कुल मिला कर विश्व सुंदरी वाला माप. उसे इस आफत की घड़ी में भी हेमंत की बातें याद कर हंसी आ गई कि क्या दिलफेंक इनसान है उस का पति.

यों तो वह मेरी तारीफ करते नहीं थकता. कहता है, ‘कवि, तुम सांचे में ढली हो. तुम्हारी ये आंखें मुझे हमेशा अपने पास बुलाती हैं. तुम्हारे ये रसीले होंठ बिना लाली के ही लाल हैं.’ और मेरे होंठों पर उस के अधीर चुंबन की सरसराहट दौड़ गई. ये मर्द होते ही ऐसे हैं जो जेहन में ऊषा जैसी औरत को रखेंगे और क्रिया करेंगे बीवी के साथ घर में…पर हेमंत वाकई मुझे प्यार करता है.

आगे पढ़ें- अचानक बाहर हलकी सी खटखट हुई….

ये भी पढ़ें-एक मौका और : हमेशा होती है अच्छाई की जीत

परिवर्तन: भाग 1- राहुल और कवि की कहानी

लेखक- खुशीराम पेटवाल

‘‘पर कवि, भगवान तो है ही न.’’

‘‘मैं तुम्हें पहले भी कई बार कह चुकी हूं कि अपना भगवान अपने पास रखो,’’ कवि झुंझला कर बोली, ‘‘वह तुम्हारा है, सिर्फ तुम्हारा. तुम्हारी पत्नी होने के नाते वह मेरा भी है, यह तुम्हारी धारणा गलत है. मैं तुम से कई बार कह चुकी हूं कि तुम्हारा भगवान मंदिरों में ही ठीक लगता है जहां वह मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर इनसानों की दया पर निर्भर है. तुम्हें शायद याद नहीं, यही गुजरात है जहां के सोमनाथ मंदिर को महमूद गजनवी ने लूटा था. वह भी एक इनसान था और उस के हाथों पिटा तुम्हारा भगवान. सर्वशक्तिमान हो कर भी कुछ न कर सका. लुटवा दी सारी संपदा, तुड़वा दी अपनी मूरत.’’

‘‘कवि, तुम बातों को सहज रूप में नहीं लेती हो. तुम्हें तो जो तर्क की कसौटी पर सही लगता है उसे ही तुम सही मानती हो. तुम ईश्वर का अस्तित्व वैज्ञानिक धरातल पर तलाशती हो. पर इतना जरूर कहूंगा कि कोई ऐसी एक ताकत जरूर है जो इस संसार को गतिमान कर रही है.’’

‘‘यह तो प्रकृति है जो यहां पहले से ही मौजूद है. ये सब अनादि काल से ऐसा ही चल रहा है.’’

‘‘ठीक है, तो इन में जीवन का संचार कौन कर रहा है?’’

‘‘कौन से क्या मतलब? जीवन का संचार सूर्य से है. सूर्य से ही ऊर्जा मिलती है. गहरे अर्थों में जाओ तो हाइड्रोजन हीलियम में बदलती है और बदलाव से ऊर्जा मिलती है जो सूर्य के अंदर मौजूद है और ऊर्जा से ही यह सारा संसार चलता है.’’

‘‘पर तुम्हारा सूर्य भी तो किसी ने बनाया होगा?’’

ये भी पढ़ें- एहसानमंद: सुधा ने विवेक से ऑफिस जाते समय क्या कहा?

‘‘तुम प्रश्न तो गढ़ते हो पर यह क्यों नहीं मानते कि ये चीजें पहले से ही यहां मौजूद हैं जो निरंतर विकास की अवस्था से गुजरते हुए, अनादि काल से बिना किसी भगवान के सहारे यहां तक पहुंची हैं और आगे भी इसी तरह कुदरती बदलावों के साथ चलती रहेंगी.

‘‘भगवान न कभी था, न है और न होगा. बस, उस के नाम पर धंधा करने वाले लोग एक ढोल बजा कर, भगवान है…भगवान है का शोर इसलिए मचा रहे हैं ताकि वे अपनी गलतियों को ढक सकें. कुछ गलत हो गया तो ‘भगवान की ऐसी ही इच्छा थी.’ जो नहीं जानते उस के लिए ‘भगवान ही जानें.’ कुछ बस में नहीं हुआ तो ‘भगवान’ को आगे कर दिया. कमजोर प्राणी ही भगवान की शरण ढूंढ़ता है.

‘‘हेमंत, तुम भगवान के प्रति इतनी आस्था मत रखा करो. तुम्हें खुद पर विश्वास नहीं है इसलिए तुम अपने टेस्टों में फेल होते हो. मेहनत नहीं कर पाते तो दोष भगवान के माथे मढ़ते हो.’’

‘‘रहने दो कवि, मैं मानता हूं कि मुझ में कहीं कोई कमी है. मैं तुम्हारे आगे हथियार डालता हूं. वैसे इस समय मैं सोने के मूड में हूं क्योंकि सारी रात राहुल ने सोने नहीं दिया है. कान दर्द बताता रहा.’’

‘‘यह कान दर्द भी तुम्हारे भगवान ने दिया होगा. यह क्यों नहीं कहते कि रात को स्टार मूवीज की गरमागरम फिल्म देख रहे थे और बहाना राहुल का बना रहे हो. इस में भी तुम्हारा कोई दोष नहीं क्योंकि भगवान के प्रति आस्था रखने वाले झूठ का सहारा तो लेते ही हैं.’’

‘‘कवि, राहुल उठ गया है उसे ले लो तो मैं थोड़ी देर तक दिल्ली में चल रही गणतंत्रदिवस परेड देख लूं.’’

राहुल को पालने में लिटा कर कवि उस के लिए दूध बनाने रसोईघर में घुसी. दूध बनाने के बाद बोतल से राहुल को दूध पिलाने लगी. घड़ी की टनटन की आवाज के साथ उस ने देखा तो  साढ़े 8 बज गए थे. वह सोचने लगी कि आया भी अभी तक नहीं आई. जाने कब आएगी. आती तो मुझे फुरसत मिलती इस राहुल से.

राहुल की आंखों में कवि की गोद में आने का आग्रह था, पर वह इस लालच में कभी पड़ी ही नहीं. उसे डर था कि यदि बच्चे को मां की गोद में रहने की आदत पड़ गई तो उस के लिए बड़ी दिक्कत हो जाएगी. राहुल हाथपैर हिलाहिला कर दूध पीता रहा.

कवि हेमंत के लिए चाय बना कर उसे प्याले में उड़ेलने लगी. यह क्या, चाय बाहर क्यों गिर रही है? मुझे किस ने धक्का दिया? कहीं मुझे चक्कर तो नहीं आ रहा है? राहुल पालने में जोरजोर से क्यों झूल रहा है? उसे कौन झुला रहा है और ये बरतन हिलते हुए दूसरी तरफ क्यों जा रहे हैं? ओह नो, भूकंप…

कवि घबराई हुई राहुल पर झपटी. उसे गोद में ले कर बेडरूम में भागी, हेमंत उठो, ‘‘भूकंप. गिरजा को लो.’’

शायद हेमंत भी स्थिति को समझ गया था. वह तेजी से गिरजा को गोदी में ले कर भागा. दोनों अपनीअपनी गोद में बच्चों को ले कर सीढि़यों की तरफ भागे. कवि ने देखा कि हेमंत 5-6 सीढि़यां ही उतर पाया था कि अचानक वह सीढि़यों के साथ नीचे गिरता चला गया. कवि के मुंह से चीख निकली, ‘‘हेमंत, बचो,’’ पर यह क्या मैं भी…और मेरे ऊपर भी दीवार भयानक ढंग से नीचे आ रही थी. कवि को बस, उस समय यही लगा था कि सारी बिल्ंिडग नीचे धंस रही है.

अचानक कवि जागी उसे लगा कि सिर और पैर में तेज दर्द है. सिर पर हाथ फिरा कर देखा तो कुछ चिपचिपा सा लगा. पैर में भी चोट आई थी. ‘मैं कहां हूं,’ कवि ने खुद से पूछा तो उसे याद आया कि वह तो राहुल को ले कर नीचे की ओर भागी थी…राहुल, वह कहां है?

ये भी पढ़ें- चौथा कंधा : क्या कौलगर्ल के दाग को हटा पाई पारो

अपने अगलबगल टटोला तो उस से थोड़ी ही दूरी पर राहुल पड़ा था. वह शायद सो रहा था. कवि ने उसे उठाया. सिर से पैर तक उस के अंगों को टटोल कर देखा. अचानक उस के मुंह से निकला, मेरे बच्चे, ‘तुम ठीक तो हो.’ और इस के बाद कवि उसे बेतहाशा चूमने लगी. यह बच्चे के जीवित रहने की खुशी थी जो प्यार बन कर उस के समूचे बदन को चूम रही थी. उस ने टटोल कर देखा तो बच्चे का अंगप्रत्यंग सलामत था. उस के बदन पर कहीं खरोंच तक न थी. मां के शरीर का स्पर्श पा कर राहुल जाग गया और उस के मुंह से निकला, ‘मां…’

कवि ने उसे अपने सीने से चिपका लिया. उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. अचानक उसे गिरजा का खयाल आया और किसी अनहोनी की आशंका से वह सिहर गई. ‘गिरजा…’ वह तो हेमंत के हाथों में थी. हेमंत सीढि़यों सहित नीचे जा गिरा था. वह कहां है, जिंदा भी है या…

और एक अज्ञात भय से

कवि कांप गई. जोर  से चिल्लाई, ‘‘हेमंत…हे…मं…त… गिरजा… गि… र… जा…हे…मं….त…’’

आगे पढ़ें- राहुल रो रहा था. उसे शायद…

ये भी पढ़ें- Top 10 Best Social Story in Hindi : टॉप 10 सोशल कहानियां हिंदी में

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें