फिर से नहीं: भाग-2

पूर्व कथा:

ब्रेकअप के 2 साल बाद अचानक प्लाक्षा की मुलाकात अपने ऐक्स बौयफ्रैंड विवान से हुई, तो उस के दिमाग में फिर से वही पुरानी बातें घूमने लगीं. जब एक रोज प्लाक्षा ने विवान को प्रपोज किया था. मगर विवान के शक्की व्यवहार ने उन दोनों के बीच जल्द ही दूरियां पैदा कर दी थीं. 1 हफ्ते बाद विवान फिर प्लाक्षा को उस के औफिस के बाहर मिला. वह उस से कुछ जरूरी बात करना चाहता था. मगर प्लाक्षा जल्दी में थी इसलिए शाम को मिलने का वादा कर के चली गई. शाम को जब दोनों मिले तो विवान ने कहा कि क्या तुम मेरे मम्मीपापा से मेरी गर्लफ्रैंड बन कर मिल सकती हो. सारा मामला जानने के बाद प्लाक्षा मिलने को राजी हो गई.

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‘‘उस का चेहरा मेरे चेहरे के बिलकुल नजदीक था. उस की सांसों को मैं अपनी गरदन पर महसूस कर रही थी. मन कर रहा था कि उस से लिपट जाऊं और जी भर के रोऊं. नहींनहीं…’’

‘‘तुम यह सब क्यों कर रहे हो विवान?’’ प्लाक्षा अंतत: पूछ ही बैठी.

‘‘तुमतो काफी छोटी लगती हो विवान से,’’ उस की मम्मी ने कहा.

‘‘नहीं आंटी, हम तो एक ही…’’ मेरी बात काट कर विवान बीच में ही बोला, ‘‘एक ही औफिस में काम करते हैं, एक ही बैच के हैं.’’ अच्छा हुआ उस ने संभाल लिया. मेरे मुंह से निकलने वाला था कि हम एक ही क्लास में थे.

‘‘फिर भी छोटी लगती है,’’ कह कर वे फुसफुसा कर उस के पापा के कान में कुछ कहने लगीं. मुझे पता था कि वे मेरी हाइट के बारे में बात कर रही होंगी. बचपन से सुनती आई थी ऐसी बातें लोगों के मुंह से, अब तो आदत हो चुकी थी. उन की बात भी सही थी. विवान मुझ से एक फीट से भी ज्यादा लंबा था.

‘‘तो बेटा, तुम यहां अकेली रहती हो?’’ उस के पापा ने पूछा.

‘जी. जौब यहीं है और मम्मापापा का जयपुर में अपनाअपना काम है, इसलिए अकेली ही रहती हूं,’’ मैं ने जवाब दिया.

‘‘शादी की बात करने तो वे आएंगे न?’’ उन्होंने आगे पूछा.

‘‘जी…’’ मैं ने झिझक कर विवान की ओर देखा.

‘‘पापा, अभी जयपुर में इन के घर का काम चल रहा है और फिर उन की जौब भी है, तो अभी नहीं आ सकते,’’ उस ने कहा.

‘‘तो हम जयपुर चले चलते हैं,’’ अंकलआंटी दोनों ने एक स्वर में कहा.

‘‘अरे इतनी भी क्या जल्दी है? वैसे भी अगले महीने मुझे प्रमोशन मिलने वाली है. तब तक अंकलआंटी भी फ्री हो जाएंगे,’’ विवान जल्दी से बोला.

‘‘अभी अगर सगाई ही हो जाती तो…’’ आंटी ने उम्मीद भरे स्वर में कहा.

‘‘मां मुझे पता है आप को मेरी शादी की बहुत जल्दी है. इतने दिन रुकी हो, तो अब थोड़े दिन और रुक जाओ,’’ उस ने मां को समझाते हुए कहा.

घर से बाहर आ कर कार में बैठ कर मैं ने चैन की सांस ली. विवान ने कार स्टार्ट की ही थी कि मेरे दिमाग में एक विचार कौंधा, ‘‘मुझे एक बात बताओ विवान. तुम ने अपने घर वालों को सीधासीधा यह क्यों नहीं बता दिया कि साक्षी अभी यहां नहीं है, 6 महीने बाद आएगी?’’

मेरी बात सुन कर वह कुछ परेशान हो गया. फिर बोला, ‘‘मेरी मौसी की बेटी की सगाई एक लड़के से हुई थी. उस के बाद वह विदेश चला गया. उन लोगों ने 1 साल तक उस का इंतजार किया, लेकिन वह वापस नहीं आया. यहां उस के परिवार को भी उस की कोई खबर नहीं थी. बाद में छानबीन करने पर पता चला कि वह वहां आराम से लिव इन में रह रहा था. उस के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज हुई, लेकिन सगाई में हुए खर्चे और परिवार की इज्जत को हुए नुकसान की तो कोई भरपाई नहीं हुई.’’

‘‘लेकिन साक्षी तो कंपनी की तरफ से गई है न, उसे तो वापस आना ही पड़ेगा 6 महीने बाद?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, लेकिन मां यह बात नहीं समझ सकतीं न. उन्हें तो लगता है कि विदेश जाने वाला हर इनसान धोखेबाज हो जाता है,’’ उस ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.

‘‘और जब साक्षी वापस आ जाएगी तब उन से क्या कहोगे? अपने ही बेटे से मिले धोखे को वे बरदाश्त कर पाएंगी?’’ मुझे सब कुछ बिलकुल घालमेल सा लग रहा था.

‘‘मैं इस बारे में नहीं सोचना चाहता पाशी. वह जब होगा तब मैं संभाल लूंगा. अभी बस मुझे मम्मीपापा को किसी तरह 6 महीने तक रोकना है. इस के अलावा मुझे अभी कुछ नहीं सूझ रहा.’’ उस ने कार रोक दी. मेरा घर आ चुका था.

‘‘तुम्हें लगता है कि तुम सही कर रहे हो विवान?’’ मैं ने इन दिनों में पहली बार उस की आंखों में देखते हुए पूछा.

‘‘नहीं, लेकिन मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं है अपने प्यार को पाने का,’’ उस ने मेरी आंखों में आंखें डालते हुए कहा. एक पल को लगा जैसे दुनिया ठहर गई हो पर फिर ध्यान आया उस का प्यार यानी साक्षी. मैं चुपचाप कार से उतर गई. वह चला गया.

अगले कुछ दिनों तक न तो उस का कोई काल आया और न ही वह कहीं नजर आया. मैं जानती थी कि वह मेरे पास सिर्फ काम से आया था पर फिर भी मुझे बुरा लगा. ऐसा नहीं था कि मैं ने उस से कोई उम्मीद की थी, लेकिन शायद फिर से उसे सामने देख कर दिल एक बार फिर ख्वाब संजोने लगा था. कई बार काफी दुखी हो जाती, उसे काल करने की भी सोचती. कई बार जी में आया कि मना कर दूं कि मुझे नहीं करनी किसी भी तरह की कोई भी मदद. लेकिन उस से जो मांगना था, उस के लालच में खुद को मना लेती. इस बार मैं कुछ भी भावनाओं में बह कर नहीं कर रही थी. इस में मेरा भी स्वार्थ था.

एक रात इन्हीं विचारों में डूबी मैं बिस्तर पर लेटी करवटें बदल रही थी, तभी दरवाजे की घंटी बजी. मैं चौंक कर उठ बैठी. इतनी रात को कौन हो सकता है? घड़ी में देखा, पौने 12 बज रहे थे. वैसे तो जिस प्रोफैशन में मैं थी मुझे डरना नहीं चाहिए था, लेकिन इतने बड़े शहर में अकेली लड़की का फ्लैट में रहना आसान नहीं था. आज तक कोई खास परेशानी तो नहीं हुई थी पर आज इस घंटी की आवाज सुन कर दिल जोरजोर से धड़कने लगा. पिछले कुछ समय में लड़कियों के साथ हुए सारे हादसे याद आने लगे.

पलंग से उतर कर धीमे कदमों से मैं दरवाजे तक पहुंची. डोर व्यूवर में देखा तो बाहर विवान खड़ा था.

‘‘तुम इतनी रात को यहां क्या कर रहे हो?’’ दरवाजा खोलते ही मैं ने पूछा.

उस ने जवाब दिए बिना ही कहा, ‘‘अंदर आ जाऊं? मैं किनारे हो गई. अंदर जा कर वह कुरसी पर बैठ गया. मैं भी दरवाजा बंद कर के अंदर आ गई.

‘‘एक गिलास पानी पिलाओगी?’’ वह बोला, तो पानी पिला कर उस के पास ही कुरसी पर बैठ कर मैं उस के बोलने का इंतजार करने लगी. मुझे अपनी तरफ घूरते देख वह बोला,  ‘‘सौरी, तुम्हें इतनी रात को परेशान किया. मैं अपने घर की चाबी न जाने कहां भूल गया. मम्मीपापा जयपुर गए हैं, तो समझ नहीं आया क्या करूं. इसलिए यहां आ गया.’’

‘‘जयपुर क्यों?’’ मैं ने परेशान हो कर पूछा.

‘‘अरे ऐसे ही कुछ काम था. तुम क्यों इतनी परेशान हो रही हो?’’

‘‘नहीं, मुझे लगा कि…’’

‘‘कि?’’

‘‘कुछ नहीं…’’ लेकिन मेरे बिना बोले ही वह समझ गया.

‘चिंता मत करो. मैं ने मम्मीपापा को मना कर दिया है कि वे तुम्हारे मम्मीपापा से न मिलें,’’ उस ने तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘अच्छा 1 कप कौफी पिलाओगी?’’ उस की बात सुन कर मेरा ध्यान टूटा.

‘‘हां क्यों नहीं. अभी लाती हूं,’’ कह कर मैं उठ कर किचन में चली गयी. 2 मिनट बाद ही बाहर से विवान जोरजोर से आवाज लगाने लगा. मैं दौड़ कर बाहर आई तो देखा हौल में बिलकुल अंधेरा था, विवान वहां नहीं था. तभी फिर से उस की आवाज आई, ‘‘हैपी बर्थडे टू यू…हैपी बर्थडे टू यू…हैपी बर्थडे टू डियर पाशी…,’’ वह हाथ में केक लिए मेरे पास आ रहा था. उसे याद था पर कैसे और क्यों? इस बार तो मुझे भी याद नहीं था.

‘‘थैंक्यू विवान. पर यह सब किसलिए?’’ मेरे स्वर में हैरानी थी.

उस ने मेरे होंठों पर उंगली रख कर कहा, ‘‘आओ पहले केक काटो. बाद में तुम्हारे परवर का जवाब दूंगा.’’

केक मेरा फेवरेट था यानी चौकलेट केक. उस पर लिखा था, ‘हैपी बर्थडे पाशी.’ आज कई सालों बाद मैं ने केक काटा था. विवान ने रिलेशनशिप के 5 सालों में मेरे बर्थडे पर कभी कुछ स्पैशल नहीं किया था. हर साल हमारा एक ही प्लान होता था मूवी और लंच. मैं हर साल उत्साहित होती कि शायद इस बार वह कुछ करेगा. लेकिन जब 2-3 साल यही सिलसिला चला, तो मैं ने उम्मीद करना ही छोड़ दिया.

कुछ जलने की बदबू आ रही थी. कौफी…मेरे मुंह से निकला. फिर मैं केक का टुकड़ा उस के हाथ में थमा कर किचन की तरफ भागी. गैस स्टोव खुला पड़ा था. पानी उबलउबल कर खत्म हो गया था और कौफी जलने की बदबू आ रही थी. मैं ने जल्दी से नौब बंद किया. विवान भी अंदर आ गया. यह सब देख कर वह बोला, ‘‘कोई बात नहीं. मैं कोल्ड ड्रिंक्स लाया हूं और खाने का सामान भी. मैं ने डिनर भी नहीं किया. चलो बाहर चलें.’’ वह बैग से एकएक कर के चीजें निकाल रहा था. पिज्जा, कोल्ड ड्रिंक और तोहफा.

‘‘ये लो तुम्हारा गिफ्ट,’’ उस ने तोहफा मुझे थमा दिया जो एक बहुत खूबसूरत कोलाज था. बचपन से ले कर आज तक की मेरी सारी तसवीरें. उन में से अधिकतर वे थीं, जो विवान ने मुझ से ली थीं. कुछ तो उन्हीं दिनों की थीं. मुझे पता ही नहीं चला उस ने कब खींची थीं.

‘‘विवान,’’ मैं ने उसे अपनी ओर घुमाते हुए कहा.

‘‘हां गोरी मेम.’’

एक सैकंड को मेरे चेहरे पर मुसकान आ गई. वह हमेशा मुझे प्यार से ऐसे ही बुलाता था. अपनी भावनाओं पर काबू करते हुए मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम यह सब क्यों कर रहे हो विवान?’’

‘मैं ने क्या किया?’’ उस ने मासूम बन कर पूछा.

‘‘यही सब…मेरा बर्थडे मना रहे हो रात के 12 बजे. 5 साल के रिलेशनशिप में कभी भी मेरे लिए कुछ स्पैशल नहीं किया. अब यह सब किसलिए?’’ मेरी आंखों में आंसू थे.

‘‘अरे तुम रो क्यों रही हो…तुम मेरी इतनी हैल्प कर सकती हो तो क्या मैं तुम्हारा बर्थडे भी नहीं मना सकता? क्यों इतना भी हक नहीं है मुझे?’’ वह मेरे गाल थपथपाते हुए बोला.

‘‘नहीं है. मुझे यह सब नहीं चाहिए विवान. मैं ने बहुत प्यार ले लिया सब से. अब और नहीं चाहिए. बेहतर होगा कि तुम यह सब न करो,’’ मेरे स्वर में दृढ़ता थी.

‘‘आगे से ध्यान रखूंगा पर अभी जो प्लान किया है वह तो करने दो प्लीज.’’

हम दोनों खामोशी से बैठ कर खाते रहे. अपना पसंदीदा पिज्जा खा कर मेरे मूड में कुछ सुधार हुआ. अब हम आराम से बैठ कर कोल्ड ड्रिंक पी रहे थे.

‘‘तुम्हारे पास साक्षी का कोई फोटो है?’’ मैं ने विवान से पूछा.

‘‘हां, क्यों?’’

मैं ने उस से दिखाने को कहा. साक्षी सुंदर थी. मुझ से ज्यादा सुंदर. मैं तो वैसे भी खुद को कभी सुंदर नहीं मानती थी. मैं ने विवान से कह भी दिया कि साक्षी बहुत सुंदर है, उस के लायक है. विवान खुद भी बहुत स्मार्ट था. अच्छीखासी कदकाठी, आकर्षक चेहरा. मैं तो उस के सामने कुछ भी नहीं थी.

‘‘तुम से ज्यादा क्यूट नहीं है,’’ उस ने शरारती अंदाज में कहा.

‘‘मजाक मत करो विवान,’’ मैं ने उसे हंस कर टाल दिया.

वह मुझे एकटक देख रहा था. मैं नजरें चुरा कर दूसरी ओर देखने लगी. यह देख कर उस ने भी अपनी नजरें हटा लीं और सहज हो कर कहा,  ‘‘चलो डांस करते हैं.’’

‘‘डांस? विवान तुम मजाक कर रहे हो. तुम और डांस?’’

‘‘हां, आजकल खूब डिस्को जा रहा हूं. चलो उठो.’’

‘‘अरे नहीं, मन नहीं है,’’ मैं ने आनाकानी करने की कोशिश की, लेकिन उस ने एक ही झटके में मुझे उठा लिया.

काफी वक्त बाद हम इतने करीब थे. विवान सहज था पर मैं असहज महसूस कर रही थी. उस का स्पर्श उस के पास होने का एहसास मुझे विचलित कर रहा था. कहीं अब भी मैं उस से…? नहींनहीं फिर से नहीं. उस का चेहरा मेरे चेहरे के बिलकुल नजदीक था. उस की सांसों को मैं अपनी गरदन पर महसूस कर रही थी. मन कर रहा था कि उस से लिपट जाऊं और जी भर के रोऊं. नहींनहीं…

मैं छिटक कर उस से अलग हो गई. उस की आंखों में ग्लानि और हैरानी का मिलाजुला भाव था. ‘‘तुम अब जाओ विवान,’’ मैं ने उस से नजरें मिलाए बिना कहा. वह बिना कुछ कहे चला गया. सुबहसुबह मां के फोन से आंखें खुलीं. जन्मदिन की बधाई देने के बाद वे घर आने के कार्यक्रम के बारे में पूछने लगीं. वे जानती थीं कि नईनई नौकरी में छुट्टी मिलना आसान नहीं होता इसलिए कभी ज्यादा जोर नहीं देती थीं. लेकिन मैं पहली बार घर से दूर अकेली रह रही थी इसलिए उन्हें याद भी आती थी और फिक्र भी होती थी. मैं ने उन्हें तसल्ली दी कि राखी पर पक्का आ जाऊंगी. इसी बहाने भाई से भी मिलना हो जाएगा.

मां ने संतुष्ट हो कर फोन पापा को दे दिया. पापा ने बधाई दे कर और हालचाल पूछ कर फोन वापस मां को थमा दिया. इस बार मां के स्वर में उत्साह था,  ‘‘अच्छा सुन तेरे लिए एक रिश्ता आया है. तेरे पापा को तो पसंद भी आ गया.’’

‘‘मम्मा, आप को पता है न मुझे शादी नहीं करनी, फिर भी आप…’’ मैं ने चिढ़ कर कहा.

‘‘अरे कभी न कभी तो करनी है न. वे लोग इंतजार करने को तैयार हैं.’’

‘‘जरूर कोई कमी होगी लड़के में. ऐसे कौन इंतजार करता है.’’

‘‘कोई कमी नहीं है. मैं ने देखा है. अच्छाखासा दिखता है. इंजीनियर है, कमाई भी ठीकठाक है. तुझे भी जरूर पसंद आएगा.’’

अच्छा तो बात यहां तक पहुंच चुकी है. मुझ से पूछे बिना मेरी शादी की बातें हो रही हैं. लड़के देखे जा रहे हैं और पसंद भी किए जा रहे हैं. मुझे अब बहुत चिढ़ होने लगी तो मैं गुस्से से बोली, ‘‘इंजीनियर होने से क्या होता है मम्मा, वह तो मैं भी थी. आजकल तो हर दूसरा बंदा इंजीनियर है.’’

मेरा जीवन भर शादी करने का कोई इरादा नहीं था. लगता था जैसे दुनिया भर की परेशानियां पिछले कुछ सालों में झेल ली थीं और लड़कों को तो मैं बरदाश्त भी नहीं कर सकती थी. विवान की बात अलग थी. मैं उस की एकएक आदत जानती थी और वह मेरी. मुझे पता था उसे किस स्थिति में कैसे संभालना है. बाकी तो आज तक सब लड़कों ने मुझे बेवकूफ ही बनाया था चाहे वे दोस्त हों या कुछ और.

‘‘एक बार मिलने में क्या हरज है बेटा? हम कौन सा जबरदस्ती तेरी शादी करा देंगे,’’ मां ने मनुहार करते हुए कहा.

‘‘पर मुझे शादी करनी ही नहीं है मां,’’ मैं किसी कीमत पर नहीं मानने वाली थी. ये सब घर वालों की साजिश होती है. पहले मिलने में क्या हरज है, फिर रिश्ता ही तो पक्का हुआ है, फिर सगाई भी कर ही देते हैं और आखिर में शादी करा के ही मानते हैं. मुझे इस जाल में नहीं फंसना था.

‘‘क्यों नहीं करनी? मुझे कारण तो बता. कोई है क्या? हो तो बता दे. तू तो जानती है हमें कोई प्रौब्लम नहीं होगी.’’

‘‘हां मां, कोई है.’’ मैं ने हकलाते हुए कहा. मां से झूठ बोलना बहुत बड़ी बात थी. हम दोनों मां बेटी होने से ज्यादा दोस्त थीं, लेकिन अभी मुझे कुछ और सूझ ही नहीं रहा था.

‘‘कौन है, क्या करता है? वहीं का ही है क्या? बताया क्यों नहीं?’’ मां ने एक के बाद एक सवाल दागने शुरू कर दिए.

‘‘मम्मा, आप उस को जानती हो. मेरे साथ कालेज में था. इंजीनियरिंग में. आजकल यहीं है.’’

‘‘कौन, विवान?’’

मां भी न मां ही होती है. मैं हंस पड़ी,  ‘‘हां मां, आप को कैसे पता?’’

‘‘बेटा मैं आप की मां हूं. तू जिस तरीके से उस के बारे में बात करती थी, उस से मुझे लगता तो था कि कुछ न कुछ तो है.’’ मैं कुछ नहीं बोली. मां ही आगे बोलने लगीं, ‘‘तो घर कब ला रही है उसे? पापा से भी तो मिलवाना पड़ेगा न.’’

‘‘नहीं मां, पापा को मत बताना प्लीज. वे पता नहीं क्या सोचेंगे.’’

पापा से मेरा रिश्ता थोड़ा अलग किस्म का था. वह न तो दोस्ती जितना खुला था और न ही पारंपरिक पितापुत्री जैसा दकियानूसी. हम दोनों दुनिया के किसी भी बौद्धिक मुद्दे पर बात कर सकते थे, लेकिन बायफ्रैंड, शादी वगैरह पर कभी नहीं.

‘‘क्या सोचेंगे? वे जानते हैं कि उन की बेटी समझदार है. जो भी फैसला लेगी सोचसमझ कर ही लेगी,’’ मां मेरी बात को समझ ही नहीं रही थीं और मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे रोकूं मां को?

‘‘मां, लेकिन…’’ मैं ने बोलने की कोशिश की.

‘‘अब कुछ लेकिनवेकिन नहीं. तू जब राखी पर आएगी उसे भी साथ ले आना. सब मिल लेंगे,’’ मां ने अंतिम फैसला सुनाते हुए कहा.

मैं ने फोन रख दिया. लेकिन सोच रही थी अब यह एक और नई परेशानी. विवान को मनाना पड़ेगा और कल जो हुआ उस के बाद पता नहीं विवान मानेगा या नहीं. फिर भी कोशिश तो करनी होगी. मैं ने उसे फोन लगाया. उस ने उठाया नहीं. 2-3 बार करने पर भी नहीं उठाया. क्या वह नाराज था या फिर शर्मिंदा?

औफिस भी जाना था. अब बचपन तो था नहीं कि सारा दिन जन्मदिन मनाती फिरूं. बड़े होने का यही नुकसान है. आप छोटीछोटी खुशियों को मनाना छोड़ देते हो. खैर, फटाफट तैयार हो कर औफिस के लिए निकल गई. विवान से बाद में भी बात हो सकती थी.

लंच टाइम के दौरान उस का काल आया,  ‘‘सौरी यार, मीटिंग में था इसलिए फोन नहीं उठा पाया. बोलो?’’

ओह तो यह बात थी. मैं बिना मतलब ही फालतू की बातें सोच रही थी. वह सामान्य रूप से ही बात कर रहा था. फिर भी मैं ने सावधानी से पूछा, ‘‘आज डिनर साथ करें? मुझे कुछ बात करनी है.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं. यह भी कोई पूछने की बात है. मैं शाम को तुम्हें पिक कर लूंगा,’’ उस ने सहजता से कहा.

चलो एक बाधा तो पार हुई. अब सब से बड़ी मशक्कत तो उसे मनाने की थी. सारा दिन यही सोचती रही कि उस से कैसे और क्या कहना है. कभीकभी लगता है कितने झमेले हैं जिंदगी में. आधी से ज्यादा तो लोगों को मनाने में ही निकल जाती है औरबाकी उन की बातें मान कर उन के अनुसार चलने में. शाम को मैं समय से पहले ही नीचे पहुंच गई. मेरे मन में जो उथलपुथल चल रही थी उसे मैं जल्दी से जल्दी शांत करना चाहती थी. कार में बैठ कर भी खुद को संयमित कर पाना मुश्किल हो रहा था.

‘‘विवान, मुझे तुम से एक फेवर चाहिए,’’ मैं ने झिझकते हुए कहा.

‘‘हां बोलो,’’ वह अपनी नजरें सड़क से हटाए बिना बोला.

‘‘क्या तुम मेरे लिए वही कर सकते हो जो मैं तुम्हारे लिए कर रही हूं?’’

‘‘मतलब?’’ उस ने हैरानी से मेरी तरफ देखा.

मैं ने उसे मां से सुबह हुई बात के बारे में बताया. यह भी बताया कि मैं ने मां से कहा है कि वह मेरा बौयफ्रैंड है और क्योंकि मां तुम्हें जानती हैं, इसलिए तुम्हें यह नाटक करना ही पड़ेगा.

‘‘तो यही था जो तुम बदले में मुझ से चाहती थीं?’’ उस ने पूछा.

‘‘नहीं. यह सब तो आज ही हुआ. उस बात को रहने दो. तुम बस मेरी इतनी हैल्प कर दो. मुझे और कुछ नहीं चाहिए,’’ मैं ने दयनीय स्वर में कहा.

वह हंसने लगा, ‘‘तुम पागल हो? तुम जो बोलो मैं वह करने को तैयार हूं. बस परेशानी यह है कि तुम कभी कुछ बोलतीं ही नहीं,’’ उस का हाथ मेरे हाथ पर था, आंखें मेरे चेहरे पर जमी हुई थीं. क्या उस की आंखों में मेरे लिए…? नहींनहीं…

‘‘राखी पर चलना है,’’ मैं ने गला खंखार कर कहा.

‘‘क्या?’’ इस से उस का ध्यान टूट गया,  ‘‘राखी पर तो नहीं उस के 1-2 दिन पहले या बाद में आ जाऊंगा, चलेगा?’’

‘‘थैंक्यू,’’ अब जा कर सांस में सांस आई. अब बस घर जा कर सब ठीक हो जाए.

एक बार फिर से हम मम्मीपापा के सामने बैठे थे. फर्क इतना था कि इस बार मम्मीपापा मेरे थे. घबराहट के मारे विवान के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. मुझे बड़ा मजा आ रहा था उसे ऐसे देख कर. बड़ी मुश्किल से मैं अपनी हंसी रोक पा रही थी.

‘‘मैं ने शायद पहले तुम्हें कहीं देखा है,’’ पापा ने विवान को देखते हुए कहा. उस ने डर कर मेरी तरफ देखा.

‘‘हां पापा, कालेज में देखा होगा कभी,’’ मैं ने अपना चेहरा सामान्य रखते हुए कहा.

‘‘हो सकता है. अच्छा बेटा पैकेज कितना है तुम्हारा?’’ पापा ने इंटरव्यू शुरू किया.   -क्रमश:

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