फिर से नहीं: भाग-5

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प्लाक्षा और विवान में गहराई तक दोस्ती थी. बात शादी तक पहुंचती, इस से पहले ही दोनों का ब्रेकअप हो गया. कुछ साल बाद दोनों की फिर से मुलाकात हुई, जो बढ़ती ही गई. अपनीअपनी शादी रुकवाने के लिए दोनों ने एकदूसरे के घर वालों के सामने नाटक किया और कुछ दिनों तक के लिए शादी रुकवा ली. उधर जिस लड़की साक्षी को विवान ने अपनी मंगेतर बताया था, उसे प्लाक्षा के बचपन के एक दोस्त आदित्य ने भी अपनी मंगेतर बता कर प्लाक्षा की उलझनें बढ़ा दी थीं. उन दोनों को एकसाथ प्लाक्षा ने मौल में भी खरीदारी करते देखा था. पर जब इस बात की जानकारी उस ने विवान को दी तो विवान ने कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई. प्लाक्षा को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है. जब वह विवान से मिली तो यह सुन कर और भी हैरान रह गई कि यह सब उस ने उसे ही पाने के लिए किया था.

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वह हार कर सोफे पर बैठ गया. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोलूं. दिमाग में पिछले कुछ दिनों की घटनाएं एक के बाद एक फिल्म की तरह चल रही थीं. विवान का अचानक मुझ से मिलना, अपनी मदद करने का आग्रह, मम्मीपापा से मिलवाना, साक्षी का फोटो, शादी… क्या वह सब कुछ झूठ था. इतनी आसानी से उस ने मुझे बेवकूफ बना दिया. इन सब चीजों के बीच उस का बदला हुआ रूप, मेरे लिए उस की परवाह, उस की आंखें क्या वह सब सच था या फिर वह भी बस झूठ, दिखावा था? मेरे लिए सच और झूठ के बीच भेद करना मुश्किल हो रहा था.

‘‘कुछ बोलो प्लाक्षा, ऐसे चुप मत रहो. मुझ पर चीखोचिल्लाओ लेकिन प्लीज कुछ तो बोलो,’’ विवान ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा.

‘‘यह सब कर के तुम्हें क्या मिला विवान? तुम सीधे मुझ से आ कर कह भी तो सकते थे कि मुझ से शादी करना चाहते हो. इतना बड़ा नाटक करने की क्या जरूरत थी?’’ मेरी आवाज अब भी धीमी थी.

वह मेरे सामने घुटनों के बल बैठ गया, ‘‘जरूरत थी प्लाक्षा. मैं तुम्हें यह एहसास कराना चाहता था कि तुम मेरे लिए कितनी स्पैशल हो. तुम्हारे साथ वक्त गुजार कर तुम्हारी छोटीछोटी बातों पर गौर करना चाहता था. तुम्हें बताना चाहता था कि मैं तुम्हारी कितनी परवाह करता हूं. इस थोड़े से वक्त में मैं 5 साल की भरपाई करना चाहता था. तुम्हें वह सब कुछ देना चाहता था, जो उन 5 साल में नहीं दे पाया. अटैंशन, केयर, प्यार सब कुछ.’’

‘‘और कभी मुझे सचाई पता चलती ही नहीं तो? तुम कब तक मुझ से झूठ पर झूठ बोलते रहते?’’ उस की बातें मुझे फिल्मी लग रही थीं. अगर आज से कुछ साल पहले वह ऐसी बातें करता तो मैं बहुत खुश हो जाती. लेकिन अब इन सब बातों को कोई मतलब नहीं था. दिल अब ऐसा नहीं था कि इस तरह की बातों से पिघल जाए. और अब जब मैं ने जान लिया था कि उस ने मुझ से इतना बड़ा झूठ बोला था तो उस की किसी भी बात पर विश्वास करना मुश्किल था.

‘‘मैं नहीं जानता प्लाक्षा, मैं बस किसी भी तरह तुम्हारे साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त गुजाराना चाहता था.’’

मैं हंस पड़ी. वक्त ही तो नहीं था कभी उस के पास मेरे लिए. बाकी सब चीजों- फिल्म, बाइक, दोस्त, जिम, घूमनाफिरना वगैरह के लिए था. मैं तो कहीं थी ही नहीं उस की जिंदगी में. हमेशा भीख मांगती रहती थी उस के वक्त की, उस के अटैंशन की लेकिन वह मेरे साथ हो कर भी नहीं होता था. मुझे देख कर भी नहीं देखता था. अब इन सब बातों का क्या फायदा? मैं चाह कर भी उस पर विश्वास नहीं कर सकती थी.

‘‘प्लाक्षा, प्लीज मेरी बात सुनो,’’ उस ने मेरे हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा. मैं चुप थी, अपने अंतर्द्वंद्व को छिपाए हुए.

‘‘प्लाक्षा, मैं ने तुम्हें कभी प्रपोज नहीं किया. कभी तुम से ‘आई लव यू’  नहीं कहा. आज मैं तुम्हारी यह शिकायत भी दूर कर देता हूं,’’ उस ने अपनी जेब से अंगूठी निकाल कर मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘प्लाक्षा, मैं तुम से बहुतबहुत प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना मेरी लाइफ बिलकुल बकवास है. मैं चाहता हूं कि पूरी जिंदगी तुम मुझे झेलो और मेरी फालतू बातों पर हंसती रहो. मैं हर पल तुम्हें खुश रखने की कोशिश करूंगा. प्लीज मुझ से शादी कर लो. मैं कुंआरा नहीं मरना चाहता.’’

उस की बात सुन कर मैं खुश नहीं हुई. लग रहा था जैसे अंदर सब कुछ मर सा गया था. इतने दिनों उस के लिए जो प्यार उमड़ रहा था वह अचानक कहीं गायब हो गया था. वह मेरे जवाब का इंतजार कर रहा था. मेरा मन नहीं था कि मैं उस से कुछ भी कहूं. कुछ भी कह कर अपनेआप को ही और परेशान करने का मेरा कोई इरादा नहीं था. मैं अपना हाथ छुड़ा कर उठ खड़ी हुई. विवान भी सकपका कर खड़ा हो गया. उसे मुझ से ऐसी प्रतिक्रिया की शायद उम्मीद नहीं थी.

‘‘प्लाक्षा, कुछ तो बोलो,’’ वह निवेदन के स्वर में बोला.

मेरा दिमाग अब और सहन नहीं कर सकता था. वह फट पड़े उस से पहले ही मैं ने बोलना शुरू कर दिया, ‘‘क्या सुनना चाहते हो? यही न कि मैं तुम से शादी करूंगी या नहीं? तो सुनो, मैं नहीं करूंगी. अब तुम्हें एक पल भी बरदाश्त करना मेरे लिए मुश्किल है. तुम ने कैसे सोच लिया कि वे सब बातें मैं इतनी आसानी से भूल जाऊंगी? तुम्हारी कुछ दिनों की केयर उन 5 सालों के खालीपन की भरपाई नहीं कर सकती. तरसती और रोती थी मैं तुम्हारे अटैंशन के लिए. तुम्हारी जिंदगी में थोड़ी सी इंपौर्टैंस के लिए, लेकिन मुझे पूरा बदल दिया तुम ने, तुम्हारे व्यवहार ने. अब चाह कर भी किसी को अपनी जिंदगी में जगह नहीं दे सकती. तुम्हें भी तुम्हारी वह जगह वापस नहीं मिल सकती. हर चीज का एक वक्त होता है. उस के बाद उस की अहमियत खत्म हो जाती है. जब मुझे तुम्हारे प्यार की बहुत ज्यादा जरूरत थी तब तुम्हारे लिए दूसरी चीजें ज्यादा महत्त्व रखती थीं. अब मैं आगे बढ़ चुकी हूं. अब ये सब बातें मेरे लिए फुजूल हैं.’’

विवान को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे अभी रो पड़ेगा. उस ने रूंधे गले से कहा, ‘‘पर प्लाक्षा मैं बदल चुका हूं. मुझे तुम्हारी अहमियत पता चल चुकी है. मैं बहुत खुश रखूंगा तुम्हें…’’

‘‘अच्छा और इस बात की क्या गारंटी है कि मुझे एक बार फिर से पा लेने के बाद मेरी अहमियत खत्म नहीं होगी? अभी तुम मुझे पाना चाहते हो, क्योंकि मैं तुम्हारी नहीं हूं. एक बार फिर से जब मैं तुम्हारे साथ होऊंगी तो तुम फिर से मेरे अस्तित्व के बारे में भूल जाओगे और अगर यह फिर से हुआ तो मैं खुद को संभाल नहीं पाऊंगी. एक बार ही बड़ी मुश्किल से संभाला था. अब और हिम्मत नहीं है. मैं फिर से तुम्हारे प्यार में पागल नहीं हो सकती. फिर से तुम्हें चोट पहुंचाने नहीं दे सकती. मैं फिर से खत्म नहीं होना चाहती विवान नहीं, फिर से नहीं…’’

अपने आंसुओं की बाढ़ को अब मैं नहीं रोक पाई. हां, मैं उस से प्यार करती थी. जब उस के साथ थी तब भी और जब नहीं थी तब भी. आज भी अब भी हर एक पल मैं ने उस से प्यार किया था. बस अब उसे इस बात का और फायदा उठाने नहीं दे सकती थी.

उस दिन मेरे घर से जाने के बाद विवान ने मुझ से संपर्क करने की कोई कोशिश नहीं की. यही हम दोनों के लिए ठीक भी था. बारबार सामने आने से खुद को संभाल पाना मुश्किल ही होता. हम दोनों जानते थे कि एकदूसरे से कितना प्यार करते हैं, लेकिन जीवन में पहली बार मैं रिश्तों में स्वाभिमान को महत्त्व दे रही थी. मेरे लिए हमेशा रिश्ते सर्वोपरि रहे थे. उन्हें बनाए रखने के लिए कितना भी झुकने को तैयार रहती थी पर अब खुद को अहमियत देने का वक्त आ गया था, नहीं तो मेरे अस्तित्व को खत्म होते देर नहीं लगती. विवान भी शायद यह बात समझ गया था. अब मुझे उस से कोई शिकायत नहीं थी. उस के बारे में अच्छा या बुरा कुछ भी सोचना नहीं चाहती थी.

मम्मीपापा दिल्ली आ चुके थे. आज हम लड़के वालों से मिलने उस के घर जाने वाले थे. मम्मी ने मेरा मूड भांप लिया था. उन्होंने कई बार पूछा भी कि मुझे कोई परेशानी तो नहीं है? लेकिन मैं ने कुछ नहीं कहा. फिर उन्होंने भी ज्यादा जोर नहीं दिया.

मेरा आज तैयार होने का बिलकुल मन नहीं था. वैसे भी मैं मेकअप वगैरह से दूर ही रहती थी. मम्मी भी सादा रहना ही पसंद करती थीं इसलिए उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं कहा. बस मेरे पुराने कपड़ों को देख कर जरूर नाराज हुईं कि बोलने पर भी नए क्यों नहीं लिए? अब क्या बोलती कुछ ले ही कहां पाई थी उस दिन.

मेरे मम्मीपापा की सब से अच्छी बात यह थी कि वे कभी किसी भी काम को करने पर  जोर नहीं देते थे. हमारे घर में जिस का जैसा मन करता, वैसा ही करता. किसी को किसी से कोई परेशानी नहीं होती थी. बस इतना जरूर सिखाया गया था कि खुद की मरजी चलातेचलाते दूसरों की सहूलत के बारे में न भूलें.

कार मैं ही चला रही थी. पापा ने उन से रास्ता पहले ही पूछ लिया था. वे मम्मी से बात करतेकरते रास्ता भी बताते जा रहे थे. कभीकभी मुझ से भी कोई बात कर लेते. लेकिन मैं अलग दुनिया में ही खोई हुई थी. उन की आवाज सुन कर बस ‘हां’ कर देती और निर्देशानुसार गाड़ी चलाती जा रही थी. एक घर के सामने उन्होंने गाड़ी रोकने को कहा.

घर देख कर जैसे मुझे अचानक होश आया. यह तो विवान का घर था. हम यहां क्यों आए थे? क्या मम्मीपापा मेरे लिए विवान से झगड़ा करने आए हैं? पर उन्हें कैसे पता वह यहां रहता है?

‘‘मम्मा, हम यहां क्या करने आए हैं?’’ मैं ने उन पर प्रश्नवाचक दृष्टि डाली. वे हलकी सी मुसकराईं और बोलीं, ‘‘अंदर चल, सब पता चल जाएगा.’’

मेरे पैर अपनी जगह से हिलने को तैयार ही नहीं थे. मैं वहीं ठिठक कर खड़ी रही. मम्मी ने पीछे मुड़ कर देखा तो पाया कि मैं वहीं की वहीं खड़ी थी. वे हाथ पकड़ कर मुझे अंदर ले गईं. अंकलआंटी हौल में हमारा इंतजार कर रहे थे. मम्मीपापा बड़ी ही गर्मजोशी से इन से मिले. क्या वे एकदूसरे को पहले से जानते थे? ये सब हो क्या रहा था? मैं ने अंकलआंटी को यंत्रवत नमस्ते किया और बैठ गई. विवान वहां नहीं था.

‘‘बेटा, विवान तुम्हारा अंदर अपने कमरे में इंतजार कर रहा है. जाओ, जा कर मिल लो,’’ आंटी ने प्यार से कहा. मैं उसी तरह यंत्रवत उठ कर उस के कमरे की तरफ चल दी.

दरवाजा हलका सा खुला था. बाहर से विवान दिखाई नहीं दे रहा था. मैं ने दरवाजे को हलका सा धक्का दे कर खोला. वह सामने बिस्तर पर बैठा काफी नर्वस दिखाई दे रहा था. मुझे अंदर आते देख कर उस के चेहरे की परेशानी और बढ़ गई.

‘‘ये सब क्या हो रहा है विवान? मेरे मम्मीपापा…तुम्हारे मम्मीपापा?’’ आखिरकार मेरी जबान ने कुछ हरकत की. विवान ने मुझे पकड़ कर पलंग पर बैठा दिया और खुद सामने कुरसी पर बैठ गया.

‘‘प्लाक्षा, मुझे समझ नहीं आ रहा. मैं तुम्हें कैसे बताऊं,’’ वह नजरें नीची कर के झिझकते हुए बोल रहा था.

‘‘अब भी कुछ बचा है क्या बताने को? और क्याक्या छिपाया है तुम ने मुझ से?’’ मैं ने खीझ कर कहा. मेरे सब्र का बांध टूट रहा था. कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर मेरे साथ हो क्या रहा है. कोई मुझे कुछ बता ही नहीं रहा था.

‘‘बोलो अब. ऐसे चुप रहने से क्या होगा? मुझे बताना तो पड़ेगा. आखिर मेरे साथ कर क्या रहे हो?’’ मैं ने उस का चेहरा ऊपर उठाया तो देखा उस की आंखों में आंसू थे. ऐसा लग रहा था जैसे वह पिछले कुछ दिनों में बहुत रोया था. आंखें सूजी हुई और एकदम लाल थीं.

‘‘मुझे माफ कर दो प्लाक्षा. मैं ने आज तक  तुम्हारे साथ जो कुछ भी किया, उस के लिए मुझे माफ कर दो. मैं बस यही चाहता था कि पुरानी गलतियों को सुधार कर तुम्हें वापस पा सकूं. तुम्हारा दिल दुखाने का मेरा कोई इरादा नहीं था. प्लीज…मुझे माफ कर दो,’’ वह अपना चेहरा हाथों में लिए सुबक रहा था. मेरे लिए यह अप्रत्याशित था. वह आजतक कभी मेरे सामने नहीं रोया था. मैं ने उस के चेहरे से हाथ हटाए और आंसू पोंछने लगी.

‘‘कोई बात नहीं. तुम रोओ मत. मैं भी शायद कुछ ज्यादा ही निष्ठुर हो गई थी,’’ मेरी आवाज में नरमी आ गई थी. चाहे मैं उस से कितनी भी नाराज होऊं लेकिन उसे परेशान नहीं देख सकती थी. रोते हुए तो बिलकुल भी नहीं.

‘‘प्लाक्षा, मैं तुम से सच में बहुत प्यार करता हूं. मैं अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. मैं बदल गया हूं प्लाक्षा, अब कभी तुम्हारा दिल नहीं दुखाऊंगा. तुम प्लीज मुझ से नाराज मत रहो,’’ वह फूटफूट कर रो रहा था. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं? मेरे दिमाग में पुरानी बातें चल रही थीं. पिछले कुछ दिनों में जो कुछ हुआ वह भी और अब यह प्यार तो मैं भी उस से करती थी, लेकिन फिर से उसे मौका देना…

उसे रोता देख कर लग रहा था जैसे मेरे अंदर भी भावनाओं की बाढ़ आ गई हो. दिल कह रहा था कि सब कुछ भुला कर उसे सीने से लगा लूं. लेकिन दिमाग अब भी नापतौल में लगा था. बुत बन कर बैठी मैं उसे बेबसी से रोते हुए देख रही थी. लेकिन मेरे लिए उसे इस तरह देखना अब असहनीय हो रहा था.

आखिरकार हमेशा की तरह मैं ने दिमाग को परे कर के दिल की बात सुनी. उस के हाथों को अपने हाथों में ले कर सहलाने लगी और बोली, ‘‘इस तरह रोओ मत विवान. मैं तुम से जरा भी नाराज नहीं हूं. मैं ने तुम्हें माफ भी कर दिया. बस तुम रोना बंद करो. मुझे यह बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा.’’

मेरा स्नेहिल स्पर्श पा कर उस का सुबकना कुछ कम हुआ. पानी पी कर वह थोड़ा सामान्य हो गया. मैं चुप ही थी. मेरे लिए अब भी काफी कुछ जानना बाकी था. मैं बस उस के बोलने का इंतजार कर रही थी.

उस ने हिम्मत कर के मेरी आंखों में देखा और कुरसी से उठ कर उसी दिन की तरह मेरे हाथों को अपने हाथों में लिए घुटनों के बल बैठ गया, ‘‘प्लाक्षा, सब से पहले तो मैं आज तक की अपनी सारी गलतियों के लिए तुम से फिर से माफी मांगना चाहता हूं. क्या तुम अपना समझ कर मेरी सारी गलतियों को माफ कर दोगी?’’

वह आशा भरी नजरों से मेरी तरफ देख रहा था. मैं ने बस हलके से सिर हिला दिया.

‘‘मैं वादा करता हूं कि अब तुम्हारा दिल कभी नहीं दुखाऊंगा,’’ उस की बात पर मुझे विश्वास था. यह बताने के लिए मैं ने उस के हाथों को हलके से दबाया.

‘‘पिछले कुछ दिनों में मैं ने तुम से बहुत सारे झूठ बोले हैं. लेकिन तुम जानती हो कि वह सब सिर्फ और सिर्फ तुम्हें पाने के लिए थे. क्या तुम उन सब के लिए मुझे माफ करोगी?’’ मैं ने अब भी कुछ नहीं कहा. बस पलकों को हिला कर हामी भर दी.

 

– क्रमश:

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