आंखों को छोड़ कैमरे से मस्ती

आजकल लोग किसी भी टूरिस्ट प्लेस पर जाएं तो वे सामने की ऐतिहासिक बिङ्क्षल्डग, नेचर का कमाल, सनराइज या सनसाइट, वहीं मौजमस्ती अपनी आंखों से नहीं मोबाइल स्क्रीन पर देखते हैं. कहीं कुछ अच्छा या बुरा हो रहा हो. भाई कैमरे चालू हो जाते है और नजारे का आनंद लेने की जगह सब फोटो खींचने में बिजी हो जाते हैं.

यह तो तब है जब हरेक के पास कैमरा है और हरेक के पास सैंकड़ों तरीके हैं जिन से अपनी जानपहचान वाले का खींचा सीन या घटना वे आराम से देख सकते हैं. पर अपनी बात कैमरे से कहने की बुरी लत इस कदर भर चुकी है कि लोग असल में जहां हैं, जो देख रहे हैं, जो कर रहे हैं इस पूरी तरह एंजौय करना भूल चुके हैं और अपने मित्रों, दोस्तों या अनजानों को बताने में लग रहते हैं कि देखो हमें क्या दिखा.

कैमरे की भूख का नरेंद्र मोदी भी खूब बड़ा रहे है. सोशल मीडिया ऐसी किलपिंगों से भरा है जिन में प्रधानमंत्री दूसरे लोगों को हटाने में लगे हैं यदि वे फोटोग्राफों के फ्रेंम में पूरी तरह आ सकें. शायद यही सी बिमारी उन के भक्तों ने पकड़ ली पर इतना कहना होगा कि यह दुनिया भर में हो रहा है और हम भारतीय कुछ खास फोटोजीवी हों, ऐसा नहीं है. सैल्फी तरकीब, बेहतर फोलों, 4जी, 5जी से अपलोड करना और डाउन लाउड करने की कैपेसिटी ने सब को मोबाइल फोटो का गुलाम बना दिया है.

फोटोग्राफ बहुत कुछ कहता है पर जब फोटोज की बाढ़ आ जाए तो जो कहा गया वह सब फ्लड के गंदे पानी में बह जाता है. आज हरेक के फोन में इस कदर फोटो भरे हैं कि किसी फोटो की कोई कीमत नहीं है. आज हर कोई दूसरों को इस बेसब्री से अपना खींचा फोटो दिखाने में लगा है कि उस के पास दूसरे के फोटो देखने का समय है न इच्छा. अपने को दूसरों पर थोपने की कोशिश की जो तकनीक मोबाइलों ने सिखाई है वह उस क्लास की तरह है जिस में हर जना अपना पाठ एक साथ दूसरे को सुना रहा है और जो जरूरत की बात वह कहे बिना दबी जा रही है.

घूमें, फिरे, दोस्तों से मिले, कुछ अच्छा दिखे तो एक दो फोटो खीचें पर अपने लिए अपने समय के फोटो खींचने में बर्बाद न करें. आप अगर कुछ खास कर रहे हैं, किसी शादीब्याह, फक्शन में हैं तो उसे एंजौय करें. उस का फोटो न खींचे अपना हाथ उठा कर पीछे वाले का मजा खराब न करें. मोबाइल आप को आप की यादें सुरक्षित रखने के लिए हो, दुनिया भर में ढिढोंरा पीटने के लिए नहीं.

फिल्म रिव्यू : फोटोग्राफ

रेटिंग: डेढ़ स्टार

‘‘लंच बाक्स’’ जैसी सफल फिल्म के सर्जक रितेश बत्रा इस बार रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘‘फोटोग्राफ’’ लेकर आए हैं.  जिसे देखने के बाद रितेश बत्रा पर ‘‘वन फिल्म वंडर’’ की ही कहावत सटीक बैठती है. इस रोमांटिक कौमेडी फिल्म में प्यार की भावनाएं तो कहीं उभरती ही नही है.

फिल्म की कहानी मुंबई की है. मुंबई के गेटवे आफ इंडिया पर घूमने आए लोगों के फोटो तुरंत खींचकर देकर कुछ फोटोग्राफर अपनी जीविका चलाते हैं. उन्हीं में से एक है मो.रफीक (नवाजुद्दीन सिद्दीकी). रफीक के माता पिता बचपन में ही खत्म हो गए थे. उनकी दादी ने उसे व उसकी दो बहनों को पाल पोसकर बड़ा किया. रफीक ने अपनी दोनों बहनों की शादी अच्छे ढंग से की. पर अब तक उनकी शादी नहीं हुई है. उसकी दादी चाहती हैं कि रफीक जल्द से जल्द शादी कर ले. दादी उसके पीछे पड़ी हुई हैं पर रफीक को कोई लड़की नहीं मिली. एक दिन वह गेटवे आफ इंडिया पर घूमने आयी गुजराती परिवार की लड़की मिलोनी (सान्या मल्होत्रा) की तस्वीर खींचता है. और यूं ही उसकी तस्वीर अपनी दादी (जफर) के पास भेज देता है कि वह चिंता न करें उसे एक अच्छी लड़की मिल गयी है. दादी को वह उसका नाम नूरी बता देता है क्योंकि उसने मिलोनी से नाम पूछा ही नहीं था. अब दादी का पत्र आ जाता है कि वह मुंबई नूरी से मिलने के लिए आ रही हैं तो रफीक परेशान हो जाता है. पर जल्द ही रफीक व मिलोनी की मुलाकात हो जाती है. रफीक,मिलोनी से निवेदन करता है कि वह उसकी दादी के मुंबई आने पर उनकी प्रेमिका बनकर मिल ले और वह बता देता है कि उसने दादी को उसका नाम नूरी बताया है. मिलोनी अमीर गुजराती परिवार की लड़की है, जो कि सी ए की तैयारी कर रही है. जब दादी मुंबई पहुंचती हैं तो रफीक मिलोनी को नूरी कहकर अपनी दादी से मिलवाता है. उसके बाद मिलोनी व रफी की मुलाकातें बढ़ती हैं. दोनों एक दूसरे के साथ एडजस्ट करने के लिए खुद को बदलने पर विचार करना शुरू करते हैं. पर एक दिन दादी रफीक से कह देती हैं कि उन्हे पता चल गया है कि नूरी का नाम कुछ और है और वह मुस्लिम नही है. उसके बाद रफीक, मिलोनी को लेकर फिल्म देखने जाता है. मिलोनी बीच में ही फिल्म छोडकर बाहर बैठ जाती है. रफीक भी उसके पीछे आता है और फिल्म की आगे की कहानी बताते हुए कहता है कि लड़की व लड़के के माता पिता को इनके प्यार पर एतराज होगा. और फिर दोनो चल पड़ते हैं.

nawazudin sidqui

पटकथा लेखन व कथा कथन की कमजोरी के चलते दस मिनट बाद ही दर्शक सोचने लगते हैं कि यह फिल्म कब खत्म होगी. फिल्म का अंत होने से पहले ही दर्शक कह उठता है कि ‘‘कहां फंसायो नाथ.’’ फिल्म बहुत ही धीमी गति से सरकती रहती है. इतना ही नहीं लेखक व निर्देशक ने बेवजह कोचिंग क्लास के अंदर का लंबा दृश्य, फिर कोचिंग क्लास के शिक्षक की सड़क पर मिलोनी से मुलाकात, अपने माता पिता के कहने पर एक गुजराती लड़के से होटल मे मिलोनी की मुलाकात के दृश्य गढ़कर कहानी को भटकाने का ही काम किया है. यह गैरजरुरी दृश्य कहानी में पैबंद लगाने का ही काम करते हैं. बतौर निर्देशक व लेखक रितेश बत्रा की यह सबसे कमजोर फिल्म कही जाएगी. एडीटिंग टेबल पर भी इस फिल्म को कसने की जरूरत थी. यह रोमांटिक कौमेडी फिल्म है पर दर्शक को एक बार भी हंसी नही आती. इतना ही नहीं मिलोनी या रफीक के चेहरे पर एक बार भी प्रेम की भावनाएं नजर नहीं आती.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो नवाजुद्दीन सिद्दीकी और सान्या मल्होत्रा दोनों ने ही निराश किया है. दादी के किरदार में फारुख जफर जरूर कुछ छाप छोड़ती हैं.

एक घंटा 51 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘फोटोग्राफ’’ का निर्माण रितेश बत्रा, रौनी स्क्रूवाला, नील कोप, विंसेट सेनियो ने किया है. निर्देशक रितेश बत्रा, संगीतकार पीटर रैबुम, कैमरामैन टिम गिलिस व बेन कुचिन्स तथा कलाकार हैं- नवाजुद्दीन सिद्दिकी, सान्या मल्होत्रा, फारूख जफर, विजय राज, जिम सर्भ, आकाश सिन्हा, ब्रिंदा त्रिवेदी नायक, गीतांजली कुलकर्णी, सहर्ष कुमार शुक्ला व अन्य.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें