पितृद्वय: भाग-1

प्रत्यक्षत:सब सामान्य सा लगता था पर मुंबई की रातदिन की चहलपहल भी सुहास के मन का अकेलापन खत्म नहीं कर पाती थी. उसे गांव से यहां नौकरी के लिए आए 2 साल हो गए थे पर मन नहीं लग रहा था. वह था भी अंतर्मुखी. वीकैंड की किसी पार्टी में सहयोगियों के साथ गया भी, तो बोर हो गया. सब बैचलर्स अपनीअपनी गर्लफ्रैंड के साथ आते थे और खूब मस्ती करते थे पर उस का मन कुछ और ही चाहता था. शांत, सहृदय, इंटैलिजैंट सुहास को लोग पसंद भी करते थे. लड़कियां उसे पसंद करती थीं, उस का सम्मान करती थीं. वह था भी गुडलुकिंग, बहुत स्मार्ट, पर उस का मन स्वयं को बहुत अकेला पाता था. गांव में उस के मातापिता उस का अकेलापन देखते हुए उस के पीछे भी पड़े थे पर सुहास को किसी लड़की की चाह नहीं थी. लड़कियों के लिए उस के दिल में कभी वैसी भावनाएं जगी ही नहीं थीं कि वह विवाह के लिए तैयार होता.

सोसायटी के गार्डन में डिनर के बाद सुहास टहलने जरूर जाता था. वहां खेलते बच्चे उसे बहुत अच्छे लगते थे. वहीं एक दिन घूमतेटहलते किसी और बिल्डिंग में रहने वाले नितिन से उस की मुलाकात हो गई. नितिन बैंगलुरु से आया था और अपनी विवाहित बहन के घर रहता था. दोनों को ही एकदूसरे की कंपनी खूब भाई. महीनेभर के अंदर ही दोनों अच्छे दोस्त बन गए. दोनों को ही स्पष्ट समझ आ गया कि दोनों को ही शारीरिक और मानसिकरूप से एकदूसरे के जैसा ही साथी चाहिए था.

इस बार सुहास गांव गया तो उसे खुश देख कर उस के मातापिता बहुत खुश हुए. पूछ लिया, ‘‘बेटा, कोई लड़की पसंद आ गई क्या?’’

‘‘नहीं मां, एक दोस्त मिला है नितिन… मुझे वैसा ही साथी चाहिए था. मैं उस के साथ बहुत खुश हूं,’’ फिर झिझकते हुए सुहास ने आगे कहा, ‘‘किसी लड़की से शादी कर ही नहीं सकता मैं. मैं और नितिन एकदूसरे के साथ बहुत खुश हैं.’’

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सुहास के मातापिता को बहुत बड़ा झटका लगा कि यह क्या कह रहा है उन का बेटा. कहां वे हर लड़की को देख कर बहू के सपने देख रहे हैं, कहां बेटे को तो लड़की चाहिए ही नहीं. कोई लड़का ही उस का साथी है. यह क्या हो रहा है? सुहास के मातापिता गांव में जरूर रहते थे पर सेमसैक्स रिलेशन से अनजान नहीं थे. तीव्र क्रोध और गहन निराशा में वे सिर पकड़ कर बैठ गए. लोग क्या कहेंगे? उन का कितना मजाक उड़ेगा? एक ही बेटा है, वंश कैसे चलेगा?

सुहास को अपने मातापिता की मनोदशा पर दुख तो हुआ पर वह क्या कर सकता था? नितिन से रिश्ता उसे सुख देता है तो वह क्या करे? सुहास के मातापिता उस से इतने नाराज हुए कि उस के जाने तक उस से बात ही नहीं की. वह उदास सा मुंबई वापस चला आया. सुहास ने नितिन को अपने और उस के रिश्ते पर अपने मातापिता की प्रतिक्रिया बताई तो नितिन को दुख तो बहुत हुआ पर अब दोनों के हाथ में जैसे कुछ न था. वे आपस में खुश थे और ऐसे ही खुश रहना चाहते थे.

समय अपनी रफ्तार से चल रहा था. नितिन की बहन नीला को सुहास और नितिन के रिश्ते के बारे में पता चल चुका था. उसे अच्छा तो नहीं लगा पर उस ने कुछ कहा भी नहीं. उस ने अपने मातापिता को बैंगलुरु फोन कर के बताया तो वे काफी नाराज हुए. नीला के पति सुजय ने भी सुन कर मजाक बनाया, ताने कसे.

एक दिन सुहास को औफिस से लौटने पर हरारत महसूस हो रही थी. नितिन के जोर देने पर वह डाक्टर को दिखाने गया. सोसायटी के शौपिंग कौंप्लैक्स में ही डाक्टर शैलेंद्र का क्लीनिक था. शैलेंद्र से उस की जानपहचान पहले से थी. उन्होंने दवा दी. एक फोन आने पर वे कुछ जल्दी में लगे तो शैलेंद्र से कारण पूछने पर उन्होंने सोरी बोलते हुए कहा, ‘‘बालनिकेतन जाना है. वहां 8 महीने का बच्चा 3-4 दिन से परेशान है. वहां मैं अपनी सेवाएं देता हूं. बच्चे के मातापिता की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. कुछ लोग उसे अनाथालय छोड़ गए हैं.’’

शैलेंद्र अपनी इस समाजसेवा के लिए बहुत प्रसिद्ध थे. सुहास घर वापस आ गया. 3 दिन बाद शैलेंद्र से उस की अचानक भेंट हुई. सुहास ने बच्चे के बारे में पूछा तो वे बोले, ‘‘छोटी सी जान संभल ही नहीं पा रही है.’’

सुहास के मन में बड़ी दया जगी. पूछा, ‘‘मैं उस के लिए कुछ कर सकता हूं? उस से मिल सकता हूं?’’

‘‘क्यों नहीं, वहां चले जाना… मैं वहां फोन कर दूंगा.’’

अगले दिन सुहास औफिस से सीधे ‘बालनिकेतन’ पहुंच गया. शैलेंद्र वहां फोन कर चुके थे. सुहास ने वहां के मैनेजर राघव से मिल कर बच्चे को देखने की इच्छा प्रकट की. कहा, ‘‘मुझे बच्चे बहुत अच्छे लगते हैं. इस बच्चे के बारे में पता चला तो यों ही देखने चला आया.’’

राघव उसे एक कमरे में ले गया. एक कोने में एक बैड पर बच्चा सो रहा था.

गोल सा गोरा, मासूम, चेहरा लाल था. देखते ही सुहास के दिल में स्नेह सा उमड़ा. जरा सा बच्चा, कैसे जीएगा… सुहास ने इधरउधर नजर दौड़ाई. बाकी बच्चों के साथ वहां के कर्मचारी महिलापुरुष कुछ न कुछ कर रहे थे. सब से छोटा बच्चा यही था. सुहास ने उस के माथे को हलका सा छूते हुए कहा, ‘‘इसे अभी भी बुखार है?’’

राघव ने ‘हां’ में सिर हिलाया. बच्चा जाग कर कुनमुनाने लगा. रोना शुरू किया तो सुहास ने उसे गोद में उठा लिया. सरल हृदय सुहास उसे कंधे से लगा कर थपथपाने लगा. बच्चा चुप हो गया. ममता और स्नेह से मन भर गया सुहास का. थोड़ी देर बच्चे को सीने से लगाए खड़ा कुछ सोचता रहा. लिटाया तो बच्चा फिर रोने लगा.

राघव ने किसी को आवाज दी, ‘‘अरे मोहन, बच्चे को देखो, मैं अभी आता हूं.’’

राघव सुहास को ले कर अपने औफिस में आ गया. थोड़ी देर बाद सुहास घर लौट आया, पर उस का मन वहीं उस बच्चे में अटक कर रह गया था.

नितिन उस से मिलने आया तो उसे गंभीर, उदास देख कारण पूछा.

तब सुहास ने बताया, ‘‘बालनिकेतन से आ रहा हूं.’’

‘‘क्यों?’’ नितिन चौंका तो सुहास ने उसे पूरी बात बताई. फिर दोनों काफी देर तक इस विषय पर बात करते रहे. नितिन को भी बच्चे के बारे में सुन कर दुख हुआ.

अगले दिन भी सुहास शाम को बालनिकेतन चला गया. राघव उस से प्रसन्नतापूर्वक मिला. सुहास ने पूछा, ‘‘वह बच्चा कैसा है?’’

‘‘आज बुखार हलका था.’’

‘‘राघवजी एक जरूरी बात करने आया हूं.’’

‘‘हां, कहिए न.’’

‘‘मैं उसे गोद लेना चाहता हूं.’’

राघव बुरी तरह चौंका, ‘‘क्या?’’

‘‘जी, बताइए मुझे क्या करना होगा?’’

‘‘पर आप तो अनमैरिड हैं न?’’

‘‘हां, उस से क्या फर्क पड़ता है?’’

‘‘पर जब आप किसी लड़की से शादी करेंगे…’’

सुहास बीच में ही बोल पड़ा, ‘‘नहीं, राघवजी. मैं किसी लड़की से शादी नहीं करूंगा.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मेरा साथी मेरे ही जैसा है नितिन.’’

‘‘ओह,’’ सारी बात समझते हुए राघव गंभीर हो गया, पूछा, ‘‘आप के घर में कौनकौन हैं?’’

‘‘मैं यहां अकेला रहता हूं… पेरैंट्स गांव में रहते हैं.’’

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‘‘यह इतना आसान नहीं होता है… आप जब औफिस जाएंगे, तो बच्चे की देखभाल कौन करेगा?’’

‘‘मैं भरोसे की आया ढूंढ़ लूंगा. आप और डाक्टर शैलेंद्र, जब चाहें आ कर देख सकते हैं कि बच्चे की देखभाल ठीक से हो रही है या नहीं.’’

‘‘पर कानूनन बहुत कुछ करना होगा. इस केस में काफी मुद्दे होंगे.’’

‘‘मैं सब देख लूंगा. बस, आप मुझे बता दें क्याक्या करना है. मेरे कुलीग के भाई वकील हैं. मैं उन से सलाह ले लूंगा.’’

‘‘आप अच्छी तरह सोच लें कुछ दिन.’’

‘‘मैं आप से वीकैंड. मिलने आऊंगा. एक बार उस बच्चे को देख लूं?’’

राघव मुसकरा दिया, ‘‘हां, जरूर.’’

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