पितृद्वय: भाग-2

सुहास बच्चे के पास चला गया. इस समय बच्चा बैठा हुआ किसी खिलौने में उलझा था. सुहास ने मुंह से सीटी बजाई तो बच्चे ने उसे देखा और फिर मुसकरा दिया. सुहास ने सीटी बजाते हुए बच्चे को गोद में उठा लिया. सुहास के होंठों पर हाथ रख कर बच्चा मुंह से आवाजें निकालने लगा. साफ समझ आ रहा था कि सुहास को सीटी बजाने के लिए कह रहा है. सुहास ने सीटी बजाई तो बच्चा खिलखिलाने लगा.

यह मजेदार क्रम शुरू हो गया. जैसे ही सुहास रुकता बच्चा उस से सीटी बजाने के लिए उस के होंठों पर हाथ रख देता. राघव और वहां मौजूद कर्मचारी इस खेल पर हंस रहे थे. थोड़ी देर बाद सुहास ने बच्चे को वहां खड़ी एक महिला को दिया तो बच्चा रोने लगा.

सुहास को उस पर बड़ी ममता उमड़ी. राघव से कहा, ‘‘मैं इसे जल्दी ले जाऊंगा. मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे यह मेरा ही अंश है. अरे हां, मैं इस का नाम अंश ही रखूंगा.’’

राघव मुसकरा दिया. राघव ने वहां से निकलते ही अपने सहयोगी प्रकाश को फोन पर पूरी बात बताई. प्रकाश ने अपने बड़े भाई वकील आलोक का फोन नंबर देते हुए कहा, ‘‘औल द बैस्ट. अंश को संभाल पाओगे?’’

‘‘हां, मैं सब मैनेज कर लूंगा.’’

नितिन सारी बात सुन कर बहुत खुश हुआ. पूछ लिया, ‘‘सुहास, मैं तुम्हारे साथ ही शिफ्ट हो जाऊं? हम सब शेयर करते रहेंगे.’’

‘‘हां, बिलकुल, अपना सामान ले आओ.’’

ये भी पढ़ें- प्यार पर पूर्णविराम

वीकैंड तक नितिन अपना सामान ले कर सुहास के पास ही आ गया. आतेजाते अपने फ्लैट के नीचे वाले फ्लैट में रहने वाले दंपती राजीव और सुमन से सुहास की अच्छी जानपहचान हो गई थी. सुहास ने शाम को उन्हीं की डोरबैल  बजा दी. फिर एक अच्छी मेड के बारे में पूछताछ की. बात तय हो गई. सुहास ने उन्हीं के यहां काम करने वाली मंजू को कुछ समय बाद काम पर आने के लिए कह दिया. फिर उस ने आलोक से बात कर के मिलने का समय मांगा. मिलने पर आलोक ने कई कानूनी मशवरे देते हुए उस की इस इच्छा में पूर्णतया सहयोग का वादा किया.

सिंगल पेरैंट के रूप में बच्चा गोद लेने में बहुत समय लगने वाला था पर आलोक की सलाह पर जल्दी इस केस में पेपर्स तैयार होने शुरू हो गए. सुहास जल्दीजल्दी बालनिकेतन के चक्कर काटता रहता था. अंश के साथ समय बिता कर उस के दिल को बड़ा चैन मिलता. कुछ दिनों पहले मन में बसा अकेलापन खत्म हो चुका था. अब नितिन का साथ था, अंश की बातें थीं… जीवन को जैसे एक उद्देश्य मिल गया था.

सुहास और नितिन फोन पर अपने घर वालों के संपर्क में थे. कभीकभी अपनेअपने घर भी जाते. हर बार उन के व्यंग्यबाणों से आहत हो कर लौटते. धीरेधीरे उन का घर जाना कम होता जा रहा था.

दोनों ही अपनेअपने परिवार को घर के खर्चों के लिए अच्छीखासी रकम भी भेजते

पर अपने हर कर्तव्य को पूरा करने वाले 2 दोस्तों को अपनी मरजी से, अपनी इच्छा से जीने का हक नहीं था. अपनी पर्सनल लाइफ अपनों के द्वारा ही नकारे जाने का उन दोनों के दिलों में बड़ा दुख था.

सुहास राघव के लगातार संपर्क में था. पेपर्स की प्रोग्रैस से उसे अवगत कराता रहता था. सब औपचारिकताएं पूरी होने में कुछ समय तो लगा ही. सुहास और नितिन जिस दिन अंश को अपने घर लाए उन्होंने राघव, प्रकाश, आलोक, राजीव और सुमन वे कुछ खास सहयोगियों को एक छोटी सी पार्टी के लिए बुलाया. नीला नाराज थी. नहीं आई. अंश प्यारा बच्चा था. देखने वाले के दिल में उसे देखते ही उस के लिए स्नेह उमड़ता था.

आया मंजू ने भी काम पर आना शुरू कर दिया था. जितनी देर सुहास और नितिन औफिस में रहते, मंजू अंश का बहुत अच्छी तरह ध्यान रखती. सुहास, नितिन और अंश जैसे एकदूसरे के लिए ही बने थे. तीनों की एक अलग दुनिया थी. सुहास घर में जैसे ही सीटी बजाते हुए घुसता, उस की गोद में आने के लिए अंश की बेचैनी देख सब हंसते. अंश का कमरा बच्चे के हिसाब से तैयार किया जाता था. कभी उस के साथ सुहास सोता, तो कभी नितिन.

पर जैसाकि समाज है, लोग उन की पीठ पीछे उन का खूब मजाक उड़ाते. औफिस में कुछ लोग नितिन और सुहास की जोड़ी पर कहते, ‘‘इस में बुरा क्या है, सब को अपनी इच्छा से जीने का हक है. किसी लड़की को नहीं छेड़ रहे, किसी को कुछ नहीं कह रहे हैं… एक अनाथ बच्चे का जीवन भी संवार दिया. उन्हें अपनी दुनिया में खुश रहने दो, भाइयो.’’

वहीं कुछ लोग बहुत मजाक उड़ाते. ऐसा नहीं था कि सुहास और नितिन तक ये बातें नहीं पहुंचती थीं. कुछ लड़कियां उन दोनों की बहुत अच्छी दोस्त थीं, हर समय उन के किसी भी काम आने के लिए तैयार.

अंश के बारे में सुन कर दोनों के परिवार वाले बहुत नाराज हुए थे. सुहास के पिता ने कहा, ‘‘खूब मजाक उड़वाओ. हमारा भी, अपना भी… हमारी इज्जत मिट्टी में मिला दी है. तुम पर शर्म आती है.’’

सुहास की मां भी सिर पकड़ कर बैठ गईं बोलीं, ‘‘सुहास, तुम ने तो हमें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. लोगों को क्या कहें कि हमारी बहू लड़का है, छि:… छि:…’’

नितिन के घर वालों की भी यही प्रतिक्रिया थी.

दोनों दोस्त सामाजिक प्रताड़ना सहते हुए अंश के साथ जीए जा रहे थे. मंजू स्नेहिल स्वभाव की महिला थी. उसे इन दोनों लड़कों का निश्छल स्वभाव, व्यवहार खूब पसंद था. वह भी दोनों का रिश्ता अच्छी तरह समझती थी. अल्पशिक्षिता होते हुए भी 2 लड़कों का एक अनाथ बच्चे को गोद लेना, उसे प्यार देना, उस के लिए बहुत बड़ी बात थी. ऐसा तो उस ने कहीं देखा ही नहीं था. वह तो सोसायटी के उच्चवर्ग के कई परिवारों में काम कर चुकी थी जहां उस ने पतिपत्नी के दिनरात के झगड़े भी देखे थे, उन के बच्चों को खूब गलत रास्ते पर जाते हुए भी देखा था. वहीं ये 2 लड़के एक बच्चे की अच्छी परवरिश करने में अपना समय बिता रहे थे.

जैसेजैसे अंश बड़ा हो रहा था, दोनों की चिंताएं अलग रूप में सामने आ

रही थीं. एक दिन सुहास ने नितिन को गंभीर देख कारण पूछा तो ठंडी सांस लेते हुए नितिन ने कहा, ‘‘यार, अभी अंश स्कूल जाएगा, वहां उस की मां के बारे में पूछा जाएगा. बच्चे 100 तरह की बात करेंगे, कहीं उसे बुली न किया जाए. 2 गे लोगों ने उसे पालापोसा है, कहीं लोगों का मजाक उस का दिल न दुखाए. आजकल मुझे इस बात की बड़ी चिंता रहती है.’’

सुहास का भी चेहरा उतर गया, ‘‘हां, ये सब बातें मेरे दिल में भी आती हैं. अंश तो हमारी जान है, हम उसे कभी दुखी नहीं देख पाएंगे. कहीं उसे कभी हम से चिढ़ न हो जाए,’’ कहतेकहते सुहास का गला भर्रा गया.

अंश स्कूल जाने लगा. खूब अच्छी आदतें, प्यारी बातें, कोमल, हंसमुख सा चेहरा, बरबस ही लोगों का ध्यान आकर्षित कर लेता. पहली पेरैंट्सटीचर्स मीटिंग में दोनों ही अंश को ले कर अतिउत्साहित से पहुंचे. टीचर गीता को सुहास ने सब स्पष्ट बता दिया. आधुनिक सोच की गीता दोनों से मिल कर बहुत खुश हुई. उस ने अंश की पढ़ाई में अपना पूरा सहयोग देने का वादा किया.

अंश जब तक बच्चा था, कई बातों से अनजान था पर जैसेजैसे बड़ा हो रहा था, मां, नानानानी, दादादादी के बारे में बहुत सवाल पूछता. उस की बातों के जवाब देने में दोनों को कभी हंसी आ जाती, तो कभी पसीना छूट जाता. अनुभवी मंजू जब अंश का ध्यान किसी और बात में लगा कर उन दोनों की जान छुड़ाती तो तीनों हंस पड़ते. अंश की हैल्थ का ध्यान पूरी तरह से रखा जाता. अब वह बच्चों के साथ खेलने भी जाने लगा था.

सुहास और नितिन अपने मातापिता से फोन पर बात करते थे पर दोनों को ही अब तक डांट पड़ती थी. फोन रखते हुए दोनों ही कहते, ‘‘अब तक सब नाराज हैं, क्या इंसान को अपनी पसंद से जीने का हक भी नहीं? हम किसी के साथ क्या बुरा कर रहे हैं?’’

जैसेजैसे अंश बड़ा हो रहा था, उस का व्यक्तित्व भी निखरता जा रहा था. कौन्फिडैंट था, अपने कई काम खुद करने लगा था. समाज ने ही उसे समझा दिया था कि सुहास और नितिन की क्या स्थिति है, क्या रिश्ता है.

ये भी पढ़ें- इतवार की एक शाम: भाग-2

नितिन और सुहास की प्रमोशन हो गई तो दोनों ने उसी बिल्डिंग में एक फ्लैट खरीद लिया. अंश अब 8वीं क्लास में था. अंश का जीवन सब सुविधाओं से युक्त था. अब घर की एक चाबी अंश के पास भी रहने लगी थी. अब मंजू सुबहशाम ही आती थी. अंश दोनों को ही पापा कहता था, नितिन पापा, सुहास पापा. कई लोग इस बात पर कभीकभी उन का खूब मजाक उड़ाते थे. कुछ संवेदनशील थे, दोनों की लाइफ का सम्मान करते थे. वैसे भी हमारे समाज में एकदूसरे को नीचा दिखाने के लिए प्रयासरत कुछ लोग खुली सोच रख भी कहां पाते हैं? इन लोगों का उद्देश्य ही होता है, दूसरों के जीवन की शांति भंग करना. ऐसे ही कुछ लोग एक पार्टी में थे जहां सुहास, नितिन और अंश गए हुए थे. राजीव और सुमन के विवाह की 25वीं वर्षगांठ की पार्टी थी. इन दोनों को ही इन तीनों से विशेष स्नेह था.

पार्टी में एक महिला ने पूछ लिया, ‘‘क्यों, अंश, कैसा लगता है अपने घर में? मम्मी तो है नहीं कोई तुम्हारी.’’

आगे पढ़ें- अंश चुप रहा. सुहास और नितिन को गुस्सा आया कि बच्चे से…

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें