यह कैसा लोकतंत्र

हमारे नेता एकता का पाठ बहुत पढ़ाते हैं. 4 अप्रैल को नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु के लोगों के काशी समागम आने पर कहा कि इस आयोजन से राष्ट्र की एकता को मजबूती मिलेगी.

सरदार पटेल की मूर्ति पर जा कर मोदी एकता दिवस परेड में शामिल हुए.

रमजान के अवसर पर संदेश देते हुए मोदी ने कहा कि यह पवित्र माह समाज में एकता और सौहार्द में वृद्धि करे.

यह एकता है क्या बला जिस की चर्चा नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में तो करते हैं पर देश में कहीं नहीं दिखती? हर रोज विपक्षी पार्टियों को तोड़ना क्या एकता के सिद्धांत की पूजा करना है?

नेता अगर किसी पार्टी से परेशान हैं, उन के मतभेद हैं तो वे घर जा कर चुपचाप बैठ जाएं पर यदि वे सुग्रीव या विभीषण की तरह अपने राजाओं को धोखा दे कर विरोधी के साथ मिलें तो क्या उसे एकता के सिद्धांत को मजबूत करना कहा जाएगा?

एकता का मतलब असहमत न होना नहीं होता. असहमत होते हुए भी कुल मिला कर एक घर, कंपनी पार्टनरशिप, संस्था, दल या सरकार में साथ रहना ऐक्शन के सिद्धांत को मजबूत करता है पर नाराज हो कर जहां हैं उसे तोड़ देना या अपने से असहमत जने को निकाल देना या फिर दूसरे पक्ष के उस जने को अपने से मिला लेना जो पहले असहमत था, कैसे एकता ला सकता है?

आज देश एक है, टुकड़ेटुकड़े नहीं हो रहा तो इसलिए कि ऐतिहासिक घटनाएं ऐसी हुईं कि एक भूभाग के लोग एक ही शासन के नीचे आ गए और अब चाहें तो भी वे अलग नहीं हो सकते. हालांकि  हाल ही में सोवियत संघ का विघटन और उस से पहले पाकिस्तान और बंगलादेश का टूटना या यूगोस्लाविया का कई देशों में बंटना हुआ था पर अब जहां भी जिस भूभाग पर लोग एक केंद्रीय शक्ति के अधीन रह रहे हैं, वहां एकता बनी हुई है क्योंकि इसी में आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा है.

एकता के पीछे न कोई धर्म है, न मान्यता, न विश्वास. एकता आज केवल ऐक्सीडैंटों का नतीजा है पर इसे तोड़ना हर देश के लिए संकट देने वाला होगा. यह अफसोस है कि जब देश को एकता का पाठ पढ़ाने वाले नेता ही खुद अपने कामों से धर्म, भाषा, जाति के सवाल इस तरह उठाने लगते हैं कि एकता के तारे टूटते से नजर आने लगें.

आज नेताओं की ओर से भाषणों के अलावा और कोई ऐसा प्रयास नजर नहीं आ रहा कि देश के लोग एक होते नजर आएं. अभी तमिलनाडु में बिहारियों के खिलाफ  झूठे समाचार फैलाए गए तो एकता की दुहाई देने वाली सरकारों ने कुछ नहीं किया. हिंदू राष्ट्र का नारा लगाने वाले इन भगवा स्वामियों को कुछ नहीं कहा जा रहा जो गैरहिंदुओं को अलग मानने की खुली वकालत कर रहे हैं.

जाति और धर्म के नाम पर हो रहे भेदभाव का विरोध करने वालों और उन के उदाहरणों को सामने वालों पर एकता को भंग करने का  झूठा आरोप अवश्य लगाया जा रहा है. एकता का सिद्धांत घरों में चले, पार्टनरशिप धर्मों में चले, कंपनियों में चले, इस ओर कहीं कुछ नहीं किया जा रहा.

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