#lockdown: अचानक इतना साफ कैसे हो गया गंगा-यमुना का पानी, विशेषज्ञ भी हैं हैरान

कोरोना वायरस की वजह से देश की लगभग 1.3 अरब आबादी, घरों में ही सिमटी हुई है. लोग सबकुछ सामान्य होने का इंतजार कर रहे हैं, ताकी एक नौर्मल लाइफ जी सकें. वहीं दूसरी तरफ प्रकृति खुद को बैलेंस करने में लगी है.

जी हां दोस्तों, लौकडाउन की वजह से पाल्यूशन में काफी कमी देखी गई है. अब रात को आसमान साफ दिखने लगा है और चांद-तारों का दिदार भी होने लगा है. ऐसा ही कुछ नज़ारा है यमुना नदी का, जो पाल्यूशन की वजह से नाले के रूप में बदल गई थी. लेकिन लौकडाउन ने जैसे यमुना नदी की काया ही पलट दी. आपको जानकर खुशी होगी कि इस समय यमुना नदी का पानी काफी साफ हो गया है. वही यमुना नदी जिसे पाल्यूशन ने बदबूदार बना दिया था, लेकिन अब वहां का वातावरण खुशबूदार हो गया है. कोरोना वायरस की वजह से 21 दिनों के लौकडाउन का यमुना नदी पर ख़ास असर देखने को मिला है.

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बता दें कि, दिल्ली में यमुना नदी  के 22 किलोमीटर सफर के दौरान 18 गंदे नाले इसमें मिल जाते हैं. साथ ही यमुना नदी को गंदा करने में सबसे बड़ा हाथ औद्योगिक प्रदूषण का है. फिलहाल ये कारखाने बंद हैं इसलिए यमुना नदी का पानी साफ नजर आ रहा है.

अगर बात करें गंगा नदी की तो यहां भी कुछ ऐसा ही नज़ारा है. विशेषज्ञों का मानना है कि देशभर में लौकडाउन के बाद से गंगा नदी की स्वच्छता में काफी सुधार देखने को मिला है, क्योंकि गंगा नदी में कारखानों का कचरा गिरना कम हो गया है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों की माने तो, लौकडाउन के बाद ज्यादातर केद्रों में गंगा नदी के पानी को नहाने लायक पाया गया है. वहीं गंगा नदी के 36 निगरानी इकाइयों में करीब 27 बिन्दुओं पर पानी की गुणवत्ता नहाने, वन्यजीव और मछली पालन के लिए अनुकूल पाई गई है.

इससे पहले की बात करें तो उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश में नदी के प्रवेश करने के कुछ स्थानों को छोड़कर, बंगाल की खाड़ी में गिरने तक आने वाले रास्ते में कहीं भी नहाने लायक नहीं पाया गया था. विशेषज्ञों का कहना है कि औद्योगिक क्षेत्र बंद होने के कारण गंगा नदी का पानी साफ हुआ है. साथ ही लौकडाउन की वजह से आने वाले कुछ दिनों में पानी की क्वालिटी में और सुधार हो सकता है.

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#coronavirus: lockdown से सुधरा हवा का मिजाज

देशभर में लॉक डाउन के कारण महानगरों समेत 104 शहरों में वायु प्रदूषण  के स्तर में 25 प्रतिशत तक की गिरावट आई है. दुनिया में बढ़ते वायु प्रदूषण से हर साल 10 लाख लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है. विश्व में हर 10 में से 9 लोग अशुद्ध हवा में सांस लेते हैं. एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वायु प्रदूषण दुनिया भर के लोगों की आयु औसतन 3 साल कम कर रहा है. वायु प्रदूषण से सालाना 88 लाख लोग असमय मौत के मुंह में समा जाते हैं.

1. हर एक होता है प्रभावित

वायु प्रदूषण प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करता है, चाहे वह अमीर हो या गरीब, बुढा हो या बच्चा, पुरूष हो या महिला, शहरी हो या ग्रामीण.  वायु प्रदूषण धीरे धीरे महामारी का रूप ले रहा है. हालांकि पिछले कुछ दशकों से धूम्रपान की तुलना में वायु प्रदूषण पर कम ध्यान दिया जा रहा है. हर साल मलेरिया की तुलना में यह तीन गुणा अधिक लोगों की जान लेता है.

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2. स्ट्रोक्स व लंग्स कैंसर का खतरा

लम्बे समय तक वायु प्रदूषण के सम्पर्क में रहने से हृदय और रक्त धमनियां प्रभावित होती हैं, जो मौत का बड़ा कारण है, वहीं लंग केंसर, श्वसन तंत्र संक्रमण और स्ट्रोक्स का आना, यह सब वायु प्रदूषण के चलते होता है.

3. वृद्धों के लिए सबसे नुकसानदेह

वृद्ध वायु प्रदूषण से सबसे प्रभावित होते हैं. वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो वायु प्रदूषण की वजह से मरने वालों में ज्यादातर 60 साल से अधिक उम्र के 75 प्रतिशत लोग थे, कुल मिलाकर देखा जाए तो इससे सबसे ज्यादा मौतें होती हैं. ऐसे में यदि मानवीय गलतियों को सुधारा जाए तो वायु प्रदूषण से होने वाली दो तिहाई मौतों से बचाव संभव है.

4. वाहन कम चलने से हुआ हवा में सुधार

पिछली 22 मार्च से सड़कों पर वाहनों की बहुत कम आवाजाही से वायु प्रदूषण में बहुत फर्क पडा है. देशभर के विभिन्न शहरों में वायु प्रदूषण में पीएम 2.5 प्रदूषण की कमी देखी गई है.

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5. औद्योगिक क्षेत्रों मे काफी सुधार

उत्तर भारत के औद्योगिक शहरों के एक्यूआई में 80 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है. राजधानी के औद्योगिक केंद्र भिवाड़ी में हवा की गुणवत्ता में सबसे ज्यादा सुधार देखने को मिला है. भिवाड़ी का एक्यूआई 207 था, जो अब 42 अंक तक आ गया है.

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