प्रदूषण बन सकता है बांझपन की वजह

दिल्ली में तमाम कोशिशों के बावजूद वायु प्रदूषण सेहत के लिए सुरक्षित सीमा से 16 गुणा बढ़ गया. दीवाली के पटाखों से देश की राजधानी फिर ज़हरीले धुएं से भर गई. उस पर पराली के धुएं से हालात और भी खराब हो रहे हैं. हर साल इस समय वायु प्रदुषण का कहर इसी तरह लोगों का दम घोटने लगता है.

सिर्फ दीवाली ही नहीं बाकी समय भी देश के बहुत से इलाकों में वायु प्रदूषण का जहर लोगों की जिंदगी प्रभावित करता रहा है. आज हम जिस वातावरण में जी रहे हैं उस में वायु प्रदूषण का स्तर चरम पर है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार आज विश्व की 92 प्रतिशत जनसंख्या उन क्षेत्रों में रह रही है जहां वायु प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सुरक्षा सीमाओं से अधिक है. बढ़ता वायु प्रदूषण गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं और मृत्यु के एक प्रमुख कारण के रूप में उभर रहा है.

वायु प्रदूषण और हमारा स्वास्थ्य

वायु प्रदूषण का प्रभाव हमारे शरीर के प्रत्येक अंग और उस की कार्यप्रणाली पर पड़ता है. इस के कारण हृदय रोग, स्ट्रोक, सांस से संबंधित समस्या, डायबिटीज, बांझपन वगैरह की आशंका बढ़ जाती है.

हाल में हुए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि जो लोग ऐसे स्थानों पर रहते हैं जहां अत्यधिक ट्रैफिक होता है उन की प्रजनन क्षमता में 11 प्रतिशत की कमी आ जाती है. आइये इंदिरा आईवीएफ हॉस्पिटल की डॉ सिम्मी अरोड़ा से जानते हैं कि विषैली हवा में सांस लेने से प्रजनन क्षमता पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से नकारात्मक प्रभाव कैसे पड़ता है;

वायु प्रदूषण का प्रजनन क्षमता पर प्रत्यक्ष प्रभाव

अंडों की क्वालिटी प्रभावित होना

पार्टिकुलेट मैटर (पीएम), ओजोन, नाइट्रोजन डाय ऑक्साइड, सल्फर डाय औक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, भारी धातुएं और हानिकारक रसायनों का एक्सपोज़र महिलाओं में अंडों की क्वालिटी को प्रभावित करता है. अंडों की खराबी महिलाओं में बांझपन का एक प्रमुख कारण है.

मासिक चक्र संबंधी गड़बड़ियां

प्रदूषण अंडों की क्वालिटी और सेक्स हार्मोनों के स्त्राव को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है जिस का सीधा प्रभाव मासिक चक्र पर पड़ता है. इस के कारण पीरियड्स देर से आना, ब्लीडिंग कम होना या पीरियड्स स्किप होना जैसी समस्याएं हो जाती है जिन के कारण कंसीव करना कठिन हो जाता है.

वीर्य और शुक्राणुओं की क्वालिटी और मात्रा प्रभावित होना

वायु में मौजूद प्रदूषित कण वीर्य की क्वालिटी को प्रभावित करते हैं. शुक्राणुओं की संख्या कम हो जाती है. उन की संरचना में परिवर्तन आ जाता है और उन की गतिशीलता भी प्रभावित होती है. जिस से पुरूष बांझपन का खतरा बढ़ जाता है.

दिल्ली स्थित एम्स द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 3 दशक पहले एक सामान्य भारतीय पुरूष में शुक्राणुओं की संख्या औसतन 6 करोड़/मिलीलीटर होता थी. अब यह घट कर 2 करोड़/ मिलीलीटर रह गई है.

गर्भपात का खतरा बढ़ना

जो महिलाएं ऐसे क्षेत्रों में रहती हैं जहां वायु में पीएम 2.5, पीएम10, नाइट्रोजन डाय औक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, ओजोन और सल्फर डाय ऑक्साइड की मात्रा अधिक होती है उन में गर्भपात का खतरा उन महिलाओं की तुलना में अधिक होता है जो कम प्रदूषित स्थानों पर रहती हैं.

मृत बच्चे के जन्म लेने की आशंका

प्रदूषित वातावरण में रहने वाली महिलाओं के मृत बच्चे को जन्म देने की आशंका अधिक होती है. यही नहीं जन्म के समय बच्चे का वज़न कम होना, समय से पहले प्रसव और बच्चे में जन्मजात विकृतियां होने का खतरा भी अधिक होता है.

वायु प्रदूषण का प्रजनन क्षमता पर अप्रत्यक्ष प्रभाव

डायबिटीज के कारण प्रजनन क्षमता प्रभावित होना

वायु प्रदूषण विशेषकर वाहनों से निकलने वाला धुआं, नाइट्रोजन डाय ऑक्साइड, तंबाकू से निकलने वाला धुआं, पीएम 2.5 आदि इंसुलिन रेज़िस्टेंस और टाइप 2 डायबिटीज़ के सब से प्रमुख कारण हैं. इंसुलिन रेज़िस्टेंस के कारण पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) और मेटाबॉलिक सिंड्रोम एक्स दोनों की आशंका अत्यधिक बढ़ जाती है जो महिलाओं में बांझपन के सब से बड़े कारण हैं.

डायबिटीज़ के कारण तंत्रिकाएं को भी नुक्सान पहुंचता है. इस का सीधा संबंध पेनिस के ठीक प्रकार से कार्य न करने से है क्यों कि इस से पेनिस की तंत्रिकाएं भी क्षतिग्रस्त हो जाती हैं.

हार्मोनों के स्त्राव में असंतुलन और बांझपन

इंसुलिन एक हार्मोन है जिसके असंतुलन का प्रभाव सेक्स हार्मोनों जैसे एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रौन और टेस्टोस्टेरौन के स्तर पर भी पड़ता है.

प्रदूषण थायरौइड ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोनों को भी प्रभावित करता है, जिससे महिलाओं की प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है.

प्रदूषण से बचने के लिए जरूरी उपाय

अधिक प्रदूषण वाली जगहों पर जाने से बचें, अगर जाना जरूरी हो तो मॉस्क का प्रयोग करें.

अपने घर को रोज वैक्यूम क्लीनर से साफ करें ताकि धूलकण जमा न हो पाएं.

घर की हवा को साफ रखने और प्रदुषण से बचने के लिए एयर प्युरिफायर लगवाएं.

अगर आप ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां प्रदूषण अधिक है तो खिड़कियों और दरवाजों पर मोटे पर्दे लगाएं.

आप ऐसी जगहों पर काम करते हैं जहां रसायनों का एक्सपोज़र अधिक है तो पूरी सावधानी रखें.

धूम्रपान से बचें.

अगर आप टहलने जाते हैं तो ऐसी जगह चुनें जहां प्रदूषण कम हो.

अपने घर में इनडोर प्लांट्स भी लगाएं. ये इनडोर पॉल्युशन को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

पोषक भोजन और अधिक मात्रा में पानी व तरल पदार्थों का सेवन करें ताकि शरीर से टौक्सिन फ्लश हो सकें.

बढ़ते प्रदूषण में रखें अपना ख्याल

इस बार त्योहार खुशियों के साथ अपने साथ कुछ और भी लेकर आया है. यहां बात हो रही है, वातावरण में बढ़ते प्रदूषण की. दीवाली के बाद बढ़े हुए प्रदूषण ने हर बार के सारे आंकड़े पार कर दिए हैं. त्योहार खत्म होने के कई दिनों के बाद भी इसका असर खत्म होते नहीं दिख रहा है. ऐसे में सबसे ज्यादा चिंता का विषय कुछ है तो वह है आम लोगों की सेहत.

वैदिक ग्राम के डॉक्टर पीयूष जुनेजा का कहना है कि ऐसे समय में न केवल बीमार व्यक्तियों को बल्कि सेहतमंद लोगों को भी अपना ध्यान रखने की बहुत आवश्यकता है. बाहर की हवा में पटाखों के धुएं की वजह से रासायनिक पदार्थों में अचानक से काफी बढ़ोतरी हो गयी है. ये पदार्थ हवा में मिलकर हमारे फेफड़ों तक पहुंचते हैं, जिससे कई तरह की खतरनाक बीमारियां हो सकती हैं. हम कुछ छोटी-छोटी बातों को अगर ध्यान में रखें, तो इन चीजों के प्रभाव को कम कर सकते है. कुछ दिनों के लिए सुबह की सैर तथा खुली जगह पर व्यायाम ना करें, हवा के सीधे संपर्क में आने से बचें जिसके लिए बाहर निकलते वक्त अपने मुंह पर मास्क या कपड़ा बांध लें, अपने खाने में शहद, नींबू व गुड का प्रयोग करे जो एन्टीइन्फेक्शन का काम करेगा.

बदलते मौसम और बढ़ते प्रदूषण में अपने शरीर का ख्याल रखना अत्यंत ही जरूरी है. कुछ छोटे कदमों से आप घर में ही इसके खतरनाक प्रभावों को कम कर सकते हैं. एनडीएमसी की रिटायर डायरेक्टर डॉक्टर अल्का सक्ससेना कहती हैं कि इस प्रदूषित हवा से बचने के लिए काफी छोटी छोटी बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. जैसे घर की साफ सफाई समय से करें, सोने से पहले भाप का सेवन करें, जिससे दिन भर की गंदगी आपके फेफड़ों से निकल जाएगी. बाहर के खाने से पूरी तरह से दूर रहें. ज्यादा से ज्यादा घर पर बनीं गर्म चीजें ही खाएं. इन सब चीजों से आप अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा सकेंगे, जो की आपको बीमारियों से दूर रखेगी.

एक कहानी ऐसी भी

अमित और उनकी पत्नी आकांक्षा मल्टिनैशनल कंपनी में काम करते हैं. दिल्ली में आने के बाद पति-पत्नी दोनों के करियर को परवाज मिली. बेटी सुगंधा के पैदा होने के बाद सब कुछ किसी परीकथा की तरह लग रहा था. एक दिन अचानक हल्की खांसी और बुखार के बाद 2 साल की सुगंधा को दमा डायगनोस हुआ. डॉक्टर ने बताया कि वह जिस इलाके में रह रहे हैं उसकी वजह से ही बच्चे को ऐसी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है और अगर वह यहीं रहते रहे, तो परेशानी बिगड़ सकती है. सुयश और आकांक्षा ने दिल्ली छोड़ कर बैंगलुरु ऑफिस में ट्रांसफर का मन बना लिया है. उनका कहना है कि इस शहर ने हमें बहुत कुछ दिया है लेकिन अपनी बेटी की कीमत पर अपना करियर हमें मंजूर नहीं है.

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हवा में मौजूद हैं ये आठ विलेन

1. PM10 :  पीएम का मतलब होता है पार्टिकल मैटर. इनमें शामिल है हवा में मौजूद धूल, धुंआ, नमी, गंदगी आदि जैसे 10 माइक्रोमीटर तक के पार्टिकल. इनसे होने का वाला नुकसान ज्यादा परेशान करने वाला नहीं होता.

2. PM2.5 : 2.5 माइक्रोमीटर तक के ये पार्टिकल साइज में बड़े होने की वजह से ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं.

3. NO2 : नाइट्रोजन ऑक्साइड, यह वाहनों के धुंए में पाई जाती है.

4. SO2 : सल्फरडाई ऑक्साइड गाड़ियों और कारखानों से निकलने वाले धुंए से निकल कर फेफड़ों को काफी नुकसान पहुंचाता है.

5. CO : कार्बनमोनो ऑक्साइड, गाड़ियों से निकल कर फेफड़ों को घातक नुकसान पहुंचाता है.

6. O3 : ओजोन, दमे के मरीज और बच्चों के लिए बहुत नुकसानदेह

7. NH3 : अमोनिया, फेफड़ों और पूरे रेस्पिरेटरी सिस्टम के लिए खतरनाक

8. Pb : लेड, गाडियों से निकलने वाले धुंए के आलावा मेटल इंडस्ट्री से भी निकल कर यह लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचाने वाला सबसे खतरनाक मेटल हैं.

इन सबको औसत 24 घंटे तक नापने के बाद एक इंडेक्स तैयार किया जाता है. हमारे आसपास की हवा को नापने के लिए देश की सरकार ने एयर क्वॉलिटी इंडेक्स नाम का एक मानक तय किया है. इसके तहत हवा को 6 कैटगिरी में बांटा गया है.

– अच्छा (0-50)

– संतोषजनक (50-100)

– हल्की प्रदूषित (101-200, फेफडों, दमा और हार्ट पेशंट्स के लिए खतरनाक)

– बुरी तरह प्रदूषित (201-300, बीमार लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो सकती है)

– बहुत बुरी तरह प्रदूषित (301-400, आम लोगों को सांस की बीमारी की शिकायत हो सकती है)

– घातक रूप से प्रदूषित (401-500, हेल्दी और बीमार दोनों ही तरह के लोगों के लिए खतरनाक)

घर का प्रदूषण

– किचन में लगे वेंटिलेशन फैन को देखें. अगर उस पर ज्यादा कालिख जम रही है तो जान जाएं कि किचन में हवा नुकसानदायक स्तर तक बढ़ चुकी है.

– एसी का फिल्टर और पीछे की तरफ की वेंट में अगर ज्यादा धूल या कालिख जमा हो रही है तो यह इस बात की ओर इशारा है कि घर बुरी हवा के निशाने पर है.

– बिजी हाईवे या सड़कों के किनारे बने मकान, कारखानों के करीब बने मकानों में स्वाभाविक तरीके से धूल और मिट्टी के साथ कार्बन पार्टिकल पहुंच जाते हैं.

क्या करें

– किचन में इलेक्ट्रॉनिक चिमनी लगवाएं

– किचन में बेहतर वेंटिलेशन रखें

– अगर घर के आसपास बिजी रोज या कारखाने हों तो खिड़की दरवाजों को हैवी ट्रैफिक के वक्त बंद रखें. इससे भले ही पूरा बचाव न हो लेकिन धूल-मिट्टी कम से कम घर में घुस पाएगी.

स्मॉग

स्मॉग शब्द स्मोक और फॉग से मिल कर बना है. मतलब यह कि जब वातावरण में मौजूद धुंआ फॉग के साथ मिल जाता है तब स्मॉग कहलाता है. जहां गर्मियों में वातावरण में पहुंचने वाला स्मोक ऊपर की ओर उठ जाता है, वहीं ठंड में ऐसा नहीं हो पाता और धुंए और धुंध का एक जहरीला मिक्चर तैयार होकर सांसों में पहुंचने लगता है. स्मॉग कई मायनों में स्मोक और फॉग दोनों से ज्यादा खतरनाक होता है.

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कैसे बचें

– बीमार हों या हेल्दी, हो सके तो स्मॉग में बाहर न निकलें. अगर निकलना ही पड़े तो मास्क लगा कर निकलें.

– सुबह के वक्त काफी स्मॉग रहता है. इसकी वजह अक्सर रात के वक्त वातावरण में जमा धुंए का न छंट पाना होता है जो सुबह की धुंध में मिल कर स्मॉग बना देता है. – सर्दियों में ऐसा अक्सर होता है इसलिए बेहतर होगा भोर (5-6 बजे) की बजाय धूप निकलने के बाद (तकरीबन 8 बजे) वॉक पर जाएं.

– सर्दियों में जहां एयर पल्यूशन ज्यादा रहता है वहीं लोग पानी भी कम पीते हैं. यह खतरनाक साबित होता है. दिन में तकरीबन 4 लीटर तक पानी पिएं. प्यास लगने का इंतजार न करें कुछ वक्त के बाद 1-2 घूंट पानी पीते रहें.

– घर से बाहर निकलते वक्त भी पानी पिएं. इससे शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई सही बनी रहेगी और वातावरण में मौजूद जहरीली गैसे अगर ब्लड तक पहुंच भी जाएंगी तो कम नुकसान पहुंचा पाएंगी.

– नाक के भीतर के बाल हवा में मौजूद बड़े डस्ट पार्टिकल्स को शरीर के भीतर जाने से रोक लेते हैं. हाईजीन के नाम पर बालों को पूरी तरह से ट्रिम न करें. अगर नाक के बाहर कोई बाल आ गया है तो उसे काट सकते हैं.

– बाहर से आने के बाद गुनगुने पानी से मुंह, आंखें और नाक साफ करें. हो सके तो भाप लें.

– अस्थमा और दिल के मरीज अपनी दवाएं वक्त पर और रेग्युलर लें. कहीं बाहर जाने पर दवा या इन्हेलर साथ ले जाएं और डोज मिस न होने दें. ऐसा होने पर अटैक पड़ने का खतरा रहता है.

– साइकल से चलने वाले लोग भी मास्क लगाएं. चूंकि वे हेल्मेट नहीं लगाते इसलिए उनके फेफड़ों तक बुरी हवा आसानी से पहुंच जाती है.

इन लक्षणों के होते ही ध्यान दें

– सांस लेने में तकलीफ होने पर या सीढ़ियां चढ़ते या मेहनत करने पर हांफने लगने पर

– सीने में दर्द या घुटन महसूस होने पर

– 2 हफ्ते से ज्यादा दिनों तक खांसी आने पर

– 1 हफ्ते तक नाक से पानी या छींके आने पर

– गले में लगातार दर्द बने रहने पर

इनको जरा बचा कर रखें

– 5 साल से कम बच्चों की इम्युनिटी काफी कमजोर होती है इसलिए उन्हें एयर पल्युशन से रिस्क ज्यादा होता है. इसलिए सर्दियों में उन्हें सुबह वॉक के लिए न ले जाएं.

– अगर बच्चे स्कूल जाते हैं अटेंडेंट्स से रिक्वेस्ट कर सकते हैं कि बच्चों को मैदान में खिलाने की बजाए इनडोर ही खिलाएं.

– धूल भरी और भारी ट्रैफिक वाली मार्केट्स में बच्चों को ले जाने से बचें.

– टू वीलर में बच्चों को लेकर न निकलें.

– बच्चों के कार में बाहर ले जाते वक्त शीशे बंद रखें और एसी चलाएं.

– बच्चों को भी थोड़ी-थोड़ी देर पर पानी पिलाते रहें जिससे शरीर हाइड्रेट रहे और इनडोर पल्युशन से होने वाला नुकसान भी कम हो.

– बच्चे जब बाहर से खेल कर आएं तो उनका भी मुंह अच्छी तरह से साफ करें.

– उम्रदराज लोगों को बिगड़ती हवा काफी परेशान कर सकती है.

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– प्रदूषण स्तर बढ़ने पर बाहर जाने से बचें.

– धूप निकलने के बाद ही घर से बाहर निकलें. धूप निकलने पर हवा में प्रदूषण स्तर नीचे आने लगता है.

– अगर किसी बीमारी की दवाएं ले रहे हैं तो लगातार लेते रहें. ऐसा न करने पर हालत खराब हो सकती है.

– सर्दी के मौसम में ज्यादा एक्सरसाइज (ब्रिस्क वॉक या जॉगिंग आदि) न करें.

– सर्दियों में अगर बाहर निकलना ही पड़े तो अच्छी क्वॉलिटी का मास्क लगा कर निकलें.

– टू व्हीलर या ऑटो में सफर की बजाय टैक्सी या कंट्रोल माहौल वाले मेट्रो या एसी बसों में ही यात्रा करें.

#coronavirus: lockdown से सुधरा हवा का मिजाज

देशभर में लॉक डाउन के कारण महानगरों समेत 104 शहरों में वायु प्रदूषण  के स्तर में 25 प्रतिशत तक की गिरावट आई है. दुनिया में बढ़ते वायु प्रदूषण से हर साल 10 लाख लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है. विश्व में हर 10 में से 9 लोग अशुद्ध हवा में सांस लेते हैं. एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वायु प्रदूषण दुनिया भर के लोगों की आयु औसतन 3 साल कम कर रहा है. वायु प्रदूषण से सालाना 88 लाख लोग असमय मौत के मुंह में समा जाते हैं.

1. हर एक होता है प्रभावित

वायु प्रदूषण प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करता है, चाहे वह अमीर हो या गरीब, बुढा हो या बच्चा, पुरूष हो या महिला, शहरी हो या ग्रामीण.  वायु प्रदूषण धीरे धीरे महामारी का रूप ले रहा है. हालांकि पिछले कुछ दशकों से धूम्रपान की तुलना में वायु प्रदूषण पर कम ध्यान दिया जा रहा है. हर साल मलेरिया की तुलना में यह तीन गुणा अधिक लोगों की जान लेता है.

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2. स्ट्रोक्स व लंग्स कैंसर का खतरा

लम्बे समय तक वायु प्रदूषण के सम्पर्क में रहने से हृदय और रक्त धमनियां प्रभावित होती हैं, जो मौत का बड़ा कारण है, वहीं लंग केंसर, श्वसन तंत्र संक्रमण और स्ट्रोक्स का आना, यह सब वायु प्रदूषण के चलते होता है.

3. वृद्धों के लिए सबसे नुकसानदेह

वृद्ध वायु प्रदूषण से सबसे प्रभावित होते हैं. वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो वायु प्रदूषण की वजह से मरने वालों में ज्यादातर 60 साल से अधिक उम्र के 75 प्रतिशत लोग थे, कुल मिलाकर देखा जाए तो इससे सबसे ज्यादा मौतें होती हैं. ऐसे में यदि मानवीय गलतियों को सुधारा जाए तो वायु प्रदूषण से होने वाली दो तिहाई मौतों से बचाव संभव है.

4. वाहन कम चलने से हुआ हवा में सुधार

पिछली 22 मार्च से सड़कों पर वाहनों की बहुत कम आवाजाही से वायु प्रदूषण में बहुत फर्क पडा है. देशभर के विभिन्न शहरों में वायु प्रदूषण में पीएम 2.5 प्रदूषण की कमी देखी गई है.

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5. औद्योगिक क्षेत्रों मे काफी सुधार

उत्तर भारत के औद्योगिक शहरों के एक्यूआई में 80 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है. राजधानी के औद्योगिक केंद्र भिवाड़ी में हवा की गुणवत्ता में सबसे ज्यादा सुधार देखने को मिला है. भिवाड़ी का एक्यूआई 207 था, जो अब 42 अंक तक आ गया है.

दिल्ली में हेल्थ इमरजेंसी, जानिए कब और क्यों की जाती है घोषणा ?

आपातकाल (इमरजेंसी)  का जिक्र जैसे होता है हमारी रूह कांप जाती है. भारतीय संविधान में तीन प्रकार की इमरजेंसी का जिक्र  है. राष्ट्रीय आपातकाल (नेशनल इमरजेंसी), राष्ट्रपति शासन (स्टेट इमरजेंसी) और आर्थिक आपातकाल (इकनौमिक इमरजेंसी). लेकिन यहां मैं एक चौथी इमरजेंसी का बात कर रहा हूं जोकि कोर्ट ने लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पैनल ईपीसीए (EPCA) ने दिल्ली में जन स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा की है. ये इस कारण से किया गया क्योंकि दिल्ली की हवा दम घोंटने वाली हो गई है.लोगों को सांस लेने में भारी तकलीफ हो रही है. स्कूलों को बंद कर दिया गया है. भारत बनाम बांग्लादेश पहला टी-20 मैच भी दिल्ली के अरूण जेटली स्टेडियम में होना है. बांग्लादेश के खिलाड़ी मास्क पहनकर प्रैक्टिस करते नजर आए. वहां के कोच की तो तबियत ही खराब हो गई.

राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पहले ही दिल्ली को गैस-चैंबर बता चुके हैं. इसके साथ ही लोगों से अपील की गई है कि वे जितना कम हो सके बाहर रहें. ज़्यादा से ज़्यादा घर के अंदर ही रहें. लोगों को निजी वाहनों का कम इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है और साथ ही कचरा जलाने से भी मना किया गया है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पंजाब और हरियाणा सरकार ये बताए कि पराली कब तक जलाई जाएगी. केजरीवाल इस प्रदूषण की प्रमुख वजह पराली को ही मान रहे हैं. उनका कहना कि लोगों ने इस बार दीवाली में पटाखे कम जलाए हैं इसलिए ये सारा प्रदूषण पराली का ही है.

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EPCA के चेयरमैन भूरे लाल ने उत्तर प्रदेश , हरियाणा और दिल्ली के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता की ख़राब स्थिति पर चिंता व्यक्त की. इससे इस बात का अंदाज़ा तो हो जाता है कि स्थिति कितनी ख़राब है. बदनसीबी से इस गंभीर मामले पर भी सियासतदान राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इसे पूरी तरह पड़ोसी राज्यों में किसानों द्वारा जलाई जाने वाली पराली का असर बता रहे हैं वहीं केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का कहना है कि हरियाणा और पंजाब को इस स्थिति के लिए दोष देना बंद करके अगर आपस में मिलकर इस समस्या का समाधान तलाशने की कोशिश की जाती तो संभव है स्थिति बेहतर होती.

वायु प्रदूषण हर साल इन्हीं महीनों में ज्यादा खराब होती हैं. इसका कारण केवल पराली नहीं बल्कि मौसम का बदलता रूख भी है. साथ ही ऐसे कई अन्य हानिकारक तत्व हैं जो गाड़ियों और उद्योगों से आते हैं जैसे कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) और ओजोन जैसी गैसें. हवा की गुणवत्ता को एयर क्वालिटी इंडेक्स पर मापा जाता है. अगर एयर क्वालिटी इंडेक्स 0-50 के बीच है तो इसे अच्छा माना जाता है, 51-100 के बीच में यह संतोषजनक होता है, 101-200 के बीच में औसत, 201-300 के बीच में बुरा, 301-400 के बीच में हो तो बहुत बुरा और अगर यह 401 से 500 के बीच हो तो इसे गंभीर माना जाता है.

दिल्ली में कई जगह पीएम 2.5 अपने उच्चतम स्तर 500 के पार दर्ज किया गया. पीएम 2.5 हवा में तैरने वाले वाले वो महीन कण हैं जिन्हें हम देख नहीं पाते हैं. लेकिन सांस लेने के साथ ये हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. वायुमंडल में इनकी मात्रा जितनी कम होती है, हवा उतनी ही साफ़ होती है. इसका हवा में सुरक्षित स्तर 60 माइक्रोग्राम है. इसके अलावा पीएम 10 भी हवा की गुणवत्ता को प्रभावित करता है. इस गंभीर स्थिति को ही ध्यान में रखते हुए पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी की घोषणा की गई है.

बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 2015 के एक अध्ययन में राजधानी के हर 10 में से चार बच्चे ‘फेफड़े की गंभीर समस्याओं’ से पीड़ित हैं. इसके अलावा भारत साल 2015 में प्रदूषण से हुई मौतों के मामले में 188 देशों की सूची में पांचवें स्थान पर था. प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल, द लांसेट में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक़, दक्षिण पूर्व एशिया में साल 2015 में 32 लाख मौतें हुईं. दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के इस आंकड़े में भारत भी शामिल है.

दुनियाभर में हुई क़रीब 90 लाख मौतों में से 28 प्रतिशत मौतें अकेले भारत में हुई हैं. यानी यह आंकड़ा 25 लाख से ज़्यादा रहा. एयर क्वॉलिटी इंडेक्स 360 के ऊपर होने का मतलब है 20 से 25 सिगरेट पीना. इस आधार पर यह कहना ग़लत नहीं होगा कि दिल्ली में कोई भी नौन-स्मोकर नहीं बचा है.

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हेल्थ इमरजेंसी हमारे आपके लिए नया शब्द हो सकता है लेकिन दुनिया के लिए ये शब्द पुराना है. साल 2012 में चीन में हेल्थ इमरजेंसी लगाई गई थी जब वहां प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक बढ़ गया था. भारत में तो इसे लगाने में काफ़ी वक़्त लिया गया जबकि दुनिया के दूसरे देशों में यह बहुत ही शुरुआती स्तर पर घोषित कर दी जाती है.

खुशियां फैलाएं प्रदूषण नहीं

देश की राजधानी दिल्ली ही नहीं बाकी तमाम शहर भी प्रदूषण से परेशान हैं. दिल्ली के आसपास पराली जलाने से भी प्रदूषण बढ़ जाता है. दीवाली पर पटाखे चलाने से दिल्ली व उस के आसपास सब से अधिक प्रदूषण होता है. दुनिया के सब से अधिक प्रदूषित 10 शहरों में भारत के सब से अधिक शहर शामिल हैं, जो एक खतरनाक संकेत है.

किसी भी त्योहार का मतलब भी तभी हल होता है जब वह समाज में खुशियां फैलाए. प्रदूषण पूरी दुनिया का सब से बड़ा मुद्दा बन गया है. यह आने वाले समय में और भी अधिक खराब हालत में होगा. अपने आने वाली पीढि़यों को साफस्वच्छ हवा और पानी देने के लिए हमें प्रदूषण खत्म करने पर काम करना ही होगा.

खुशी कम प्रदूषण ज्यादा देते हैं पटाखे

दीवाली खुशियों का त्योहार है. इस की सब से बड़ी बुराई यह है कि खुशियां मनाने के लिए लोग पटाखों और फुलझडि़यों का सहारा लेते हैं, जिन से धुंआ निकलता है और वह वातावरण में फैल लोगों को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है जो सांस की बीमारी के मरीज होते हैं. इन में बच्चे, बूढ़े और जवान सभी होते हैं.

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सांस की बीमारी के अलावा पटाखों की तेज आवाज कानों को भी नुकसान पहुंचाती है, जिसे ध्वनि प्रदूषण कहा जाता है. ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए ही अस्पतालों और स्कूलों के क्षेत्रों को साइलैंस जोन बनाया जाता है. यहां पर तेज आवाज में हार्न बजाना मना होता है.

जब लोग तेज आवाज के पटाखे, बम और दूसरी चीजें फोड़ते हैं, तो अपना मुंह दूसरी ओर कर के कान पर हाथ रख लेते हैं. इस का मतलब यह होता है कि यह आवाज उन्हें भी अच्छी नहीं लगती है, जो साबित करता है कि जरूरत से ज्यादा तेज आवाज कानों के लिए ठीक नहीं.

सोचने की बात यह है कि जब हमारे कानों को कोई चीज अच्छी नहीं लगती है तो वह दूसरों को कैसे अच्छी लगेगी? इसलिए तेज आवाज के पटाखे नहीं चलाने चाहिए. पटाखे चलाने वालों को ही नुकसान नहीं पहुंचाते, बल्कि उन्हें भी पहुंचाते हैं जो इन्हें बनाते हैं. पटाखों के बनाने में बारूद का इस्तेमाल होता है, बनाने वालों के हाथों को नुकसान पहुंचाता है. इस के अलावा जब यह बारूद नाक के रास्ते फेफड़ों तक पहुंचता है, तो गंभीर बीमारी का शिकार बना देता है.

दीवाली में खुशियां मनाने का दूसरा तरीका बिजली की रोशनी करने का है. इस के लिए लोग भारी संख्या में बिजली की झालरें, बल्व और दूसरे सजावटी सामान का प्रयोग करते हैं. इस में सब से बड़ी बात यह है कि लोग एकदूसरे की देखादेखी अपने घर पर ज्यादा से ज्यादा रोशनी करना चाहते हैं. इस के लिए बिजली जलाते हैं. इस से बिजली का खर्च बढ़ जाता है. इस का प्रभाव यह होता है कि बिजली सप्लाई में तो परेशानी आती ही है, बिजली उन जगहों पर भी नहीं जा पाती है, जहां उस की सख्त जरूरत होती है. बहुत सारे अस्पतालों, औफिसों, रेलवे स्टेशनों और बाजारों को भी बिजली नहीं मिल पाती है.

रंगोली में करें प्राकृतिक रंगों का प्रयोग

रंगोली बनाने के लिए प्राकृतिक चीजों का ही प्रयोग किया जाए. इस के लिए फूलों और पत्तियों का प्रयोग कर सकती हैं. चावल को रंगने के लिए भी हलदी का प्रयोग करें. हरे रंग के लिए पत्ती का प्रयोग करें. पत्तियों को महीन काट लें. इन का इस्तेमाल रंगोली को आकर्षक रूप देने के लिए कर सकती हैं. इसी तरह अलगअलग रंगों के फूलों को भी महीनमहीन काट कर रंग की जगह इस्तेमाल किया जा सकता है.

ईको फ्रैंडली दीवाली मनाने के लिए बनाए गए रंगों का बहिष्कार करें. इन रंगों को बनाने में कैमिकल का प्रयोग किया जाता है, जो सेहत के लिए नुकसानदायक होता है.

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लखनऊ में रहने वाली रंगोली कलाकार ज्योति रतन कहती हैं कि प्राकृतिक रंगों से आकर्षक और हानिरहित रंगोली बनाई जा सकती है. रंगोली में उस की डिजाइन और रंगों का प्रयोग ही महत्त्वपूर्ण होता है. आज तरहतरह के फूल मिलने लगे हैं, जिन से रंगबिरंगी रंगोली बनाई जा सकती है.

इस तरह की बातों का खयाल रख कर ईको फ्रैंडली दीवाली मनाई जा सकती है. इस के साथसाथ खाने के सामान को बनाते समय भी इस बात का खयाल रखें कि इस में सेहत को नुकसान पहुंचाने वाली चीजों का प्रयोग न हो.

अब तो डरना जरूरी है

देश के शहरों में बढ़ता प्रदूषण घरों के लिए बड़ी आफत बन रहा है. बाहर व घर के कामों के बोझ से पहले से ही दबी औरतों को प्रदूषण के कारण पैदा होने वाली बीमारियों व गंद दोनों से जूझना पड़ रहा है.

दिल्ली जैसे शहर में अब कपड़े सुखाना तक मुश्किल हो गया है, क्योंकि चमकती धूप दुर्लभ हो गई है और साल के कुछ दिनों तक ही रह गई है.

इस का मतलब है कि गीले कपड़े सीले रह जाते हैं और बीमारियां व बदबू पैदा करते हैं. घरों के फर्श मैले हो रहे हैं, परदों के रंग फीके पड़ रहे हैं, घरों के बाग मुरझा रहे हैं और फूल हो ही नहीं रहे.

प्रदूषण के कारण अस्पतालों और डाक्टरों के चक्कर लग रहे हैं. जीवन में से हंसी लुप्त हो रही है क्योंकि हर समय उदासी भरी उमस छाई रहती है, जो मानसिक बीमारियों को भी जन्म दे रही है.

छोटे घरों में अब और कठिनाइयां होने लगी हैं क्योंकि बाहर निकल कर साफ हवा में सांस लेना असंभव हो गया है और घर के अंदर धूप न होने की वजह से हर समय एक बदबू सी छाई रहती है.

सरकारें हमेशा की तरह आखिरी समय पर जागती हैं, जब दुश्मन दरवाजे पर आ खड़ा हो. दुनिया के बहुत शहरों ने प्रदूषण का मुकाबला किया है और इस के उदाहरण भी मौजूद हैं.

यह दुनिया में पहली बार नहीं हो रहा है पर हमारी सरकारें तो केवल आज की और अब की चिंता करती हैं. बाबूओं और नेताओं को तो अपना पैसा बनाने और जनता को चूसने की लगी रहती है. उन्हें प्रदूषण जैसी फालतू चीज से कोई मतलब नहीं है.

दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों को प्रदूषण से आजादी दिलाना कोई असंभव काम नहीं है. जरूरत सिर्फ थोड़ी समझदारी की है.

जनता पहले लगे नियंत्रणों पर चाहे चूंचूं करे पर उसे जल्दी ही लाभ समझ आ जाता है.

मुंबई के मुकाबले दिल्ली में हौर्न कम बजते हैं तो इसलिए कि यहां के लोगों को समझ आ गई है कि ट्रैफिक है तो हौर्न से तो कम नहीं होगा. छोटे शहरों में हर वाहन पींपीं करता रहता है क्योंकि इस में ईंधन न के बराबर लगता है.

प्रदूषण से बचाने के लिए जो तरीके अपनाए जाएंगे उन का तुरंत फायदा तो उसी को मिलेगा जो अपना रहा है. लोगों ने चूल्हों की जगह गैस इस्तेमाल की और धुंआ कम हो गया. क्या कानून बनाना पड़ा? नहीं, सुविधा जो थी.

अब सरकार का तो इतना काम है कि प्रदूषण से बचने के लिए शहरी इलाकों में से अपने दफ्तर हटा कर वहां बाग बना दे. उस के दफ्तर तो 50-60 मील दूर जा सकते हैं. पर वह तो पेड़ों से भरे इलाकों में सरकारी कर्मचारियों के लिए दड़बेनुमा मकान बनाना चाहती है जहां न कोई पेड़ बचा रहे न नया लग पाए.

सरकार कारखानों को बंद करा रही है पर न छूट दे रही है न सहायता. यदि पैसे नहीं दे सकते तो 5-7 साल के लिए टैक्स ही हटा दे, लोग खुद फैक्ट्री खाली कर देंगे और वहां घर बना देंगे. सरकार सोचती है कि जनता को प्रदूषण की चिंता ही नहीं है.

सड़कों पर वाहन कम करने के लिए सरकार ऊंची बिल्डिंगें बनने दे. उन पर आनाकानी न करे. पर छूट एक हाथ से दे कर दूसरे से न ले. अगर ऊपर घर व नीचे दफ्तर, दुकानें होंगी तो लोग बिना वाहन के रह सकेंगे.

लोग खुद अपने घरों और बच्चों की सेहत के लिए ऐसी जगह रहना चाहेंगे जहां कम प्रदूषण हो. पर जब तक सरकारी सांप, अजगर, सांड खुले फिरते रहेंगे तो भूल जाइए कि कुछ होगा.

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