प्रदूषण से बचाना सामूहिक जिम्मेदारी

बढ़ता प्रदूषण, कूड़े के ढेर, बदबू, नालियों का बंद होना,  सड़कों पर बेतहाशा भीड़ पर लोग अकसर गुस्सा होते हैं पर वे भूल जाते हैं कि वे ज्यादातर खुद ही इस के जिम्मेदार हैं. औरतें और ज्यादा, क्योंकि घरों का कूड़ा वे ही इधरउधर फेंकती रहती हैं.

जब से मशीनों की सहायता से तरहतरह की चीजें सस्ते में बनाना आसान हुआ है, लोगों में खरीदारी की होड़ लग गई है. दिल्ली का करोलबाग हो या चेन्नई का टी नगर, खरीदारों से भरा होता है और वहां न गाडि़यां खड़ी करने की जगह बचती है, न सामान रखने की.

यह सामान अंत में घरों में पहुंचता है जहां और जगह और जगह का शोर मचता रहता है. नई अलमारियां बनती हैं, अलमारियों के ऊपर ओवरहैड कपबर्ड बनते हैं. कौरीडोरों में लौफ्ट बनते हैं. उन में ठूंसठूंस कर सामान रखा जाता है पर फिर भी रोना रोया जाता है कि जगह कम है.

दूसरी ओर न इस्तेमाल किया या थोड़ा इस्तेमाल किया सामान फालतू में कोनों में सड़ कर कूड़े के ढेरों को बढ़ाता है और शहरी रोते हैं कि शहर और आसपास का पर्यावरण गंदा हो रहा है.

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आर्थिक उन्नति के नाम पर बेमतलब में इजिप्ट के पिरामिड या दिल्ली की कुतुब मीनार बनाना जरूरी नहीं है. लोगों को मौसम से बचाने के लिए सुविधाजनक घर चाहिए, जहां दम न घुटे पर जब उन में सामान भर दिया जाएगा तो वे ही कबाड़खाना बन जाएंगे जो वे घर ही घर का पर्यावरण खराब करते हैं, जो बाहर के खराब पर्यावरण से भी ज्यादा खतरनाक  होताहै.

अमेरिकी गायिका मैडोना ने तय किया है कि वह कुछ नहीं खरीदेगी. सालभर तक कोविड ने इस में हैल्प की कि लौकडाउन हो गया, पार्टियां बंद हो गईं. अब तो आदत हो गई है कि 3-4 जोड़ी कपड़े रखो, धोधो पहनो.

महात्मा गांधी का सामान न के बराबर था और वे 100 करोड़ लोगों के दिलों पर राज करते थे, 1-1 पिन बचा कर रखते थे.

अगर दुनिया को प्रदूषण से बचना है तो घर का, बच्चों का, खुद का व औरों का सामान न खरीदें. पुराने से काम चलाएं. जब तक कोई चीज खराब न हो, बदलें नहीं. उत्पादकों से कहें कि हम तो ‘दादा खरीदे पोता बरते’ वाला सामान चाहते हैं. यह बनाया जा सकता है और बनाना आसान है.

उत्पादक समझ गए हैं कि लोगों में नए की ललक है, इसलिए थोड़ा सा बदलाव कर के नया, अब शक्तिशाली, ‘अब नए के फीचरों के साथ’ के शब्दों का धुआंधार इस्तेमाल करते हुए प्रचार करते हैं क्योंकि उन्हें मुनाफे से मतलब होता है, उन से जो प्रदूषण फैल रहा उस की चिंता नहीं.

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उत्पादक, कंपनियां, बिजली घर, पैट्रोल रिफाइनरियां प्रदूषण का कारण नहीं, प्रदूषण का कारण सीधेसादे घर के लोग हैं, वहां रहती औरतें हैं, जिन की अलमारियों में सामान ठूंसठूंस कर भरा है, जो हर रोज ड्रम भर कर सामान फेंकते हैं. सब से ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले को देखना है तो दूर न जाइए, बस शीशे के सामने खड़े हो जाएं, दिख जाएगा.

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