नींद को हाईजैक करती डिजिटल लाइफस्टाइल

डिजिटल रिवोल्यूशन ने बहुत सी चीजें आसानी की हैं.  इसने सूचना के संदर्भ में समय और स्थान को बेमतलब कर दिया है .  आप पलक झपकने की देरी में कोई भी सूचना दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक भेज सकते हैं और पा भी सकते हैं .  यह डिजिटल रिवोल्यूशन का ही कमाल है कि कोरोना महामारी के चलते दुनिया के पूरी तरह से ठहर जाने के बाद भी अंतर्राष्ट्रीय कारोबार पूरी तरह से नहीं ठहरा.  यह वर्क फ्राम होम की सुविधा भी डिजिटल रिवोल्यूशन से ही संभव हुई है, जिसके चलते कोरोनाकाल में [जनवरी-2020 से नवंबर 2020 तक ] पांच खरब डॉलर का कामकाज हुआ.  डिजिटल रिवोल्यूशन ने हमें गैरजरूरी यात्राओं, दुविधाओं और कई सारी असुविधाओं से भी मुक्त कर दिया है.  हमें अब हर छोटे-छोटे काम के लिए भागना दौड़ना नहीं पड़ता.

भला आज के 25 साल पहले रेलवे टिकट बुक कराना, क्या बिना स्टेशन गये संभव था? बिल्कुल नहीं, लेकिन आज यह संभव है.  आज रात के 2 बजे, 3 बजे या किसी भी समय हम यह जान सकते हैं कि जिस ट्रेन या हवाई जहाज से हम यात्रा करना चाह रहे हैं उसमें हमारे लिए सीट उपलब्ध है या नहीं.  आज हम घर बैठे देश के किसी भी कोने से अपने लिए खाना मांगा सकते हैं, वो भी गर्मागर्म.  ये सब आधुनिक डिजिटल लाइफस्टाइल में महत्वपूर्ण आधार बनी सूचनाक्रांति से संभव हुआ है.  डिजिटल रिवोल्यूशन ने आम लोगों की जिंदगी में और भी कई शानदार चीजें जोड़ी हैं.  लेकिन इस सबकी उसने हमसे एक बड़ी कीमत भी वसूली है, इसने किसी हद तक हमसे हमारी नींद छीन ली है.  जी हां! आपने बिल्कुल सही सुना है.  डिजिटल लाइफस्टाइल के कारण दुनियाभर में लोगों की नींद एक से चार घंटे तक कम हो गई है.

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इसका खामियाजा बीमार होकर तो भुगतना ही पड़ता है, साथ ही इसके कारण असामयिक मृत्यु की आशंका भी 5 से 10 फीसदी तक बढ़ जाती है.  कुल मिलाकर कहने की बात यह है कि आज की डिजिटल लाइफस्टाइल ने हमें तड़क-भड़क का थोड़ा सा रोमांच देकर हमारी जिदंगी की बहुत ही महत्वपूर्ण चीज नींद हमसे चुरा ली है .  वास्तव में डिजिटल रिवोल्यूशन के कारण बदली मौजूदा अर्थव्यवस्था की दुनिया ने, हमारे रोजमर्रा के शिड्यूल को बदलकर रख दिया है.  नाइट ड्यूटी करना अब लगभग आवश्यक सा हो गया है.  जाहिर है इसके कारण भी ऐसे लोगों की तादाद निरंतर बढ़ती जा रही है जिनको पर्याप्त नींद नहीं मिल पा रही है.  साल 2016 में मशहूर पत्रिका इंडिया टुडे में छपे एक शोध के मुताबिक लगभग एक तिहाई भारतीय पर्याप्त नींद से वंचित हैं.  लेकिन इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि जो लोग नींद समस्या के समाधान सम्बंधी व्यापार से जुड़े हुए हैं उनकी चांदी हो रही है.

नींद न आना कोई नई बात नहीं है.  लेकिन आज के युग में अनेक चिंताजनक नए तत्वों ने इसे एक ऐसी महामारी बना दिया है कि जो किशोरों व युवाओं के साथ साथ बच्चों तक को प्रभावित कर रही है.  दरअसल, अपर्याप्त नींद से जो स्वास्थ्य खतरे उत्पन्न हो रहे हैं उनके बारे में जानकारी को आम करना इतना आवश्यक हो गया है कि वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ़ स्लीप मेडिसन ने कुछ साल पहले 15 मार्च को विश्व नींद दिवस मनाने का फैसला किया था.  एक व्यापक अध्ययन से यह बात भी सामने आयी थी कि साल 2008 से प्रति वर्ष नींद सम्बंधी खर्च में 8.8 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है.  साल 2012 तक नींद न आने की कीमत 32 अरब डॉलर तक हो चुकी थी, जो साल 2018 तक आते आते 40 अरब डॉलर का बाजार बन गई.  भारत में तमाम मंदी के बाद भी नींद उत्पादों का बाजार अक्टूबर 2019 तक  20 हजार करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच गया था .  इस संबंध में यह शोध सर्वे नील्सन कम्पनी ने 2018 में फिलिप्स रेस्पीरोनिक्स के लिए किया था, जिसका विषय था ‘स्लीप-एड व डायग्नोस्टिक उपकारणों का कारोबार’.

दरअसल नींद के कारोबार में हुई इस भारी बढ़ोत्तरी का कारण यह है कि 93 प्रतिशत भारतीय रात में आठ घंटे से भी कम की नींद ले रहे हैं.  सवाल है इसका कारण क्या है? कारण कई हैं लेकिन कम नींद के चलते 58 प्रतिशत हिंदुस्तानियों का मानना है कि इसका असर उनके परर्फोमेंस पर साफ दिखायी पड़ने लगा है.  38 प्रतिशत की तो पीड़ा यह है कि उन्हें उनके सहकर्मियों ने कार्यस्थल पर सोते हुए पाया है और पर्याप्त मात्रा में इसके लिए उपदेश भी दिया है .  हम सब जानते हैं कि पर्याप्त नींद न मिल पाने से अनेक स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं.  स्लीप डिसआर्डर्स के आज दुनिया में 80 से ज्यादा प्रकार हैं.  साथ ही इसके कारण हार्ट अटैक, डिप्रेशन, हाई ब्लडपे्रशर, याददाश्त आदि की समस्याएं भी पैदा हो रही हैं.  विशेषज्ञों की मानें तो मोटापे को रोग समझने में हमें 25 वर्ष का समय लगा था, लेकिन लगता है नींद को रोग मानने में हम और ज्यादा लापरवाही कर रहे हैं.  जबकि एक नहीं तमाम शोधों से यह साबित हो गया है कि अपर्याप्त नींद एक ‘खामोश कातिल’ है.

वैसे एक बड़ी समस्या पर्याप्त नींद का पैमाना भी है.  क्योंकि एक व्यक्ति को दिन में कितनी नींद चाहिए यह एक भ्रमित करने वाला प्रश्न है.  वास्तव में यह बहुत सी चीजों पर निर्भर होता है कि हमें हर दिन कितनी नींद चाहिए.  मसलन एक गर्भवती महिला को जितनी नींद की जरूरत होती है, उतनी एक सामान्य औरत को नींद की जरूरत नहीं होती.  यही बात एक्सरसाइज करने वालों और न करने वालों पर भी लागू होती है.  इसके साथ ही इस पूरे संदर्भ में इस बात को भी जानना जरूरी है कि महज आंखें बंद कर लेना ही नींद नहीं है.  अच्छी नींद में शामिल है शरीर को आराम मिलना व ऊर्जा स्तरों को पुनः स्थापित करना, खासकर तब जबकि हमारा मस्तिष्क स्लीप मोड में हो.  दरअसल मानव नींद का स्वभाव चक्रात्मक होता है और आमतौर से मस्तिष्क दो प्रकार की नींदों से गुजरता है जो कि प्रत्येक 90 मिनट में पांच चरणों से गुजरती हैं.  यह दो नींदें हैं रेपिड आई मूवमेंट स्लीप (आरईएम) और नाॅन रेपिड आई मूवमेंट स्लीप (एनआरईएम).  यहां इन चक्रों की गहराई में जाने की जरूरत नहीं है, बस यह समझने की जरूरत है कि अच्छी व आरामदायक नींद के लिए क्या करना चाहिए?

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– रोजाना निश्चित समय पर सोएं व जागें.

– नियमित एक्सरसाइज करें, खासकर सुबह को.  नियमित एक्सरसाइज करने से आरामदायक नींद मिलने के साक्ष्य मौजूद हैं.

– सूरज की रोशनी अवश्य लें, विशेषकर देर दोपहर में.

-अपने बेडरूम में तापमान आरामदायक रखें.

-बेडरूम में शांति व अंधेरा रखें.

– अपने बिस्तर का प्रयोग केवल नींद व सेक्स के लिए करें.

-अगर आप नींद की गोलियां लेते हैं तो उन्हें सोने से एक घंटा पहले लें या जागने से 10 घंटे पहले लें ताकि दिन में आलसपन से बचे रहें.

– सोने से पहले कोई रिलैक्स करने वाली एक्सरसाइज करें, लेकिन अधिक मेहनत वाली कोई एक्सरसाइज न करें.

-सोने से पहले कोई दिमाग को झकझोरने वाली गतिविधि में लिप्त न हों जैसे कोई प्रतिस्पर्धात्मक खेल आदि.

-शाम को कैफीन का सेवन न करें.

–  बिस्तर में बैठकर किताब न पढ़ें, टेलीविजन न देखें.

-नींद लाने के लिए शराब का सेवन न करें.

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