REVIEW: साधारण लेखन व निर्देशन ‘सुमेरू’

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः पद्मसिद्ध फिल्मस

निर्देशकः अविनाश ध्यानी

कलाकारः अविनाश ध्यानी, संस्कृति भट्ट, शगुफ्ता अली, अभिषेक मंडोला,  सुरूचि सकलानी, प्रशिल रावत, सतीश शर्मा, माधवेंद्र सिंह रावत

अवधिः एक घंटा 58 मिनट

फिल्मों में अलग अलग परिवेश में प्रेम के कई रंग पेश किए जाते रहे हैं. इस बार अभिनेता, लेखक व निर्देशक अविनाश ध्यानी अपनी नई फिल्म ‘‘सुमेरू’’ में पहाड़ों में हिमस्खलन व भीषण ठंड के बीच एक अलग तरह की प्रेम कहानी के साथ पिता व पुत्र के बीच भावनात्मक संबंधो को उकेरा है. फिल्म एक अक्टूबर को महाराष्ट् और केरला के अलावा देश के अन्य हिस्सों के सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई है.

कहानीः

सूरत के उद्योगपति मल्होत्रा की बेटी सावी मल्होत्रा (संस्कृति भट्ट) की सगाई रोमी(प्रशिल रावत) से हो चुकी है. लेकिन अंदर से सावी, रोमी की हरकतों से खुश नही है. दोनों डेस्टीनेशन वेडिंग के लिए उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र हर्षिल में लोकेशन देखने जाते हैं. हर्ष िाल की बाजार पहुंचने पर रोमी को जगह पसंद नही आती, पर सावी को अपने मंगेतर का उस जगह फाइव स्टार होटल की तलाश की बात पसंद नहीं आती और वह रोमी को कार के पास अकेला छोड़कर पैदल चल देती है. सावी नीरस और अनपेक्षित जीवन शैली से तंग आ चुकी है और इससे मुक्त होना चाहती है. घने जंगल से गुजरते हुए सावी एक जंगली जानवर के कराहने की आवाज से डरती है और गाना गाते हुए दौड़ने लगती है, क्योंकि उसकी माँ ने उसे सिखाया था कि डर लगन पर गाना गाने से डीर दूर हो जाता है. अचानक सावी की मुलाकात एक हरियाणवी लड़के भांवर प्रताप सिंह (अविनाश ध्यानी) से होती है, जो अपने पिता के  अवशेषों की तलाश में सुमेरु नामक पर्वत की तरफ जा रहा है.

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भांवर प्रताप सिंह के पिता मांउटेरियन रहे हैं और वह हर वर्ष पहाड़ों पर ट्ैकिंग करने जाते थे. उसे उनकी अंतिम लाकेशन सुमेरू पर्वत की ही मिली है, जहां हिमस्खलन में मृत्यु हो गई थी. भांवर प्रताप सिंह , सावी को जंगल में गाना गाते हुए देख उसे भूतनी समझता है. पर दोनोें मिलते हैं और दोनों के बीच  तीखी नोकझोंक होती है. उसके बाद सावी रात भर के लिए मदद मांगती है और दोनों साथ चलने लगते हैं. सुमेरू पर्वत तक पहुॅचने तक दोनों एक दूसरे की खोज करते हैं. सावी खुद की भी तलाश कर रही है. राह में दोनों ठंड व हिमस्खलन में एक-दूसरे का भावनात्मक सहारा बनते हैं. अंततः दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगते हैं, पर इस बात को कोई स्वीकार नही करता. पिता   अवशेषों को पाने के बाद उनका वहीं अंतिम संस्कार कर दोनों वहां से वापसी करते हैं. सावी सूरत और भांवर प्रताप सिंह हरियाणा रवाना होते हैं. पर प्यार अपना रंग दिखाएगा ही.

समीक्षाः

लेखक, निर्देशक व अभिनेता अविनाश ध्यानी का लेखन व निर्देशन अति साधारण है. इस कहानी को मंुबई या दिल्ली किसी जगह की पृष्ठभूमि पर कहा जा सकता था. लेकिन उत्तराखंड का निवासी होते हुए भी अविनाश ध्यानी पहाड़,  हिस्खलन, जंगल और वहां के निवासी इन सभी को फिल्म की कहानी के साथ सही अर्थों में जोड़ नहीं पाए. जबकि गुजरात की लड़की व हरियाणा के लड़के का उन पहाडो व जंगलो में एक साथ होना जहां लगातार बर्फबारी हो रही हो, तो उनके साथ आने वाली समस्याओं, उस क्षेत्र में रहने वालों के साथ इन दो किरदारों के व्यवहार व रिश्ते सहित कहानी में कई रोचक घटनाक्रम जोड़ जा सकते थे. मगर लेखक व निर्देशक यह सब करने में चूक गए. यहां तक कि भांवर प्रातप सिंह का अपने पिता के साथ के संबधों को चित्रित करने की बजाय  महज संवादों में बयंा कर दिया गया. यह भी लेख व निर्देशक की कमजोरी है. फिल्म की गति भी काफी धीमी है. एडीटिंग टेबल पर इसे कसे जाने की जरुरत थी. फिल्म में एकरसता है. दो तीन संवादों को छोड़कर एक भी संवाद दर्शक को अपनी तरफ आकर्षित नही करते.

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अभिनयः

भांवर प्रताप सिंह के किरदार में अविनाश ध्यानी अपना प्रभाव छोड़ने में विफल रहे हैं. सावी के किरदार में  संस्कृति भट्ट खूबसूरत जरुर लगी हैं, मगर अभिनय के मसले पर उन्हें काफी मेहनत करने की जरुरत है. उनमें अभिनेत्री वाले गुण नही है. उनके चेहरे पर कोई भाव ही नही आते. केवल हंसती रहती हैं. शमैरा के छोटे किरदार में शगुफ्ता अली अपनी उपस्थिति दर्ज करा जाती हैं. अन्य सह कलाकार ठीक ठाक हैं.

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