जानें क्या है प्रैग्नेंसी में आने वाली परेशानियां और उसके बचाव

लेखिका- सोनिया राणा 

मां बनना एक बेहद खूबसूरत एहसास है, जिसे शब्दों में पिरोना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव सा भी प्रतीत होता है. कोई महिला मां उस दिन नहीं बनती जब वह बच्चे को जन्म देती है, बल्कि उस का रिश्ता नन्ही सी जान से तभी बन जाता है जब उसे पता चलता है कि वह प्रैगनैंट है.

प्रैग्नेंसी के दौरान हालांकि सभी महिलाओं के अलगअलग अनुभव रहते हैं, लेकिन आज हम उन आम समस्याओं की बात करेंगे, जिन्हें जानना बेहद जरूरी है.

यों तो प्रैग्नेंसी के पूरे 9 महीने अपना खास खयाल रखना होता है, लेकिन शुरुआती  3 महीने खुद पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. पहले ट्राइमैस्टर में चूंकि बच्चे के शरीर के अंग बनने शुरू होते हैं तो ऐसे में आप अपने शरीर में होने वाले बदलावों पर नजर रखें और अगर कुछ ठीक न लगे तो डाक्टर का परामर्श जरूर लें.

प्रैग्नेंसी के दौरान महिलाओं को काफी हारमोनल और शारीरिक बदलावों से गुजरना पड़ता है. मितली आना, चक्कर आना, स्पौटिंग, चिड़चिड़ापन, कब्ज, बदहजमी, पेट में दर्द, सिरदर्द, पैरों में सूजन आदि परेशानियोंसे हर गर्भवती महिला को गुजरना पड़ता है. आप कैसे इन समस्याओं से नजात पा सकती हैं, बता रही हैं गाइनोकोलौजिस्ट डा. विनिता पाठक:

शरीर में सूजन

शरीर में सूजन आ जाना भी प्रैग्नेंसी का एक सामान्य लक्षण है. विशेषज्ञों के अनुसार प्रैग्नेंसी में महिला का शरीर लगभग 50 फीसदी ज्यादा खून का निर्माण करता है. गर्भ में पल रहे बच्चे को भी मां के ही शरीर से पोषण मिलता है, जिस की वजह से मां का शरीर ज्यादा मात्रा में खून और फ्लूइड का निर्माण करता है.

हालांकि इस दौरान शरीर में सूजन आ जाना एक सामान्य बात है, लेकिन अगर सूजन बहुत अधिक है तो यह चिंता की बात हो सकती है. आम बोलचाल की भाषा में इसे ओएडेमा कहते हैं. इस दौरान हाथों, चेहरे और पैरों में सब से अधिक सूजन नजर आती है.

सूजन कम करने के लिए पैरों को कुनकुने पानी में नमक डाल कर कुछ देर के लिए डुबो कर रखें. रात को पैरों के नीचे तकिया लगाने से भी सूजन से राहत मिलेगी.

प्रैग्नेंसी की कब्ज न कर दे बवासीर

प्रैग्नेंसी में सही खानपान न लेने से कई महिलाएं कब्ज की समस्या से गुजरती हैं, जिस में आगे जा कर बवासीर होने का खतरा काफी अधिक रहता है. नियमित आहार न लेने से यह समस्या हो सकती है. इस से बचने के लिए जरूरी है कि आप अपने आहार में सेब, केला, नाशपाती, शकरकंद, गाजर, संतरा, कद्दू जैसी सब्जियों और फलों को शामिल करें.

मसालेदार भोजन से बिलकुल परहेज करें और ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं.

गैस, बदहजमी और पेट दर्द की समस्या

प्रैग्नेंसी के दौरान गैस, भारीपन और पेट दर्द की समस्या भी आमतौर पर महिलाओं में देखी जाती है. इन से बचने के लिए सब से पहले अपने आहार से तली हुई चीजों को निकाल दें. मसालेदार खाना खाने से बचें और एक बार में बहुत अधिक भोजन भी न करें. गैस और बदहजमी की समस्या के उपचार के लिए एक गिलास कुनकुने पानी में आधे नीबू का रस मिला कर पीएं.

यूरिन इंन्फैक्शन बनता है परेशानी का सबब

प्रैग्नेंसी में यूरिन इन्फैक्शन हो जाने पर जरूरी है कि आप अधिक से अधिक पानी पीएं ताकि पेशाब के जरीए आप के शरीर से सभी प्रकार के हानिकारक तत्त्व बाहर निकल जाएं. इस के अलावा विटामिन सी से भरपूर फल और सब्जियां खाएं. दही या छाछ भी यूरिन इन्फैक्शन में बहुत लाभदायक होती है.

स्वस्थ प्रैगनैंसी के लिए तैयार करें डाइट चार्ट

शुरुआती 3 महीनों में प्रोटीन, कैल्सियम और आयरन से भरपूर चीजें ज्यादा खानी चाहिए. अपने खाने में दाल, पनीर, अंडा, नौनवेज, सोयाबीन, दूध, दही, पालक, गुड़, अनार, चना, पोहा, मुरमुरे शामिल करें, फल और हरी पत्तेदार सब्जियां भी खूब खाएं. चूंकि बच्चा फ्लूइड में ही रहता है, इसलिए शरीर में पानी की कमी बिलकुल नहीं होनी चाहिए. हर 2 घंटों में नियमित मात्रा में कुछ न कुछ जरूर खाती रहें.

ओमेगा युक्त हो आहार

बच्चे के मस्तिष्क, तंत्रिका प्रणाली और आंखों के विकास के लिए अपने आहार में ओमेगा-3 फैटी ऐसिड के सेवन को भी बढ़ाएं. बच्चे के दिमाग के विकास के लिए ओमेगा-3 और ओमेगा-6 बहुत जरूरी है. फिश, लिवर औयल, ड्राईफ्रूट्स, हरी पत्तेदार सब्जियों और सरसों के तेल में ये अच्छी मात्रा में मिलते हैं. आयरन और फौलिक ऐसिड की गोलियां खाना भी शुरू कर दें. इस से शरीर में खून की कमी नहीं होती है.

प्रैगनैंसी के दौरान मिर्गी, हाइपोथायरायड और थैलेसीमिया के लिए भी जांच कराई जाती है, अगर पेरैंट्स में से किसी में थैलेसीमिया के लक्षण हैं, तो बच्चे के भी इस से पीडि़त होने की आशंका 25% बढ़ जाती है. अगर जांच में बच्चा इन्फैक्टेड पाया जाता है, तो डाक्टर की सलाह ले कर अबौर्शन कराना ही बेहतर होता है.

  इन बातों का भी रखें खास खयाल

– भारी वजन न उठाएं.

– ज्यादा डांस न करें.

– सीढि़यों से न कूदें.

– ज्यादा हाई हील न पहनें.

– ज्यादा ड्राइविंग न करें.

– लंबी यात्रा से बचें.

– रस्सी न कूदें.

– कमर से झुकने के बजाय घुटने मोड़ कर बैठें.

शुरुआती 3 महीनों में इन से बचें

– कई बार महिलाएं डाक्टर की सलाह लिए बिना सर्दीखांसी या हलकी बीमारी होने पर दवा खाना शुरू कर देती हैं, जिस का गर्भनाल के माध्यम से बच्चे के खून में प्रवेश करने की आशंका रहती है. इसलिए पहले 3 महीनों में डाक्टर की सलाह के बिना कोई भी दवा न खाएं.

– इस दौरान कच्चा मांस, कच्चे अंडे और पनीर के सेवन से भी परहेज करें, क्योंकि इन में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया आप के शिशु की सेहत को नुकसान पहुंचा सकती है.

– तनाव भी आप के गर्भ में पल रहे शिशु के लिए किसी बड़े खतरे से कम नहीं है. प्रैग्नेंसी की शुरुआत में कई कारणों के चलते कई महिलाएं तनाव में रहने लगती हैं, जिस का बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ता है. इस के चलते कई बार गर्भपात भी हो जाता है, इसलिए प्रैग्नेंसी के दौरान जितना हो सके, खुश रहें.

– अच्छा म्यूजिक सुनें, अच्छी किताबें पढ़ें, खुद आप को व्यस्त रखें और डाक्टर की सलह के अनुसार एक्सरसाइज करें.

– प्रैग्नेंसी के दौरान डाइटिंग नहीं करनी चाहिए. इस से शरीर में आयरन, फौलिक ऐसिड, विटामिन, कई तरह के खनिजों और पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है.

– इस दौरान हौट टब और सोना बाथ का उपयोग भी न करें, क्योंकि इस से आप के शरीर का तापमान अचानक बढ़ सकता है, इस से शरीर में पानी की कमी हो सकती है, जो बच्चे के लिए जानलेवा साबित हो सकती है.

– प्रैगनैंसी के दौरान किसी खास चीज को खाने का दिल ज्यादा करने लगता है. ऐसे में किसी एक ही चीज को बारबार खाने के बजाय बाकी चीजों को भी खाने में शामिल करें.

– चाइनीज फूड खाने से आप को बचना चाहिए, क्योंकि उस में जरूरत से ज्यादा अजीनोमोटो होता है, जो आप के बच्चे की सेहत के लिए खतरनाक साबित होता है.

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