डिलीवरी से पहले कराएं Prenatal Testing ताकि ले सकें समय रहते महत्वपूर्ण फैसला

35 वर्षीय स्नेहा को जैसे ही पता लगा कि वो गर्भवती है उसे सैकड़ो चिताओं ने घेर लिया.वो ये सोच सोच कर परेशान रहती थी ,” लेट प्रेगनेंसी के साइड इफेक्ट्स बहुत ज्यादा होते है.उसका आने वाला बच्चा स्वस्थ होगा कि नहीं?”

एक दिन चेकअप के दौरान स्नेहा ने अपने मन का डर डॉक्टर से साझा किया तो उन्होंने स्नेहा को प्रीनेटल जेनेटिक टेस्ट सजेस्ट किये.क्या होता है प्रीनेटल जेनेटिक टेस्ट आप भी जान लीजिए.

प्रीनेटल जेनेटिक टेस्टिंग के तहत् कुछ ऐसी जांच शामिल होती हैं जो अजन्मे शिशु में संभावित आनुवांशिक विकारों (जेनेटिक डिसऑडर्र) की पुष्टि करती हैं.आनुवांशिक विकार किसी व्यक्ति की जीन्स में होने वाले बदलावों के कारण पैदा होते हैं.इन परीक्षणों से क्रोमोसोम में कम/अतिरिक्त क्रोमोसोम (डाउन्स सिंड्रोम) या जीन्स में होने वाले बदलावों, यानि म्युटेशंस (थैलसीमिया) का पता लगाया जाता है.जरूरी नहीं कि जेनेटिक डिसॉर्डर का कारण हमेशा आनुवांशिक ही हो.

डॉ तलत खान, डॉक्टर इंचार्ज, मेडिकल जेनेटिक्स, मैट्रोपोलिस हैल्थकेयर लिमिटेड के मुताबिक सभी गर्भवती महिलाओं को ये जांच जरूर करवानी चाहिए.दरअसल आंकड़ों के मुताबिक मैट्रोपॉलिस हैल्थकेयर लैबोरेट्री में 1 साल में प्रीनेटल जेनेटिक टेस्टिंग करवाने वाली 50,000 महिलाओं में से करीब 4 फीसदी की रिपोर्ट पॉजिटिव आयी.जो कि चिंताजनक है.लेकिन परेशानी ये है कि भारत में इस विषय पर अभी भी खुलकर बातचीत नहीं होती और यही कारण है कि जागरूकता स्तर को बेहतर बनाए जाने की जरूरत है.

अमेरिकल कॉलेज ऑफ ऑब्सटैट्रिशियन्स एंड गाइनीकोलॉजिस्ट्स (ACOG) की नवीनतम गाइडलाइंस और फेडेरेशन ऑफ ऑब्सटैट्रिक्स एंड गाइनीकोलॉजिकल सोसायटीज़ ऑफ इंडिया (FOGSI) के मुताबिक, सभी गर्भवती महिलाओं की एन्यूप्लोइडी (aneuploidy) के लिए प्रीनेटल जेनेटिक टेस्टिंग की जानी चाहिए और यह गर्भवती की उम्र या अन्य किसी भी रिस्क फैक्टर्स के संदर्भ के बगैर होनी चाहिए.
प्रेग्नेंसी की शुरुआत होते ही जल्द से जल्द जेनेटिक टेस्टिंग पर डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए यानी पहले ट्राइमेस्टर के दौरान क्योंकि 10 से 18 हफ्ते की प्रेग्नेंसी के समय ही जांच करवाने की सलाह दी जाती है.
सभी गर्भवती महिलाओं की जांच उनकी गेस्टेशनल एज के मुताबिक डुअल मार्कर टेस्ट (11 से 13.6 हफ्ते), क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट (14 से 17 हफ्ते) और नॉन-इन्वेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग (एनआईपीटी – 10 हफ्ते के बाद) होना चाहिए.ये टैस्ट नॉन-फास्टिंग ब्लड सैंपल पर किए जा सकते हैं.

यदि स्क्रीनिंग से संभावित समस्या का संकेत मिलता है, तो 30 साल से अधिक उम्र की गर्भवती, फैमिली हिस्ट्री या जेनेटिक डिसऑर्डर के रिस्क को बढ़ाने वाली मेडिकल कंडीशंस वाली महिलाओं को इन्वेसिव प्रीनेटल डायग्नॉस्टिक टेस्ट करवाने चाहिए.

ये डायग्नॉस्टिक टेस्ट, कोरियॉनिक विलस सैंपलिंग और एम्नियोटिक फ्लूइड अनॅलिसिस के आधार पर किए जाते हैं और किसी भी अनुवांशिक या जेनेटिक बीमारी की पुष्टि करने के एकमात्र साधन भी हैं.लेकिन यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि इनके साथ गर्भपात का 0.1% खतरा भी जुड़ा होता है.

महिलाओं के मन में उठने वाले सवाल

टैस्ट रिजल्ट मिलने के बाद क्या होता है?

यदि जांच के नतीजे सामान्य रेंज में होते हैं तो इनसे चिंता काफी हद तक दूर हो जाती है और प्रेग्नेंसी पर नज़र रखने के लिए रूटीन एंटीनेटल चेक-अप तथा फॉलो-अप यूएसजी की मदद ली जाती है.

क्या हाइ-रिस्क सूचना से प्रीनेटल केयर पर असर पड़ता?

प्रीनेटल टेस्टिंग से हैल्थकेयर प्रोवाइडर को उन तमाम स्थतियों की जानकारी मिल जाती है जो प्रसव के बाद इलाज के लिए आवश्यक हो सकती हैं, और इस प्रकार वे संभावित कॉम्प्लीकेशन्स के लिए पहले से तैयारी कर पाते हैं.

स्क्रीनिंग टेस्ट कितने सही होते हैं?

सामान्य ट्राइसॉमी के लिए सभी स्क्रीनिंग टेस्ट 90% संवेदी होते हैं.

क्या एम्नयोसेंटेसिस से गर्भपात (एबॉर्शन) का खतरा होता है?

एम्नियोसेंटेसिस 99.9% सुरक्षित होती है और इसमें गर्भपात का खतरा केवल 0.1% होता है.

क्या इन परीक्षणों से गर्भ में पल रहे भ्रूण के लिंग का भी पता लगाया जा सकता?

नहीं, PCPNDT गाइडलाइंस के मुताबिक, प्रसव पूर्व शिशु के लिंग की जानकारी देना गैर-कानूनी होता है.

क्या प्रीनेटल जेनेटिक टेस्ट के साथ फौलो-अप सोनोग्राफी की आवश्यकता होती है?

हां, अल्ट्रासाउंड का समय और फ्रीक्वेंसी का निर्धारण ऑब्सटैट्रिशयन द्वारा किया जाता है और यह हर मरीज के मामले में फर्क हो सकता है.

निष्कर्षः

जेनेटिक टेस्टिंग की सलाह दी जाती है ताकि आप पहली बार प्रीनेटल विजिट के दौरान ही चर्चा कर सकें.
ज्यादातर महिलाओं के मामले में दोनों जेनेटिक स्क्रीनिंग और डायग्नॉस्टिक टेस्ट नेगेटिव आ सकते हैं.
स्क्रीनिंग पर पॉजिटिव रिजल्ट आए तो दोबारा डायग्नोस्टिक टेस्ट करवाएं ताकि पुष्टि की जा सके.
यह जानकारी आगे टेस्टिंग के लिए, अतिरिक्त मेडिकल केयर, प्रेग्नेंसी के विकल्पों या प्रसव के बाद रिसोर्स/सपोर्ट की तलाश में मददगार हो सकती है.

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