Mother’s Day Special: आधुनिक मांएं- चुनौतियों से डरना क्यों

हमारे देश में 50 फीसदी कामकाजी मांओं को महज 30 साल की उम्र में अपने बच्चों की देखभाल करने के लिए नौकरी छोड़नी पड़ती है. अशोका यूनिवर्सिटी के ‘जैनपैक्ट सैंटर फौर वूमंस लीडरशिप’ ने ‘प्रिडिकेमैंट औफ रिटर्निंग मदर्स’ नाम से एक रिपोर्ट जारी की जो कामकाजी मांओं की चुनौतियों पर कराई गई एक स्टडी के आधार पर तैयार की गई है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि मां बनने के बाद महज 27 फीसदी महिलाएं ही अपने कैरियर को आगे बढ़ा पाती हैं और वर्कफोर्स का हिस्सा बनी रहती हैं. यानी मां बनते ही 73 फीसदी महिलाएं जौब करना छोड़ देती हैं.

प्रोफैशनल सोशल साइट लिंक्डइन ने हाल ही में एक रिपोर्ट पब्लिश की है जिस के अनुसार भारत में 10 से 7 महिलाएं नौकरी छोड़ने पर विचार कर रही हैं. लिंक्डइन द्वारा सा?ा की गई रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के नौकरी छोड़ने की सब से बड़ी वजह वर्कप्लेस पर पक्षपात, तनख्वाह में कटौती और काम में फ्लैक्सिबिलिटी की कमी है.

इस रिपोर्ट के लिए करीब 2,266 महिलाओं से बातचीत की गई. इस में महिलाओं के कामकाज और उन से जुड़ी चुनौतियों पर फोकस किया गया. इस रिसर्च से पता चला है कि कोरोना महामारी ने महिलाओं के काम पर बहुत बुरा असर डाला है. इस महामारी के बाद अब देश में करीब 10 से 7 महिलाएं यानी करीब 83त्न महिलाएं औफिस में ज्यादा फ्लैक्सिबल तरीके से काम करना पसंद करने लगी हैं.

क्यों नहीं कर पाती महिलाएं नौकरी

फ्लैक्सिबिलिटी की कमी के कारण महिलाएं नौकरी छोड़ रही हैं. सर्वे के अनुसार करीब 70त्न महिलाएं पहले ही नौकरी छोड़ चुकी हैं या छोड़ने पर विचार कर रही हैं. इस के साथ ही वे उस तरह की नौकरी के औफर्स भी रिजैक्ट कर रही हैं जहां उन्हें काम करने के फ्लैक्सिबल आवर्स नहीं मिलते.

सर्वे में 5 में से 3 महिलाओं ने यह माना है कि वर्कप्लेस पर फ्लैक्सिबिलिटी से पर्सनल लाइफ और काम के बीच बैलेंस बनाने में आसानी होती है. इस से महिलाओं को कैरियर में आगे बढ़ने में मदद मिलती है. इस के साथ ही यह उन की अच्छी मैंटल हैल्थ के लिए भी जरूरी है. इन सभी चीजों से वे आगे भी नौकरी आसानी से कर पाती हैं. अगर यह सुविधा नहीं मिलती है तो परिवार की जिम्मेदारियों की वजह से उन के लिए जौब कंटिन्यू कर पाना कठिन हो जाता है.

चुनौतियों से भरी होती है जिंदगी

एक स्त्री को अपने जीवन में जन्म से ले कर बुढ़ापे तक कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है खासकर कामकाजी मांओं के लिए ये चुनौतियां ज्यादा ही कठिन होती हैं. उन्हें घर में बच्चों और बड़ेबुजुर्गों की देखभाल के साथ पति और घर के दूसरे लोगों से भी रिश्तों में तालमेल बैठाना होता है और फिर बाहर जा कर औफिस भी संभालना होता है.

वर्कप्लेस पर चुनौतियां

21वीं सदी में महिलाएं हर कार्यक्षेत्र में अपना लोहा मनवा चुकी हैं. फिर चाहे वह फाइनैंस सेक्टर हो, एअरफोर्स हो या कोई अन्य क्षेत्र पुरुषों के साथ वे कंधे से कंधा मिला कर काम कर रही हैं और सफलताएं भी हासिल कर रही हैं. लेकिन इस का मतलब यह कतई नहीं है कि महिलाएं अपने कार्यक्षेत्र में पूरी तरह से बाधाओं से परे हैं और उन्हें पुरुषों के समान ही बराबर का अवसर भी हासिल हो रहा है.

कामों के बीच तालमेल बैठाना

एक बड़ी प्रसिद्ध कहावत है कि महिला चाहे तो घर बसा भी दे और चाहे तो घर उजाड़ भी दे. इस कहावत से भले ही फौरी तौर पर महिलाओं की ताकत का बखान नजर आता है पर हकीकत में यह महिलाओं की काबिलीयत और अहमियत को सिर्फ परिवार बसाने तक में सीमित करती है. यानी यहां भी हमें यही सम?ाया जा रहा है कि किसी भी महिला की सफलता तब सिद्ध होगी जब वह अपने परिवार को अच्छी तरह संभाले.

परवरिश पर सवाल:

एक महिला सब से पहले एक मां होती है और अपने बच्चों को वह हमेशा खुद से आगे रखती है. इस के लिए वह हर तरह की चुनौतियों का सामना भी करती है. मगर इस के बावजूद उस की परवरिश पर सवाल उठाए जाते हैं. अगर वह कहीं चूक जाए तो उसे हर तरह से गलत साबित कर दिया जाता है. हमेशा से परवरिश से जुड़े सारे सवाल महिलाओं से ही पूछे जाते हैं. समय भले ही बदला हो लेकिन अभी भी हम पितृसत्ता वाले समाज में रहते हैं जहां हमेशा महिलाओं को पुरुषों से कमतर आंका जाता है और उन के ऊपर दोहरी जिम्मेदारी लादी जाती है.

मगर सवाल यह है कि क्या परिवार सिर्फ महिला से ही बनता है? क्या बच्चे सिर्फ महिला की ही जिम्मेदारी होते हैं? क्या घर के कामों में पुरुषों की कोई भागीदारी नहीं होनी चाहिए?

इन सवालों पर हमारा समाज कहता है कि बच्चे ज्यादा वक्त मां के साथ गुजारते हैं. मां ही उन्हें अच्छाबुरा सिखाती है. मगर आज के समय में यह सिचुएशन भी बदल चुकी है. बच्चों का आधे से ज्यादा वक्त स्कूल और ट्यूशन में चला जाता है तो वहीं मांएं भी आजकल नौकरीशुदा हैं. ऐसे में उन का पूरा दिन वैसे ही औफिस में गुजर जाता है. ऐसे में यह कहना सही नहीं है कि बच्चे सब से ज्यादा वक्त मां के साथ गुजारते हैं.

हमें सम?ाना होगा कि घर बसाने और बच्चे पैदा करने में महिला और पुरुष दोनों की समान भागीदारी है. बच्चों की परवरिश का जिम्मा भी दोनों का होना चाहिए न कि केवल मां का. इसलिए अब से जब भी बात परवरिश की आए तो सिर्फ महिलाओं से नहीं बल्कि पुरुषों से भी सवाल होने चाहिए. समानता के लिए पुरुषों की भूमिकाओं को तय करना भी बेहद जरूरी है तभी महिलाओं के जीवन की चुनौतियों में कमी आएगी.

महिलाओं के साथ हिंसा

आज महिलाएं एक तरफ सफलता के नएनए आयाम गढ़ रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ कई महिलाएं जघन्य हिंसा और अपराध का शिकार भी हो रही हैं. उन को पीटा जाता है, उन का अपहरण किया जाता है, उन के साथ बलात्कार किया जाता है, उन्हें जला दिया जाता है या फिर उन की हत्या कर दी जाती है.

भारत आज भी महिलाओं के लिए दुनिया में सब से असुरक्षित स्थानों में से एक है. रोज महिलाओं के खिलाफ हिंसा के समाचार आते हैं. अकसर महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा भी होती है जिसे कई बार वे अपनी नियति मान लेती हैं. महिलाओं की सुरक्षा के लिए तमाम कानून खासकर घरेलू हिंसा कानून 2005 होने के बावजूद देश में हर 3 महिलाओं में से 1 महिला घरेलू हिंसा की शिकार हो रही है. 2022 में राष्ट्रीय महिला आयोग ने घरेलू हिंसा के 6,900 मामले दर्ज किए. अपने बड़ेबुजुर्गों को देख कर परिवार का लड़का अपनी बहन या पत्नी पर हाथ उठाना अपना अधिकार मान लेता है और उस के दिमाग में यह विचार मजबूत होता है कि महिलाएं उस से कमतर हैं.

हम कभी यह नहीं सोचते हैं कि आखिर वे कौन सी महिलाएं हैं जिन के साथ हिंसा होती है या उन के साथ हिंसा करने वाले लोग कौन हैं? हिंसा का मूल कारण क्या है और इसे खत्म कैसे किया जाए? हम में से अधिकांश लोग कभी भी इन प्रश्नों पर विचार नहीं करते हैं. इस के विपरीत हम जब भी किसी महिला के साथ हिंसा की खबर देखते या सुनते हैं तो उस हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने के बजाय अपने घर की महिलाओं, बहनों और बेटियों पर तरहतरह के प्रतिबंध लगा देते हैं.

नौकरी से जुड़ी चुनौतियां

योग्यता के बावजूद नौकरी से दूरी:  भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, लेकिन देश के कार्यबल में महिलाओं की संख्या उतनी नहीं है जितनी होनी चाहिए. महिलाएं काम तो करना चाहती हैं लेकिन उन के सामने एक नहीं कई चुनौतियां हैं. इस वजह से कई दफा उन की योग्यता का उपयोग नहीं हो पाता.

‘सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकौनौमी’ के नए आंकड़ों के अनुसार कई प्रोफैशन ऐसे हैं जिन में महिलाओं की हिस्सेदारी नाममात्र की है. यही कारण है कि योग्यता के बावजूद सिर्फ 9त्न महिलाओं के पास काम है या वे काम की तलाश जारी रखे हुए हैं.

प्रैगनैंसी, बच्चों का जन्म, बच्चों की देखभाल, वृद्धों की देखभाल, पारिवारिक समर्थन की कमी और औफिस का माहौल जैसी कई बातें हैं जो महिलाओं को बाहर का रास्ता दिखाती हैं और बड़े रोल निभाने से रोकती हैं.

प्रैगनैंसी:

प्रैगनैंसी एक महिला के जीवन का अति महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है. इस दौरान न चाहते हुए भी उस के कैरियर को धक्का पहुंचता है. वह इस समय हर तरह के काम नहीं कर सकती. उसे कई तरह की सावधानियां रखनी होती हैं और बहुत सी शारीरिक परेशानियां भी ?ोलती हैं. जब वह डिलिवरी लीव पर जाती है तो उस दौरान उस के पीछे औफिस में कई बार बहुत कुछ बदल चुका होता है.

उस की तरक्की का अवसर सिमट सकता है और हो सकता है कि उस के जूनियर को आगे बढ़ने का अवसर मिल गया हो. बच्चा जब कुछ महीनों का होता है उस समय बच्चे को संभालने के साथ औफिस संभालना एक टफ जौब होता है. बच्चे की चिंता उसे काम में मन लगने नहीं देती.

प्रैगनैंसी के बाद शारीरिक परेशानियां

एक स्टडी के अनुसार 2त्न महिलाएं बच्चे के जन्म के 2 साल बाद तक भी गंभीर पीठ दर्द से गुजरती हैं. वहीं 38त्न महिलाएं प्रैगनैंसी के 10 से 12 साल बाद भी यूरिन लीकेज ?ोलती हैं. यही नहीं मां बनने के बाद अकसर महिलाएं बौडी शेमिंग भी ?ोलती हैं. बच्चा होने के बाद वजन कंट्रोल करना आसान नहीं होता. इस वजह से वे मोटी हो जाती हैं. ऐसे में उन महिलाओं को ज्यादा प्रौब्लम आती है जिन्हें औफिस में प्रेजैंटेबल दिखना जरूरी है या फिर मौडलिंग, ऐक्टिंग जैसे काम जहां खूबसूरती और फिगर बनाए रखना उन की पहली चुनौती होती है.

समान वेतन

अकसर महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम सैलरी दी जाती है. एक महिला को काम की प्रकृति पर भी ध्यान देना होता है. अगर बच्चे छोटे हैं तो उसे वैसा काम ही ढूंढ़ना होता है जिसे वह आसानी से निभा सके और शाम होने के बाद घर पहुंच सके. इस वजह से भी कई दफा उसे वेतन से सम?ाता करना होता है.

यौन उत्पीड़न

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अभी भी एक समस्या है. अगर किसी महिला के साथ कुछ ऐसा होता है तो वह इस की जानकारी मैनेजमैंट को देती है. मैनेजमैंट इस की जांच भी करता है. लेकिन कई जगहों पर मैनेजमैंट या ऊंचे पोजिशन के लोग इन बातों को दबा देते हैं और महिला को नौकरी तक से हाथ धोना पड़ जाता है.

श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी कम

विश्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं ने 2021 में भारत के कार्यबल का 23 फीसदी से कम प्रतिनिधित्व किया जो 2005 में लगभग 27 फीसदी थी. वहीं इस की तुलना में बंगलादेश में 32 फीसदी और श्रीलंका में 34.5 फीसदी है.

बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य और महिलाओं के हित में बने कानूनों के बावजूद एकतिहाई से भी कम भारतीय महिलाएं काम कर रही हैं या सक्रिय रूप से काम की तलाश कर रही हैं. इस कमी के कई कारण हो सकते हैं जैसे शादी, बच्चे की देखभाल और सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं व आनेजाने की दिक्कत आदि.

उदाहरण के लिए 32 साल की दीपा साहनी के पास 2 मास्टर डिगरियां हैं. वह प्राइवेट जौब करती थीं. बाद में उन्होंने वही किया जो लाखों भारतीय महिलाएं हर साल करती हैं. उन की शादी हुई और बच्चे हुए तो उन्होंने अपना कैरियर छोड़ दिया. सब से बड़ा कारण औफिस की संस्कृति थी जहां दूसरे कर्मचारी 8 बजे तक और उस से भी ज्यादा देर तक औफिस में खुशी से रहने के लिए तैयार थे जबकि वह ऐसा नहीं कर सकती थीं.

वे कहती हैं, ‘‘मेरे लिए 6 से 8 बजे तक का समय बेहद कीमती है. यही वह समय होता है जब मैं अपने परिवार के साथ बैठ कर कुछ बात करती हूं. इस वजह से मैं समय पर घर आ जाती थी और कभी मैनेजमैंट की फैवरिट नहीं बन सकी.’’

मैकिंजी कंसल्टिंग फर्म की 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक मैनेजमैंट स्तर पर ऐसे कई परिवर्तन किए जा सकते हैं जो इन समस्याओं को सुधार सकते हैं जैसे लैंगिक आधार पर प्रशिक्षण, सामाजिक सुरक्षा, बच्चे की देखभाल के लिए लचीले काम के घंटे और कार्यस्थल तक पहुंचने के लिए सुरक्षित और सुलभ परिवहन की सुविधा जरूरी है. ये सुविधाएं कामकाजी महिलाओं की संख्या को बढ़ा सकती हैं और देश की जीडीपी में 2025 तक अरबों डालर जोड़ सकती हैं.

कामकाजी महिलाओं पर कोविड का असर

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के ‘सैंटर फौर सस्टेनेबल ऐंप्लौयमैंट’ की एक रिपोर्ट में पाया गया कि कोविड-19 के बाद पुरुषों की तुलना में महिलाओं की नौकरी खोने की संभावना अधिक थी और कार्यबल में लौटने की संभावना कम थी.

बच्चे को समय न दे पाने की गिल्ट

आजकल की महंगाई वाली जिंदगी में रोज एक नई चुनौती का सामना करने के लिए पुरुष के साथ स्त्री को भी घरगृहस्थी चलाने के लिए काम करना पड़ता है. मगर कामकाज के चक्कर में महिला अपने बच्चों को पूरा समय नहीं दे पाती, जिस के कारण बच्चे अकेलापन और खालीपन सा महसूस करते हैं.

एक बच्चे को बस अपने मातापिता के साथ समय बिताना और उन का प्यार पाना होता है. जरूरत के समय मातापिता का साथ न पाने के कारण बच्चों में कई प्रकार की कुंठा पनपने लगती है. वे चिड़चिड़े, गुसैल और उदंड भी होने लगते हैं. इस बात को ले कर मां के दिल में गिल्ट की भावना रहती है. वह न पूरे मन से औफिस का काम कर पाती है और न ही घर में सारा समय दे पाती है.

न्यू मदर्स की चुनौतियां

मां बनना किसी भी महिला के लिए जिंदगी की सब से बड़ी सौगात हो सकती है. साथ ही मां बनते ही हर महिला के ऊपर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी आ जाती है. न्यू मदर्स के सामने कई चुनौतियां भी आती हैं. अनुभव की कमी और मन में अनजाना डर, उल?ान और सही सपोर्ट न मिलने के कारण ये चुनौतियां और भी गंभीर महसूस हो सकती हैं.

थकान और नींद की कमी

मां को नींद की कुरबानी देनी पड़ सकती है. बच्चे के सोनेजागने के रूटीन के अनुसार मांओं को भी जागना और सोना पड़ता है. इस से उन की नींद पूरी नहीं हो पाती. वहीं कई महिलाएं जिन्हें दिन में सोने की आदत नहीं होती या घर के कामों में हाथ बंटाना होता है फिर औफिस जाना होता है उन के लिए नींद की कमी एक बड़ी समस्या बन कर उभरती है.

अच्छी मां न बन पाने का पश्चात्ताप

नई मांओं को लगातार अपने आसपास के लोगों से सलाह, टिप्स और शिकायतें सुनने को मिलती रहती हैं जिस से उन पर लगातार खुद को अच्छी मां साबित करने का दबाव बढ़ता ही जाता है. इस से उन के मन में गिल्ट और जिंदगी में तनाव बढ़ता जाता है जो मां और बच्ची दोनों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता.

मां बनना आसान नहीं होता. एक मां को अपनी खूबसूरत फिगर, आकर्षण और सेहत को दांव पर लगा कर बच्चे को जन्म देना होता है. अपने बढ़ते वजन, त्वचा पर दिखने वाले स्ट्रैच मार्क्स और हेयर फौल जैसी समस्याओं से न्यू मदर्स को अकसर तनाव, दुख, उदासी और निराशा महसूस हो सकती है. उन्हें अपने शरीर को देख कर दुख हो सकता है और कई बार महिलाएं अपने शरीर से भी नफरत करने लगती हैं.

कैरियर और सोशल लाइफ

बच्चे की देखभाल और अस्तव्यस्त दिनचर्या के बीच महिलाएं ज्यादातर समय घर में ही बिताती हैं और अपने दोस्तों, परिवार वालों या कलिग्स के साथ उन का मेलजोल या बातचीत भी बंद हो जाती है. इस से उन की सोशल लाइफ पूरी तरह खत्म होने का डर भी उन के अंदर पनप सकता है और उन्हें धीरेधीरे अकेले रह जाने का डर सताता है.

मानसिक समस्याएं

पोस्टपार्टम डिप्रैशन एक ऐसी स्थिति है जिस का सामना बहुत सी महिलाओं को चाइल्डबर्थ के बाद करना पड़ सकता है. बौलीवुड अभिनेत्री समीरा रेड्डी पोस्टपार्टम डिप्रैशन से गुजरने की बात स्वीकार कर चुकी हैं. वहीं अन्य कई मशहूर सेलेब्स ने भी इस बारे में कई बार खुल कर बात की है.

बच्चा होने के बाद अकसर पति पत्नी में दूरियां बढ़ जाती हैं. किसी भी कपल के लिए मांबाप बनना किसी सपने के सच होने जैसा होता है. नन्हे के आने के बाद कपल्स की दुनिया बदल जाती है और साथ ही बदल जाता है हस्बैंड और वाइफ के बीच का रिश्ता भी. महिला का सारा ध्यान और समय नन्हे को संभालने में चला जाता है. थकान या पोस्ट प्रैगनैंसी हैल्थ प्रौब्लम्स भी रहती हैं. इस वजह से वह पति के साथ वक्त बिताने के बारे में सोच ही नहीं पाती. इस से पतिपत्नी के बीच रोमांस कम हो जाता है. ऐसे में पति के साथ दूरियां बढ़ने से रोकना और बच्चे को अकेले संभालना बहुत बड़ी चुनौती होती है.

मगर पुरुष चाहे तो महिला को अपना सहयोग दे कर अटैचमैंट बढ़ा सकता सकता है.

करीना कपूर खान ने अपनी दूसरी प्रैगनैंसी के बाद एक किताब लौंच की जिस में उन्होंने प्रैगनैंसी और मदरहुड से जुड़ी कई महत्त्वपूर्ण बातें लिखीं. ‘करीना कपूर खान की प्रैगनैंसी बाइबल’ नाम की इस बुक में सैफ ने कहा कि करीना और उन के बड़े बेटे तैमूर अली खान के जन्म के बाद करीना और उन का रिश्ता भी अचानक से पूरी तरह बदल गया. अब वे पहले से ज्यादा अटैच्ड महसूस करते हैं.

बच्चे की देखभाल जैसे महत्त्वपूर्ण काम में अगर पति अपनी पत्नी को सपोर्ट करे तो महिला अपने लिए और पति के लिए समय निकाल सकती है. यही नहीं इस तरीके से दोनों एकसाथ अधिक समय बिताएंगे और बौंडिंग भी स्ट्रौंग बनेगी.

महिलाएं कैसे करें चुनौतियों का सामना

महिलाएं टैक सेवी बनें:

कल की दबीसहमी सी हाउसवाइफ आज की कौन्फिडैंट होममेकर या औफिस की बौस बन चुकी है. आधुनिक भारतीय स्त्री के इस बदलाव की एक वजह यह है कि अपनी चुनौतियों के लिए उस ने खुद को बहुत अच्छी तरह तैयार किया है. घरेलू उपकरणों की सुविधाओं ने स्त्रियों के कामकाज के तरीके को व्यवस्थित और आसान बना दिया है. पहले घर की सफाई और कुकिंग के लिए उन्हें बहुत ज्यादा वक्त देना पड़ता था, लेकिन अब उन का यह काम कुछ ही घंटों में निबट जाता है.

कंप्यूटर और इंटरनैट ने जीवन को और भी आसान बना दिया है. चाहे बिजली का बिल चुकाना हो या ट्रेन का टिकट बुक कराना हो ये सारे काम घर बैठे मिनटों में कर सकती हैं. जरूरी है कि महिलाएं टैक सेवी बनें और अपनी जिम्मेदारियां कुशलता से और कम समय में निभाना सीखें. इस से उन की सफलता के रास्ते खुलेंगे.

चुनौतियों से घबराएं नहीं

इस दुनिया में सफल होने के लिए अकसर इंसान को एक कठिन रास्ते से गुजरना होता है भले ही वह स्त्री हो या पुरुष. यह बात अलग है कि स्त्रियों के जीवन में चुनौतियां अधिक मिलती हैं. किसी भी महिला को चाहिए कि वह अपनी रुचि को सम?ो और फिर तय करे कि वह आगे क्या करना चाहती है. अपने परिवार को सम?ाए कि आप क्या और क्यों करना चाहती हैं और फिर उस के अनुसार अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में काम करे.

एक बार जब स्त्री अपनी सफलता की यात्रा शुरू कर देती है तो पीछे मुड़ कर नहीं देखती भले ही रास्ते में कितनी भी चुनौतियां क्यों न आएं. ये चुनौतियां कहीं न कहीं आप के जीवन को बेहतर बनाती हैं. आप चुनौतियां पार कैसे करती हैं यह आप पर डिपैंड करता है. यह आप का नजरिया है कि आप उन्हें मुसीबत मान लें या मजेदार ढंग से उन्हें पार कर आगे बढ़ जाएं.

स्त्री आपस में सहयोगी बनें

सैलिब्रिटी मेकअप आर्टिस्ट और रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट आश्मीन मुंजाल कहती हैं कि महिलाएं शक्ति हैं और जिस के पास शक्ति है उस के पास चुनौतियां भी ज्यादा आएंगी, जबकि महिलाओं को यही नहीं पता होता कि वे शक्ति हैं. इस वजह से वे पिट जाती हैं. मगर जब वे अपनी शक्ति पहचान लेंगी तब उन चुनौतियों से बहुत आसानी से निबट सकती हैं. यही नहीं बल्कि जिस दिन औरतें एक हो जाएंगी और एकदूसरे को सपोर्ट करेंगी उस दिन उन्हें चुनौतियों का सामना करने और आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता.

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