प्यार का पौधा: तीसरे देश की धरती पर

भारत के बिहार के रहने वाले अजय और पाकिस्तान के लाहौर के रहने वाले जहीर ने अपनी 30 साल से चली आ रही दोस्ती को रिश्ते में बदलने के उपलक्ष्य में अमेरिका के न्यू जर्सी के एक बड़े होटल में दावत का आयोजन किया था.

एक ओर भव्य मुगल लिबास में सजे अजय उन की पत्नी जया व फूलों का सेहरा पहन दूल्हा बने उन के बेटे अमित पाकिस्तान की तहजीब से रुबरू हो रहे थे तो दूसरी तरफ सिल्क का कुरता, अबरक लगी पीली धोती पहने जहीर, सीधे पल्ला किए पीली बनारसी साड़ी में उन की बेगम जीनत गजब ढा रही थीं. आंखों को चौंधियाते सोने के तारों व मोतियों वाला सुर्ख लाल लहंगा, चुन्नी व नयनाभिराम आभूषणों में दिपदिपाती हुई उन की लाड़ली आसमा चांदसितारों को शरमा रही थी.

मोगरा के फूलों में लिपटे हुए उस के बाल, जड़ाऊं मांगटीका से चमकता माथा व उस की मांग में पीला सिंदूर दिपदिपा रहा था. कान के ऊपर लटकता मोतियों की लडि़योंवाले झिलमिलाते झूमर से चांदनी बिखर रही थी. दोनों परिवार एकदूसरे की इच्छाओं का मानसम्मान रखते हुए अपनेअपने देश की गंगायमुनी संस्कृति का मिलन कर के अपनी दोस्ती की मिसाल पेश कर रहे थे.

उन की प्यारभरी दोस्ती की शुरुआत बड़े अजीबोगरीब ढंग से हुई थी. अजय को भारत से आए अभी हफ्ता भी नहीं हुआ था कि रोड दुर्घटना में वे अपना हाथपैर तुड़वा बैठे थे और 2 वर्षों पहले ही लाहौर, पाकिस्तान से आए हुए जहीर, जो अजय के अपार्टमैंट में ही रहते थे, ने पलक झपकते ही उन की सारी जिम्मेदारियों को उठा कर आपसी भाईचारे का अनोखा संदेश दिया था.

भयानक घटना कुछ ऐसे घटी थी. अजय ने गाड़ी चलाना नईनई ही सीखी थी. उसी महीने तो 2 बार कोशिश करने के बाद उन्होंने जैसेतैसे ड्राइविंग टैस्ट पास किया था. ज्यादातर लोग पैरेलल पार्किंग कर नहीं पाते और टैस्ट में असफल हो जाते हैं.

अमेरिका में ड्राइविंग लाइसैंस देने की प्रक्रिया जटिल होने के साथ ईमानदारी पर आधारित रहती है. जब तक भरपूर कुशलता नहीं आती, लाइसैंस मिलने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता है. लाइसैंस मिलने के बाद उन्होंने लोन पर सैकंडहैंड गाड़ी खरीदी. हफ्ताभर भी तो नहीं हुआ था उन्हें गाड़ी चलाते हुए कि औफिस जाते समय ऐक्सिडैंट कर बैठे. वो तो आननफानन घटनास्थल पर पुलिस पहुंच गई थी और लहूलुहान व बेहोश अजय को न्यू जर्सी के रौबर्ट वुड हौस्पिटल में पहुंचाते हुए उन के औफिस और घर पर सूचित करने के लिए स्वयं पहुंच गई. पुलिस ने ही उन की पत्नी को हौस्पिटल भी पहुंचाया.

अमेरिकी पुलिस की यह बहुत बड़ी विशेषता है कि वहां पर रहते हर व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के मदद करने के लिए वह तत्पर रहती है. वहां जिस का कोई अपना नहीं होता, पुलिस उस की देखरेख किसी अपने से बढ़ कर करती है.

हौस्पिटल में अजय की पत्नी जया अकेली, असहाय सी खड़ी आंसू बहा रही थी. नया देश, नए लोग किस से अपना दुख बांटे. वह असमंजस में थी. इंडिया में मायके व ससुराल दोनों की आर्थिक अवस्था इतनी भी मजबूत नहीं कि वहां से कोई यहां आ कर उस की असहायता के इस गहन अंधेरे को साझा कर ले. चारों ओर दुख का उफनता सागर था, जिस का कहीं दूर तक किनारा जया को नजर नहीं आ रहा था.

बहते हुए आंसुओं पर काबू पाते हुए वह अपना आत्मबल संजोने की चेष्टा कर तो रही थी पर सफल नहीं हो पा रही थी. दुर्घटना की खबर पाते ही वे सब परेशान हो जाएंगे. किसी न किसी तरह इस आपत्ति को वह खुद ही झेलने का साहस प्राप्त करेगी. दृढ़ निश्चय की आभा से वह भर उठी. इंश्योरैंस वाले हौस्टिपल का खर्च उठा ही रहे हैं. आगे कोई न कोई राह निकल ही आएगी, ऐसा सोच कर जया के मन को शक्ति मिली.

औपरेशन थिएटर से अजय को केबिन में शिफ्ट कर दिया गया था. लेकिन अभी भी उन पर एनेस्थीसिया का असर था. थकान और परेशानी के कारण जया को झपकी आ गई थी. दरवाजा खुलने की आहट से अचानक उस की पलकें खुल गईं और उस के बाद उस ने जो कुछ भी देखा, अविश्वसनीय था.

जहीर दंपती घबराए हुए अंदर आए और जया से मुखातिब हुए कि उस ने उन्हें इस दुर्घटना की जानकारी क्यों नहीं दी. जवाब में जया सिर झुकाए रही. वे जया की जरूरत के सारे सामान लेते आए थे. उस दिन से दोनों पतिपत्नी अजय के घर लौटने तक जया की हर जरूरत की पूर्ति, चेहरे पर रत्तीभर शिकन लाए बिना करते रहे. इस तरह अजय के उस नाजुक वक्त में जहीर ने शारीरिक व आर्थिक रूप से, अपने किसी भी देशवासी से बढ़ कर, उन्हें सहारा दिया था.

आने वाले दिनों में दोनों की दोस्ती गाढ़ी होती गई. अमित के जन्म के समय एक बार फिर वे सारे रिश्तों के पर्याय बन गए थे. गर्भावस्था के नाजुक पलों को जीनत बेगम ने किसी अपने से बढ़ कर महीनों सांझा किया. घर से ले कर हौस्पिटल तक का भार अपने कंधे पर उठा कर अजय को बेहिसाब तसल्ली दी. अमित का बचपन दोनों परिवारों के लिए खिलौना बना रहा.

2 वर्षों बाद ही आसमा पैदा हुई. अजय और जया ने भी उन नाजुक पलों की जिम्मेदारियों को सहर्ष निभाया. अपनी ओर से कोई कमी नहीं छोड़ी. अमित और आसमा दोनों साथ खेलते हुए बड़े हुए. एक ही स्कूल में उन दोनों ने पढ़ाई की. उन दोनों की नोकझोंक पर दोनों परिवार न्योछावर होते रहे. कहीं कोई दुराव नहीं था. घर अलग थे पर अपनी बेशुमार मोहब्बत से दीवार को उन्होंने पारदर्शी बना लिया था. दोनों परिवारों की दोस्ती सभी के लिए मिसाल बन गई थी.

कहते हैं जब प्यार का सवेरा शाम के सुरमई अंधेरे को गले लगा लेता है तो समय का पंख भी गतिशील हो जाता है. ग्रीनकार्ड मिलते ही दोनों परिवार सभी तरह से सुव्यवस्थित हो गए थे. कुछ वर्षों बाद ही उन्हें वोट देने का अधिकार मिल गया और वे अब वहां के नागरिक थे.

खुशियों की चांदनी में वे भीग रहे थे कि दुनिया का सब से बड़ा प्रभुत्वशाली देश अमेरिका का कुछ हिस्सा आतंकवाद के काले धुएं में समा गया. 2001 के

11 सितंबर, मंगलवार को न्यूयौर्क के वर्ल्ड ट्रेड सैंटर और पैंटागन पर हुए आतंकी हमले ने पूरे विश्व को सहमा कर रख दिया. कितने लोगों की जानें गईं. धनसंपत्ति का बड़ा भारी नुकसान हुआ. वर्ल्ड टे्रड सैंटर की इमारत का ध्वस्त होना पूरी दुनिया की आर्थिक स्थिति को चरमरा गया. इस हमले के पीछे मुसलिम हैं, इस की जानकारी पाते ही अमेरिका में रह रहे मुसलिमों पर आफत आ गई. अमेरिकियों के निशाने पर सारे दाढ़ी रखने वाले आ गए थे.

दाढ़ी वालों पर होते जुल्मोंसितम से जहीर व उन के परिवार को अजय ने अपनी जान पर खेल कर बचाया.

समय के साथ दुख के बादल छंट तो गए पर जहीर की नौकरी जाती रही. दोनों हिस्सों की ठंड को बांटते हुए अजय ने अपने हिस्से की धूप भी उन पर बिखरा दी, जिस की ताप को जहीर ने कभी कम नहीं होने दिया. सबकुछ सामान्य होते ही जहीर की बहाली भी हो गई और एक बार फिर से खुशियां उन के दरवाजे पर दस्तक देने लगीं.

स्कूल की पढ़ाई पूरी कर के अमित और आसमा दोनों आगे की पढ़ाई करने के लिए घर से दूर चले गए. अमित ने कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की तो आसमा ने मैडिकल पढ़ाई की लंबी दूरियां तय कर लीं. जीवन में सुख ही सुख की लाली थी जो पलक झपकते ही दुखों की कालिमा को निगल लिया करती थी. परम संतुष्टि के भाव में विभोर थे दोनों परिवार. अमित और आसमा ने एक लंबा समय साथ बिताया था.

बचपन की चुहलबाजियों ने धीरेधीरे प्यार के नशीले रूप को धारण कर लिया था. इस का अंदाजा उन्हें उस समय हुआ जब वे आगे की पढ़ाई करने के लिए घर से दूर जा रहे थे. धर्म और जाति की दीवारों में उन का प्यार कभी दफन नहीं होगा, इस का उन्हें भरपूर अंदाजा था और वे सभी तरह से आश्वस्त हो कर अपनी मंजिल हासिल करने की होड़ में शामिल हो गए.

उन के प्यार से अनजान उन के मातापिता कुछ ऐसे ही खूबसूरत बंधन के लिए आतुर थे. उन्हें इस का जरा सा भी अंदाजा नहीं था. दोनों के पेरैंट्स को जब उन के प्यार के बारे में पता चला तो उन्हें ऐसा महसूस हुआ मानो अटलांटिक महासागर में ही अनहोनी को होनी करते हुए प्यार के हजारों कमल खिल गए हों.

इस तरह हर ओर से जीवन की हर धूपछांव को बांटते हुए उन्होंने अपनी औलादों को आज सब से खूबसूरत रेशमी रिश्तों में बांध दिया था. वर्षों से चली आ रही अपनी दोस्ती पर खूबसूरत रिश्ते की मुहर लगा दी थी. बधाइयां देने वालों का तांता लगा था. यह दिलकश नजारा था गोली, बारूद की ढेर पर बैठे, निर्दोषोें की लाशों से अपनी सीमाओं को पाट कर रख देने वाले 2 देश हिंदुस्तान व पाकिस्तान की सरहदों के नुकीले तारों से क्षतविक्षत हुए दिल के तारों के किसी तीसरे देश की धरती पर मिलन का.

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