नोएडा में 81 साल का पेंटर मौरिस राइडर एक लड़की के साथ अपनी उंगली से सैक्स करता था. लड़की ने अपने पेरैंट्स को यह बात बताई और तब मामला पुलिस तक पहुंचा. पुलिस ने इस मुकदमे को डिजिटल रेप की धारा के तहत लिखा. इस के बाद यह डिजिटल रेप शब्द प्रचलन में आया. इस के पहले दिल्ली और मुंबई में 2 मामले पहले भी सामने आ चुके थे पर वे इतना चर्चा में नहीं आए थे.
लड़कियों के यौन अंगों से खेलने की कुत्सित मानसिकता रखने वाले यह सोचते थे कि रेप तभी माना जाएगा जब पुरुष का लिंग लड़की या महिला की वैजाइना में प्रवेश करे. कुत्सित मानसिकता वाले लोग छोटी लड़कियों की वैजाइना में उंगली डाल कर सैक्स का एहसास करते थे. कम उम्र की लड़की को यह सम झ ही नहीं आता था. ऐेसे में उन का अपराध छिप जाता था.
कई मामले ऐसे देखे गए जिन में अपराधी महिला की वैजाइना में कोई रौड या दूसरी चीज डाल कर उसे अपनी कुत्सित मानसिकता का शिकार बना लेता था. कई बार इस में औरत की जान तक चली जाती थी. दिल्ली में निर्भया के अंग में भी लोहे की रौड का प्रयोग किया गया था, जिस से उस की आतें फट गई थीं.
पहले इस तरह के अपराध को रेप नहीं माना जाता था. ऐसे में अपराधी सजा से छूट जाता था. अब कानून में बदलाव के बाद ऐसे अपराध को भी डिजिटल रेप माना जाएगा. रेप की परिभाषा में बदलाव से बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराधों में अब सजा हो सकेगी.
क्या होता है डिजिटल रेप
बात जब डिजिटल रेप की होती है तो आमतौर पर लोग यह सम झते हैं कि सोशल मीडिया पर नैकेड फोटो, वीडियो या अश्लील मैसेज कर के जब लड़की को परेशान किया जाता है तो उसे ‘डिजिटल रेप’ कहते हैं. इस की वजह यह है कि डिजिटल शब्द सामने आते ही सोशल मीडिया पर होने वाले यौन अपराध की तसवीर आंखों के सामने आ जाती है. डिजिटल रेप का मतलब रिप्रोडक्टिव और्गन के अलावा किसी अंग या औब्जैक्ट जैसे उंगली, अंगूठा या किसी वस्तु का यूज कर के जबरन सैक्स करना. इंग्लिश में डिजिट का मतलब अंक होता है. साथ ही उंगली, अंगूठा, पैर की उंगली जैसे शरीर के अंगों को भी डिजिट से संबोधित किया जाता है.
रेप और डिजिटल रेप में रिप्रोडक्टिव और्गन के इस्तेमाल का फर्क है. यह बात और है कि कानून की नजर में रेप और डिजिटल रेप में कोई फर्क नहीं. 2012 से पहले डिजिटल रेप छेड़छाड़ के दायरे में आता था. दिल्ली के निर्भया कांड के बाद महिलाओं के खिलाफ अपराधों से निबटने वाले कानून को नई तरह से देखा गया. इस के बाद रेप की कैटेगरी में एक धारा और जोड़ी गई जिस को डिजिटल रेप कहा जाता है.
दिसंबर, 2012 में दिल्ली में निर्भया केस के बाद यौन हिंसा से जुड़े कानूनों की समीक्षा की गई थी. भारत के पूर्व चीफ जस्टिस वर्मा की अध्यक्षता वाली कमेटी ने सु झाव दिए. इन में से कई सुझावों को अपनाते हुए दशकों पुराने कानून को बदला गया. 2013 में रेप की परिभाषा को फोर्स्ट पीनो वैजाइनल पेनिट्रेशन से बढ़ाया गया. नई परिभाषा के मुताबिक, महिला के शरीर में किसी भी चीज या शारीरिक अंग को जबरदस्ती डालना रेप माना गया.
डिजिटल रेप के मामले
डिजिटल रेप का पहला मामला मुंबई में आया, जहां 2 साल की मासूम के साथ इस तरह का अपराध किया गया. मुंबई में खून से लथपथ 2 साल की मासूम को अस्पताल लाया गया. जांच के बाद डाक्टरों ने पाया कि उस की बैजाइना में उंगलियों के निशान मिले. हालांकि इस दौरान यौन उत्पीड़न या रेप का कोई संकेत नहीं मिला था. बाद में पता चला कि उस का पिता ही बच्ची के साथ ऐसी हरकत करता था. इस के बाद उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन उसे आईपीसी की धारा 376 के तहत दंडित या आरोपित नहीं किया गया जो रेप से संबंधित है.
धारा 376 में बदलाव
मुंबई और दिल्ली में हुई 2 डिजिटल रेप की घटनाओं में आईपीसी की धारा 376 में खामियों को देखा और सम झा गया. डिजिटल रेप के तहत हुए अपराध में जिस में मूलरूप से उंगलियों या किसी बाहरी वस्तु या मानव शरीर के किसी अन्य हिस्से का यूज कर महिला की गरिमा के साथ खिलवाड़ किया गया था, लेकिन इसे किसी भी सैक्शन के तहत अपराध नहीं माना गया. इसी के बाद रेप की परिभाषा में बदलाव कर डिजिटल रेप को भी इस में शामिल किया, जिस के बाद इसे गंभीर अपराध माना लाने लगा.
इस का प्रभाव नोएडा में हुए डिजिटल रेप में देखने को मिला. नोएडा पुलिस ने 81 साल के स्कैच आर्टिस्ट को 17 साल की नाबालिग युवती के साथ डिजिटल रेप के आरोप में गिरफ्तार किया. पुलिस ने बताया कि पीडि़त युवती शुरू में शिकायत दर्ज कराने से डरती थी, लेकिन फिर उस ने आरोपी के यौन संबंधों को रिकौर्ड करना शुरू कर दिया और बड़े पैमाने पर सुबूत एकत्र किए. इस के बाद उस ने इस की जानकारी अपने पेरैंट्स को दी. पेरैंट्स की शिकायत पर पुलिस ने डिजिटल रेप का मामला दर्ज किया.