धारावाहिक ‘भाभीजी घर पर है’ में घूसखोर हप्पू सिंह के नाम से प्रसिद्ध होने वाले हास्य अभिनेता का असली नाम योगेश त्रिपाठी है. उन्होंने सीरियल में बुन्देलखंडी बोली को अपनाकर सबका दिल मोह लिया है और हर घर में अपनी पहचान बना चुके है, लेकिन यहां तक पहुंचने में उन्हें बहुत संघर्ष करने पड़े, हप्पू सिंह बनने से पहले उन्हें कोई जानता नहीं था, क्योंकि उन्हें अलग-अलग किरदार मिलते थे. योगेश सबको हसाना और हँसना बहुत पसंद करते है. विनम्र और हंसमुख स्वभाव के योगेश से उनके सेट ‘हप्पू की उलटन पलटन’ पर बात हुई. पेश है कुछ अंश.
सवाल- इस धारावाहिक में आपको खास क्या लगता है?
मुझे भाभीजी घर पर है के चरित्र को सभी ने पसंद किया. उसके सभी चरित्र सबको पसंद है और उसमें मेरे 9-9 बच्चे और प्रेग्नेंट बीबी, ये संवाद दर्शकों को पसंद आते थे. रियल लाइफ में भी जब कोई मुझसे मिलता था तो मेरी प्रेग्नेट बीबी और 9 बच्चों को देखने की इच्छा प्रकट करते थे. तब मैंने सोचा था कि ऐसे चरित्र को कुछ अलग कर अच्छा बनाया जा सकता है. उससे मुझे हप्पू की उलटन पलटन मिली. जिसमें निर्देशक ने कहा कि मेरी उसी इमेज को वे टीवी पर अलग अंदाज में लायेंगे, जो मुझे अच्छा लगा और ये शो मेरे घर की जिंदगी पर है, जो बहुत ही मजेदार है. लोगों का प्यार ही मेरी इस चरित्र का राज है.
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सवाल- आपकी पहचान भाभी जी घर पर है से हुई है, इससे पहले आप क्या करते थे?
मैंने निर्देशक शशांक बाली के साथ पिछले कई सालों से ‘ऍफ़ आई आर’ कर रहा था. वहां मुझे काम की तारीफ तो होती थी पर कोई फिक्स चरित्र नहीं था. स्टोरी में 2 से 3 दिन बाद कुछ बदलाव हो जाता था और मेरा चरित्र भी अलग हो जाता था. मैंने 600 एपिसोड में 150 से 200 तक चरित्र निभाए थे, पर कोई मुझे जानता नहीं था, ऐसे में जब भाभीजी घर पर है धारावाहिक की दारोगा के लुक की बात आई, तो आँख बंद कर उन्होंने मुझे चुन लिया और कहा कि मैं इस भूमिका में ठीक हूँ और पेट भी एक्स्ट्रा लगा लेने से सब अच्छा हो जायेगा. असल में उन्होंने मुझे काम करते हुए देख लिया था और वे जानते थे कि मैं इस भूमिका को कर लूँगा, क्योंकि कभी भी मैंने योगेश की लुक में काम नहीं किया था, पर दर्शक मेरे काम को पसंद करते थे.
सवाल-अभिनय में आने की प्रेरणा कहां से मिली थी?
मुझे बचपन से ही अभिनय का शौक था. मेरा पूरा परिवार टीचिंग से ताल्लुक रखता है. मैं झांसी से हूं. मेरे यहां सभी सरकारी अध्यापक है और ये फ़िल्मी माहौल मेरे घर पर बिल्कुल भी नहीं है. मैंने भी ग्रेजुएशन मैथ से किया, क्योंकि मेरे घर पर मैथ और साइंस की ही बातचीत होती थी. अभी भी वे टीवी कम देखते है. ग्रेजुएशन के बाद मैं लखनऊ गया और वहां पर थिएटर ज्वाइन कर लिया. 4-5 साल थिएटर करने के बाद में मुंबई आया. मेरे घर पर फ़िल्मी माहौल बिल्कुल न होने की वजह से उन्हें इसके बारें में कुछ पता भी नहीं था. उन्हें लगा था कि मैं कुछ अच्छा अवश्य कर लूंगा.
सवाल-आपकी कामयाबी में परिवार का सहयोग कितना रहा?
पहले तो नहीं था, पर जब से हप्पू सिंह बना हूं, सब ठीक हो गया है.
सवाल- इस दौरान आपकी संघर्ष कितनी थी?
बहुत मेहनत थी, क्योंकि लखनऊ में भी थिएटर में काम मिलना आसान नहीं था. 6-6 महीने रिहर्सल में लोगों को चाय पिलाना, फ्लोर की झाड़ू लगाने के बाद कही पर मुझे एक दो लाइन बोलने का मौका मिलता था. वहां पर एन एस डी वर्कशॉप हुई. उसमें मैं चुन लिया गया और वही से मुझे अभिनय की शिक्षा मिली. पूरे भारत में मैंने हजारों शोज नुक्कड़ नाटक के किये और इसके बाद मुंबई आया.
सवाल-आप का लुक ही हसने योग्य होता है इसे कैसे क्रिएट किया?
लखनऊ की सफर के दौरान जो अनुभव थे उसे ही मैंने यहां लाने की कोशिश की, क्योंकि ये मेरे अंदर छुपा था. मैं बहुत ही शर्मीला इंसान हूं. कौलेज के समय में मैं तो किसी से कुछ बोल ही नहीं पाता था. नाटकों में भाग भी कभी नहीं लिया था, क्योंकि मेरे पिता उसी स्कूल में टीचर थे और मुझे बहुत शर्म आती थी. खुलकर काम करने की बात अगर हम करें, तो स्टेज से अधिक नुक्कड़ नाटक में खुलकर बोलने की आदत बनती है. इसके अलावा ऍफ़ आई आर भी एक अच्छा धारावाहिक था ,जिसमें मुझे अलग-अलग भूमिका निभाने का मौका मिला.
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सवाल-कौमेडी में द्विअर्थी शब्दों का अधिक प्रयोग होता है, ऐसा न हो, इस बारें में आप कितना ध्यान रखते है?
मुझे ध्यान में रखने की अधिक जरुरत नहीं पड़ती, क्योंकि लेखक मनोज संतोषी बहुत अच्छे संवाद लिखते है. मुझे पहले दिन के संवाद आज भी याद है. जो बोलचाल की भाषा में होता है इसे करने में भी आसानी पूरी टीम को होती है.
सवाल- कौमेडी में किस बात पर खास ध्यान देना पड़ता है?
टाइमिंग और औब्जरवेशन का सही तालमेल होना जरुरी होता है. इसके अलावा चरित्र पर वह संवाद सूट करना भी आवश्यक है.
सवाल- किस हास्य कलाकार से आप प्रभावित है?
मुझे महमूद जी, गोविंदा बहुत पसंद है.
सवाल-रियल लाइफ में हप्पू सिंह कैसे है?
मैं न्योछावर खोर नहीं हूं, मस्तमौला हूं और अपने काम को निष्ठापूर्वक करता हूं. मैं पान वैसे नहीं खाता शूटिंग के लिए दो पान मंगवाता हूं. बाकी लिपस्टिक से ही काम चलाता हूं. चरित्र में 20 से 22 पान खाने वाला हूं. इतना पान मैं नहीं खा सकता.
सवाल-तनाव होने पर क्या करते है?
शांति से बैठकर फिल्में देखता हूं और परिवार से बातचीत करता हूं.
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