प्यार में क्यों डूबती हैं किशोरियां

किशोरावस्था में विपरीत लिंग से प्यार होने के कारणों में सब से महत्त्वपूर्ण है इस उम्र में हारमोंस का विकास होना. इस बारे में मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है कि सात तालों में बंद करने के बाद भी इस वर्ग की किशोरियों को किसी के प्यार में पड़ने से नहीं रोका जा सकता. उन के अनुसार, ‘‘इस उम्र में किशोरकिशोरियों का शारीरिक विकास होता है और ऐसे हारमोंस की वृद्धि होती है जिन से मस्तिष्क प्रभावित होता है. इस के अलावा इसी बीच जननांगों का भी विकास होता है.’’

इन्हीं परिवर्तनों के कारण किशोरकिशोरियों में अपने जननांगों के प्रति उत्सुकता जागती है और किशोरियां कल्पनालोक में खोई इस परिवर्तन से आत्ममुग्ध होती रहती हैं. वे अपना अक्स किसी दूसरे में भी देखना चाहती हैं. उन की अपनी प्रशंसा उन्हें सतरंगी ख्वाब दिखाने लगती है. उम्र का यही पड़ाव उन में विपरीत सैक्स के प्रति आकर्षण पैदा करता है.

किशोरकिशोरियां इन शारीरिक परिवर्तनों से परस्पर आकर्षित होते हैं. यही झुकाव उन्हें प्यार की मंजिल दिखा देता है. वे दोनों अपना अधिकतर समय छिपछिप कर बातें करने व एकदूसरे की जिज्ञासाएं शांत करने में बिताते हैं. उन का यह सामीप्य उन में एक सुखद अनुभूति पैदा कर देता है, जिस से वे उन्मुक्त हो कर प्यार के बंधन में बंध जाते हैं.

आखिर कुछ किशोरकिशोरियां ही इस मार्ग को क्यों अपनाते हैं? समाजशास्त्रियों का मानना है कि बच्चे के सामाजीकरण में सामाजिक, पारिवारिक संस्थाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है. मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है, ‘‘इस उम्र में किशोरियों की स्थिति गरम लोहे के समान होती है और जब उन का माहौल उन पर चोट करता है तो वह उसी रंग में रंग जाती हैं.’’

  1. पारिवारिक वातावरण का प्रभाव

किशोरियों को घरेलू तनाव, हर वक्त की नोकझोंक से उत्पन्न तनाव प्रभावित करता है, इस से जूझते बच्चे प्यार का सहारा खोजते हैं. ऐसे में दूसरे के प्रति आकर्षित होना सहज है. एक किशोरी ने बताया कि वह कैसे कच्ची उम्र में ही प्यार करने लगी थी. उस की सौतेली मां का व्यवहार अच्छा न था. उस के दिन भर काम करने पर भी उसे प्यार के दो मीठे बोल सुनने को नहीं मिलते थे. इसी दौरान एक लड़का उसे विशेष रुचि से निहारता था, कई बार स्कूल जाते समय उस की प्रशंसा करता था, जबकि वह अपने घर के कड़वाहट भरे जीवन से उकता रही थी. इस लड़के से उसे असीम प्यार व सहानुभूति मिली तो वह भी उस से प्यार करने लगी.

2. स्कूल के माहौल का प्रभाव

स्कूल का माहौल भी काफी हद तक प्रभावित करता है. स्कूल में कुछ किशोरियां अपने प्यार के किस्से को बढ़ाचढ़ा कर सुनाती रहती हैं. सहेलियों की संगत उन्हें अपने रंग में रंग लेती है. ऐसे में छात्राओं में प्यार की प्रतिस्पर्धा होती भी देखी गई है. ऐसी परिस्थितियों में मांबाप की लापरवाही आग में घी का काम करती है. इस उम्र में किशोरियों को प्यार, सहानुभूति व उचित शिक्षा की जरूरत होती है. कभीकभी स्कूल जैसी पवित्र संस्था से जुड़े कुछ लोग इन किशोरियों के साथ गलत सलूक करते हैं. चूंकि बच्चे भयग्रस्त होते हैं अत: कुछ कह नहीं पाते. ऐसी परिस्थितियों पर निगाह रखना या जानकारी रखना मांबाप का कर्तव्य है. कच्ची उम्र में भय और भावना दोनों ही खतरनाक होते हैं.

3. मीडिया का प्रभाव

मीडिया भी किशोरियों को इस राह पर पहुंचाने के लिए काफी हद तक उत्तरदायी है. आज हमारे सशक्त मीडिया दूरदर्शन पर शिक्षा की अपेक्षा मनोरंजन पर अधिक बल दिया जा रहा है, जिस में उत्तेजक दृश्यों की भरमार रहती है. उत्तेजक दृश्यों से उत्पन्न वासना किशोरियों को गुमराह करती है.

4. अश्लील साहित्य का प्रभाव

साहित्य समाज का प्रतिबिंब होता है लेकिन आज हमारा साहित्य किशोरों की उत्तेजना भड़काने वाला अधिक होता जा रहा है. उस में अश्लील लेखन व चिंत्राकन की भरमार रहती है. रहीसही कसर अब इंटरनैट व मोबाइल ने पूरी कर दी है. इस स्थिति से निबटने के लिए किशोरियों को उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता है. इस मार्गदर्शन में मां का उत्तरदायित्व सब से अधिक होता है.

5. बचाव के उपाय

पेरैंट्स को चाहिए कि बेटी के साथ मित्रता का भाव रखें. उस की समस्याओं को जान कर उन का निवारण करें. किशोर बेटी के प्रति लापरवाही न बरतें. समयसमय पर मां उस से यह जानकारी लेती रहें कि उसे कोई गुमराह तो नहीं कर रहा तथा उस की कोई समस्या या जिज्ञासा तो नहीं है.

घर की समस्याओं से भी किशोरियों को दूर न रखें, क्योंकि इस से वे अछूती रहती हैं तो उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का ज्ञान नहीं हो पाता है. उसे बच्ची कहने मात्र से आप का दायित्व खत्म नहीं होता बल्कि उस पर दायित्व डाल देना ज्यादा बेहतर है. छोटे भाईबहनों को पढ़ाना, उन्हें स्कूल के लिए तैयार करना या घर के कामों में मां का हाथ बंटाना आदि ऐसे ही दायित्व हैं.

किशोरावस्था में किशोरियों को नितांत अकेला न छोडे़ं, क्योंकि एकांत कुछ न कुछ सोचने पर मजबूर करता है. जहां तक हो सके उन्हें व्यस्त रखें. व्यस्त रखने का मतलब उन से भारी काम लेना नहीं अपितु कुछ रुचिकर काम उन से लिया जा सकता है. खाली समय में व्यावसायिक शिक्षा भी दी जा सकती है. नाचगाने, पिकनिक, पर्वतारोहण, कंप्यूटर आदि का ज्ञान किशोरकिशोरियों की महत्त्वपूर्ण सामाजिक क्रियाएं हैं.

अगर किसी किशोरी को किसी किशोर से प्यार हो जाता है तो उसे प्यार से समझाएं कि यह वक्त पढ़नेलिखने का है, प्रेम करने का नहीं. उन्हें मारेंपीटें नहीं और न ही जरूरत से ज्यादा पाबंदियां लगाएं. उन का ध्यान किसी क्रिएटिव काम को करने में लगाएं.

Winter Special: शिशु के लिए स्तनपान

अगर आप पहली बार मां बनी हैं तो आप के मन में अपने बच्चे को ले कर काफी उत्साह होगा, जोकि स्वाभाविक भी है, लेकिन बच्चे को पालना, उस की देखभाल ठीक तरह से हो, इस को ले कर चिंताएं भी कम नहीं होती हैं. अगर परिवार में कोई बुजुर्ग है तो फिर कोई बात नहीं, लेकिन आजकल परिवार छोटे होते हैं, न्यूक्लियर फैमिली. ऐसे में बच्चे की छोटीमोटी बातों की जानकारी आमतौर पर नई मां को नहीं होतीं. ऐसी मांओं को नवजात बच्चों को दूध पिलाने को ले कर बहुत सारी उलझनें होती हैं.

कैसे दूध पिलाया जाए

कोलकाता की जानीमानी डाक्टर संयुक्ता दे इस बारे में कहती हैं कि आमतौर पर नई मांएं समझती हैं कि दूध पिलाने में क्या रखा है. यह मामला स्वाभाविक है, इसीलिए बड़ा आसान भी है. लेकिन इस के लिए केवल शारीरिक नहीं, मानसिक तैयारी की भी जरूरत पड़ती है. ये दोनों तैयारियां अगर न हों तो पहली बार स्तनपान कराने में कुछ समस्याएं आ सकती हैं.

पहली बार कब

स्वाभाविक प्रसव के मामले में शिशु को बहुत जल्दी ब्रैस्ट फीड कराना संभव हो जाता है. स्पाइनल कौर्ड में इंजेक्शन लगा कर सीजर करने के मामले में भी मां उसी दिन ब्रैस्ड फीड करा सकती है. लेकिन पूरी तरह से बेहोश कर के सीजर करने पर कम से कम 2 दिनों के बाद ब्रैस्ट फीड कराया जा सकता है.

निप्पल के आकार की समस्या

कुछ महिलाओं के स्तन के निप्पल का आकार सही नहीं होता. ऐसे स्तन से दूध पीने में बच्चों को तकलीफ होती है. इसीलिए मां बनने की तैयारी के साथ स्तन की देखभाल जरूरी है. अगर स्वाभाविक निप्पल नहीं है, तो रोज सुबहशाम औलिव औयल उंगलियों के पोरों में लगा कर दबे निप्पल को बाहर लाने की कोशिश करना जरूरी है. कुछ दिनों में यह स्वाभाविक हो जाएगा. ऐसी समस्या के लिए प्रसूति विशेषज्ञ व गाइनाकौलोजिस्ट से भी सलाह ली जा सकती है.

क्रैक निप्पल की समस्या

कई बार निप्पल क्रैक होने की समस्या पेश आती है. कभीकभी दर्द होता है और कुछ के निप्पल से खून तक आने लगता है. ऐसे मामले में डाक्टरी सलाह ली जा सकती है, लेकिन दूसरे स्तन से दूध निकाल कर क्रैक में लगाया जाए तो यह दवा का भी काम करता है. बहरहाल, क्रैक निप्पल से ब्रैस्ट फीडिंग नहीं कराई जानी चाहिए. क्रैक निप्पल वाले स्तन से मिल्क ऐक्सप्रैस से दूध निकाल कर चम्मच से पिलाया जाना चाहिए. ऐक्सप्रैस कर के निकाला हुआ दूध 24 घंटे तक फ्रिज में रख कर भी पिलाया जा सकता है, बशर्ते इस दौरान फ्रिज एक बार भी बंद न किया जाए.

दूध पिलाने का सही तरीका

अब रही बात दूध पिलाने के सही और आरामदायक तरीके की, तो सब से पहले पैरों के नीचे तकिए का सपोर्ट ले कर बच्चे को गोद में सुलाएं. बेहतर होगा कि बच्चे के दोनों तरफ छोटा साइड तकिया भी रख लें. इस से बच्चे को आराम महसूस होगा. दूध पिलाते समय बच्चे के सिर पर हाथ फेरने से बच्चे को मां के प्यार भरे स्पर्श से सुखद अनुभूति होती है और मां के मन में भी संतोष होता है.

कई बार बच्चा दूध नहीं पीता. इस की कई वजहें हो सकती हैं. शिशु का कान, नाक दब जाने या दूध पीते हुए आराम नहीं मिल पाने के कारण वह ऐसा कर सकता है. ऐसे में पोजीशन को बदल कर देखना चाहिए. दूध पिलाने के लिए एकांत बेहतर होता है.

कितनी बार स्तनपान कराएं

डा. संयुक्ता दे का कहना है कि नवजात बच्चे को स्तनपान कराने के लिए किसी रूटीन को फौलो करने की जरूरत नहीं होती है. जबजब बच्चे को भूख लगे तबतब दूध पिलाया जा सकता है. लेकिन एक ही बार में बहुत सारा दूध पिलाने के बजाय कुछकुछ समय के अंतराल में थोड़ाथोड़ा दूध पिलाते रहना बेहतर होता है. इस की वजह यह है कि आमतौर पर नए बच्चे की पाचनशक्ति कमजोर होती है. ऐसे में कम से कम 8 बार तो दूध जरूर पिलाया जाना चाहिए. नवजात शिशु रात में 2-3 बार दूध के लिए नींद से जाग सकता है, लेकिन 6 सप्ताह के बाद वह एकसाथ 5 घंटे से ज्यादा नहीं सोता. 3 महीने के बाद कुछ बच्चों को बोतल का दूध भी देना पड़ता है. तब उन की भूख जरा कम हो जाती है. इस की वजह यह है कि बोतल का दूध फौर्मूला दूध होता है. मां के दूध की तुलना में इसे हजम करने में ज्यादा वक्त लगता है. इस दौरान 4 घंटे के अंतर में दूध पिलाया जा सकता है. यानी, दिन में 5 बार और रात में 2 बार पर्याप्त होता है.

लेकिन अगर प्री मैच्योर शिशु है तो कुछकुछ देर में डाक्टरी सलाह के अनुसार दूध दिया जाना चाहिए. ऐसे बच्चे आमतौर पर ज्यादा सोते हैं, इसलिए नींद के बीच में दूध पिलाने की कोशिश की जानी चाहिए. अगर वह नहीं लेता है तो जबरन नींद में खलल डाल कर दूध पिलाने से बचना चाहिए. एक जरूरी बात यह है कि दूध पीने के दौरान थोड़ी हवा भी बच्चे के पेट में चली जाती है. दूध पिला लेने के बाद शिशु को कंधे पर सुला कर उस की पीठ को थपकने या जरा सहला देने से पेट की हवा डकार के रूप में बाहर निकल जाती है. हवा रह जाने पर हो सकता है शिशु उलटी कर दे.

कैसे समझें शिशु स्वस्थ है

डाक्टर पल्लव चट्टोपाध्याय कहते हैं कि शिशु अगर ब्रैस्ट फीड के बाद सो जाता है तो समझें, उस का पेट भर गया है. इस बात पर ध्यान रखें कि वह कितनी बार पेशाब करता है, अगर दिन भर में 6-7 बार पेशाब करता है. तो समझें शिशु ठीकठाक है. शिशु जब ब्रैस्ट पर हो, तब तक पानी पिलाने की जरूरत नहीं. यहां तक कि मिसरी का पानी भी नहीं देना चाहिए. इस से पेट में गैस पैदा होती है. शुरू में हो सकता है कि शिशु दिन में सोए और रात में जगा रहे. इस में भी चिंता की कोई बात नहीं. कुछ ही दिन में वह अपनी आदत बदल लेगा.

दूध पिलाने के लिए जरूरी सामान

सोने के लिए साजोसामान और पहनने के लिए पोशाक के अलावा दूध पिलाने के लिए बोतल, चम्मच जैसी जरूरी चीजों के अलावा कुछ और छिटपुट चीजों की जरूरत पड़ती है. शिशु जब पहली बार बोतल में दूध पीना शुरू करता है, तो इन चीजों की जरूरत पड़ती है. मसलन, कटोरा, गिलास, टिट्स या रबर के निप्पल, बोतल के साथ डिस्पोजेबल लाइनर, मेजरिंग जग, दूध निकालने के लिए प्लास्टिक के चम्मच और दूध का पैकेट खोलने के लिए छोटी कैंची, एक प्लास्टिक का चाकू, बोतल में दूध डालने के लिए एक फनेल आदि.

दूध की बोतल 2 साइज की 200 मि.ली. और 250 मि.ली. की रखनी चाहिए. इस के अलावा बोतल साफ करने के लिए ब्रश, बड़ा सा बरतन, जिस में साबुन के पानी में कुछ चीजें थोड़ी देर डुबो कर रखी जा सकें. साथ में स्टेरलाइजर, फ्लास्क, कभी कहीं बाहर जाना हो तो इस के लिए एक इंसुलेटेड पिकनिक बौक्स, मेजरिंग स्पून.

दूध की बोतल कभी माइक्रोवेव में गरम नहीं करनी चाहिए. इस की वजह यह है कि ऊपर से बोतल इतनी गरम नहीं होती, लेकिन बोतल के अंदर दूध अधिक गरम हो जाता है. बहरहाल, बोतल शिशु के मुंह में देने से पहले अपनी हथेली के ऊपरी हिस्से पर दूध की कुछ बूंदें गिरा कर देख लेनी चाहिए.

स्टेरलाइज करने का तरीका

स्टीम स्टेरलाइजर या माइक्रोवेव स्टेरलाइजर का उपयोग किया जा सकता है. स्टेरलाइजर है तो काम आसान हो जाता है. बाजार में स्टेरलाइजर कैमिकल या स्टेरलाइजिंग टिकिया पाई जाती है. टिकिया के गल जाने के बाद शिशु के फीडिंग उपकरण को डालें और कम से कम 5 मिनट उबलने दें. डिशवाशर का भी उपयोग किया जा सकता है, लेकिन टिट्स को तभी डिशवाशर में डालें, जब टिट्स डिशवाशर प्रूफ हो. हौट ड्राइंग साइकिल जरूर रखें. उच्च तापमान में ही बैक्टीरिया मरते हैं.

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