ऐसे संभालें रिश्तों की डोर

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य की जिंदगी आत्मकेंद्रित हो कर रह गई है, संयुक्त परिवार का स्थान एकल परिवार ने ले लिया है, कामकाजी दंपती अवकाश में नातेरिश्तेदारों के यहां जाने के बजाय घूमने जाना अधिक पसंद करते हैं. इस का दुष्परिणाम यह होता है कि उन के बच्चे नानानानी, दादादादी, चाचा, ताऊ, बूआ जैसे महत्त्वपूर्ण और निजी रिश्तों से अपरिचित ही रह जाते हैं. यह कटु सत्य है कि इंसान कितना ही पैसा कमा ले, कितना ही घूम ले परिवार और मित्रों के बिना हर खुशी अधूरी है. मातापिता, भाईबहन, दोस्तों की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता. इसीलिए रिश्तों को सहेज कर रखना बेहद आवश्यक है.

जिस प्रकार अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए हम धन का इन्वैस्टमैंट करते हैं उसी प्रकार रिश्तेनातों की जीवंतता बनाए रखने के लिए भी समय, प्यार, परस्पर आवागमन और मेलमिलाप का इन्वैस्टमैंट करना बहुत आवश्यक है. इन के अभाव में कितने ही करीबी रिश्ते क्यों न हों एक न एक दिन अपनी अंतिम सांसें गिनने ही लगते हैं, क्योंकि निर्जीव से चाकू का ही यदि लंबे समय तक प्रयोग न किया जाए तो वह अपनी धार का पैनापन खो देता है. फिर रिश्ते तो जीवित लोगों से होते हैं. यदि उन का पैनापन बनाए रखना है तो सहेजने का प्रयास तो करना ही होगा.

परस्पर आवागमन बेहद जरूरी

रेणु और उस की इकलौती बहन ने तय कर रखा है कि कैसी भी स्थिति हो वे साल में कम से कम 1 बार अवश्य मिलेंगी. इस का सब से अच्छा उपाय उन्होंने निकाला साल में एक बार साथसाथ घूमने जाना. इस से उन के आपसी संबंध बहुत अधिक गहरे हैं. इस के विपरीत रीता और उस की बहन पिछले 5 वर्षों से आपस में नहीं मिली हैं. नतीजा उनके बच्चे आपस में एकदूसरे को जानते तक नहीं.

वास्तव में रिश्तों में प्यार की गर्मजोशी बनाए रखने के लिए एकदूसरे से मिलनाजुलना बहुत आवश्यक है. जब भी किसी नातेरिश्तेदार से मिलने जाएं छोटामोटा उपहार अवश्य ले जाएं. उपहार ले जाने का यह तात्पर्य कदापि नहीं है कि उन्हें आप के उपहार की आवश्यकता है, बल्कि यह तो परस्पर प्यार और अपनत्व से भरी भावनाओं का लेनदेन मात्र है.

संतुलित भाषा का करें प्रयोग

कहावत है आप जैसा बोएंगे वैसा ही काटेंगे. यदि आप दूसरों से कटु भाषा का प्रयोग करेंगे तो दूसरा भी वैसा ही करेगा. मिसेज गुप्ता जब भी मिलती हैं हमेशा यही कहती हैं कि अरे रीमा तुम्हें तो कभी फुरसत ही नहीं मिलती. जरा हमारे घर की तरफ भी नजर कर लिया करो. इसी प्रकार मेरी एक सहेली को जब भी फोन करो तुरंत ताना मारती है कि अरे, आज हमारी याद कैसे आ गई?’’

एक दिन मैं अपनी एक आंटी के यहां मिलने गई. जैसे ही आंटी ने गेट खोला तुरंत तेज स्वर में बोलीं कि अरे प्रतिभा आज आंटी के घर का रास्ता कैसे भूल गईं. उन का ताना सुन कर मेरे आने का सारा जोश हवा हो गया. जबकि मेरे घर के नजदीक ही रहने के बाद भी वे स्वयं न कभी फोन करतीं और न ही आने की जहमत उठाती है. आपसी संबंधों में इस प्रकार के कटाक्ष और व्यंग्ययुक्त भाषा की जगह सदैव प्यार, अपनत्व और विनम्रतायुक्त मीठी वाणी का प्रयोग करें. सदैव प्रयास करें कि आप की वाणी या व्यवहार से किसी की भावनाएं आहत न हों.

संबंध निभाएं

गुप्ता दंपती को यदि कोई बुलाता है तो वे भले ही 10 मिनट को जाएं पर जाते जरूर हैं. कई बार नातेरिश्तेदारों या परिचितों के यहां कोई प्रोग्राम होने पर हम अकसर बहाना बना देते हैं या मूड न होने पर नहीं जाते. यह सही है कि आप के जाने या न जाने से उस प्रोगाम पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, परंतु आप का न जाना संबंधों के प्रति आप की उदासीनता अवश्य प्रदर्शित करता है. यदि किसी परिस्थितिवश आप उस समय नहीं जा पा रहे हैं तो बाद में अवश्य जाएं. किसी भी शुभ अवसर पर जाने का सब से बड़ा लाभ यह होता है कि आप अपने सभी प्रमुख नातेरिश्तेदारों और परिचितों से मिल लेते हैं, जिस से रिश्तों में जीवंतता बनी रहती है.

करें नई तकनीक का प्रयोग

मेरे एक अंकल जो कभी हमारे मकानमालिक हुआ करते थे, उन की आदत है कि वे देश में हों या विदेश में हमारे पूरे परिवार के बर्थडे और हमारी मैरिज ऐनिवर्सरी विश करना कभी नहीं भूलते. उस का ही परिणाम है कि हमें उन से दूर हुए 6 साल हो गए हैं, परंतु हमारे संबंधों में आज भी मिठास है. आज का युग तकनीक का युग है. व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, वीडियो कौलिंग आदि के माध्यम से आप मीलों दूर विदेश में बसे अपने मित्रों और रिश्तेदारों से संपर्क में रह सकते हैं. सभी का प्रयोग कर के अपने रिश्ते को सुदृढ़ बनाएं. कई बार कार्य की व्यस्तता के कारण लंबे समय तक परिवार में जाना नहीं हो पाता. ऐसे में आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर के आप अपने रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने का प्रयास अवश्य करें.

करें गर्मजोशी से स्वागत

घर आने वाले मेहमानों का गर्मजोशी से स्वागत करें ताकि उन्हें एहसास हो कि आप को उन के आने से खुशी हुई है. शोभना के घर जब भी जाओ हमेशा पहुंच कर ऐसा लगता है कि हम यहां क्यों आ गए? न मुसकान से स्वागत, न खुश हो कर बातचीत, बस उदासीन भाव से चायनाश्ता ला कर टेबल पर रख देती हैं, आप करो या न करो उन की बला से. इस के विपरीत हम जब भी अनिमेशजी के यहां जाते हैं उन पतिपत्नी की खुशी देखते ही बनती है. घर में प्रवेश करते ही खुश हो कर मिलना, गर्मजोशी से स्वागत करना, उन के हावभाव को देख कर ही लगता है कि हां हमारे आने से इन्हें खुशी हुई है.

आप के द्वारा किए गए व्यवहार को देख कर ही आगंतुक दोबारा आने का साहस करेगा.

छोटीछोटी बातों का रखें ध्यान

नमिता के चचिया ससुर आए थे. उसे याद था कि चाचाजी शुगर के पेशैंट हैं. अत: जब वह उन के लिए बिना शकर की चाय ले कर आई तो उस की इस छोटी सी बात पर ही चाचाजी गद्गद हो उठे. रीता की जेठानी आर्थ्राइटिस की मरीज है. अत: उन्हें बाथरूम में ऊंचा पटड़ा चाहिए होता है. उन के आने से पूर्व उस ने उतना ही ऊंचा पटड़ा बाजार से ला कर बाथरूम में रख दिया. जेठानी ने जब देखा तो खुश हो गई.

अर्चना के यहां जब भी कोई आता है वह प्रत्येक सदस्य की पसंद का पूरापूरा ध्यान रखती है. उस के यहां जो भी आता है उस की कोशिश होती है कि उन्हीं की पसंद का भोजन, नाश्ता आदि बनाया जाए.

समय दें

किसी भी मेहमान के आने पर उसे भरपूर समय दें, क्योंकि सामने वाला भी तो अपना कीमती वक्त निकाल कर आप से मिलने पैसे खर्च कर के ही आया है. अनीता जब परिवार सहित अपने भाई के यहां 2-4 दिनों के लिए गई तो भाई अपने औफिस चला गया और भाभी किचन और इकलौते बेटे में ही व्यस्त रही. बस समय पर खाना, नाश्ता टेबल पर लगा दिया मानो किसी होटल में रुके हों. अगले दिन भाई ने औफिस से अवकाश तो लिया पर अपने घर के काम ही निबटाता रहा. अनीता और उस के परिवार के पास बैठ कर 2 बातें करने का किसी के पास वक्त ही नहीं था. 2 दिन एक ही कमरे में बंद रहने के बाद वे अपने घर वापस आ गए, इस कसम के साथ कि अब कभी भी भाई के घर नहीं जाना. इस प्रकार का व्यवहार आपसी संबंधों में कटुता घोलता है. संबंध सदा के लिए खराब हो जाते हैं.

कई बार अपने सब से करीबी का ही जानेअनजाने में किया गया कठोर व्यवहार हमें अंदर तक आहत कर जाता है. अपने साथ किए गए लोगों के अच्छे व्यवहार का सदैव ध्यान रखें और मन को दुखी करने वाले व्यवहार को एक क्षणिक आवेश मान कर भूलना सीखें, क्योंकि जिंदगी आगे बढ़ने का नाम है.

क्यों नहीं हो पा रहा आपका रिलेशनशिप मजबूत, जानें यहां

एक-दूसरे को खोने का डर और हद से ज्यादा इंटरफेयर और केयर कभी-कभी रिश्तों को बोझिल बना देता है. “वह मेरा है और सिर्फ मुझसे प्यार करता है” ऐसी धारणा चिंता का विषय बन जाता है और बात न होते हुए भी बात-बात पर झगड़ा करना तनाव का कारण बन जाता है. कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि आपके साथ गलत हो रहा होता है लेकिन उसको खोने के डर से आप गलत चीजों को भी अवॉयड कर देते हैं जोकि कुशल रिश्ते के लिए ये सकारात्मक चीजें नहीं हैं. फिर भी आप अपनी चाहत देखते हो और उसको अपने से दूर नहीं करना चाहते हैं.

कुछ इसी तरह के लक्षण रिलेशनशिप में ब्रेक ला सकती है. ऐसा क्यों होता है, किसी रिश्ते में विश्वासनीयता में कमी क्यों आती है और क्यों रिश्तों को संभालना इतना मुश्किल हो गया है. चलिए जानते हैं कुछ प्वांइट्स के बारे में जो आप कहीं न कहीं मिस कर जाते हो-

  • फियर ऑफ़ मिसिंग आउट
  • अकेलेपन का डर
  • आदत बन जाना
  • असुरक्षा की भावना

फियर ऑफ़ मिसिंग आउटहमेशा उस चीज के बारे में डरना, जिसका असल में कोई अस्तिव ही नहीं है. अपने पार्टनर को लेकर ये मिस अंडरस्टैंडिंग बना लेना कि आगे क्या होगा, भविष्य कैसा होगा? क्या हम दोनों हमेशा साथ रह सकेंगे? ऐसे ही कई सारे सवाल जो आपके अंदर बेचैनी ला देते हैं और इन्हीं बातों को लेकर आप परेशान रहते हैं. सबसे ज्यादा सवाल तो यह आता है कि “वह तो सुंदर है उसे तो और मिल जाएंगे पर मेरा क्या होगा, मुझे कौन पूछेगा? मैं कैसे रहूंगा…?” यही कारण है कि आप अपने आपमे संतुष्ट नहीं होते हैं और हमेशा खोने का डर बना रहता है जिससे आप प्यार के लिए तरसते रहते हैं.

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अकेलेपन का डर

फिर से अकेलेपन का डर आपको सुकून से वह पल भी नहीं बिताने देता जो आप उस समय अपने पार्टनर के साथ जी रहे होते हैं. जबिक यह बात आप अच्छी तरह से जानते हैं कि वह आपके साथ लंबे समय तक एक-साथ नहीं रह सकेगा, फिर भी आप यह सोचकर कम्प्रोमाइज करने के लिए तैयार रहते हैं कि वह जिसके साथ रहेगा आप मैनेज कर लोगे क्योंकि आप अपने को कभी उससे दूर रखना पसंद नहीं करते हो. अगर आपसे अलग हो जाएगा तो आप कैसे रहेंगे, इसी डर को लेकर आप अकेलेपन से डरते हैं.

आदत बन जाना

नेहू अपने पार्टनर से बहुत प्यार करती है, उसने अपने पार्टनर को अपनीआदत बना ली है. यानि कि उसका पार्टनर उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रहा होता है फिर भी वह उसे सहन करती है और यह सोचती है कि थोड़े समय बाद सब ठीक हो जाएगा. लेकिन असल में ऐसा होता नहीं है, नेहू का पार्टनर उससे बुरा बर्ताव करता है और वह उसे सुनती रहती है. ऐसा इसलिए क्योंकि नेहू ने उसे अपनी आदत में शामिल कर लिया है और बिछड़ने का डर भी उससे यह सब सुनने को मजबूर कर देता है. ऐसा तभी हो रहा होता है क्योंकि कहीं न कहीं नेहू के पास्ट में ऐसी ही कोई घटना पहले हो चुकी होती है. शायद यही कारण है कि उसे अपने पार्टनर से जुदा होने का डर हमेशा सताता रहता है और उसकी आदत उसके पार्टनर को और भी ज्यादा उस पर हावी होने का मौका देती है.

असुरक्षा की भावना आना

असुरक्षा की भावना आना हर किसी के मन का शंका का विषय रहता है. अपने आपको किसी अन्य से तुलना करने पर कमतर समझना यही आत्मविश्वास को कमजोर करती है और आप अपने व्यक्तित्व के मूल्य को समझने में विफल रहते हैं. आप अपने पार्टनर को लेकर भी असुरक्षित फील करते हैं. कहीं आपका पार्टनर आपके अलावा किसी और से संबंध न बना ले, ऐसी भावना आना हर महिला या पुरुष का स्वाभाविक स्वभाव होता है.

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ऐसे में आप अपने आपको अकदम फ्री कर दें और प्रकृति की गोद में अपना समय दें जिससे आप असुरक्षित न महसूस कर सकें. नेचर से आपको मन को शांति और शुकून दोनों ही मिलेगा. साथ ही आप अपने रिश्ते को कुछ पल के लिए ही सही खुलापन दीजिए जिससे आप एक-दूसरे को समझ सकें और एक मजबूत रिश्ता बना सकें.

जानें क्यों आप अपने रिश्ते में हर तर्क खो देते हैं

हमारे सभी रिश्तों में प्यार और स्नेह होता है लेकिन जहां प्यार होता है वहा मतभेद भी हो सकता है. हमारे साथी के साथ हमारी बहस हो जाती है दोनों अपने विचार रखते हैं.और हमारा साथी हर बार अपनी बात पर विजय पाने में सफल हो जाता है.लेकिन हर बार अपने साथी को विचार पर विजय पाना आपके दिल मे शक पैदा कर देता है. जिस से आपको अपने खुद के विचारों पर संदेह हो जाता है.

1. आपने अपनी गलती स्वीकार की है

जब आपकी गलती होती है और आप स्वीकार कर लेते हैं तो ये बहुत अच्छी बात है ये विनम्रता की निशानी है. लेकिन आपकी गलती नही होती है और आप बहस से बचने के लिए हर बार उस गलती को स्वीकार कर लेते हैं तो यह आपके लिए हानिकारक भी हो सकता है .क्योंकि कभी कभी जब आपकी गलती नही होगी तो भी आपको ही गलत बताया जाएगा. इसलिए बिना गलती के अपनी गलती स्वीकार नही करे.

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2. आप सिर्फ जीतना चाहते हैं

अगर आप अपने साथी के साथ हमेशा बहस करके जीतना चाहते हैं और अपने साथी को गलत साबित करना चाहते हैं तो यह आपके रिश्ते के लिए हानिकारक हो सकता है. अगर आपके रिश्ते में कोई भी दिक्कत है तो आप अपने साथी को गलत साबित करने की जगह उस बात को सुलझाने की कोशिश करें. इस से आपके रिश्ते में प्यार बना रहता है.

3. आप अपनी गलतियों को टालना चाहते हैं

यदि आप अपनी साथी की गलती पर गलती गिनवाए जाते हैं और आप अपनी गलती को स्वीकार नही करते हैं तो ये आपकी सबसे बड़ी भूल है. ऐसा करने से आपकी समस्याएं बढ़ सकतीं हैं और आपके रिश्ते में दरार पैदा हो सकती है. इसलिए आपको ऐसा नही करना चाहिए.

4. आप जिद्द करते हैं और गलती स्वीकार नही करना चाहते

यदि आप जिद्दी है और रिश्ते में किसी तरह का समझौता नही करना चाहते. तो आपका रिश्ता खराब हो सकता है. आपकी जिद्द रिश्ते से बड़ी नहीं होती है. अगर आप बार बार जिद्द करके जीतने की कोशिश करेंगे तो आप खुद को हारा हुआ इंसान महसूस करेंगे. इसलिए अपनी जिद्द को साइड रखकर बात को सुलझाने की कोशिश करें. इस से आपका रिश्ता बना रहेगा.

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5. आप अपनी भावनाओं से अधिक शक्तिशाली है

कभी कभी आप अपने साथी से बहस कर रहे होते हैं और अपनी भावनाओं के कारण अपना नियंत्रण खो देते हैं. जिनका आपको बाद में बहुत पछतावा होता है. अगर आप भावनाओं में बहने वाले व्यक्ति है तो आपको शांत रहना चाहिए. और प्यार से ही मामले को सुलझाना चाहिए.

अपशब्द कहें मस्त रहें

फिल्म ‘जब वी मैट’ में दिखाया गया है कि जब नायिका का बौयफ्रैंड उसे धोखा देता है, तब वह तनाव में आ जाती है. एकदम चुपचाप रहने लगती है. तब फिल्म का नायक शाहिद कपूर उसे तनावमुक्त होने का एक रास्ता बताता है. वह यह कि वह उस इंसान को जिस ने उसे दर्द दिया, उसे फोन कर के जीभर के गालियां दे कर, कोस कर अपने मन की भड़ास निकाले. उस ने वैसा ही किया तो उस के मन की सारी भड़ास निकल गई.

अपनी फ्रैंड की बर्थडे पार्टी में गई सोनल की महंगी ड्रैस पर जब किसी से गलती से जूस गिर गया, तब गुस्से में सोनल के मुंह से उस इंसान के लिए अपशब्द निकल गए. लेकिन बाद में फिर उस ने उस बात के लिए माफी भी मांग ली.

हमारे साथ भी ऐसा ही होता है. किसी इंसान की गलत बात, व्यवहार से या फिर उस के कारण अपना नुकसान हो जाने पर हम भड़क जाते हैं और फिर हमारे मुंह से अपशब्द निकल ही जाते हैं, जैसे ‘बेवकूफ कहीं का, दिखता नहीं है क्या?’ ‘एक नंबर का घटिया इंसान है तू,’ ‘गधा कहीं का, बकवास मत कर’ जैसे अपशब्द बोल कर हम अपने मन की भड़ास निकाल लेते हैं, जो सही भी है, क्योंकि कुछ न बोल कर टैंशन में रहना, मन ही मन कुढ़ते रहने से अच्छा रिएक्ट कर देना है.

खुद को भी कोसें

भड़ास निकाल देने से मन का गुबार बाहर निकल जाता है. किसी के बुरे व्यवहार के कारण जलते-कुढ़ते रहने से हमारे शरीर पर बुरा असर पड़ता है. कभी खुद की गलती पर भी हमें गुस्सा आ जाता है. तब भी खुद को कोस लेना अच्छा रहता है. गलती चाहे किसी की भी हो, उसे 2-4 अपशब्द कह दें, तो मन हलका हो जाता है. लेकिन अपने कहे शब्दों का मन में अपराधबोध न रखें, क्योंकि आप ने तो सिर्फ अपनी भड़ास निकाली है और अगर यह भड़ास दबी रह जाए, तो सिरदर्द, माइग्रेन, बीपी और न जाने किनकिन बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं.

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बचपन में हमारे माता-पिता और शिक्षकों ने गाली देने से रोकने की पूरी कोशिश की होगी हमें, फिर भी बड़े होने पर हम लगभग सभी इस भाषा का सहारा लेते हैं और वह भी दिन में कई बार. हमारे मातापिता और शिक्षकों ने भी शायद कभी न कभी किसी न किसी के लिए गुस्से में आ कर अपशब्दों का प्रयोग किया ही होगा, भले मन में या फिर पीठ पीछे, पर किया होगा और करते होंगे जरूर. हां, यह भी सही है कि इस तरह की अभद्र भाषा का इस्तेमाल करना शिष्टता नहीं है, क्योंकि इस में नफरत की बू आती है, लेकिन यह भी सही है कि जो लोग अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं, वे हमेशा किसी को बुरा महसूस करवाने के लिए नहीं करते हैं, बल्कि अपने गुस्से को शांत करने के लिए करते हैं.

घुटन जमा न करें

इस संदर्भ में अब तक हुए शोधों और अध्ययनों से यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि मनमस्तिष्क में भरा रहने वाला यह गुबार अगर समय रहते बाहर नहीं आ पाता है तो लंबे समय तक चलने वाली इस हालत का दुष्प्रभाव हमारी सेहत पर पड़ने लगता है. ऐसे में अपने अंदर घुटन को जमा न कर के उसे बाहर निकाल देना चाहिए. खुद को खुश और तनावमुक्त रखने के लिए समयसमय पर भड़ास निकालते रहना चाहिए. घरबाहर के काम का बोझ, औफिस में बौस की झिड़की या दोस्तों से किसी बात पर तकरार हो जाए, तो दवा के रूप में मन की भड़ास को निकाल लेना ही सही है.

गुस्से में आ कर किसी के साथ मारपीट करने से अच्छा है उस इंसान को खूब कोस

लिया जाए, 2-4 गालियां दे दी जाएं, तो मन को सुकून आ जाता है. मन की भड़ास निकालना एक थेरैपी है और इस बात से विश्वभर के मनोवैज्ञानिक भी एकमत हैं. इस थेरैपी पर काम कर रहे इटली के जौन पारकिन कहते हैं कि हम हर समय खुद को तराशते, सुधारते नहीं रह

सकते हैं. मन की भड़ास निकालना कोई गलत बात नहीं है.

हालांकि बहुत से लोग बुरी भाषा के इस्तेमाल पर अभी भी आपत्ति जताते हैं,

लेकिन वैज्ञानिक कहते हैं कि जो लोग अपने मन की भड़ास निकालते हैं वे उन लोगों की तुलना में ज्यादा स्वस्थ हो सकते हैं, जो ऐसा नहीं करते हैं. लुइसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्र के प्रोफेसर और शोधकर्ता राबर्ट ओनील ने 2001 में एक अध्ययन किया, जिस में पता चला कि पुरुष और महिलाओं की भड़ास निकालने की अलगअलग प्रतिक्रिया है. हालांकि महिलाएं आज पहले की तुलना में ज्यादा अभद्र और चलताऊ भाषा का प्रयोग करने लगी हैं.

यह तो सकारात्मक गुण है

डा. एम्मा बायरन ने अपनी किताब में भड़ास निकालने पर लिखा है कि यह आप के लिए अच्छा है. ‘द अमेजिंग साइंस औफ बैड लैंग्वेज’ नए शोध से पता चला है कि भड़ास निकालना एक सकारात्मक गुण है, कार्यालय में विश्वास और टीम वर्क को बढ़ावा देने से ले कर हमारी सहनशीलता को बढ़ाने तक. भड़ास निकाल देना हमारी शारीरिक पीड़ा को कम करने, चिंता को कम करने, शारीरिक हिंसा को रोकने, यहां तक कि भावनात्मक दर्द को रोकने में भी मदद कर सकता है.

कीले यूनिवर्सिटी में 2009 हुए एक प्रयोग में उन के मुकाबले वे लोग ज्यादा देर तक बर्फ से ठंडे पानी में अपने हाथ डुबो कर रख सकते हैं जो अभद्र भाषा का ज्यादा प्रयोग करते हैं. हमारे समाज में ऐसी अभद्र भाषा का प्रयोग निंदनीय है, लेकिन पूरी दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है जहां लोग एक-दूसरे को गालियां नहीं देते हैं. लेकिन कहा जाता है कि जापानी लोग गालियां नहीं देते हैं, बल्कि वे अपना गुस्सा एक तुतले पर निकालते हैं.

एम्मा बायरन का कहना है कि वहां भी आम बोलचाल की भाषा में एक शब्द इस्तेमाल किया जाता है, ‘मैंको’ जोकि शरीर के एक ऐसे अंग के लिए बोला जाता है, जिस का नाम लेना सभ्य समाज के खिलाफ है. एम्मा बायरन का कहना है कि अपशब्द कह देने से तनमन दोनों की तकलीफ कम हो जाती है. जो हमारी बेइज्जती करता है, हमारा मजाक उड़ाता है, उसे हम हथियार से न सही कम से कम जबान से

अपशब्द कह कर अपने मन की भड़ास तो निकाल ही सकते हैं न? आपस में भाषा का खुलापन होना जरूरी है. इस से आपस में अच्छी बौडिंग रहती है.

अगर अभद्र भाषा नहीं बोल सकते हैं तो आप अपना गुस्सा पंचिंग बैग पर निकाल दें.

कई फिल्मों में भी हम ने देखा है कि हीरो को किसी पर बहुत गुस्सा आता है, तो वह अपना सारा गुस्सा पंचिंग बैग पर निकाल लेता है.

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जापान में बड़ी-बड़ी कंपनियों व कार्यालयों में ऐसे विशेष कक्ष की व्यवस्था का चलन है, जिस में एक पुतला होता है. जब भी किसी कर्मचारी को अपने किसी सहकर्मी कर्मचारी, अधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति की वजह से गुस्सा आता है या तनाव होता है तो वह उस पुतले को जी भर कर गालियां देता है, उसे मारतापीटता है ताकि उस के मन की सारी भड़ास बाहर निकल जाए.

देश-विदेश की कई कंपनियां भी अब अपने कर्मचारियों के बैठने और स्वतंत्र रूप से खुल कर बात करने के लिए खास प्रबंध रखती हैं. उद्देश्य यही रहता है कि उन के मन की खटास, गुस्सा बातों के जरीए बाहर निकल जाए और वे तनावमुक्त अपना काम कर सकें.

तोड़-फोड़ से मिलती है शांति

सुन कर थोड़ा अजीब जरूर लगेगा पर गुस्से में थोड़ीबहुत तोड़फोड़ करना भी आप का गुस्सा कम कर सकता है, आप को मानसिक शांति दे सकता है.

साइकोलौजिकल बुलेटिन में भी इस ‘डैमज थेरैपी’ के बारे में बताया गया है. स्पेन के एक कबाड़खाने में तो लोगों को तोड़फोड़ करने की सेवा देनी शुरू भी की जा चुकी है. 2 घंटे के ढाई हजार रुपए. तनाव दूर करने के लिए आप अपना पुराना टीवी, मोबाइल फोन, घर के पुराने सामान आदि के साथ जम कर तोड़फोड़ करते हुए मानसिक शांति पा सकते हैं. तनाव भगाने की इस थेरैपी से मरीजों को कितना लाभ होता है. इस बारे में ‘स्टौप स्ट्रैस’ नामक एक संगठन का दावा है कि उपचार के 2 घंटे की अवधि में आधे घंटे में ही आराम आने लगता है, आप अपने किसी भी दुश्मन के पुतले पर लातघूंसे बरसा कर, गालियां दे कर अपनी भड़ास निकाल सकते हैं.

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि गुस्सा सब से अधिक ऐनर्जी वाला नैगेटिव इमोशन है और अगर इसे सही दिशा में मोड़ दिया जाए तो रचनात्मक ऐनर्जी बन सकती है. भड़ास में आप म्यूजिकल इंस्ट्रूमैंट बजा कर, पेंटिंग कर के या अन्य पसंदीदा काम कर के अपनी ऐनर्जी को सकारात्मक दिशा में मोड़ सकते हैं.

मनोवैज्ञानिकों की मानें तो गुमनाम रहना लोगों में एक तरह से सुरक्षा की भावना पैदा करता है. दिल्ली में काम करने वाली साइकोलौजिस्ट, काउंसलर और फैमिली थेरैपिस्ट गीतांजलि कुमार ने बताया कि जब आप इस तरह से कुछ लिख रहे होते हैं तो आप किसी ऐसे इंसान से कम्युनिकेट कर रहे होते हैं जो आप को जानता हो.

अपनी भड़ास निकाल देने से हम बुरी स्थिति पर नियंत्रण कर पाते हैं. 2-4 अपशब्द कह कर हम सामने वाले को जता सकते हैं कि हम कमजोर या डरपोक नहीं हैं. भड़ास निकाल देना हमारे आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को बढ़ावा देता है और सुधारात्मक काररवाई करने के लिए प्रेरित करता है. कहा जाता है कि जब गुस्सा आए तो 10 तक उलटी गिनती गिननी चाहिए. गुस्सा शांत हो जाता है, लेकिन जब गुस्सा हद से ज्यादा बढ़ जाए, तो भड़ास निकाल ही लेनी चाहिए.

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भड़ास हिंसा का सहारा लिए बिना बुरे लोगों से या स्थितियों से हमें वापस लाने में सक्षम बनाती है. किसी को शारीरिक नुकसान पहुंचाए बगैर हम उस पर अपनी भड़ास निकाल कर अपना गुस्सा जाहिर कर देते हैं. लेकिन ज्यादा भड़ास निकालना भी कभीकभी नुकसानदेह हो सकता है, लेकिन एक नुकीले खंजर की तुलना में कुछ तीखे शब्द बेहतर हैं. किसी पर भड़ास निकालना, मतलब चेतावनी भी है कि फिर न उलझना मुझ से वरना छोड़ूंगी नहीं.

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